Sunday, November 25, 2012

युद्ध की अनिवार्यता...?



मौसम बेहद ठंडा है, दस डिग्री होगा तापमान, दोपहर को नन्हे को सुलाते सुलाते उसे भी नींद आ गयी, सुबह अमृता प्रीतम की नई किताब ‘कोई नहीं जानता’ पढ़ती रही, उसे लगा इस कहानी पर टीवी सीरियल बनाया जा सकता है. पत्र लिखने का काम शुरू नहीं हो पाया. पहले पड़ोस की एक माँ-बेटी मिलने आयीं, जिन्हें चिवड़ा-मटर खिलाया उसने फिर शाम को उसकी छात्रा आ गयी, जून के न रहने पर सोनू बार-बार कुछ न कुछ पूछने या उसके पास आ जाता था . दोपहर को बहुत दिनों बाद उसने पंजाबी कढ़ी बनायी दही वाली, ठीक सी ही थी पर बहुत अच्छी नहीं. पंजाबी गीत भी सुने उसने बहुत मीठे हैं, गजलें अभी ध्यान से सुनी ही नहीं, यूँ ही काम करते करते ...कुछ खास नहीं लगीं..शायद शब्दों को ध्यान से सुनकर अर्थ समझे तो ज्यादा लुत्फ़ आए.

जून ग्यारह बजे आए, उससे पूर्व वह अपने दायें तरफ वाली पडोसिन से आज सुबह हुए दुखद हत्याकांड पर बात कर  रही थी. जून भी इसी कारण आये थे. असम के भूतपूर्व मंत्री के भतीजे के घर जाकर गोलियों से निर्मम हत्या, राष्ट्रपति शासन होते हुए भी सम्भव हो पाई. लेकिन हत्यारे पकड़े जायेंगे, बचेंगे नहीं. आतंकवाद कितनी गहरी जड़ें जमा चुका है हमारे देश में, निर्दोष लोगों की हत्या..? आज नेता जी का जन्मदिवस है, कहाँ हैं उन जैसे लोग, आज तो अपने ही लोगों पर गोली चलाने वाले क्रान्तिकारी कहलाते हैं.  उसके सामने यहाँ यह दूसरी हत्या है, घर में जाकर पत्नी के सामने पति को गोलियों का शिकार बनाना..कैसे पत्थर दिल होते हैं वे लोग..कैसा करुण चीत्कार होगा उस महिला का जिसकी आँखों के सामने उसका जीवन नष्ट हो रहा हो. आज और कुछ भी लिखने का मन नहीं करता, जून आते समय अस्पताल से देखकर आए, सर के पीछे से खून तब तक निकल रहा था. खून कितना सस्ता हो गया है, कब बंद होगा यह सिलसिला. लड़ाईयां बढती जा रही हैं. इसराइल स्कड मिसाइल से किया हमला कितना निर्मम है. अमेरिका के बम भी बगदाद में कितनो की जानें ले चुके होंगे और सिपाही.. उनके तो जन्म ही शहीद होने के लिए हुए हैं.

बहुत दिनों के बाद आज वे लोग पैदल शाम को सात बजे के बाद घर से निकले. जून कर तलप में ही छोड़ आए हैं, सर्विसिंग करानी है. निकट ही एक कन्नड़ परिवार के यहाँ गए, उन्हें बैठे हुए दो मिनट भी नहीं हुए थे कि सामने नारियल के लड्डू और नमकीन रख दी उन्होंने, अपना-अपना रिवाज है. लड्डू अच्छे बने थे, गृहणी कुछ दिनों बाद घर जा रही हैं, शायद ले जाने के लिए बनाये होंगे.

उसने फिर सिलाई-कढ़ाई के अधूरे काम को छोडकर एक और किताब पढ़ी, ‘आक के पत्ते’, उसके गौतम का दुःख आँसू बनकर उसकी आँखों से बहने लगा था. कितनी गहरी चोट लगी थी उसको...इतनी चोट खाए बिना कोई कैसे लिख सकता है वह सब, जरूर अमृता प्रीतम ने भी ऐसी ही पीड़ा को सहा होगा. उसकी जिंदगी में तो सुख ही सुख चाहा है उसने..सुख, आराम, सुविधा,...मन की शांति, स्थिरता..थोड़ी सी भी पीड़ा उससे सही नहीं जाती...पर कभी कभी थोड़ा सा भी दुःख विशाल लगने लगता है उसके साथ भी यही हुआ है. कई बार ऐसा हुआ है..अब भी तो बीती कड़वीं बातें सोचने बैठ जाये तो मन कैसा रोना-रोना हो जाता है. जब याद ही इतनी तकलीफदेह है तो..उस समय क्या स्थिति रही होगी.



प्रिय ब्लॉगर साथियों,  मैं बनारस व बैंगलोर की यात्रा पर जा रही हूँ, अब दिसंबर के तीसरे सप्ताह में मुलाकात होगी. आने वाले वर्ष के लिए तथा क्रिसमस के लिए अग्रिम शुभकामनायें...



Friday, November 23, 2012

अमृता प्रीतम का संसार



चार दिन बाद सोनू स्कूल गया, घर आकर कहने लगा ममा की याद आने पर रोने लगा था. जून चले गए हैं चप्पल देना भूल गयी वह, ड्राइवर से कहा तो है कि कोई गाड़ी जा रही हो तो चप्पल ले जाये. आज सुबह वह अपनी लेन के अंतिम घर में गयी, गृहणी नहा रही थीं, फिर दोपहर को वह आयीं, उनसे बात करके अच्छा लगा, उन्हें फूलों का भी शौक है. कल से उनकी बिटिया भी नन्हे के स्कूल जायेगी, शायद उसी रिक्शा से.

आज उसके सिर में उसी कारण से पीड़ा है, दवा ले या नहीं तय नहीं कर पा रही है. जून होते तो अब तक दे चुके होते. बाहर कभी कार का दरवाजा बंद होने की आवाज आती है तो लगता है कि वह हैं. सुबह उनका फोन आया था और शाम को एक गाड़ी आयी. जून ने एक कागज पर लिख कर भेजा था चप्पल के लिए...सोचा वह भी कुछ लिख दे पर जैसा कि उसके साथ होता है ठीक से लिख नहीं पायी, पर वह समझ गए होंगे. दोपहर को स्वप्न में दीदी-जीजा जी को देखा, उनका पत्र भी आया है.

आज उसने अमृता प्रीतम का एक उपन्यास पढा, ‘उनचास दिन’ करीम और संजय की मित्रता अनूठी है..इतनी कि जग में ऐसी मित्रता मुमकिन नहीं. और संजय से ज्यादा जीवंत करीम लगा. बुल्लेशाह की काफियाँ उसको जबानी याद हैं और कितना करीब है वह जिन्दगी के, उनकी सोच के. अमृता प्रीतम ने ऐसा पात्र गढ़ा तो वास्तव में तो वही कबीले तारीफ हैं. कितनी सुंदर बातें कह जाती हैं. वह एक महान लेखिका हैं और एक महान नारी. उनकी कहानियाँ उसने पहले भी पढ़ी हैं और आज भी पढ़ी, ‘करमांवाली’  दिल को छूती है. पर सिर्फ पढ़ना ही पढ़ना हुआ कोई काम नहीं हुआ घर का. नन्हे के कुछ कपड़े प्रेस करने हैं.

जून कल शाम को आए और आज दोपहर चले गए. पहले तो लगा जिनके साथ उन्हें जाना था, वह नहीं आएंगे, पर सवा घंटा इंतजार करने के बाद वे आए, गाजर का हलवा जो कि जून ने बनाया है, उन्हें खिलाया, तारीफ उसकी कर गए. वह बता नहीं पाई कि यह उसने नहीं बल्कि उसके ‘उन्होंने’ बनाया है..पता नहीं क्यों? उनके जाने के बाद कुछ देर नन्हे और उसने टीवी देखा फिर सो गए. शाम को नन्हा खेलने गया कुछ देर को. टीवी पर ‘गर्म हवा’ आ रही थी, जो बांधे रखती है शुरू से आखिर तक, नन्हा अपने खिलौनों में मग्न था, बीच बीच में देखता था. यह फिल्म भीतर तक छू जाती है, जैसे एक कविता हो पर्दे पर लिखी, अभिनय भी कमाल का है, वह दृश्य जहां नायिका विवाह से से पूर्व चूनरी माथे पर ओढ़ती है, और वह  दृश्य जहां आत्महत्या करती है. शायद जून ने भी देखी हो वहाँ, वैसे तो उन दोनों ने एक बार पहले साथ-साथ देखी है यह फिल्म किसी मित्र के यहाँ श्याम-श्वेत टीवी पर.

सुबह उठी तो पेट में हल्का दर्द था जो दोपहर तक बना रहा, हाजमोला ने आराम दिया, ईनो भी था पर उसे वह अच्छा नहीं लगा. नन्हे को भी सर्दी लग गयी है. कुछ देर पहले कहने लगा उसे भी पेट में दर्द है. सुरभि का पत्र आया है, उसे बधाई पत्र भेजेगी, उसकी शादी जो होने जा रही है. शाम तक सब ठीक हो गया वे घूमने गए, उसकी पंजाबी सखी ने दो कैसेट दिए, एक जगजीत सिंह और चित्र सिंह की गजलें तथा दूसरा पाकिस्तानी बेंजामिन सिस्टर्स का पंजाबी गानों का. दूसरा ज्यादा अच्छा लगेगा, गीतों के मुखड़े पढ़कर तो ऐसा ही लगता है.

जून शाम को आए थे और सुबह चले गए, फोन आया है कि पाइप स्टक हो गया है, पता नहीं कब तक चलेगी तलप में ड्रिलिंग. शाम को वे अपने दो मित्र परिवारों से मिलने गए, बहुत दिनों से जाना ड्यू था. अच्छा लगा पर एक जगह वह अपनी बात को जल्दी कहने के कारण ठीक से नहीं समझा पायी, वह ज्यादा उत्तेजित हो जाती है किसी अच्छी बात को कहने के लिए. पर बाद में सामान्य हो गयी. लेकिन घर आते समय फिर वह बात उसे याद आयी और खुद पर गुस्सा आया, और शायद अगले दो-तीन दिनों तक आता रहेगा...खैर इसी तरह ठीक हो जायेगी उसकी यह बुरी आदत.







Thursday, November 22, 2012

बीहू की चाय



उसने अपने बचे हुए कामों की एक सूची बनाई, कुछ कपड़ों को दुरस्त करना है, कढ़ाई का काम अधूरा है, आगे बढ़ाना है, कपड़े प्रेस करने हैं. नन्हे का स्वेटर ठीक करना है. मफलर बुनना है. व्यायाम करना है, नियमित न करने से उसका पाचन ठीक नहीं रह पाता. अखबार पढ़ना है. आज शाम उन्हें एक सहभोज में भी सम्मिलित होना है. जून अभी कुछ देर पूर्व आए थे, अब उसी भोज की तैयारी के सिलसिले में गए हैं. आजकल उनके कैम्प में रहने के कारण उसे काफी एकांत मिल जाता है कुछ लिखने के लिए, पर कहाँ लिख पाती है, भावनाएं जैसे शांत हो गयी हैं..विचार थम गए हैं..किसी ने सही कहा है कि मानसिक उथल-पुथल ही सशक्त रचना को जन्म देती है. मन शांत रहे तो फिर कैसी रचना ? लेकिन मन अशांत हो यह भी उसके लिए पीड़ादायक स्थिति होती है, तब उसकी झुंझलाहट का शिकार नन्हा और जून ही होते हैं.

कल शाम पार्टी में दो समूह बन गए, बल्कि तीन, पुरुष अलग, महिलाएँ दूसरे कमरे में और बच्चे तीसरे कमरे में. घर आकर जून देर तक ब्रश करते रहे, मुखवास से मुँह धोते रहे. उसे अच्छा नहीं लगेगा इसलिए. पर वह खुद ही नहीं समझ पाती कि उसे क्या अच्छा नहीं लगेगा. उसके भीतर एक डर है कि कहीं उसका इस तरफ झुकाव न हो जाये. आधी रात हो गयी सोते सोते, देर से सोये तो सुबह देर से उठे, जून बिना कुछ खाए गए, नन्हा स्कूल भी न जा सका और उसने भी उपवास किया. फिर वह लंचब्रेक में आए, उन्होंने एक साथ भोजन किया और अब सब ठीक है. पर जिस बात के कारण ऐसा हुआ उस पर कोई चर्चा नहीं हुई. सो मन में एक कसक तो रह ही गयी पता नहीं कब दूर होगी. उसकी छात्रा ने नन्हे को एक चाकलेट दी, उसका अंतिम दिन है आज, एक सवाल लायी है. वे दो फिल्मों के कैसेट भी लाए थे, एयरपोर्ट व बीस साल बाद... पर अभी तो उसे बहुत काम करना है, सामने वाली उड़िया लड़की को खाने पर बुलाया है, वह बोलती कुछ ज्यादा है लेकिन है बहुत अच्छी...अब शायद ही कभी उससे मिलना हो.

आज नन्हे के स्कूल से फोन आया, उसकी तबियत ठीक नहीं थी सो वे उसे घर ले आए, उसे खांसी है, इस समय सोया है, उसके दस्ताने व टोपी भी मिल गयी स्कूल ड्रेस की. जून कह गए हैं कि कोलकाता से लाने के लिए सामान की लिस्ट बना दे, उसने लिखा, एक बड़ा लैम्प शेड, लाल या हरा. नन्हे का जैकेट, जूता और एक हरी कैप, रील धुलवानी है. और कुछ उसे याद नहीं आया. वैसे भी उन्हें घर शिफ्ट करना है अगले छह महीनों में, नया सामान नए घर में ही लेना ठीक रहेगा. कल नहीं परसों या उससे भी एक दिन पहले माँ-पिता के दो पत्र आए थे और एक शुभकामना कार्ड भी, बहुत सुंदर सा.

जून घर पर होते हैं तो समय का पता ही नहीं चलता. आज शनिवार है. सुबह वह समाचार देख रही थी टीवी पर कि घंटी बजी, सोचा दूधवाला होगा, पर ऑफिस से ड्राइवर आया था, जून ने एक खाली चेक मंगवाया था. वह थोड़ी कन्फ्यूज हो गयी और बाद में बहुत देर तक परेशान रही कि इतना सा काम वह नहीं कर सकी. उस दिन उर्जा सरंक्षण पर प्रदर्शनी देखने गए थे, सेंट्रल स्कूल के एक छात्र ने अपने स्टाल दिखाया, फिर कमेन्ट लिखने को कहा था तो उसके गाल लाल हो गए...क्यों ऐसा होता है, इतनी उम्र हो गयी है  आखिर कब जाकर उसमें परिपक्वता आयेगी या यूँ ही कट जायेगी उम्र. पडोस की एक बालिका से एक किताब लायी है विज्ञान की, एक मैजिक स्क्वायर है उसमें, उसे नोट करना है.

रविवार है आज, जून दोपहर को ही चले गए, कल वह ऑफिस से आए तो जैसे कुछ हुआ ही न हो, ऐसे थे. वह बहुत अच्छे हैं और बहुत प्रिय..  परसों आएँगे. नन्हे की तबियत अब ठीक है, जून दो कैसेट दे गए हैं, गुरु दक्षिणा और अंकुर. दोनों ही अच्छी हैं, पर अंकुर कुछ अधिक. 

Wednesday, November 21, 2012

संगीत का उपकरण



जून का फोन आया था, डिब्रूगढ़ से फिलिप्स के एजेंट के आने वाले फोन के बारे में पूछ रहे थे. वे म्युजिक सिस्टम खरीदना चाहते हैं. एक घंटे बाद ही किन्हीं सुनील का फोन आया, उनकी पसंद का डेक आ गया है. पर अब वह कल ही उन्हें बता पायेगी, वैसे जून ने नम्बर दिया है, पर उसे खुद फोन करना अच्छा नहीं लगता, वे व्यस्त हो सकते हैं. उसने अनिता देसाई की किताब पूरी पढ़ ली, एक–एक शब्द तो नहीं पर अंतिम पन्ने पूरी तरह..भविष्य के बारे में जानना कितना नुकसान देह हो सकता है. ज्योतिषी की बात किस तरह उसके दिमाग में घर कर गयी कि..उसका अंत यह हुआ. नायक मर गया, यह लिखा नहीं है पर यही हुआ होगा. दोपहर को पड़ोसिन से भी इस विषय पर कुछ बात हुई. वह भी विश्वास करती है. लेकिन उसे विश्वास नहीं होता कि सब कुछ पहले से ही नियत है..खैर यह एक अंतहीन विषय है, कितनी ही बहस हो सकती है इस पर. नन्हे का स्कूल कल-परसों बंद है, उसने गृहकार्य नहीं किया है अभी तक, खेलने में बहुत समय लगाता है, जब तक जगता है, खेलता ही तो रहता है. बच्चा और खेल दोनों इस तरह जुड़े हैं कि... अभी उसने शाम का नाश्ता भी पूरा नहीं खाया है, पता नहीं किस झोंक में उसने कुछ ज्यादा ही परोस दिया था उसे, ठंड बढती जा रही है, अब उसे अंदर बुला लेना चाहिए, उसने सोचा.

सोनू और उसने जून के लिए दो उपहार खरीदे हैं, उसे पसंद तो आएंगे. शाम होते-होते ठंड बढ़ जाती है, उसे मफलर काम आयेगा वहाँ वैल साईट पर. कितने दिनों बाद तिनसुकिया गयी, पहली बार उसने वहाँ अकेले खरीदारी की. वे दोनों गए थे पड़ोसियों के साथ. और भी कुछ सामान खरीदा, कल वह जून को बताएगी. सुबह उन्होंने जल्दी-जल्दी खाना खाया, साढ़े ग्यारह, बारह तक चलेंगे, ऐसा कहा था पर सवा घंटा इंतजार करना पड़ा. फिर भी सब ठीकठाक रहा.
आज इतवार है, टीवी पर ‘वर्ल्ड ऑफ स्पोर्ट्स’ आ रहा है. दोपहर को उन्हें एक सुखद उपहार  मिला जब जून के एक परिचित कोलकाता से आए, नए वर्ष का एक कैलेंडर और नन्हे के लिए चॉकलेट का एक डिब्बा, साथ में एक सुपारी का डिब्बा, मीठी खुशबूदार सुपारी. कल वही खास दिन है, उनके विवाह की वर्षगाँठ, उसने अभी तक केक नहीं बनाया है, इतवार को टीवी इतना व्यस्त कर देता है.. दोपहर को फिल्म फेयर अवार्ड देखे, इतने सारे सितारे एक साथ. आज तीन-चार दिनों के अखबार भी एक साथ आए हैं, अभी खोलकर भी नहीं देखे हैं. नाख़ून बनाने थे, नन्हे के भी.

जून आज पौने ग्यारह बजे आ गए थे, उन्हें उपहार पसंद आए और उनकी तिनसुकिया की यात्रा की बात भी. इस समय वह डिब्रूगढ़ गए हैं उनका टू इन वन लाने, शाम को उन्होंने  किसी को बुलाया नहीं है, वैसे भी उन्हें वापस आने में सात बज जायेंगे. नन्हा भी आज दोपहर को बेहद खुश लग रहा था, इतने दिनों बाद पापा को देखकर. आज उसे विवाह का दिन जरा भी याद नहीं आ रहा है, अब वह सब एक सपना सा लगता है, बहुत दूर की बात..हाँ एल्बम देखते ही सब जैसे स्पष्ट हो जाता है. छह साल का वक्त कोई कम नहीं होता. जून और वह इस तरह रच-बस गए हैं एक-दूसरे में... एक-दूसरे की आदत हो गयी है कि...

वह लिख ही रही थी कि उस समय घंटी बजी और उसे उठना पड़ा, उनका एक परिचित परिवार था, नन्ही सी बेटी थी उनकी, वे लोग बहुत दिनों बाद आए थे. उनके सामने ही जून आ गए डेक लेकर. फिलिप्स का का बेहद सुंदर मॉडल है. वह पाँच कैसेट भी लाए हैं.

गणित का सिलेबस खत्म हो गया है, परीक्षाएं भी नजदीक हैं, अब उसकी छात्रा कभी-कभी आयेगी कोई समस्या लेकर. आज उन्होंने उस पंजाबी परिवार के दो बेटों को खाने पर बुलाया है. उनके माता-पिता कहीं बाहर गए हैं. उसने सोचा सामने वाली उड़िया लड़की को भी बहुत दिनों से नहीं बुलाया, कल ही उसे कहेगी. आज उसने सभी के पत्रों के जवाब दिए, माँ-पिता, मंझले भाई, छोटे भाई व उसके सास-ससुर, ननद इन सभी ने नए वर्ष के कार्ड्स भेजे हैं और किसी ने जवाब ही नहीं दिया, लोग इतने संगदिल क्यों होते हैं कि फूलों की मुस्कुराहट का भी जवाब नहीं देते.. खैर.

Cry the Pecock -Anita desai



नए वर्ष का प्रथम प्रभात भी और दिनों की तरह ही आया उसके लिए, यानि कि कोशिश करने पर भी सुबह जल्दी नहीं उठ सकी, वही सात बजे जबकि पिछली रात सोयी दस बजे ही थी, नव वर्ष की पूर्व संध्या पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम भी नहीं देखे, जून होते तो वे साथ-साथ देखते, दोपहर होते-होते ही वह आज भर के लिए आ गए. कल सुबह ही उन्हें जाना होगा. अब पाँच दिन बाद आएंगे. छोटे भाई का खत व फूलों भरा कार्ड मिला. नए वर्ष में उसे यह नीले रंग की सुंदर डायरी मिली है, जून के पास भी ऐसी ही डायरी है. उसके दिन अच्छे बीत रहे हैं, वे आते हैं फिर एक-दो दिन रहकर चले जाते हैं, सब कुछ भला-भला सा लगता है. कभी-कभी मन परेशान हो जाता है, छोटी-छोटी सी बात पर ही. वह सलीके से रहना नहीं जानती इसी बात पर या वह बात नहीं कर सकती या फिर इसी बात पर कि उसके बाल ठीक नहीं लग रहे हैं या फिर यही कि कमर का घेरा बढ़ता जा रहा है. शाम को नन्हे के साथ झूला पार्क में दौड़ने पर उसे कितना अच्छा लगा था हल्का-हल्का, हवा से भी हल्का. उसे अपना वक्त सही बातों में और सही ढंग से लगाना चाहिए, सब कुछ व्यवस्थित...तभी मन भी व्यवस्थित रह सकेगा. दादीजी को अब घर जाने पर वह नहीं देख पायेगी, कभी-कभी सोचकर कैसा लगता है. पिता ने उसकी स्कूल की एक सखी का पता भेजा है. उसे पत्र लिखेगी.

नन्हे का रिजल्ट आया है, उसकी लिखाई के कारण कुछ नम्बर कटे और कुछ उसके राइम्स न सुनाने के कारण, वह थोड़ा शरमाता है. उसने सोचा वह उसकी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देगी, ताकि वार्षिक परीक्षा में अच्छा करे. सुबह का काम खत्म करके वह पड़ोस में गयी उनका नया टीवी देखने, पड़ोसिन ने बड़े स्नेह से स्वागत किया. दोपहर को नन्हा स्कूल से आया तो खेलने में उत्सुक था, वह उसकी बेबी अलबम में फोटो लगाने लगी, उन्होंने खाना देर से खाया, पर ठंडा हो जाने के कारण ठीक से खा भी नहीं सके, कल से वह ऐसा नहीं करेगी सोचा उसने. तीसरे जन्मदिन का फोटो नहीं मिला था, उसे याद आया तब वे बनारस में थे, जन्मदिन मना ही नहीं था, उसी साल तो उसने बीएड किया था, अब लगता है कितनी पुरानी बात हो गयी. मैडम को कार्ड भेजा है पर वे शायद ही जवाब दें, सुरभि ने भी पत्र नहीं लिखा. जीवन में कितने-कितने लोग मिलते हैं, लगता है हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं पर समय के साथ सब भुला देना पड़ता है.

शाम को वह देर तक ‘प्लेन और स्ट्रेट लाइन्स’ पढ़ती रही, कल उसकी छात्रा पढ़ने आयेगी. आजकल वह लाइब्रेरी से लायी अनिता देसाई की एक पुस्तक cry the pecock भी पढ़ रही है. उसकी नायिका बहुत कुछ खुद जैसी लगती है और लग रहा है कि गौतम यानि उसका पति एक दिन उसे खूब प्रेम करेगा..जैसे जून.. उसे याद आया जून के लिए उसे एक उपहार खरीदना है, उनके विवाह की वर्षगाँठ से पहले. कल ही जायेगी बाजार..पर किसके साथ?

शाम के साढ़े पांच हुए हैं, बाहर सुबह से ही बूंदाबांदी हो रही है जो दोपहर बाद से तेज हो गयी है, नन्हा और वह घर में बैठे हैं, चार बजे से ही अँधेरा छाया है कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता, अगर जून होते तब भी नहीं. नन्हे के साथ कारपेट पर टेनिस टेनिस खेल रही थी, वह एक घंटा पहले ही उठा है. दोपहर सोने से पूर्व उसे दो कवितायें सिखायीं, अगर वह साल भर नर्सरी में पढ़ा होता तो उसे कई याद होतीं. नन्हा उसके पास ही बैठा है कह रहा है उसकी पोयम भी डायरी में लिख दे,  humpty dumpty sat on a wall…और pat a cake …सोमनी उसकी छात्रा ऐसे मौसम में शायद न आ पाए, उसने सोचा था पर घंटी बजी, वह पढ़कर गयी पिछले माह की फ़ीस देकर, पर उसे अब उतनी खुशी नहीं होती, जून की पे बढ़ गयी है अब उन्हें किसी जरूरत के लिए सोचना नहीं पड़ता, यानि की वह अपने मन की हर इच्छा पूरी कर सकती है खरीदने के मामले में, पर अब खरीदने में भी उतना आनंद नहीं आता..संतुष्ट होना शायद इसी को कहते हैं. पर जून के लिए उसे कुछ लेना है.

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Monday, November 19, 2012

काजीरंगा का गैंडा



माँ-पिता का पत्र आया है, कुछ दिन पूर्व दादीजी का स्वर्गवास हो गया. उसके मन में यादों का एक चलचित्र चलने लगा, उनके साथ बिताए कितने ही दिन याद आए, कितनी अच्छी थीं वह, लिखा है, चोट लगने से एकाएक मृत्यु हो गयी. उसने सोचा, वह जैसी मृत्यु चाहती थीं वैसी ही उन्हें मिली, जीवन चाहे वैसा न मिला हो. कल सोनू का पहला पेपर हो गया इंग्लिश का, आज गणित और कविताओं का है. जून को सम्भवतः एक डेढ़ महीने और इसी तरह तलप आना-जाना पड़ेगा. इतवार दोपहर को आए थे, सोमवार सुबह चले गए. उसने उनसे वह बात भी कह दी, सोचेंगे, कहा है उन्होंने. उसके मन में भी कितनी ही बातें घुमड़ती रहीं इस सिलसिले में.

नन्हे का आज हिंदी का इम्तहान है, कल अंतिम परीक्षा है. कल शाम को उसकी एक उड़िया मित्र आयी थी, पिछले कुछ दिनों में अपने बेटे को तीसरी बार स्टीम-बाथ देने, उसका बेटा कुछ मोटा हो गया है, किसी ने कहा कि भाप में नहलाने से स्लिम हो जायेगा. उसे लगता है वह कुछ ज्यादा ही परेशान हो रही है.

पिछले कई दिनों से डायरी नहीं लिखी, उन्हें राष्ट्रीय उद्यान काजीरंगा जाना था, पहले कुछ दिन यात्रा की तैयारी में लगे, फिर यात्रा में और फिर क्रिसमस की छुट्टियों में क्लब, पिकनिक आदि. आज वर्ष का अंतिम दिन है. काजीरंगा में उन्हें बहुत अच्छा लगा, सुबह सवेरे घने कोहरे में पगडण्डी पर कार चलाकर उस स्थान पर जाना जहां से हाथी की सवारी शुरू होती है, एक अविस्मरणीय क्षण था. वहां एक सींग वाले गैंडे मिलते हैं, वहाँ का विस्तृत वृतांत लिखे उसका मन तो है, पर कब लिखेगी कुछ कह नहीं सकती. जून अभी तक बाहर ही हैं बीच-बीच में आते हैं एकाध दिन के लिए. नन्हे का स्कूल भी परसों खुल रहा है. इस वक्त वह चित्र बना रहा है.

पिछले दिनों अकेले होने के कारण कई बार वे लोग कई बार उस पंजाबी परिवार से मिले. पिछली बार जब वह घर गयी थी तो माँ-पिता से उनके बारे में पूछा था कि किस तरह से वे हमारे रिश्तेदार हैं. उन्होंने विस्तार से बताया एक अच्छी खासी कहानी बन गयी.

पाकिस्तान में एक लालचंद कटारिया थे, जिनकी शादी बागां से हुई, नूना की दादी की दादी के भाई की लड़की इस बागां की माँ थी. लालचंद व बांगा की पुत्री की शादी नूना की माँ के ममेरे भाई के साथ हुई. उनका पुत्र था अमर, जो नूना के पिता जी का सहपाठी था. उसकी शादी राज से हुई जो उसकी माँ की सहपाठिनी थी. इनके पुत्र ही असम में रहने आए..जिनकी पत्नी के माता-पिता भी नूना के माँ-पिता के परिचित थे. उनकी माँ नूना की माँ के साथ भारत आने के बाद पढ़ती थीं.
एक दिन उसने ये बातें जब उनको बतायीं तो वे भी चकित हुए.


आइसक्रीम वाला सपना



पड़ोसियों के यहाँ कल पार्टी में ज्यादा खाना नहीं लगा, थोड़ा बच गया है और वे चाहते हैं कि हम उन्हें कहें, कोई बात नहीं हम खा लेंगे..कैसी अनुचित अपेक्षा..बासी खाना..कल शाम को जून ने ऐसा ही कुछ कहा था, ऐसे ही पड़ोसियों के सम्बन्ध खराब होते हैं, अगर उन्होंने रात को ही हमें बुलाया होता.. छोडो इन बातों को, उसने खुद से कहा. जून आज दोपहर को घर नहीं आ रहे हैं, फील्ड गए हैं. आज सफाई कर्मचारी देर से आया सो वह व्यायाम नहीं कर सकी, अक्सर उसका व्यायाम किसी न किसी कारण से छूट ही जाता है..कल वे एक सिंधी परिवार के यहाँ गए. आज जून यदि समय पर आए तो शाम को वे कहीं जा सकते हैं.

पहली दिसम्बर..यानि बड़े भाई का जन्मदिन..आने के बाद उसने खत लिखा था..छोटे भाई को छोडकर किसी ने भी तो जवाब नहीं दिया,,,,खुश रहें सभी.  कुछ ही दिन में वह सभी को नए वर्ष के कार्ड भेजेगी. उसने एक सूची बनायी. आज मौसम कितना ठंडा है, कल शाम से ही वर्षा हो रही है. जून का दफ्तर कल बंद हो गया आसाम बंद के कारण. नन्हे का स्कूल तो कल बंद था ही, परीक्षायें आने वाली हैं, उसने उसे पढ़ने के लिए कहा.

एक नए सप्ताह की शुरुआत..मौसम तो अच्छा है खिला-खिला और उसका मन भी. दस बजे थे. घंटी बजी, उसे लगा शायद धोबी आया है, पर इलेक्ट्रीशियन था टेबल लैम्प का स्विच ठीक करने आए थे. कल उसकी असमिया सखी आयी थी परिवार सहित, उन्होंने खाने पर बुलाया था, वे लोग नए मकान में जा रहे हैं, बड़ा है, लॉन भी है. अच्छा घर है. कल वे बाजार से लौटते समय देखकर आए. किसी का पत्र नहीं आया, उसने सोचा वह बीस दिसम्बर तक प्रतीक्षा करेगी, फिर अपने हाथ से बनाये कार्ड्स भेजेगी. जून न्यूजट्रैक के दो कैसेट लाए हैं, जम्मूकश्मीर के शरणार्थियों पर कार्यक्रम देखकर बहुत खराब लगा. सरकार कुछ करती क्यों नहीं, असम में राष्ट्रपति शासन है तो क्या कश्मीर में..वहाँ पर इतना जुल्म क्यों..और बेनजीर भुट्टो पहले मित्रता की बातें करती थीं, पर उनके ये भड़काने वाले भाषण..

छह दिसम्बर यानि अयोध्या में विश्व हिन्दूपरिषद तथा बीजेपी द्वारा कार सेवा. जून आजकल तलप में हैं, एक हफ्ते बाद वापस आएंगे, शाम को फिर से फोन करेंगे. वह लिख रही थी कि द्वार पर एक गरीब औरत आयी कुछ मांगने, उसे पैसे देकर आयी ही थी कि फिर घंटी बजी, इस बार धोबी था और वह गया भी नहीं था कि पडोसिन आ गयी सरसों का साग लेकर जिसमें पालक भी मिलायी गयी थी और थोड़ासा खट्टा दही. अच्छा बना था. कल दोपहर वह  नन्हे को लेकर अपनी दूर की रिश्तेदार उसी पंजाबी परिचिता के यहाँ गयी थी. वहाँ पहली बार महाजोंग का खेल सीखा, बहुत रोचक खेल है. उन्होंने एक बात कही कि नन्हे को किसी भाई या बहन की जरूरत है..और उसे भी लगता है कि उनकी बात ठीक है, जून के आने पर वह  उनसे कहेगी जरूर.

आज अभी तक जून का फोन नहीं आया, उसने मन ही मन उसे शुभकामना भेजी. उसके न रहने पर रात को देर से नींद आयी सो सुबह देर से उठी, जल्दी जल्दी नन्हे को तैयार करके भेजा, अब कल-परसों उसका स्कूल बंद है, सोमवार को इंग्लिश का पेपर है. उसे फिर से कल की बात याद आ गयी नन्हे का साथी.. कल शाम उसकी दो परिचित महिलाएं आयीं, एक बच्चा भी साथ था, नन्हा बहुत खुश था. बच्चे एकदूसरे की बात कैसे समझ लेते हैं बिन कहे ही..
आज सुबह उसकी नींद खुल गयी सोनू की हँसी की आवाज से, वह सपने में हँस रहा था. उठा तो कहने लगा मेरा सपना नोट कर लीजिए...जिससे पापा पढ़ सकें-

“ मैं और एक बच्चा जा रहे थे, एक आइसक्रीमवाला और एक किताब वाला मिला. तब तक आइसक्रीम वाले ने अपनी दुकान खोल ली तो मैं उसके पास चला गया. फिर मैंने उसे एक लकड़ी दी कि वह आइसक्रीम उस पर लगाकर दे तो उसने कहा कि नहीं दूँगा. फिर मैंने कहा कि बना कर दो, फिर उसने नहीं बनाया तो उसी ने एक आइसक्रीम को मेरे चेहरे पर लगा दिया फिर मैं खूब हँसने लगा.”  

Saturday, November 17, 2012

सार्क समारोह




दोपहर के सवा तीन हुए हैं, दोपहर एक बजे घर के सामने गली में एक सांप दिखाई दिया, आस-पास के लोग भी घर से निकल आए, पहले उसे भगाने फिर उसकी चर्चा करने में ही इतना वक्त निकल गया, नन्हा अभी कुछ देर पूर्व ही सोया है. शाम को उन्हें उसी पंजाबी परिवार के यहाँ जाना है जिनसे पुरानी पहचान निकल आई है. उसने सभी को पत्र लिख दिए हैं कुल दस पत्र. जब से यात्रा से वापस आयी है, उसका हाजमा थोड़ा सा नाजुक है. अभी रजाई के लिहाफ सिलने हैं, कपड़े प्रेस करने हैं. उसकी नाराज सखी एक बार आयी थी पांच मिनट के लिए...उसे आश्चर्य हुआ यह सोचकर... कितने व्यस्त हो गए हैं वे सभी कि इतने पास होकर भी एक-दूसरे के घर जाने का वक्त नहीं निकाल पाते.

आज वे लोग उनके यहाँ आने वाले हैं, उसने एक सूची बनाई उन पदार्थों की जो वह शाम की चाय में उन्हें पेश करने वाली थी- सैंडविचेज, चना-पूरी, सलाद, मिठाई, हलवा, बिस्किट, नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, सूखे मेवे. अभी उसे नन्हे को होमवर्क कराना है, उसे खिलाना है और सुलाना है, उसके बाद शाम की तैयारी करेगी. कल पड़ोसी आए थे, उन्होंने साथ-साथ चित्रहार देखा और मूली के परांठे खाए. 

कल शाम का कार्यक्रम अच्छा रहा, वे लोग आए थे और पौने नौ बजे गए. चन्द्रशेखर ने दावा किया है सरकार बनाने का लेकिन मुश्किल लगता है कि राष्ट्रपति उन्हें कहेंगे. जून को विश्वनाथ प्रताप सिंह से चिढ़ है और उसे उनसे सहानुभूति है. कल रात अजीब सी बातें दिमाग में आती रहीं. आजकल ऐसा ही होता है, रात एक अजीब सा डर लिये आती है.. पता नहीं क्या होगा, लेकिन इस तरह जिया नहीं जा सकता ज्यादा दिन. नहीं, हालात उतने खराब नहीं हैं, जितने नजर आते हैं.

आज उन्नीस नवम्बर है, श्रीमती गाँधी का जन्मदिन ! आज के दिन की शुरुआत तो अच्छी हुई है. पिछले पूरे हफ्ते एक दिन भी डायरी नहीं खोली. चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बन भी गए और विश्वासमत भी प्राप्त कर लिया. अब देखें क्या करते हैं, अभी तक उनके भाषणों से तो उम्मीद बंध रही है. सर्दियाँ शुरू हो गयी हैं, हाफ स्वेटर के बिना घर में रहना मुश्किल सा लगता है. कल वे तिनसुकिया गए थे, कुछ आवश्यक सामान खरीदना था...क्या वह वाकई आवश्यक था?
आज जून फील्ड गए हैं, ‘तलप’ नाम है उस जगह का..शाम तक आएंगे. आज इस वक्त सुबह के दस बजे ही धूप तेज होने का कारण ठंड कम है. माले में सार्क के समापन समारोह का लाइव टेलीकास्ट हो रहा है, अच्छा लगा देखकर, वह फाउंटेन तो मालदीव ने आजादी के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर बनवाया है. इस समय भूटान के राजा बोल रहे हैं, इसके बाद चन्द्रशेखर को बोलना है. देखें क्या कहते हैं वह. नन्हे को सर्दी लग गयी है आज सुबह ठीक से नाश्ता खाकर नहीं गया, पता नहीं स्कूल में टिफिन भी खाता है या नहीं. कल शाम उसने जून से बहुत सी बातें कह दीं, वह बेहद अच्छा है..उम्मीद से भी ज्यादा..तभी तो कभी–कभी उसे लगता है कि क्या वह सचमुच इतना अच्छा है...वह उसे बहुत चाहता है..और अब वह बोल रहे हैं उनके प्रधानमंत्री और वह हिंदी में बोल रहे हैं..उसे बहुत अच्छा लगा.

Friday, November 16, 2012

सलमान रश्दी -ग्रिमस



परसों वे लोग डिब्रूगढ़ गए थे, मौसम बहुत अच्छा था, दोनों मंदिर देखे, तिरुपति और जालान मंदिर दोनों आकर्षक हैं. आजकल पंखा बंद करते ही गर्मी हो जाती है पर पंखा चलाने पर भी उतना भला नहीं लगता, नन्हे को हल्की खांसी हो गयी है.

कल दोपहर शनिवार होने के कारण जून भी घर पर थे, भोजन के बाद वे कुछ देर को लेटे, सोने जा ही रहे थे कि बाहर स्कूटर तथा कुछ लोगों की बातचीत की आवाज कानों में पड़ी, और उनकी धड़कन बढ़ गयी, क्यों हुआ ऐसा...रात को आठ बजे के बाद घंटी बजती है...तो मस्तिष्क में सबसे पहले एक ही बात आती है- अल्फ़ा. शाम को जून उसे व नन्हे को कार में दूर तक घुमाने ले गए. नन्हा तो आराम से बैठा था पर वह ही जरा टेंस थी. जरा भी खुशी नहीं हो रही थी...अजीब सी हालत हो रही थी- डर?


सितम्बर की चौदह तारीख हो गयी और उसने आज डायरी खोली है. पिछले दिनों कितनी ही बातें हुईं. पिछले से पिछले इतवार को उनका तिनसुकिया जाना और वह हादसा..फिर पिछले शनिवार को अस्पताल में रहना..और आज सुबह से होती वर्षा, सर में हल्का भारीपन, दीदी-छोटी बहन के पत्र. नन्हे के इम्तहान जो अगले हफ्ते हैं. लाइब्रेरी से लायी किताब- सलमान रश्दी की , Grimus  क्या लिखते हैं मिस्टर रुश्दी भी. इराक-कुवैत युद्ध के इतने हफ्ते और उन सज्जन का अभी तक पता नहीं. चीन का आतंकवाद पढ़ा उस दिन सर्वोत्तम में...तो अपने देश से और प्यार हो गया. छोटे फुफेरे भाई का पत्र और वह आत्मकथा...जून का प्यार और उसकी शिकायतें..वह महान है और उसका प्यार भी. नन्हे के पसंद के राजमा और नम्रता का जन्मदिन, उनके एक परिचित की बेटी का. कल उन्हें एक पंजाबी परिवार के यहाँ जाना है, जिनके पूर्वजों के साथ उसके पूर्वजों के सम्बन्ध थे. वह केक बनाकर ले जायेगी.

आज नन्हे का पहला इम्तहान है, कल विश्वकर्मा पूजा के कारण जून का दफ्तर जल्दी बंद हो गया. उन्हें चार दिन के बाद लम्बी यात्रा पर निकलना है. सोनू के स्कूल जाकर छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र देना है. आज सुबह झमाझम वर्षा हुई पर अब धूप निकल आयी है.

नवम्बर का प्रथम दिन ! खिली-खिली धूप और सब कुछ साफ-शफ्फाफ सा..जून और सोनू दोनों अपने-अपने ऑफिस व स्कूल गए हैं और वह यहाँ अपने चिर-परिचित स्थान पर..कितने दिनों के बाद.. वे लोग कितने स्थानों पर गए, बनारस, उल्हास नगर, मुम्बई, सहारनपुर, देहली, और पुनः बनारस...फिर कोलकाता, कितने लोगों से मिले ..जून की मासियों, मामाओं, बुआ  और उनके बच्चों से.. पहली बार वह उन सबसे मिली..फिर अपने परिवार जनों से...अब वे आ गए हैं अपने घर. यहाँ सब कुछ वैसा ही है. उसने सोचा धीरे-धीरे सभी को पत्र लिखेगी. श्रीमती गाँधी की पुण्यतिथि भी बीत गयी, छह वर्ष हो गए, समय कितनी जल्दी गुजर जाता है. आज शाम को उसकी छात्रा आयेगी पढ़ने, अच्छा ही है, लगेगा कि उसने कुछ किया दिन भर में ऐसा जो उसे अच्छा लगता है. आज ‘डेफिनिट इंटीग्रल’ पढाना है.

गुलाबी सर्दियाँ पड़ने लगी हैं, नौ बजे हैं, सब ओर सन्नाटा एक चुप्पी सी लगी है. उसने कोलकाता से लाए पैंजी के बीज माली से भूमि में डलवाए फिर उन्हें हल्का पानी डाल कर ढक दिया. उसे सोनू का ध्यान हो आया, आज फिर उसका टेस्ट है, घर आयेगा तो स्कूल की सारी बातें कहेगा. आजकल सुबह उसे उठाने के लिए बहुत मनाना पड़ता है. पढ़ाने के लिए भी उसे नए-नए तरीके सोचने पड़ते हैं, उसका ध्यान खेल में कुछ ज्यादा रहता है. जून जब थोड़ा जोर से बोलते हैं समझाने के लिए तो बैठ जाता है पर उसका भी असर कुछ देर ही रहता है. शायद सभी बच्चे ऐसे ही खेलते-कूदते बड़े हो जाते हैं.

Thursday, November 15, 2012

दाल, बाटी, चूरमा



पिछले एक घंटे से शायद उससे भी ज्यादा से वह अपने आप को प्रेजेंटेबल बनाने का प्रयत्न कर रही है..पर असफल, खैर अब साढ़े दस से ऊपर हो चुके हैं, जून और सोनू का आने का समय हो रहा है. भोजन बनाना, जो थोड़ा शेष है, आरम्भ करना होगा. आज सुबह भारत छोड़ो पर दिल्ली दूरदर्शन की एक फिल्म देखी, बहुत अच्छी थी, बी आर नंदा थे उसमें. वर्षा शुरू हो गयी है, नन्हे को आज वैसे भी जून कार से लाने वाले थे, कल लोला ग्रेग का अंतिम अध्याय पढते-पढते आँखों से आँसूं टपक रहे थे, कितनी तेजस्वी महिला और कितनी अभागी..और उसका सात साल का पुत्र, बेटी छोटी है पर चार साल का बच्चा छोटा नहीं होता न..

पिछले शनिवार से कल बुधवार तक उसने डायरी नहीं लिखी जबकि लिखने को बहुत कुछ था. अल्फ़ा, पन्द्रह अगस्त और जून का जन्मदिन सभी बीत गए. शनिवार को ही तो वे दोनों आये थे हथियार लेकर, फिर इतवार को और उनकी कार ले गए. उसी का परिणाम है कि उसकी नींद गायब है..रातों की..कल रात तो अजीब सा लग रहा था, जैसे दिमाग फट जायेगा, अजीब अजीब बातें..रात का अँधेरा और..खैर अब तो इस समय तो उजला उजला सा दिन है. दोपहर के दो बजे हैं, पहले वह दोपहर को गीत सुना करती थी फिर दो दस के हिंदी समाचार. आज सोचा था नहीं सोयेगी, पर नन्हे को सुलाते-सुलाते खुद भी सो गयी. अभी बहुत से काम करने हैं, एक डेढ़ घंटे में जितने हो सकें, कपड़े प्रेस करने हैं, खत लिखने हैं, कुछ सवाल हल करने हैं, कुछ कपड़ों को ठीक करना है. समाचार शुरू हो गए हैं, इराक अमेरिका के खिलाफ युद्ध शुरू नहीं करेगा. कल वे एक परिचित महिला से मिलने गए थे, उनके पति पिछले कई दिनों से कुवैत में हैं, पर उनकी कोई खबर नहीं मिल रही है.

क्लब में फिल्म है त्रिदेव, उसकी देखी हुई है, पर जून कह रहे हैं कि उन्होंने नहीं देखी है सो वे जायेंगे. कल रात वह ठीक से सो सकी. जून टीवी देख रहे थे सोनू सो गया था और वह भी सो गयी, फिर सुबह ही नींद खुली. कल सुबह अस्पताल गयी थी पर डाक्टर बरुआ छुट्टी पर थे, डा. फूकन के पास बहुत भीड़ थी, जून ने तो रुकने को बहुत कहा पर ...उसे अजीब सा लग रहा था कि डाक्टर से कैसे कहेगी नींद नहीं आती..सुरभि का पत्र आया है, उसे भी नूना के मार्क्स नहीं मिल सके. शायद अगले पत्र में मिले. उसका रिजल्ट पता नहीं कब मालूम होगा. कल शाम वे बहुत दिनों के बाद हैलिपैड पर घूमने गए. तीन सिक्योरिटी के आदमी थे और सीआईएसएफ की वैन भी धीरे-धीरे चल रही थी, अजीब सा लगा अँधेरे में..

आज शनिवार है..जून के आने में थोडा ही वक्त शेष है. आज पेंडिंग पड़े सभी खतों को पूरा करना है..पूरे दो घंटों का काम होगा सम्भवतः. राजस्थान का नाश्ता था आज मॉर्निंग टीवी प्रोग्राम में, दाल, बाटी, चूरमा और देसी घी. बाटी वे लोग घर पर बना सकते हैं ओवन में, कल ट्राई करंगे, उसने सोचा. आज तो खाना बन गया है. नन्हे को आज सुबह उठाने में बहुत देर लगी, उसकी नींद बहुत गहरी है. उनके नए पड़ोसी कल जा रहे हैं, नन्हा दोपहर को बातें करता था उनसे. सोचा उसने कि उन्हें चाय पर बुलाए पर...अगले ही पल सोचा वे कहीं न कहीं निमंत्रित होंगे, उनके बहुत से मित्र हैं. गणित में कल एक सवाल को लेकर थोड़ी प्रौब्ल्म हुई, दोपहर को सो गयी सो पढ़ नहीं पायी, अब से एक दिन पूर्व ही पढ़ने से अच्छा होगा.

आज मंगल है, कल ही वे सब खत लिखे गए, शनि और रवि तो टीवी के नाम समर्पित होते हैं आजकल. छोटी बहन व छोटे भाई के कार्ड मिले दोनों लेट लतीफ हैं, पर दोनों के कार्ड बहुत सुंदर हैं. आज सुबह वह साढ़े छह समझ कर साढ़े पांच बजे ही उठ गयी और जून को उठाया. जल्दी-जल्दी वह तैयार हुए, घड़ी देखी तो छह बजने में दस मिनट बाकी थे. पहली बार ऐसा हुआ. कितनी अच्छी गजल आ रही है टीवी पर..फासले कम से कम रह गए...मन होता है असमिया सखी के यहाँ जाये पर..बेतकल्लुफ़ वह औरों से है, नाज उठाने को हम रह गए..तेरे दीवाने कम रह गए..अहले दहरो हरम रह गए..इसका मतलब पता नहीं क्या है?



Sunday, November 11, 2012

चार्ली चैप्लिन की फिल्म



कल सुरभि का पत्र आया, अच्छा लगा बहुत दिनों बाद कालेज की सखी का पत्र पाकर, शनिवार को उनका पत्र लिखने का दिन होता है, उसने सोचा वह उसी दिन इस पत्र का जवाब देगी. दो माह पूर्व जो परिवार सदा के लिए चला गया था कल उनका पत्र भी आया, वे परसों उनकी कोई खबर न मिलने की बात कर ही रहे थे, सही कहा है किसी ने कि हर रात के बाद जैसे सुबह होती है हर उलझाव के बाद सुलझाव हो जाता है, सोचा उसने, उसकी असमिया सखी से भी शायद एक दिन सुलझाव हो जाय, वक्त का इंतजार करते हैं. हर कार्य अपने समय पर ही होता है. कल तिनसुकिया जाने से पूर्व जून ‘दिल’ फिल्म का कैसेट दे गए थे, पर वह देख नहीं पाई. वे कार्टून फिल्म के भी दो कैसेट लाए हैं नन्हे के लिए. शाम को कोई परिचित परिवार मिलने आया, सात बजे वे स्वयं भी आ गए. आज नन्हा खुशी-खुशी स्कूल गया है. उसने बताया कि कोई बच्चा उसका टिफिन खा जाता है, अभी थोड़ा वक्त लगेगा उसे अपने को स्कूल के माहौल में एडजस्ट करने में. आज भी उसका कोई टेस्ट है. शाम को नाश्ते में उसे आज इडली बनानी है, उसने सोचा सामने वाले घर से थोड़ा सा करी पत्ता व मिर्च ले आते हैं. रात को एक परिवार को डिनर पर बुलाया है, उसकी भी तैयारी करनी है.

आज फिर तीन-चार दिनों के बाद डायरी खोली है. कल उनके पड़ोस में आए एक नए परिवार से मिलना हुआ. रक्षा बंधन का त्योहार आने वाला है, उसने जून से राखियां लाने को कहा है, वैसे यहाँ पर यह उत्सव नहीं मनाया जाता, पर कहीं न कहीं राखियां मिल ही जाएँगी. आज पता नहीं किस कारणवश बिजली नहीं है, ऐसा यहाँ बहुत कम होता है, कुछ देर पूर्व ही वह  हेयर कट करवा कर आयी है, इस नए हेयर स्टाइल में तो उसकी शक्ल ही बिलकुल बदल गयी है. लम्बे बालों का शौक तो है पर सम्भालना मुश्किल है.

आज छोटी बहन का जन्मदिन है, उसे पत्र व कार्ड भेजा था, दीदी आज परिवार सहित बाहर जा रही है, भारत से बाहर. कल उसने एक आठवीं के विद्यार्थी को भी पढ़ाया, पर लगता है चल नहीं पायेगा, जून और नन्हा, जब तक वह पढ़ाती है, बाहर घूमते रहते हैं, हाँ सुबह उनके उठने से पहले वह पढ़ा सकती है. उसने उस छात्र को शनिवार को आने को कहा है.

उन्होंने कल ‘पंचवटी’ फिल्म देखी, अच्छी है मगर अधूरी सी लगी, जैसी कि लगभग हर आर्ट फिल्म लगती है. समझने के लिए उसने फिर से देखी...तब लगा हाँ, इसके सिवा अंत हो भी क्या सकता था. कुछ दिन पहले टीवी पर एक टेलीफिल्म भी देखी, “विवेक” एक कटु सत्य पर आधारित..

नन्हा सुबह कुछ भी खाने में बहुत नखरे करता है, उसे छह बजे उठाकर ही सात बजे कुछ खिलाया जा सकता है. आज उसका स्कूल बंद है, यहीं बैठकर होमवर्क कर रहा है, इतनी बातें करता है कि...पता नहीं बच्चों के पास इतनी उर्जा कहाँ से आती है. उसका खुद का वजन है कि बढ़ता ही जा रहा है, व्यायाम बंद है और जून जबरदस्ती दाल में घी दाल देते हैं.

कल का इतवार पलक झपकते बीत गया. परसों रात चार्ली चैप्लिन की फिल्म देख कर सोये, ‘ए वोमन ऑफ पेरिस’, सो कल देर से उठे, दोपहर को तिनसुकिया जाना था, एक गाउन लिया, लाल रंग का जिस पर एक सुंदर तितली बनी है, आज सुबह उसने नन्हे को फुल शर्ट पहना दी, तो कहने लगा..कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा है, शायद उसको गर्मी लग रही थी. पिछले दिनों वह हावर्ड पास्ट का एक उपन्यास Lola Greg  पढ़ने में भी व्यस्त रही, बहुत रोचक है.






Friday, November 9, 2012

अँधेरा...कोई है...



सवा छह हुए हैं, छह बजे वह उठी, उसके पूर्व एक स्वप्न देख रही थी. अद्भुत स्वप्न था, वह  ऊँची-ऊँची और चौड़ी सीढ़ियों पर चढकर छत पर जाती है. बाजार से वापस आयी है, छत पर एक परिचित लड़की उसे दो चिट्ठियाँ देती है. एक तो साधारण अंतर्देशीय है, जो उनका है भी नहीं, मुगलसराय से रिडायरेक्ट होकर आया है. दूसरा खत खोल कर पढ़ती है, लिखाई से उसकी चचेरी बहन का लगता है पर बातें ऐसी हैं कि..उसी में एक लम्बी सी वस्तु है जैसे किसी कीमती या खतरनाक वस्तु पर मोटा, नक्काशीदार कवर चढ़ा होता है, वैसा ही गोल सिलिंडर के आकार का. एक और से बंद है पर एक ओर से खुला है, जून घर पर नहीं हैं, अपने मित्र के यहाँ गए हैं. माँ-पिता, बड़ी बहन सभी हैं. वह उस वस्तु को सहलाती है तो ऊपर से एक पक्षी का मुँह निकलता है. पक्षी भी किसी कठोर वस्तु का बना है, जो बहुत सुंदर है और वास्तविक लग रहा है. नीचे से उसके पंख निकल आते हैं, वह उसे सबको दिखाती है,  पक्षी उन्हें देखकर मुस्काता है. तभी जून आ जाते हैं उनका मन उदास है क्योंकि उनके किसी मित्र का मकान गिर जाने से काफी नुकसान हो गया है. वह उसे दिखाती है तो वह कहता है यह सी. टी. है, इसे चलाना मुझे आता है.  फिर वह उसे अपने हाथ में ले लेते हैं और फिर कोई बटन दबाते हैं, उसमें से एक लम्बी सी तार निकलती है जिसमें कई जगह ..एक नाटक, शेर और ..

सुबह यह स्वप्न लिख रही थी कि याद आया नन्हे को उठाना है, उसका टेस्ट था सो लिखना वहीं छूट गया और अब कुछ याद नहीं. अब दोपहर है, नन्हा सोया है, उसक टेस्ट ठीक हुआ है. कल उन्हें पता चल जायेगा कि उसका दाखिला अगली कक्षा में हो गया है. उसको स्कूल ले जाने व लाने के लिए एक रिक्शावाला बुलाया है.

नन्हे का रिजल्ट ठीक रहा. पर आज स्कूल जाने से पहले वह एक बार बोला, आज नहीं जाऊंगा, बस आज, जबकि वह जानता है कि जायेगा जरूर..रिक्शा में बैठा तो रुंआँसा था, शायद रास्ते में उसका मन ठीक हो गया हो. कल रात तेज हवा चलने से दरवाजा अपने आप खुल गया, जैसे फिल्मों में होता है, आवाज से नींद खुल गयी, फिर देर तक नहीं आयी. रात का अपना एक वजूद होता है, उसमें डर ज्यादा लगता है. अँधेरा डर का नाम है शायद. अजीब-अजीब स्वप्न आते रहे बाद में. पेपर वाला अखबार दे के गया तो वह पढ़ने लगी दुनिया भर की खबरें पढ़कर कैसा मोद उठता है मन में. जून तिनसुकिया जायेंगे कार की वाशिंग करने. कल उसे एक महीना होगया पढ़ाते हुआ, मेहनताना देखकर कुछ अलग सा लगा. 

पहाडों के पास



चार जुलाई, अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस ! अर्जेंटीना फुटबाल विश्व कप के फाइनल में पहुंच गया है. सुबह हल्की वर्षा हुई, मौसम खुशनुमा है. जून तिनसुकिया गए हैं, कार की सर्विसिंग कराने. आज इदुल्जुहा है, जून का दफ्तर व सोनू का स्कूल भी बंद है, वह अपने मित्र के यहाँ गया है, अभी वह उसे लेकर आएगी, सुबह दूध पीकर चला गया था, अभी नाश्ता नहीं किया है, उसे कुछ भी खिलाने के लिए मनाना टेढ़ी खीर है. कल स्कूल से लौटा तो बहुत खुश था, कहने लगा बहुत मजा आया, अभी लिखाना शुरू नहीं किया है, केवल राइम्स ही सिखायीं. बनारस से पत्र आया है, माँ की तीन साड़ियां गायब हैं, आश्चर्य है. उसे भी पत्र लिखना है. छोटी बहन दीदी के पास गयी थी, उसने सोचा वह तो शायद अब अगले वर्ष ही मिल सकेगी उन सबसे.

आज उसने अपना विवाह में मिला सफेद गाउन पहना है, पहले ढीला-ढाला था पर अब कुछ ठीक है. इसका अर्थ है कि जून की मेहनत कुछ सफल हो रही है. वह उसे थोड़ा सा भारी देखना चाहते हैं, हमेशा कुछ न कुछ खिलने के चक्कर में रहते हैं. इस समय दोपहर के तीन बजे हैं, अभी सोयी थी कि बांह पर चींटी काटने जैसे लगा, उठी तो पसीने से भीगी हुई थी, ठीक पंखे के नीचे सोकर यह हाल है, चींटी तो कहीं दिखी नहीं. आज उसे विद्यार्थियों का टेस्ट लेना है, कल शाम जब वे बाजार गए थे एक और छात्रा आयी थी. वह शाम के लिए पेपर सेट करने लगी.

आज उनके विवाह को पूरे साढ़े पाँच साल हो गए, सुबह-सुबह जून ने कहा, “हैप्पी सेवेंथ जुलाई”, वह पहले समझी कि वह कुछ और कहना चाहता है, जैसे, वह सुबह-सुबह नहायेगा नहीं, वह इतना अच्छा है पर ..कभी कभी. आज शनिवार होने के कारण नन्हे का स्कूल बंद है, उसका मित्र आया है, दोनों खेल रहे हैं. मौसम आज बहुत अच्छा है, ठंड-ठंडा सा और उसका मन भी शांत है... कल सुबह दो नई छात्राएं आयेंगी पढ़ने.

कल का संडे बहुत अच्छा रहा, रिमझिम वर्षा में वे लोग नामरूप गए, हरे-भरे वृक्षों औए चाय बागानों को पार करते पहाड़ों के बिलकुल निकट पहुंच गए थे. नन्हा और उसका मित्र बहुत खुश थे. कल नन्हे का जन्मदिन है, पर परसों उसका टेस्ट है के.जी.वन में दाखिले के लिए, इसलिए वे कल नहीं बल्कि परसों शाम को मनाएंगे. कुछ लोगों को ही बुलाना है, जून का कहना है कि इस बार ज्यादा लोगों को नहीं बुलाएँगे. कल रात उसने कहा कि फुटबाल मैच देखेंगे पर दोनों को नींद आ गयी. पश्चिम जर्मनी आखिर जीत गया और विंबलडन में स्टीफन..भारत का भी एक खिलाडी जूनियर वर्ग में विनर है उसका नाम इतना मुश्किल है कि.. जून को रात को नींद आने लगती है जब उसे बहुत सी बातें करनी होती हैं.


Tuesday, November 6, 2012

खिलौनेवाला कमरा



कल शाम को उनकी ही लेन के एक बंगाली महोदय एक विद्यार्थी को लाए, बारहवीं का है, गणित पढ़ना चाहता है. आज से वह यहाँ घर पर पढ़ाने का कार्य आरम्भ कर रही है, अच्छा लग रहा है सोचकर कि वह भी कुछ ऐसा करने जा रही है जो किसी की सहायता के लिए है. उसने सोचा वह पूरे मन से पढ़ाएगी, आज मैट्रिक्स पढ़ाना है. नन्हा अपने मित्र के साथ गेस्ट रूम में खेल रहा है, वह कमरा उसके खिलौनों से भर गया है, चाहे जैसे खेले, रखे, सजाये उसे उस कमरे में पूरी छूट है. कल ननद का पत्र आया है, वे लोग नन्हे को बहुत याद करते हैं, यह तो ठीक है, लेकिन शाम को पांच बजे दोपहर का भोजन तो कुछ ठीक नहीं लगता न. आज लगतार चौथा दिन है गर्मी का, बादलों का नाम भी नहीं है. अभी सवा दस हुए हैं, उसने सोचा आधा घंटा वह पढ़ेगी फिर फुल्के बनाएगी.

कल व परसों उसने गणित पढाया, अनुभव ठीक ही रहा. आज शनिवार है, डिब्रूगढ़ से समाचार समीक्षा का कार्यक्रम आ रहा है. आज भी दिन गर्म है, परसों रात को भयानक गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा हुई थी उसका कुछ असर बाकी है सो धूप तेज नहीं है. नन्हा लिख रहा है, एक से बीस तक लिखने में उसे आधा घंटा लगता है, कभी-कभी जानबूझ कर देर लगाता है. उसका मित्र खेलने आ गया है, अब वह जल्दी से लिख लेगा. आज पत्र भी लिखने हैं, दीदी का पत्र भी आया था, पता नहीं वह अभी यहीं हैं या आबूधाबी चली गयी हैं. आज वह अपनी अध्यापिका को भी पत्र लिखेगी. जून ने कहा था, घर में रंग-रोगन करवाने के लिए अर्जी देंगे.

साढ़े दस हो चुके हैं. आज फिर कुछ दिनों बाद डायरी खोली है, पर दायीं हथेली में बुरी तरह जलन हो रही है, आज एक हरी मिर्च काटी थोड़ा महीन, बस उसी का असर है, बाएं हाथ पर भी थोडा असर है मगर दायीं हथेली तो.. फिर ऐसे में क्या लिखा जायेगा. जून आकर कुछ तो उपाय करेंगे, पर अभी उनके आने में बहुत देर है. कल उन्हें गोहाटी जाना है उनकी पहली, नई, मारुति कार लाने,

आज शुक्रवार है, जून संभवतः कल आएंगे, कल रात या परसों सुबह. कल रात वह देर तक नहीं सो सकी फिर नींद भी आयी तो सपनों भरी. उसकी असमिया सखी ने खाने पर बुलाया है आज शाम को, कल तिनसुकिया जाने को भी कहा है. नन्हे के लिए सैंडिल लेना है, दलिया, चाय, फल, साड़ी पिन और एक कॉटन साड़ी. जून को कैसा लगेगा- शायद बहुत अच्छा या कुछ कम अच्छा. वैसे उसे साड़ी की जरूरत तो नहीं है फ़िलहाल- हाँ कॉटन सूट की है.

आज उन्हें जाना था था पर मौसम ऐसा बिगड़ा है कि... सुबह से मूसलाधार वर्षा हो रही है, घटाटोप बादल छाये हैं, ऐसे में उन्हें जून की याद ज्यादा आने लगी, नन्हा बार-बार पापा के बारे में पूछने लगा. घर में बंद रहो तो कितना खाली-खाली लगता है, वैसे चाहे दिन भर घर में रहें, पर जब मजबूरी हो तो खलता है. उसने सोचा, एक तरह से ठीक ही हुआ, जून के बिना तिनसुकिया में वे करते भी क्या..?

नन्हा आज एक वर्ष बाद फिर से स्कूल गया है. पता नहीं वह क्या कर रहा होगा, आज जब उसे छोड़कर आयी तो वह थोड़ा उदास था, जून उसे लेकर आएंगे. उनके आने से पहले वह  भोजन पूरी तरह तैयार रखेगी, उसे लगा कि अब उन्हें भोजन डाइनिंग टेबिल पर बैठकर खाना चाहिए. नन्हे को सीखना भी तो है अपने आप खाना. उसने बड़े जतन से टेबिल सजाई.