कल शाम
जून आ गये. सुबह जब वे उठे वर्षा हो रही थी. छाता लेकर प्रातः भ्रमण के लिए गये.
आज पुराने अखबार व वर्षों से सहेज कर रखीं पत्रिकाएँ रद्दी वाले को दे दीं. जीवन
आगे बढ़ता जाता है, वे पुरानी वस्तुओं को व्यर्थ ही सहेजकर बैठे रहते हैं. कल एक
पुरानी परिचिता का फोन आया, वह दो माह बाद दादी बनने वाली हैं. जून के सहकर्मी की
पत्नी से भी बात हुई. वे बच्चे का आगमन शल्य क्रिया द्वारा चाहते हैं. आजकल
सामान्य प्रसव को भी लोग छोड़ते जा रहे हैं, भारत में कुछ ज्यादा ही. परसों
पुस्तकालय से रसेल की यूरोपीय दर्शन पर लिखी पुस्तक लायी थी, कठिन है, फिर भी
प्रयास तो करना है. आज ब्लॉग पर यात्रा विवरण प्रकाशित किया.
आज मौसम धूप भरा
है. गर्मी बढ़ गयी है. उसे चाय की जगह अब शरबत पीना शुरू करना होगा. दोपहर को भीतर
किसी ने कहा, मन के कहे में जो चलेगा उसे परिणाम तो भुगतना होगा. शब्द कठोर थे. फेसबुक
पर रश्मिप्रभा ने भी लिखा, जानते हुए कि आग में हाथ डालने से जलेगा, फिर भी लोग
डालते हैं. होश जगाना है, प्रतिपल होश जगाये रखना है. ऊर्जा जो इतनी कीमती है,
बेहोशी में यूँ ही बही जाती है. सुबह उठकर सबसे पहला काम यही करना है, रात को सोने
से पूर्व भी होश जगाना है और दिन भर भी इस बात का ध्यान रखना है. भीतर का मौन
जितना प्रगाढ़ होगा, होश बढ़ेगा. होश जितना बढ़ेगा, मौन गहरा होगा. सुबह उठी तो
स्वप्न जैसा कुछ चल रहा था, व्यर्थ का मनोराज्य..जो कभी-कभी जाग्रत में भी चलने
लगता है. आज जून को आने में देर हो रही है. बाहर से कुछ लोग आये हैं, सम्भवतः
उन्हीं के साथ व्यस्त होंगे. उसने मोबाइल पर सद्गुरू का एक संदेश सुनना आरम्भ
किया, कितना सुंदर ज्ञान है और कितनी आसानी से उपलब्ध है. सुबह माली से कहकर ग्रीन
हॉउस पर पारदर्शी पोलीथिन लगवा कर पौधों को वर्षा के जल से बचाने का प्रबंध किया.
धूप तो मिलती रहेगी. ऐसे ही उन्हें मन को व्यर्थ के चिन्तन से बचना है, सार्थक तो
जारी रहेगा ही.
कल ईद का अवकाश था.
सुबह विशेष अल्पाहार बनाया. जून शाम को मेहमान कक्ष के लिए नये पर्दे लाये. इस
वर्ष क्लब की कमेटी में उसका नाम भी है, वह मीटिंग में गयी. भोजन गरिष्ठ था, सो
रात को स्वप्न देखे. एक स्वप्न में उसका पर्स खो जाता है, सारा सामान उसके हाथ में
है पर खाली पर्स कहीं रख दिया है. एक स्वप्न में रेत और कोयले के चूरे से भरे
गढ्ढे, बड़ी विशाल मशीनें, और काम करते हुए लोग दिखे. अजीब गोरखधन्धा है उनका
अवचेतन मन. सुबह टहलने गयी तो कितने शुभ विचार मन में आ रहे थे. मृणाल ज्योति की
सहायता किस प्रकार करे, इसके विचार. उनके लिए वे एक कमरा बनवा दें, एजीएम में चाय
का प्रबंध कर दें. एक बच्चे की फ़ीस ही दे दें. हर महीने खाद्य सामग्री दें. जून को
कहा, उन्होंने भी दान की महत्ता को समझा और बाजार से ढेर सा सामान ले आये. माली के
लिए अपनी चप्पल निकाल दी., ट्रैक सूट भी देने को कहा. आज शाम को मौसम सुहावना हो
गया था, शायद रात को वर्षा हो.
आज दोपहर अस्पताल गयी
थी. उस नन्ही बच्ची को देखने, जो आज सुबह ही जन्मी है दस बजे के लगभग. जून के
सहकर्मी की पत्नी ठीक थी, कोई दर्द नहीं हुआ, दवाइयों की मदद से कितना आसान हो गया
है बच्चे को जन्म देना. उसकी टीचर माँ ने भी बताया, उनके स्कूल की तीन शिक्षिकाओं के
बच्चे भी सिजेरियन हुए हैं. आज सद्गुरू की लिखी पुस्तक ( उन्होंने तो बोला है, उसे
संकलित किया गया है) दोबारा पढ़ रही है. समझ कुछ बढ़ी है, सो ज्यादा समझ में आ रही
है. फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी बाज पक्षी के बारे में. वृद्ध होने पर वह अपने को पुनः
युवा बनाता है. एक सौ पचास दिनों का समय लगता है उसे अपने पंजों, पंखों व चोंच को तोड़कर
पुन नया उगाने में. उसके बाद कुछ वर्ष और जीवित रहता है. उन्हें भी स्वयं को पुनः-पुनः
नया करना है. आज सुबह उठी तो मन में कई विचार थे. ध्यान में उत्तर मिले. परमात्मा
उनके भीतर ही है, उन्हें उसे देह से पृथक जानना है. जानना तो शुद्ध बुद्धि से ही
होगा. मन का दर्पण जब शुद्ध होगा तभी उसमें वह झलक दिखायेगा. उनका जीवन विशाल हो,
प्रेममय हो तथा उस परमात्मा की गवाही देने वाला हो तभी मानना होगा उसको उन्होंने
प्रेम किया है. अगले माह राखी है. उसके लिए सामान लाना है. इस माह के अंत में गुरू
पूर्णिमा है. साधना का फल है सेवा, अब यही मन्त्र है जिसे उन्हें जपना है. क्लब का
काम भी सेवा की भावना से साधना है, तब यह बोझ न लगकर आनन्द ही देगा !