Thursday, January 26, 2017

सिक्किम का भूकम्प


कल पंखा भी था, टीवी भी था फिर भी गर्मी का जिक्र किया आज न बिजली है, न पंखा है, न टीवी पर बापू की कथा आ रही है, पर भीतर संतोष है. जून आधे घंटे में आ जायेंगे. आज सुबह काफी वर्षा हुई. सिक्किम में भूकम्प के कारण काफी नुकसान हुआ है, जापान में पुनः बाढ़ व तूफान आया है. पाकिस्तान में भी बाढ़ है. मानव ने अपनी मूर्खताओं से ऐसी स्थिति उत्पन्न कर ली है. प्रकृति का तो यह रोज का काम है. रोज ही कहीं न कहीं भूकम्प आते ही रहते हैं. पृथ्वी के होने का यही तरीका है. सागर है तो तूफान आयेंगे ही !

‘वह कौन है’ यह प्रश्न भीतर गूँज रहा था कि किसी ने पूछा, प्रश्न पूछने वाला कौन है..और गहन शांति हो गयी. कोई जवाब नहीं आया. लेकिन मौन में भी मन मुखर था. कुछ दृश्य, कुछ शब्द सुनायी दे रहे थे. आज से उसने यही ध्यान करने का निश्चय किया है. मन का शुद्धिकरण तो साधना से होता है पर विस्तार भी बहुत हो जाता है. जब सारा ब्रह्मांड ही खुद के भीतर भासने लगे तो अहंकार भी उतना ही विशाल होगा. अभी भी यही कामना भीतर बनी रहती है, देह स्वस्थ रहे, मन शांत हो, बुद्धि तीक्ष्ण हो, जगत में यश हो, सारी सुख-सुविधाएँ हों तो इन कामनाओं में और एक संसारी व्यक्ति की कामनाओं में जरा सा भी भेद नहीं है. हाँ, इतना जरूर हुआ है अब भीतर द्वेष नहीं रहा है, कोई विशेष पदार्थ ही मिले ऐसा आग्रह नहीं रहा, पर जब तक भीतर कोई भी कामना है, तब तक परमात्मा से दूरी बनी ही हुई है. भक्त को यह विश्वास होता है कि परमात्मा हर तरह से उसकी मदद करते हैं, जो भी उसकी उन्नति के लिए श्रेष्ठ है वही वह होने देते हैं !

आज सुबह जून को उसने शून्य के बारे में बताया, void के बारे में, कुछ नहीं है....केवल ब्रह्म सत्य है. जगत मिथ्या है, आज ध्यान में यह सूत्र समझ में आया. आज भी समाचारों में सिक्किम में आए भूकम्प की भयानक खबरें सुनीं, अब भी कई लोग लापता हैं, कुछ मलबे के नीचे दबे हैं. प्रकृति कितनी कठोर हो सकती है, यह वे सोचते हैं, लेकिन प्रकृति इतनी विशाल है, अनंत है, उसमें थोड़ा सा विक्षेप एक ग्रह पर आए तो उसके लिए कुछ भी नहीं है. जैसे कोई लखपति हो और उसके गाँव के अनेकों घरों में से एक ढह जाये तो उसे क्या अंतर पड़ेगा. मानव भी प्रकृति का ही अंश है, मानव इस सारे ब्रह्मांड को अपने भीतर अनुभव कर सकता है, लेकिन प्रकृति के सम्मुख वह भी विवश है.

आज जून मुम्बई जा रहे हैं. दस बजने को हैं, थोड़ी देर में वह भोजन बनाने जाएगी. शाम को एक सखी की बिटिया से मिलने जाना है, उससे पहले घर में सत्संग है. कल सुबह केन्द्रीय विद्यालय जाना है एक प्रतियोगिता में निर्णायक की भूमिका निभाने. दोपहर को एक मीटिंग में दुलियाजान क्लब जाना है. शाम को भी मीटिंग है, पर उसमें वह नहीं जाएगी. आजकल माँ को किचन में जलती गैस से भय लगने लगा है, वह कब उठकर गैस बंद कर आती हैं पता ही नहीं चलता. वह कड़ाही में सब्जी रखकर आयी, और कुछ देर बाद जाकर देखा तो गैस बंद है. उसे पल भर के लिए क्रोध आया, पर फिर समझाया मन को, वह हर हाल में बड़ी हैं, उनके प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिये. पिताजी उन्हें प्रेम से धमका सकते हैं, उनकी बात और है. नैनी की बेटी को खसरा हुआ था, पर अब उसका चेहरा लाल दानों से भर गया है, अस्पताल जाकर इलाज कराने के नाम से ये लोग घबराते हैं. नन्हा गोवा से लौट आया है, उसने वहाँ water sports तथा paragliding की. जीवन कितना अमूल्य है, एक-एक श्वास यहाँ अनमोल है, यह विचार उसके मन में कौंध गया जैसे ही नन्हे ने वह बताया.

आज उसने दीवाली के लिए सफाई का श्रीगणेश किया है. आज महालय है, आश्विन कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन. कल से नवरात्रि का आरम्भ हो रहा है. सिक्किम में लोग आपदा से जूझ रहे हैं, वहीँ गुजरात में लोग नृत्य में झूम रहे हैं. अजब है यह गोरखधन्धा, स्वप्न में जी रहे हैं जैसे सभी लोग. ऊपर से तुर्रा यह कि यह स्वप्न केवल रात को ही नहीं चलता, दिन को भी चलता है. यह स्वप्न चौबीसों घंटे चलता है. वे एक बड़ी साजिश के शिकार तो नहीं बनाये गये हैं ...?


Wednesday, January 25, 2017

'द्रौपदी'-प्रतिभा राय


सिर में एक ध्वनि उसे स्पष्ट सुनाई दे रही है. आज ध्यान में ज्वाला की प्रतीति हुई, अग्नि में जलकर उसके सारे कल्मष नष्ट हो जाएँ, परमात्मा से यही प्रार्थना है. कल रात को अजीब सा स्वप्न आया और आज सुबह नैनी पर पल भर के लिए क्रोध भी किया. इन विकारों को स्वयं में नहीं मानती, स्वयं को शुद्ध, बुद्ध आत्मा ही मानती है वह और ध्यान में इसका अनुभव भी होता है, लेकिन अभी मंजिल मिली नहीं है. वह परमात्मा अनंत है. थोड़ी सी साधना से ही कृपा बरसने लगती है, लगता है अरे, वे तो इसके योग्य ही नहीं थे..आज गुलदाउदी के पौधे पुनः लगा दिए. कल जून लौट आए और शायद अपने होश में पिछले कई वर्षों में पहली बार उन्हें ऐसा लगा हो कि कहीं कोई विरोध का एक अंश भी नहीं है, पूर्ण स्वीकृति और शायद इससे ही मुक्ति का मार्ग मिलेगा. ‘व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति को वे जैसे हैं वैसा ही स्वीकारें’, इस सूत्र को जीवन में अभी तक पूरी तरह कहाँ उतार पायी थी.

ध्यान में जब होने का भाव यानि अहंता का लोप हो जाता है, चैतन्य नहीं बल्कि चैतन्य घन शेष रहता है, तब देह का भी भान नहीं रहता, जगत लोप हो जाता है. अभी उसे स्वयं का बोध रहता है, कभी क्षण भर के लिए शुद्ध चेतना शेष रहती भी है तो बीच-बीच में व्यवधान पड़ जाता है. एक तैल धारवत् स्थिति देर तक नहीं टिक पाती. यही अहंता है. इसी जन्म में उसे पूर्ण समाधि का अनुभव होगा ऐसा उसका पूर्ण विश्वास है. सद्गुरू और परमात्मा की कृपा हर क्षण उसके साथ है. उसका अनुभव करने लगो तो अंत ही नहीं आता, वह बरस ही रही है, उनका पात्र जितना बड़ा हो उसी के अनुसार उन्हें मिलती है. सभी के भीतर यह क्षमता है कि उस कृपा को पाले लेकिन लीला के अनुसार हरेक को अपना पात्र निभाना है. अहंकार का विसर्जन ही नहीं हो पाता यही सबसे बड़ी बाधा है. कल भी सुना, पहले भी सुना था सातवें चक्र तक साधक पहुँच जाता है पर आठवें  पर कोई-कोई ही पहुँच पता है. कृपा का भी गर्व हो जाता है. सब कुछ उसी का है, उसी का खेल है, स्वयं भी उसी का है.

आज ध्यान में स्वयं को सारी भावनाओं का स्रोत माना. यदि उनके भीतर किसी के प्रति प्रेम अथवा घृणा का भाव उठता है तो वह उनके ही भीतर से उपजा है. वे उस व्यक्ति पर प्रक्षेपित मात्र कर रहे हैं. उस भाव से उस व्यक्ति या परिस्थिति का कुछ भी लेना-देना नहीं है. इस ध्यान से वे कितने ही दुखों से बच जाते हैं. यदि वे अपने हर कम में पूर्ण चेतना का समावेश कर सकें तो हर कर्म ही ध्यान हो जायेगा और ऊर्जा भी व्यर्थ खर्च नहीं होगी. जब मन अनंत हो जाये तो नष्ट हो जाता है और शेष रहता है अनंत आकाश सा परमात्मा !

कल रात नींद में उसका हाथ हृदय पर आ गया था. स्वप्न में देखा, माँ छोटे भाई को बहुत डांट रही हैं, मार भी रही हैं, वह रो रहा है. नींद खुल गयी. एक कविता लिखी थी उन बच्चों के लिए जो माता-पिता के क्रोध का शिकार बेवजह ही हो जाते हैं, उसी का परिणाम था यह स्वप्न. अपने प्रियजनों को वे ही दुःख देते हैं. अपने स्वप्न भी खुद ही बनाते हैं. कल पूजा के लिए कपड़े लाये वे, उनके यहाँ काम करने वालों के लिए, दशहरा अब निकट ही है और दीवाली को भी कम समय रह गया है. पिताजी अष्टमी की पूजा में कन्याओं को स्टील के ग्लास देना चाहते हैं.


दो दिन कुछ नहीं लिखा. कल विश्वकर्मा पूजा थी और परसों ‘द्रौपदी’ पढ़ती रही. प्रतिभा राय की पुस्तक बहुत अच्छी है, पूरे मनोयोग से लिखी गयी है. टीवी पर बापू की ऑस्ट्रेलिया में हो रही कथा ‘मानस मृत्यु’ का प्रसारण हो रहा है. आज का ध्यान भी अच्छा था. उसे अपने भीतर ही सडकें तथा ट्रैफिक दिखा..उनके भीतर ही सारा विश्व समाया है, वे अनंत हैं, व्यर्थ ही स्वयं को सीमित मानकर दुखी होते हैं. आज धूप तेज है, सूर्य अपनी पूरी शक्ति के साथ दमक रहा है. वह पंखे के ठीक नीचे फर्श पर बैठकर लिख रही है.   

Tuesday, January 24, 2017

मुम्बई की बाढ़


उसने विमल मित्र को पढ़ा और उसके बाद एक कविता लिखी, शब्द अपने थे पर प्रभाव तो यकीनन पढ़े हुए का था. यह भी तो चोरी हुई, विचारों की चोरी भी उतना ही बड़ा पाप है जितना वस्तुओं की चोरी का, यह बात अब समझ में आने लगी है. भीतर ज्ञान का अनंत स्रोत है, जहाँ से शब्दों की नदियाँ बह सकती हैं, फिर क्यों संस्कार वश दूसरों की ईंटों से अपना भवन तैयार करना. आज भी गर्मी बहुत है. उसने सिन्धी कढ़ी बनाई है. आज वे अपनी वसीयत लिखने वाले हैं.

परसों जो गतिरोध उत्पन्न हुआ था, वह कल टूट गया. अन्ना हजारे का अनशन कल समाप्त हो गया, अब वह अस्पताल में हैं. देश की हवा बदल रही है. अमेरिका में तूफान आया है. दिल्ली में लोग जश्न मना रहे हैं. लन्दन में भी सड़कों पर कार्निवाल है. समाचारों में सुना कई राज्यों में बाढ़ आयी है. मुम्बई में वर्षा का पानी सडकों व रेल पटरियों पर भर गया है. असम के धेमाजी में भी बाढ़ ने भीषण रूप ले लिया है. इटली में ज्वालामुखी फट गया है. एक बेटे ने अपनी बानवे वर्षीय माँ को घर से निकाल दिया, उसे वह मकान किराये पर चढ़ाना था. जीवन कितने विरोधाभासों से युक्त है. द्वंद्व ही जीवन का दूसरा नाम है, जो इसके पार हो गया, वही यहाँ मुक्त है और वही सुखी है. शेष तो एक भ्रम में जी रहे हैं. कल इतवार की योग कक्षा में बच्चों को पूरे दो घंटे व्यस्त रख सकी. वे ख़ुशी-ख़ुशी सब बात मानते हैं, अभी मासूम हैं. उस दिन उसने स्वप्न देखा, कार में एक परिचिता के साथ जा रही है पर जाना कहाँ हैं पता नहीं, स्वप्न का क्या अर्थ था कौन जानता है, लेकिन उसने यही लगाया कि कोई भेद नहीं रहा अब अर्थ युक्त और अर्थ हीन में, भीतर-बाहर में. सारे आवरण गिर गये हैं. जून ने भी आज अपना स्वप्न बताया. वह एक द्वीप पर पहुँच गये हैं. एक आदिवासी व्यक्ति उन्हें समुद्रतट पर ले जाता है. सुंदर तट है पर अचानक लहरें चढ़ आती हैं और वह किसी तरह रेलिंग को पकड़ कर बच जाते हैं.


आज एक नये तरह का ध्यान किया. देह ऊर्जा का एक केंद्र है. ऊर्जा का चक्र यदि पूर्णता को प्राप्त न हो तो जीवन में एक अधूरापन रहता है. प्रार्थना में भक्त भगवान से जुड़ जाता है और चक्र पूर्ण होता है, तभी पूर्णता का अहसास होता है. हर व्यक्ति अपने आप में अधूरा है जब तक वह किसी के प्रति समर्पित नहीं हुआ. यही पूर्णता की चाह अनगिनत कामनाओं को जन्म देती है. व्यर्थ ही इधर-उधर भटक के अंत में एक न एक दिन व्यक्ति ईश्वर के द्वार पर दस्तक देता है. इस मिलन में कभी आत्मा परमात्मा हो जाता है और कभी परमात्मा आत्मा. उसने भी आज प्रार्थना में तीनों गुणों से मुक्त होने की प्रार्थना की. तीनों एषनाओं से मुक्त होने की प्रार्थना. माँ होने का सुख, शिशु को बड़ा होता हुआ देखने का सुख तो वर्षों पहले मिल गया, अब कितना सुख चाहिए. व्यस्क होने के बाद व्यक्ति स्वयं अपने भले-बुरे का जिम्मेदार होता है. उसका मन जहाँ जहाँ अटका है, उसे वहाँ-वहाँ से खोलकर लाना है. इस जगत में या तो किसी के प्रति कोई जवाबदेही न रहे अथवा तो सबके प्रति रहे. एक साधक का इसके सिवा क्या कर्त्तव्य है कि भीतर एकरसता  बनी रहे, आत्मभाव में मन टिका रहे. जीवन जगत के लिए उपयोगी बने, किसी के काम आए. अहम का विसर्जन हो. वह परमात्मा ही उनका आदर्श है जो सब कुछ करता हुआ कुछ भी न करने का भ्रम बनाये रखता है..चुपचाप प्रकृति इतना कुछ करती है पर कभी उसका श्रेय नहीं लेती..फूल खिलने से पहले कितनी परिस्थितियों से दोचार नहीं होता है, बादल बरसने से पहले क्या-क्या नहीं झेलता.. और वे हैं कि हर कम करने के बाद औरों के अनुमोदन की प्रतीक्षा करते हैं. वे भी छोटे-मोटे परमात्मा तो हैं ही, मस्ती, ख़ुशी तो उनके घर की शै है, इन्हें कहीं मांगने थोड़े ही जाना है. ज्ञान का दीपक सद्गुरू के रूप में जल ही रहा है.  

Sunday, January 22, 2017

अन्ना हजारे का अनशन


बड़े भैया को राखी मिल गयी है, फुफेरे भाई ने फोन करके यह सूचना दी. बुआजी का नया घर बन गया है व उनकी स्वर्गवासिनी बेटी की बेटी के यहाँ पुत्र हुआ है. ये सारी खबरें देते हुए वे लोग बहुत खुश लग रहे थे. आज सुबह जून ने उठाया, उसने सोचा सचमुच उन्होंने उसके जागरण में बहुत योगदान दिया है. सारा धार्मिक साहित्य जो उसने पढ़ा, सारे उपदेश जो सुने, साधना के लिए प्रेरित करना(अपरोक्ष रूप से) भी उन्हीं का कार्य है. जीवन में कुछ भी अचानक नहीं होता. पुरानी घटनाओं को देखे तो यह बात समझ में आती है. अंत:प्राज्ञ कोर्स के द्वारा ध्यान से परिचय, एओएल के द्वारा सद्गुरू से परिचय, ये भी उन्ही के कारण हुआ. परमात्मा हरेक को विकसित होने के लिए पूरी  व्यवस्था कर देते हैं. स्वयं छिप जाते हैं, लुका-छिपी का खेल ही चलता रहता है जीवन भर जीवात्मा व परमात्मा के मध्य..कल रात स्वप्न में भी जागरण का अनुभव हुआ. यदि स्वप्न में भी होश बना रहे तो वे स्वप्न को अपनी इच्छा से बदल भी सकते हैं. एक बार नींद न आने की शिकायत की तो ऐसा स्वप्न दिखाया कि उठना ही पड़ा..इसी को कृष्ण सुषुप्ति में जाग्रति कहते हैं भगवद गीता में ! योगी जगते हुए सोता है और सोते हुए जगता है ! जून को अब भी कभी-कभी दर्द होता है, अब वह उसे बताते नहीं है. उस दिन उसने कहा यदि कोई प्रकृति से सुख लेगा तो दुःख से उसकी कीमत चुकानी होगी. वह भी तो यदि स्वादिष्ट पदार्थों के द्वारा प्रकृति से सुख चाहती है तो इसकी कीमत कभी न कभी रोग के रूप में चुकानी पड़ेगी. साक्षी भाव में रहकर स्वयं को आत्मा मानकर यदि वे जीते हैं तो सहज स्वाभाविक सुख की स्थिति बनी ही रहती है. उन्हें कुछ पाकर सुखी नहीं होना पड़ता. मन हर क्षण परमात्मा से जुड़ा है..बस उसे महसूस करना है. विचार आते और चले जाते हैं, पीछे चिदाकाश ज्यों का त्यों रहता है. वह सबका भला चाहता है, जो उनके लिए अच्छा है वे नहीं जानते पर परमात्मा जानता है. कल वे मृणाल ज्योति जायेंगे बच्चों को राखी बांधने, साथ में पूरी, सब्जी व मिठाई लेकर. अन्ना हज़ारे का अनशन आरम्भ हो गया है. जनता उनके समर्थन में आगे आयी है, इस बार लगता है सरकार को झुकना पड़ेगा.

आज जन्माष्टमी का अवकाश है. अन्ना हजारे के अनशन का सातवाँ दिन है. सरकार अब बात करना चाहती है. हजारों, लाखों की संख्या में लोग घरों से निकलकर समर्थन के लिए जुलूस, रैलियां निकाल रहे हैं. आज शाम को उनके घर पर सत्संग है. नन्हे के नर्सरी स्कूल की पत्रिका के लिए एक लेख माँगा है वहाँ की प्रिंसिपल ने, उसने उसके बचपन की यादों को ताजा करता हुआ एक लेख लिखा है, नन्हे को भी अच्छा लगेगा. एक कविता भी लिखी क्लब की एक सदस्या के लिए. छोटी बहन से बात हुई, उसने नया जॉब शुरू कर दिया है, दीदी नये रिश्तेदारों से मिल रही हैं. बड़ी ननद का फोन आया, बिटिया की शादी के लिए साड़ियाँ आदि खरीदने व जून के लिए शेरवानी खरीदने की बात कह रही थी. नूना के मायके में सबका पता भी मांग रही थी, उन्हें निमन्त्रण देना चाहती है.

आज सुबह क्रिया के बाद अनोखा अनुभव हुआ. योग वशिष्ठ में जो पढ़ा है, अष्टावक्र गीता में जो पढ़ा है, भगवद्गीता में जो कृष्ण कहते हैं, वह ज्ञान अनुभव में आया. गुण ही गुणों में बरत रहे हैं. उसके सिवा कोई कर्ता नहीं है. आत्मा अपने आप में पूर्ण शुद्ध एक अद्वैत सत्ता है. अब उसे लगता है इसी जन्म में आत्म ज्ञान की पूर्णता सिद्ध होगी. भीतर एक अपूर्व शांति का अनुभव हो रहा है, कहीं कोई द्वंद्व नहीं है. अभी जो लोग इस अनुभव को प्राप्त नहीं हुआ हैं, वे करुणा और प्रेम के ही पात्र हो सकते हैं, क्यों कि वे भी कुछ और नहीं उसी एक परमात्मा का चमत्कार ही है. Accept people as they are का यही अर्थ है कि वे भी उनका ही रूप हैं. जैसे वे अपनी किसी भूल को स्वीकार करते हैं वैसे ही उन्हें उनकी भी हर भूल को स्वीकार करना ही होगा. परमात्मा का अनुभव मानव देह में ही किया जा सकता है, परमात्मा को स्वयं भी अपना अनुभव करना हो तो मानव देह का आश्रय  लेना पड़ता है, क्योंकि शुद्ध चैतन्य में कोई दूसरा है ही नहीं, एक ही सत्ता है उसी को बुद्ध ने शून्य कहा है. जो जानता है कि वह है, जो जानता है कि वह आनन्द स्वरूप है, लेकिन व्यक्त नहीं कर सकता, उसके लिए आवश्यकता होगी देह, मन, बुद्धि की..की पता न भी होती हो, उसके बारे में कुछ भी कहे कैसे..जो कहेगा वह उससे कम ही होगा.. नन्हे के लिए लिखे लेख को आज चर्चामंच में शामिल किया गया है. दीदी को भी वह अच्छा लगा.

  



Friday, January 20, 2017

पूजा का प्रसाद


आज सुबह उसके जीवन अनोखी सुबह थी, चार बजे अलार्म सुना, बंद किया और फिर आँख लग गयी. स्वप्न में देखा, नन्हा छोटा है, तीन-चार साल का. उसे माथे पर चोट लगी है, वह दवा लगा देती है, नींद नहीं टूटी, स्वप्न आगे बढ़ा. नन्हा भी सोया है, उसके माथे पर बायीं ओर फिर खून निकल रहा है और उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान है, नन्हा नींद में है और वह चौंक कर उठ गयी. बैठ गयी तो भीतर से कोई आत्मा-परमात्मा के रहस्य समझाने लगा. वह जग चुकी थी पर अचल बैठी थी..परमात्मा की अनंतता..घटाकाश...महाकाश सभी कुछ स्पष्ट होता चला गया..उसका अपना आप भी वही है जो परमात्मा है..मन, बुद्धि के पिंजरे में बद्ध है चेतना..जो न कहीं आता है न कहीं जाता है..सदा एक सा है..देह के आने जाने से वह आता-जाता प्रतीत होता है. जैसे मछली जल में है वैसे ही वे चेतना के महासमुद्र में है, एक लहर उठती है और एक देह में कैद हो जाती है पर वह सदा वैसी ही रहती है. उसकी उपस्थिति से ही देव जीवंत है..देह के कण-कण में वह व्याप्त है बल्कि कहें कि वही हैं और वही देह हो गयी है..फिर भी कुछ नहीं हुआ..अद्भुत है यह ज्ञान. भीतर की सारी दौड़ खत्म हो गयी लगती है. कम्प्यूटर भी खराब हो गया है. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी थी. परसों फिर जाना है, उनकी वार्षिक सभा है. उसने एक कविता लिखी है. ब्लॉग पर भी प्रकाशित करेगी. उनके लिए पोस्टर भी बनाना है. एक अध्यापिका ने सुंदर राखियाँ बनायी हैं. कोओपरेटिव में वे बिक्री करेंगे. एक परिचिता ने उसे भी कुछ सामान खरीदवाया, वह भी कुछ राखियाँ बनाएगी. इस वर्ष वह उसके साथ काम कर रही हैं, सो साल भर तो साथ रहेगा ही. वह भी स्कूल के लिए बहुत काम करती हैं.

आज जून घर आ रहे हैं. मौसम अच्छा है. धूप न वर्षा ! कल रूद्र पूजा में गयी थी. प्रसाद में एक रुद्राक्ष मिला है, एक फल और बेलपत्र. भगवान शिव की कृपा का अनुभव भी ध्यान में हुआ..शुद्ध घन चैतन्य का अनुभव करने की प्रेरणा भीतर जगी..एकाध क्षण के लिए हुआ भी होगा. शुद्ध चैतन्य में कोई संवेदना नहीं..भावना भी नहीं..वहाँ सब अचल है स्थिर..घन..ठोस..अहं का संवेदन होता है तब आगे की श्रंखला शुरू हो जाती है. उसे अब यात्रा में भी रूचि नहीं रह गयी है. यात्रा में मन और ज्यादा चंचल हो जाता है. साधक के लिए एक ही स्थान पर रहना ही ठीक है. परमात्मा भी शायद यही चाहते हैं.  

आज सुबह एक स्वप्न ने उठाया, कोई है जो निरंतर उनके साथ है, उनका ख्याल रखनेवाला, वे न हों तो वही रहता है. जून को देखा, वह स्त्री वेश में थे. अगले जन्म में शायद वह स्त्री ही होने वाले हों..कौन जानता है ? आज मौसम अपेक्षाकृत गर्म है. कल उसने जिस पोस्टर बनाने की बात सोची थी, वह अभी तक कल्पना में ही है. मृणाल ज्योति की राखियाँ कितनी बिकीं, यह भी अभी पता नहीं है. आज एकादशी है जून नारियल लाये थे पर वह कच्चा है, निकालने में दिक्कत हो रही है. ननद का फोन आया है, वह माँ-पिता को बेटी की शादी में बुलाना चाहती है पर दोनों की उम्र व स्वास्थ्य को देखकर ऐसा सम्भव नहीं लगता. आज सुबह गुरुमाँ ने कहा वे खुद से मिलना नहीं चाहते, इसलिये फिल्म आदि में समय बिताते हैं. कल्पना की दुनिया में ही वे जीते हैं. आज ध्यान में ठीक एक घंटा हुआ था तो किसी ने सजग किया..उस एक चिद्घन को, परम चैतन्य को उनकी पल-पल की खबर रहती है, वह हर क्षण उनके पास है. अनंत रूप हैं उसके, अनंत नेत्र हैं उसके..अनंत विस्तार है उसका..उसको वे अपनी छोटी सी बुद्धि से समझ नहीं सकते, वह होकर ही समझ में आता है..जब वे उसमें विश्राम करते हैं तो जगत का लोप हो जाता है. फिर मन, बुद्धि में आते हैं तो भी उसकी स्मृति बनी रहती है. मन जब केन्द्रित होता है तब उसी की शक्ति प्रवाहित हो रही होती है. ध्यान जितना अचल होगा मन उतना ही मजबूत होगा.     


  

Thursday, January 19, 2017

अगस्त का महीना


दो दिनों का अन्तराल ! जून कल शाम वापस आ गये. आज सुबह गर्मी के कारण या अन्य किसी कारण से साधना करने का उत्साह नहीं था. कल दोपहर बच्चों को सिखाते समय खुद की आवाज भी बदली हुई सी लग रही थी, बच्चे ज्यादा थे, नियन्त्रण में नहीं आ रहे थे. आज अगस्त का महीना भी शुरू हो गया. स्वतन्त्रता दिवस, जून का जन्मदिन और कृष्ण जन्माष्टमी भी सम्भवतः इसी महीने में होगी.

बड़ी ननद की बेटी की बात पक्की हो गयी है. वे सभी बहुत खुश हैं. हर साधक के जीवन में कभी न कभी वह पल तो आता होगा जब वह कहे कि, आज वह साधना से भी मुक्त हो गया है. जो पाना था इस साधना से वह पा लिया है. देह अलग और आत्मा अलग भास होने लगी है. अब साधना में पहले की सी रूचि नहीं रह गयी है. समाधि का अनुभव हो गया है. अब कोई संशय नहीं रहा. उसे लगता है वह दिन आने ही वाला है.

जून आज पुनः कोलकाता गये हैं. सुबह ध्यान में सिर के ऊपरी भाग में तीव्र संवेदना हुई, एक बार ट्रैक दिखा जिस पर धावक दौड़ रहे थे. ध्यान में बंद आँख के बावजूद वस्तुएं कितनी स्पष्ट दिखाई देती हैं, आज खुली आँख से एक मूरत के दर्शन किये जो आज्ञा चक्र पर रोज उसे दिखती है. अद्भुत है भीतर की दुनिया और अद्भुत है परमात्मा !


आज सुबह क्रिया के बाद भीतर से कोई बोल रहा था. उसका अवचेतन ही होगा कि वे समाधि भी अहंकार की पुष्टि के लिए पाना चाहते हैं. एक सांसारिक व्यक्ति जैसे सम्मान चाहता है, वह कोई कला सीखता है या कुछ करके दिखाता है. रूप का अभिमान होता है उसे, अपने पद का, प्रतिभा का गुरुर होता है और जब कुछ लोग उसकी तारीफ करते हैं तो उसे एक सुख की प्राप्ति होती है, वैसा ही सुख यदि एक तथाकथित आध्यात्मिक व्यक्ति भी पाना चाहे.. उसे लगता है यह भेद ही गलत है क्योंकि दोनों के पास शरीर, मन व आत्मा है. आध्यात्मिक के पास आत्मा का अनुभव भी है, वह स्वयं को अजन्मा, अनादि, अनंत जान चुका है, वह सुख-दुःख में सम रह सकता है. ग्रीष्म, शीत भी उसे नहीं छूते लेकिन मन अभी भी उसके पास है, जिसमें पुराने संस्कार भी हैं. देह की देखभाल करना व उसे स्वस्थ व सुंदर रखना उसका सहज कर्म है. जो कुछ भी कर्म उससे होते हैं, उनके कारण हुई प्रशंसा को पचा पाना उसे भी सीखना होता है वरना पुरानी आदत पीछा नहीं छोड़ती. उसे यह तो ज्ञात है कि आत्मा की शक्ति से ही सब कुछ हो रहा है, मन, बुद्धि, व देह स्वयं जड़ हैं, यदि आत्मा न हो तो ये कुछ भी नहीं कर सकते. स्वयं को आत्मा मानने का अर्थ है परमात्मा का अंश मानना, करने वाला परमात्मा ही हुआ, अभिमान करे भी तो कौन..जड़ को गर्व करना शोभा नहीं देता और चेतन को कैसा अभिमान..वही तो एक तत्व है..जो एक ही है अभिमान करे भी किससे, दूसरा कोई हुआ ही नहीं ! समाधि का अनुभव इसलिये करना है कि जन्मों के जो अशुभ संस्कार भीतर पड़े हैं, जल जाएँ..अंतर पावन हो जाये जो परमात्मा के चरणों में समर्पित किया जा सके..जून ने सुबह फोन किया, बत्तीस राखियाँ ख्ररीदी हैं उन्होंने. आज सद्गुरू के साथ ध्यान किया आधे घंटे का ऑन लाइन मेडिटेशन !  

Thursday, January 5, 2017

हाथ में माउस


दोपहर के दो बजने को हैं. किचन में सफेदी हो रही है. बाहर लॉन में नया माली घास काट रहा है. उसके दाहिने हाथ में हल्का सा दर्द कभी-कभी महसूस होता है, माउस पकड़ने का प्रभाव लगता है. आज ब्लॉग पर नई कविता पोस्ट की है. कुछ दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थीं, पता चला ब्लौगर रश्मिप्रभा जी का किडनी का आपरेशन था वापस घर आ गयी हैं. उसने प्राणायाम पर बी के एस आयंगर जी की पुस्तक पढ़नी शुरू की है.

पिछले दो दिन डायरी नहीं खोली, उन सबके भीतर एक मार्गदर्शक है जो पग-पग पर उन्हें रास्ता दिखता है पर वे दिमाग पर ज्यादा भरोसा करते हैं और उसकी आवाज को अनसुना कर देते हैं. भय होने पर वही उन्हें सचेत करता है और कोई आवश्यक कार्य यदि वे भूल गये हों तो वही याद दिलाता है. वह उनका सद्गुरू भीतर ही रहता है. वही परमात्मा का दूत है. उस दिन अपने भीतर से आती एक आवाज सुनी थी कि वह अस्वस्थ होने वाली है और आज सुबह कंघी करते समय दाहिने हाथ में पीड़ा का अनुभव हुआ, शायद कम्प्यूटर पर गलत तरीके से माउस पकड़ने के कारण ऐसा हुआ हो या केवल हाथ की मांसपेशियों के ज्यादा उपयोग करने के कारण ही. एक्सरे भी कराया है. माली गमले धो रहा है, जिसमें वे गुलदाउदी के पौधे लगायेंगे. नैनी की बेटी पिताजी के साथ खेल रही है. सवा साल की बच्ची और बयासी साल के वृद्ध की मित्रता देखते ही बनती है. नार्वे में हुआ हत्याकांड तथा बमविस्फोट कितना भयानक था. उस दिन दीदी से बात हुई, कुछ लिखा भी था, जिसे टाइप करना शेष है.

शाम को सेंटर में क्रिया है. अगले महीने रूद्र पूजा है, इस बार वे पूरे परिवार की ओर से पूजा में भाग लेंगे. सभी को आशीष मिलेगा, मिल ही रहा है, वे उसे पहचानने में सफल होंगे. जून को मनाना होगा, लेकिन वह अपनी बुद्धि पर ज्यादा भरोसा करते हैं. कल सेंटर में एन ई एपेक्स बॉडी का सेमिनार है, वहाँ भी वह जाएगी एक सखी के साथ, सम्भव हुआ तो. भगवद गीता में पढ़ा, अहंकृत भाव ही बंधन का कारण है. कुछ होने की जगह यदि कुछ भी न होने का भाव रहे तो कोई बंधन नहीं है. आत्मा न कर्ता है न भोक्ता है. मन ही कर्मों का जाल रचता है और दुःख पाता है. परमात्मा उसे अपनी ओर खींच रहे हैं. एक-एक करके भीतर से सब वासनाओं को निकालने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.


जून आज नुमालीगढ़ गये हैं. पिताजी ने कहा, उन्हें केश कटवाने हैं. गाड़ी मिल सकती हो तो वे जायेंगे. उसका संकोच देखकर वह पैदल ही बाजार जाकर कटवा आए हैं. मन में जो विचार एक बार आ गया उसे पूरा करना ही है. यही स्वभाव जून का भी है. एक बार जो संकल्प आ गया उसे पूर्ण किये बिना चैन नहीं आता. नूना के संकल्पों में इतना बल नहीं है. मौसम आज भी सावन का है. कल शाम को जून ने मालपुए बनाये, तीज की प्रतीक्षा उनसे नहीं हो सकी. कल शाम नन्हे से बात हुई अब उनकी कम्पनी में इक्कीस लोग हो गये हैं. 

Wednesday, January 4, 2017

गुरू पूर्णिमा


कल शाम को मुम्बई में तीन बम विस्फोट हुए. वर्षों पहले लिखी कविता का स्मरण हो आया. आज उसे ब्लॉग पर पोस्ट किया है. कितनी दुखद मौत होती होगी, शोलों और दुर्गन्ध के मध्य. अचानक घटी यह मृत्यु झकझोर देती होगी. कैसा विचित्र है यह संसार, यहाँ एक तरफ प्रेम की ऊंचाइयाँ हैं और दूसरी तरफ नीचता की खाईयाँ हैं. एक तरफ सद्गुरू हैं जो साक्षात् परमात्मा का ही रूप हैं जो आतंकियों में भी कुछ भला देख लेते हैं, उसी एक चेतना को देख लेते हैं और दूसरी तरफ ऐसे बेहोश राक्षस हैं जिन्हें भले-बुरे का कोई ज्ञान नहीं. आज सुबह क्रिया के बाद अनोखा अनुभव हुआ. सद्गुरू उससे बात करते प्रतीत हुए और यह भी कहा, वह तो हर क्षण उसके साथ हैं. एक ही चेतना से यह सारा जगत बना है, ऊर्जा और पदार्थ दो दीखते हैं पर मूलतः हैं नहीं. जड़ के भीतर भी वही चेतन छिपा है. आज सुबह से ही वर्षा हो रही है, जून कल कोलकाता गये हैं. सम्भवतः आज मायापुरी गये होंगे. ईश्वर उनके साथ है. आज पिताजी ने दाल बनाई है, उनकी बहुत दिनों की इच्छा पूरी हो गयी.

आज गुरूपूर्णिमा है. सुबह से ही मन किसी और लोक में विचर रहा है. सद्गुरू का संदेश कई बार सूक्ष्म रूप से सुन चुकी है. शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग सेंटर भी जाना है. एक सखी ले जाएगी. जून कल आयेंगे. कल शाम वह मन्दिर गये थे. सद्गुरू का सबसे बड़ा चमत्कार तो यही है. वह पहले उसके साथ मन्दिर जाकर भी बाहर ही खड़े रहते थे. अब सुबह-शाम अगरबत्ती जलाते हैं. संतों की वाणी को सुनते हैं. सद्गुरू की कृपा का कोई अंत नहीं. उसके खुद के जीवन में इतना परिवर्तन आया है कि...इसको कहा नहीं जा सकता. आज सुबह उन्हें टीवी पर देखा. वह कनाडा में हैं आज. कभी ऐसा वक्त अवश्य आएगा जब वह भी उनके निकट रह पायेगी आश्रम में, जब वे बैंगलोर  में रहेंगे !

सद्गुरू ने गुरूपूर्णिमा का तोहफा भेजा है. आज सुबह ध्यान में अनोखा अनुभव हुआ. प्रकृति-पुरुष, देह-देही, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ सभी का संबंध स्पष्ट हुआ. देवी तत्व समझ में आया. शिव तत्व व कृष्ण तत्व भी और लीला का क्या अर्थ है यह भी. सारे शास्त्र जैसे भीतर स्वयं खुल रहे थे और साथ ही अपूर्व आनन्द की धारा बरस रही थी. सद्गुरू ने जो उस दिन कृपा की थी यह उसी का फल है. वह जानते हैं, वह सब जानते हैं. वह उस दिन भी जानते थे जब पहली बार मिले थे. उसके भीतर जब पहली बार ज्ञान की किरण फूटी थी. आज नये तरह का गीत लिखा है, अभी तक उस ऊंचाई पर जाने का प्रयास कर रही थी, सो उसी के गीत लिख रही थी. अब वहाँ पहुँच कर नीचे का सब दिखाई दे रहा है. संसार दिखाई दे रहा है, जलता हुआ अपनी आग में !


कल की जो भावदशा थी, वह आज ध्यान में नहीं घटी. सद्गुरू ठीक ही कहते हैं, 'सदा' निकाल दें तो आनंद ही आनंद है. आज कल वाली कविता पोस्ट की है, कुछ को आनन्द दे जाएगी !    

Tuesday, January 3, 2017

आकाश का गीत


आज ध्यान कम टीवी पर सद्गुरू को श्रवण ज्यादा किया. आश्रम में उनसे जो प्रश्नोत्तर हो रहा था, बहुत अच्छा लगा. उन्हें नींद आ रही थी, लेकिन लोग थे कि प्रश्न पूछे ही जा रहे थे.
श्रवण दुःख पाप का नाशक, श्रवण करे जो बनता श्रावक
सुनने की महिमा है अनुपम, मिल जाता है जिससे प्रियतम
निज भाषा में सुनने का फल, मन की धारा बनती निर्मल !
पढ़ना वृत्ति, सुनना भक्ति, होगी इससे कुशल प्रवृत्ति
कल-कल नदिया की भी सुनना, पंछी की बोली को गुनना
बादल का तुम सुनना गर्जन, सागर की लहरों का तर्जन
पिऊ पपीहा केकी मोर की, गूंज मौन की सुने सही
सुनना भी एक विज्ञान, बढ़ता है जिससे प्रज्ञान
राग सुनो, आलाप सुनो, कोकिल की तुम तान सुनो
यहाँ हवाएं भी गा रही हैं, आकाश गा रहा है. संगीत से भरा है जगत !

आज सात परिचित महिलाओं को फोन किये, मृणाल ज्योति के कार्य में सहयोग के लिए, एक ने उठाया ही नहीं. लोगों से बातचीत चलती रहे तो अच्छा है. गुरूजी ने कहा, अपने में जो दोष हैं, उन्हें निकालने का प्रयास करने जायेंगे तो कोई लाभ नहीं होगा. अपना दायरा बढ़ाकर, स्वयं को व्यस्त रखकर अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करके वे स्वयं को शुद्ध कर सकते हैं. सेवा से बढ़कर शुद्धि का कोई साधन नहीं और स्वार्थ से बढ़कर अशुद्धि का कोई साधन नहीं. सेवा में कितना आनंद भी है. परमात्मा भी तो यही कर रहा है, ‘स: इव’ जो वह कर रहा है वे उसकी नकल करते हैं, वही तो उनके द्वारा प्रतिबिम्बित हो रहा है !

आज का ध्यान और भी अनोखा था. सद्गुरू होते ही हैं अनोखे, सारी दुनिया से निराले, प्रभु के घर वाले..दिल में रहने का ध्यान था, दिल के भीतर, दिल के ऊपर और दिल के नीचे..रहना था ध्यान से, अहंकार को भूलकर, विचारों को छोड़ते जाना था और केवल महसूस करना था. बच्चे महसूस करते  हैं, वे सोचते नहीं..तभी एकदम ताजे रहते हैं, फूल की तरह कोमल और सुबह की ओस की तरह निर्मल...

कल मृणाल ज्योति गयी थी. सो कुछ नहीं लिखा. वह परमात्मा कितने-कितने उपाय करके कितने खेल रचके उन्हें अपनी ओर खींचता है. वे अनजान से बने उसकी कृपा को अनुभव कर ही नहीं पाते, बार-बार अहंकार का शिकार होते हैं और दुःख पाते हैं, पर अपने सच्चे स्वरूप को देखते ही नहीं जहाँ केवल प्रेम है, जहाँ दो हैं ही नहीं, जो उनका अपमान(तथाकथित) कर रहा है, वह भी वे ही हैं. सम्मान करने वाले भी वही हैं. जब वे किसी का सम्मान करते हैं तो पुण्य बढ़ता है क्योंकि वे अपना ही सम्मान कर रहे हैं और जब किसी का अपमान कर रहे हैं, तो उनका पुण्य घटता है क्योंकि वे स्वयं का ही अपमान कर रहे हैं. इसका अर्थ हुआ कोई जब उनका सम्मान करता है तो अपना पुण्य बढ़ाता है उनका घटाता है, और अपमान करता है तो अपना पुण्य घटाता है, उनका बढ़ाता है. अद्वैत का अनुभव किये बिना कोई इस जगत में सुख से रह ही नहीं सकता. आज का ध्यान भी अनोखा था. अपने पोर-पोर को परमात्मा से ओत-प्रोत मानना था, एक-एक कण को..आज सुबह प्राणायाम करते समय भी उसे अपने घर में टिकने का अनुभव हुआ. वे व्यर्थ ही बाहर भटकते हैं. कभी धूल फांकते हैं तो कभी दामन फड़वाते हैं. उनका अपना मन ही मूर्खता भरे विचार उन्हें सिखाता है और वे उसकी बातों में आ जाते हैं. यहाँ करने को कुछ भी नहीं है सिवाय मस्ती में झूमने के..पर वे वही छोड़कर सारे काम करते हैं !        



Monday, January 2, 2017

तरह-तरह के ध्यान


कल कुछ नहीं लिखा, शाम को क्लब गयी थी. लेडीज क्लब की मीटिंग थी. एक सदस्या का विदाई समारोह था, उसने उनके लिए लिखी कविता पढ़ी, उन्हें शायद उम्मीद नहीं थी. लौटकर पद्म साधना की, जैसे आजकल वे रोज करते हैं. आज भी बदली है आकाश में. पिताजी बाहर बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ रहे हैं, माँ कमरे में अपनी चिर-परिचित मुद्रा में कुर्सी पर बैठी हैं. कल वे उनका जन्मदिन मनाने वाले हैं, उसने उनके लिए एक कविता लिखी. शाम को नन्हे के बचपन के फोटो चुनने हैं, वे उसके जन्मदिन पर उसे एक कोलाज बनाकर भेजेंगे. आज का ध्यान भी अच्छा था, जब कोई विचार नहीं है और इच्छा नहीं है तब क्या कोई कह सकता है कि ‘वह है’ ? दो श्वासों के बीच जो अन्तराल है, वे वहाँ भी नहीं होते, दो विचारों के बीच भी वे नहीं होते. आकाश में बादलों की तरह विचार आते और चले जाते हैं, उन पर कोई वश भी नहीं है. आत्मा में कोई क्रिया ही नहीं है, क्रिया करने की शक्ति है, जानने की शक्ति है और मानने की शक्ति है, लेकिन वे शक्तिमान हैं, शक्ति नहीं..अपने शुद्ध रूप का एक बार ज्ञान हो जाये तो चाहे वे शक्ति का कितना ही उपयोग करें..गलती तब होती है जब वे स्वयं को शक्ति ही मान लेते हैं और चुक जाते हैं...

दीदी को माँ के लिए लिखी कविता भेजी थी, उनकी यह अच्छी आदत है, फौरन जवाब देती हैं. आज का ध्यान भी अच्छा था. शरीर से बाहर वे कहाँ हैं और देह के भीतर वे कहाँ हैं, इसका अनुभव करना था. वे सब जगह हैं और कहीं भी नहीं है. देह से जब तक तादात्म्य रहता है, वे बंधन महसूस करते हैं, शरीर से जब तादात्म्य टूट जाता है तब वे पहली बार मुक्ति का अनुभव करते हैं..और मुक्ति ही आनंद है. उस आनन्द में किसी को अपना भागीदार बनाने के लिए फिर वे परमात्मा की भक्ति करते हैं, प्रेम बांटते हैं और सारा जगत उन्हें अपना ही रूप नजर आता है. आज छोटी बुआ पर संस्मरण लिखा.

कल जो कविता उसने ब्लॉग पर डाली थी. ध्यान के अनुभव के बाद लिखी थी और जो ध्यान नहीं करते, साधना पथ पर नहीं हैं, उन्हें समझ में नहीं आएगी. आज का ध्यान भी अनूठा था. सभी कुछ ब्रह्म है, इसका अनुभव करना था, पदार्थ का विश्लेषण करते जाएँ तो ऊर्जा मिलती है और ऊर्जा के भी पार चेतना है, जड़ अथवा चेतन सभी के मूल में एक ही तत्व है ! आज सुबह से वर्षा की झड़ी लगी है. शनिवार है सो भोजन में बेसन की कढ़ी बन रही है.

आज ध्यान में विचार शून्यता की अनुभव किया. विचार ही सीमा है. विचार से परे जहाँ केवल चैतन्य है, वहाँ सब एक है. सच्चा संवाद मौन में ही होता है. जब दो मौन मिलते हैं तब एकात्मकता का अनुभव होता है. विचारों में एकता कभी सम्भव नहीं है. मन में जो दिन-रात चटर-पटर चलती रहती है वह ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट करती है. वे कभी भी मौन का अनुभव नहीं करते. नींद में लगातार भीतर चलता रहता है एक प्रवाह..उसे जो प्रतीक्षा थी कि विचारों वाली कविता पर कुछ लोग कुछ कहेंगे वह कितनी मूर्खता थी. उस कविता पर टिप्पणी तो मौन रहकर ही की जा सकती है. उनके भीतर मान पाने की इच्छा भी एक विचार ही है और पाकर भीतर जो प्रसन्नता होती है वह भी एक विचार ही है अथवा तो एक संवेदना है जो उन्हें सुखद मालूम पडती है. सुखद संवेदना के प्रति वे राग जगाते हैं, फिर उन्हें बार-बार उस संवेदना की ललक उठती है, जब वह नहीं मिलती तो भीतर दुखद संवेदना जगती है. जिसके प्रति वे द्वेष जगाते हैं, वह भी उन्हें नहीं भाता तो और द्वेष जगाते हैं और इस चक्र में फंस जाते हैं. सारा खेल संवेदनाओं का है. इनका एक नशा होता है. यदि किसी संवेदना को साक्षी भाव से देखें तो कुछ ही देर में नष्ट हो जाती है, वे पुनः पहले की तरह हो जाते हैं.