आज एक जन्मदिन और...उम्र यूँ ही बीतती जाती है और
जिन्हें जीना चाहिए सुला दिए जाते हैं, राजीव गाँधी के लिए जितने आँसूं बहें कम
हैं.. भारत का यह हीरा..एक खरा इंसान…एक समझदार राजनीतिज्ञ...आखिर कौन जिम्मेदार है उसकी
मृत्यु के लिए.?
पिछली बार कब डायरी खोली
थी, याद नहीं, और याद करने की जरूरत भी नहीं, न ही यह वादा करने की कि अब से
नियमित लिखेगी...क्योंकि वादा हमेशा टूटने के लिए ही होता है. आज मन हल्का हल्का
है, घर भी साफ-सुथरा और मौसम भी सही..यानि सुहावना, न ज्यादा गर्म न ज्यादा ठंडा,
बहुत दिनों बाद पुराने घर की पड़ोसिन का फोन आया, अच्छा लगा. वह घर आयेगी, कैरम खेलने और ‘सदमा’ फिल्म देखने,
जिसका अंत बहुत कारुणिक है. कल वह नन्हे को लेकर क्लब गयी थी, एरोमॉडलिंग देखी, बहुत
आनंद आया, नन्हे को उससे भी ज्यादा, वही दीदी मिलीं उन्होंने वापसी में लिफ्ट दी.
आज सोमवार है यानि खत लिखने का दिन, इस हफ्ते तीन खत लिखने हैं.
कल शाम को जून ने दो लोगों
को चाय पर बुलाया था, बाद में कहने लगे कि...बेकार ही बुलाया...जितने उत्साहित वह
थे उतने आने वाले नहीं लगे, शायद इसीलिए..ऐसा कई बार होता है ...शायद सबके साथ
होता हो. आज सुबह वह एक स्वप्न देख रही थी अद्भुत था किसी फिल्म की कहानी कल
तरह..कल शाम को अल्फ़ा द्वारा अपहृत किये गए लोगों के बारे में सुनकर, (जो ओएनजीसी
के थे, ऑयल के भी हो सकते थे) मन ही तो है डर गया..लेकिन मन अगर इसी तरह डरता रहा
तो यहाँ वे कैसे रह सकेंगे..भगाना ही होगा इस डर को तो. जून कल एक फिल्म का कैसेट
लाए थे, उसने सोचा कि वह अभी देखे या नन्हे के आने पर, उसे अभी सारी फ़िल्में नहीं
दिखानी चाहिए. ज्यादातर फ़िल्मों में वही सब दिखाते हैं खून खराबा हत्या, यानि
शुद्ध हिंसा, इसे ही मसाला फिल्म कहते हैं. कल वह स्कूल में गिर गया, सारे कपड़े
गंदे हो गए, टीचर ने दूसरे कपड़े पहना कर भेजा.
अखबार खोलते ही कैसी भयानक
खबर पढ़ने को मिली. लन्दन में दो बच्चे भूख और प्यास से मर जाते हैं क्योंकि उनकी
माँ मर चुकी है और दस दिनों तक किसी को खबर नहीं होती, कैसा शहर है जहां पड़ोसियों
को पड़ोसियों की खबर ही नहीं रहती.
कल रात उन्होंने ‘हिना’
फिल्म देखी, अच्छी फिल्म है, नायिका जेबा भी बहुत अच्छी है. आज अखबार नहीं आया,
शायद कल फ्लाईट नहीं आई होगी. कल शाम को जून के साथ एक और सप्लायर आये थे, चाय
पिलानी थी उन्हें, उसने बेमन से नाश्ता बनाया, गर्मी इतनी ज्यादा थी और उसके रेशमी
कपड़े चिपक गए थे पसीने से, कुछ कोफ़्त पिछली रात की भी थी कि वह ठीक से किसी के सवालों
के जवाब नहीं दे पायी, वही अंग्रेजी बोलने में झिझक..पता नहीं क्यों..आज फिर वर्षा
हो रही है, बिजली भी चली गयी है, नन्हे के जन्मदिन के लिए पहला कार्ड आया है, उसकी
छोटी बुआ ने एक पार्सल भी भेजा है, शायद ड्रेस भेजी होगी. चार वर्ष का हो जायेगा
वह, समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता.
अभी-अभी राजीव गाँधी को
मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ दिए जाने का अलंकरण समारोह टीवी पर देखा. उनके बच्चों व
पत्नी के लिए कैसा दृश्य रहा होगा, भारी पल रहे होंगे, बेहद भारी. अगर वे जीवित
होते तो क्या यह सम्मान उन्हें मिलता. कितना कुछ कहा जाता, कितनी चर्चाएँ होतीं,
विरोध होता. जून ने फोन किया कि दोपहर के खाने पर वह घर नहीं आ रहे हैं, कोई
इंटरव्यू है, वह तो सुनकर समझी थी कि इंटरव्यू उन्हें देना है पर बाद में बताया कि
लेना है, अब देने की उम्र नहीं रही उनकी. सोनू गृहकार्य करके टेस्ट के लिए पढ़ रहा
है, उसकी बड़ी बुआ ने भी जन्मदिन पर पैसे भेजे हैं. सर्वोत्तम(रीडर्स डाइजेस्ट का
हिंदी संस्करण) का नवीनीकरण कराया था उन्होंने, उसे उपहार में मिलने वाली पुस्तक की
प्रतीक्षा है.
फिर एक अंतराल.. आज सब काम
कुछ जल्दी ही निपट गए हैं, मन ने कहा डायरी उठा लो तो हाथों ने उठा ली. चारों और
मन की ही सत्ता है, हर काम मन के इशारे पर होता है, उसका मन खुश तो वह भी खुश मन
उदास तो...पर यह ‘मैं’ कौन ? क्या मन से अलग कुछ, हाँ, कुछ अलग तो है.. नन्हे की
चंपक आई है आज, अब वह कहानियाँ सुनाने को कहेगा. गर्मी बहुत है आजकल, ऊपर से बिजली
चली गयी कल रात, पर वर्षा हो गयी सो नींद आ ही गयी बाद में. ऐसे में जून को जुकाम
हो गया है, कल शाम वे क्लब गए, आइसक्रीम खायी पर वह ने नहीं खा सके, परसों जो डिटेक्टिव
किताब वह लाइब्रेरी से लायी थी शायद पहले भी ला चुकी है एक बार, हल्का सा याद आता
है, पढकर रात भर स्वप्न आते रहे, शायद.. नहीं पक्का.. उसी किताब का असर था.