वर्ष का अंतिम महीना शुरू हो गया है। दिसंबर का पहला दिन पर बंगलूरू में ठंड का कुछ पता नहीं चल रहा है, यहाँ मौसम सुहावना है। आज दोपहर को पहले सोनू आयी, फिर नन्हा। वह दो दिनों से घर से बाहर था, अपने मित्र की बैचलर पार्टी में गया था। आजकल यह नयी प्रथा चली है। दोपहर को सबने मिलकर वे फ़ोटो चुने जो फैमिली ट्री में लगाने वाले हैं। नन्हे के विवाह में यह उपहार मिला था, बड़े से पेड़ में कई फ्रेम हैं जिसमें पूरे परिवार के फ़ोटो लगाए ज्या सकते हैं। सीढ़ियों के साथ वाली दीवार पर वे इसे लगाएंगे।
शाम को वे टहलने गए, रात की रानी के फूल अभी खिले नहीं थे. मुख्य सड़क के डिवाइडर पर काफी दूर तक लगे हैं इसके पौधे, जो फूलों से लदे हुए हैं। देर शाम को या बहुत भोर में उनकी खुशबू दूर से ही आने लगती है। वापस आकर भोजन बनाया, बच्चों ने कहा, उन्हें अभी भूख नहीं है, सो भोजन पैक करके दिया। एक नया स्टार्ट अप शुरू हुआ है यहाँ,'बाउंस' जिसमें किराये पर स्कूटर मिलते हैं तथा उन्हें पार्क करके किसी भी स्थान पर रख सकते हैं। वे कार से उन्हें उस स्थान पर ले गए जहाँ स्कूटर खड़ा था, पर उसपर कोई हेलमेट नहीं था। यहाँ बिना हेलमेट के द्विपहिया वाहन चलना जुर्म है, सो 'उबर' से टैक्सी बुलाई और उन्हें छोड़कर वे वापस आ गए । सुबह सोलर पैनल लगाने का काम आरंभ हुआ। कल सुबह दीदी-जीजा जी का शुभ प्रभात का संदेश आया, जिसे देखकर उनके दिल खिल गए। दिल से दिल का रिश्ता इतना गहरा होता है कि ऊपर की थोड़ी सी नाराजगी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। शाम को पिताजी का फोन भी आया, वर्षों से वे हर इतवार को उनसे बात करते आ रहे हैं, सुबह व्यस्तता के कारण नहीं कर पाए थे। पिताजी कितना भी कहें कि मोह-माया से दूर हैं, पर उनकी आवाज से ऐसा नहीं लग रहा था। ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे व स्वास्थ्य ठीक रहे उनका। रिश्तों के न दिखने वाले धागे बहुत मजबूत होते हैं। इनका सम्मान करना होगा। सभी परिवारजनों के प्रति मन में जब कभी भी अतीत में कोई शिकायत या तल्खी पनपी हो, उसके लिए उसने ईश्वर से तथा उन सभी की शुद्धात्मा से हृदय से क्षमा मांगी। परमात्मा उनके हर भाव, हर विचार पर नजर रखे हुए हैं। उन्हें उनके हर कर्म का हिसाब चुकता करना ही होता है। उसका मन शुद्ध रहे, उसमें कोई कपट न हो , किसी के प्रति कोई संदेह न उठे। क्योंकि उसका हर भाव अंतत: उसके प्रति ही होगा। हर भाव की जिम्मेदारी स्वयं को ही लेनी होगी, क्योंकी यहाँ सिवाय एक के दूसरा है ही नहीं ! एक ही चेतना भिन्न -भिन्न रूपों में स्वयं को प्रकट कर रही है !
आज का दिन मिल-जुला रहा, हल्की बूँदाबाँदी में छाता लेकर वे टहलने गए। जून डाक्टर से मिलने गए तब तक उसने सफाई करवायी। उनकी नैनी बेहद हँसमुख है और दिल लगाकर काम करती है, इसी तरह दूसरी शाम वाली नैनी भी ठीकठाक है। दोपहर को ब्लॉग पर लिखा पर पूरा नहीं कर पाई। बीच में ही मन को वर्तमान में रखने के लिए एक संदेश देना पड़ा। एक कविता जैसी बन गई, कवि की स्वयं को दी गयी सीख औरों के भी काम आ जाती है। दो सखियों ने कमेन्ट लिखा है। मन की तो आदत है गड़े मुर्दे उखाड़ने की, वह एक छाया मात्र ही तो है। अहंकार भी तो छाया है, वे जो वास्तव में हैं, वहाँ न कोई मित्र है न शत्रु, वहाँ एक के सिवाय दूजा कोई भी नहीं है। उन्हें आत्मा के उस सिंहासन पर विराजमान होना है। यहाँ पर घर के बने पकवान आदि बेचने के लिए एक ग्रुप बना हुआ है, कल कोई पड्डू बेच रहा है। शनिवार को भी एक के यहाँ से कुछ खाद्य पदार्थ लाए थे, उन महिला से बात हुई, एक ही पुत्र है जो इंजीनियरिंग कर रहा है। योग कक्षा में कुछ उपकरणों की सहायता वे नए-नए आसन सीख रहे हैं। अकार, उकार तथा मकार का उच्चारण किया शवासन में लेटकर, बहुत अच्छा अनुभव था। आज फिटबिट में देखा दिन भर में अठारह हजार कदम हो गए ।
आज भतीजी का जन्मदिन है, बड़े भैया की बिटिया का, उसने कविता लिखी, सभी को भेजी, पर भतीजी के सिवाय किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सब जैसे बहुत व्यस्त हो गए हैं, भाव की सरिता नहीं बहती मन में या बहने ही नहीं देते। कल शाम जून भी थोड़ा नाराज हुए, पर सुबह गुरु माँ को सुना तब उनका मन शांत हुआ। सुबह नाश्ते के बाद वे पीछे गाँव के मंदिर को देखने गए, पर वह सुबह छह बजे खुलता है और शाम को भी उसी समय। आते समय जंगली फूलों की तस्वीरें उतारीं।
उसने कालेज के दिनों की डायरी के पन्नों पर तीन महापुरुषों के उनके द्वारा लिखे सन्देश पढ़े, जो उन्हीं से मिलकर उसने तीन वर्षों में प्राप्त किये थे. उसे याद है पहली बार छोटे भाई के साथ बनारस में राजघाट में वह दादा धर्माधिकारी से मिलने गयी थी. कुछ देर बातचीत के बाद उन्होंने लिखा था-
“बने बनाये राजमार्ग छोड़ो, नयी पगडंडियाँ बनाओ, यह तरुणाई की विशेषता है."
मिर्जापुर में एक सन्त पथिक जी आये थे, जो उनके घर के निकट ही ठहरे थे. उन्होंने उसकी डायरी में लिखा-
“सेवा की पूर्णता तथा दोषों के त्याग की पूर्णता और निष्काम भाव से प्रेम की पूर्णता में ही जीवन की पूर्णता है.”
सहारनपुर में स्वामी शिवानन्द के एक शिष्य योग सिखाने आये थे, उन्होंने भी एक सुंदर संदेश लिखकर दिया था-
“ अपने ‘स्व’ को जानो. स्त्री का भूषण लज्जा, शील और पवित्रता है, उससे पृथक न हों ! अपने आंतरिक सौंदर्य को प्रस्फुटित करो. वह सौंदर्य कभी नहीं मुरझाये इसके लिए जाग्रत रहना. सदा ‘स्व’ में स्थित रहें. ईश्वर की अहैतुकी कृपा का वरदान आपको आंतरिक शांति, आनंद एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष प्रदान करे. यही प्रार्थना है.”
उस समय इन शब्दों का क्या अर्थ उसने ग्रहण किया होगा अब याद नहीं है, लेकिन आज इनकी महिमा पूर्ण रूप से स्पष्ट हो रही है.