दोपहर के तीन बजे हैं. धूप अब कुछ ही देर की मेहमान
है, इस समय ठंड ज्यादा नहीं है पर शाम होते न होते तापमान गिर जाता है. वह गुलाब
और जरबेरा के मध्य हरी घास पर बैठी है. मालिन बगीचे में झाड़ू लगा रही है और उसकी
बेटी क्यारियों में पानी डाल रही है. उसके इर्दगिर्द श्वेत धुंए सा पारदर्शी कोई
आवरण छाया हुआ है जो गतिमान है तथा जिसके भीतर से देखने पर सामान्य दिखने वाली घास
भी अति प्रकाशवान व सुन्दर हो जाती है. परमात्मा की लहर जैसे उसे छूकर जाती है,
कितना दयालु है वह ! आज सुबह प्रार्थना की, वह उसे धैर्यवान बनाये, धैर्य की कमी
के कारण उसे न जाने कितनी बार कितनी परेशानी उठानी पड़ी है. धैर्य की कमी का सीधा
सा अर्थ है उस पर भरोसा न होना. कर्ता भाव जगते ही तो अधैर्य का जन्म होता है.
शास्त्रीय ज्ञान को जीवन में उपयोग न कर सके तो उसका होना न होना बराबर ही है. लोभ
की वृत्ति से भी छुटकारा पाना है. सद्गुरू के वचन सुनती है तो लगता है सब याद है
पर वह मात्र स्मृति ही बन कर न रह जाये, जीवन में पग-पग पर उसका उपयोग हो सके.
संध्या के साढ़े पांच बजे हैं. आज का दिन कितना अलग रहा. सुबह देर से उठी, कल
रात को क्लब से देर तक गाने की आवाजें आ रही थीं, देर से सोयी, वैसे भी जबसे जून
गये हैं, रात्रि को सोने में देर हो ही जाती है. दोपहर को ग्यारह बजे क्लब गयी,
इतने वर्षों में पहली बार बीहू पर होने वाले खेल देखे. पारंपरिक भोजन किया, जो
स्वादिष्ट था और गर्म था. आलू पिटकी, केले के फूल की सब्जी, पालक पनीर, दाल बड़ा और
दो तरह के चावल और दाल. वापस आकर बच्चों के लिए चने बनाये और उन्हें भी खेल खिलाये.
जून आज रामेश्वरम गये हैं, शाम तक तमिलनाडू में अपने निवास पर आ जायेंगे, और दो
दिन बाद यहाँ. आज ‘शिवसूत्र’ पर लाई किताब पढ़ी. ओशो का प्रवचन डाऊनलोड किया इसी
विषय पर, कल सुनेगी. उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बनी है. सद्गुरू ने भी
शिवसूत्र पर प्रवचन दिए हैं, पहले टीवी पर सुन चुकी है. सुबह पुनर्जन्म पर एक टेलीफिल्म
देखी. शाम को क्लब जाना था, फिर एक सदस्या के घर, इस बार के क्लब के वार्षिक उत्सव
में वे एक ‘वाल मैगजीन’ प्रकाशित करने वाले हैं, वह बहुत रुची से बना रही है. सब
मिलाकर तीन घंटे वहीं लग गये. दो दिन बाद उन्हें यात्रा पर निकलना है. नैनी की
बेटी कई बार कह चुकी है, उसे नृत्य के लिए बुलाये, बच्चों को नाचना अच्छा लगता है
और उनके साथ नाचना उसे भी ! अब सोमवार को ही सम्भव होगा या फिर कोलकाता से आने के
बाद.
सुबह भी काफी कोहरा था, एक छोटी सी यात्रा की राजगढ़ की आज. मृणाल ज्योति ने विशेष
बच्चों एक लिए अपने स्कूल की एक शाखा वहाँ खोली है, उसी का समारोह था. दोपहर ढाई
बजे वह लौटी और उसके कुछ देर बाद जून भी आ गये. ढेर सारा सामान लाये हैं हमेशा की
तरह. तमिलनाडू के चेट्टीनाड से तीन साड़ियाँ भी. बगीचे से मेथी, फूल गोभी व हरे
प्याज तोड़े, और रात के भोजन में उसका
पुलाव बनाया, जून को बहुत पसंद है.
आज सुबह अँधेरे में खिड़की का पर्दा हटाते समय एक फ्रेम टूट गया, एक पिछले
हफ्ते टूटा था, इसी तरह पर्दे के ही कारण. उसे प्रकाश कर लेना चाहिए सुबह उठते ही
कमरों में, जैसे भीतर प्रकाश न हो तो मन में अँधेरा छा जाता है, वैसे ही बाहर भी
प्रकाश अति आवश्यक है. आज मृणाल ज्योति जाना था, कम्पनी के डायरेक्टर्स की
पत्नियाँ यहाँ आई हुई हैं, मुख्य अधिकारी की पत्नी उन्हें लेकर जाने वाली थी. वहाँ
एक पुरानी परिचिता मिलीं, कुछ वर्ष पूर्व वे लोग यहाँ से चले गये थे, गोरी-चिट्टी
हँसमुख और पूर्णतया स्वस्थ नजर आती थीं, पर उन्हें अब कैंसर हो गया है, कृशकाय हो
गयी थीं, पर मुस्कान वैसी ही है. बच्चों से मिलकर सभी खुश हुए. वहीं से उसने कुछ
उपहार खरीदे. कल उन्हें असमिया सखी के पुत्र, जो नन्हे का मित्र भी है, की शादी
में जाना है, नन्हा भी एक दिन के लिए आएगा. अभी पैकिंग शेष है. धूप में बैठकर
लिखना अच्छा लग रहा है. पंछियों की आवाजें आ रही हैं तथा घास काटने की मशीन की भी
कभी-कभी ! शेष समय मौन है. आज से नैनी की बेटियों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है,
सुबह दोनों चहकती हुईं स्कूल ड्रेस पहनकर आयीं थीं, उसने दोनों की तस्वीर उतारी.