Friday, March 31, 2017

गोकुल और नवनीत


सितम्बर शुरू हो गया, बादल पूरे अगस्त बरसते रहे, देखे, इस महीने क्या होता है. बादलों का मौसम कृष्ण की याद दिला देता है, उनका जन्म भी ऐसे ही मौसम में हुआ था और उनका रंग भी शायद इसीलिए..सुबह कृष्ण लीला का स्मरण करते ही आँखों में भी बादल घिर आये..अद्भुत हैं कृष्ण !  जैसे उसे कह रहे हों, मैं हूँ न ! वह अपने मन को गोकुल बना सकती है तो कृष्ण उसमें बसने को सदा तत्पर हैं. वह अर्जुन की तरह यदि उनकी शरण में जा सकती है तो उन्होंने उसकी कुशल-क्षेम का वचन दे ही दिया है, वह अपने को सुपात्र बना लेती है तो कृष्ण उसमें रहे नवनीत को ग्रहण करने ही वाले हैं. शुद्ध, सात्विक भोजन खाने से मन व तन दोनों हल्के रहते हैं, इसका अनुभव हो रहा है. कल इतवार शाम को बंगाली सखी की माँ आएँगी उनके यहाँ. उसने सोचा है उनकी पसंद की कुछ वस्तुएं बनाएगी, वह इतनी उम्र में भी कितना ध्यान रखती हैं अपने वस्त्रों व मेकअप का, खूब बातें करती हैं और छोटी लड़कियों की तरह चहकती हैं, यही उनकी सेहत का राज है.

सुबह उठे वे तो ठंडी हवा बह रही थी, उसके बाद वर्षा शुरू हुई जो रुकने का नाम नहीं ले रही है. कपड़े धोकर नैनी बाहर ही छोड़ गयी थी, वह उठी उन्हें फ़ैलाने के लिए पर पिताजी ने पहले ही फैला दिए थे, उन्हें अपने लायक किसी न किसी काम की  तलाश रहती है, कोई भी मौका नहीं चूकते. आज वे बोले, शरबत की जगह चाय पियेंगे, मौसम ठंडा हो गया है.

शिक्षक दिवस है आज ! दो छात्रायें उसके लिए पेन तथा कार्ड लायी है और एक की माँ ने भी एक उपहार भिजवाया है. वह खुद मृणाल ज्योति गयी थी. टीचर्स को उपहार दिए, मिठाई खिलाई. जून आज दिल्ली गये हैं, तीन दिन बाद लौटेंगे. उसे कुछ काम तो करने हैं, कुछ लिखना है और साक्षी बने रहना है हर कृत्य में. कर्ता भाव से कुछ भी नहीं करना है. पिताजी को फोन करना है, भीतर कैसी अनोखी शांति है. स्वचेतना खो जाने पर केवल चैतन्य मात्र रह जाने पर ही ऐसी शांति का अनुभव होता है !

अभी कुछ देर पूर्व जून का फोन आया था, उसके जूते का नम्बर पूछ रहे थे, वह इतनी दूर रहकर भी उसका इतना ध्यान रखते हैं. आज दीदी से बात हुई, वे लोग नार्वे में मन्दिर गये थे, भारतीय जहाँ भी रहते हैं, मन्दिर का निर्माण कर ही लेते हैं. एक वरिष्ठ ब्लॉगर महोदया जी का मेल आया था कल, ‘नारी विमर्श’ पर कुछ लिखने को कहा था अपनी समझ से. कभी-कभी भीतर कुछ लिखने का मन होता है, पर उस वक्त कागज-कलम साथ नहीं होते, वक्त गुजर जाता है. जब कागज-कलम लेकर बैठे तो कुछ भी नहीं लिखा जाता है. कल रात एक सुंदर पंक्ति जहन में आई थी. बहुत बार दोहराई कि याद रहेगी पर अब उसका निशान भी शेष नहीं है. मन के आकाश में उड़ते हुए बादल सी कोई लाइन आयी और खो गयी..वे व्यर्थ ही अपना होने का दावा करते हैं विचारों को ! कल शाम आलोचना में कुछ पढ़ा, आज नेट पर और फिर एक लम्बी कविता जैसी कुछ लिख दी. उन्होंने जवाब भी दिया, शानदार ! शायद उदंती में छपने के लिए भेजें. वर्षा जारी है !



Thursday, March 30, 2017

नीली आँखें


आकाश में सुबह से बदली बनी है. जून अभी तक घर नहीं आए हैं. हवा बह रही है. वह बाहर झूले पर बैठी है. आज शाम वे कई हफ्तों बाद ध्यान-कक्ष में ही सत्संग करने वाले हैं, तैयारी हो गयी है. प्रसद रूप भोजन भी बन गया है. आज नेट नहीं चला, सो कोई पोस्ट नहीं डाल पायी. नई कविता भी नहीं लिखी है, अन्य कवियों की कविताएँ पढ़ रही है, सभी के भीतर कितने सुंदर भाव उठते हैं, सभी तो एक ही चेतना का अंश हैं. अब अपना-पराया कुछ भी महसूस नहीं होता. खुद लिखे, ऐसा भी मन नहीं होता. जो हो रहा है, वही हो..जो परमात्मा चाहे वही हो !

बापू कहते हैं, सूधे मन से, सूधे वचन से तथा सूधी करतूती से उर में प्रेम का जन्म होता है. प्रेम में कोई नियम नहीं होता. “हरि देखा सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होए मैं जाना” हृदय में यदि प्रेम प्रकट हो तो ही परमात्मा प्रकट होता है, पर वे उसको पहचान नहीं पाते. भीतर इतने अशुभ संस्कार रहते हैं कि वे उसे महत्व ही नहीं देते. प्रेम जब निरंतर बढ़ता ही रहे तो ही वह परमात्मा उनके अनुकूल होगा अर्थात वह उसे पहचान पाते हैं. प्रेम को निरंतर बढ़ना ही चाहिए, नित-नित बढ़े वही प्रेम है ! अकबर ने अपने नवरत्नों से एक बार पूछा था, अल्लाह की जाति क्या है, रंग क्या है, अंग कैसा है, जवाब मिला इश्क अल्लाह की जाति है, इश्क अल्लाह का रंग और वह इश्क से ही बना है ! उनकी कथा आ रही है, “सब सोच विमोचन चित्रकूट, कलि हरण करण कल्याण कूट”. कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा. छोटी बहन का परिवार है, जून और वह है. एक उपकरण बनाया है दोनों के पतियों ने, वे उसे दोनों ओर से पकड़े बैठे हैं और वह फोटो खींच रही है. तभी अचानक जून का चेहरा गोरा हो जाता है, नीली आँखें, उसकी इस बात पर कि यह तो फ्रेंच है, छोटी बहन के पतिदेव कह उठते हैं मैं जर्मन हूँ, उसका भी चेहरा बदल जाता है. जरूर किसी पूर्व जन्म का स्वप्न होगा.

बायीं आँख में उपर की पलक के पास हल्का दर्द है, जून ने फोन किया वे उसे डाक्टर के पास ले जाने आयेंगे अभी कुछ देर में. आज धूप तेज है, मौसम हर रोज अपना मिजाज बदलता है. अगले महीने वे उसे गोवा ले जायेंगे, वे एक हफ्ता वहाँ रहेंगे. अब लगता है भीतर परम विश्राम मिला है. तन की अवस्था कैसी भी हो मन सदा एकरस बना रहता है. परमात्मा जैसे अपनी याद खुद दिलाता रहता है. जून को पिछले चार-पांच दिनों से सर्दी लगी है. एक दिन उनके भी जीवन में ध्यान आये, ऐसी ही प्रार्थना उसकी प्रभु से है, नन्हे को भी ऐसा ही विश्राम प्राप्त हो. जीवन का परम लक्ष्य यही है, एक ऐसी अनवरत शांति और आनंद का स्रोत उनके भीतर है, जो उनका अपना है, उस तक उनकी पहुंच हो.

अगस्त का अंतिम दिन ! मौसम सुहाना है, वर्षा के कारण सभी कुछ स्वच्छ और आकाश में पूर्णिमा का चाँद बहुत बड़ा सा ! अभी कुछ देर पहले वे लॉन में टहलकर वापस कमरे में आये हैं. जून की तबियत बेहतर है. नन्हा आजकल बहुत व्यस्त चल रहा है. कल बड़े भांजे को भी हॉस्टल शिफ्ट करना है, उसके घर में ही ठहरा है. नूना का मन शांत है, अब अपने घर का पता मिल गया है, एक पल लगता है उसमें जाने में ! 

Tuesday, March 28, 2017

जल, जंगल और जमीन


टीवी पर हिरोशिमा में बापू की कथा का प्रसारण हो रहा है. हवा की तरह हल्का, फूल की तरह महकता हुआ और पानी की तरह बहता हुआ मन कथा सुनकर ही होता है, लेकिन कथा के पूर्व ही कोई वक्ता बोल रहे हैं, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे. बोलने का भी एक आकर्षण होता है. सत्य का रथ, प्रेम के पथ पर, करुणा के मनोरथ के साथ चलता रहे यही तो बापू चाहते हैं. जून अहमदाबाद में हैं, सुबह उनका फोन आया था. नन्हा इतवार को तमिलनाडु गया था, फुफेरी बहन व जीजाजी से मिलने. बाइक पर यात्रा करना उसे मेडिटेशन जैसा लगता है, पूरे होश में रहना पड़ता है, नितांत अकेले अपने साथ ! साढ़े दस बजे हैं, आज वे भोजन देर से करेंगे, वह एक घंटा कम्प्यूटर पर बैठकर आज की पोस्ट लिखेगी.

जी-टीवी पर दिल्ली के रामलीला मैदान से बाबा रामदेव का काला धन लाने के लिए दिया गया भाषण प्रसारित हो रहा है. देश में कितना तेल, कितना कोयला आदि प्राकृतिक संपदा के रूप में पड़ा है, जल, जंगल, जमीन की जो लूट मची है, उस पर बोल रहे हैं. काला धन कितना है, इसका तो पता नहीं, पर लाखों करोड़ों में है. जनता को सजग करना ही उनका उद्देश्य है.

अज जून का जन्मदिन है, उसका मन भी खिला है. कल दिन भर एक अजीब सा भाव छाया था. छोटी बहन की सासुमाँ ने देह त्याग दी. रामदेव जी का आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था. कल दोपहर भर टीवी पर वही देखती रही. आज बहुत दिनों बाद एक परिचिता का फोन आया, उनके पुत्र का विवाह किसी कारण से टूट गया है, उस अनुभव से उबर रही थीं, अब मन कुछ ठहरा है. क्लब की प्रेसिडेंट के बारे में उनसे कुछ बातें पूछीं. उनके लिए कविता लिखनी है. वह एक अच्छी अध्यक्षा साबित हुई हैं. मिलनसार हैं, अच्छी लीडर हैं, मैनेजर हैं और सुलभ हैं. सब कोई उनसे बात कर सकते हैं. अहंकार नहीं है. सामाजिक कार्यों के प्रति उत्साह है, समाज सेवा का जज्बा है. दादी, नानी बन चुकी हैं. सास की अच्छी बहू हैं, अच्छी माँ हैं, स्वास्थ्य व सौन्दर्य के प्रति सजग हैं, इस उम्र में भी युवा दिखती हैं. ऊँचा कद है, वस्त्र शालीन हैं और एक गरिमा है उनमें. इतना सब तो काफी है उनके बारे में लिखने के लिए. आज मौसम सुहाना है, कल दिन भर बेहद गर्मी थी. कल बंगाली सखी की बिटिया को अचानक देखकर बहुत ख़ुशी हुई, वह पहले से ज्यादा मुखर हो गयी है और थोड़ी मोटी भी. नौकरी करने लगी है.

बाबा रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण जी को जमानत मिल गयी है. उनके आन्दोलन से पूर्व ही उन्हें फर्जी डिग्री व फर्जी पासपोर्ट के कारण जेल में रखा गया था. बाबा पूरी निर्भयता की साथ प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को शासन की कमियों की तरफ आकर्षित कर रहे हैं. देश के हालात इस समय नाजुक बने हुए हैं. सारे विश्व में ही मंदी के कारण परेशानी है फिर भी युद्द्धों पर व्यर्थ पैसे खर्च किये जा रहे हैं. इन्सान अपने स्वार्थ के कारण दुःख पा रहा है.   

तुम मेरे साथ होते हो, कोई दूसरा नहीं होता ! बापू की कथा आ रही है राजस्थान के नाथद्वारा से. विरह ही प्रेम है. किसी के जाने के बाद जो सन्नाटा हो जाता है, उसमें कितनी पीड़ा है, जो इस सन्नाटे को सहता है, वही प्रेम को अनुभव कर ही सकता है. एक शून्य प्रकट होता है जीवन में तभी प्रेम प्रकटता है. उनका कोई क्रियाकलाप ऐसा न हो जो प्रेमास्पद के प्रतिकूल हो. 

Monday, March 27, 2017

चाँद और सूरज


परमात्मा के खेल निराले हैं. वह कितना-कितना चाहता है कि वे उसके पथ पर चलें. वह उन्हें कई मार्गों से शुद्ध करता है, कभी सुख देकर कभी दुःख देकर. इतने वर्षों से जो संस्कार उसके भीतर था, जिसके कारण उसका तन अस्वस्थ हुआ, मन अस्वस्थ हुआ, वह संस्कार अंततः कल रात्रि उसे मिटता हुआ प्रतीत हुआ है. अहंकार की जो काली छाया उसके और परमात्मा के मध्य अभी तक पड़ी हुई थी; आज वह गिर गयी लगती है, वह छाया ही थी. अहंकार लगता है ठोस पर कुछ होता नहीं है, परमात्मा लगता है सूक्ष्म पर होता है ठोस..वह उनका सच्चा हितैषी है, सुहृद है, वह उनका सद्गुरू है. मन अब रंच मात्र भी नकारात्मकता स्वीकार नहीं कर पाता. जीवन कितने-कितने रंग दिखाता है, जब शुभ नहीं टिका तब अशुभ कैसे टिकेगा.

यह सृष्टि एक गीत है
आकाश गंगाएँ छंद है जिसकी
झिलमिलाते तारे अलंकार
और चाँद-सूरज दो अंतरे
मुक्ति आधार है जिसकी
नये शब्द खोजने होंगे
नई इबारत लिखनी होगी
उसका गुणगान करने के लिए
जो पुरातन है
जब नहीं थी सृष्टि
जो उससे भी पूर्व था..

भीतर कैसा ठहराव छा गया है. जैसे कोई ज्वर उतर गया हो. अब कोई दौड़ नहीं है. न कुछ पाना है, न ही करना है, जीवन जो देगा उसे स्वीकारना है. भीतर कोई जाग गया है. सदा एकरस सत्ता है, जो पूर्ण तृप्त है. सारे संस्कार नष्ट हो गये लगते हैं. अब कोई कोना खुद से छिपा नहीं रह गया है भीतर का. मन को उसकी गहराई तक जाकर खंगाल लिया है, सारे कोने साफ कर लिए हैं, कहीं कोई दुराव नहीं है, अब नहीं कुछ सिद्ध करना है. जून कल बाहर जा रहे हैं, पांच दिन बाद लौटेंगे. अभी कुछ देर पहले ही पुरानी डायरी के कुछ अंश लिखे, उसका यह संस्कार तब भी कितना दृढ था, पर अंततः अब इससे मुक्ति हुई लगती है. उसकी साधना शायद इसी के लिए थी. परमात्मा उन्हें कितना आनंद कितनी शांति देना चाहता है. वे अज्ञानवश अपने व उसके बीच दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं. उनका सारा नकार अपनी ही जड़ों पर चोट करने जैसा है. एक ही सत्ता से सारा जगत बना है. अन्य पर किया क्रोध स्वयं पर ही लौटता है. लौटता भी है और स्वयं से ही होकर जाता भी है. हर हाल में अपना ही नुकसान होता है. इसी तरह दूसरे को दी ख़ुशी भी खुद से होकर गुजरती है और लौट कर भी खुद तक ही आती है. जब तक मन को खुद की खबर नहीं थी तब तक वह बाहर ही ख़ुशी खोजता था, अब भीतर ही सब कुछ मिल गया है, कहीं जाने की जरूरत ही नहीं है. असजगता के कारण वे अपने जीवन का बहुत सा कीमती समय नष्ट कर देते हैं.

एक शिशु जैसा छोड़ दिया है
स्वयं को निसर्ग के हाथों
अब खो गये हैं सारे लक्ष्य, सारा ज्ञान
खाली है मन, शून्य उतर आया है भीतर
और बाहर परमात्मा हर तरफ बाहें फैलाएं..
न कुछ करना है
न जानना है
न पाना है
बस एक निर्दोष फूल सा खिले रहना है
अस्तित्त्व के चरणों में !

   

Saturday, March 25, 2017

नीला आकाश सफेद बादल


कल दिन भर व्यस्तता बनी रही. सुबह वे बाजार गये, जून उसके लिए कोलकाता से एक साड़ी और एक कुर्ती लाये हैं, वह उसे सजे-धजे देखना चाहते हैं. उनका प्रेम उसके लिए अपरिमित है. वे लोग दिसम्बर में बंगलुरू जा रहे हैं, तब यह वस्त्र काम आयेंगे. सद्गुरू के लिए भी वह इस बार एक सुंदर भेंट लेकर जाएगी, कोई बहुत ही सुंदर वस्त्र ! आज पिताजी का अख़बार नहीं आया है, टीवी भी नहीं चलाया है, बैठ-बैठे जाने क्या सोचते रहते हैं. उसका ध्यान पहले से बेहतर हुआ है. कल सुबह कितना विचित्र स्वप्न देखा था और कल रात को भी एक सुंदर मन्दिर देखा, विशाल मन्दिर है लेकिन मुख्य मूर्ति के नीचे लिखा है किसी अभिनेत्री का नाम लेकर कि वह फिर आ रही है. कल के स्वप्न में ऊंची छत पर रखा गोबर की खाद का एक ड्रम नीचे गिर जाता है और सड़क पर जाकर देखा तो वहाँ से गायब है, अर्थात कूड़ा-करकट दिमाग से विदा हो गया है, फिर जो शेष बचा उसका दर्शन हुआ. वह अपने घर के द्वार पर है, ध्यानस्थ, भीतर सारा आकाश और सुंदर बगीचा देख रही है. हरे-हरे पेड़ जो आकाश तक ऊंचे हैं. नीला व सफेद बादलों वाला आकाश है. वह उड़ सकती है, मन के सोचने मात्र से पल में जहाँ-तहाँ विचरण कर रही है, शायद ऐसे ही स्वर्ग का दर्शन ध्यान में ऋषियों ने किया होगा. स्वप्न ही तो था वह, टूट गया तो सब तिरोहित हो गया, लेकिन अपने आप में टिकने की कला तो स्वप्न नहीं है, वही तो सत्य है. मन भी तो चेतना में उठी लहर ही है पर पागल यह नहीं समझता कि क्रोध करेगा तो खुद पर ही करेगा, यहाँ कोई दूसरा है ही नहीं ! दूसरे को दूसरा समझना ही तो सबसे मूल हिंसा है.

सद्गुरू ने आज अष्टावक्र की कथा कही. ध्यान अच्छा रहा, अनंतता का अनुभव हुआ. अभी-अभी क्लब की एक सदस्या से बात की, जो पति के रिटायरमेंट के बाद जा रही हैं. उनका जन्म जोरहाट में हुआ, गणित, सांख्यिकी व अर्थशास्त्र में बीएससी की डिग्री ली. गोहाटी से एमएससी की सांख्यिकी में. एमबीए भी करना चाहा पर विवाह हो गया, फिर बेटी मुन्मा का जन्म हुआ, फिर बेटा भार्गव. टीचर का जॉब किया. बचपन से ही गणित में तेज हैं, पति को भी मदद करती हैं. नृत्य का भी शौक है. इन सब बातों को आधार बनाकर वह उनके लिए विदाई कविता लिखेगी, जो क्लब में पढ़ी जाएगी.

कल रात स्वप्न में दीदी व छोटी भांजी को देखा. कल क्लब में कविता सबको अच्छी लगी. एक महिला ने नृत्य किया व एक ने गायन भी. आज का दिन कुछ अलग लग रहा है, मन बेवजह अपने-आप में नहीं है. इसका अर्थ है, संस्कार सोये पड़े रहते हैं, मिटते नहीं हैं. अभी बहुत मार्ग तय करना है, भीतर नया संस्कार डालना है, जो घट रहा है उसका साक्षी मात्र रहना है. कोई भी विकार देह पर अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहता है. जो कुछ भी शारीरिक कष्ट उसे हो रहा है वह इन्हीं विकारों के कारण है. मन को स्वच्छ करना होगा, अपने ही हाथों अपना नुकसान करना ठीक नहीं है. जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देखना होगा, परिपक्वता लानी होगी. इन्सान वृद्ध होने को आये पर अपने संस्कारों से छुटकारा नहीं पाता. उसे इस सत्य को औरों के साथ भी घटता हुआ देखना होगा. सभी अपनी-अपनी सीमाओं में कैद हैं, उसी में दुःख है.

कीचड़ में कमल उगता है, आज यह कहावत अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई. ध्यान से पूर्व मन जैसे कीचड़ में सना था पर ध्यान के बाद फूल सा पावन हो गया है. परमात्मा उसके साथ हैं हर पल, यह भाव दृढ़तर हो गया है, न जाने किन अशुभ कर्मों का फल था वह सब जो अब बहुत पीछे छूट गया है. अब तो प्रकाश है, संगीत है और गीत हैं जो बाहर आने को बेचैन हैं. भीतर कितना सुंदर संसार है, अनंत प्रेम से भरा, वे बाहर ही ठोकरें खाते रहते हैं. जब-जब एकांत मिलता है, उसकी साधना बलवती होती है लेकिन व्यस्तता बढ़ने के बाद मन संसार में ही उलझ कर रह जाता है. इस बार ऐसा नहीं होने देगी. परमात्मा ने उसके जीवन की डोर अपने हाथों में थामी है, वह उसे कभी भी गिरने नहीं देंगे.




Friday, March 24, 2017

पंछी और कलियाँ


नन्हे की मित्र के लिए उसने कविता लिखी थी, उसका जवाब आया है, उसने दिल को छूने वाला जवाब लिखा है. कल दिन भर वह ठीक रही पर रात बेचैनी से भरी थी. आश्चर्य होता है खुद पर, कहाँ सोचा था कभी कि डायरी के पन्नों पर अपनी हेल्थ रिपोर्ट लिखेगी एक दिन, लेकिन इसकी नींव रख दी गयी थी वर्षों पहले, जन्मते ही सम्भवतः..उनके सारे रोग नए नहीं होते, उनका आयोजन पहले ही शुरू हो चुका होता है.

आज नन्हे का जन्मदिन है, उसे फोन किया तो नहीं उठाया, शायद रात को जगता रहा हो, सुबह ही सोया हो. उसके लिए बधाई के फोन आये. मोरारीबापू साऊथ अफ्रीका पहुंचा गये हैं, उनकी कथा आ रही है टीवी पर. जून आज कोलकाता गये हैं. दिसम्बर में वे बंगलूरू आश्रम जायेंगे, इस बात को सोचने से ही कैसी पुलक उठती है. आज तन और मन दोनों हल्के हैं. सारे रोगों का कारण प्रज्ञापराध है. उनका तन कितना बहुमूल्य है, इसे स्वच्छ व स्वस्थ रखना कितना आवश्यक है. यह ज्यादा कुछ मांग भी नहीं करता, लगातार काम करता रहता है. ‘कम खाओ और गम खाओ’, यह नियम अपनाना होगा यदि भविष्य में भी स्वस्थ रहना है. आज ध्यान में अच्छा अनुभव हुआ, जून जब घर पर रहते हैं उसका ध्यान गहरा नहीं हो पाता. अब उनके आने पर भी सजग रहना होगा ! परसों वे आ जायेंगे.

कुछ देर में उसे एक परिचिता के साथ मृणाल ज्योति जाना है. जब कहीं जाना हो तो प्रतीक्षाकाल में कार के हॉर्न की आवाजें ज्यादा ही सुनाई देने लगती हैं, वैसे जिनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता. ‘लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन’ कितना जबर्दस्त है. आज ही उसने चाहा कि माली ग्यारह बजे से पहले आये, सो आ गया है. इस तरह तो उनका भाग्य उनके ही हाथों में है. वे जो चाहते हैं, वैसा ही सोचना आरम्भ कर दें तो प्रकृति उसका इंतजाम करने लगती है. आज सद्गुरू ने अपने जीवन के कुछ प्रसंग बताये. इक्कीस वर्ष की अवस्था तक वे दुनिया के सारे सुख-आराम देख चुके थे, विदेशों में घूम चुके थे. एक विश्व प्रसिद्ध संस्था के उत्तराधिकारी बन सकते थे, पर वे लौट आये और सेवा का मार्ग चुना. ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ की स्थापना की. अद्भुत है उनकी कहानी. ऐसे लोग दुनिया में विरले होते हैं, जो करोड़ों लोगों तक पहुंच पाते हैं, सभी उनसे प्रेम करते हैं.


जून आज आ रहे हैं. उनकी पसंद की ड्रेस पहनी है. प्रेम क्या होता है, इसका पता ईश्वर से प्रेम करने के बाद ही चलता है. इसीलिए संत-महात्मा युगों-युगों से उन्हें प्रभु की ओर चलने का मार्ग बताते आये हैं. परमात्मा उनके प्रेम का प्रतिदान अनंत गुणा देता है. एक बूंद जो सागर से बिछुड़ी थी, कितनी छोटी  थी और जब पुनः सागर में जा मिली तो अनंत गुणा जल उसे मिल गया. उनकी चेतना इस देह में कितनी नन्ही सी लगती है, एक चिंगारी हो जैसे या सूर्य की एक किरण और जब वह चिंगारी किसी तरह पुनः आग में गिर जाये तो...या सूर्य की किरण पुनः सूर्य में पहुंच जाये तो..कितना प्रकाश न भर जायेगा उसके भीतर; लेकिन एक बात यह भी है कि सूर्य स्वयं जाकर कलियों को खिला नहीं सकता, वह अपने हाथ बना लेता है किरणों को, जो आहिस्ता से सहलाती हैं और किरणें खिल जाती हैं; ऐसे ही अनंत परमात्मा स्वयं आकर सोए हुओं को कैसे जगायेगा, मानव उसका तेज सह ही नहीं पायेगा, वह संतों को अपना हाथ बना लेता है जो आहिस्ता से आकर जगाते हैं. कलियों के लिए किरणें संत से कम नहीं..पंछियों के लिए भी...ऊपर से तुर्रा यह कि फूल के भीतर जो भोजन बनता है वह भी सूर्य के बिना सम्भव नहीं. सूर्य उसके भीतर सदा ही है, पर वह जानता नहीं, मानव के भीतर भी परमात्मा के कारण ही चेतना है, पर वह जानता नहीं, वास्तव में स्वयं को ही जगाने आता है वह क्योंकि उसे स्वयं का अनुभव करना हो तो मन का आश्रय लेना होगा, उसके पास तो मन है नहीं..तो भक्त का मन भगवान ले लेता है और बदले में स्वयं को दे देता है, अदला-बदली हो जाती है और प्रेम का यह खेल गुपचुप चलता ही रहता है !      

Thursday, March 23, 2017

प्रोटीन बिस्किट


आज सुबह इस बात का अर्थ स्पष्ट हुआ कि यह जगत एक नाटक है, एक लीला है और उन्हें इसमें कुशलता से अपना पात्र निभाना है. जिस समय जो भी भूमिका मिले, उसे पूरी ईमानदारी से निभाते चलें तो कोई दुःख छू भी नहीं सकता, वे जो नहीं हैं, वह बनने का प्रयत्न करते रहते हैं और जो हैं उससे चूक जाते हैं, व्यर्थ के कर्मों का बंधन बांध लेते हैं. आज भी मौसम वर्षा का है, पंखे से ठंडी हवा आ रही है. इस समय उसका रोल एक लेखिका का है, एक कविता लिखेगी, इन्हीं भावों पर आधारित. कल से एक नई किताब पढनी शुरू की है, अच्छी लग रही है रूमी की कहानी. उसकी अपनी कहानी भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है.

आज सुना, शक्ति जब ऊपर के केन्द्रों में जाती है तो साधक के देखने की शक्ति बढ़ जाती है, लेकिन सत्य इन सबके पार है, वह देखने वाला है. ऊर्जा का सदुपयोग हो सदा इसके लिए सजग रहना है. कल नन्हा आ रहा है अपने दो मित्रों के साथ, जिनमें से एक लड़की है. उसने सोचा, देखे, ऊंट किस करवट बैठता है. बंगलूरू में ट्रैफिक ज्यादा है, प्रदूषण है हर तरह का. जिंदगी एक चुनौती है, जिसे उठाना ही होगा. वक्त ही बतायेगा कि भविष्य में क्या लिखा है.

मेहमान चले गये. आज पूरे एक हफ्ते बाद डायरी खोली है. पिछले दिनों ब्लॉग पर पोस्ट डालने के अलावा कुछ नहीं लिखा. आज मौसम का मिजाज गर्म है. इस समय सुबह के दस बजे हैं. पिताजी अपने कमरे में बैठे हैं, टीवी बंद है, अख़बार पढ़ चुके हैं. नन्हे का संदेश आया है, सवा नौ बजे, ऑफिस जा रहा था. आज अपेक्षाकृत स्वस्थ है नूना, पिछले दो दिन तबियत ढीली-ढाली सी थी, लेकिन भीतर आत्मा का दीपक ज्यों का त्यों जलता रहा, शक्ति भी बनी रही. अभी कुछ देर पूर्व ग्लूकोज का एक गिलास पिया, मुँह का स्वाद अभी भी बिगड़ा हुआ है. एकाध दिन में सामान्य हो ही जायेगा, लेकिन यह अस्वस्थता उसे बहुत बड़ा पाठ पढ़ा कर गयी है. नन्हे के कारण भी कई पाठ पढ़ने को मिले हैं. वे अपने बनाये पूर्वाग्रहों के जाल में इस कदर जकड़े रहते हैं कि जरा सा भी विपरीत होने पर उसमें कसमसाने लगते हैं. समाज में हर तरह के लोग हैं, आदिकाल से होते आये हैं. हरेक अपनी तरह से जीता है. समाज कुछ नियम बनाता है जिन्हें पालन करना होता है, लेकिन अपनी जीवनचर्या के लिए किसी को नीचा देखना व्यर्थ है. यह खुद को नीचा गिराने जैसा है. हरेक स्वतंत्र है और अक्सर वे जिन बातों के लिए अन्यों को दोष देते हैं, जरूरत पड़ने पर खुद भी वही कर रहे होते हैं. अपने लिए एक कसौटी व दूसरों के लिए दूसरी कसौटी यही तो दम्भ है. इस तरह तो इस जगत में कोई भी दोषी नहीं है, यहाँ पूर्ण न्याय है. परमात्मा हरेक के भीतर है यदि व्यक्ति उसकी ओर नजर उठाकर देखे तो सारे प्रश्न गिर जाते हैं, भीतर समाधान मिल जाता है किसी के प्रति कोई राग-द्वेष नहीं रहता. जीवन एक सहज धारा की तरह बहने लगता है !
आज गुरु पूर्णिमा है, नैनी ने एक पुत्र को जन्म दिया है. उसे आश्चर्य हुआ. दो-दो बार तो संयोग नहीं हो सकता. उसकी बिटिया का जन्म गुरूजी के जन्मदिन पर हुआ, माँ ने उसका नाम मीरा रखा था. बेटे का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन, उसकी भक्ति भावना अवश्य सद्गुरु तक पहुंच गयी है.  

कल कुछ नहीं लिखा. स्वस्थ नहीं थी. आज सुबह अस्पताल गयी थी, शाम तक रिपोर्ट मिल जाएगी, सब कुछ सामान्य ही होगा. भोजन के प्रति जो दृढ आसक्ति थी, उसे छुड़ाने के लिए ही यह सब प्रकृति द्वारा रचा गया है. ‘शिव’ वह नई आत्मा जो नैनी के गर्भ से जन्मी है, अच्छा भाग्य लायी है. इतने शुभ दिन उसका जन्मना और इतनी सरलता से माँ को कष्ट दिए बिना धरती पर आना भी यही बताता है. उसके प्रति सहज ही स्नेह उमड़ता है, नवजात शिशु कितना निष्पाप होता है.

कल शाम बेहद तेज वर्षा हुई, मूसलाधार वर्षा. जून को आने में देर हुई, उसे लगा वह डाक्टर से उसकी मेडिकल रिपोर्ट डिस्कस कर रहे होंगे. लिवर में कुछ वृद्धि मिली है उसकी पाचन संबंधी सारी परेशानियां उसी के कारण हो रही हैं. अगले एक महीने तक दवा खानी है. देह में अतिरिक्त गर्मी के कारण ऐसा होता है. पर इन सब बातों के बावजूद उसकी भीतरी ऊर्जा वैसी ही है. परमात्मा की कृपा रूप जो कष्ट मिला है, उसने जीवन को एक नई दिशा दी है. व्यर्थ को छूट ही जाना चाहिए. जून उसके लिए प्रोटिनेक्स और प्रोटीन बिस्किट ले आए हैं. प्रोटीन से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ेगी, गुरूजी कहते हैं देह का सम्मान करो. उसने अपने लिवर को न जाने कितनी बार जलाया है. क्रोध, ईर्ष्या और भय के कारण, आज उससे क्षमा मांगी, उसे स्नेह भेजा, आगे ऐसा न करने का वचन भी देना चाहिए. परमात्मा उसके जीवन से सभी अवांछित बातों को हटाता जा रहा है. उससे परमात्मा को कोई काम होगा भविष्य में तभी तो वह उसे तैयार कर रहा है. इस वक्त भी जो कुछ उससे हो रहा है, वह उसी का है.   



Wednesday, March 8, 2017

चने की दाल की कढ़ी


याद आता है बहुत दिन पहले ओशो को सुना था जिसकी तीसरी आँख खुलने वाली होती है उसे पहले एक आंख स्वप्न में या ध्यान में दिखाई देती है, उस दिन स्वप्न में गुरूजी ने जो उसे इतनी बड़ी सी आँख दिखाई थी वह संभवतः इसी की पूर्व सूचना थी जो दो-तीन दिन बाद उसने अनुभव किया, अपने भीतर का आकाश और चाँद-तारे..उनके भीतर कितने रहस्य भरे पड़े हैं. उस दिन की वर्षा जिसमें मन तो भीग गया पर तन सूखा ही रहा ! आज एकादशी है, उसका अंतर इतना हलका महसूस कर रहा है जैसे अभी हवा में उड़ जायेगा. कल शाम को टहलते समय भी भारहीनता का अनुभव हो रहा था. आज भी मौसम सुहावना है. वर्षा अभी थमी है. दीदी आज यात्रा पर निकल रही हैं उनसे बात हुई, छोटी बहन व मंझली भाभी से बात की. उस दिन की कविता शायद शायद कुछ ही समझ सकें, जिसका अनुभव न किया हो उसे समझना मुश्किल तो है ही. परमात्मा की अमृत वर्षा बरस ही रही है, जब शिष्य तैयार होता है तो गुरू अपने-आप प्रकट हो जाता है. यह बात बिलकुल सच्ची है, वह इसकी गवाही दे सकती है. कल की पुरानी कहानी में बात ‘धन’ तक आ पहुंची है, अब भरपूर धन है उसके पास, परमात्मा ने हर तरह से उसे मालामाल कर दिया है, वह बरस ही रहा है अनवरत...

आज सुबह ध्यान में बैठी तो चालीस मिनट में ही उठ जाना पड़ा. देह में भारीपन लग रहा था, शरीर को स्वस्थ रखने में ही कितनी ऊर्जा चली जाती है उनकी. कल शाम वह स्कूल गयी थी, एक बच्चे के पैर पर काफी फुंसियों के निशान थे, गर्मी के कारण कमरे में गंध भी थी. पंखा शायद नहीं था या था ध्यान नहीं दिया, पर चल नहीं रहा था. निर्धनता का अभिशाप सबसे बुरा है, लेकिन जहाँ तक अभी शिक्षा नहीं पहुँची, सडकें नहीं पहुँचीं, बिजली नहीं पहुँची, वहाँ अमीरी कैसे पहुंच सकती है. कल ब्लॉगर रश्मिप्रभा जी ने कहा कि एक दिन के लिए शासनडोर की बागडोर आपके हाथ में आ जाये तो आप क्या करेंगे. करने को कितना कुछ है, यहाँ  कभी कुछ पूर्ण होता ही नहीं. जून आज पिताजी की आँखें दिखाने तिनसुकिया जायेंगे.

आज आखिर वह चने की दाल की कढ़ी बना रही है जिसकी रेसिपी अख़बार में पढ़कर पिताजी ने कई बार बताई है. आज भी मौसम अच्छा है. सुबह वर्षा के कारण वे टहलने नहीं जा सके, शाम को जायेंगे. उसका ध्यान आजकल गहरा नहीं हो पा रहा है, वैसे तो मन हर पल ही ध्यानस्थ रहता है, सब कुछ स्वप्न जो लगता है, न जाने कब जीवन की शाम आ जाये और यह स्वप्न टूट जाये, इससे पूर्व ही असंग हो जाना बेहतर है. अनंत काल उनके पीछे है और अनंत काल उनके आगे है, अनंत को पाना हो तो इस वर्तमान के नन्हे से पल में जागना होगा जिसके एक क्षण पूर्व भी अनंत है और एक क्षण बाद भी अनंत है, तो वहाँ भी वही हुआ. आज सुबह एक पंक्ति मन को छू गयी थी, ‘घर खो गया है’
आज शरणार्थी दिवस भी है इसी पर कुछ लिखेगी. एक और वाक्य मन में गूँजा कि ‘जो उन्हें मिला ही हुआ है, उसे वे न देखने का नाटक करते हैं और बाहर भी उसी को खोजते हैं, जो छूट ही जाने वाला है उसे पकड़ने का निरर्थक प्रयास करते हैं’. मानव की पीड़ा का यही कारण है, सार को असार में खोजते हैं, असार में कुछ असार भी नहीं तो सार कैसे मिलेगा. जो अभी बीज है उसमें फूल खोजते हैं, पहले उसे बोना होगा धरा में, शीत, ताप सहना होगा.


तारों भरा आकाश


जीवन स्वप्न है, वे रात में जो स्वप्न देखते हैं उनके अलावा दिन भर में न जाने कितने स्वप्न देखते हैं, जिनका कोई आधार नहीं. कल रात उसके जीवन की अभूतपूर्व रात्रि थी. भगवद गीता के चार अध्याय पढकर सोयी थी. तारों भरा आकाश दिखा, चन्द्रमा दिखा और न जाने कितने दृश्य दिखे, लेकिन जगते हुए, वह जागरण भी और था, वह निद्रा भी और थी. कब सुबह हो गयी पता ही नहीं चला. सुबह से कई बार स्वयं को स्वप्न देखते हुए जगा चुकी है. उनका सारा जीवन एक लम्बा स्वप्न ही तो है, अब लगता है परम लक्ष्य भी इसी जन्म में मिलेगा. परमात्मा उसे कदम-कदम आगे बढ़ा रहे हैं और किस तरह उसे एकांत का अवसर भी मिल रहा है. परिचित एक-एक कर जा रहे हैं, समय बचता है साधना के लिए पूर्ण सुविधा होती जा रही है. इस बार तो नेट भी नहीं चला सो काफी समय उसके कारण भी बच गया. परसों जून आने वाले हैं, अभी दो रात्रियाँ हैं जिनमें उसे और गहरे अनुभव हो सकते हैं. कल एक सखी का जन्मदिन है, उसने उसकी साधना में अपरोक्ष रूप से बहुत सहायता की है. मानस के छह रिपुओं में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर को दूर करने के लिए उन्हें पहले देखना आवश्यक था, उन्हें अपने भीतर वह देख पायी, वह उसका आईना बनी. इसके लिए उसका कृतज्ञ होना ही चाहिए. सद्गुरू जैसे उसके सद्गुणों के लिए आईना बने. उनके जीवन में घटने वाली हर छोटी-बड़ी घटना उनके जीवन को गढ़ती है. हर क्षण वह परमपिता उनके साथ है.  क्या नहीं कर सकता वह, अचिन्त्य है, अनुपम है, अनोखा है...उसे कोटि कोटि प्रणाम  !

कल रात भी अनोखी थी. कृष्ण का श्लोक अब स्पष्ट हो रहा है कि योगी तब जगता है जब अन्य सोते हैं. आज सुबह से उसे उसका चेहरा कुछ बदला-बदला लग रहा है. मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल को भी लगा होगा जब शाम को उन्होंने कहा वह उससे योग सीखना चाहती हैं और आज ही आएँगी. हवाओं को भी खबर लग जाती है कि कहीं कोई फूल खिला है. सद्गुरू को भी खबर लग गयी होगी, उन्हें तो वर्षों पहले ही लग गयी थी. कितना अद्भुत है सब कुछ. कितना अनोखा है परमात्मा !

नन्हा सा पल खो न जाये
पागल मन यह सो न जाये
इस पल में ही राज छुपा है
जाग गया जो मिला खुदा है
सपनों की कुछ धूल छा गयी
स्वर्णिम रवि न पड़े दिखाई
आशाओं के पत्थर थे कुछ
कोमल पुहुप लता कुम्हलाई

उनके भीतर अनंत आकाश है, अनंत ऊँचाई है और अनंत गहराई है. अनोखे अनुभव हो रहे हैं उसे आजकल. जब कोई भीतर की यात्रा पर निकलता है तो सारी कुदरत उसका साथ देती है. कितना पावन होता है वह क्षण जब किसी के भीतर परम की प्यास जगती है. पहला अनुभव तो सम्भवतः उसी की कृपा से होता है, लेकिन उस अनुभव तक भी भीतर की कोई गहरी आकांक्षा होती है. भीतर तो वही है तो वही निकलता है स्वयं की खोज पर...आकाश में सब घटता है पर कुछ भी नहीं घटता. आकाश एक है, झोंपड़ी का हो या महल का, अरूप एक है रूपवान का हो या कुरूप का. नजर दीवारों पर हो तो भेद नजर आएगा, नजर भीतर के आकाश पर हो तो अभेद ही है..
घाटियों में बसे हैं लोग
बारिशों से डरे हैं लोग
बिजलियों की चमक
भर से कांपते हैं लोग !


आज उससे कविता नहीं बन रही है, लगता है अब परमात्मा उससे कुछ और काम कराना चाहता है. पहले कैसे झर-झर शब्द बहते थे, अब भीतर मौन है, अब शब्दों की क्या जरूरत अब तो मन की धारणा काफी है. अब न कुछ सिद्ध करना है न कुछ पाना है जो पाने वाला था वह खो गया और जिसे सिद्ध करना था वह माया सिद्द्ध हो गया था. भीतर का भय भी नष्ट हुआ, श्वास का कंपन गया, अकंप हृदय चाहिए तो भाव काफी है. सामने वाला चाहे समझे न समझे भीतर तो पता चल ही गया कि कंपन हो गया क्रोध की हल्की सी रेखा भी यदि छा गयी, भीतर पता चल ही जाता है, ईर्ष्या की धूमिल पंक्ति भी पता देती है, शील आवश्यक है और तब भीतर ही सब मिल जाता है, असली कवि स्वयं ही कविता हो जाता है ! 

Tuesday, March 7, 2017

श्वेत गैया


आज असमिया सखी के पुत्र का जन्मदिन है, जो कुछ वर्ष पहले तबादले के कारण यहाँ से चली गयी है, उसने फोन किया, वह खुश है कि एक और सखी वह जा रही है. यह संसार ऐसा ही है कोई आता है, कोई जाता है. वे देखने वाले हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं. कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा. नन्हा, पिताजी और जून तीनों ने मिलकर गुरूजी के लिए दोपहर के भोजन का इंतजाम किया है. वे कमरे में भोजन कर रहे हैं और वे सभी बाहर खड़े हैं, वह भी बाहर है. गुरूजी हाथ धोने के लिए बाहर आते हैं, उन्होंने श्वेत वस्त्रों पर भूरे रंग का लम्बा चोगा पहना है, जब लौटते हैं, वह उन्हें प्रणाम करती है. उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं है, वह उनके चरणों पर झुकती है और मन में सोचती है यह उसे पहचानते नहीं, कि उनका कोई संबंध नहीं रहा, तब वह सिर ऊपर उठाती है कि एक आँख दिखाई पडती है. सामान्य आँख से दस गुना बड़ी रही होगी. उसका एक-एक भाग पूरा स्पष्ट था, उसके भीतर की सफेदी, काला भाग, द्रवता तथा ऊपर भौंहें भी, फिर वह आंख अपना तारा नीचे करती है और भीतर से एक और काला तारा दिखाई पड़ता है, एक आँख में दो पुतलियाँ देखकर वह आश्चर्य से बेहोश होकर गिरने लगती है, उसे सम्भाल लेते हैं जो लोग वहाँ खड़े हैं. भीतर भाव उठता है कि वह समाधि में प्रवेश कर रही है. इस स्वप्न का अर्थ यही हो सकता है कि परमात्मा की नजर हर वक्त उन पर है, वह एक नहीं दो-दो पुतलियों से, विशाल नेत्र से उन्हें देखता रहता है. कल रात भर वर्षा होती रही, अभी रुकी हुई है.

जून आज मुम्बई गये हैं, वह से बंगलूरू जायेंगे. दोपहर का वक्त है, एक पंछी की आवाज रह रहकर आ रही है. माली को बगीचे में कुछ ज्यादा काम बताया तो वह नम्र शब्दों में कहने लगा कल सुबह उठा दें तो वह कर देगा. सत्संग का असर पड़ने लगा है उस पर. आज पहली बार उसने एक ब्लॉगर की पोस्ट पर कमेन्ट करने के बाद लिखा, नई पोस्ट पर उनका स्वागत है, देखें वह आती हैं या नहीं. आज पिताजी ने चौलाई का साग साफ करते समय वही सब कहा जो माँ कहा करती थीं, तब वे उन पर हँसा करते थे. उन्होंने भीगे स्वरों में उससे यह भी कहा कि उन्हें बीस इंच की एक साइकिल चाहिए. जून के आने पर वह उनसे कहेगी कि इस इच्छा का मान रखें. वह बता रहे थे, चौदह-पन्द्रह वर्ष की उम्र से साइकिल चलाना शुरू किया था. और अगले साठ वर्ष तक चलाते रहे. अब इतना तो अभ्यास उन्हें है ही कि बिना गिरे चला सकें. उन्होंने जीवन भर दूसरों के लिए कार्य किया, स्वाभिमान से जीये. आज अपने मन की बात कहकर उन्हें अवश्य अच्छा लग रहा होगा.  

कल रात उसने स्वप्नों का स्वप्न देखा..The Ultimate Dream ! परसों एक गाय को देखा था, जो बिलकुल श्वेत थी, वह दौड़ती हुई आ रही है, तीव्र गति है उसकी. वह और गाय दोनों एक maze में घुसते हैं, वे नाच रहे हैं और गा रहे हैं, बहुत सुंदर गीत है वह, कुछ दिन पूर्व भी उसने स्वप्न में एक मधुर धुन बनाई थी. कल तो यह देखा कि वह यशोदा है कृष्ण की माँ जो पुनः इस जन्म में कृष्ण के प्रति प्रेम से भर गयी है और वह कृष्ण और कोई नहीं गुरूजी हैं, बाबा रामदेव को भी देखा एक क्षण के लिए, उनके चेहरे पर अप्रतिम तेज है. इस बात का भान होते ही उसके जीवन की बहुत सारी घटनाएँ स्पष्ट होने लगी हैं. दो दिन से नेट नहीं चल रहा है, यह भी अच्छा ही है. वह अन्यों को यश देने के लिए है, यश बटोरने के लिए नहीं. यश की कामना जैसे पूरी तरह गिर गयी है, गिर गया है अहंकार भी, गुरूजी के प्रति उसकी भक्ति का राज भी अब समझ में आने लगा है. आज उन्हें भी वर्षों बाद एक पत्र लिखेगी.   

Sunday, March 5, 2017

बरसे बदरिया सावन की


प्राणायाम कराने से उसके एक छात्र में काफी बदलाव आ रहा है, जो पढ़ते-पढ़ते ही सोने लगता था. अभी कुछ देर पहले ही वह पढ़कर वापस गया है, आज काफी सचेत था, उसका ध्यान टिकने लगा है. उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि इस बालक पर अपनी कृपा बनाये रखे. सुबह एक सखी से बात की, वे लोग मकान बदलने वाले हैं, इसी घर की जब वे नये-नये आये थे, कितनी तारीफ़ की थी पर अब इसकी कमियां नजर आ रही हैं. नये घर में सब अच्छा ही होगा यह भी तो नहीं कह सकते, फिर भी बेहतर के लिए प्रयास तो निरंतर चलता ही रहता है, और चलना भी चाहिए. कल उसने एक स्थानीय लेखक की कविताओं की एक किताब के लिए प्रस्तावना लिखी. आज धूप तेज है. कल सुबह सड़क किनारे के पेड़ से आंधी में गिरे आम लाने पर उसने पिताजी को टोका तो वे आज न फूल ही लाये न आम, घर में खिले चाँदनी के फूलों को सजाया है. अपने ही घर में जब सब कुछ हो तो बाहर से लाने की क्या आवश्यकता है, पर मानव के भीतर का नन्हा बच्चा कभी बूढ़ा नहीं होता. अनंतपुर स्टेशन पर एक भयंकर रेल दुर्घटना हो गयी आज सुबह, काफी लोग मृत हुए, काफी घायल हुए, अभी भी कुछ लोग फंसे हुए हैं. जीवन में वैसे ही कितने दुःख होते हैं, ऊपर से यह भयंकर दुःख..

आज फिर वर्षा हो गयी है, मौसम सुहावना है. नन्हे ने कल बताया अगले महीने वह आ सकता है. रात को एक अद्भुत स्वप्न देखा, उसे लग रहा था वह जाग रही है, ध्यान में है, दो काली चीटियाँ दिखती हैं, बिलकुल जीवंत, चलती हुईं, उन्हें देखती है तो कंधे के पीछे से किसी के हँसने की आवाज आती है और यह वाक्य भी, ‘अब मृत्यु ही शेष है जीवन नहीं’ और तभी एक प्रवचन सुनाई देता है स्पष्ट था एक-एक शब्द उसका, वह मुस्का रही है, यह आभास भी हुआ यानि स्वयं को मुस्काते देखा..कैसा अनोखा स्वप्न था यह ! टीवी पर बापू द्वारा इजराइल में गायी रामकथा का प्रसारण हो रहा है, शायद दुनिया का कोई कोना नहीं बचा होगा, जहाँ वह न गये हों. राम का नाम विश्व भर में गूँज रहा है. अभी कुछ देर पहले उपनिषद के उपदेश पढ़े, Indian Philosophy में से, जो पिछली बार पब्लिक लाइब्रेरी से लायी थी. आज कान्हा से बातें भी हुईं, पहली बार कॉफ़ी भी ऑफर की, जागते रहने का मन्त्र उसने दिया. वे जागते हुए भी स्वप्न देखते हैं अर्थात सोये रहते हैं. पिताजी टीवी नहीं देख रहे हैं, बरामदे में बैठे हैं. यूँही बिना कुछ किये बैठे रहना उन्हें अच्छा लगता है. बड़े भाई की बिटिया का दसवीं का परीक्षा परिणाम आ गया, बहुत अच्छा रहा, उसे ९.५ की उम्मीद थी, ९.८ रहा, भैया-भाभी बहुत खुश हैं और सारा परिवार ही खुश है. सरदारनी आंटी की पोती के बारहवींमें ९७.२% अंक प्राप्त किये हैं, उसे याद आया उनके समय में ६०% अंक प्राप्त करने पर ही घर में लड्डू बांटे जाते थे.

आज शाम वे पूजा कक्ष की जगह आंगन में सत्संग करने वाले हैं, नैनी के परिवार को भी शामिल होने को कहा है शायद एकाध और भी परिवार आयें, धीरे-धीरे इसमें और भी लोग जुड़ते जायेंगे, आरम्भ के लिए आज का दिन उत्तम है. कल उसका जन्मदिन है और गंगा दशहरा भी. पिताजी ने बनारस से पंचाग मंगवाया है उसमें देखकर बताया. उसने कल एक कविता ‘मस्ती’ पर लिखी थी, पर लोग इतने दुखी हैं कि मस्ती की बात उन्हें जंचती ही नहीं. अभी-अभी कृष्ण भक्त प्रवीर की कथा पढ़ी, भक्त को मरना ही पड़ता है, बिना मरे कोई भक्ति नहीं कर सकता, तभी तो संतों ने गाया है, भक्ति करे कोई सूरमा..

कल शाम का सत्संग बहुत अच्छा रहा, चार बच्चे, चार बड़े, सद्गुरू की उपस्थिति स्पष्ट महसूस हो रही थी. उसके बाद उसे जिव्हा पर नियन्त्रण रखने का उपदेश भी दिया एक लीला रच के. बाद में लॉन में एक अभूतपूर्व अनुभव हुआ, उसका स्मरण होते ही अब भी रोमांच होता है. वह घास पर बैठी थी कि अचानक घास प्रकाश से भर गयी, फिर उसमें पारदर्शी धुंध सी निकलने लगी, जो ऊपर उठकर नीचे गिरने लगी, फिर तो बाकायदा प्रकाश की वर्षा होने लगी झर झर झर..बूँदें टपक रही हों जैसे, मीरा का भजन याद आया, बरसे बदरिया सावन की..यह इसी वर्षा को देखकर उन्होंने लिखी होगी. अमृत की वर्षा का जिक्र कबीर ने भी किया है. परमात्मा उनके साथ है, इसकी खबर वह कई रूपों में देता है. आज एक सखी अपनी बिटिया को छोड़ने मुम्बई जा रही है, जहाँ वह एमबीए की पढ़ाई करेगी. एक अन्य सखी नाराज है उससे, जिसका एक अनुरोध वह मान नहीं पायी थी, उसने प्रार्थना की, ईश्वर उसे सद्बुद्धि दे और तत्क्षण अपने लिए भी उसने यही प्रार्थना की.             
   


Friday, March 3, 2017

अँधेरे के प्राणी


दोपहर के तीन बजने को हैं, आज धूप तेज है, ग्रीष्म ऋत है सो गर्मी होना स्वाभाविक है. जून चार-पांच दिनों के लिए अहमदाबाद गये हैं. उसने सोचा गर्मियों के वस्त्र सहेज कर रखने और सर्दियों के वस्त्र बाहर निकलने का यही उचित समय है. कल रात तेज वर्षा, आंधी, तूफान के कारण बिजली चली गयी. घोर अंधकार छा गया, बाहर भी भीतर भी. पल भर के लिए एक अजीब सा भय उत्पन्न हो गया. भीतर न जाने कितने संस्कार दबे हैं. भय का संचार होते ही वे जग जाते हैं. जैसे अँधेरे में सारे रात्रि के जीव निकल आते हैं वैसे ही मन यदि तनिक भी भय का शिकार हुआ तो भूत बनकर कुसंस्कार चिपक जाते हैं. प्रकाश होते ही सब जीव चले जाते हैं वैसे ही ज्ञान का प्रकाश होते ही वे भी जल जाते हैं. साधना के द्वारा उन्हें पूरा नष्ट करना होगा, ताकि घोर अंधकार में भी मन अभय का पात्र ही बना रहे.

उस दिन से शुरू हुई वर्षा आज थमी है, पर हवा ठंडी है, स्वेटर पहनना पड़े इतनी ठंडी. आज सुबह सुंदर व्याख्यान सुना, शब्दों को वे सुनते हैं, कानों को भले लगते हैं पर थोड़ी ही देर में अपना असर खो देते हैं. उसके अर्थ पर जब ध्यान हो, अर्थ में मन टिक जाये, वे अर्थरूप ही हो जाएँ तभी शब्दों का काम पूरा होता है.

कल दोपहर एक सखी के यहाँ हालैंड वासी एक आर्ट ऑफ़ लिविंग के स्वामी से भेंट हुई, वह बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं तथा संस्कृत में धाराप्रवाह श्लोक भी. शाम को जून के दो मित्र आए, समय बदलता रहता है, एक सा नहीं रहता. कभी वे सब परिवार एक साथ बैठकर भोजन करते थे, अब सब दूर-दूर हो गये हैं. मृणाल ज्योति का एक बच्चा जिसे कई रोग एक साथ थे, कल रात नींद में ही चल बसा. उस दिन वह स्कूल गयी थी तो हॉस्टल के कुछ बच्चे मिले थे, पता नहीं उनमें से कौन सा था.

कुछ दिनों से नन्हे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उससे बात करके उसने कुछ सोचा और जून को एक पत्र लिखा, ताकि वापस आकर वह इसे पढ़े. उन्होंने इकलौते पुत्र को बचपन में बहुत स्नेह से पाला, लेकिन उसकी युवावस्था में उसे अकेला छोड़ दिया, अठारह वर्ष की उम्र बहुत नाजुक होती है. कोटा में उसे हॉस्टल में छोड़ आए थे तो वह बहुत तनाव में रहा होगा. घर की सुरक्षा से दूर एक अनजान शहर में...फिर कालेज में कितनी हिंसा और तनाव झेलना पड़ा, अच्छे पल भी यकीनन थे पर वह कहते हैं न कि नकारात्मक की ओर झुकने की प्रवृत्ति मानव में सहज ही होती है. उसे लगता है बंगलुरू में भी उसे कार्यभार और जीवन की कठिनाइयों से अकेले ही जूझना पड़ रहा है. उसे लगता है पुत्र के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने में उनसे कुछ चूक अवश्य हुई है. वे एक-दूसरे के प्रति जिस तरह पूर्ण समर्पित हैं वैसे ही उसके प्रति नहीं हो पाए. उसने लिखा, जून को अब मजबूत बनना होगा, उसके बिना रहने की आदत डालनी होगी. कुछ दिनों के लिए वह नन्हे के साथ रहना चाहती है. उसे नया जीवन शुरू करना है, जिसके लिए उसे मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए. उसे उनका साथ सदा ही चाहिए था पर वे अपने जीवन में इतना खोये थे कि उसके साथ रहकर उसे सहारा नहीं दे सके. वह कितनी-कितनी परेशानियों को अकेला ही सहता रहा, उसने कभी उन्हें अपना राजदार नहीं बनाया. अब समय आ गया है पुत्र के लिए अपने सुख के त्याग का समय, उसे अपना कर्त्तव्य स्पष्ट दिखाई दे रहा है. उनका शेष जीवन उसके लिए हो, उसे जीवन में अभी प्रवेश करना है. यही उम्र है जब उन्होंने विवाह बंधन में बंधकर नया जीवन शुरू किया था और उन्हें परिवार का पूर्ण सहयोग था. उसने उम्मीद की, जून जब यह पत्र पढ़ेंगे, उसकी बात समझ रहे होंगे.  

    

Wednesday, March 1, 2017

नीला आकाश


घर आने के बाद व्यस्ततता कुछ ऐसी रही कि एक हफ्ता कैसे निकल गया पता ही नहीं चला. आज कई दिन बाद धूप खिली है, वह झूले पर बैठी है, विटामिन डी का सेवन करते हुए. भोजन बन गया है, जून का इंतजार करते हुए पिताजी टीवी देख रहे हैं. शब्द फिर जैसे उतरने लगे अपने आप ही..

हवा सांय-सांय की आवाज लगाती
बहती जाती है
पेड़ों के झुरमुटों से
सुनहली धूप में चमक रहा होता है
जब घास का एक एक तिनका
किसी तितली के इंतजार में फूल
आँखें बिछाए तो नहीं
बैठा होता डाली के सिरे पर..
सूनी सड़क पर एकाएक
गुजर जाती है कोई साईकिल
और ठीक तभी दूर से
आवाज देती है गाड़ी
स्टेशन छोड़ दिया होगा किसी ट्रेन ने
हाथ हिल रहे होंगे, प्लेटफार्म और
ट्रेन के कूपों से बाहर हवा में
जाने किस किस के....  
आकाश नीला है
और श्वेत बगुलों से बादल
इधर-उधर डोल रहे हैं
एक पेड़ न जाने किस धुन में बढ़ता चला गया है
बादल की सफेद पृष्ठभूमि में
खिल रहा है उसका हरा रंग
जैस सफेद चादर पर हरे बूटे...
रह रह के हवा झूला जाती है झूला
जिस पर बैठ कर लिखी जा रही है कविता
परमात्मा इतना करीब है इस पल कि
नासिका में भर रही है उसकी खुशबू
और कानों में गूंज रही है बादलों की गड़गड़ाहट


अप्रैल के तीसरे साँझ की सलेटी साँझ..कोकिल रह रह कर कू..कूकू..कू..कह उठती है अमराई में. गुलमोहर की शाखें हवा में भर रही हैं अपने भीतर ओज और सुवास, ऋतू आने पर खिलने के लिए, नाच रहे हैं पीपल के गुलाबी नव पल्लव, गुड़हल का एक लाल फूल तोड़ कर डाल गया है कोई बच्चा हरी घास पर..झूम रही हैं गुलब की कलियाँ हवा के झोंकों संग. आकाश बादलों से घिरा है और कालिमा गहराती जा रही है. ठंडे लोहे के झूले का स्पर्श पैर की तली को शीतलता से भर रहा है. पेड़ अब काले होते जा रहे हैं. हवा जब माथे से बालों को पीछे सरका देती हैं तो मानो उसी का हाथ हो और तन पर चढ़ जाता है कोई नन्हा कीट तो लगता है वही मिलने आया है..कितना सुंदर है यह सब..