Monday, December 22, 2014

पूजा का पंडाल


जागरण में सुने आज के वचन उसके मन के भावों से कितने मिलते-जुलते हैं. एकमात्र ईश्वर ही उनके प्रेम का केंद्र हो, जो कहना है उसे ही कहें, अन्यों से प्रेम हो भी तो उसी प्रेम का प्रतिबिम्ब हो. परमात्मा की कृपा जब बरसती है तो अंतर में बयार बहती है, अंतर में तितलियाँ उड़ान भरती हैं, अंतर की ख़ुशी बेसाख्ता बाहर छलकती है ऐसे प्रेम का दिखावा नहीं होता. वह अपनी सुगंध आप बिखेरता है. दुनिया का सौन्दर्य जब उसके सौन्दर्य के सामने फीका पड़ने लगे, उस सत्यं शिवं सुंदरम की आकांक्षा इतनी बलवती हो जाये ! उसके स्वागत के लिए तैयारी अच्छी हो तो उसे आना ही पड़ेगा, अंतर की भूमि इतनी पावन हो कि वह उस पर कदम रखे बिना रह ही न सके ! स्वयं को इतना हल्का बनाना है कि परमात्मा रूपी सूर्य उन्हें अपनी ओर खीँच ले. आदि भौतिक दुनिया में हैं दिव्य दुनिया में जाना है. आत्मबल वहीं से मिलता है. सदैव प्रसन्न रहना ही ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है. बाबाजी कहते हैं, दिले में तस्वीर यार है जब चाहे नजरें मिला लीं..परिस्थिति कैसी भी हो अपने भीतर के नारायण पर दृढ श्रद्धा हो तो हर बाधा हल हो जाती है.


कल वे पूजा देखने गये, पहले कितनी ही बार कितने पूजा-पंडालों में गयी है लेकिन वह जाना अब लगता है व्यर्थ ही था. वे मात्र मूर्ति को देखते थे, भीड़ को देखते थे और चमक-धमक को, जो आँखों को कितनी देर सुख दे सकती थी, पर कल उसे मूर्तियों के पीछे छुपी भावना स्पष्ट दीख रही थी. उनकी आँखें बोलती हुई सी प्रतीत हो रही थीं. ईश्वर जैसे उन मूर्तियों के माध्यम से उसके अंतर में प्रवेश कर रहे थे. लोग जो वहाँ आये थे, पुजारी या नन्हे बच्चे, भक्त लग रहे थे. पवित्रता का अनुभव हो रहा था, कैसी अद्भुत शांति. सब कुछ जैसे किसी व्यवस्था के अंतर्गत धीमे-धीमे से किया जा रहा था. सबके पीछे जैसे कोई महान अर्थ छुपा हुआ था. ईश्वर के कार्य भी कितने रहस्यमय होते हैं. वह पंडाल दर पंडाल उसे अनुभूतियों से तृप्त कर रहा था, उसकी निकटता कितनी मोहक थी. मूर्तियों को गढ़ने वाले, उन्हें रंगने वाले, वस्त्र बनाने, पहनाने वाले, पंडाल बनाने वाले अनेकानेक लोगों के प्रति, उन भक्त आत्माओं के प्रति कितनी निकटता अनुभव हो रही थी. कितने लोगों ने अपने अंतर की सद्भावना का प्रतिरूप उन मूर्तियों में गढ़ा था, वे कितनी सजीव लग रही थीं, जैसे बोल ही पड़ेंगी. उन्हें छोड़कर जाते समय पीड़ा भी हुई और यह महसूस भी हुआ कि ईश्वर पग-पग पर मानव को संरक्षित करते हैं, वह हर क्षण उसके साथ हैं. आज सुबह art of living की एक सदस्या से बात हुई जो तेजपुर में रहती हैं. नन्हा और जून दोनों घर पर हैं, पूजा का अवकाश आरम्भ हो चूका है. कल उसने शास्त्रीय संगीत के चार कैसेट भी खरीदे, जिन्हें अभी सुनना है.

Sunday, December 21, 2014

साधना के सोपान


जो कण-कण में व्याप्त है, जो घट-घट में बोल रहा है, जो स्वयं चेतन है पर जड़ रूप  में प्रकट हुआ है, वही परमात्मा है. जो निर्गुण होते हुए भी सगुण रूप धरता है, उसी की एकमात्र सत्ता है, वही है जो भीतर तृप्ति का अनुभव कराता है. आनंद स्वरूप, सत्य स्वरूप, शांत और अनंत वह परब्रह्म सर्व व्यापक है, पर वही अपना आप है जिसे ढूँढने न तो कहीं जाना है न शास्त्रों को घोट-घोट कर पढ़ना है, न ही घोर तपस्या करनी है बल्कि मन को सदा उससे संयुक्त रखना है. शांत, सत्य और आनंद स्वरूप उसका ध्यान करना है. वही उसे निकट लायेगा, मन जब उसी के चिन्तन में डूब जायेगा तो न कोई अभाव रहेगा न दुःख, न चाह, सारा विषाद न जाने चला जायेगा. जैसा कि उसका चला गया है और सदाबहार मुस्कुराहट ने अपना घर बना लिया है. अंतरात्मा के तीर्थ को जानकर ही उस रब को जो सदा से ही था, कोई जान सकता है. जब यह दिव्य ज्ञान  हृदय में परिपक्व होगा तब मुक्ति व भक्ति में प्रवेश मिलता है. आज उसने योग शिक्षक से फोन पर बात की, वह कल उनके घर आ रहे हैं. उसके साथ जून भी बहुत खुश हैं, वह उन्हें लेने डिब्रूगढ़ जायेंगे. गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाहिए, जैसे ईश्वर के प्रति, लेकिन क्या कोई अपने प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करता है, ईश्वर तो अपना आप है न, यूँ देखा जाये तो सभी एक हैं, कहीं भेद तो है ही नहीं, शब्दों की भी एक सीमा है उसके बाद वे व्यर्थ हो जाते हैं, रह जाती है सिर्फ एक अनुभूति और वही अनुभूति उसे गुरू के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने को विवश करती है क्योंकि जैसा बाबाजी भी कहते हैं बारह वर्ष की मनमानी साधना करने से जो लाभ नहीं होता वह गुरू के सान्निध्य में कुछ ही दिनों में हो जाता है !

आज दो बजे योग शिक्षक आयेंगे. उसने स्वयं को सचेत किया. ईश्वर किसी को एक क्षण के लिए भी विस्मृत नहीं करते. जहाँ चाह है वहाँ राह है. जहाँ कृष्ण है वहाँ श्री है. कृपा से ही भीतर के शत्रुओं पर विजय पायी जा सकती है और भीतर की शुद्धता ही व्यवहारिक जीवन में सहज बनाती है, सूझ-बूझ देती है. गुरू ने जो ज्ञान दिया है उससे भी कहीं ज्यादा ज्ञान (क्योंकि ज्ञान अनंत है ) अभी उनसे सीखना है, जो उनके प्रति श्रद्धा का भाव रखकर व सेवा करके ही वे पाने के अधिकारी बन सकते हैं. ज्ञान ही किसी को निस्वार्थ बनाता है, उच्च बनाता है. गुरू के प्रति श्रद्धा दिखाते हुए कभी भी स्वयं को उनके आगे योग्य सिद्द करने की भूल नहीं करनी चाहिए, बल्कि अहम् को पूरी तरह भुलाकर, स्वयं को अकिंचन मानकर जाना चाहिए तभी कृपा प्रसाद मिलेगा. गुरू के सामने उपलब्धियों की कोई कीमत नहीं, एक धूलि कण के बराबर हैं. बाबाजी कहते हैं जो प्रभु का नाम अपना लेता है वह कभी डूबता नहीं यदि किसी को मान चाहिए तो गुरू के पास जाना नहीं चाहिए. अहंकार को पोषणा नहीं है पर उसे तोड़ना है. गुरू की आज्ञा का पालन ही उनकी सेवा है.

जहाँ श्रद्धा होती है वहाँ बुद्धि लगती है अर्थात बुद्धि स्थिर होती है फिर संशय का कोई स्थान नहीं. जहाँ प्रेम होता है वहाँ प्रेमास्पद के सान्निध्य की चाह होती है. ईश्वर के प्रति श्रद्धा और प्रेम दोनों हो तो बुद्धि उन्हीं से युक्त होगी और उन्हें पाने की चाह दृढ़ होगी. कल रात जून ने पूछा, साधना किसे कहते हैं, उनके मन में भी ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न हो रहा है. साधना के विभिन्न सोपान हैं, अभी वे पहली या दूसरी सीढ़ी पर ही हैं मगर ईश्वर की झलक उन्हें अपने अंतर्मन में मिलने लगी है. यह हर वक्त की बेवजह मुस्कुराहट, यह खिला-खिला सा चेहरा और हंसती हुई आँखें यही तो बताती हैं न ‘कोई है’, कोई है जिसे उन्होंने खोज लिया है और जिसने उन्हें खोज लिया है. कल वे डिब्रूगढ़ गये, शिक्षक भिन्न लिबास में थे मगर उनकी बातें उतनी हो मोहक थीं. वे तीन परिवार गये थे, भोजन बनाकर ले गये थे. लौटे तो शाम हो चुकी थी. सुबह ‘क्रिया’ की फिर ‘ध्यान’ भी किया लेकिन लग रहा है कि कहीं कुछ है जो छूट गया है. एक कसक सी है जो हर साधक को सालती होगी तभी तो वह अपनी साधना को और निखारता है. प्रेम के दो अंग हैं संयोग और वियोग. सुख और दुःख मगर इसका दुःख भी मिठास भरा है. उनका हर पल वर्तमान में गुजरे. वाणी और विचारों के प्रति प्रतिपल वे सजग रहें, अध्ययन मनन भी लक्ष्य से दूर ले जाने वाला न हो बल्कि लक्ष्य की ओर ले जाने वाला हो पर अपने कर्त्तव्यों से च्युत भी न हों. ईश्वर के मार्ग पर चलना कितना सरल है पर साथ ही कितना कठिन भी. मन पर सदा नजर रखनी होगी. मन न जाने कितने-कितने रूप बनाकर छलता आया है. कभी यह मन आत्मा और ईश्वर का रूप भी बनाकर छल सकता है, पर सत्य कभी छिपता नहीं !


Friday, December 19, 2014

हास्य कवि सम्मेलन


आज सुबह वे चार बजे उठे और 'क्रिया' आदि शीघ्रता से की. नन्हे को छह बजे विशेष कक्षा के लिए जाना था पर गाड़ी न मिलने की वजह से नहीं जा सका. घर पर ही पढ़ रहा है. आज शनिवार है, म्यूजिक सर आएंगे, उससे पूर्व थोडा अभ्यास कर लेना उचित होगा. सुबह दीदी को फोन किया, कल उनकी शादी की सालगिरह थी. छोटी ननद की परसों थी. उन्हें कुछ याद नहीं था. मन एक अलग ही स्तर पर रहता है आजकल. वे लोग योग शिक्षक को अपने घर आमंत्रित कर रहे हैं, देखें, वह समय निकल पाते हैं या नहीं. जून ने कहा, उन्हें लेने वे स्वयं भी जा सकते हैं. क्लब में हिंदी हास्य कवि सम्मेलन होने वाला है, वे शाम को कवियों से मिलने भी जायेंगे, कार्यक्रम सात बजे शुरू होगा. वह यह सब लिख रही है क्योंकि स्वयं को याद दिलाना चाहती है, विशेष आग्रह न रखे तो इच्छा पूर्ण होने का चांस ज्यादा है. वैसे भी उसकी मानसिक स्थिति ऐसी है की जहाँ उस एक परमात्मा की स्मृति के सिवा किसी इतर वस्तु या व्यक्ति के लिए आग्रह एक हद तक ही है. शिक्षक की बात अलग है, उनके लिए मन सदा श्रद्धा युक्त रहता है, साथ ही कवि के लिए भी, क्योंकि कवि भी स्रष्टा होता है, वह जीवन को एक नई नजर से देखता है. ‘योग वसिष्ठ’ में आज जो कुछ भी उसने पढ़ा वह art of living में भी सिखाया गया है, इतनी पुरानी पुस्तक और इतना आधुनिकतम ज्ञान, सत्य है ज्ञान एक है, सदा-सर्वदा एक..जैसे सत्य एक है और ईश्वर एक है, हर काल में हर युग में !

कब सुमिरोगे राम ? बालपन में खेल घुमायो, तरूपन में कम, अब तुम कब सुमिरोगे राम ? आज बाबाजी ने कहा. उन्हें देखकर लगता है, अंतर में कितना ज्ञान समेटे हैं. अनंत शांति और प्रेम भी. तत्व का बोध जिसे है वही मार्ग दिखा सकता है. जीवात्मा परमात्मा का सनातन अंश जो है. अन्तर्मुखी होकर उन्होंने अपने भीतर से पाया है यह सत्य. मृत्यु से पूर्व बल्कि वृद्धावस्था से पूर्व यह अनुभव दृढ हो जाये तभी जीवन सफल है. मन किसी भी स्थिति में अशांत न हो, क्योंकि यह उस अन्तेवासी का अपमान होगा जो आनंद स्वरूप है. उन्होंने एक और बात कही, ईश्वर के प्रति प्रेम का बखान करना ही दर्शाता है कि अभी प्रेम कच्चा है. जब कोई प्रेममय होता है तो उसे खबर नहीं होती, दूसरे ही पहले जानते हैं कि परमात्मा के प्रेम में पागल हो गया है ! प्रभु प्रीति अचल हो इसके लिए तो सजग रहना ही है पर वह दिखावा न बन जाये इसका भी विशेष प्रयत्न करना होगा क्योंकि जो जानता है वह कहता नहीं और जो कहता है वह अभी पूरा जानता नहीं. कल शाम वे कवि सम्मेलन देखने, सुनने गये, उससे पूर्व वह गेस्ट हाउस भी गयी उन लोगों से मिलने. सम्मेलन में वे बहुत हँसे शायद पूरे साल में उतना नहीं  हँसे होंगे. बाद में उसे ‘धन्यवाद ज्ञापन’ व्यक्त करने के लिय कहा गया जो शायद वह गुरू कृपा से बोल ही सकी.

आज नन्हे का स्कूल काटी बीहू के लये बंद है, उसका उपवास का दिन है. उसने सुना था एक बार बाबाजी कह रहे थे, उपवास से जीवनी शक्ति सुव्यस्थित होती है. उपवास का अर्थ है स्वयं के निकट रहना ! आश्विन शुरू हो गया है, एक माह बाद दीपावली होगी. मौसम आज स्वच्छ है, धूप खिली है. बगीचे में काम करने के लिए अच्छा दिन. शाम को फूलों के बीज रोपने हैं. कल उसने पिता को एक पत्र लिखा. कल शाम को क्रिया के बाद अद्भुत अनुभव हुआ. गुरुमाँ ने आज संत नामदेव की कथा सुनाई. उनका मन अन्तर्मुखी हुआ, जिस ईश्वर को वह बाहर खोज रहे थे वह भीतर मिल गया, जैसे नानक और कबीर को मिला था, जैसे उन्हें मिला है. जून का फोन आया, आज ऑफिस में एक ही शिफ्ट है, सो देर से आयेंगे सो एक घंटा अभ्यास कर सकती है. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये, गृहणी के हाथ का प्लास्टर कल खुला था, मिठाई खिलाई और दीवाली के लिए लाई बिजली की दो झालरें भी दिखाईं. दीपावली का प्रकाश उनके अंतर में भी उजाला करे, इस दीवाली को यही प्रार्थना करनी है.



Thursday, December 18, 2014

योग के आसन


God is with her always, it was before when she was young so is now and so will be in future. When one gives her life in his hand everything becomes crystal clear, mind is calm and heart is full of love, no past regret or no future planning. When he is always there to help why should she think of herself, she will think of Him only and whatever he wishes will be good for her. Krishna preached gita five thousand years back but man has not got anything higher than this knowledge, it is the ultimate. He says that जो जिस भाव से ईश्वर की शरण में जाता है उसी के अनुरूप ईश्वर उसे वर देते हैं. जो अनन्य भाव से उसकी शरण में जाता है ईश्वर पूर्णरूप से उसके कुशल-क्षेम का निर्वाह करते हैं. कल शाम विवेकानन्द साहित्य माला में राजयोग पर पढ़ा. मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ. वह एक गुरू की तरह कदम-कदम पर सहायता करते हैं. आज दोपहर को नये म्यूजिक सिस्टम के लिए कवर सिलने हैं. जीवात्मा के लिए ईश्वर की सहायता लेना उतना ही जरूरी है जितना मछली के लिए जलवास. ईश्वर ने उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता दी है पर वह चाहते हैं कि वे उनकी ओर जाएँ. वह प्रतीक्षा कर रहे हैं. वे प्रेम, ज्ञान, शांति और आनंद का अतुल भंडार हैं. वह प्रियदर्शन हैं !

गुरूजी कहते हैं, प्रेम में डूबे रहो, मस्त होकर गाओ, गुनगुनाओ और मन को उद्ग्विन न होने दो. जब भी कोई खुश होता है और शांत होता है ईश्वर के निकट होता है और उसके निकट जितने क्षण जीवन के बीतें वही सार्थक हैं ! कल एक सखी से ईश्वर संबंधी चर्चा की, वह भी इस पथ की यात्री है, अंततः हर एक को इसी पथ का यात्री बनना है, क्योंकि भौतिक रूप से कोई कितना भी सफल हो, आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न नहीं हुआ तो शांति का अनुभव नहीं कर पायेगा. आज सुबह ध्यान में दो-तीन बार तेज रौशनी का आभास हुआ. क्रिया करने के बाद मन कितना शांत था. गुरूजी के प्रति मन पुनः पुनः कृतज्ञता से भर जाता है. गुरुमाँ भजन गा रही हैं, मोको तू न बिसार, तू न बिसार, तू न बिसारे रामय्या !  लेबनान के दार्शनिक, शायर, चिंतक खलील जिब्रान की एक कथा भी सुनाई. सत्संग की महत्ता अपार है. सत्यस्वरूप परमात्मा में प्रीति, अमरता का बोध, आत्मा का ज्ञान, सभी कुछ मिलता है. आठ बजने को हैं, एक और दिन का आरम्भ हो चुका है, समय कितनी शीघ्रता से बीतता जा रहा है. पत्रों के जवाब देने का कार्य शेष है. समय के हर पल का उपयोग करना होगा. नन्हे के स्कूल में टेस्ट शुरू हो गये हैं. जून भी अपने कार्य में व्यस्त हैं, इतवार को उन्हें बॉस के यहाँ योगासन सिखाने जाना है. कल क्लब में ‘बोध’ नाटक था, वे नहीं गये.

आज भी ‘जागरण’ में प्रेरणास्पद विचार सुने. विचार अंगरक्षक की तरह हैं, वे रक्षा भी कर सकते हैं और बंदी भी बना सकते हैं. सोच कभी हल्की न हो, सदा उच्च विचारों को ही प्रश्रय देना होगा. लक्ष्य ऊंचे हों और शक्तियाँ उसकी तरफ केन्द्रित हों. भीतर अनमोल खजाना है, मस्तिष्क की ऊर्जा और तन की स्फूर्ति के रूप में ! आधे-अधूरे मन के साथ या निराश होकर और संशय के साथ कभी कोई काम नहीं करना है. निज पुरुषार्थ पर सदा भरोसा रखना है. गुरू की शक्ति कर्त्तव्य पथ पर सदा आगे बढ़ने को प्रेरित करती है. अभी कुछ देर पूर्व उसने नैनी को सफाई के लिए कहा, सदा की तरह उसने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया तो एक क्षण के लिए उसका मन भी थोड़ा सा विचलित हुआ पर अगले ही क्षण उसे लगा, वह उस पर निर्भर ही क्यों रहे, उसके पास असीम सम्भावनाओं का भंडार है, उसका दस प्रतिशत भी अभी तक इस्तेमाल नहीं किया है. वह स्वयं ही जब काम में जुट गयी तो वह भी हाथ बंटाने लगी.



Wednesday, December 17, 2014

विवेकानन्द के पत्र


सद्गुरु का मिलना दुर्लभ है, मिल भी जाये तो उसके प्रति पूर्ण समर्पण होना भी कठिन है. मन में अनेकों संकल्प-विकल्प उठते हैं जो श्रद्धा को हिला देते हैं पर उसके मन में गुरुओं के परम गुरू उस परम पिता के प्रति प्रेम की ऐसी लहर उठी है जो हर वक्त उसे लपेटे रहती है. उस प्रेम का उदय तो पहले ही हुआ होगा पर उससे परिचय सद्गुरु की कृपा से ही सम्भव हुआ है. ऐसी कृपा करने वाले के प्रति भी मन श्रद्धा से भर जाता है. उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उसके जीवन का लक्ष्य निर्धारित हो रहा है. भगवद् प्रेम और संगीत अब ये दो क्षेत्र ही उसे आकर्षित करते हैं. ईश्वर के लिए गाना और उससे प्रेम करना ये दो कार्य जग में करने योग्य हैं. कल शाम वे टहलने गये तो बात इसी विषय पर हो रही थी अब जून और उसके बीच बातचीत का ज्यादातर भाग art of living ही रहता है. कल रात सोने से पूर्व स्वामी विवेकानन्द का एक पत्र पढ़ा जिसमें उन्होंने ईश्वर के प्रति अखंड विश्वास का वर्णन किया है. ‘यदि कोई अपना सारा भार कृष्ण पर छोड़ दे तो वह उसे भार मुक्त कर देंगे. ईश्वरीय प्रेम महान है इसकी अनुभूति चेतना के उच्च स्तरों पर ले जाती है. स्थूल देह अन्नमय कोष है, प्राणमय कोष में जीने वाले को प्राणायाम व भजन कीर्तन बताया जाता है. मनोमय कोष के भीतर विज्ञानमय कोष है और उसके भीतर आनंद मय, जो थोड़ी ही ख़ुशी मिलने पर शांत हो जाता है. भिन्न-भिन्न कोशों में स्थित व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न साधन की पद्धति सिखायी जाती है, जिससे ईश्वरीय अंश जागृत होता है. मौन, ध्यान, उपवास यह तपस्या है, परमात्मा को पाने के लिए यह तपस्या अपने जीवन में लानी है और ये सहज रूप से जीवन का अंग बनने चाहिए ! और यदि प्रेम सच्चा हो तो ये सब सहज प्राप्य हैं !’ वह आनन्दमय कोष में स्थित है !

निःशब्द ईश्वर तक पहुंचने के लिए शब्दों की नाव बनानी पडती है पर अंततः शब्द भी छूट जाते हैं क्योंकि वह शब्दातीत है. ईश्वर का स्मरण करने से जो सुख मिलता है वह अन्य किसी वस्तु, कार्य या परिस्थिति से नहीं मिलता, अच्छा हो या बुरा दोनों की आसक्ति छोड़नी होगी जो, जब, जैसा मिले, जब हो उसे पूरे मन से स्वीकारना होगा वृत्ति में यदि ईश्वरीय प्रेम हो तो वही प्रगट होगा, जो हम मांगेंगे वही तो मिलेगा. मेरा हो तो जल जाये और तेरा हो तो मिल जाये यह भाव सदा बना रहे तो ईश्वर मन का स्वामी बन जाता है. कामनाएं अपने आप मिटती जाती हैं, उसी का अधिकार हमारे हृदय पर हो जाये तो सम अवस्था में रहना आ जाता है, पर आज सुबह जब उनकी नींद देर से खुली तो मन ने स्वयं को धिक्कारना शुरू कर दिया, वह भी ठीक नहीं था. उन्ही नकारात्मक भावनाओं का परिणाम है कि उसके पैरों में हल्का खिंचाव है वरना इतने दिनों से किसी भी तरह का कोई दर्द महसूस नहीं किया. आज सुबह फिर गुरू का स्मरण हो आया, उनकी प्रभुता व महानता पर जितनी श्रद्धा की जाये कम है, जनहित के लिए अपने को मिटा देना, पर उस मिटा देने में ही वे सब कुछ पा जो लेते हैं. जब कोई किसी के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ करता है तो ईश्वर जीवन में सुख का सागर बनकर आता है. ईश्वरीय कृपा का साक्षात् अनुभव उसने किया है पर इस मन को नियन्त्रण में रखना तब कठिन हो जाता है जब प्रभु का स्मरण नहीं रहता. मन में यदि उसी की लौ लगी रहे तो कोई उलझन नहीं रहती. उसकी प्रार्थना बस इतनी सी तो है और वर्षों से है, हे ईश्वर ! तू साथ साथ रह या कि वह उसे कभी न भूले क्यों कि उसके मिलने से बाकी सब अपने आप ही मिल जाता है. उसका एक पेन नहीं मिल रहा है पर वे उसे भी ढूँढने में उसकी मदद करेंगे. आज बाबाजी भाव समाधि में चले गये थे.   


Tuesday, December 16, 2014

अदृश्य की तरंग



सारी रात सुबह की प्रतीक्षा करती रही. नींद आती भी कैसे. आँखों में उस परम की छवि जो बसी थी. अंतर में उसका असीम स्नेह, उसके दिए प्रेम का अनमोल भंडार ! कल शाम को क्रिया के दौरान उसे आनंद का वह स्रोत पुनः मिला. वह उससे थोड़ी ही दूर पर प्रकाश के रूप में स्थित था. उसका हृदय भावों से भरा हुआ था. निष्पाप, पवित्र हास्य जो झरने की तरह भीतर से फूट रहा था, नियंत्रित नहीं हो रहा था, इतना तो शायद वह पिछले कई हफ्तों में मिलाकर भी नहीं हँसी होगी. इतना प्यार, इतनी ख़ुशी उनके भीतर छिपी है, इतना ज्ञान भीतर छिपा है पर वे उससे दूर रहते हैं. सद्गुरु की जीवन में कितनी महत्ता है, वह अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. वास्तव में वही जीने की राह दिखाते हैं. कल उसे अनुभव हुआ उसका जन्म इसी क्षण के लिए हुआ था. उस क्षण की प्रतीक्षा में इतने वर्षों से उसके सारे प्रयास चल रहे थे. उस परम से उसने पूछा वह कौन है, वह उसके सारे सवालों के जवाब दे रहा था. उसका प्रश्न समाप्त होते ही न होते जवाब हाजिर हो जाता था. वह उसकी चेतना थी या उसकी चेतना का अंश, वह जो भी रहा हो पर उसका मन गुरूजी व उनके शिक्षक के प्रति कृतज्ञता से भर गया है.

कल शाम ‘ज्ञान चर्चा’ के बाद घर आने से लेकर इस वक्त तक एक क्षण के लिए भी उसके मन से गुरूजी और ईश्वर का भाव नहीं हटा है. मन उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है. मन को जैसे एक आधार मिल गया है, अब तक सिर्फ अव्यक्त ईश्वर ही उसके प्रेम का केंद्र था पर अब एक धारा गुरू की ओर भी प्रवाहित होने लगी है, जैसे ईश्वर ने ही उन्हें भेजा है. ईश्वर के प्रति प्रेम ही वास्तव में प्रेम है, उसके लिए रोने और हँसने दोनों में ही आनंद है.

कल वे तिनसुकिया गये थे, नया ‘म्यूजिक सिस्टम’ खरीदना था. उसके बाद शिक्षक को लेने एक परिचित के यहाँ गये जो उन्हीं के यहाँ रुके हुए हैं. वापसी में उन्होंने श्री श्री के बारे में बहुत सी बातें बतायीं. तेजपुर में होने वाले अगले कार्यक्रम के बारे में भी बताया. art of living हजारों-लाखों व्यक्तियों के जीवन में परिवर्तन ला रहा है और भक्तों को परमात्मा के करीब ला रहा है. जहाँ परमात्मा है वहाँ क्या भय, वहाँ उसके अतिरिक्त कोई कामना भी नहीं रहती. वह तो सदा ही मानव के हृदय में है पर वह उससे दूर बना रहता है. यदि कोई उसे अपने हृदय पर थोड़ा सा भी अधिकार करने दे तो धीरे-धीरे वह उसका स्वामी बन जाता है. इतर इच्छाएं अपने आप झर जाती हैं. एक उसी की सत्ता चलती है. उसके सान्निध्य में रहना मानो स्वर्ग में रहना है. कोई विषाद शेष नहीं रहता. तन भी हल्का हो जाता है. आँखों में ऐसी गहराई की दर्पण में स्वयं अपना चेहरा देकें तो पानी भर आता है. ईश्वर की स्मृति में डूबा मन कैसे मस्ती का अनुभव करता है. बैठ-बैठे ध्यान में डूब जाता है !  


Monday, December 15, 2014

गीता का गीत


नन्हा विज्ञान पढ़ने गया है. उसने ‘इंडिया टुडे’ में दिली के एक चूड़ीवाले के बारे में रोचक लेख पढ़ा .पढ़ते-पढ़ते ही पता नहीं कब आँख लग गयी और स्वप्न में एक नन्हे बच्चे की गार्गलिंग जैसी ध्वनि सुनी, आवाज इतनी वास्तविक थी कि वह झट उठ गयी. चाय पीकर तरोताजा हुई और स्वामी विवेकानन्द की पुस्तक का अध्ययन शुरू किया, जो उसे बहुत भाती है. संगीता अध्यापिका फिर चली गयी हैं, सो अभ्यास नहीं हो रहा. हर क्षेत्र में गुरू की आवश्यकता है. आज शाम को क्लब में मीटिंग है, वह कुछ देर ध्यान करने के बाद ही जाएगी. पहली तारीख से एक और कोर्स आरम्भ हो रहा है, पुराने प्रतिभागी भी जा सकते हैं. वे जायेंगे. पिछले महीने के अंतिम दिन ही उसे वह अनुभव हुआ था जिसने उसके जीवन को बदल दिया है.

आज ध्यान में अद्भुत शांति का अनुभव हुआ. मन की आँखों से कई अद्भुत रंग देखे. भीतर से एक ध्वनि भी आती प्रकट हुई पहले तो थोड़ा सा डर लगा पर बाद में सुनने में भली लग रही थी. अब ध्यान के लिए बैठने पर मन शीघ्र एकाग्र हो जाता है. सुबह वे उठे तो तेज हवा चल रही थी, देखते-देखते तेज वर्षा होने लगी. नन्हे को स्कूल जाना था पर नहीं गया. आज से उसके स्कूल में ‘स्पोर्ट्स मीट’ शुरू हुई है. उसे बहनों को पत्र लिखने हैं पर उस क्षण की प्रतीक्षा है जब सहज स्फुरणा होगी और कलम खुदबखुद चलने लगेगी.

कल रात जब उन्होंने गेट पर ताला लगा दिया था तो केन्द्रीय विद्यालय की अध्यापिकाएं आयी थीं फिर वे पड़ोसिन के यहाँ गयीं और वहाँ से फोन किया, पर उन्होंने फोन भी स्टैंड पर रख दिया था जो इस कमरे से दूर होने के कारण सुनाई नहीं दिया, कुल मिलाकर उनसे मुलाकत होनी नहीं बदी थी सो नहीं हुई. यूँ भी बिना इत्तला किया किसी के यहाँ इतनी देर से जाना ठीक तो नहीं है. खैर, सुबह पड़ोसिन ने ये सारी बातें फोन पर बतायीं तो नन्हे के हाथ से वह पत्र मंगवाया जो वे देने आयी थीं. कल दोपहर को कार्यक्रम है.

आज सुबह प्रवृत्ति तामसिक थी, बिस्तर छोड़ने में थोडा विलम्ब किया फिर ध्यान भी कहाँ गहन होने वाला था. कल शाम को जून के मजाक पर झुंझलाई और उससे पूर्व बातचीत में परचर्चा की. नये संगीत अध्यापक मिले हैं, अगले हफ्ते फिर जाना है. संगीत की शिक्षा मानव को ऊपर उठाती है और उसे तो उस पथ पर ही अब आगे बढ़ना है.

अक्तूबर का आरम्भ हो गया है. ‘जागरण’ में कृष्ण की गीता से आये अमृत वचन सुने तो अंतर में आह्लाद हुआ. ईश्वर महान है विभु है पर भक्त के छोटे से उर में समा सकता है. उसके दिव्य प्रेम का अनुभव ही साधक को बदल देता है. वही ज्योति बनकर चैतन्य रूप में मानव के भीतर है. वह मित्र भी है और किसी की पुकार को अनसुना कर ही नहीं सकता. ध्यान में तुष्टि बनकर वही तो साधक को प्रेरित करता है. कल शाम जून की लायी एक पुस्तक पढ़ती रही. शाम को एक सखी के यहाँ से भी श्री श्री की भी दो पुस्तकें लायी. उनकी कृपा है जो आनंद के स्रोत का पता बताया है. खबरों में सुना था, विमान दुर्घटना में श्री माधवराव सिंधिया की मृत्यु हो गयी. जीवन कितना क्षणिक है. अगले पल का भी भरोसा नहीं है. कल श्रीनगर में आतंकवादी हमले में इक्कतीस लोग मारे गये, कौन कब किस वक्त इस धरती से उठ जायेगा कौन कह सकता है सो जितना उनका जीवन है, वे पल-पल उल्लास पूर्वक जीयें, उस की याद में जीयें जो उनका पालक है, उन्हें चाहता है. आज उसने योग शिक्षक को अपने अनुभव बताये तो उन्होंने कहा, अच्छा है, पर इसे बहुत महत्व नहीं देना है. अहंकार को पोषने वाली हर शै से दूर रहना है. जिनमें उस की स्मृति बनी रहे वही क्षण मुक्ति के होते हैं शेष तो बंधन में डालने वाले ही हैं !





Sunday, December 14, 2014

ध्यान के सूत्र


नियमों के पालन से मार्ग प्रशस्त हो जाता है और मुक्ति का मार्ग मिल जाता है ! अनुशासन और नियन्त्रण जीवन को बंधंन मुक्त ही करते हैं, बंधंन में डालते नहीं हैं. इस बात को आजकल वे महसूस कर रहे हैं. जो किसी मार्ग को चुन लेता है तो अस्तित्त्व उसके जीवन की दिशा निर्धारित करता है, वही उसके कुशल-क्षेम की जिम्मेदारी ले लेता है. मन में श्रद्धा रखते हुए कर्म करना मानो मुक्ति के मार्ग पर आगे बढना है. ईश्वर ही जीवन का कर्ता-धर्ता है, उसके प्रति प्रेम ही मन की कृतज्ञता जाहिर करता है, उसने इतना दिया है. वे चाहें उसका उपकार मानें या न मानें तो भी वह हितैषी है, उसे जीवन में उतारना है, अवतरित करना है. वह हर पल बुला रहा है. उसकी पुकार कितनी मोहक है. कल शाम ही वह गोहाटी से वापस लौटी है. सुबह छोटी बहन, पिता, भाई, भाभी, सभी को art of living कोर्स के लिए प्रेरित किया.

मन का धर्म जब ईश्वर भजन बन जाये तब वह अपने आप शुद्ध हो जाता है. दुर्लभ मानव जन्म में दुर्लभ सत्संग भी मिला है इसके लिए वह ईश्वर की कृतज्ञ है लेकिन यह कृतज्ञता दर्शाने का अर्थ है कि अब भी वह उससे पृथक है जबकि वह तो उसके कण-कण में, रोम-रोम में है बल्कि वही तो है. गुरूजी की अमृत वाणी जितना पढ़ती है उतना ही मन अभिभूत हो जाता है. ये हीरे बड़े कीमती हैं जो कौड़ियों के दाम नहीं मिलते. आत्मस्वरूप से वे मुक्त हैं पर मन के स्तर पर बंधंन में हैं. आज एक सुंदर सूत्र सुना, ध्यान के समय जब भी कोई ख्याल उठे तो उस हरकत के पीछे जो बेहरकत है उसे याद करना चाहिए. दो विचारों के मध्य जो विराम रहता है और जिस तरह दो श्वासों के मध्य भी अन्तराल होता है. उस पर ध्यान केन्द्रित करें तो मन शांत हो जाता है. जागृत होकर ही कोई उस अन्तराल को जान सकता है,

शनिवार की शाम को जून ने जब कहा कि कम्प्यूटर अब नहीं चलेगा तो नन्हे को उसने यह बात बतायी. तभी से वह उदास दीखता है. इतवार की सुबह उसकी चुप्पी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसने कारण पूछा, वह शांत रहा. फिर कल शाम को भी जब वह चुप्पा बना रहा तो उसे कुछ बातें सुनायीं पर वह अडिग रहा. धैर्य और हिम्मत की उसमें कमी नहीं है बस कमी है तो आत्मसंयम की. गेम खेलते वक्त वह उसमें डूब जाता है और पढ़ाई का हर्ज होता है. इस बार के नम्बर इसकी खबर देते हैं. खैर, धीरे-धीरे वह सामान्य तो होगा ही. कल से ही छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं. इस समय टीवी पर ‘गीता पाठ’ आ रहा है. माया के सम्पर्क में आने पर मन इच्छा न होते हुए भी विकार में लिप्त हो जाता है. रजोगुण के सम्पर्क में आने से कामना उत्पन्न होती है, उसकी पूर्ति में बाधा होने से क्रोध, क्रोध ही पाप कर्म में लिप्त करता है. उन्हें रजोगुण का त्याग करना होगा. कल शाम को केन्द्रीय विद्यालय की एक अध्यापिका ने फोन करके ‘विश्व पर्यटन दिवस’ पर जज बनने के लिए आमंत्रित किया. लेडीज क्लब की दो सदस्याओं ने जो वहाँ टीचर भी हैं और गोहाटी वाले ग्रुप में भी थीं, उसका नाम सुझाया था. यह भी एक नया अनुभव होगा और अब तो वह हमेशा उसके साथ है. मुस्कुराता हुआ, शक्ति और ज्ञान का अतुलित भंडार, प्रेम का प्रतीक उसका परम प्रिय ! जीवन के हर पल में, हर परिस्थिति में वह उनके साथ है, उनके कुशल-क्षेम की चिंता करते हुए, प्रेरित करते हुए !  

सुबह की शुरुआत ध्यान से हुई, ईश्वर की कृपा उस पर हुई है जो मन पवित्र विचारों का सान्निध्य ढूँढ़ता है. जून भी सुबह-सवेरे उठकर प्राणायाम करते हैं, उनका भी मन प्रफ्फुलित रहता है. कल रात को छोटी बहन का फोन आया, पहले की अवस्था में शायद वह भी कुछ देर सो न पाती पर अब विचलन क्षणिक होता है. आध्यात्मिक विकास हो रहा है ऐसा प्रतीत होता है. आज गुरू माँ ने कहा, गुरू पर अगाध श्रद्धा रखने पर ही कोई उच्च अवस्था तक पहुँच सकता है.



Friday, December 12, 2014

गोहाटी की बाढ़

सुबह के पौने चार बजे हैं. वह तैयार है. कल इस वक्त वह घर पर तैयार हो रही थी. साढ़े चार बजे उनकी बस रवाना हुई. रास्ते में दो-तीन बार किसी न किसी कारण बस को रुकना पड़ा, गन्तव्य पर देर से पहुँचे. पहुंच कर भी सामान आदि रखकर सत्संग स्थल तक पहुंचने में काफी समय लग गया. जब वे पहुँचे तो कार्यक्रम समाप्ति पर था. गुरूजी ने दो-तीन भजन ही उनके सामने गए, फिर वे बेसिक कोर्स के अपने शिक्षक से मिले. वापस आकर भोजन ग्रहण किया और सो गये. उसे गेस्ट हॉउस में जो कमरा मिला है उसमें और कोई नहीं है, सो वह सुबह जल्दी उठकर तैयार हो सकी. उन्हें पांच  बजे निकलना है. अभी-अभी एक सखी का फोन जगाने के लिए आया. कल गुरूजी की आवाज सुनकर अच्छा लगा पर वे सम्पूर्ण कार्यक्रम नहीं देख पाए सो जैसे कुछ अधूरा सा रह गया हो ऐसा लगा. यहाँ की सडकों पर नाव चलाने जितना पानी भर गया था. वर्षा की वजह से वहाँ बैठने इंतजाम भी व्यर्थ हो गया था. वर्षा यदि आज सुबह न हो तो ईश्वर की उन पर मेहरबानी होगी पर यह तो वही जानता है कि उनका भला किसमें है !  

रात्रि के दस बजे हैं. कुछ देर पहले ही वे लौटे हैं. आज उसने श्री श्री के दर्शन निकट से किये. उनकी मुस्कान अद्भुत थी, वापस आकर उसके हाथों में कंपकंपी दिखी. वे शाम को चार बजे नये सत्संग स्थल शंकर कला क्षेत्र के लिए यहाँ से निकले, मार्ग पूछते-पूछते पहुँचे. रास्ता कल की तरह खराब था और कल की वर्षा के कारण सड़कों पर पानी भरा हुआ था. कला क्षेत्र की इमारत व ओपन एयर थियेटर बहुत कलात्मक ढंग से बना है. कीर्तन चल रहा था कि उसे जैसे किसी ने कहा कि निकट जाकर मिल लो. अपने साथ आये लोगों के समूह को अनदेखा करते हुए, स्वयं सेवक की मनाही की परवाह न करते हुए वह किसी आवेग में स्टेज पर चढ़ ही गयी. मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम किया और गुरूजी ने भी मुस्कान से उत्तर दिया. उसी तरह क्षण भर में लौट आयी. गेस्ट हॉउस तक की वापसी का रास्ता इस सुखद घटना की स्मृति में कैसे कट गया पता ही नहीं चला. अभी रात्रि भोजन नहीं हुआ है, उसे विशेष भूख तो नहीं है पर सबके साथ नीचे हाल में जाना तो होगा. यह यात्रा उसके लिए अविस्मरणय बन गयी है.

आज सुबह भी समय से पहुंच गये थे, उसे काफी आगे जगह भी मिल गयी थी. सुदर्शन क्रिया पूरी तो नहीं हो पाई, लोग बहुत थे और वर्षा भी हो रही थी, पर गुरूजी की आत्मा को छूकर निकली प्रभावपूर्ण वाणी दिल पर अद्भुत प्रभाव डाल रही थी. उनकी वाणी और दृष्टि दोनों ही प्रभावपूर्ण हैं. उसके पास प्यारी सी एक मारवाड़ी लड़की बैठी थी जो एडवांस कोर्स भी कर चुकी है. वे दस बजे तक वापस गेस्ट हॉउस आये जो बेहद सुंदर है. आस-पास पहाड़ दीखते हैं. यहाँ कम्पाउंड में कई सुंदर पेड़ हैं. उसने कुछ किताबें, कैसेट भी लिए. कुल मिलाकर गोहाटी आना सफल रहा है. ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि मिलना कोई कम बात नहीं. अब क्रिया करते वक्त वह ज्यादा सचेत रह पायेगी. आज जून और नन्हे से फोन पर बात की. दो दिनों में लग रहा है कि कई दिनों से घर नहीं देखा. अब कल रात को सम्भवतः आठ बजे तक वे घर पहुँचेंगे.

आज फिर वह जल्दी उठकर तैयार हो चुकी है. कल रात कुछ अजीब दृश्य व स्वप्न उसके मन के पन्नों पर अंकित हुए. गुरू को इतने निकट से देखा तो कुछ प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी. पहले तो स्टेज से उतरते ही उसके हाथ काँपे पर शीघ्र ही ठीक हो गये. रात को सोने से पहले ध्यान में देखा एक पहाड़ी पर चढ़ रही है. पर बार-बार फिसल कर पीछे गिर जाती है. कोशिश फिर भी जारी है. दूसरे दृश्य में एक साथ अनेक लोगों को खड़े-खड़े एक प्रवाह में बहते देखा. स्वप्न में एक छोटी बच्ची को देखा जिसे विज्ञापन फिल्म में काम करवाया जाता है, वह पसंद नहीं करती. “पापा ये सब एड करवाते हैं और वह उसे पकड़ कर रो रही है. वह शायद उसकी माँ है या वह बच्ची ? एक और स्वप्न में उनके यहाँ काम करने वाले एक कर्मचारी पर वह पूरा भरोसा करने लगी है. ये दृश्य इतने स्पष्ट थे और भाव इतनी शिद्धत से महसूस किये गये थे कि..अभी अभी जून ने फोन किया उनकी आवाज थोड़ी उदास थी. उसके बिना घर अधूरा लग रहा होगा उन्हें !   





Thursday, December 11, 2014

यात्रा का आरम्भ


आज की सुबह की शुरुआत सामान्य हुई, सुबह ही संगीत कक्षा में जाना था. लौटी तो साधना शुरू की, दो फोन आये, बीच में उठकर जाना पड़ा. अब उन्होंने तय किया है शनिवार को शाम चार बजे वे साधना करेंगे, जैसे इतवार को वे दो मित्रों के साथ करते हैं. अज सुना था, जिसका प्रत्येक कर्म ईश्वर को समर्पित है, वह हर क्षण उससे जुड़ा है लेकिन उनका हर कर्म प्रभु के लिए कहाँ हो पाता है, अपनी ख़ुशी के ही लिए वे कर्म करते हैं. उसे लगता है, उसके फल की प्राप्ति में सम रहना ही कर्म ईश्वर को अर्पित करना है. मानव को अपनी अयोग्यता के विषय में ज्ञान उतना नहीं होता जितना योग्यता के बारे में वह सचेत रहता है, बल्कि वास्तविकता से कहीं ज्यादा ही सोचता है. अपने अवगुणों के प्रति सजग रहना ही उन्हें निकालने की ओर पहला कदम है. सही-गलत व उचित-अनुचित का भेद करना इतना सहज नहीं है लेकिन धर्म का तत्व तर्क-वितर्क करके प्राप्त नहीं किया जा सकता. यह तो महापुरुषों का अनुसरण करने से ही मिलता है.

आज उपवास का दिन है, यह विचार स्वास्थ्य की दृष्टि से ही उसे आया था पर इस समय लग रहा है ईश्वर ने ही उसे यह प्रेरणा दी होगी. वैसे भी कोई भी कार्य अकारण नहीं होता, अदृष्ट का हाथ तो इसमें रहता ही है. टीवी पर ‘आत्मा’ आ रहा है, जनक राजा होते हुए भी विदेह भाव में रहते थे, उनको छूकर गयी हवा ने पीड़ितों के दुखों को कम कर दिया तो वे नर्क में आकर रहने को भी तैयार हो गये. लोक कल्याण की भावना की पराकाष्ठा थी यह, उन्हें भी अपने जीवन में पहले स्वयं को उन्नत करना है फिर अपनी शक्ति का उपयोग अपने इर्दगिर्द की उन्नति में लगाना है. परसों उसकी यात्रा का शुभारम्भ है, तीन दिनों की यह यात्रा सम्भवतः उसके जीवन में एक सुखद मोड़ साबित होगी !

“मानव जन्म सर्वोत्तम है, मानव ऊँचाई के शिखर पर पहुंच सकता है. मानव ही ब्रह्म को जान सकता है. वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, वह ज्योतियों की ज्योति है. वह अज्ञान के अंधकार से दूर जा सकता है. जो उसका आत्मा है वह सुख के केंद्र है मानव आसुरी तथा दैवीय अंश का सम्मिश्रण है. जब कोई आत्मा के निकटतर होता है, दैवीय अंश उसमें प्रमुख रूप से प्रकट होता है”. आज उपरोक्त बातें ‘जागरण’ में सुनीं. इस समय दोपहर के पौने तीन बजे हैं, उसकी तैयारी सम्पन्न हो चुकी है. एक बैग तथा एक छोटी से अटैची. मन में उत्साह है, यात्रा का उद्देश्य बहुत पवित्र है. सद्गुरु के दर्शन होंगे, सद्गुरु जो ईश्वर का प्रतिनिधि है. आजकल ध्यान में अति आनंद आता है, मन अद्भुत शांति से भर जाता है. अगले तीन दिन यह डायरी उसके पास नहीं रहेगी लेकिन दूसरी छोटी डायरी में गोहाटी के अनुभव जरूर लिखेगी. शाम को एक मित्र परिवार आएगा, उनका नया बुककेस देखने. बैठक में थोड़े फूल लगाने हैं और नाश्ता तैयार करना है. शाम को किसी वक्त एक और सखी का फोन भी आएगा. कल नन्हे की अंतिम  परीक्षा थी. उनका कम्प्यूटर अपने आप ही ठीक हो गया जैसे उस दिन खराब हुआ था. ईश्वर उसकी पुकार सुनते हैं.  



Wednesday, December 10, 2014

आतंक की छाया


कल शाम को नन्हे को गणित पढ़ाते समय जब जून लाइब्रेरी गये तो नन्हे ने अपनी आदत के अनुसार टीवी चलाया. वह दो मिनट के लिए कमरे से बाहर गयी थी, लौटी तो नन्हा जोर से बुला रहा था. दो हवाई जहाज अमेरिका, न्यूयार्क में स्थित दो इमारतों से टकराए, उनमें आग लग गयी. दोनों इमारतों में जो एक सौ दस मंजिली थीं और जहाँ ट्रेड सेंटर था. अनेकों लोग उनमें फंस गये, आधे घंटे के अंदर-अंदर दोनों ढह गयीं. कुछ ही देर में समाचार मिला कि एक अन्य अपह्रत विमान पेंटागन पर गिरा. आत्मघाती दुर्घटना का चौथा विमान पिट्सबर्ग (पेंसिलवानिया) में गिरा. ये सारे समाचार वे देख ही रहे थे कि जून वापस आ गये. नन्हा और वह दोनों आश्चर्य से यह देख रहे थे लेकिन उसे इस दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का ध्यान आ रहा था. उन लोगों का जो घायल थे, बल्कि पूरे अमेरिकावासियों का दुःख उसका दुःख बन गया था. भीतर जैसे घुटन हो रही थी, वह धुँए से भरे कमरों का अनुभव विचित्र था. दोपहर भर योगानन्द जी की पुस्तक पढ़ी थी, अमेरिकी लोगों ने कितने स्नेह से उन्हें अपनाया था. वैसे भी अमेरिका विश्व का अग्रणी है, यदि उसको इस तरह आतंकवाद का शिकार होना पड़े तो अन्य देशों की क्या स्थिति हो सकती है, इसकी कल्पना दुष्कर है. अमेरिका में लाखों भारतीय भी हैं, दोनों का घनिष्ठ संबंध है.

कल दिन भर टीवी पर अमेरिका के समाचार ही आ रहे थे. न्यूयार्क, वाशिंगटन और पिट्सबर्ग में हुए हवाई हमलों में मृत, घायल और पीड़ित व्यक्तियों का स्मरण होते ही मन संवेदना से भर जाता है. ( पहली बार हवाई जहाज हमले में इस्तेमाल किये गये) बाबाजी कहते हैं. ईश्वर दयालु है, समर्थ है, उदार है उसने उन्हें अपरिमित बल दिया है, आनंद का स्रोत दिया है, जिसे खोजने में वे समर्थ हैं. उसकी कृपा असीम है. मानव जीवन ही अपने आप में एक उपहार है. अमूल्य उपहार ! कल जून ने वह ‘पास’ लाकर दिया जिसे लेकर वे गोहाटी में श्री श्री रविशंकर जी (सद्गुरु) द्वारा करायी जाने वाली सुदर्शन क्रिया में भाग ले सकते हैं. अगले हफ्ते आज से छह दिन बाद ब्रह्म मुहूर्त में उनकी यात्रा का आरम्भ होगा और उसके तीसरे दिन शाम को वह सम्पन्न होगी. उसके जीवन की पहली पूर्ण आध्यात्मिक यात्रा होगी यह. कल शाम वे एक परिचित के यहाँ गये, उनके माता-पिता से मिलने, पर दोनों से ही बातचीत नहीं कर सके. पिताजी की सुनने की शक्ति जाती रही है और माता जी भी अस्वस्थ थीं, सो सोने चली गयीं. अशक्त माता-पिता से मिलकर शीघ्र ही वे वापस लौट आये. कल शाम भी कुछ देर ही ध्यान, आसन कर सके. प्रकृति ईश्वर की इच्छा से चलती है, यदि कोई प्रकृति के नियमों का पालन करे तो शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य बना रहता है.


जागृत अवस्था में मन, बुद्धि, अहंकार, इन्द्रियां सभी अपने-अपने कार्य में सलग्न होते हैं. स्वप्नावस्था में कर्मेन्द्रियाँ सक्रिय नहीं रहतीं पर मन व अहंकार सजग होते हैं. सुषुप्ति अवस्था में मात्र अहंकार बचता है, स्वप्न में देखे विषय मन की ही रचना होते हैं, वे उतने ही असत्य हैं जितना यह जगत, जो दीखता तो है पर वास्तव में है नहीं. वास्तविक सत्य का बोध क्योंकि अभी तक हुआ नहीं, यह सब सत्य प्रतीत होता है. वास्तविक सत्य वही परमब्रह्म है जिस तक जाना ही मानव का ध्येय है. आज दीदी से बात की, उनके परिवार में लगभग सभी से बात हुई, बड़ी भांजी आज बाहर जा रही है. दीदी को भी कहा है, वह भी art of living कोर्स अवश्य करें. बाबाजी कहते हैं कि यह उसी की दयालुता है उसी का सामर्थ्य है कि वह हमें सत्संग के लिए प्रेरित करता है. ईश्वर के कहे हुए वचनों को ही सद्गुरु बताते हैं, जिससे साधक कुछ क्षण उससे जुड़ जाते हैं. ये क्षण उन्हें दिन भर भय, कठिनाई से मुक्त कर सकते हैं.  

Tuesday, December 9, 2014

पानी बिच मीन पियासी


अहंकार हिंसक पशु से भी अधिक भयावह है, जो मानव को संसार रूपी जंगल में भटका सकता है तो अहंकार से मुक्ति पानी होगी. इस बात का भी अहम् ठीक नहीं कि  ईश्वर ने उस पर विशेष कृपा की है. कल रात ससुराल व मायका दोनों जगह सभी से बात की. छोटी बहन फिर किसी पारिवारिक बात से परेशान है. सुबह संगीत की कक्षा में गयी, अभी कुछ देर पूर्व ही लौटी है, वहाँ भी अहंकार की भावना आ रही थी कि उसकी आवाज थोड़ी मधुर हो गयी है पहले से. ईश्वर की कृपा से ही यह सम्भव हुआ है. अब से हर पल सचेत रहना होगा. कल एक योगी की आत्मकथा पुनः पढ़नी आरम्भ की है, रस आ रहा है. जीवन में रस न हो तो क्या जीना. जून ने कहा उसके जीवन में दैवीय शक्ति का प्रवेश हुआ दीखता है. कल सुमित्रानंदन पन्त की किताब ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पढ़ी. उन्हें भी अतीन्द्रिय अनुभव हुआ था. उनका आनंद भी अपरिमित था. उन्हें भी प्रेम व शांति की वैसी ही अनुभूति हुई थी.

आत्मसाक्षात्कार  का अर्थ है, आत्मा को जानना, आत्मा को जानने की क्रिया दो प्रकार से वर्णित की गयी है, एक ज्ञान योग दूसरा भक्ति योग. आत्मसाक्षात्कार ही जीवन का ध्येय है. गुरू को आत्मसमर्पण करने पर परमात्मा उस जीव को शरण में ले लेते हैं. कृष्ण को समर्पित करके यदि सभी कार्य करें तो कार्य पूजा हो जाती है. कल शाम एक मित्र के यहाँ गये. प्राणायाम आदि किया फिर चाय नाश्ता और फिर जो उपस्थित नहीं थे उनकी चर्चा की, जो बेहद बुरी आदत है. अच्छी-भली शाम का बेढंगा सा अंत कर लिया. जून को रात को नींद नहीं आई, उसे एक परेशान करने वाला सपना कि जो भोजन उन्हें मिला है, उसमें रोटियों में बाल हैं. खैर, सुबह सामान्य रही. वह अपना ध्यान भी कर पायी, पर मन में जो हर वक्त छलकता हुआ सा प्रेम, शांति और आनंद का स्रोत था वह जाने कहाँ सूखता जा रहा है. वह है तो उसके ही अंदर, उस दिन वह उजागर हो गया था और कुछ दिन उसे भिगोता रहा पर अब वह उसे इस तरह छोड़कर नहीं जा सकता. उसे अपने भीतर से निकाल लाना ही आत्मसाक्षात्कार है. इसमें सहायक होगी उसकी अपनी सजगता, हृदय का प्रेम और वाणी की मधुरता. यदि गोहाटी जाने का अवसर मिला तो एक बार पुनः मन, प्राण ज्योति से भर उठेगा. आज से नन्हे की परीक्षाएं हैं. इस बार वह शांत है, पता नहीं यह शांति किस बात का प्रतीक है. यह तो समय ही बतायेगा.

अभ्यास में और गहराई में उतरना होगा, तभी अनुभव होगा. आज ही निर्वासनिक होना होगा. जीवन अभी है. शरीर आज है कल नहीं रहेगा, जो रहेगा वह वही होगा, उसी का अंश होगा. इस समय मन में क्या चल रहा है, इसका पता पल पल चलता रहे सुख का केंद्र परमात्मा भीतर है. उसी से जुड़ना है, यह जुड़ाव यदि कायम रहे तो दुनिया की कोई वस्तु मिले या न मिले कोई अंतर नहीं पड़ता, तब सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है. मानव के पास श्रद्धा, ज्ञान और योग की कला है. श्रद्धा के बना मनुष्य यंत्र के समान हो जाता है. श्रद्धा के साथ साथ उत्साही और संयमी होना ही ज्ञान के पथ पर ले जाता है. जीवात्मा स्वयं को परमात्मा से जोड़ सकता है. अव्यक्त को व्यक्त करने की शक्ति मनुष्य में ही है. कबीर ने कहा है कि “मोहे सुन सुन आवे हांसी, पानी विच मीन प्यासी”   


Monday, December 8, 2014

नारद भक्ति सूत्र


वह हर क्षण उनके साथ है, उनकी धड़कन बनकर, रक्त बनकर प्रवाहित हो रहा है. उसे स्मरण करते हुए कर्म हों जीवन सार्थक तभी है. आज सुबह संगीत अध्यापिका का फोन आया, वह जब वहाँ गा रही थी, उसकी उपस्थिति को अनुभव कर रही थी, वह जैसे उसके गले में आकर विराजमान हो गया था. साँस इतनी हल्की इतनी सहजता से आ जा रही थी कि वह उसके प्रेम से अभिभूत थी. वापस आकर कोर्स में उसकी पार्टनर रही सखी का फोन आया. अब बातें करना कितना सहज हो गया है, क्योंकि बातें उसी की होती हैं न. स्वाध्याय भी किया, ‘योग वशिष्ठ’ में राम को उसकी जिज्ञासा का उत्तर देना अभी शुरू किया है. तुलसी रामायण में दोहा-चौपाई पढ़ते वक्त खुद की आवाज खुद को भली लगती है क्योंकि वही तो है भीतर जो बोलता है. जब वे छोटे-छोटे थे तो भगवान कहाँ है, पूछने पर यही समझाते थे कि वह जो अंदर बोलता है न वही भगवान है और आज उस सत्य का अनुभव हुआ है. जीवन एक उत्सव है, ईश्वर के प्रेम का अनमोल उपहार इस जीवन रूपी उत्सव में उसे मिला है. हर क्षण एक बेखुदी का आलम रहता है. सुबह नन्हे को दूध देना ही भूल गयी और संगीत की डायरी की जगह दूसरी डायरी ले गयी. अब सचेत रहना होगा, उसे याद करते हुए भी सचेत ! अज सुबह क्रिया नहीं कर पायी, शाम को जून और वह साथ-साथ करेंगे. उन्हें भी काफी लाभ हुआ है. परसों दीदी का फोन आया था, उन्हें एक दिन पत्र में लिखेगी इस कोर्स की बाबत.

परसों उनकी मीटिंग थी पर उसे याद ही नहीं रहा वह कहते हैं न कि एक तेरे सिवा सारा जहाँ भुला दिया. उसकी याद आते ही शरीर में कैसा तो रोमांच होता है और होठों पर न जाने कहाँ से मनभावन मुस्कान छा जाती है. कुछ दिन पहले गुरू माँ ‘नारद भक्ति सूत्र’ का उल्लेख करते हुए ऐसा ही कुछ बता रही थीं. कल शाम को राजयोग पुस्तक पढ़ी, उसमें भी कई लक्षण ऐसे थे जो आजकल उसमें मिलने लगे हैं और कल ही लगा कि दीदी के चेहरे पर भी जो एक चमक रहती है उसका राज यही योग तो नहीं ! इस समय दोपहर के एक बजे हैं, नन्हा आज स्कूल नहीं गया, अगले हफ्ते होने वाली परीक्षाओं की तैयारी में लगा है. वह सुबह नाश्ता बना रही थी कि एक सखी का फोन आया, उसे एक सवाल का जवाब चाहिए था, थोड़ी देर उसी में व्यस्त रही, फिर दिनचर्या के अन्य कार्य. आजकल भोजन बनाने में भी ईश्वर की पूजा की सी ख़ुशी मिलती है, उसकी स्मृति ने उसके पल-पल को भर लिया है. रात को दो-तीन स्वप्न देखे. एक में तो उसके हाथ के स्पर्श से बना बनाया मकान ढह जाता है. दूसरे में वह बिस्तर से नीचे गिर जाती है, तीसरा अब याद नहीं लेकिन रात को ही नींद खुलने पर इन स्वप्नों के अर्थ उसे स्पष्ट थे. अब कुछ भी अस्पष्ट नहीं रह गया है. जीवन एक खुली किताब की तरह सम्मुख है. बाबाजी ठीक कहते थे कि ईश्वरीय कृपा से ग्रन्थों के अर्थ भी स्पष्ट होने लगेंगे. ‘आत्मा’  में भगवद् गीता का पाठ सुनकर भी मन को संतोष और सुख मिलता है. कृष्ण का नाम उसकी सांसों में बस गया है !

गुरू माँ जो गीत गा रही हैं, उसे भाव उसके मन के भावों से कितने मिलते हैं. उसे लगता है वह ईश्वर से उसी तरह प्रेम करने लगी है जैसे कोई दो प्रियजन करते हैं, हर क्षण मन में स्मरण रहता है. उसकी याद आते ही रोमांच और तस्वीर देखते ही अधरों पर मुस्कान चिपक जाती है. वह अपनी जान से भी प्रिय लगता है. बल्कि वह तो अपनी जान ही लगता है, अपना आप ही जो हर क्षण उसे प्रेम करता है और आनंद का प्रसाद देता है. सारे कार्य अब उसी के लिए होते हैं. भोजन जैसे उसका प्रसाद बन गया है. रात को उसी के स्वप्न देखती है. उसे स्मरण करके सोती है और कभी नींद खुले या सुबह उठे तो उसी का ध्यान  रहता है. ईश्वर उसका अभिन्न मित्र बन गया है. अब जीना कितना सहज हो गया है. बाबाजी इसी सहजता की बात किया करते थे और अब यह उसे मिली है श्री श्री की कृपा से. वे गोहाटी में उनके सत्संग में जायेंगे, उनके दर्शन करके कितना लाभ होगा यह तो अकल्पनीय है और फिर उन्हें हानि-लाभ की बात तो करनी भी नहीं है. नन्हे का स्कूल आज भी बंद है. सुबह नींद जल्दी खुल गयी, सुबह की स्वच्छ हवा में गहरी सांसे लेना भी अच्छा लगा. पूसी गुमसुम सी बैठी थी, उसे देखकर भी पास नहीं आयी, अस्वस्थ है, पर जानवर अस्वस्थता को भी सुई सहजता से झेलते हैं, इंसानों की तरह हायतोबा नहीं करते, उसे लगता है कि शरीर हल्का हो गया है और वाणी स्पष्ट. क्रिया के बाद के अनुभव को शब्दों में लिखना सम्भव नहीं है. गुरू की महिमा का बखान यूँ ही नहीं किया गया है. गुरू भगवान ही है !


गुरू कृपा का अनुभव


शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो, हे दयालु भगवन !”
..और उस ज्योति स्वरूप ईश्वर को उसने देखा है, अनुभव किया है, वह उसके साथ था और उस वक्त उसे अनुपम आनंद का अनुभव हुआ, ऐसा अकल्पनीय सुख जो किसी भी अन्य स्थिति में नहीं मिल सकता. वह उससे बातें कर रही थी और वह उसे आश्वासन दे रहा था. यह सम्भव हुआ श्री श्री रविशंकर जी  द्वारा भेजे शिक्षक द्वारा सिखाई गई सुदर्शन क्रिया से. अब यह कुंजी उसके हाथ लगी है. यह अनुपम खजाना उनके ही भीतर है उसे पाने की कुंजी. ईश्वर का भजन अब कानों को अमृत के समान लगता है. बाबाजी के आँखों के आंसुओं का अर्थ और गुरू माँ के चेहरे की अनुपम मुस्कान का रहस्य भी अब खुल रहा है. अपने गुरू की याद आते ही जो उनकी आँखें रुआंसी हो जाती हैं. गुरू की महिमा का गान क्यों गाया गया है, क्यों निगुरे को चैन नहीं, यह सब कितना स्पष्ट है. उसके साथ कुछ बहुत-बहुत अद्भुत घटा है, इसके लिए वह परमात्मा की कृतज्ञ है और उन सभी की कृतज्ञ है जिनके कारण उसे यह अनुभव मिला है, ऐसा अनुभव जिसने भीतर तक आनंद की एक धारा बहा दी है. उसकी पुकार सुन ली गयी है. कल शाम को उन्होंने पुनः सुदर्शन क्रिया की, उसके पहले प्राणायाम भी किया. शिक्षक से उसकी बात भी हुई, उसके प्रश्न का उत्तर उन्होंने बाद के लिये छोड़ दिया, लेकिन उसे मालूम है कि वह जानते हैं उसने क्या पाया है ! और जो उसने पाया है वह उन्होंने भी पाया है तभी वह सेवा के इस महान कार्य से जुड़े हैं. उसे जिस मंजिल की तलाश थी वह मिल गयी है, अब कुछ पाना शेष नहीं है, कुछ भी नहीं, अब तो सिर्फ लुटाना है !

जीवन के धागों को सुलझाते हुए चलना चाहिए, अपनी मनुष्यता को सदा जागृत रखना चाहिए. मनुष्य के भीतर सम्भावनाएं असीम हैं, स्वयं को हर पल सम्भालते हुए अन्यों को भी प्रेरणा देनी चाहिए. गुरू कृपा से वेद-पुराणों का ज्ञान स्वयंमेव मिलने लगता है. वाणी पर संयम रखना बहुत जरूरी है, शब्द ब्रह्म है. व्यर्थ चिन्तन, व्यर्थ चर्चा, व्यर्थ कर्म नहीं करना चाहिए. प्रतिपल व्यवहार ही दिखाता है कि वे संसार से ऊपर उठे हैं या नहीं. जीवन में बुद्धि का महत्व उतना है जितना विमान में चालक का होता है यदि बुद्धि ईश्वर का चिन्तन करे तो परिनिष्ठित होती है. अध्यात्मिक विषयों का ध्यान करें तो बुद्धि शुद्ध होती है. जब इन्द्रियों का उपयोग ईश्वर की संतुष्टि के लिए हो तो कर्म बंधन का कारण नहीं होते, तब ईश्वर कुशल-क्षेम का भार अपने ऊपर ले लेता है और मानव को मुक्त कर देता है, मुक्त होना कितना भला है. कोई चिंता नहीं, कोई फ़िक्र नहीं. वह है न उसका प्रिय जो उन्हें बेहद-बेहद चाहता है. अचानक ही उसे शास्त्रों के अर्थ समझ में आने लगे हैं, अनायास ही उसकी वाणी में मधुरता आ गयी है, अपनी आवाज स्वयं को भली लगती है क्योंकि वह आवाज उसे भी सुनाई पड़ रही हैं, जो बातें पहले गूढ़ लगती थीं उनका रहस्य खुलता जा रहा है. बाबाजी की कई बातों का अर्थ सब स्पष्ट होता जा रहा है. अभी उसके रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट है उसका अहम् और इसे छोड़ना होगा.

साधक का एकमात्र लक्ष्य उस परमब्रह्म को प्रसन्न करना है, आसक्ति व विरक्ति दोनों से विमुक्त वह जीवन को सहज रूप में जीता है,. वह यह जानता है कि परम पिता हर क्षण उसके साथ है उसका अभिन्न अंग है, अतः पग-पग पर वह सचेत रहता है ताकि उसके मधुर प्रेम को प्राप्त करता रहे. संसार उसे लोभी, कपटी व अहंकारी बनाता है और ईश्वर उसे उदार बनाता है !





Friday, December 5, 2014

खुद से मुलाकात


कल “आर्ट ऑफ लिविंग” का पहला दिन था, उनके शिक्षक बंगाली हैं, अति सहजता से उन्होंने सिखाया. उज्जायी प्राणायाम भी किया, इसके अतिरिक्त मुस्कुराने के लाभ, अपने आस-पास के लोगों से मिलना, समय की पाबंदी और जो भी कार्य करें अपनी शत-प्रतिशत ऊर्जा उसमें लगा देनी चाहिए, आदि बताया. मानव अपनी  ऊर्जा का कुछ प्रतिशत ही कार्य में लाता है. आज भी ‘जागरण’ में सुंदर वचन सुने, ईश्वर की परम चेतना के अनुसार यदि उसकी लघु चेतना हो जाये तो मन स्थिर हो सकता है. जगत की वस्तुओं में यदि मन को लगायें तो मन अस्थिर रहता है, क्योंकि वस्तुएं तो बदल ही रही हैं, मन भी प्रतिक्षण बदल रहा है. स्थिर है तो केवल परमात्मा..मानव का अंतिम लक्ष्य तो वही है और वह भीतर है, कहीं दूर जाना नहीं. प्रेम ही उस तक पहुँचने का मार्ग है. अपने अंतर को कोई इतना प्रेम से भर ले कि दूसरी किसी बात के लिए स्थान न रहे, आस-पास के वातावरण को, लोगों को अपने आप इसका भास होने लगे. कहीं कोई काँटा न रहे, कोई उहापोह न रहे. परमात्मा  यही तो चाहते हैं, वह कहते हैं कि उन्हें भी साधक का उतना ही ख्याल है जितना साधक को उनका. वह साधक का कुशल-क्षेम वहन करने को तत्पर हैं, सिर्फ उसे ही अपने बन्धनों को तोडना है, बंधन जो अज्ञान के हैं, मोह और अविद्या के हैं. तीनों गुणों के हैं. उसे शुद्ध स्तर पर मन को ले जाना है, तभी भक्ति व ध्यान सफल होगा.

जो अपने आप में संतुष्ट रहता है, उसके आनंद का स्रोत ईश्वर होता है न कि संसार के विषय. वही स्थितप्रज्ञ है, आत्मानंदी ही ऐसा कर सकता है. कल कोर्स की दूसरी क्लास थी. शिक्षक बेहद मृदुभाषी हैं और सहज रहते हैं. ज्ञान का भंडार सबके भीतर है उसे वह उजागर करने में सहायक हैं ऐसा उन्होंने कहा. कई उदाहरणों तथा कहानियों के माध्यम से अपनी बातों को स्पष्ट किया. कल जून और वह लगभग आठ बजे वापस आये. नन्हा ठीक था, वह अकेले रहना पसंद करता है शायद उसकी तरह. उसे सुबह उठकर बात करना भी पसंद नहीं है, चुपचाप बिना मुस्कुराये अपना काम करता रहता है. वे उसे बदलने का प्रयास व्यर्थ ही करते हैं. आज भी वह छह बजे ही स्कूल चला गया. गुरू माँ तथा बाबाजी दोनों से भेंट हुई, दोनों ने यही कहा कि भौतिक वस्तुओं में आनंद खोजने जायेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी. ‘आत्मा’ में भी सुना, सच्चे आनंद का स्रोत मानव स्वयं ही है. उसे अपना साथ जब भला लगता है तभी वह खुश होता है. सुबह प्राणायाम भी किया, अच्छा लगा. इस कोर्स के बाद उसके बहुत से सवालों के जवाब उसे मिल जायेंगे, she hopes so... और सबसे अच्छी बात यह है कि उसके साथ जून हैं इस कोर्स में. वे पहली बार साथ-साथ घर से बाहर जाकर कुछ कर रहे हैं और यह उनके बंधन को और सुदृढ़ करेगा. उन्हें द्वंद्व से ऊपर उठना है और वह है स्थित प्रज्ञ की स्थिति !

“निर्भय बनना है, सत्व एवं शुद्धि को बढ़ाना है, तभी ज्ञान में स्थिति रहेगी ! चित्त में समता लानी है. सभी के साथ सौजन्य एवं मधुरता का व्यवहार करना है’ ! सुबह सुने  ये वचन उसके मन में गूँज रहे थे, जब वह कक्षा में गयी. कल उसे एक अलौकिक अनुभव हुआ. art of living का चौथा दिन था. कुछ ज्ञान की चर्चा करने के बाद शिक्षक ने उज्जायी, भस्त्रिका करने के बाद ‘सुदर्शन क्रिया’ कराई जिसमें श्री श्री रविशंकर जी की वाणी में, जो बहुत मधुर थी, ‘सोहम’ का उच्चारण किया गया था और उसके साथ श्वास लेनी व छोड़नी थी. कुछ देर तक तो वह अपने मन को देख रही थी, वह कुछ सोच रहा था पर बाद में मन दूर चला गया, हाथ-पाँव की सुध भी जाती रही. पूरे शरीर में रोमांच तो हो ही रहा था फिर अचानक आँसूं आ गये. क्रिया चलती रही और तभी उसके मस्तक से निकलती हुई या उसकी ओर आती हुई प्रकाश की चमकदार रेखा दिखी, जो बहुत तीव्र थी और मोटी भी थी. विभिन्न रंग भी दिखे और उस क्षण ऐसा लगा कि उसने कुछ पा लिया है. अब जग में कुछ भी पाना शेष नहीं है इस भाव के आते ही उसका रुदन और बढ़ गया पर कुछ ही क्षणों में नया विचार आया कि अब तो ईश्वर उसके साथ है अब सब उसी पर छोड़ देना चाहिए और फिर वह हँसने लगी. स्वर्गिक हास्य था, वह क्षण उसका सर्वाधिक सुखद क्षण था. सम्भवतः इसी को परमानन्द कहते हैं या आत्मानंद कहते हैं. उसके बाद निर्देश मिलते रहे. धीरे-धीरे वह सामान्य अवस्था में आ गयी पर उस क्षण से अब तक एक सुखद अनुभुति उसके पोर-पोर में छाई हुई है. उसके चेहरे पर अनोखी मुस्कान है ! उसने स्वयं को देख लिया है !


पौधों का घर


आज गणेश चतुर्थी है, यहाँ यह ‘गणेश पूजा’ के रूप में मनायी जाती है. जिसमें सार्वजनिक पंडाल लगाये जाते हैं, कुछ लोग मिलकर किसी के घर में भी मूर्ति की स्थापना करते हैं. आज छोटे भाई का जन्मदिन भी है, पर माँ की स्मृति में वे लोग नहीं मना रहे हैं, माँ जहाँ भी होंगी उनका आशीष भाई के साथ होगा. ‘आत्मा’ में अभी-अभी बताया “जिनकी बुद्धि एकनिष्ठ नहीं होती, अनेक शाखाओं में विभक्त होती है, उन्हें कहीं ठौर नहीं है, और एकनिष्ठ बुद्धि वाले को कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है”. जून को आज फ़ील्ड जाना है, नन्हा पढ़ने गया है. कल उन्होंने गोभी की पौध के लिए बीज डाले थे. माली को डर था कि तेज वर्षा हुई तो सारे बीज बह जायेंगे सो उसने एक शेड बनाया, सुबह वे उठे तो वाकई तेज वर्षा हो रही थी.

आज नन्हा सुबह छह बजे ही स्कूल चला गया, हिस्ट्री की एक्स्ट्रा क्लास के लिए. वे सभी जल्दी उठे, इसलिए अभी साढ़े सात ही बजे हैं और वह तैयार है. कल वे ‘गणेश पूजा’ देखने गये. शाम को चार पत्र लिखे. बाबाजी ने कहा, साधक के दुःख का कारण राग-द्वेष ही है. उसे लगा वह ठीक कह रहे हैं क्योंकि जब भी वे सांसारिक विषयों के बारे में बात करते हैं तो हानि-लाभ की तराजू में तोलकर करते हैं. अपने विषय में बात करते हैं तो विषाद या आत्मप्रशंसा के भाव के अलावा कोई तीसरा भाव नहीं आता. दूसरों के बारे में बात करते हैं तो निंदा या स्तुति के भाव से घिरे रहते हैं. अर्थात राग-द्वेष कभी पीछा नहीं छोड़ता. सर्वोत्तम यही है कि साधक बातचीत के लिए ऐसे विषयों का चुनाव करे जो भगवद् भाव से जुड़े हों क्योंकि शेष से कोई आत्मिक लाभ नहीं होगा, मात्र क्षणिक सुख की प्राप्ति होती है, वह भी बाद में दुःख का कारण बनती है. मौन रहना असत्य वाचन से श्रेष्ठ है और मन में प्रयोजन हीन विचारों को न उठाना तो अतिश्रेष्ठ है. यह जीवन तो ईश्वर का उपहार है, वही इसे चलाता, पोषता और सम्भालता है, फिर भी कोई कैसे कहता है कि उसके पास साधना के लिए समय नहीं है, सारा समय भी तो उसी का है. पहला अधिकार तो उसी का हुआ न, एकमात्र वही है जो हर पल साथ रहता है.

आज ‘ध्यान’ का एक सूत्र देते हुए गुरू माँ ने कहा कि सत्संग में सुने वचनों पर मनन करते-करते जब मन ठहरने लगे तो मानसिक मौन धारण कर लेना चाहिए या फिर अपने इष्ट की ध्यानस्थ मुर्ति की कल्पना करें और वैसा ही भाव अपने हृदय में लायें, धीरे-धीरे चित्त की वृत्तियाँ शांत होने लगती हैं. तब पिछले कर्म बांध नहीं सकते, बीता हुआ समय, बीते कार्य वर्तमान को प्रभावित नहीं कर सकते. जो बीत गया वह मृत है, अतः मन पर बिना किसी अपराध बोध को रखे नित नये जीवन का स्वागत करना चाहिए !

नन्हा आज बंद के कारण स्कूल नहीं गया, जबकि जून गये हैं. जागरण में सुने वचन हृदय को गहराई तक छू गये हैं. ईश्वर को पाना कितना सरल है, कितना सहज..जैसे श्वास लेना, लेकिन वे सही ढंग से श्वास लेना भी तो नहीं जानते, उथली श्वास लेते हैं जो उथले विचारों की दर्शाती है. श्वास के प्रति जागरूक रहने से कोई वर्तमान में रह सकता है अन्यथा भूत तथा भविष्य की कल्पनाएँ पीछा नहीं छोड़तीं. बाबाजी ने सरल उपाय बताया, ‘प्रतिक्षण श्वास को आते-जाते देखते रहें , सुबह उठकर तन को पहले खींचे फिर ढीला करें. ईश्वर को याद करें और दिन भर के महत्वपूर्ण कार्यों पर नजर डालें, फिर बिस्तर छोड़ें और दिन भर में हर एक घंटे बाद उस परम शक्ति को याद करते हुए दिनचर्या का पालन करें और रात्रि को भी गहरी श्वास लेकर सोयें.’ यह अनुपम जीवन प्रेम की भावना का अनुभव करने के लिए मिला है, अपने सहज रूप में रहते वक्त ही  कोई शांत रहता है, अधरों से गीत अपने आप फूट पड़ता है, जैसे पंछियों के गीत ! कल कविता की डायरी देखी, एक महीने से ज्यादा हो गया है लिखे हुए, उसकी कवितायें वापस आयीं तो लगा स्तरीय नहीं है, लेकिन उनका महत्व उसके स्वयं के लिए तो सदा है, किसी एक दिन स्वतः ही प्रेरणा जगेगी और शुष्क हो गये कविता कूप में फिर से जल छलकेगा. कल दोपहर ‘हंस’ पढ़ती रही, कुछ कहानियाँ बहुत अच्छी थीं. आज सुबह से वर्षा हो रही है. मौसम ठंडा हो गया है. नन्हे के पैर में दर्द अभी ठीक हुआ है.  



Wednesday, December 3, 2014

चित्रकला का संसार


आज सुबह से ही अपने–आप में नहीं है, एक के बाद एक मूर्खतापूर्ण कार्य और वाणी का प्रयोग उसे असमंजस में डाले जा रहा है. सुबह जून देर से उठे उसकी वजह भी वही थी. कल उसके सामने ही घड़ी reset हो गयी पर न तो उसे ठीक ही किया न ही जून को बताया. सुबह नन्हे को डांटा. जून से असत्य कहा, संगीत कक्षा भी है, फिर शीघ्रता में ही स्वीपर के न आने की खबर सफाई दफ्तर में कर दी जबकि बाद में वह आ गया है, उन्हें कितनी असुविधा हुई होगी उसकी वजह से दूसरा व्यक्ति परेशान हुआ जिसे काम मिल गया था. नैनी को तो उसकी गलती के लिए टोकना आवश्यक था. ...और अब उसका मन उसे ही कोस रहा है या फिर वह मन को...उसे स्वयं पर संयम नहीं था इसी का परिणाम था यह सब. शायद वह संगीत सीखने नहीं जा पायी इसकी वजह से..बाबाजी कहते हैं..छड्डो परे....और ईश्वर से सच्चे दिल से क्षमा मांग लो. परम शांति तो स्वयं की ही है..हर क्षण ..हर पल !

पिछले कई दिनों से अधर्म की वृद्धि हो रही थी और ईश्वर अपने वायदे के अनुसार मन के द्वार पर दस्तक देने आया है. उसके साथ सदा ऐसा ही होता है. जब कभी संसार उसे घेर लेता है एक बेचैनी उसे वहाँ से भागने पर विवश कर देती है. कुछ दिन या कुछ पल यदि ईश्वर के स्मरण के बिना गुजरे हों तो एक छटपटाहट सी होने लगती है जो कहती है कि यह मार्ग उसका नहीं है. आज सुबह गुरुमाँ ने सत्य कहा था कि यदि कोई सुख चाहता है तो उसे याद करे वरना न करे. उसे याद करते रहें तो अपने कर्त्तव्यों का बोध भी बना रहता है. कर्त्तव्य अपने देह, मन, आत्मा के प्रति, अपने परिवार, संबंधियों, पड़ोसियों के प्रति, अपने समाज, शहर व देश के प्रति तथा मानवता के प्रति अपने मातहत काम करने वालों के प्रति. जीवन एक उपहार है जो ईश्वर ने दिया है. हर श्वास पर उसी का अधिकार है, अभिमान करने योग्य यदि कुछ है तो यही कि मानव जन्म पाया है. इसे सार्थक करना या इसका अपमान करना उसके वश में है. आज कैलेंडर देखा तो पता चला कि कल अमावस्या थी, उसके व्रत का दिन पर उसे याद नहीं रहा, इतवार का दिन जो था. अब आने वाले कल रखेगी. कल एक पुराने परिचित आये, उन्हें भोजन कराया वह मिठाई लाये थे अपने शहर की. यह प्रेम का संबंध ही तो है जो उन्हें उनके पास लाता है. ईश्वर के प्रति प्रेम हो तो वही प्रेम अन्यों के प्रति झलकता है. उसका हृदय प्रेमयुक्त हो !


आज गयी थी संगीत सीखने, सो ‘जागरण’ नहीं सुना. लौटी तो ध्यान आदि किया, भोजन बनाया. पत्र अधूरे ही पड़े हैं, कुछ नया लिखा भी नहीं, पत्रिकाएँ पढने का भी समय नहीं मिला. चित्रकला का अभ्यास भी उसने कुछ दिन पहले शुरू किया था, बीच में ही छूट गया है, पर कल नन्हे ने बहुत दिनों के बाद एक चित्र बनाया अपने स्कूल में होने वाली एक प्रदर्शनी के लिए  आज सुबह वह अपने आप ही उठा, फिर बस स्टैंड तक उसे छोड़ने जून गये. अभी-अभी उनका फोन भी आया. कल कहा कि उन सभी को घर पर भी अच्छी वेशभूषा में ही रहना चाहिए, अस्त-व्यस्त सा नहीं. क्लब की मीटिंग का बुलेटिन भी आया है, जाने का अभी तो ज्यादा उत्साह नहीं है लेकिन सदस्या बनी है तो मीटिंग में जाना कर्त्तव्य भी तो है जब तक कि बेहद आवश्यक कार्य न हो अनुपस्थित नहीं होना चाहिए. कल माली ने तीन क्यारियों में खाद डाल दी है, इस बार वे सर्दियों की सब्जियां शीघ्र लगा सकते हैं. अभी एक सखी से बात हुई, उसने घर आने का निमन्त्रण दिया है, वे अवश्य जायेंगे.