चुपचाप युगों से खड़े दरख्त
आकाश को तकते ऊंचे-ऊंचे दरख्त
कभी किन्हीं सवालों का जवाब
बन जाते हैं
पीले पत्तों सा झर गया
मन का पतझड़
फिर से अंकुरायी है कोंपल-कोंपल
सूखे पत्तों की खडखडाहट सी
कोई आवाज बुलाती है
अभी अभी कोई हेलिकॉप्टर गया
है
सन्नाटे को तोड़ता हुआ !
फिर तीन दिनों का अंतराल और आज फरवरी महीने के
प्रथम दिन दोपहर के पौने एक बजे थकान से बोझिल वह खतों, अख़बारों और पत्रिकाओं को
साथ लेकर बैठी है, मन तो बस यह चाहता है कि कम्बल ओढ़कर कोई अच्छी सी कहानी पढ़ते-पढ़ते
सो जाये, लेकिन खतों के जवाब कल देने थे, दोपहर को किसी के घर जाना पड़ा, लेडीज
क्लब के काम के सिलसिले में. सारी सुबह आज ही की तरह किचन में बीती.
पिछले तीन-चार दिन बेहद
व्यस्तता भरे थे, सुबह से ग्यारह बजे तक कामों का सिलसिला खत्म होने में ही नहीं
आता था, पर आज कितना सुकून महसूस कर रही है, सवा दस हुए हैं, कपड़े, रसोईघर, घर अभी
साफ हो चुके हैं, आज एक नई नौकरानी मिल गयी है और स्वीपर भी समय पर आ गया. उस दिन
भी और उसके बाद आज तक पत्रों के जवाब नहीं दे पायी अब अगले सोमवार को ही या उसके
पहले अगर माहौल या मूड जमा तो, वैसे जून ने कल दोनों घरों पर फोन से बात तो की है.
आज दोपहर से एक नया माली भी आएगा काम करने. आज सुबह नन्हे की सर्दी कुछ बढ़ी हुई लग
रही थी पर वह स्कूल गया तो है, बहादुर है, कल उसने कक्षा में तीन कहानियाँ सुनायीं,
बड़ा होकर कहानीकार बन सकता है. पडोसिन ने कपड़े धोने की मशीन खरीद ली है, देखने का
मन है.
दो दिन बाद, शाम के सात बजे
हैं, इस समय एकाएक कुछ लिखे ऐसा शुभ विचार मन में आया है, ऐसे अवसर दुर्लभ होते जा
रहे हैं, यही सोचकर झट डायरी और पेन उठा लिए हैं, क्योंकि क्या मालूम यह लिखने का
आवेग कितनी देर का है, ऐसा क्यों हो रहा है आजकल इसका माकूल जवाब नहीं है, कभी
नहीं था, पहले भी कई बार हफ्तों ऐसे ही गुजर गए और उसने कुछ नहीं लिखा, लेकिन मन
के किसी कोने में खलबली सी धीमी-धीमी रहती जरूर है कि...आज सुबह धूप निकली थी, फिर
बादल छाये रहे और शाम से बरसने भी लगे हैं, उन्हें क्लब जाना था पर..
दो दिन फिर बीत गए, उस दिन
जून ने कहा कि जो चार्ट वह बना रहे हैं उसे नूना पूरा करे नन्हे के लिए और उसका
पेन वहीं रुक गया, कल वही जानी-पहचानी सी खुमारी थी बदन में, आज ठीक है, समय भी
बहुत है, जून आज देर से आने वाले हैं. नन्हे के स्कूल में अचानक छुट्टी हो गयी, वह
तैयार हो चुका था, अब ड्रेस बदले बिना पड़ोसी के यहाँ खेलने चला गया है. उसने
सर्वोत्तम में उक्ति पढ़ी अभी कुछ देर पूर्व,
“हमें अपना अच्छा मित्र बनने
का प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि अक्सर हम अपने बुरे मित्र बनने के जाल में फंस
जाते हैं”.
कितनी सही और सटीक है यह
बात, उसके साथ भी अक्सर ऐसा होता है, जब वह बेवजह उदास हो जाती है, झुंझलाने लगती
है या स्वयं को कमजोर समझने लगती है, क्यों न वह अपनी सबसे अच्छी साथी बनना इसी पल से शुरू कर
दे. अभी-अभी उसकी एक सखी ने फोन पर बताया कि क्लब की पत्रिका में उसकी कवितायें
छपी हैं, शायद जून आज लायें. मौसम आज भी बेहद ठंडा है, वर्षा बस होने ही वाली है,
सर्वोत्तम की एक और सूक्ति के साथ ही उसने लिखना बंद किया,
“ हमें अपने बच्चों को खुली
आंखों से स्वप्न देखना सिखाना चाहिए.”