Sunday, August 21, 2016

मिट्टी का पात्र


आज बहन को उन पर लिखी कविता भेज दी, उनकी लगभग सभी गतिविधियाँ उसमें लिखी हैं, पेंटिंग वाली बात रह गयी, दोनों भाजियों ने मिट्टी के पात्र पर सुंदर चित्रकला का अभ्यास किया था. दोपहर का वक्त है, धूप चमकती हुई सी. माँ-पिताजी अभी सो रहे हैं, माँ तो शायद काफी पहले उठ चुकी होंगी, यूँ ही लेटी होंगी. उनकी मानसिक स्थिति डांवाडोल हो गयी है, वैसे देखा जाये तो किसका मन नहीं डोल रहा है, बस मात्रा का अंतर है. डाक्टर बहन ने उनसे ज्यादा प्रोटीन युक्त भोजन लेने को कहा है, किन्तु इससे भार बढ़ गया है. कल शाम वे सेंटर में रूद्र पूजा में सम्मिलित होने गये. सद्गुरू इस पूजा के द्वारा वातावरण को शांत व हिंसा मुक्त बनाना चाहते हैं. कर्मकांड थोडा बहुत रहे तो चलता है पर बहुत ज्यादा हो और उसके पीछे कोई भावना न हो तो दिखावा लगता है. जून कल कोलकाता जा रहे हैं.

आज सुबह मूसलाधार वर्षा हुई, कड़ाकेदार बिजली चमकी, बिजली चली गयी और अभी बिजली विभाग के लोग आये हैं. माँ को डर लग रहा है, कह रही हैं, बिजली काट रहे हैं, पानी न काट दें. उनके मन में कहीं गहरे में जो बिजली, पानी जाने का डर छुपा है, वह उभर कर सामने आता है आजकल. दोपहर को किताब पढ़ते-पढ़ते आँख लग गयी, स्वप्न में बड़े भाई, छोटी बुआ और छोटी ननद को देखा, सभी कैरम खेल रहे हैं. कल उन बुजुर्ग आंटी से बात हुई, उन्होंने अपने पुत्र के जन्मदिन पर बुलाया जो जून के साथ काम करते हैं, तथा उनके पारिवारिक मित्र हैं. कई दिनों से उन लोगों से भेंट नहीं हुई, कविता लिखने के लिए कुछ तो जानकारी चाहिए, या फिर कल्पना से ही शुभकामना के साथ चंद पंक्तियाँ लिखना ठीक रहेगा. जन्मदिन किसी के भी जीवन में एक खास दिन होता है. बचपन से उसको स्मरण कराया जाता है कि वह कुछ विशेष है और वह उस दिन तो राजा होता है. वैसे तो हर कोई अव्यक्त बादशाह है पर उस दिन तो सचमुच का बादशाह हो जाता है. उस दिन सागर के एक जलीय अंश ने अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व बनाया होता है. एक लहर उठी होती है चेतना के सागर में. जून के उन सहकर्मी को फोटोग्राफी का शौक है. धैर्यपूर्वक प्रकृति के जीवों के चित्र उतारना, सौन्दर्य की परख तथा सौन्दर्य का सृजन करना, एक कलाकार की पारखी नजर, चीजों को सम्भाल कर रखना, उनकी कद्र जानना, बाजार की समझ रखना तथा माँ का ध्यान रखना, नपा-तुला भोजन. ऐसे व्यक्तित्त्व पर कविता सहज ही बन सकती है. इसी तरह जून का जन्मदिन भी अगले महीने है, उनकी ढेर सारी खूबियों पर एक कविता लिखेगी.

जून आज वापस आ रहे हैं. कल शाम फोन पर उसका नाप पूछा. नये वस्त्र (आधुनिक परिधान) ला रहे हैं जबकि वस्त्र बहुत हैं उसके पास. अभी नन्हे से बात की वह शाम को छोटी मासी के जन्मदिन में जायेगा, वह अपने ज्येष्ठ के घर में है. सुबह उससे बात की, बहन धीरे-धीरे बोल रही थी, वहाँ अभी तक सहज नहीं हो पायी है. परमात्मा का प्रेम मिले बिना कोई सहज हो भी कैसा सकता है. उसने बच्चों को कविता भी पढ़कर नहीं सुनाई, वापस घर जाकर सुनाएगी.

मृणाल ज्योति जाना है, उससे पूर्व कुछ आवश्यक कार्य करने हैं. सेक्रेटरी तथा कन्वेनर को फोन करके योगराशि लेनी है, डोनर सदस्याओं के घर जाकर उनसे भी मिलना है. शिक्षिकाओं के लिए उपहार खरीदने जाना है. पुराने वस्त्र व प्लास्टिक का सामान भी एकत्र करना है, दो परिचारिकाओं के लिए भी कुछ लेना है. वार्षिक सभा के लिए कुछ लिखकर रखना है. भविष्य में स्कूल कैसा बने इसके लिए एक सुंदर कविता लिखनी है. रक्षा बंधन भी इसी माह है. मंझला भाई शिलांग में है. बड़ा चचेरा भाई हरिद्वार में है, छोटा अंबाला में है. सभी को राखी भेजनी है. जून आज शिवसागर गये हैं, उसे समय है, प्रकृति पहले से ही सब इंतजाम कर देती है, उन्हें बस सही कदम उठाना होता है. परमात्मा हर श्वास में उनके भीतर प्रवेश कर रहा है. उसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता, कितना सही कहा है परमात्मा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता. वह कण-कण में हैं, वह वर्तमान में है, श्वासों में उसकी गंध उसे आने लगी है. वह नशा है, वह खुमारी है, वह बेमोल बिकता है, वह सहज ही प्राप्त है, वह तो लुटा रहा है स्वयं को, कितना अनोखा है यह सब..उसका मन अब बचा ही नहीं है. छोटी भतीजी के लिए भी एक कविता लिखनी है, परसों जिसका जन्मदिन है

Friday, August 19, 2016

फूल-पत्तियों वाले कार्ड


आज अभी कुछ ही देर बाद मेहमान आने वाले हैं. पिताजी को भी उनके आने का इंतजार है, माँ को अब किसी के आने-जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. मौसम अच्छा है आज भीगा-भीगा सा. उसने सोचा  उनके लिए कुछ लिखे -  
बरस के बादलों ने भी स्वागत किया है
इंतजार क्यों न करे, अति उत्सुक हिया है

दूर देश से उड़ के आये, अधरों पर ओढ़े मुस्कान
दिल्ली में रहे मौज मनाये, अब आये हैं वे आसाम

जून ने अगले कुछ दिनों के लिए अवकाश ले लिया है. आज वे उन्हें लेकर दिगबोई गये. मौसम पहले-पहल अच्छा था, फिर धूप निकल आई. धूप में भी भांजियों ने खूब मस्ती की, विभिन्न पोज देकर तस्वीरें उतारीं. वापसी में मौसम पुनः अच्छा हो गया. वे म्यूजियम भी गये, पार्क में बोटिंग की.

आज दोपहर वे उसके साथ बच्चों की सन्डे योग कक्षा में गये. डाक्टर बहन ने उन्हें स्वच्छता के विषय में जानकारी दी. नाड़ी तथा हृदय के बारे में बताया. चार्ट पेपर पर एक क्रॉसवर्ड बनाकर शरीर के अंगों के नाम सिखाये. लडकियों ने उन्हें प्लास्टिक की बोतल से पेन होल्डर बनाना सिखाया. फूलों और पत्तियों को कागज पर चिपका कर कार्ड बनाना सिखाया. बच्चों को बहुत आनंद आया. रेन क्लैपिंग में तो वाकई उन्हें बहुत खुशी हुई. उनके दिन अच्छे बीत रहे हैं.

कल सुबह छोटी भांजी क्लब में तैरने गयी. वह अच्छी तैराक है. शाम को जून आयल फील्ड दिखाने ले गये, उन्होंने समझाया किस तरह तेल को पानी व गैस से अलग किया जाता है. वापस आकर सभी मिलजुल कर घर का काम करते हैं. छोटी भांजी सलाद सजाती है तो बड़ी टेबल लगा देती है. बीच-बीच में ज्ञान चर्चा भी होती है. माँ-पिताजी को भी उनका साथ भाने लगा है.

कल वे आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर गये थे जहाँ साप्ताहिक सत्संग था, उसके पूर्व गुरुद्वारे तथा काली बाड़ी दिखाए. आज वह बहन को मृणाल ज्योति ले गयी, जहाँ उसे एक मीटिंग में भाग लेना था. मीटिंग के दौरान बहन बाहर टहलती रही, उसे अपना वजन घटाना है सो दिन में कई बार टहलने जाती है. वहाँ उसने एक छोटी तिपहिया साइकिल दान में दी.

आज सभी वापस चले गये हैं. रोजाना की सुबह-सुबह की सैर आज नहीं हुई, क्योंकि वर्षा काफी तेज थी. प्राणायाम किया. जून आज पांच दिनों के बाद दफ्तर गये. वह बहन को एक पड़ोसिन से मिलाने ले गयी. तुलसी का एक पौधा वहाँ से लायी जिसे अभी तक लगाया नहीं है. जाते-जाते बच्चों का वीडियो भी लिया जैसा आते वक्त लिया था. बहन अपनी डायरी छोड़ गयी है ताकि उसे पढ़कर वह कोई कहानी लिख दे ! छोटी भांजी ने भी अपनी एक कहानी दी है, हिंदी अनुवाद के लिए. उनके ढेर सारे चित्र हैं और ढेर सारी यादें हैं. उनके साथ बिताये दिन सुखद याद बन गये हैं !


अज गुरु पूर्णिमा है, सुबह वे सेंटर गये थे. दोपहर को पूजा में भाग लिया, एक बार तो लगा कि जैसे तस्वीर में गुरूजी सजीव हो उठे हैं, उनकी मुस्कान कितनी वास्तविक लग रही थी. आज माँ घर से बाहर जाने के लिए कह रही थीं. आजकल उनको खाने-पीने से अरुचि हो गयी है. पिताजी भी उनकी हालत देखकर परेशान हो गये हैं. 

Thursday, August 18, 2016

पौधों में चेतना


कल वह मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल के साथ कम्पनी प्रमुख से मिलने गयी, कम्पनी स्कूल की कई तरह से सहायता करती है. उन्होंने इस संस्था को एक ट्रस्ट बनाने का सुझाव दिया. आज मौसम अच्छा है, धूप तेज नहीं है. कल जून टूर पर जा रहे हैं. हिन्दयुग्म को एक कविता भेजी. जीजाजी का जन्मदिन आ रहा है, उन्हें भी एक उनकी पसंद की कविता भेजे, ऐसा मन है. उसका मन कितनी दिशाओं में भाग रहा है पर उसको देखने वाली आत्मा स्थिर है, गुरूजी कहते हैं, आत्मारामी सदा रहने वाली मुस्कान को प्राप्त होता है, वह सत्य और सुन्दरता का उपासक होता है. वह चाहता है..जीवन एक उत्सव बने जिसमें सभी शामिल हों..  आज से माओवादियों ने अड़तालीस घंटों का बंद घोषित किया है.

जून का फोन आया है, उन्होंने नया कैमरा खरीदा है. नन्हे को लड्डू मिल गये, फोन पर उसने बताया. आज ब्लॉग पर ढेर सारी रचनाएँ पोस्ट कीं, कहानी, कविता, लेख सभी कुछ. आज नन्हे का जन्मदिन है. सुबह आठ बजे उसने फोन किया, उसे कविता भी मिली. इस बार ध्यान से पढ़ी ऐसा उसने कहा. आज माँ सुबह से कुछ अस्वस्थ हैं, उन्हें सम्भालना कठिन होता जा रहा है. वह अकेले रहने से घबराती हैं, काल्पनिक जीवों से उन्हें भय लगता है. सड़क पर चलते हुए लोग भी उन्हें ठीक नहीं लगते. दवा भी छिपा देती हैं, शायद दवाई खाते-खाते ऊब गयी हैं. नाश्ते के समय कहने लगीं, सब कुछ चार की संख्या में चाहिए, उनका मन उनके नियन्त्रण में नहीं है न ही उनकी वाणी, क्या यही है मानव जीवन के संघर्ष का अंत. पिताजी कभी-कभी झुंझला जाते हैं.

उसे गुरू पूर्णिमा के लिए कविता भी लिखनी है. अगले हफ्ते छोटी बहन अपनी दो बेटियों के साथ आ रही है. सोचकर मन में हर्ष का, उत्साह का भाव पनप रहा है. सभी के लिए वे आठ-नौ दिन मंगल मय हों, यही कामना है. पूरे घर में सफाई का काम भी शुरू किया है. थोड़ी देर बगीचे में काम किया, पौधे भी उसे पहचानने लगे होंगे, चेतना तो उनके भीतर भी वही है, सारी सृष्टि उस एक का पसारा है, यहाँ दो हैं ही नहीं और उस एक में वह भी है, कितना अनोखा है यह आत्मा का ज्ञान..क्या नैनी के पति में वह चेतना नहीं है, वह सुप्त है, घोर तमस में सोयी है उसकी चेतना, एक न एक दिन तो जागेगी..उसे उस दिन की प्रतीक्षा है. शांतला की कथा समाप्त होने को है. बहुत दिनों से उसे छोड़कर कुछ भी नहीं पढ़ा. आज जून आने वाले हैं.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   


Wednesday, August 17, 2016

इन्द्रधनुष के रंग


दीदी का फोन आया आज, उन्होंने स्मृति पर आधारित वह कविता पढ़ी, कुछ और बातें भी बतायीं जो उसे ज्ञात नहीं थीं. उनकी उस बहन को डिप्थीरिया हुआ था, जो बचपन में ही चल बसी थी. आज तो उसका टीका है उस वक्त नहीं था. आज शाम को वर्षा में वे भीगे, जून और वह, उन्हें देखकर पिताजी भी आ गये, फिर कुछ देर तेज मूसलाधार वर्षा के बाद आकाश में इन्द्रधनुष बन गया बहुत सुंदर ! उसने वर्षा पर कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं, कल सुबह उन्हें टाइप करेगी. इस वक्त शाम गहराती जा रही है. वह लॉन में है. हवा में ठंडक है और वातावरण धुला-धुला सा है. पंछियों की आवाजें आ रही हैं. प्रकृति का जैसा सान्निध्य यहाँ प्राप्त है वैसा बड़े शहरों में रहने वालों को शायद ही होता हो ! कल रात को नैनी के यहाँ झगड़ा हुआ पर आज शांति है, देखे, कब तक टिकती है. उसके पति को उसने समझाया और वादा भी किया कि उसे काम पर जाने में कोई बाधा नहीं होने देगी. ईश्वर उसकी सदा की तरह मदद करेंगे ! यह वाक्य ही गलत है, ईश्वर और वह क्या दो हैं ?

परसों लेडीज क्लब की मीटिंग है, उसे कविता याद करनी है. निराला की कविता भिक्षुक, बचपन में पहली बार पढ़ी थी. आज भी हल्की-हल्की फुहार पड़ रही है. कुछ नई कविताएँ लिखीं, ब्लॉग पर डालीं. हजारों लोग हजारों कविताएँ लिख रहे हैं. वास्तव में कवि स्वान्तः सुखाय ही लिखता है, रचना का पहला पाठक भी तो वही होता है. आज योग अभ्यास व क्रिया साधना करते समय बीच में ही रुककर उसने जून से जो कहा, वह पहले कभी कहा ही नहीं जा सकता था, अब भीतर साहस आया है, साहस जो ध्यान से उपजा है. सद्गुरु कहते हैं, ध्यान प्रार्थना की पराकाष्ठा है. ध्यान में जो ताकत है जो करते हैं वे जानते हैं !

कल दीदी से बात की, छोटी भांजी दुबई आ रही है, ओपेरा का जॉब उसने छोड़ दिया है. उसके नार्वेजियन पतिदेव पिछले पांच महीने से लन्दन में हैं. दोनों के बीच सम्पर्क कम होता जा रहा है, ऐसा दीदी ने कहा. वह जरा भी परेशान या दुखी नहीं थीं. जीवन जब जैसा हो वैसा ही वे स्वीकार करें तो..दुःख कैसा ? उसे यहाँ आने का निमन्त्रण दिया है, शायद वह आये..कभी न कभी यह इच्छा भी पूरी होगी ही ! आज उनकी मीटिंग है, कविता उसे याद हो गयी है, देखे, क्या होता है. आज सुबह उसने एक बात कही तो जून ने कहा कि उन्हें सदा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए, अब वह उसकी भाषा बोलने लगे हैं. कल माँ-पिताजी का जन्मदिन वे मना रहे हैं. कल पिताजी का फोन आया, वह कह रहे थे कि जितना-जितना ज्ञान उन्हें होता जाता है , उतना-उतना लगता है वे तो कुछ भी नहीं जानते. उसे अब इस जगत में जानने जैसा कुछ भी नहीं लगता, जो है सो है, जो जैसा है तब वैसा है..बस यही ज्ञान है, ज्यादा पढ़ना-सुनना अब व्यर्थ ही लगता है और सुनती भी है क्योंकि कुछ न कुछ तो करना ही है, कुछ किये बिना रहना हो नहीं सकता...शाम की तैयारी करनी है.

जुलाई माह का आरम्भ हो चुका है. मौसम भी बदल रहा है, उमस और चिपचिपाहट भरी गर्मी का मौसम. जब तक बादल बरसते हैं तभी तक ठंडक रहती है वरना..आज नन्हे के लिए उन्होंने गोंद के लड्डू तथा एक कविता भेजी है. इसी महीने छोटी बहन आ रही है. जून को कोलकाता तथा जोधपुर जाना है. उनका दर्द अभी पूरा गया नहीं है, थोडा़-थोडा़ सा शेष है, सद्गुरू की कृपा से उनके भीतर भक्ति, श्रद्धा व ध्यान का उदय हुआ है, प्रार्थना करना उनकी आदत में शुमार हो गया है.आशा नामकी एक लडकी जो कभी-कभी उसके पास पढ़ने आती है, आज पीतल के बर्तनों को चमका रही है. कभी-कभी मेहमानों को आना चाहिए अथवा तो त्योहारों को..

सलाह देने या दूसरों को उपदेश देने का उसे रोग है. कोई मांगे या न मांगे हर बात पर सलाह उसके भीतर तैयार ही रहती है, शायद इसकी वजह यही है कि उसे भीतर समाधान मिल गया है और उसे लगता है कि सभी को फटाफट समाधान मिल जाये, कि वे क्यों व्यर्थ ही परेशान रहें, हो सकता है उसके सूक्ष्म अहम् की पुष्टि होती हो..लेकिन सद्गुरु कहते हैं कि इस जग में जो सबसे ज्यादा दी जाती है और सबसे कम ली जाती है वे हैं सलाहें..यहाँ हर एक आत्मा को अपना समाधान स्वयं ही खोजना होता है कोई बना बनाया उत्तर किसी के काम नहीं आता तो आज के बाद यह निश्चय किया कि कई सलाह नहीं देनी है, किसी को भी नहीं देनी है, सभी अपनी मंजिल स्वयं ही तलाशेंगे, जब परमात्मा उन्हें जगायेगा तब वे जागेंगे !                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        


Tuesday, August 16, 2016

ब्रह्म मुहूर्त


आज कई दिनों के बाद धूप निकली है. समय वही दोपहर का है पर वह भीतर है, सिर में हल्का दर्द है, आइसपैक का इलाज बेहतर रहेगा. आज जून बहुत खुश हैं. वह अध्यात्म के मार्ग पर चलने को तत्पर हैं, भीतर के प्रेम को महसूस ही नहीं कर रहे, प्रकट भी कर रहे हैं..सद्गुरु की अपार कृपा है उन दोनों पर..वह दूर होकर भी इतने पास हैं..आज भी ध्यान में उनके ही चरणकमल थे, परमात्मा को जब वे अपने जीवन का केंद्र बना लेते हैं तो प्रसन्नता उनके अंग-संग छाया की तरह रहती है, आज ब्लॉग पर एक नयी कविता पोस्ट की !

पिछले पांच दिन डायरी नहीं खोली. कल दिन भर शाम के सत्संग की तैयारी में बीता. आए कुल जमा तीन लोग. सद्गुरू उसे कुछ संदेश देना चाह रहे हैं. परसों वे डिब्रूगढ़ गये थे. जून का दर्द कम होता था फिर बढ़ जाता था. वहाँ एक डाक्टर को दिखाया, उसने एक इंजेक्शन दिया, अब काफी कम है. उससे पूर्व इतवार था, एक सखी को रात्रि भोजन पर बुलाया था, शनिवार को एक सखी का जन्मदिन था, वे पार्टी में गये. शुक्रवार को दोपहर बहुत गर्म थी, शाम को एक बुजुर्ग आंटी से मिलने गये. सो ये पिछले पांच दिन खुद से दूर ही बीते. आज पुनः खुद की सुध आई है. साधना भी कई दिन बाद मन से की. इस समय साढ़े दस बजे हैं सुबह के, दोपहर का भोजन बन गया है. थोडा सा वक्त है. भीतर सदा की तरह शांति है और है एक दृढ़ संकल्प कि कितना भी आवश्यक कार्य हो साधना नहीं छोड़नी है और न ही लिखना छोड़ना है, इससे खुद का पता रहता है कि वे किधर जा रहे हैं. जून भी शायद एकाध दिन से नहीं लिख रहे हैं. कल से वह सुबह के कीमती वक्त का पूरा उपयोग करेगी. एक पल भी व्यर्थ नहीं खोना है. ब्रह्म मुहूर्त की बेला इधर-उधर की बातों में नहीं खोयी जा सकती ! माँ-पिताजी बाहर बैठे हैं. मौसम पुनः बदली वाला हो गया है. नन्हा इतवार की रात को चेन्नई से नहीं चला, बल्कि सोमवार को मोटरसाईकिल पर एक मित्र के साथ आया. जून को इस बात की जानकारी नहीं है, वह व्यर्थ ही परेशान हो जायेंगे. छोटी बहन ने लिखा है वह फिलोसफी की अध्यापिका से मिलेगी, पर उसे अपने सवालों के जवाब भीतर ही खोजने होंगे, बाहर केवल भटकन है, हर एक को अपना रास्ता स्वयं ही बनाना पड़ता है. सद्गुरू की पहचान भी तभी होती है जब खुद से पहचान हो जाये. बड़ी भांजी को अब सन्तान की जरूरत महसूस होने लगी है. उसे जिस सहयोग व ज्ञान की जरूरत है वह परिवार से मिलना कठिन है. दीदी को ही उसे समझाना होगा, लेकिन तभी न जब वह स्वयं पूछे.

आज वर्ष का सबसे लम्बा दिन है. वे रोज की तरह चिड़ियों की चहकार सुनकर उठे. मंझला भाई दो दिनों के लिए आया था, कल शाम उसे ट्रेन में बिठाकर वापस लौटे और योग निद्रा का अभ्यास किया. ध्यान अब जीवन का स्वाभाविक अंग बन गया है और मुस्कान अपनी सहज आदत..जून भी अब बेबात मुस्कुराना सीख गये हैं ! आज उसकी छात्रा के आने का दिन था, पर शायद वह पैतृक घर गयी होगी. सुबह घर की सफाई की और साप्ताहिक स्नान भी, स्वच्छता पवित्रता से भर देती है. इस वक्त धूप निकली है और हल्की बूंदा-बांदी भी हो रही है ! उसके सम्मुख तीन न्यूज़वीक पड़ी हैं.

आज बचपन की एक स्मृति पर आधारित कविता लिखी और पिताजी, दीदी व बड़े भाई को भेजी, पता नहीं क्या प्रतिक्रिया हो उनकी..आज सत्संग का दिन है, अब जून भी पूरे उत्साह से तैयारी करते हैं. परमात्मा को केंद्र में रखे कोई तो जीवन कैसा रसपूर्ण हो जाता है, फिर किसी बात की कोई फ़िक्र रहती ही नहीं. अभी सवा पांच हुए हैं, वह इस कक्ष में आ गयी है, जहाँ अगरबत्ती की भीनी-भीनी सी खुशबू है, शीतल हवा है, श्वेत चादर है और दीवार पर गुरूजी की मुस्कुराती सी तस्वीर है. इस क्षण भीतर एक पूर्णता का अनुभव हो रहा है, जैसे कुछ भी पाना शेष नहीं है, पाना अर्थात सांसारिक दृष्टि से, आध्यात्मिक दृष्टि से तो अनंत संभावनाओं के द्वार खुले हैं !


Friday, August 12, 2016

वर्षा की फुहार


दीदी को फोन किया, कार्ड भेजा तथा फेसबुक पर शुभकामना दी, उनके फोटो देखे तथा उन पर कमेन्ट भी किया यानि उनके जन्मदिन में वह भी शामिल रही क्योंकि उसके सिवा कुछ है ही नहीं, वह ही है इस सृष्टि के कण-कण में..उसकी आँखों के सामने एक हल्की सी परत देखी दे रही है शायद यह बढ़ती हुई उम्र के कारणआँखों का कोई रोग हो..इसके कारण कोई परेशानी देखने में नहीं हो रही है. आज माली ने घास काटी है, हरा-भरा बगीचा बहुत सुंदर लग रहा है. उस दिन संध्या को शीतल पवन में बैठकर जो कविता लिखी थी उसे एक पाठक ने सराहा है ! आज भी आकाश में बादल हैं पर हवा में हल्की तपन भी है. भीनी-भीनी फुहार भी पड़ रही है. पंछी भी चहचहा रहे हैं, यानि की कविता लिखने के लिए सारे उद्दीपन मौजूद हैं ! आज ध्यान में अनोखा अनुभव हुआ. भीतर एक उस बिंदु पर जाकर यह लगा कि वही है.. जिसको बाहर तलाशा था वही खोजने वाला है..और उसका असर हुआ कि एक मुक्तता, एक निश्चिंतता सी छा गयी है..उसके सिवा कुछ भी तो नहीं है ! फिर कैसी कामना..कैसा राग और कैसा द्वेष ? जब दो हैं ही नहीं तो कैसा खोजना और कैसा पाना..कैसी मुक्ति और कैसा बंधन ? जून का स्वास्थ्य ठीक हो रहा है, नन्हा भी अपने काम से संतुष्ट है, परमात्मा है तो सब कुछ जैसा है वैसा ही होना चाहिए था या जैसा होना चाहिए था वैसा ही है !

फिर वही झूला, वही बगीचे की हरी घास और खिले हुए गुलाब ! फिर वही बरसात का मौसम ! भीनी-भीनी सी फुहार ! फिर वही भरी दोपहरी और ये डायरी के पन्ने ! फिर वही माँ की बेवजह परेशानी और बातें..जैसे कि रात हो गयी है मच्छरदानी लगी हो तो वे सो जाएँ. फिर वही हवा की आवाज पीपल के पत्तों का झूमना..शीतल पवन के झोंको से भीतर तक एक सिहरन का अनुभव करना..फिर वही दिन में रात होने का मंजर..पूरब दिशा से काले बादलों का उमड़ते-घुमड़ते आना..हल्की-हल्की बूंदा-बांदी और फिर वही दूर से कोयल की कूक...कितनी हसीन है यह दुनिया और कितना सुंदर है ब्रह्म का यह मूर्त रूप...यह धरा यह गगन और आकाश से उतरती वर्षा परी..यह बारिश की टप-टप करती बूंदें..  


आज सुबह रोज की तरह उगी, जून और वह प्रातः भ्रमण के लिए गये. लौटते समय उन्होंने कहा कि वर्षा होती रही तो क्या तब भी वे पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दोपहर को तिनसुकिया जायेंगे. निर्दोष सा प्रश्न था जिसका उत्तर होना चाहिए था कि देखेंगे, पर उसके संस्कार ( वाणी दोष के ) इतने प्रबल हैं (उपदेश देने के भी) कि कह दिया, उनके भीतर एडवेंचर स्पिरिट कम होती जा रही है, बल्कि खत्म होती जा रही है, उत्साह नहीं है, उत्साह नहीं रहा तो जीवन मृत्यु के समान है, इतने बड़े-बड़े शब्दों की बमबारी कर दी व्यर्थ ही और तत्क्षण ही समझ में आ भी गया कि कुछ गलत हो गया है. मन उदास था गोयनकाजी बोलते हैं कि ऐसे में शरीर में संवेदना होने लगती है दुखद संवेदना, उसी को लिए-लिए ध्यान कक्ष में आयी तो खिड़की बंद थी जो जून ने मैना पक्षी से बचने के लिए की थी, जो कई दिनों से भीतर घोंसला बनाने के लिए आ जाती थी. फिर मन ने झट प्रतिक्रिया की, बंद कमरे में प्राणायाम करना उचित नहीं है कहकर वह बरामदे में आ गयी. संवेदना को देखना तब सहज हो गया और धीरे-धीरे सब कुछ भीतर स्पष्ट हो गया. उसके क्रोध और अहंकार ने ही उसे सताया, जून का इसमें जरा सा भी दोष नहीं था और तब भीतर यह बोध जगा कि नीरू माँ ठीक कहती हैं असजग रहे तो जो भीतर रिकार्ड है वही तो बाहर निकलेगा.

Thursday, August 11, 2016

श्याम श्वेत चिड़िया


कल बुद्ध पूर्णिमा थी, एक सखी के साथ उसने भजन गाये, फिर माँ-पिताजी के साथ सबने ध्यान किया. फुलमून मैडिटेशन ! ध्यान में एकत्व का अनुभव हो तो भीतर कैसी शांति का अनुभव होता है. अब यह स्वभाव ही हो गया है. व्यर्थ के विचार अब भी आते हैं लेकिन तत्क्षण ही कोई भीतर से सचेत कर देता है. आज ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ टीचर का फोन आया, जो यहाँ आई थीं, उन्होंने मेल ही नहीं देखा सो गुरूजी के जन्मदिन पर लिखी कविता भी नहीं पढ़ी. एक पुरानी परिचिता से फोन पर बात हुई जिनके पति का देहांत कुछ वर्ष पहले हो गया था और जो मृणाल ज्योति में स्वेच्छा से काम कर रही थीं. वह कल बेटी की शादी के बाद लौट आई हैं, स्कूल के पास ही एक कमरा लेकर रहना चाहती हैं. जून कोर्स में गये हैं, वह मानसिक रूप से ज्यादा सबल हुए हैं. सत्य को स्वीकारने लगे हैं. वह आज फिर वह बगीचे में झूले पर बैठी है. परसों कविता लिखी थी, देखे, आज क्या लिखाता है वह ! अभी सूर्यास्त में समय है. पिताजी ने पानी दिया है पौधों को. आज मौसम गर्म है, घास में एक काली सफेद चिड़िया अपनी पूंछ को ऊपर-नीचे करती एक अनोखे अंदाज में कीट खोज रही है. आज सुबह उन्होंने कितने पंछियों की आवाजें सुनीं. कल वे वीडियो कैमरा लेकर जायेंगे, फिल्माएँगे एक सुबह.. आज पड़ोसी  कुछ खेल रहे हैं, शायद बैडमिंटन या ऐसा ही कुछ..बगीचे में कितने रंगों के फूल खिले हैं, जीनिया, कॉसमॉस, जरबेरा, गुलाब, फॉरगेट मी नॉट, पेशेंस तथा अन्य दो-तीन तरह के, जिनके नाम वह नहीं जानती. कुछ वर्षों के बाद जब इस जगह से नाता छूट जायेगा तब कोई और बगीचा होगा लेकिन फूल तो हर कहीं एक से ही होते हैं, अभी-अभी एक ज्योति की झलक मिली, कई बार लगता है जैसे एक क्षण के लिए प्रकाश झलका हो...परमात्मा की कृपा उस पर हर पल बरस रही है..सद्गुरु के लिए एक और कविता लिखनी है गुरु पूर्णिमा के लिए.....भीतर के शून्य को दिखाने वाले..जीवन के सारे सवालों के हल पल में हाजिर कर देने वाले सद्गुरू के लिए जितना लिखे कम है..

आज दीदी की बहू का जन्मदिन है, अभी-अभी फेसबुक पर पढ़ा तो शुभकामना दी और उसे फोन भी किया. आज सुबह तीन बजे अचानक बिजली चली गयी, वे जल्दी उठे फिर प्रातःभ्रमण के लिए गये, फोटोग्राफी की. दोपहर भर गर्मी से त्रस्त रहे, इस समय मौसम अच्छा हो गया है, हवा में ठंडक है जिसका स्पर्श सुकून से भर रहा है.


आज से नया महीना आरम्भ हो गया है. परसों उसका जन्मदिन आया और चला गया. दिन भर व्यस्तता में गुजरा. दोपहर को बच्चों के लिए मिठाई लेकर गयी. शाम को मैंगो शेक के साथ छोटी सी पार्टी. कल सुबह-सुबह श्री श्री के आश्रम में गोली चलने की बात सुनी, दिन भर एक अजीब सी उदासी छायी रही. उनका एक इंटरव्यू सुना. वह कह रहे थे कि उन्हें यह सोचना चाहिए कि आस-पास के लोगों के प्रति वे कैसे अधिक प्रेम से भरे कैसे हो सकते हैं, उनके काम कैसे आ सकते हैं. कल सबके साथ उनके लिए प्रार्थना की, सुबह से जो अवसाद भीतर था अश्रुओं में बह गया. आज भी सुबह से मन एक गम्भीर शांति में डूबा है. कल दीदी की कविता भेज दी. जून आज व्यस्त हैं, देर से आने वाले हैं, आज ब्लॉग पर उस दिन झूले पर बैठ कर लिखी कविता डाली है. नन्हे का एक मित्र अपने घर आया है, उससे बात करनी है और बात करनी है एक सखी से. सुबह थोड़ा बहुत सफाई का काम किया, कुछ बाकी है पर फ़िलहाल तो इस शीतल मौसम में हरी घास पर बैठकर ‘पट्टमोहिनी शांतला’ को पढ़ना है. 

Wednesday, August 10, 2016

साँझ का सूरज


परमात्मा हर वक्त उनके साथ है, ‘सद्गुरू’ हर क्षण उनके साथ है, ‘आत्मा’ हर पल उनके साथ है. वे तीनों कितने-कितने उपायों से उन्हें संदेश भेजते हैं, कितने उपाय करते हैं कि उन्हें ख़ुशी मिले, ऐसी ख़ुशी जो वास्तविक है, जो किसी पर निर्भर नहीं है जो उनके भीतर से आयी है. वे इसके लिए कभी-कभी दंड भी देते हैं. बाहर जब सुबह का सूर्य उगा हो, शीतल सुगन्धित पवन बह रही हो, पंछियों का मधुर गुंजार हो रहा हो, ऐसे में कोई बच्चा स्वप्न में रो रहा हो तो कौन माँ उसे झिंझोड़ कर जगा न देगी, वह उसे प्रसन्नता देना चाहती है, ऐसे ही अस्तित्त्व उन्हें जगाता है. कष्ट भेजकर वह कहता है मार्ग बदलो. भविष्य में उन्हें सद्गुरू के बहुत से कामों में सहयोगी होना है, उनका आश्रय वही हैं. उसे तो पग-पग पर उनका निर्देश मिलता प्रतीत होता है. जून पुनः आर्ट ऑफ़ लिविंग का बेसिक कोर्स कर रहे हैं. दीदी से परसों बात हुई, उनके जन्मदिन पर एक कविता लिखे ऐसा मन में आया है. आज न वर्षा है न धूप, उमस भरा मौसम है.

सवा दस हुए हैं सुबह के. वर्षा इस वक्त थमी है. सुबह वे टहलने गये, लौटते समय जून ने कहा, आकाश में काले बादल हैं, उन्हें यहीं से घर चले जाना चाहिए. उसने कहा ‘यस’, और देखो, उनके घर पहुंचने के कुछ ही पलों बाद मूसलाधार वर्षा शुरू हो गयी. वे छाता भी नहीं ले गये थे, यह कृपा का प्रत्यक्ष उदाहरण है. पिछले कई हफ्तों से अनुभव कर रही है, जैसे सद्गुरू पल-पल उन पर नजर रखे हुए हैं. जब वह यहाँ आये थे, तो उनसे उसने जून के विषय में कहा था. डेली कोट्स के जरिये वह हर दिन उन्हें संदेश देते रहे हैं. कितनी बार ऐसा हुआ शाम को जिस विषय पर वे बात करते थे अगले दिन वही विषय उनके संदेश में रहता था, कैसा आश्चर्य है, सच्चे दिल से की गयी प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं रहती. उसका हृदय कृतज्ञता से भरा है. कितने-कितने भाव उठते हैं. वह मशाल बनकर उनके आगे–आगे चल रहे हैं, वह शमा बनकर जल रहे हैं ताकि उनकी ज्योति से अनेकों आत्माएं प्रज्ज्वलित हो सकें. एक आत्मा के दीपक से ही दूसरी आत्मा का दीपक जल सकता है. वह ज्योति गुरु दृष्टि से भी भेज सकता है, स्पर्श से भी और मात्र स्मृति से भी..कैसा अनोखा संबंध है गुरु और शिष्य का. यहाँ प्रेम का आदान-प्रदान मीलों दूर से भी होता रहता है..प्रतिपल यह प्रेम बढ़ता ही जाता है, बल्कि दोनों प्रेम में एक ही हो जाते हैं. सद्गुरू ने उसे उसकी सारी दुर्बलताओं के साथ अपनाया है...उसे भी जगत को ऐसे ही स्वीकारना है..सब न्याय है..जो हुआ..जो हो रहा है...जो होगा..सब कुछ उस परम पिता का वरदान है..उन्हें सजग रहकर उसकी आवाज को सुनना है..यही साधना है !  

झूले पर बैठकर डायरी लिखना..मई की इस सुहानी साँझ को सुखद अनुभव है. पड़ोसी के घर बच्चे  झूला झूल रहे हैं, शोर मचा रहे हैं. कोई गिटार बजा रहा है, रह-रह कर संगीत की ध्वनि कान में पडती है, सूर्य सुनहरा हो गया है, कुछ ही पलों में लाल हो जायेगा और फिर शाम का धुंधलका छा जायेगा. जून कोर्स में गये हैं, माँ-पिताजी लॉन में बैठे हैं. उसने कुछ देर सूखे फूलों की कटिंग की. दोपहर को ‘शांतला’ की कहानी पढ़ी. रोचक है, वर्षों पहले उसने और माँ ने साथ पढ़ी थी, वह अब न जाने कहाँ होंगी, किसी नये रूप में किसी के घर में जन्मी तो होंगी. कितना क्षणिक होता है मानवों का आपस में मिलना थोड़े समय का और बिछड़ना अनंत काल का और परमात्मा के साथ मिलन होता है तो अनंत काल का.. आज सुबह ध्यान में अस्तित्त्व के साथ एकत्व का अनोखा अनुभव हुआ, इसी को नारद कहते हैं कि भक्ति नित नई है और सदा बढ़ने वाली है. अंतर जैसे-जैसे तैयार होता जाता है वैसे ही वैसे, प्रेम प्रकट होता जाता है. उसने दीदी के लिए कविता लिखनी शुरू की.



Tuesday, August 9, 2016

कविता का ब्लॉग


बुध की शाम को नैनी अस्पताल गयी और रात डेढ़ बजे एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया, शुक्र को वापस आ गयी. उसकी देखभाल उसका पति व बुआ दोनों कर रहे हैं. बुआ घर का काम निपटा कर यहाँ भी आ गयी है. धीरे-धीरे काम करती है. पंछियों की आवाजें आजकल सुबह से ही सुनायी देने लगती हैं. एक कौवा पीछे आंगन में ही कांव-कांव कर रहा है. वह यदि ध्यान न दे तो पता ही न चले, सुनने लगे तो आवाजों का एक हुजूम है. आजकल वे सुबह थोड़ा देर से उठने लगे हैं. जून का दर्द पहले से काफी ठीक है. नींद पूरी हो रही है, कोई तनाव नहीं. समय की किसी पाबंदी का वह पालन नहीं करते आजकल. नन्हे की तरह मुक्त भाव से जीने लगे हैं, अभी बाह्य मुक्ति का अनुभव हो रहा है एक दिन यही भीतरी मुक्ति का भी दर्शन कराएगी. आज ध्यान में उसने अनंतानंत ब्रहांड का अनुभव किया. कितनी शांति थी वहाँ, एक सन्नाटा था, प्रकाश था और सदगुरुओं की झलक थी..वे व्यर्थ ही स्वयं को सीमाओं में कैद रखते हैं ! सभी के भीतर एक अनंत आकाश है जो चेतन है, आनन्दमय है और सनातन है..उसका पता लगते ही भीतर अपूर्व शांति का अनुभव होता है. गुरूजी ठीक कहते हैं ध्यान में जो ताकत है जो करते हैं वह जानते हैं...दांयी तरफ की पड़ोसिन सखी का फोन आया है, वह भी ‘मृणाल ज्योति’ की डोनर मेम्बर बनना चाहती है. उसकी माँ को कोई रोग है जिसमें रक्त की लाल कोशिकाएं कम हो जाती हैं. शरीर कमजोर होता जाता है. बुढ़ापे में कोई न कोई रोग शरीर को घेर ही लेता है.

जून अब काफी स्वस्थ हैं. आज सुबह वे टहलने गये. रास्ते में नन्हे के मित्र की माँ से भेंट हुई. उन्हें फोन किया सत्संग में आने के लिए, किसी दिन आएँगी. आज क्लब की एक वरिष्ठ सदस्या का फोन आया, उनके लिए उसने कविता लिखी थी, उसी के लिए धन्यवाद दे रही थीं. आज My Poetry Collection में कुछ और कविताएँ डालीं, नन्हे ने उसका look बदल दिया है, कभी हिंदी कविता में उसका लिंक भेजेगी. मौसम आज अच्छा है, न सर्दी न वर्षा न धूप न गर्मी..मधुर-मधुर सा. जून आज देर से आने वाले हैं, वह कुछ देर पढ़ सकती है. कल शाम पिताजी से फोन पर बात की. आज छोटे भाई को गुरूजी के जन्मदिवस के लिए लिखी कविता भेजी है. जीवन का रथ आगे बढ़ रहा है. एक सखी को फोन किया, नहीं उठाया तो संदेश भेजा, कल वे लोग आ रहे हैं.

जून को पुनः दर्द हुआ. आज वे नेहरु मैदान की हरी-हरी घास पर नंगे पैरों चले. एक सखी ने शादी का कार्ड भिजवाया है, उसकी ननद के बेटे की शादी है, नूना ने उसके लिए चंद दोहे लिखे हैं कल टाइप करेगी. नेट पर उसके ब्लॉग के छह फालोअर जाने कहाँ से आ गये हैं ! अच्छा है ! श्री श्री कहते हैं जब आपके पास ज्यादा समय है तभी आपको व्यर्थ के ख्याल दिमाग में आते हैं, व्यस्त रहो मस्त रहो !

कल शाम को उसने जून को ध्यान कराया, कितना आश्चर्य है न, कुछ समय ( कुछ महीने पहले) पूर्व वह ध्यान को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझते थे, फिर वह उन्हें इस तरह करा सकती है, यह तो उसकी कल्पना में भी नहीं था. सद्गुरू की कृपा से असम्भव भी सम्भव हो जाता है. कल शाम को छोटे भाई ने उसकी कविता की तारीफ़ की. तारीफ तो उसकी है जिसने वह कविता लिखने की प्रेरणा दी, जो स्वयं उस कविता का विषय है. कुछ ही देर में तो लिखी गयी थी वह, आज ध्यान में सद्गुरु अनंत रूप में उस अणु पर बरस गये. अनंत ऊर्जा का अनुभव किया उसने अपने सिर की चोटी पर. अभी साधना के इस पथ पर चलते ही जाना है, विश्राम नहीं लेना है. जो रास्ते को ही मंजिल मानकर रुक जाते हैं, वे योगभ्रष्ट हो जाते हैं. परमात्मा की अकारण कृपा दिन-रात उस पर बरसती रहती है. वह कृपा का सागर है, उसकी स्मृति भी आ जाये तो मन भीग जाता है जैसे सागर के पास खड़ा यात्री अप्रयास ही भीग जाता है !


Monday, August 8, 2016

बुलवर्कर का विज्ञापन


आज उसने सुना, ‘तत्व’ ज्ञान के बाद दुखों के संयोग से वियोग हो जाता है तथा परमात्मा के साथ योग ! ध्यान के बाद जिस आनंद का अनुभव वे करते हैं, वह सत्वगुण का आनंद है, जिससे वियोग हो सकता है. बीच-बीच में जो उसके मन की स्थिति विचलित हो जाती है, वह इसी कारण कि अभी तीनों गुणों से पार हो जाने पर मिलना वाला सुख उन्हें नहीं मिला. क्या है यह तत्व ! नहीं जानती पर सद्गुरू की कृपा से उसे नित नवीन अनुभव हो रहे हैं, भीतर जरा सा भी उद्वेग होता है तो कोई तत्क्षण सचेत कर देता है. आज ध्यान में बचपन में दादाजी के पास आने वाले एक सन्यासी को देखा जिन्हें कभी-कभी वह भोजन कराया करते थे. फिर बुलवर्कर शब्द आया जो बड़े भैया मंगाना चाहते थे, उसके विज्ञापन उनके पास आते थे. जीवन रहस्यों से भरा हुआ है पर पुराने अनुभवों व मान्यताओं से ग्रसित मन की उस तक नजर ही नहीं जाती. जो उसे देख लेता है प्रतिपल आनन्द की वृद्धि का अनुभव करता है, ऐसा सुख से भरा यह जीवन है कि जितना लुटाओ खत्म ही नहीं होता. नित नवीन परमात्मा का यह संसार भी नित नवीन है.

आज आत्मा के विषय में फिर सुंदर वचन सुने. आत्मज्ञान हुए बिना मुक्ति सम्भव नहीं है. आत्मा के सात गुण हैं – शांति, आनंद, सुख, प्रेम, ज्ञान, पवित्रता और शक्ति, जिनकी कमी से जीवन अधूरा ही नहीं रहता बल्कि उसमें घुन लग जाता है. पीड़ा का घुन, अशांति, दुःख, घृणा व दुर्बलता के कीट उसमें बसेरा कर लेते हैं. शांति यदि न हो तो नर्वस सिस्टम रोगी हो जाता है. आनंद न हो तो अंतरस्रावी ग्रन्थियां अपना काम ठीक से नहीं करतीं. सुख न हो भोजन ठीक से नहीं पचता, प्रेम न हो हृदय रोग होने का खतरा है. पवित्रता न हो तो कर्मेन्द्रियाँ रोगी हो जाती हैं तथा शक्ति न हो तो संकल्प दृढ़ नहीं हो पाते. इन सभी रोगों का इलाज योग के पास है. योग होते ही आत्मा के द्वार खुल जाते हैं और जीवन में विस्मय हो तो योग घटित होता है. विस्मय घटित होने के लिए जरूरी है कि वे स्वयं को जानकार न मानें, बालवत हो जाएँ, तभी हर समय जगत अपने पर से पर्दा हटाकर नवीनता का दर्शन कराएगा !


छोटी बहन उदास है. वह द्वंद्व का शिकार हो गयी है. नौकरी छोड़ना भी चाहती है और करना भी चाहती है. उसने स्वयं को मानसिक व शारीरिक तौर पर रुग्ण बना लिया है. कल रात उससे बात हुई. उसकी सखी उदास है जो विवाह के इतने वर्षों बाद भी सासूजी से एडजस्ट नहीं कर पायी है. वह स्वयं कितनी बार यह अनुभव कर चुकी है कि अपनी ही मान्यताओं के दायरे में बंधा मन स्वयं उनसे टकरा – टकरा कर घायल होता है फिर अपने भाग्य को दोष देता है. दुखी होने को अपनी उपलब्धि मानता है और दया के पात्र होकर जीने में भी उसे कोई शर्म महसूस नहीं होती. उसका जीवन एक विडम्बना के रूप में सामने आता है जिसमें रस नहीं.. प्रेम नहीं..कला नहीं..आनंद नहीं..ऐसा जीवन जो खिलने की सम्भावना लिए था पर अपनी ही कमजोरियों के कारण जो पीड़ा का स्रोत बन गया, जहाँ उपवन पनप सकते थे, घास पतवार उग आती है. जहाँ इन्द्रधनुष बन सकते थे, मन के उस आकाश में घोर काले बादल छा जाते हैं, जहाँ झरने फूट सकते थे हृदय की उस गुफा में चट्टानें द्वार बंद कर देती हैं..ऐसा दुश्मन है मन स्वयं अपना...

Friday, August 5, 2016

नवधा भक्ति


दो-तीन दिन की धूप के बाद मौसम ने फिर अपना मिजाज बदल लिया है, पुनः बादल बरस रहे हैं. आज सुबह वे फिर भ्रमण के लिए निकले. नेहरू मैदान में कल रात भर की वर्षा के बाद पानी भरा हुआ था पर लोग फिर भी चल रहे थे सो वे भी गये. जूते, ट्रैक सूट सभी भीग गये. जून अब पहले से ठीक लग रहे हैं. उसे लगता है यह अस्वस्थता उनके भीतर से उठी पुकार का परिणाम है कि अस्तित्त्व उन्हें देखे, उन पर ध्यान दे. हर दुःख अपने भीतर एक सुख छिपाए रहता है, जैसे हर सुख अपने भीतर एक दुःख..अब वह परिवर्तन के लिए तैयार हैं. जीवन के प्रति उनकी रूचि बढ़ी है और इधर उसका क्या हाल है ? उसे लगता है, प्रगति नहीं हो रही है, कारण वह अपने समय का बेहतर उपयोग नहीं कर रही है. सद्गुरु से इस विषय में राय लेना ठीक रहेगा, उन्हें एक पत्र लिखेगी, वह जहाँ कहीं भी होंगे उसे निर्देश देंगे कि क्या करना उचित होगा. उसे मान की कामना है तभी न कविता भेजकर यही उम्मीद बनी रहती है कि कोई प्रतिक्रिया मिलेगी. जब तक संसार से सुख पाने की आशा बनी हुई है तब तक परमात्मा से प्रेम कैसे टिकेगा..परमात्मा उसकी इस झूठी आस को चूर-चूर कर देना चाहते हैं, अहंकार की पुष्टि के अलावा क्या होने वाला है..न जाने कितनी बार मान चाहा है और फिर अपमान के घूँट भी पीने पड़े हैं. अपमान और मान दोनों मिलते हैं यहाँ एक साथ..दोनों से ऊपर उठना है और इसके बावजूद अपना काम किये जाना है..किये ही जाना है. फल पर उनका अधिकार नहीं केवल कर्त्तव्य पर ही उनका अधिकार है !

कल शाम को उसकी कामना का दंश केवल उसे ही नहीं चुभा बल्कि जून को भी पीड़ित कर गया. वह बहुत परेशान हुए लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया और कई दिनों के बाद वे रात भर ठीक से सोये. जून और उसका जीवन इतना मिला हुआ है कि थोड़ी सी भी दूरी बेचैनी पैदा कर देती है. उसे विवाह के फौरन बाद के दिन याद आने लगे हैं, किसी ने ठीक कहा था विवाह बार-बार किसी के प्रेम में पड़ने का नाम है...पति-पत्नी निकटतर से निकटतम होते हैं फिर दूर हो जाते हैं, पुनः निकट आते हैं..ऐसे ही उनकी जीवन यात्रा चलती है, भीतर प्रेम जगा हो तो कोई भी संबंध मधुर बन जाता है..उसे उनके रिश्ते में एक सुखद नवीनता का अहसास हो रहा है. जून नितांत पारिवारिक व्यक्ति हैं, उनके लिए घर ही सारे कर्मों का आश्रय स्थल है अर्थात उनके कर्म घर के लिए हैं..वही उनका विश्राम स्थल भी है और वही उनका साध्य भी, एक व्यक्ति जो मन के अनुसार जीता है, जो कभी सुखी होता है तो कभी दुखी..जिसको अभी मन के पार की खबर नहीं हुई है. सद्गुरू की कृपा से उसे अपने भीतर एक ऐसा ख़ुशी का स्रोत मिल गया है कि सारे कार्य उसके लिए समान हैं..लेकिन इस ज्ञान ने इतनी समझ तो दी है कि अपने आस-पास के लोगों के मन को समझकर उनके अनुकूल व्यवहार कर सके..वह जानती है, उसकी वाणी कठोर है..न जाने कितने नश्तर चुभोये हैं इस वाणी ने..कितने दिलों में..सबसे ज्यादा जून के दिल में..जो उसके लिए प्रेम से भरा है..वह उसे सम्पूर्ण पाना चाहते हैं..उसका मन व आत्मा तक को..कुछ भी उसके भीतर ऐसा न हो जो उनकी पहुंच से दूर हो..और वह ..उसने अपने मन को जान लिया तो मानो सबके मनों को जानने की कुंजी मिल गयी..आत्मा सबकी एक सी है.


आज ध्यान में अनोखा अनुभव हुआ. उसके बाद किया ‘पाठ’ भी विशेष समझ में आया. विवेक जागृत रहे तो जीवन कितना सुंदर हो जाता है. विवेक को सजग रखने के लिए ध्यान कितना जरूरी है, इसीलिए सभी संत ध्यान पर इतना जोर देते हैं. सुबह टहलने गये, पांच बजे लौटे तो सूर्य देव काफी ऊपर आ चुके थे. टीवी पर मुरारीबापू गुजरती में रामकथा कह रहे हैं. ‘श्रवणं कीर्त्तनं विष्णु पादसेवनं अर्चनं वन्दनं दास्यम सख्यम् आत्मनिवेदनं’ यह नौ प्रकार की भक्ति है. जिसको सामाजिक सन्दर्भ में समझाने का प्रयास बापू कर रहे हैं. आज उनके यहाँ सत्संग है, अगले हफ्ते गुरूजी का जन्मदिवस है, तब भी सेंटर पर कार्यक्रम होगा. आज फिर बदली छायी है. कल शाम वे एक परिचित के यहाँ गये, उन्हें स्पाईनल कार्ड में हुई एक ग्रोथ के कारण दर्द था.