रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं। सोने से पूर्व के अंतिम कार्यों का आरंभ हो चुका है। टहलने गए तो हल्की बूंदा-बांदी होने लगी, पर अब उन्हें इसका अभ्यास हो गया है। सुहानी हवा और बेहद हल्की झींसी को चेहरे पर महसूस करते घर के सामने वाली सड़क के अंत तक जाकर लौट आए। उसके आगे ही फ़ौवारे वाला पार्क है। दो दिन से पड़ोसी नहीं दिखे थे जबकि वह सुबह नियमित दो घंटे पैदल चलते हैं, आज दिखे तो बताया, खाने की मेज़ से कुछ लेते समय गिर गये थे, घुटने पर हल्की चोट थी। एक तरह से वृद्धावस्था भी दूसरा बचपन ले आती है, पर बचपन में चोट का पता नहीं चलता, इस समय बात विपरीत है। आज से ‘देवों का देव महादेव’ पुनः देखना आरम्भ किया है। कुछ वर्षों पूर्व इसका कुछ भाग देखा था। शाम को ‘हिंदी कविता के हज़ार वर्ष’ पुस्तक में कविता के इतिहास के बारे में पढ़ा। काव्य और मानव का नाता बहुत पुराना है। पुरानी पुस्तकों में कविता के अतिरिक्त भी कितने विषयों को गद्य की अपेक्षा पद्य में लिखा गया है, जिसे याद रखना भी सरल है।
नन्हे ने नेक्सन ईवी की टेस्ट ड्राइव बुक कर दी है। कम्पनी के लोग गाड़ी लेकर आएँगे। सुबह बिग बास्केट से सूखे मेवे आए, जून को खुद जाकर ख़रीदने का शौक़ पूरा करने में अभी समय लगेगा। भावनगर से सौंठ पाउडर आया, अमेजन उन्हें घर बैठ-बैठे पूरे भारत से समान लाकर दे देता है।
अभी-अभी छोटे भाई से बात की। आजकल काम के सिलसिले में केरल में है। आज धोती पहनकर त्रिवेंद्रम के पद्मनाभ मंदिर गया था। उसे कभी-कभी ध्यान के अनोखे अनुभव होते हैं। बचपन से ही वह पूजा आदि की तरफ़ आकर्षित था। उसने बताया कक्षा चार में उसके मस्तक में भौहों के मध्य एक कील चुभ गयी थी, जिसे मित्रों ने खींच कर निकाला, खून भी बहा पर बजाय रोने के वह ज़ोर से हँसने लगा था। शायद उसे पहला अतींद्रिय अनुभव तब हुआ था। उसके बाद वह कक्षा में सबसे पीछे बैठता था पर उसे कुछ सुनायी नहीं देता था, तब निकट बैठा छात्र ज़ोर से हिलाकर कहता तब कुछ समझ में आता। अब वह ओशो के प्रवचन सुनकर और उनकी बतायी साधना से भीतर ऊर्जा का प्रवाह अनुभव करता है। अनंत ऊर्जा के स्रोत से तो सब जुड़े हैं पर उसका अनुभव कोई-कोई ही कर पाता है।
आज भी घर के दाँयी तरफ़ का गोदाम तोड़ने की आवाज़ें आती रहीं। अब जेसीबी लगाया जाएगा। उसके बाद वहाँ निर्माण कार्य आरम्भ होगा अर्थात लम्बे समय तक इस शोर को सुनने का अभ्यास करना होगा। आज असम की एक पुरानी परिचिता से बात हुई , परसों उनकी माँ का देहांत हो गया। वह शाम को परिवार के साथ बैठकर चाय पी रही थीं, अचानक दिल का दौरा पड़ा; जबकि उन्हें कभी दिल का रोग नहीं हुआ था। जीवन क्षण भंगुर है कितनी बार वे यह बात सुनते हैं पर मानते नहीं, ऐसी घटनाएँ इसकी सत्यता सिद्ध करने आ जाती हैं। आज सुबह दीपक चोपड़ा की पुस्तक ‘सफलता के सात आध्यात्मिक नियम’, मोबाइल पर सुनी। कल शाम उनकी एक अन्य पुस्तक ‘एज लेस बॉडी टाइम लेस माइंड’ पढ़नी आरंभ की है। उनके अनुसार चेतना में स्थित रहकर कोई भी अपने शरीर को स्वस्थ रख सकता है। व्यक्ति के सकारात्मक या नकारात्मक विचार अच्छे या बुरे हार्मोंस का निर्माण करते हैं। इस सृष्टि में पदार्थ ऊर्जा में व ऊर्जा पदार्थ में निरंतर बदल रही है।देह जो ठोस जान पड़ती है, वास्तव में तरंगों से ही बनी है। अणु या परमाणु तक आते आते पदार्थ खोने लगता है और अति सूक्ष्म ऊर्जा ही शेष रहती है। यह ऊर्जा विचारों से नए-नए रूप धारण कर लेती है, वह जब भी दिखेगी, प्रकृति के रूप में ही दिखेगी।वह स्वयं ज्ञाता है और ज्ञेय नहीं हो सकती। उसका अनुभव ध्यान में ही किया जा सकता है। आज उनके साथ एक अठानवे वर्षीय एक वृद्ध महिला का साक्षात्कार सुना। उनकी बातें प्रेरणदायक थीं, वह अभी तक योग सिखाती हैं, नृत्य भी करती हैं। शाम को पापा जी से फ़ोन पर बात की, तो पहली बार उन्हें रिकार्ड भी कर लिया। उनकी बातों में भी जीवन के लम्बे अनुभवों का सार होता है। भक्ति और ज्ञान की चर्चा भी होती है।