Friday, December 30, 2016

जीव और ब्रह्म -आदि शन्कराचार्य


कल शाम और आज पुनः बाबा को सुना. वे नई ऊर्जा से भर गये हैं. अपने अभियान को चलाये रखने का उन्होंने व्रत दोहराया और जोशीले भाषण से अपने विरोधियों के सवालों का जवाब दिया. आज वर्षा की झड़ी लगी है, वे प्रातःभ्रमण के लिए भी नहीं जा सके. कल नन्हे ने कहा उसे कविता अच्छी लगी, एकाध बात समझ में नहीं आयी. आज से नैनी काम पर आ गयी है, अभी पिताजी ने उसके बारे में कुछ कहा, उन्हें घर-गृहस्थी के मामलों में अपनी राय देने में बहुत आनंद आता है, तो नूना ने उन्हें तुरंत जिस तरह तेजी से जवाब दिया, उसे खुद पर आश्चर्य हुआ, उसने सोचा भी नहीं था, उसके अचेतन से ही यह कृत्य हुआ, उसने किया भी नहीं. इसी तरह हर कोई जो भी व्यवहार कर रहा है, वह संस्कारों के वशीभूत होकर ही कर रहा है. एक अर्थ में कर्ता वह है ही नहीं, यह केवल मानने की बात नहीं है, ऐसा ही है. यदि वह सचेत होकर, कुछ बनाकर उन्हें जवाब देती तो कर्ता होने का दावा कर सकती थी, न ही वे पुण्यकर्मों के कर्ता हैं न पाप कर्मों के, स्वभाव के अनुसार कृत्य होते हैं. स्वभाव वश यदि कोई असत्य भाषण कर देता है तो भी उसका फल उसे मिलेगा ही, उस दंड को भोगते समय भी उसे साक्षी बना रहना होगा.

आज सुबह बाबा के गुरूजी द्वारा शन्कराचार्य के वेदांत सिद्धांत को प्रस्तुत किया गया. उनके अनुसार ब्रह्म अनादि व अनंत है. अविद्या व अज्ञान अनादि तो हैं पर सांत हैं. ब्रह्म जब अविद्या अर्थात माया में बंधता है तो ईश्वर कहाता है जिसकी शक्ति व ज्ञान अनंत है पर वही ब्रह्म जब अज्ञान से बंधता है तब जीव कहाता है. ईश्वर सृष्टि रचना, पालना व प्रलय का कारण है. जीव कर्मों को करता है व उनके फलों को भोगता है. जीव अपने शुद्ध स्वरूप में ब्रह्म के समान ही है. आज का ध्यान भी अच्छा था. वास्तव में देखा जाये तो इस जगत में न कुछ अच्छा है न बुरा, दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है. गुरूजी भी कहते हैं विपरीत मूल्य एक दूसरे के पूरक हैं. एक ही चेतन तत्व से यह जगत बना है. जब तक द्वंद्व रहेगा, समाधान हो ही नहीं हो सकता. भीतर एकत्व तभी होगा जब कोई बाहर बांटना छोड़ देगा. वे जो बाहर वस्तुओं, व्यक्तियों और परिस्थितियों पर ठप्पा लगते हैं, बांटते हैं तो भीतर दरार पड़ने ही वाली है.


आज का ध्यान अनोखा था. विचारों को महसूस करना था, वे कहाँ से आते हैं ? क्या वे उनके हैं ? आत्मा के अनंत सागर से विचार आते हैं और जिन्हें वे अपना मानते हैं दरअसल वे सब उधार के होते हैं. उनके विचार जैसा कुछ भी नहीं है इस जगत में. केवल मौन ही उनका है. उनके संकल्प वातावरण की, शिक्षा की, उन पुस्तकों की देन होते हैं और जो कुछ उनके बावजूद भीतर से आता है वह संस्कारों के कारण हो सकता है. ‘वे’ हैं ही नहीं तो उनका कुछ भी हो कैसे सकता है. ‘वे हैं’ यह भी एक विचार ही है. ध्यान के बाद कैसी मुक्ति का अहसास हो रहा है. विचारों से ही तो वे राग-द्वेष में बंधते हैं, अहंकार के शिकार होते हैं. दुःख उन्हें पकड़ता है. विचार न हों तो एक गहरा मौन और सन्नाटा भीतर छाया रहता है !        

Wednesday, December 28, 2016

बैलगाड़ी से यात्रा


आज दसवें दिन बाबा ने अपना अनशन तोड़ दिया. गुरूजी और बापू के कहने पर ही यह सम्भव हुआ. उसके मन से भी जैसे कोई बोझ उतर गया है. चार जून को राजधानी में जो हुआ वह अप्रत्याशित था. उसके बाद की घटनाएँ भी कम दुखद नहीं थीं. आज वह अस्पताल से छूट जायेंगे. शायद कल से वे उन्हें पुनः आस्था पर देख पायें. कल दिन भर गर्मी बहुत रही पर आज बदली छायी है. नन्हे के लिए जो कविता उसने लिखी थी वह जून को भेजी है, पत्र से अच्छा है उसे ही भेज दे. समझदार को इशारा ही काफी है. आजकल नेट पर उसकी कविताएँ ज्यादा लोगों द्वारा पढ़ी जा रही हैं. परमात्मा की कृपा है, बल्कि कहना चाहिए उसीका गुणगान हो रहा है. भगवद्गीता का पांचवा अध्याय लिखना आरम्भ करना है. मन में अब भी विकार नजर आते हैं, संस्कार पुराने हैं लेकिन ध्यान में उनकी स्मृति भी नहीं रहती. तब केवल प्रकाश ही शेष रहता है. वाणी की कठोरता जाते-जाते भी नहीं जाती, शायद यह उसका प्रारब्ध है, लेकिन इससे नये कर्म तो संचित नहीं हो रहे, सद्गुरू हँस रहे होंगे उसकी इस बात पर. जिसने अपना-आप परमात्मा के साथ एक करके देख लिया वह अभी तक कर्मों के फेर में पड़ा है. यदि कोई यह मान ही बैठा है कि उसकी वाणी कठोर है और इसमें कभी कोई परिवर्तन हो ही नहीं सकता तो नहीं हो सकता. मान्यता ही संस्कारों को दृढ करती है !

कल दोपहर हिंदी पढ़ने उसकी दोनों छात्राएं आयीं और बैठी रहीं, उसे बुलाया नही और वह दूसरे कमरे में नई कविता टाइप करती रही यह सोचकर कि आज गुरूवार है. असजगता ही इसका कारण है. आज सुबह माली को डांटा, बाद में लगा क्रोध उचित नहीं था. वे किस तरह जीते हैं, रोबोट की नाईं  ही तो. आज नैनी का आपरेशन है, पिताजी को उसकी चिंता हो रही है. उनका हृदय बहुत कोमल है, उसकी बेटी से भी उन्हें मोह हो गया है.

आज फिर उसके सिर में हल्का दर्द है कारण वही पेट से सम्बन्धित होना चाहिए. उस दिन सुना था कि देह में मैल तभी जमता है जब मन में बात जम जाती है. उसके मन में एक ही नहीं अनेक बातें जम गयी हैं. भगवद्गीता पढ़ रही है तो पता चल रहा है, मन कितना चंचल है, कुछ पल भी इसे टिकाना कितना कठिन है और मक्खी की तरह यह जाता भी बार-बार कीचड़ की तरफ ही है. काम, क्रोध व लोभ को नर्क के द्वार बताया है. कितना सही है. रोग से बढ़कर और कौन सा नर्क होगा. अचेतन मन एक अथाह सागर है. कितने जन्मों की वासनाएं छिपी हैं उसमें. साधना की गति बैलगाड़ी की चाल से बढ़ रही है फिर भी भीतर एक आनन्द छाया रहता है. सद्गुरू के निकट रहकर जो साधना कर पाते हैं वे शीघ्र पहुँच जाते हैं, ऐसा भी कोई नियम नहीं है. आज बड़े भाई को दो कहानियाँ भेजी हैं, देखे, उनकी बिटिया को स्कूल में काम आती हैं या नहीं.


आजकल कितने अजीब-अजीब स्वप्न आते हैं. देखते समय यह भी पता चलता है, यह स्वप्न है. उस दिन स्वप्न में एक जैन मुनि को प्रवचन देते सुना और बाद में एक गोल-गोल घूमने का, ध्यान का अनुभव हुआ. परसों एक यात्रा की, मोटरबाइक पर लम्बी यात्रा. मन की क्या कहे कोई, कहाँ-कहाँ घूमने चला जाता है. कल रात स्वप्न में साईं बाबा को देखा. विशाल प्रांगण था. वह दूसरी मंजिल की बालकनी में थी. एक गार्ड बारी-बारी से उनसे मिलाने ले जा रहा था. एक वृद्ध व्यक्ति उनके चरणों को छू रहा था पर वह नाखूनों को एक-एक कर पकड़ रहा था. उनका चेहरा नहीं दिखा पर उनके गाउन का केसरिया रंग झलक रहा था. वह एक डायरी पर कुछ लिख रही थी, शायद वे प्रश्न जो उसे पूछने थे. पर जब उसकी बारी आयी तो गार्ड ने कहा, आप पढ़-पढ़ के उनसे बात करेंगी तो उसने  डायरी और पेन रख दिए और कहा, नहीं वह ऐसे ही जाएगी. तब वह एक ऐसे कमरे में पहुंची जहाँ जमीन पर काले रंग का बिछावन बिछा था. कई लोग साधना कर रहे थे. वह बैठ गयी तो साईं बाबा प्रवचन देने वाले थे पर एक महिला वहाँ खड़ी होकर उनकी जगह बोलने लगी और उसकी नींद खुल गयी अथवा तो स्वप्न टूट गया. यह स्वप्न कहीं उसके मन का मायाजाल तो नहीं अथवा..लेकिन आज सुबह ध्यान में कृष्ण के दर्शन हुए तथा भीतर चलने वाले यज्ञ का आभास हुआ जिसमें श्वासों की समिधा निरंतर पड़ रही है. उसने एक कविता लिखी थी ‘यज्ञ भीतर चल रहा है’  पर आज उसका अर्थ स्पष्ट हुआ. कृपा निरंतर बरस रही है..वे ही अपना पात्र उल्टा करके बैठे रहते हैं. देह को ही सब कुछ मानकर उस अनुपम खजाने से वंचित रह जाते हैं. परम ही चारों ओर खेल कर रहा है. उनका मन एक रोबोट की नाईं है, बटन दबाया और उसका काम शुरू हो जाता है. वे खुद तो सोये रहते हैं तो जीवन का हाल तो बेहाल होना ही है...सद्गुरू के बिना कौन बतायेगा यह सब ? आज विश्व संगीत दिवस है.     

Tuesday, December 27, 2016

रामलीला मैदान में रामदेव


आज बाबा रामदेव ने हजारों सत्याग्रहियों के साथ मिलकर दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन आरम्भ किया है. वह पिछले कई वर्षों से कालाधन वापस लाने की बात कह रहे हैं, लेकिन सरकार के कानों पर जून तक नहीं रेंगी. इस बार सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे. कल रात को निष्काम कर्म की व्याख्या सुनते-सुनते सोयी थी. मन उल्लास से भरा था. एक अद्भुत स्वप्न देखा. किसी ने उसे ऊपर उठाया, देह नीचे पड़ी थी और स्वयं की आवाज सुनाई दी, वह ...( नाम) नहीं है, वह है..कई बार यह वाक्य गूँजा और उसे नीचे छोड़ दिया गया, बाद में भी मन में यही विचार आता रहा..स्थिरता की सी मन: स्थिति बनी है सुबह से..

कल सुबह टीवी पर जब सुना, बाबा रामदेव को गिरफ्तार कर लिया गया है, उन्हें वस्त्र बदल कर छुपना पड़ा, जब वह भाग रहे थे तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और मैदान में सोये हजारों लोगों को वहाँ से निकाल दिया गया है तो मन विषाद से भर गया. कल दिन भर समाचार ही सुनते बीता. लोगों के मनों में दर्द है, उनके कार्यकर्ताओं को खदेड़ा गया, पीटा गया और कइयों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. शासन में रहने वाले लोग स्वयं को खुदा मानने लगते हैं. लोकतंत्र में ऐसी अमानवीय घटना का होना कितना दुखद है. सरकार को इसका परिणाम भुगतना ही पड़ेगा. देश में जो माहौल बन रहा है वह कुछ परिवर्तन लाकर ही रहेगा. लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इसकी अति आवश्यकता है. इतिहास बन रहा है, पीड़ादायक क्षणों से गुजरना होगा, तभी तो नये राष्ट्र का जन्म होगा.

आज सुबह उन्होंने फूलों से भरे वृक्षों की कुछ तस्वीरें उतारीं. यह जगत कितना सुंदर है कोई ध्यान से देखे तो..जून को उसने कहा वह एक ब्लॉग की शुरुआत करें, जिसमें हर दिन कोई सूक्ति लिखी जाये. दीदी ने लिखा है, वह भगवद्गीता को ब्लॉग में लिखकर एक शुभ कार्य कर रही है, पर उसे लगता है वही करवा रहा है जिसकी यह गीता है. बाबा का अनशन जारी है, उन्होंने शेष सभी को तोड़ने के लिए कह दिया है. उनका जज्बा और जोश बरकरार है. अपनी तरफ से उन्होंने सबको क्षमादान भी दे दिया, सन्यासी का दिल कितना कोमल होता है. सरकार उन्हें राष्ट्रभक्त की जगह राष्ट्रद्रोही मान रही है. आज उनका उद्बोधन सुनते-सुनते उसका मन भी द्रवित हो गया.
आज सम्भवतः बाबा अपना अनशन तोड़ देंगे. श्री श्री और मुरारी बापू उनसे मिलने जाने वाले हैं.  उनके गुरूजी ने कहा, “शब्दों की शक्ति को पहचानना है, कुछ भी बोलने से पहले सोचना चाहिए कि श्रोता उसे किस रूप में ग्रहण करता है. आत्मा में मन लगे तो पुण्य और पदार्थ में लगे तो पाप होता है.” पाप और पुण्य की यह परिभाषा बहुत अच्छी है.


Monday, December 26, 2016

चटकीले फूलों वाले पेड़

पूर्ण जगत को ब्रह्ममय देखने की विधि मुरारीबापू ‘तुलसी’ के माध्यम से बता रहे हैं. उनकी कथा अद्भुत भावों से भर देती है. अहंकार, गर्व, दर्प, अभिमान या अविश्वास जब जीवन में हों तो दुःख आने ही वाला है, रावण को उसका अहंकार ही ले डूबा. बापू कह रहे हैं, अहंकार मोह के कारण है और  मोह रूपी वृक्ष की जड़ें हैं, अज्ञान, मूढ़ता, अभाव, कमी तथा अनादर. इसका तना है जड़ता अर्थात अपनी मूढ़ता से टस से मस न होना. भ्रांतियां ही उसकी शाखाएं हैं, संशय, कुतर्क, भ्रमित चित्तवृत्ति ही डालियाँ हैं, चंचलता ही पत्ते हैं. दुःख ही इस वृक्ष का फूल है. सद्गुरू की कृपा से ही यह सम्भव है कि कोई अहंकार शून्य हो सके. भीतर जो रजोगुण है, वह संतों की चरणरज से ही मिटता है. कल रात ऐसा लगा सोई और जग गयी. जून और नन्हा कल आश्रम गये थे, गुरूजी भी वहाँ थे, भेंट भी हो गयी. उन्होंने जून से पूछा, हैप्पी ? जून का विश्वास दृढ़तर होता जा रहा है. नन्हे का विश्वास भी समय आने पर दृढ होगा, उसे परमात्मा स्वरूप सद्गुरू के दर्शन हुए, इतने पुण्य तो जगे हैं, अब सब उन्हीं पर छोड़ देना होगा. उसने नये दफ्तर में शिफ्ट कर लिया है, आजकल वह बहुत व्यस्त है. रजोगुण शेष दोनों गुणों को दकर प्रमुख हो रहा है. यही उचित है, ऊर्जा को निकास के लिए कोई तो मार्ग चाहिए..


आज ध्यान में अद्भुत अनुभव हुआ. सम्भवतः पिछले जन्मों की झलक थी, कुछ दृश्य इतने स्पष्ट दिखे. पहले एक स्त्री फिर मार्जारी तथा फिर एक राजस्थानी भाषा बोलती एक आकृति, महिला या पुरुष कुछ समझ में नहीं आया, केवल भाषा मारवाड़ी सुनाई दे रही थी. कितने रहस्य भरे हैं उनके अचेतन में. आज उसका जन्मदिन है, बिलकुल अनोखा और अलग सा..जब भीतर का सब कुछ बदल गया हो तो बाहर सब कुछ अपने आप बदलने लगता है.

जून का प्रथम दिन ! वर्षा बदस्तूर जारी है. सुबह वे टहलने गये तो फुहार पड़ने लगी. सडकों पर कई जगह पीले अमलतास, लाल गुलमोहर, गहरे पीले रस्ट वुड तथा बैंगनी रंग के फूल बिछे थे, रूद्र पलाश भी अनेक जगह बिखरे हुए थे. प्रकृति में रंगों की भरमार है, अनूठे, चटख रंगों के फूल वर्षा  पूर्व पेड़ों को मनमोहक बना देते हैं. इस तेल नगरी की ये सैरें उन्हें बाद में याद आयेंगी. लेकिन उन्होंने तो वर्तमान में रहने का अनोखा गुर अपना लिया है. परसों उसका जन्मदिन था, सुबह अनोखी थी, दोपहर को अहंकार आड़े आ गया, जिससे शाम का कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ. मन ही सारे दुखों की जड़ है, आत्मा सारे सुखों की खान है. आत्मा में रहो तो कितने हल्के-हल्के रहते हैं तन-मन दोनों ! दीदी को जन्मदिन की कविता भेजी है. ब्लॉग पर कथा से प्रेरित होकर भक्ति भाव से लिखी कविता पोस्ट की है. आज बरामदे में व बाहर बगीचे में दो सर्प दिखे, उसने फोटो भी लिए और वीडियो भी.



Friday, November 18, 2016

घना घना सा जंगल


आज सुबह फिर किसी ने कहा, अब अलार्म बजेगा और तत्क्षण बजा, कौन है वह जो सुबह-सुबह उसे चेता जाता है. रात को स्वप्न में जंगल देखा, भीगा घना जंगल, उन्हें उसमें रेंग कर जाना पड़ रहा  था. कितना अद्भुत है स्वप्न लोक और यह जागृत अवस्था का लोक भी ज्ञानियों के लिए स्वप्न से बढ़कर नहीं.  उस दिन भी एक अजीब सा स्वप्न देखा था, अपने ही तन के एक अंग को कटोरा बनाकर उसमें भोजन करते हुए और फिर एक सखी का दरवाजे से झांक कर छि छि कहते तथा स्वयं को तो क्या हुआ कहते हुए, फिर नन्हे का आना..उनका अचेतन मन एक अजीब गोरखधन्धा है. भीतर न जाने कितने जन्मों की कितनी गांठें पड़ी हैं, आत्मज्ञान इन्हीं गांठों को खोलने का काम करता है. दरअसल साधना का आरम्भ होता है आत्मज्ञान के पश्चात !

कल उसे प्रेरणा हुई है कि जीवन यात्रा लिखे डायरी के पन्नों के माध्यम से तथा एक नया ब्लॉग भी आरम्भ करे आध्यात्मिक यात्रा पर, जिसमें प्रेरणादायक विचार लिखेगी. आज ही दोनों का आरम्भ करेगी, आज शुभ दिन है, अब लेखन ही उसके जीवन का केंद्र होगा. वही उसकी साधना होगी और वही मोक्ष भी लायेगा. योग आदि तो रहेंगे ही. हर चीज का एक वक्त होता है. जीवन ने उसे जो दिया है, उसे जाने से पहले लौटा दे यही इस लेखन का अभिप्राय है. अहम का विसर्जन हो और सेवा का कुछ कार्य भी हो. परमात्मा की बात है तो परमात्मा के लिए ही है, वही उसके मार्गदर्शक हैं, सद्गुरू और परमात्मा एक ही हैं और उसकी अंतरात्मा भी. जून भी आजकल उसकी कविताओं में रूचि लेने लगे हैं. प्रकृति का सौन्दर्य उन्हें भी लुभाने लगा है. हरी घास पर लेटने में उन्हें कोई डर नहीं लगता..यह भी तो चमत्कार है !


चर्चामंच पर उसकी दो कविताएँ आयी हैं. दो नये ब्लॉग पढ़े आज, इस दुनिया में परमात्मा के भक्तों की कमी नहीं है, जो भी इस रास्ते पर चलता है उसे अनंत प्रेम मिल जाता है. जून आज बैंगलोर गये हैं. अब तक तो नन्हे से भेंट हो गयी होगी. वह वहाँ फ़्लैट लेने की सोच रहे हैं. आदमी जीवन भर जो कमाता है, ईंट-पत्थरों के मकान में लगा देता है. उनके भविष्य में यह काम आयेगा, रिटायर्मेंट के बाद वे बैंगलोर में ही रहने वाले हैं. भविष्य ही बतायेगा क्या होने वाला है, इन्सान तो योजनायें ही बनता है. टीवी पर थाईलैंड में हो रही मुरारी बापू की कथा का सीधा प्रसारण आ रहा है. कल रात को फिर एक अनोखा स्वप्न देखा. जैसे किसी ने उसे देह के बाहर कर दिया हो, आवेशित कर दिया हो या पीछे से पकड़ लिया हो और हवा में उड़ने का अनुभव करा रहा हो. उसे लग रहा था कि देह मृत है या हो जाएगी और वह पृथक है, पर कोई भय नहीं महसूस हो रहा था. बाद में नींद खुल गयी पर तब भी कुछ प्रतिबिम्ब नेत्रों के सामने आते रहे. जागते हुए भी वे स्वप्न देखते रहते हैं, वास्तव में वे कभी जगे ही नहीं, एक गहरी नींद में सोये हैं, वे एक सम्मोहन का अनुभव कर रहे हैं और उसी कारण इतने दुःख हैं. जो जैसा है वैसा न देखकर वे अपने मन को ही आरोपित कर देते  हैं, मन जो अभिमान और दुःख का पोषक है. इस मोह को तोडना ही साधक का उद्देश्य है.   

Wednesday, November 16, 2016

मूल से उगा फूल


दस बजे हैं, मौसम गर्म है. परसों शाम को मेहमानों के आने से पूर्व अंततः उसके मन ने विद्रोह कर दिया और जून से उसने उनके उस दिन के व्यवहार की शिकायत कर दी. विवाद का कोई भी परिणाम नहीं होता, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कल सुबह हुई बातचीत से निकला. खैर, मन हल्का है. परमात्मा की कृपा से सद्गुरू मिले, सद्गुरू की कृपा से ज्ञान और उस ज्ञान को टिकने में साधना का सहयोग रहा फिर क्यों यह बाहर के अशांत वातावरण ने भीतर अशांति पैदा की. माँ की हालत बिगड़ती जा रही है पर पिताजी व जून के भीतर दुःख का बढ़ते जाना घर के माहौल को अशांत कर रहा है. पहले जिन बातों को वे हँसी में उड़ा देते थे अब उन्हीं पर झुंझला जाते हैं. उसने ‘श्रद्धा सुमन’ ब्लॉग में बहुत दिनों से कोई कविता पोस्ट नहीं की ह. एक नयी कविता का भाव भीतर भगवद गीता पढ़ते-पढ़ते प्रकट हुआ है कि परमात्मा को पाने के लिए कितने जोड़-तोड़ किये, उपाय किये पर जब तक करने वाला रहा तब तक वे सब व्यर्थ ही सिद्ध हुए ! गुरूजी के लिए कविता लिख रही है, उनका जन्मदिन आने वाला है, परसों ही तो है.

आज का ध्यान एक बड़ी सिखावन दे गया. वे जो भी भाव अन्यों के कारण प्रकट करते हैं, उनका स्रोत उनके ही भीतर होता है, वे ही कारण हैं, बाहर तो बस खूंटियां होती हैं, जिनपर वे अपने मन की भावनाओं को टांग देते हैं. उनका प्रेम या उनकी घृणा उनकी निज की सम्पत्ति है. आज सुबह एक स्वप्न देखकर उठी थी पर याद नहीं है. परसों रात को उड़ने वाला स्वप्न देखा था जिसकी स्मृति सुबह बनी हुई थी.

कल भी वर्षा हुई ! आज सुंदर शब्द सुने जो भीतर अभी भी गूँज रहे हैं. जग की आपाधापी में कहीं चुक न जाये संवेदना उर की... अंतर भीगा हो, वाणी में ओज हो और सहज ही सबको साथ लेकर चलने की कला हो..कलाकार की कला तभी फलती-फूलती है. कला का अभिमान भीतर की संवेदना को हर लेता है ! मार्ग में यदि कांटे हों तो कोई अनदेखा कर देता है, कोई खुद को बचा कर निकल जाता है पर संवेदनशील कांटे बीनता है और राह को अन्यों के लिए कंटक विहीन बना देता है ! जो सहनशील होगा वही अपनी कला को विकसित कर सकता है, सृजन शील हो जो वही कलाकार नित नया सृजन करता है. हर दिन कोई नया विचार, कोई नया गीत रचे मन.. प्रकृति ज्यों नित नई है, सनातन मूल्यों को पकड़ कर नया सृजन हो वैसे ही जैसे मूल को पकड़ कर नया फूल खिलता है.. स्वप्नशील हो अंतर उसका, एक शिव संकल्प जलता रहे भीतर जो सदा प्रेरित करे..

कल रात स्वप्न में मुस्लिम समाज को देखा, कोई जलसा हो रहा है, मुस्लिमों का इतिहास बताया जा रहा है, वह भी उसी हुजूम का हिस्सा है. कुछ दिन पहले भी कई मुस्लिम औरतों को, जो सफेद बुर्के पहने थीं, देखा था. शायद कोई पिछला जन्म रहा हो. स्वप्न में एक सखी को भी देखा. मन कितनी गहरी याद भीतर छिपाए रखता है. वे किसी के लिए कुछ भी करते हैं तो उसके पीछे यही भावना होती है कि लोग जानें. अहम की तुष्टि के लिए ही वे सारे कर्म करते हैं, ऊपर से भले यह दिखाई न पड़े.



Tuesday, November 15, 2016

सूरज और बादल


अप्रैल का अंतिम दिन ! देखते-देखते नये वर्ष के चार माह गुजर गये और गुजर गया उनके जीवन का का भी एक और हिस्सा. एक दिन सारी सांसें गुजर जाएँगी और वे आकाश में स्थित होकर देखेंगे अपने ही तन को निस्पंद ! उससे पहले ही यदि संसार को कुछ देना है तो दे देना चाहिए कुछ और गीत कुछ और कविताएँ ! ! मार्च माह की कविताओं में भी उसकी कविता सातवें पायदान पर आयी हुई, ‘पिता’ नामकी कविता अभी अगले तीन हफ्ते तक कहीं प्रकाशित नहीं करनी है. आज जून ऑफिस में ही लंच लेने वाले हैं. मुख्य अधिकारी का विदाई समारोह है. उन्होंने काफी कलात्मक भाषा में विदाई भाषण लिखा है. नन्हा पिछली बार एक किताब लाया था जिसमें साईं बाबा के किसी भक्त ने उनके साथ घटे अपने अनुभवों को लिखा है, आज कुछ देर पढ़ी.

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, गले में दर्द था परसों शाम से ही. आज काफी ठीक है, लेकिन नाक बंद है. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है तभी जुकाम हुआ या फिर यह किसी कर्म का परिणाम है. यदि भीतर प्रश्न जिन्दा रहते हैं तो समय-समय पर नये विचार आते हैं. यदि समझा-बुझा कर मन को शांत कर दिया और भीतर तक पहुंचे नहीं तो मार्ग अवरुद्ध हो गया, उदासीन होकर बैठ जाने से रास्ता मिलता नहीं.

कल चार तारीख थी, बच्चों को पढ़ाते समय उसने तीन लिखी, उन्होंने भी नहीं बताया, जबकि वे स्कूल भी गये थे. सोये-सोये ही वे सारी उम्र गुजार देते हैं, आखिर कब होगा जागरण ? आज मौसम गर्म है. मई में यही स्वाभाविक ही है. गले में चुभन है सो चावल खाने का मन नहीं है. योग वशिष्ठ में पढ़ा कि जब भोजन पचता नहीं तब व्याधि होती है. तनाव होने से भोजन नहीं पचता. महीनों से भोजन के समय वातावरण बोझिल हो जाता है, माँ कुछ खाना नहीं चाहतीं तो कभी पिताजी झुंझला जाते हैं कभी जून. आत्मा है ऐसा भान हर समय बना नहीं रहता, रहे तो भी मन, बुद्धि, शरीर सब अपनी जगह हैं जो प्रकृति के अनुसार चलेंगे. आज उसे लग रहा है अवश्य ही साधना में कोई गहरी भूल हो रही है अभी तक परमात्मा की कृपा को पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर पायी है. अब भी लगता है कुछ नहीं जानती !

उस साधक की लिखी किताब पढ़कर काफी कुछ स्पष्ट होता जा रहा है, कितने सोये रहते हैं वे, आसक्ति, राग व द्वेष के शिकार होते हैं और सोचते हैं कि सब जानते हैं. अपने अज्ञान का ज्ञान होना ही वास्तव में ज्ञान की पहली सीढ़ी है. मन कैसा धुला-धुला सा लग रहा है, पर अभी भी कितनी परतें छुपी होंगी, दबी होंगी. सद्गुरू दूर रहकर भी शिष्य को सन्मार्ग पर लाने का कार्य करते रहते हैं. सद्गुरू का प्रेम अनंत है, वे उन्हें क्या प्रेम करेंगे, उनके पास एक बूंद भी नहीं जो है भी तो उसमें न जाने कितनी वासनाएं घुली-मिली हैं. परमात्मा को जो अर्पित होगा वह पावन होगा, पर परमात्मा कृपालु है, वह कोई भेद करना जनता ही नहीं, जो उसे पुकारे उसी पर कृपा लुटाता है !

तन स्वस्थ हो तो मन भी स्वस्थ रहता है. आज एक गर्मी भरा दिन है, बाहर धूप बहुत तेज है. चमचमाता हुआ सूर्य जैसे गुस्सा गया है, बादलों को चिढ़ा रहा है कि अब देखें वे उसे ढक के...उधर बादल भी जब मौका देखेंगे बदला लेगें ही. पिताजी बाहर बैठे हैं, अख़बार पढ़ चुके हैं, चुपचाप बैठे हैं, भीतर कमरे में अपनी कुर्सी पर माँ बैठी हैं जैसे उनकी दुनिया से बाकी दुनिया जुदा है, वैसे ही बाकी दुनिया से उनके बच्चों की दुनिया जुदा है. कल नन्हे को साईं बाबा की बात कही तो वह उन्हें जादूगर कह रहा था. भगवान से बड़ा कोई जादूगर है क्या ? परमात्मा की ओर जो ले जाये वह जादूगर कृष्ण भी तो था.. 


Thursday, November 10, 2016

ए राजा का महल


कल टीवी पर ए.राजा का महल देखा जो चेन्नई में स्थित है. कितनी शरम की बात है की देश का पैसा राजनीतिज्ञ अपने ऐशोआराम के लिए इस तरह लुटाते हैं. आज सुबह दीदी से स्काइप पर बात हुई, उन्हें बीहू का वीडियो मिल गया है. कल से एक नया विद्यार्थी पढ़ने आएगा, वर्षों पहले उससे मिली थी, जब वह छोटा सा था और उसकी संगीत अध्यापिका ने उसे गोद लिया  था. कई वर्ष बाहर रहने के बाद वे लोग दुबारा यहाँ आ गये हैं. वर्षा पर लिखी उसकी कविता पर कई टिप्पणियाँ आयी हैं. नन्हे के एक तिब्बती मित्र ने जो एक बार चार सप्ताह के लिए यह रहने आया था, उसके ब्लॉग को पढ़ना शुरू किया है. उसके लिए कविता लिखी थी उसने जब वह आया था. उसने बौद्ध धर्म पर दो पुस्तकें भी भेजी थीं. कविता मन के वृक्ष पर खिला फूल है, जिसकी खुशबू सब ओर फ़ैल जाती है यदि कोई लेना चाहे तो. स्वान्तः सुखाय लिखी गयी कविता भी यदि औरों को सुख दे जाये तो इसमें कुछ भी गलत नहीं, हाँ, अहंकार से बचना चाहिए क्योंकि जो लिखा गया है वह भी किसी ऐसे स्रोत से आ रहा है जो सबका है, कवि माध्यम होता है. सहज, निर्दोष आनन्द का सृजन ही कवि का उद्देश्य है, हरेक का नहीं हो सकता क्योंकि जिसने अभी भीतर के आनन्द को स्वयं ही नहीं पाया है तो वह उसे बांटेगा कैसे ? पिताजी का मेल आया है, आखिर वे भी कम्प्यूटर का थोड़ा-बहुत इस्तेमाल करना सीख ही गये हैं. कल गुड फ्राइडे है, उसे इसके बारे में भी जानकारी लेनी है, फिर  कुछ लिखना भी है, उसने सोचा दोपहर को पढ़ेगी. लंच में आज ‘कर्ड-राइस’ बनाये.

पिताजी को कल साईकिल चलते समय चोट लग गयी. जून उन्हें लेकर अस्पताल गये हैं. माली की साईकिल लेकर चलाने निकले थे, शुरू में ही गिर पड़े फिर भी बैठकर एक चक्कर लगा कर आये और कहने लगे अपनी खुद की साईकिल खरीदेंगे. मानव वृद्ध हो जाता है पर इसे स्वीकारना नहीं चाहता. अंतिम श्वास तक भी उसके भीतर की जिजीविषा विश्राम नहीं लेने देती. ‘जब तक श्वास तब तक आस’..माँ इसके बिलकुल विपरीत हैं, वह कुछ ज्यादा ही विश्राम कर रही हैं. उन बुजुर्ग आंटी को भी फिर से चोट लग गयी है. कल रात जब उनके बेटा-बहू सब पार्टी में थे. वह टीवी देखते-देखते कुर्सी पर ही सो गयीं, वे जब लौटे तो उन्हें उठाकर भोजन खिलाया और हाथ धोने जब बरामदे में गयीं तो गिर गयीं. नींद की दवा का असर रहा होगा. वृद्धावस्था में कितना दुःख झेलना पड़ता है, ऋषि-मुनि ऐसे ही तो नहीं कह गये हैं. कल नन्हे ने फोन पर बताया, उसके कालेज की एक मित्र की माँ का हाथ मिक्सर में कट गया. जीवन कितना विचित्र है, यहाँ किसी भी पल कुछ भी घट सकता है.  


आज सुबह वे टहलने गये तो बातों का सिलसिला व्यर्थ ही चल पड़ा. सुबह-सुबह मन खाली होना चाहिए पर...खैर..मन का असली रूप भी सामने आ गया. अभी भी अहंता और ममता सताते हैं. आत्मा में रहने पर वे तत्क्षण विदा तो हो जाते हैं पर नुकसान तो हो ही चुका होता है. एक असमिया परिचिता का फोन आया वे हिंदी में कविता पाठ करना चाहती हैं, उसमें कुछ मदद चाहिए, उसने भी अभ्यास किया, याद तो हो गयी है फिर भी अपने साथ रखना जरूरी है, क्लब में काव्य पाठ प्रतियोगिता है.  

Tuesday, November 8, 2016

बीहू नृत्य


कल शाम को इतने वर्षों में उनके यहाँ ‘बीहू नृत्य’ का आयोजन हुआ. ‘मृणाल ज्योति’ के ग्रुप ने मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया. कुछ देर के लिए उसने भी भाग लिया. जून ने पूरे मन से इसमें सहयोग दिया. पिताजी ने भी बहुत सहायता की. उनका कर्मठ स्वभाव देखकर बहुत आश्चर्य होता है. इस उम्र में भी उनमें युवाओं से बढ़कर उत्साह व ऊर्जा है. सुबह टहलने जाते हैं तो फूल उठा लाते हैं, बगीचे से आंवले ले आते हैं. जून ने कल भोजन परोसने का कार्य किया. मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल तथा उनके पति दोनों बहुत खुश लग रहे थे. नूना और जून को भी बहुत अच्छा लगा. उसका नया फोन एकाएक चलते-चलते बंद हो गया है. नन्हे का नंबर उसे याद नहीं है, लैंड लाइन से बात कर ले. वह वापस चला गया है. अब जून के आने पर ही बात होगी. आज कई दिनों के बाद व्यायाम करने बैठी तो देह साथ नहीं दे रही थी, एकाध दिन में ठीक हो जाएगी. आज हनुमान जयंती है, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा. कल से वैसाख का आरम्भ है. दस बजे हैं, बाहर धूप तेज है पर भीतर कितनी ठंडक है, ऐसे ही उनका मन बाहर कितना अशांत है पर भीतर कितन ठहरा हुआ है. वहाँ तक जाने का मार्ग जिसने खोज लिया वही चैन पा सकता है. पिछले दिनों कितना कुछ घटा, लेकिन भीतर कहीं यह विश्वास था कि सब ठीक है. नन्हा सूफिज्म पर पुस्तक ले गया है. इसका अर्थ है कि परमात्मा के प्रति उसके अंतर में आकर्षण तो जग ही चुका है, वह ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता. उसका संग यदि सुधर जाये तो यह काम और जल्दी हो सकता है, लेकिन हर कार्य अपने समय पर ही होता है. आज चर्चामंच पर उसकी कविता पोस्ट हुई है, वह भी ‘उसी’ की याद दिलाती है. कई ब्लॉग पढ़े, एकाध अच्छे भी लगे, शब्दों का जाल ही हैं ज्यादातर तो, जो मौन को उपजा दें वही शब्द सार्थक हैं. गुरूजी को भी सुना, उन्होंने कहा धर्म व राजनीति दोनों में आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया जाए, सभी धर्मों के लोग एक दूसरे से परिचित हों. अभी कुछ देर में बच्चे पढ़ने के लिए आने वाले हैं. माँ जो अपनी कुर्सी से उठती नहीं हैं, भय के कारण पीछे के आंगन का दरवाजा बंद आयी हैं.  

दस बजे हैं सुबह के, रात से ही वर्षा की झड़ी लगी है. दिन में अंधकार छा गया है. सुबह बड़े भाई-भाभी से बात की, भतीजी ने डांस क्लास ज्वाइन की है, साथ ही नारायण कोचिंग भी. आजकल बच्चे सभी कुछ एक साथ करना चाहते हैं. उसने ब्लॉग पर बीहू की तस्वीरें डाली हैं. दीदी ने प्रतिक्रिया भेजी है, और वीडियो की फरमाइश की है. कल शाम को जून की बात नहीं मानी तो उदास हो गये. मानव अपने ही मन द्वारा छला जाता है..इस क्षण में उसके भीतर एक प्रतीक्षा है, भीतर बहुत कुछ है जो प्रकट होना चाहता है.

आज भी वही कल का सा समय है, पर अब बादल छंटने लगे हैं. आज वर्षा पर लिखी एक नई कविता ब्लॉग पर पोस्ट करनी है, यहाँ तो पावस का आरम्भ हो ही चुका है. कुछ देर पहले माँ पूछती हुई आयीं, खाना नहीं बनायी हो, आजकल वह ज्यादा बात नहीं करती हैं, पर आज उन्हें बात करते देखकर अच्छा लगा. जब उसने पूछा, आप खायेंगी, तो पहले कुछ नहीं बोलीं फिर अपना ही प्रश्न दोहराने लगीं, उसने अब थोड़ा ऊंची आवाज में जवाब दिया, पर अगले ही पल लगा पिताजी को अच्छा नहीं लगा होगा. फिर वही वाणी का दोष..या अधैर्य का संस्कार. आज सुबह का स्वप्न भी जगाने के लिए था, किसी बच्ची के जन्मदिन पर जून एक बहुत ही सामान्य सा स्कूल बैग लाये हैं. उसके सामने ही वह खोलती है और कहती है, इतना खराब गिफ्ट है, वह शरम के मारे कुछ बोल नहीं रही है फिर हाथ बढ़ाती है और नींद टूट जाती है. वर्षा हो रही थी सो टहलने नहीं गये वे, प्राणायाम किया, एक आचार्य को सुना, सत्यार्थ प्रकाश के बारे में वे बता रहे थे.        


Sunday, November 6, 2016

आंधी-पानी और आंवले


नन्हा उठा और उससे पूछने लगा, क्या सुबह उसने उन्हें बहुत परेशान किया ? उसके जीवन में उनका क्या स्थान है, यह तो वही जानता है, पर उनके जीवन की वह आशा है, जब उसने बुद्धा की कहानी भेजी तब वे समझे थे कि वह भी सत्य की खोज में लगा है, सजगता इसके लिए पहली आवश्यकता है पर मादक द्रव्य तो चेतन मन को ही अचेत कर देता है, कुंद कर देता है, सोचने-समझने की शक्ति को ही नष्ट कर देता है. इस समय वह काम कर रहा है, अभी भोजन भी नहीं किया है, रात को जो फोटो खींचे उन्हें देखकर उसे लगता है, क्यों आतुर है आज की पीढ़ी इस जहर को अपने भीतर उतारने के लिए. बड़े शहरों का असर है, काम का तनाव है या पता नहीं क्या है. वे समझने में असमर्थ हैं, पर उनके पास एक सम्पत्ति है, विश्वास की सम्पत्ति, परमात्मा पर अखंड विश्वास. वह परमात्मा नन्हे के साथ भी है, वही उसे सन्मार्ग पर ले जाएगा !   

उस दिन जो स्वप्न देखा था वह आज की घटना की ओर इंगित कर रहा था. अब भी कितना स्पष्ट है, नन्हा दौड़ता हुआ आ रहा है, साथ ही एक भद्दा सा पशु बड़े आकार का, वह उसे कहती है बचो, बचो.. पर वे दोनों भिड़ जाते हैं, नन्हा भाग रहा है रेलिंग पर आ गया है, आगे कुआँ पीछे खाई वाली स्थिति है. नीचे पानी से भरा एक ड्रम है वह कूद जाता है. वह ऊपर से चिल्ला रही है, नन्हा, नन्हा..आखिरी आवाज तक जून भी आ जाते हैं, वे दोनों ऊपर से देखते हैं, नन्हा पानी में है. तभी नींद खुल जाती है. आज उसने कहा कि माता-पिता होने के नाते उन्होंने उसे कुछ नहीं बताया जीवन के बारे में. कैसे लोग अच्छे होते हैं, कैसे बुरे होते हैं. वह जिस संगति में है या कालेज में था..उसी का परिणाम है कि..बच्चों को माँ-पिता से शिकायतें होती ही हैं और आज के माहौल में, इस उम्र में यह सब करना भी स्वाभाविक है. आज वातावरण ही ऐसा दूषित हो गया है. लेकिन उन्हें उस पर भरोसा था, उसकी बुद्धिमता पर, उसके दिल पर, उसके विचारों पर, उसमें अवश्य ठेस लगी है, पर हर व्यक्ति अपना भाग्य अपने साथ लेकर आता है. गुण ही गुणों में बरत रहे हैं.

आज बैसाखी है. कल रात ही उसने ब्लॉग पर कल दोपहर लिखी छोटी सी कविता पोस्ट की थी. मौसम खुशगवार है, ठंडी हवा और गगन पर बादल..वह बाहर झूले पर बैठी है. रात को आंधी-पानी के कारण ढेरों आंवले जमीन पर गिर गये थे, जिन्हें पिताजी ने उठाकर इकट्ठा कर लिया है और अब अख़बार पढ़ रहे हैं. जून बाजार जाने के लिए तैयार हैं. नन्हा अपना काम कर रहा है, माँ अपनी कुर्सी रोज की तरह बैठी हैं. नैनी आज देर से आयी, अभी तक काम कर रही है. कल वह हायर सेकेंडरी स्कल गयी, मृणाल ज्योति के बच्चों ने वहाँ बीहू नृत्य प्रस्तुत किया. दो दिन बाद वे उनके यहाँ आयेंगे. नन्हे को उसने बताया कि उन सबके भीतर ऊर्जा का स्रोत है, जो कभी समाप्त नहीं होता जो..  


Thursday, November 3, 2016

असमिया साड़ी के डिजाईन


दोपहर के तीन बजे हैं, कुछ देर पूर्व चार सखियों से एक-एक कर फोन पर बात की. एक का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. एक की सासुमाँ को, गिर जाने से, सिर में थोड़ी चोट लग गयी है, उन्हें अस्पताल जाना पड़ा. कल नन्हा आ रहा है, जून शाम को मिठाई बनायेंगे व गुझिया बनाने में उसकी मदद करेंगे. उनके भीतर भी एक माँ है. कल रात एक विचित्र स्वप्न देखा, पर देखते समय भी यह भास हो रहा था कि यह स्वप्न है. नन्हा एक काले-कलूटे बड़े से पशु से लड़ रहा है फिर ऊपर से छलांग लगाता है, पता नहीं इस स्वप्न का क्या अर्थ है पर उस समय यह भी समझ में आया कि उसे भयभीत नहीं करना है, व्यर्थ ही उपदेश नहीं देने हैं. परमात्मा उनमें से हरेक के साथ हर पल है और हरेक को भीतर से जगा ही रहा है. उन्हें  स्वयं को सजग रखना है, बस अपने भीतर के दीपक को जलाये रखना है, बुझने से रोकना है. वे यदि खुद को समझ पाए तो सबको समझने में समर्थ होंगे. सद्गुरू, आत्मा और परमात्मा एक ही सत्ता के नाम हैं. मन से परे जहाँ केवल मौन है, कोई साक्षी बनकर सब कुछ जान रहा है, वहाँ रहकर यदि वे जगत को देखें तो सब कुछ खेल ही जान पड़ता है. वे दृश्य में उलझ जाते हैं तभी भीतर विषाद का जन्म होता है. मन ही अँधेरा है, मन ही दृश्य है, मन ही बंधन है, वे दुधारी तलवार की तरह हैं, द्विमुखी तीर की तरह हैं, चाहे तो साक्षी में रहें, चाहें तो दृश्य में रहें. जीवन उन्हें एक अवसर दे रहा है महाजीवन को पाने का. भीतर अनंत प्रेम है उसे जग में लुटाने का, भीतर अनंत शांति है, उसे जग में बहाने का और भीतर अनंत आनंद है उसे जहाँ में बिखराने का, इसके अलावा जीवन का और कोई उद्देश्य हो भी सकता है ? उनका जीवन ही उनका संदेश है, यह बापू ने कहा था और यही उसका भी अभिप्राय है !

रात को बहुत मजेदार स्वप्न देखा. शायद हाथ के दबाव से श्वास रुक रही थी. पहले देखा पानी में तैर कर वे शैवालों को पार करते हुए ब्रह्मपुत्र नदी में जाते हैं. रास्ते में सुंदर उपवन भी थे. वापसी में नदी की तलहटी में रेत पर सुंदर डिजाईन बने हुए थे. असमिया साड़ी के डिजाईन रंगीन रेत से बने थे, फिर क्या हुआ कि शैवाल वस्त्र बन कर उसके तन पर लिपट गये और वह जल से बाहर आ गयी, फिर आंतकवादी पीछे पड़ गये. वे कितने अलग-अलग तरीकों से बचाव की कोशिश करती है. एक सब्जी वाले के ठेले से छोटे-छोटे भार उठाकर फेंकती है पर हाथ में जोर नहीं था. फिर एक बैंडवाले को देखकर बोलती है, पुलिस..पुलिस, पर वह छोटे कद का बैंडवाला भी देखकर आश्चर्य जाहिर करता है, उसे खुद ही हँसी आ जाती है और नींद खुल जाती है.    


कल नन्हा अपने मित्र की मंगनी समारोह में शामिल होने गया था. सुबह वे टहलने गये तो उसे लौटते देखा. जिस हालत में उसे देखा उसकी कभी कल्पना नहीं की थी. इसलिये जैसी प्रतिक्रिया उन्होंने की वह स्वाभाविक ही है. अभी सुबह ही है पर इस समय दोपहर जैसी धूप निकली है, उसका कमरा बंद है, शायद सो रहा होगा क्योंकि उसकी आवाज का कोई जवाब नहीं दिया. वह कैमरा वहीं छोड़ आया था, उसके मित्र ने भिजवा दिया है. सुबह वह एक ही बात को बार-बार बोल रहा था, जैसे जून के दफ्तर के ड्राइवर को उसने बोलते सुना है. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वह पिछले पांच वर्षों से कई बार इस हालत तक पहुंच चुका होगा. जून बहुत पहले क्लब में कभी-कभार लेते रहे हैं पर इस तरह नहीं. शायद मित्रों के दबाव में वह स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रख पाया. उसके दादा-दादी, दोनों बुआ, फूफा, मामा, मासी, नानाजी सबको कभी न कभी यह बात पता चल ही जाएगी तो सभी को दुःख होगा ही, जैसे उन्हें हो रहा है. लेकिन वे उसे दोषी नहीं मान रहे हैं. जिन हालातों में वह विवश हुआ होगा और इस रास्ते पर चला होगा, वे हालात ही जिम्मेदार हैं. उसे उनसे भी ढेरों शिकायतें रही होंगी, हो सकता है अब भी हों, लेकिन उन्हें उससे कोई शिकायत नहीं हैं. उसकी सेहत ठीक रहे न केवल शारीरिक, मानसिक व भावात्मक भी. वह समाज में अपना योगदान करे. देश, समाज, परिवार तथा अपने आप के प्रति, अपनी जिम्मेदारियों को समझे. अपनी वास्तविक क्षमता को जाने. स्वयं के सत्य स्वरूप को पहचाने, वह अपने आप को नष्ट न करे, उसे बनाये, परमात्मा की उपस्थिति को पहचाने, उसे अपने जीवन का केंद्र बनाये. उसने एक पत्र उसके नाम लिखा जिसमें बताया, वह स्वयं को पहचाने, आनन्द उसका स्वभाव है, शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति उसका अपना आप है. वही वह है...तब उसे आनन्द के लिए यात्रा करना, घूमने जाना, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी. वह आनंदित होगा इसलिये यात्रा पर जायेगा, वह खुश होगा इसलिये कुछ कार्य करेगा, यही सच्ची सफलता है. पता नहीं उसकी ये बातें नन्हे को अच्छी लगेंगी या नहीं, पर इतना तो विश्वास है कि वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से इनको समझ जायेगा.      

Wednesday, November 2, 2016

फटी हुई पुस्तक


दायें तरफ की पड़ोसिन ने फोन किया और पूछा क्या वह क्लब की कमेटी में है, उसने कहा, नहीं, और फिर कहा इस बार नहीं. वर्षों पहले एक ही बार वह कमेटी में थी, प्रोजेक्ट कन्वेनर तीन साल से है, लेकिन उसकी बात से लग रहा था जैसे वह हमेशा ही रहती है पर इस बार नहीं. मन कितना झूठ बोलता है, अपने आपको कुछ दिखाने के लिए, फिर यह भी कहा कि मीटिंग में देर से जाकर जल्दी आ गयी, जबकि सारा समय वह लाइब्रेरी में ही बैठी रही. मन को झूठ बोलने में सोचना भी नहीं पड़ता. अपनी इमेज बनाये रखने के लिए कितने झूठ बोलता चला जाता है. झूठी इमेज की रक्षा के लिए झूठ के सिवा और साधन हो भी क्या सकते हैं. आज सुबह का अंतिम स्वप्न बड़ा मजे का था. उसने एक पुस्तक नींद में फाड़ दी है पर जिसकी है उसे तो लौटानी होगी सो सेलो टेप लगाकर जोड़ने का प्रयास कर रही है, पर जुड़ना कठिन है सो परेशान होकर नींद खुल जाती है व ठीक अगले ही पल अलार्म बजता है, बल्कि उस क्षण मन में यह विचार आया अब अलार्म बजेगा और ऐसा ही हुआ. तभी बंद आँखों के आगे प्रकाश नृत्य करने लगा, यह परमात्मा के आने का ढंग है, सुबह सन्ध्याकाल में वह इसी तरह मिलने आता है. फिर उसने उससे बात भी की. सुबह उठते ही कुछ पंक्तियाँ उसने लिखीं क्योंकि बाद में वे भाव ओस की बूंदों की तरह उड़ जाते हैं ! कितनी देर तक तो वह भीतर अपनी उपस्थिति जाहिर किये रहा फिर मन पर पर्दे छाते चले गये और वह छुप गया, उनके पीछे, झूठ, अहंकार और अज्ञान के पर्दे ! शाम को सूप उसकी असावधानी से कुर्ती पर गिर गया पर मन ने झट कह दिया कि मैच देखते समय उसका ध्यान विकेट की तरफ था सो..कितना चालाक है उसका मन, एक क्षण में कैसे-कैसे बहाने गढ़ लेता है.पर उसे पता चल गया था, उसके भीतर कोई जाग रहा है जो सब जानता है !

आज सुबह फिर चमत्कार घटा, आज्ञा चक्र पर ज्योति जल रही थी, एक दीपक की लौ, नींद खुली और विचार आया, अब अलार्म बजेगा और वही हुआ, ठीक चार बजे कोई जगा देता है, वही जो भीतर जाग रहा है. परमात्मा उसे धीरे-धीरे अपने नजदीक ले रहा है, पहले वह उसे पुकारती थी अब वह खुद उसे बुलाता है, उसने अपने को प्रकट कर दिया है. उसके अहंकार को चूर करने के उसके प्रयास भी जारी हैं. उसे अपने भीतर सूक्ष्म से सूक्ष्म विकार भी स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं. सभी के भीतर उसी की ज्योति भी दिखाई देती है, किसी को तिलमात्र भी चोट पहुँचाने पर भीतर कैसी पीड़ा जगती है जैसे खुद को ही सताया हो..वे सब एक ही हैं, इस बात का अनुभव भी हो रहा है. अब सारी कामनाएं एक ही केंद्र पर केन्द्रित हो गयी हैं. वह परमात्मा इसी जन्म में उसे मुक्त कर दे. इस में बाधा उसके पूर्व संस्कार हैं व प्रारब्ध कर्म, लेकिन सद्गुरू की कृपा का अक्षय भंडार भी तो साथ है. आज सत्संग है, वे भजन गायेंगे, ध्यान करेंगे और परमात्मा को अपने सारे गुण-अवगुण समर्पित कर देंगे, खाली होकर बैठ रहेंगे फिर वही वह रहेगा, वह एकछत्र साम्राज्य चाहता है..दो दिन बाद नन्हा आ रहा है, उससे भी अध्यात्म पर चर्चा होगी. मुरारी बापू बाबा रामदेव के पतंजलि आश्रम में कथा कर रहे हैं. वे पतंजलि के योग सूत्रों का रामचरित मानस के आधार पर वर्णन कर रहे हैं. यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि ! ये आठ अंग रामायण के सात कांडों में व्यक्त हुए हैं ! वह कह रहे हैं कृपा का पात्र बनना है, अंतर घट को पावन करना है, उसे सीधा करना है तथा उसके छिद्रों को पूरना है.

सुबह अलार्म बजा तो वह पहले से ही जगी थी, परमात्मा को जगाने नहीं आना पड़ा, वैसे भी वह कहीं दूर तो है नहीं जो उसे आना पड़े. वह उनकी आत्मा ही तो है, प्रकाश उसका स्वरूप है, शांति, आनंद, प्रेम, सुख, शक्ति, ज्ञान तथा पवित्रता उसके गुण हैं, जिनके अनंत प्रकार हैं. वह परमात्मा छिपा नहीं है पर उनकी दृष्टि पर ही मोटे-मोटे पर्दे पड़े हैं. उसे देखने के लिए अंतर की आँख चाहिए. कल दिन भर जून ठीक रहे पर शाम को नन्हे का फोन आ गया. वह बंगलूरू में एक घर खरीदने की सोच रहे हैं. उनको भी अपनी स्वतन्त्रता उतनी ही प्रिय है जितनी उसे. कल आभास हुआ कि किसी को जब वे सलाह देते हैं तो उसे कैसे चुभती है, कोई भी नहीं चाहता कि कोई और उसे बताये कि उसके लिए क्या ठीक है, उसे क्या करना चाहिए. अब जबकि वह तथाकथित साधना कर रही है, अहंकार को विसर्जित करना जिसकी पहली शर्त है, उसे कितना नागवार गुजरा चाहे पल भर को ही, क्योंकि तुरंत भीतर वाले ने सचेत कर दिया, लेकिन अब उसे कान पकड़ लेने हैं, किसी को भूल कर भी कोई सलाह नहीं देनी है, क्योंकि उन्हें दी गयी पीड़ा उसे ही मिलने वाली है, अंततः वे जुड़े हए हैं. जून का उसे सम्मान करना करना है और उनकी रजोगुणी प्रवृत्ति स्वत: ही सतोगुण में बदलेगी, वैसे ही नन्हे की भी, वह ऊपर उठ रहा है, उसे तो केवल खुद को देखना है, भीतर कोई दम्भ न रहे, पाखंड न रहे, भेद न रहे, खाली हो जाये मन..तभी तो उस परमात्मा को भरा जा सकता है..सारी इच्छाएं बस इसी एक में मिल गयी हैं..एक ही काम है लिखना, पढ़ना और सुनना..   


Tuesday, November 1, 2016

नींबू का पेड़


कल कुछ नहीं लिखा और आज इस वक्त जब लोग भारत-पाकिस्तान क्रिकेट सेमी फाइनल मैच देख रहे हैं, वह अपने साथ कुछ पल बिताने आई है. कल एक उपदेशात्मक कविता लिखी थी. किन्तु सच्चाई यह है कि कोई भी सत्य को सीधे-सीधे स्वीकारना नहीं चाहता या फिर वह जो जानता ही है उसे सुनकर स्वयं को कटघरे में खड़े हुआ नहीं देखना चाहता, कोई नया भाव, नई बात और वह भी मधुर शब्दों में कही जाये जो उसकी नींद को न तोड़े, स्वप्न को चलने दे और बल्कि उसे और भी गहरा कर दे. वे सभी तो सो रहे हैं और जागरण के कुछेक क्षण जो जीवन में आते हैं, उन्हें पसंद नहीं आते. वे उन्हें नकार कर अपनी नींद में मस्त रहना चाहते हैं. वे बेखबर रहते हैं अपने ही भीतर बहते उस आनन्द के निर्झर से, लेकिन उसकी खबर कोई अन्य किसी को नहीं दे सकता, खुद ही भीतर से ललक जगे तभी कोई उस अज्ञात की राह का पथिक बनता है, तो न तो उसे किसी को जगाने की जरूरत है न उन्हें झकझोरने की, उसे तो उस आनन्द के गीत गाने हैं जो भीतर पाया है, हो सकता है कोई उस आनन्द की झलक अपने भीतर पाले और अनजाने ही चल पड़े उस राह पर. आज लेडीज क्लब की मीटिंग है. उसे हिंदी प्रतियोगिता के लिए एक कविता और एक कहानी भी देनी है.

कल रात मैच खत्म हुआ तब सोये, आज सुबह देर से उठे. भारत क्रिकेट मैच जीत गया, पिताजी ने ख़ुशी में हलवा बनाने की फरमाइश की. पूरे देश में जश्न का माहौल है. लोग सारी कड़वाहटें भूल गये हैं. क्रिकेट ने सारे देश को एकता के सूत्र में बाँध दिया है. सभी राज्यों के खिलाडी भारत के लिए खेलते हैं. आज जग्गी वासुदेव जी का सम्बोधन सुना बाबारामदेव जी के कार्यक्रम में. कोयम्बतूर में ईशा योग सेंटर है, वहाँ बाबाजी भी गये थे. सही कहा है किसी ने, सारे संत एक मत ! कल क्लब गयी पर लाइब्रेरी में बैठकर एक तिब्बती पुस्तक पढ़ती रही. योग ग्रन्थों में जिस चिदाकाश का वर्णन है, वही बौद्ध ग्रन्थों में है, दोनों का स्रोत तो उपनिषद ही हैं, अद्भुत है सनातन धर्म ! परमात्मा की कृपा अद्भुत है, वह अद्भुत है और उसके ज्ञान को हजारों वर्षों से अक्षुण रखते आये ऋषि भी अद्भुत हैं. एक आत्मा या परमात्मा ही सभी रूपों में प्रकट हो रहा है. वह आधार है, वे उसके हैं, वह उनका है. जीवन कितनी क्षुद्र बातों से भर जाता है, जब वे साधना के पथ पर नहीं होते. साधना उन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान कराती है, उनके जीवन को पूर्णता देती है.

आज सुबह ही जून ने कहा, शाम को उन्हें क्लब जाना है आने में देर होगी, उसने मना किया, कहा, यदि अति आवश्यक न हो तो नहीं जाना चाहिए, दोपहर को भी किसी बात पर मतभेद हुआ शायद बंगलूरू में घर लेने की बात पर. इतना ही नहीं जब जून ने कहा नींबू के पेड़ पर फल नहीं लगते, उसकी शाखाएँ कटवा देते हैं, तो उसे हरे-भरे पेड़ को कटवाने की बात भी पसंद नहीं आयी, उसकी भाषा रक्षात्मक हो गयी और जून कुछ अजीब मूड में घर से बाहर गये. उसे भी तब से अच्छा नहीं लग रहा है. वह प्रसन्न रहे उसकी यही दिली इच्छा है, क्योंकि उसके खुश रहने पर वह भी खुश रह सकती है वरना तो..शाम को वह क्लब जायेंगे ही..नाश्ते के समय तक वह उसकी सब बातों को भुला देंगे..है न ! उसने मन ही मन पूछा. कल डीपीएस का परीक्षा परिणाम आ गया. उसकी छात्राओं का भी आ गया होगा, जिनकी मातृ भाषा हिंदी नहीं है, लेकिन दोनों में से किसी ने फोन नहीं किया, उसने स्वयं ही एक से पूछा. आज ब्लॉग पर कल वाली कविता पोस्ट की, जिसमें नृत्य का वर्णन है, एक कहानी लिखी.


Thursday, October 27, 2016

महिला आरक्षण विधेयक


महिला आरक्षण विधेयक, आजादी की ओर बढ़ते कदम कल उपरोक्त विषय पर नेट से देखकर कुछ लिखा. एक सखी भी आई थी, उसने भी कुछ बातें बतायीं. महिलाओं में यदि शिक्षा, जाग्रति, देशभक्ति तथा जनसेवा की भावनाएं न हों तो राजनीति में उनके प्रवेश करने मात्र से कोई विशेष लाभ नहीं होगा ऐसा उसका मानना है. पिछले दस वर्षों से इस विधेयक को पारित करने के प्रयास हो रहे हैं पर संसद में कुछ पार्टियों की असहमति के कारण ऐसा नहीं हो पाया है. अगले महीने की दस तारीख तक उसे इस विषय पर लेख देना है. आज मृणाल ज्योति की हुसूरी के लिए बात की, दो लोगों ने सहमती दी. एक गमछा तथा पान व ताम्बूल लाकर रखना होगा. जून आज मुम्बई पहुंच गये हैं. नन्हे ने उस दिन हैप्पीनेस वाला लेख भेजा था, उसकी दिशा ठीक है, वह भी वास्तविक प्रसन्नता को ही महत्व देता है न कि ऊपरी ताम-झाम को. दीदी ने उसकी हास्य कविता ‘आधुनिक शिक्षा प्रणाली’ पढ़कर कमेन्ट लिखा है.  

सुबह कैसा तो स्वप्न देखकर उठी. कीचड़ और गोबर से भरी एक गली है जिसमें से वह और नन्हे गुजर रहे हैं, उन्हें गुजरना ही है, तभी बीच सड़क में एक कूड़ेदान में लेटा हुआ एक व्यक्ति उठता है, उसके हाथ में गंदगी टपकाती हुई एक डाली है जिसका छींटा वह उस पर डालता है. वह उसे हाथ से पकड़ कर उठाती है और वह एक कपड़े के पुतले सा हाथ में झूल जाता है. आस-पास के घरों से पूछती है यह किसका है, सब मना करते हैं, एक लडकी इशारे से बताती है, दूसरी गली में इसका घर है, नशा करके इधर-उधर पड़ा रहता है. उसकी नींद खुल जाती है. पांच बज चुके थे. सुबह के स्वप्न कुछ अलग ही होते हैं. उसे लगा अहंकार ही वह कीचड़ है जो नन्हे की सहायता से शुरू किए ब्लॉग के कारण उसे हो सकता है. हिन्युग्म पर अपनी एक कविता उसने हटा दी है, जिसमें व्यर्थ ही अपनी प्रशंसा आप करने जैसी बात है. अभी कुछ देर पहले पिताजी ने तारीफ की, उन्हें कम्प्यूटर पर अपनी मेल खोलना आ गया है. सुबह नैनी को दो बार डांटा, प्राणायाम करते समय वह उसी कमरे में डस्टिंग करने आ गयी, मना करने पर भी नहीं जा रही थी, बाद में शीशे का एक गुलदान तोड़ दिया, उसके भीतर कुछ अवश्य हुआ होगा क्षण भर को, लेकिन गुलदान टूटने का दुःख नहीं था वह, काम ठीक से न करने का तथा किसी को दुःख देने का भी, खैर, जो हुआ सो हुआ..भीतर आसक्ति है, कामना है, यश की लालसा है, क्रोध है, अहंकार है. सारे विकार दिख गये, इतना सब होने पर भी भीतर परमात्मा है, साक्षी है, अनंत सुख है, मस्ती है, परमात्मा कितना दयालु है, वह उनकी कमियों पर ध्यान ही नहीं देता, वे उसे पुकारते हैं तो वह तत्क्षण प्रकट हो जाता है. परमात्मा उनके कितने निकट है !

आज से दिनचर्या में काफी फेरबदल किया है उन्होंने. सुबह चार बजे का अलार्म सुनकर उठी. बड़ी भांजी व भांजे को उनके बचपन में देखा, आखिरी सपना नींद खोलने के लिए होता है इस बात का ऐसा प्रमाण मिला कि मन आश्चर्य से भर गया. नींद खुली और उसी क्षण अलार्म बजा. पांच मिनट चिदाकाश में तारे देखते लेटी रही पर पुनः स्वप्न शुरू हो गये ऐसे ही न जाने कितने जन्मों में वे जाग-जाग कर पुनः सो जाते हैं, फिर उठी, वे प्रातः भ्रमण को गये. आकर प्राणायाम किया, जून भ्रार्मरी के बाद शांत बैठे रहे, पहली बार उन्हें इस तरह चुपचाप बैठे देखा. शायद कोई अनुभव हुआ हो, ज्योति की एक झलक भी मानव को बदल सकती है. परमात्मा हर पल साथ है. वह है तो वे हैं, यह संसार है, वह नहीं तो कुछ नहीं, वह भी वही है और सब कुछ भी वही तो है. नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, फिर भी काम कर रही है. उसकी बेटी को पिताजी सम्भाल रहे हैं. उनका दिल भी सोने का है, भावनाओं से भरा है. दुनिया देखी है उन्होंने, जीवन को पूर्ण रूप से जीया है. उनके पास भी भोले बाबा हैं..ईश्वर को प्रेम किये बिना कोई जीवन रस से पूर्ण हो ही कैसे सकता है !


Wednesday, October 19, 2016

बीहू में हूसरी

आज जून अहमदाबाद जा रहे हैं. उसे सफाई के शेष कार्य पूरे करने हैं. आज सुना, काठवाडी़ गाँव में एक अद्भुत दुकान है, बिना दुकानदार की दुकान, ग्राहक अपने आप ही सामान लेते हैं तथा पैसे रखकर चले जाते हैं. सुबह जून से उसकी किसी बात पर बहस हो गयी, बाद में उसने सोचा तो लगा की अति उत्साह में आकर वह भला करने के बजे उल्टा ही काम कर बैठी. उसे अपनी वाणी के दोषों पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है. उसे लगता है जिस प्रकार वह स्वयं को शुद्ध, बुद्ध आत्मा मानती हैं, उसी प्रकार सभी पूर्ण शुद्ध तथा ज्ञानस्वरूप हैं, यह भी अकाट्य सत्य है तो जो भी विकार उसमें दीख रहे हैं, वे ऊपर-ऊपर ही हैं. जैसे गंगा जल की धारा में कभी कोई कचरा बहता चला जाये तो कभी फूल या दीपक..धरा तो शुद्ध ही रहती है. इस तरह तो किसी के दोष देखने ही नहीं चाहिए, आत्मा को ही देखना चाहिए, जैसे वह स्वयं को देखता है ! दूसरी बात कि यदि कोई स्वयं पूर्ण हो तभी उसे दूसरों को कुछ कहने का हक है. वह केवल गुरू ही हो सकता है. उसे अपने अंदर लाखों कमियां दीख पड़ती हैं तो फिर उसे कोई अधिकार ही नहीं है. उसने प्रार्थना की, कि जून अपने हृदय को उसके प्रति स्वच्छ करके सदा की तरह क्षमा कर दें. जैसे आज तक अनगिनत बार बिना कहे ही उसकी सभी गलतियों को माफ़ किया है. उसकी यात्रा शुभ हो.  


यदि कोई कार्य सेवा भाव से किया जाये तो ईश्वरीय सहायता अपने आप मिलने लगती है. जब लेडीज क्लब द्वारा मृणाल ज्योति जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल पायी तो एक एक सखी ने भेज दी. बच्चे खुश हुए और वह क्लब की ओर से डोनेशन चेक भी दे पायी. बीहू के दिन घर में ‘हूसरी’ करने की बात भी कह पायी. कल कुछ अन्य लोगों से भी कहेगी. आज भी वर्षा हो रही है. हिन्दयुग्म पर उसकी कविता आई है. वर्षों पहले लिखी यह कविता उसके भीतर के बीज का प्रतीक है, जो अंततः सर्वोच्च मुक्ति के रूप में प्रकट होने को है. एक धार्मिक या कहे अध्यात्मिक व्यक्ति ही परिवर्तन कर सकता है. वह कोई आवरण नहीं चाहता, वह अंतिम सत्य को चाहता है, उससे कम कुछ नहीं. चाहना ही है तो उसे चाहो जो वास्तव में चाहने योग्य हो और मांगना भी हो तो उससे मांगो जो ख़ुशी से दे दे. तन पर लगे पहरों से ज्यादा कठिन है मन पर लगे पहरों को खोलना..और सच्ची क्रांति भी तभी घटती है जब मन के पहरे तोड़ दिए जाएँ और भीतर से एक ऐसी ज्वाला को प्रकट किया जाये जिसे दुनिया का कोई जल बुझा ही नहीं सकता..क्रांति फलित हुई है उसके भीतर ! भीतर जाने के उपाय और साधन बहुत हैं, समय भी है. भगवद् गीता पर लिखना शुरू किया है कल, आज उसे आगे बढ़ाना है ! जून से बात हुई आज वह दूसरी फील्ड में जायेंगे. 

Tuesday, October 18, 2016

जापान में भूकम्प


पिछला पूरा हफ्ता बिलियर्ड मन पर छाया था. शनिवार को कुछ ज्यादा ही. रात को स्वप्न में भी बॉल दिख रही थी. ज्वर इसे ही कहते हैं. असमिया सखी कितनी शांत और सहज नजर आ रही थी, वह खेल में जीत भी गयी. कल जून ने उनके बगीचे के फूलों का वीडियो भी उतारा. कल दीदी से बात हुई, सभी बच्चों के बारे में, माँ के पास बच्चों के सिवाय बात करने का दूसरा क्या विषय हो सकता है. होली में मात्र पांच दिन रह गये है, कविता लिखी है, बस रंगों से सजाना भर है, आज शाम को जून सहायता करेंगे, फिर सभी को भेजेंगे. कल संडे क्लास में बच्चों को काल्पनिक रंगों से होली खिलाई, बच्चे कितने सरल होते हैं, झट मान गये और एक-दूसरे पर रंग छिड़कने लगे. आजकल माँ बाहर बगीचे में जाकर नहीं बैठतीं, पिताजी अकेले बैठे अखबार पढ़ते हैं या कोई पत्रिका.

बड़ी भांजी ने कविता पढ़कर जवाब भेजा है. जापान में जो हुआ उसके बाद प्रकृति पर भरोसा करना ज्यादा मुश्किल है, लेकिन वह तो जड़ है, उसे कोई चला भी नहीं रहा. प्राकृतिक नियमों के आधार पर ही वह काम करती है. शरीर, मन, बुद्धि सभी तो प्रकृति के अंग हैं, लेकिन मन चेतना का आश्रय पाकर मनन् कर सकता है, अर्थात मन पदार्थ से ऊपर उठ सकता है यदि चाहे तो, जब पदार्थ का संयोग चेतन से होता है तो एक तीसरा तत्व पैदा होता है, वही अहंकार है, स्वयं के होने का आभास तभी होता है. यह सत्य है कि उनका होना एक लीला मात्र ही है, क्या हो जायेगा अस्तित्त्व में यदि वे न रहें या रहें ! इसका अर्थ हुआ कि वे सदा से थे या सदा नहीं थे !

कल पिताजी का जवाब आया, उन्होंने तीन कविताओं का जिक्र किया है. दो स्मरण में आ रही हैं, तीसरी याद नहीं. कविताएँ भी उससे लिखी जाने के बाद जैसे कुछ और हो जाती हैं, उनसे कोई संबंध नहीं रहता..क्योंकि वह जो वास्तव में है, अलिप्त है, निर्विकार है, कोई वस्तु उसे छू नहीं सकती. कल शाम को मृणाल ज्योति गयी. कई बातों की जानकारी हुई. कम्पनी में हड़ताल हो गयी है, जून वापस आ गये हैं, आज वह गुझिया बनाने वाली है, अब तो वह भी सहायता करेंगे.


वर्षा के कारण मौसम एक बार फिर ठंडा हो गया है. फागुन का महीना जैसे सावन में बदल गया है. वैसे भी मन बार-बार जापान के लोगों की तरफ जाता है. जिनके लिए इतनी बड़ी विपदा सम्मुख आ खड़ी हुई है. लेकिन जापानवासियों को भूकम्प झेलने की आदत हो गयी है, आपदा प्रबन्धन में वे बहुत आगे हैं. परमाणु रिएक्टरों से जो रिसाव हो रहा है उसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं. अभी वे सुरक्षित हैं, लेकिन कब तक रहेंगे, कौन कह सकता है ! अभी कुछ देर पूर्व पिताजी की उम्र की बात चल रही थी. अस्सी के होकर भी वह बिलकुल सीधे चलते हैं, मन में जोश भरा है और जवानों की सी फुर्ती है. कल क्लब में होली उत्सव मनाया जायेगा. 

जला हुआ दूध


फिर एक अन्तराल ! सुबह चार बजे ही अलार्म सुनकर नींद खुल गयी, न बजे तो पता नहीं कितनी देर से खुले. दिन ऐसे बेहोशी में बीत रहे हैं. आज दूध देर से आया था, दोपहर को गैस पर रख कर भूल गयी. जून को लंच के बाद बाहर तक छोड़कर आई तो दूध चूल्हे से उतारने के बजाय कम्प्यूटर के सामने बैठ गयी और पतीला बुरी तरह से जल गया. देखें कितना साफ होता है, नैनी को कहा है कि रगड़-रगड़ कर साफ करे. सारे घर में जले हुए दूध की गंध फ़ैल गयी है. ब्लॉग पर ‘गंगा’ कविता डाली, तस्वीर नहीं आ पाई, स्पीड बहुत कम थी. जून ने दोपहर को पपीते के परांठे की तारीफ़ क्या कर दी, सब भूल गयी. दुःख में मानव सजग रहता है, सुख उसे बेहोश कर देता है, पर उन्हें तो दोनों का साक्षी होकर रहना है. सजग होकर रहना ही आत्मा में रहना है. विचार सदा भूत या भविष्य के होते हैं, वर्तमान में कोई विचार नहीं होता, वर्तमान का पल इतना सूक्ष्म होता है कि बस वह होता है. पिछले दिनों जो पुस्तक पढ़ती रही उसने भी मन पर जैसे पर्दा डाल दिया था. खैर, ठोकर लगकर ही इन्सान सुधरता है. भीतर जो साक्षी है, वह तो अब भी वैसा ही है, निर्विकार और स्थितप्रज्ञ, यह जो उथल-पुथल मची है, यह अहंकार को ही सता रही है.

कल से एक नई किताब पढ़नी शुरू की है, जो कोलकाता यात्रा के दौरान खरीदी थी पर अभी तक पढ़ी नहीं थी. इसके अनुसार सबसे अच्छा ध्यान है कुछ भी न किया जाये, साक्षी भाव में रहा जाये. जब जरूरत हो तभी मन से काम लेना है, अन्यथा उसे शांत रहने दें. अपने आप आकाश में बादलों की तरह कोई विचार आये तो उसे गुजर जाने दें, बिना कोई टिप्पणी किये क्योंकि टिप्पणी करके भी क्या होगा, व्यर्थ ऊर्जा नष्ट होगी. जीवन में भी इसी सिद्धांत को अपनाना होगा तथा ध्यान में भी. हर समय इसी को पक्का करना होगा तब न अहंकार रहेगा न दुःख ! साक्षी भाव इतना सूक्ष्म है कि मन, बुद्धि की पकड़ में नहीं आता, जब कुछ न करें तो बस वही होता है लेकिन जैसे ही भीतर कोई स्फुरणा हुई वह लोप हो जाता है, बड़ा शर्मीला है ! अंतर के आकाश में जब वर्तमान का सूरज खिलता है तो अतीत के बादल छंट जाते हैं.

आज विश्व महिला दिवस है, उसे अपने भीतर अनंत शक्ति का उदय होता दिखाई दे रहा है. कल शाम को क्लब में पहली बार बिलियर्ड खेला. q तथा v का भेद जाना, अच्छा लगा. कोच अच्छी तरह सिखा रहे हैं. कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए. होली का उत्सव आने वाला है. होली का उद्देश्य है सारे मतभेद भुलाकर मस्त हो जाना, अद्वैत का संदेश देती है होली..एकता का, प्रेम का, मिठास का, मधुरता का..जब आम पर बौर छा जाते हैं और पलाश के फूलों से वृक्ष सज जाते हैं. भंवरे और तितलियाँ गुंजन करती हैं, जब हवा में मदमस्त करने वाली सुगंध भर जाती है. जब महुआ फूलों से लद जाता है. गाँव-देहात में फागुनी बयार की मस्ती में लोग फागुन गाते हैं और जब बच्चों की परीक्षाएं होने वाली होती हैं, तब होली आती है. रंगों की बातें करे तो हर रंग सुंदर है. सतरंगी यह जगत और सुंदर बन जाता है, तो होली पर कविता लिखी जा सकती है..


Sunday, October 16, 2016

बाबा रामदेव का आगमन



आज कई दिनों बाद लिख रही है. पिछले पांच दिन फिर डायरी नहीं खोली, आज पिताजी वापस चले गये. उनके बारे में कितनी बातें उन्हें ज्ञात हुईं. देश के विभाजन के समय उनकी उम्र मात्र पन्द्रह-सोलह साल की थी, हाई स्कूल में ही थे. पाकिस्तान से आकर वे लोग फाजिल्का में रहे. गुजारे के लिए पहले मूंगफली बेचीं, एक डाक्टर के पास कम्पाउडर का काम किया, फिर उन्हें तहसील में एक नौकरी मिली. उसके बाद ही डाकविभाग में काम मिला, साथ-साथ पढ़ाई भी करते रहे. कई बार प्रमोशन हुआ और उच्च पद से रिटायर हुए. उनका स्वभाव शांत है, सीखने की ललक अभी तक है. आत्मा की खोज है, आत्मनिर्भर हैं, मोह से परे हैं, संगीत का शौक है और भी न जाने कितने गुण हैं, उनके लिए वह एक कविता लिखेगी !  मौसम अच्छा है, धूप खिली है. कल बाबा रामदेव आये थे डीपीएस स्कूल के मैदान में उनका कार्यक्रम हुआ. वे गये थे. जोश से भरा उनका भाषण हजारों लोगों ने सुना. इस समय पिताजी बाहर बैठे हैं, माँ कमरे में हैं, दोनों चुपचाप हैं. वृद्धावस्था में कैसी शांति छा जाती है, सारी दौड़-धूप समाप्त हो जाती है, जीवन ठहर जाता है. उसका जीवन भी अपेक्षाकृत शांत हो गया है. ध्यान के बाद की शांति तो अनुपम है ही !

आत्मभाव में स्थित रहना, जितना सहज साधना करते समय होता है, उतना ही सहज मनोभाव में रहना, साधना न करने पर होता है. मन में उठती किसी वृत्ति के साथ जब वे एकाकार हो जाते हैं, साक्षी भाव में नहीं रह पाते. इसी को संसार कहते हैं. व्यर्थ ही ऊर्जा का व्यय होता है और आत्मा के पद से गिरकर वे नीचे फेंक दिए जाते हैं. असजग होकर जीने का, अहंकार में जीने का और द्वेष भाव में जीने का यही परिणाम होता है, आसक्ति का यही परिणाम है ! साधना आजीवन चलती रहने वाली प्रक्रिया है. कितने ही अनुभव हो जाएँ, निश्चिन्त नहीं हुआ जा सकता, मन के स्तर पर आना ही होता है. पुराने संस्कारों को यदि आलम्बन मिल जाये तो वे पुनः अपना सर उठा लेते हैं. भीतर अभिमान भी सूक्ष्म रूप से विद्यमान है ही. देहाभिमान भी है क्योंकि देह यदि सुंदर है तो मन भी प्रसन्न होता है और मन शांत हो तो देह पर उसकी झलक भी दिखाई पड़ जाती है. पिछले दिनों मन में जो उहापोह चल रही थी, उसका असर शरीर पर स्पष्ट दीख रहा है. सद्गुरू से इस बारे में कुछ पूछने जायें तो कहेंगे, जितना हो सके सहज रहो. वही तो नहीं होता, एकांत में जो सहजता स्वाभाविक रहती है, वही लोगों के सामने कुछ खो जाती है. जो भी है जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार लेने से सहजता को बचाया जा सकता है ! साक्षी भाव में रहकर अनुकूल व परिस्थितियों को देखते रहना ही उनके वश में है.

आज भी मौसम खुशगवार है, धूप खिली है. कल वे नन्हे के एक मित्र के भाई की शादी के रिसेप्शन में गये. नन्हे का फोन आया था, वह मोटरबाइक से कोजीकोट जाना चाहता है. उसे रोमांच पसंद है. शिवरात्रि आने वाली है. उसने पढ़ा, इस ब्रह्मांड का आकार एक उलटे अंड जैसा है, जिसका तला खुला है. लेकिन वह अनंत है. ब्रहमा व विष्णु भी जिसका पार नहीं पा सके. समपर्ण ही एक मात्र उपाय है जिससे कोई उनको जान सकता है, क्योंकि कुछ नहीं होते ही कोई सब कुछ हो जाता है ! खालीपन तो आकाश के खालीपन सा ही है और खालीपन मायापति है, सबकुछ शून्य से आया है और शून्य में ही समा जायेगा !


Saturday, October 15, 2016

गुलाब वाटिका


पौने तीन बजने को हैं थोड़ी देर में कार आ जाएगी और वह मार्केट जाएगी फिर वहीँ से उन वृद्धा आंटी से मिलने जाएगी, जिनके भाई का देहांत परसों ब्लड कैंसर से हो गया, अन्य कई रोग भी उन्हें सता रहे थे. बुढ़ापा अपने-आप में एक रोग है. उसके खुद के दांत में भी पिछले कुछ दिनों से थोड़ा दर्द है, यथा सम्भव मुंह व दांत साफ रखने की चेष्टा करती है, शेष जो हो सो हो. कल ब्लॉग पर एक हास्य कविता पोस्ट की, नन्हे को पसंद आई. कल नन्हे ने एसी से आने वाली गंध का कारगर इलाज बताया, बच्चों का दिमाग यकीनन तेज चलता है. उसका दिमाग तो अब एक ही ट्रैक पर चलता है. ध्यान का अनुभव जिसे एक बार हो जाये उसे ऐसा ही होता होगा. अब इस जगत की किसी भी वस्तु में कोई रूचि नहीं रह गयी है, सब खेल लगता है. उनके भीतर एक और जगत है, फूल उतने ही सुंदर हैं भीतर और आकाश उतना ही विशाल..लेकिन सद्गुरू की बात मानकर साधना, सत्संग, सेवा व स्वाध्याय फिर भी जारी रखने होंगे. साधना करने में अब केवल ध्यान में ही रूचि रह गयी है, ज्ञान सुनने की जगह भीतर का सन्नाटा सुनना भाता है. कल से पिताजी आ रहे हैं तो वैसे भी उनकी दिनचर्या बदल जाएगी. आज सुबह नृत्य उतर आया था और कुछ शब्द भी..कुछ पंक्तियाँ बाद में लिखीं पर जो शब्द स्वत: फूट रहे थे वे बाद में याद नहीं रहते. सुबह गुलाब वाटिका में टहलने गयी, माली, सफाई कर्मचारी सभी अपने-अपने काम में लगे थे. एक बूढ़ी महिला घास काट रही थी, उससे बात की तो कितनी खुश हो गयी. उस बगीचे के माली फूलों के बीज सुखा रहे थे, उसने भी गेंदे के फूल सुखाने को रखे हैं. जीवन उनके चारों और बिखरा है, कण-कण में वही तो है, वह परमात्मा उसका अपना है !

आज बड़े भाई-भाभी के विवाह की सालगिरह है, तीन दशक हो गये उनके विवाह को, भाई दो वर्ष बाद रिटायर हो जायेंगे. उनसे बात की, आज छुट्टी है, भाई की तबियत ठीक नहीं है, सोये थे. उसने उन्हें कार्ड में कविता भेजी थी, लेकिन मन भी तो प्रफ्फुलित होना चाहिए तभी कविता भाती है. जीवन का आनन्द क्या है इसका पता ही नहीं चल पाता कि जिन्दगी हाथ से फिसल जाती है. कल छोटी बहन को भी एक कविता भेजी. मौसम बदल रहा है, अब वे आंवले-लौकी-एलोवेरा का जूस पीना शुरू कर सकते हैं. कल सुबह उसने मन को खुली छूट दे दी थी, सुबह टहलने गयी दोपहर बाद बाजार..भगवान कृष्ण  कहते हैं जो सब जगह उन्हें ही देखता है वही देखता है, यदि ब्रह्म उनका मूल है तो एक अर्थ में वे भी वही हैं. मूल से ही फूल होता है, दोनों को एक साथ ही देखना होगा, समग्रता में. डाल से टूटा फूल कब तक रहेगा. आज पिताजी आ रहे हैं, अगले कुछ दिनों तक वे व्यस्त रहेंगे, जीवन का एक नया रंग प्रसुत होगा. आज बगीचे में कुछ काम करवाया. उसकी ऊर्जा इन्हीं छोटे-मोटे कामों में ही लग रही है, कुछ बड़ा काम उसके हाथों से होने वाला नहीं है, लेकिन सद्गुरु कहते हैं जो भी काम हो यदि उसे निष्काम भाव से किया जाये तो वह भी मुक्त करता है. सुबह से रात्रि तक मन समता में रह पाता है या नहीं इस बात पर निर्भर करता है उनका विकास, लेकिन मन यदि इस कामना से पीड़ित हो कि उसे कुछ महान कार्य करना है तो वह कामना ही बंधन का कारण बनेगी. कर्म कर्ता भाव से मुक्त होने के लिए ही है न कि कर्म करके कुछ बन जाने के लिए. उनके भीतर एक तृप्ति का अहसास हो, संतुष्टि हो और आनंद हो, वही प्राप्य है !

पिछले तीन दिन कुछ नहीं लिखा, उस दिन दोपहर ढाई बजे पिताजी आ गये थे, आज उन्हें आये पांचवा दिन है. उन्हें यहाँ रहना अच्छा लग रहा है पर और पांच दिन रह कर वापस जायेंगे ही. आज एक सखी के विवाह की वर्षगांठ है, वे सभी पार्टी में जाएँगे.  



Friday, October 14, 2016

बगीचे में झूला


आज बसंत पंचमी है. सुबह मृणाल ज्योति में पूजा में सम्मिलित हुई और दोपहर बाद एक सखी के यहाँ हवन में, पहले सत्य नारायण की कथा भी थी. बच्चों की कहानी सी लगती है. भगवान भी बात-बात पर रूठ जाते हैं, फिर प्रसन्न हो जाते हैं, भोले-भाले लोगों के भगवान भी तो वैसे ही होंगे, लेकिन पूजा करने से बाहरी वातावरण सात्विक बन जाता है. मन के भीतर भी तरंगें पहुंचती हैं और वातावरण सात्विक होने में मदद मिलती है. हर कोई अपनी-अपनी समझ से काम करता है, जो जैसा करता है वैसा ही भरता है. यदि कोई घबरा कर कोई शब्द बोल रहा है तो वह घबराहट का संस्कार ही बना रहा है और यदि कोई दूसरों के व्यवहार पर कोई निर्णय दे रहा है तो वह भी एक संस्कार बना रहा है. आज सुबह उसे बिजली के उदाहरण से आत्मा, मन व बुद्धि का भेद स्पष्ट हुआ. आत्मा जिसके साथ जुड़ जाती है उसी का रूप धर लेती है. जैसे विद्युत हीटर के साथ जुड़कर गर्मी का, एसी में ठंड का, टीवी में आवाज व चित्र का तथा विभिन्न उपकरणों में विभिन्न रूप, वैसे ही उनके भीतर की ऊर्जा भिन्न-भिन्न भावों, विचारों तथा धारणाओं के रूप में व्यक्त होती है. जब यह परमात्मा के साथ जुड़ जाती है तब उसी के रूप में स्वयं को जानती है. शेष सब बाहर की यात्रा में काम आते हैं और अंतिम भीतर की यात्रा में !

आज ध्यान में सुंदर अनुभव हुआ. जब, वे जब चाहें तब अपने-आप में स्थित हो पाते हैं तभी मानना चाहिए कि साधना में गति हो रही है. मन में यदा-कदा इधर-उधर के व्यर्थ संकल्प उठते हैं पर वे सागर में उठी लहर, बूंद या बुदबुदों से ज्यादा कुछ नहीं. सागर का उससे क्या बिगड़ता है, उसी की सत्ता से वे उपजे हैं और उसी में लीन हो जाने वाले हैं. इस ज्ञान में स्थिति बनी रहे तो मन व बुद्धि से मैल की परत छूटने लगती है, झूठ बोलने का जो संस्कार है, जड़ता का जो संस्कार है, अहंकार का जो संस्कार है और ईर्ष्या का जो सबसे गहरा संस्कार है, इन सबसे मुक्त होना है. इन्हें मानकर यदि स्वयं की सत्ता दी तो मुक्त होना असम्भव है. सद्गुरु कहते हैं कि माने सत्य ही उसका संस्कार है. उत्साह व जोश ही उसके भीतर कूट-कूटकर भरे हैं. इर्ष्या तो उसे छू भी नहीं गयी, क्योंकि उसे ज्ञात हो गया है कि नदी-नाव संजोग की तरह लोग आपस में मिलते हैं, मोह के कारण संबंध बना लेते हैं, फिर बिछड़ जाते हैं. उनके साथ मृत्यु के बाद कोई जाने वाला नहीं है, केवल परमात्मा ही उनके साथ रहेगा और रहेंगे उनके कर्म. आज वर्षा के कारण पुनः ठंड हो गयी है. जून को देहली जाना है. चार दिन बाद पिताजी को साथ लेकर आयेंगे. एक सखी ने बगीचे में लगाने के लिए झूला माँगा है, प्रतियोगिता में भाग ले रही है. उनके बगीचे में फूल अब कम हो गये हैं. माँ उठकर बाहर जा रही हैं, फिर लौट आई हैं, शायद देखने गयीं थी, पिताजी बैठे हैं या नहीं.

बादल आज भी बने हैं, ठंड बढ़ गयी है. शाम को जो कविता लिखी थी, ज्यादा लोगों ने नहीं पढ़ी, आत्मा को चाहने वाले ज्यादा नहीं हैं. सुबह एक स्वप्न देखकर नींद खुली. एक सखी का भाई घर से भागकर यहाँ आया है. रातभर उनके बरामदे में लिनन बॉक्स में बैठा रहा. सुबह जैसे ही वह दरवाजा खोलकर बाहर आयी तो उसने बताया. स्वप्न कितना सत्य प्रतीत हो रहा था. रात भी मन ने एक स्वप्न बुना और तभी समझ में आ गया यह स्वप्न है. इसी तरह उनका जीवन भी एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है, उनका अतीत तो स्वप्न बन ही चुका है, भविष्य एक स्वप्न है ही पर वर्तमान का यह दौर भी स्वप्न ही है. अब कोई पढ़े या नहीं क्या फर्क पड़ता है क्योंकि सोये हुए लोगों की बात का क्या आदर और क्या अनादर, सत्य इस सबके पीछे छिपा है. झलकें मिलने लगी हैं पर पूरा सूर्य अभी नजर नहीं आया है, यह कामना भी छोडनी होगी, साधो सहज समाधि भली !       




Wednesday, October 12, 2016

लाल चौक पर तिरंगा

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कल गणतन्त्र दिवस है. बीजेपी काश्मीर में लाल चौक पर तिरंगा फहराना चाहती है. उत्तरपूर्व के कई उग्रवादी संगठनों ने इसे न मनाने का फैसला किया है. उनकी अपनी समझ है. अलगाववादी गुट हजारों वर्षों के इतिहास को झुठला कैसे सकते हैं, वे ही जानें. जून ने सुबह उसका नाम डेंटिस्ट के पास लिखवा दिया था और गाड़ी भी भेज दी थी. वह बहुत ध्यान रखते हैं उसका. कल वे पहले नेहरु मैदान में फिर टीवी पर परेड देखेंगे, घर पर भी तिरंगा फहराएंगे. सुबह रामदेवजी का जोशीला भाषण सुना. देश जाग रहा है, परिवर्तन की लहर सब ओर दिखाई दे रही है, देश के लिए एक भावना लोगों के मनों में घर कर रही है. 

लॉन में हरी घास पर धरा का कोमल स्पर्श पाकर ( मकर आसन में ) लिखना एक नितांत सुंदर अनुभव है, जब कुनकुनी धूप बरस रही हो. स्वर्गिक, अलौकिक अनुभव कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. फूलों की कतारें हैं, हरियाली है और है सन्नाटा जिसे चीरता है पंछियों का कलरव! आज सुबह भी सुंदर वचन सुने, ब्रह्म मुहूर्त में आत्मा के विषय में सुनना भी प्रभु की अनंत कृपा का फल है. उन्हें कल एक फिल्म देखने जाना है, नन्हे के एक मित्र की कंपनी ने मॉल तथा उसमें स्थित पिक्चर हॉल का रिव्यू करने का काम उन्हें सौंपा है, टिकट के पैसे वे देंगे. कल उसने स्वर्गीय फुफेरे भाई की भेजी कविता ब्लॉग पर डाली. कल वह बहुत याद आ रहा था. बचपन में वह बहुत गोरा था, पारदर्शी त्वचा और नाजुक भी बहुत था. खांसता रहता था, सब उसे बुड्ढा कहते था. बड़ा हुआ तो किशोरावस्था भी देर से आयी, इलाज करने के बाद, लम्बा बहुत हो गया और दुबला भी..उसने मन ही मन प्रार्थना की जहाँ भी वह होगा उसे शुभकामनायें पहुंच ही जाएँगी.

आज सुबह ध्यान में सागर और लहर का संबंध स्पष्ट हुआ. वे एक अनायास उठी हुई लहर से ज्यादा कुछ भी नहीं, इस अनंत ब्रहमांड के सामने एक धूल के कण से भी छोटे हैं, पर जब वे उस सागर के साथ अपनी एकता का अनुभव कर लेते हैं, तब अहंकार उन्हें दुःख नहीं देता, जैसे बंधन उनका ही बनाया हुआ है, मुक्ति भी उन्हें ही खोजनी है. जानने के बाद ही पता चलता है कि वे कुछ भी नहीं जानते. मिलने के बाद ही पता चलता है कि अभी कितने दूर हैं. वर्तमान में रहें तो कोई बात ही नहीं करने के लिए, ज्ञान में रहें तो कुछ कहने के लिए बचता ही नहीं, ध्यान में रहें तो जगत के लिए कहने लायक क्या शेष रह जाता है. सेवा के सिवा करने को भी क्या है ! 

फरवरी का पहला दिन ! इसी महीने पिताजी यहाँ आ रहे हैं, जून देहली जा रहे हैं, उन्हीं के साथ आयेंगे. आज ब्लॉग पर हास्य कविताएँ पोस्ट कीं. कुछ लोगों की कविताएँ उसे समझ नहीं आतीं, जटिल मन की जटिल कविताएँ ! ध्यान में मन सरल हो जाता है, सहज जैसे प्रकृति के शांत रूप, लेकिन प्रकृति कभी विकराल रूप भी धर लेती है. आज एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है, उसने कविता लिखी, बड़ी भांजी, छोटा भांजा, भाभी-भैया व एक सखी के लिए भी, इसी महीने सभी का खास दिन है. जून आफिस से प्रिंट करके लायेंगे. उसके सिर में हल्का सा भारीपन है, दोपहर से लिखने में लगी है, शायद इसीलिए..अभी फूलों का गुलदस्ता बनाना है, जून भी आने वाले होंगे. 




अ टाउन कॉल्ड मालगुडी

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तीन दिन देखते-देखते बीत गये, उत्सव के दिन. लिखने का समय ही नहीं मिला. आज सुबह से बदली छायी है. कल रात भर वर्षा होती रही, ठंड बढ़ गयी है. उसने दो स्वेटर पहने हैं. फिर भी ध्यान में कंपकंपी होने लगी थी. सुबह-सुबह बाबा रामदेव मात्र धोती पहने योग सिखाते हैं. जून शिवसागर गये हैं, शाम तक आ जायेंगे. सुबह पिताजी ने कहा, रात को तीन बजे उठने पर उन्हें ठंड लगी, उसे ऊनी टोपी बनाने को कहा है. उसने कहा, उठते ही कुछ पहन लेना चाहिए, आल्मारी में उनके लिए मफलर व ऊनी मोज़े भी रखे हैं, पर वे पहनना नहीं चाहते. उन्हें इस बात से ही ख़ुशी होगी कि उसने उनके लिए टोपी बनाई, पहनें या नहीं, इससे ज्यादा अंतर नहीं पड़ता. जून ने कहा, वे चाहते हैं कोई उन्हें याद दिलाये. इंसान अपनी भी जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहता. उधर छोटी ननद उनके बिना अकेलापन महसूस कर रही है, वे लोग चाहते हैं घर के पास तबादला हो जाये. मानव को कितने प्रकार के भय सताते हैं. आज वर्षों पहले मंझले भाई द्वारा डायरी में लिखी कविता से प्रेरित होकर लिखी कविता ब्लॉग पर डाली. सुबह दृश्य और द्रष्टा के भेद का वर्णन सुना. सुख में छिपे दुःख को पहचानकर उससे मुक्ति पाने का उपाय समाधि है.

आज धूप निकली है अपने घर से, बल्कि कहें कि बादलों ने उसका रास्ता नहीं रोका है न कुहरे न न कुहासे ने. चारों तरफ कैसी रौनक हो गयी है, रंग निखर आते हैं धूप में, पिछले दो दिन सारा दृश्य एक ही रंग का प्रतीत होता था. जून के ऑफिस में एक विदेशी भूवैज्ञानिक आये हैं क्रिस्टोफर कॉनकार्ड, कल शाम वह एक मित्र परिवार के यहाँ उनसे मिली. वे लन्दन के एक गाँव में रहते हैं. पैंतीस वर्ष के थे तो अपनी पत्नी के साथ मिलकर तेल के क्षेत्र में अपनी कंसल्टेंसी की कम्पनी शुरू की, पत्नी प्रबंध करती है और वह पूरे विश्व में घूम-घूमकर अपना ज्ञान बांटते हैं. दो बच्चे हैं, बेटा और बेटी, बेटी के तीन बच्चे हैं, लिखती है, बेटा सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता है. दोनों के बचपन की बातें बड़े चाव से बता रहे थे, बातें करने में कुशल हैं. उनके पूर्वज भारत में रहे, काम किया. पत्नी के दादा भी यहाँ रहे थे, हिंदी से परिचित हैं क्योंकि बचपन में सुनी थी. असम कई बार आ चुके हैं, आसपास के तेल क्षेत्र से परिचित हैं. बासठ वर्ष के हैं, इस उम्र में भी बच्चों का सा जोश है. बच्चों से प्यार भी है. जहाँ भी जाते हैं, वहाँ के स्कूलों में जाकर बच्चों से मिलते हैं और दान भी करते हैं. कुल मिलाकर सीधे, सरल व एक सहृदय कोमल दिल वाले इन्सान हैं. सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत है. उनके बारे में एक छोटी सी कविता वह लिखेगी. आज वे उनके साथ मृणाल ज्योति जा रहे हैं.

कल उसने एक छोटी सी कविता लिखी, श्री क्रिस्टोफर के लिए, मृणाल ज्योति का ट्रिप अच्छा रहा. शाम को उन्होंने कविता का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया. आज धूप बहुत तेज है, माँ-पिताजी बाहर धूप में ही बैठे हैं. सुबह सुना मानव को अपने बल का उपयोग संसार की सेवा के लिए करना है न कि अपने सुख के लिए !

आज नेताजी पर एक कविता लिखी. मौसम अब कम ठंडा है, बदली के बावजूद. कल पुनः आग जलायी और आग के चारों ओर बैठकर सर्दियों में मिलने वाली वस्तुएं गजक आदि खायीं, विदेशी मेहमान को बुलाया था. जो भारतीय भोजन आराम से खा लेते हैं. रात को और सुबह भी तमस भर गया था, ध्यान किया तो सत् पुनः प्रबल हो गया. साक्षी होकर इन तीन गुणों का खेल देखते ही बनता है. इस वक्त मन शांत है अर्थात सत् की प्रमुखता है. जून कल लाइब्रेरी से लायी पुस्तक पढ़ रहे हैं आर के नारायण की ‘अ टाउन कॉल्ड मालगुडी’ उसकी पढ़ाई आजकल नहीं हो पाती है. सुबह पाठ करने व नेट पर कवितायें पढ़ने के अलावा कुछ नहीं पढ़ पाती है.