ओशो ने कहा है, जीवन की तरह मृत्यु भी सीखने की बात है. मृत्यु
जीवन के साथ जुड़ी है. उसका आगमन कभी भी हो सकता है. उसके लिए स्वयं को तैयार रखना
होगा. शाम को वह पुनः गयी, लोगों की भीड़ लगी थी. महिला के माता-पिता व पुत्र सभी आ
गये थे. सात बजे के लगभग मृतक की देह भी आ गयी, फिर कुछ कर्मकांड के बाद उन्हें ले
गये. अगले दिन सुबह जब वहाँ गयी. दो-एक लोग ही थे, उसे नाश्ता खिलाया थोड़ा सा. उसका
दुःख देखा नहीं जाता. उसने जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी वैसा उसके साथ घट गया
है. जून आज नुमालीगढ़ गये हैं, कल शाम तक लौटेंगे. कल सम्भवतः ‘असम बंद’ है. फ्रिज
ने फिर काम करना बंद कर दिया है.
व्यर्थ हैं ये अश्रु जो गम में बहते हैं
बेबस है आदमी ये इतना ही कहते हैं
रुदन यह तुम्हारा किसी काम का नहीं
लौट के न आये जो परलोक में रहते हैं
क्या मौत नहीं होती रिश्ते का खात्मा
दो दिन का ही संग साथ था यही मानना
जो उड़ गया वह पंछी परदेसी ही तो था
संयोग से मिला था, बिछड़ना था मानना
आज सुबह से वर्षा हो रही है. जून आठ बजे तक आने
वाले हैं. शाम को लॉन में सूखे पत्तों और फूलों को हटाया. बच्चों को खेलते देखा.
बच्चे कितने खुश रहते हैं, मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो, जैसे उसे मिल गया है
भीतर एक खजाना ! शाम को टहलते समय छोटी बहन की भेजी तस्वीरें मिलीं, जो उसने उसी
क्षण अपने बगीचे से भेजीं थीं, जवाब में उसने भी कटहल के वृक्ष की तस्वीर भेजी,
कटहल अब बड़े हो गये हैं, उनमें से एक, एक दिन तोड़ेगी, कल ही वह दिन हो सकता है.
फ्रिज तो ठीक नहीं हुआ है, सो सब्जी तो अभी लानी नहीं है. दोपहर को भोजन के बाद
कुछ देर के विश्राम के लिए लेटी तो उसे जगाने के लिए एक स्वप्न आया, जिसमें वह
मीठा आम खा रही है, नन्हा आम काट रहा है,
वह हँस भी रहा है. उसकी ख़ुशी से कैसे उनकी ख़ुशी जुड़ी है, शायद इसी तथ्य की ओर
इशारा कर रहा था यह स्वप्न. मोह और ममता को स्पष्ट रूप से देखने की ताकीद भी कर
रहा था. आनंददायक स्वप्न था पर सिखा रहा था कि जहाँ से ख़ुशी मिलती है, वहाँ से
उतना ही दुःख मिल सकता है. उस महिला को इतना दुःख इसलिए ही तो हो रहा है कि उसने उतना
ही आनन्द पाया था. हर सुख की कीमत चुकानी पड़ती है.