Friday, March 29, 2019

सदिया पुल



रात्रि के सवा दस बजे हैं, जून अभी तक नहीं आये हैं, किसी ऑफिशियल मीटिंग में भाग लेने गये हैं. आज ‘विश्व योग दिवस’ है. सुबह समय पर उठे, योगा प्रोटोकाल के अनुसार प्रैक्टिस की. जून कम्पनी की तरफ से आयोजित सामूहिक योग सम्मेलन में भाग लेने बीहुताली गये. वह ‘पूर्वांचल कारिकारी स्कूल’ गयी जहाँ बच्चों को योग कराया. वापस आकर मृणाल ज्योति में भी योग सेशन का आयोजन किया. शाम को पौने चार बजे संगिनी गयी, जहाँ गायत्री समूह की महिलाओं के साथ चार घंटे तक आर्ट ऑफ़ लिविंग के ‘बेसिक कोर्स’ में भाग लिया. इस तरह आज का पूरा दिन ही योग के नाम था. सुबह से ही आज मौसम अच्छा था. शाम को कोर्स में बहुत दिनों बाद ‘सुदर्शन क्रिया’ की, वर्तमान का क्षण ही वास्तव में जीवन का अवसर देता है, वरना वे अतीत की स्मृतियों को ही ढोते रहते हैं, कभी भविष्य की आशंकाओं को. अब नींद आ रही है. उसने सोचा, जून को संदेश कर देती है, दरवाजा खुला है, आ जायेंगे !

आज कोर्स में कुछ महिलाओं को देखकर लगा, वे सभी कुछ शीघ्र चाहते हैं और जल्दी से बिना कुछ किये चाहते हैं. संसार में कुछ भी पाना हो तो प्रयास करना होता है प्रतीक्षा करनी पड़ती है. अध्यात्म में कुछ पाना है तो कुछ करना नहीं, केवल प्रतीक्षा करनी होती है. जाने अनजाने जो भूलें वे कर बैठते हैं, उनका खामियाजा एक न एक दिन भुगतना ही पड़ता है.

आज कोर्स का चौथा दिन है. अभी तक तो सब ठीक चल रहा है. सभी महिलाएं कोर्स में पूरे उत्साह से भाग ले रही हैं. एक महिला के सिर में कल से दर्द था, आज सुबह फोन आया. अब तक ठीक हो गया होगा. अभी-अभी एक सखी से बात की, सोमवार को ‘सदिया पुल’ देखने जाने का कार्यक्रम है. ब्रह्मपुत्र की उपनदी लोहित नदी पर बना भूपेन हजारिका सेतु या ढोला-सदिया सेतु भारत का सबसे लम्बा पुल, जिसका उद्घाटन मोदी जी ने पिछले महीने ही किया है. रविवार को डिब्रूगढ़ में जगन्ननाथ पुरी की यात्रा है. सम्भवतः कोर्स के बाद वे भी जाएँ, जहाँ पुरी की तरह एक नया विशाल मन्दिर वहाँ बना है. कल शाम को सोनू से बात हुई, उसके दफ्तर में एक लड़की की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है, वह काफी परेशान लग रही थी. दीदी ने लिखा है भीतर की शांति का अनुभव योग से हुआ है उन्हें, समय निकालकर अपने साथ बैठना, फिर स्वयं को भीतर तक पहचानना कितना जरूरी है स्वस्थ रहने के लिए.

कोर्स की समाप्ति पर उसने कुछ पंक्तियाँ कहीं

अभय की चट्टान पर घर बनाना है
प्रीत का दिल में सदा दिया जलाना है
दिल के आइने को सदा सच से चमकना है
ज्ञान का दीपक सदा आगे दिखाना है
बाँट देना है जगत में पास जो कुछ भी है निखारें  
यम-नियम को साध कर वे पूर्ण जीवन को संवारें !     


रागी का पेय



कल दोपहर जून आ गये थे, बड़ी ननद ने आम व बर्फी भेजी है. सोनू ने सुंदर सी पोशाक तथा जून स्वयं ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ आश्रम से नीली योगा कुर्ती लाये हैं. आज बहुत दिनों के बाद चार पोस्ट्स लिखीं. काव्यालय पर उसकी एक कविता कल प्रकाशित होने जा रही है. वर्षों पूर्व उसने ऐसा चाहा था, वह स्वप्न अब पूर्ण होने को है. कल बातूनी सखी का फोन आया, वह एक नया ब्लॉग या या पेज शुरू करने जा रही है अपने विचार लिखने के लिए, जो अन्य महिलाओं को प्रेरित करें. उसने कोई नाम पूछा था अपने पेज के लिए. जून का गला खराब है, यात्रा में काफी थकान हुई, नींद भी पूरी नहीं हुई होगी, इस उम्र में अनियमितता होने पर सेहत तो बिगड़ेगी ही. आज उसने चाय के स्थान पर रागी का पेय बनाकर पीया. बहुत दिनों बाद गुरूजी को एक पत्र भी लिखा.

जानने की शक्ति ही ज्ञान है. परमात्मा ज्ञेय नहीं है, वह ज्ञान है. जब कोई कहे, उसने जान लिया, उसकी जानने की शक्ति समाप्त हो जाती है, इसलिए ब्रह्म अनंत है. उसे जान लिया है, ऐसा कहना ही मिथ्या है. ज्ञान ही व्यक्ति को जड़ सा बना देता है. आज नेट पर अचानक ही ‘शिव सूत्र’ पर गुरूजी के प्रवचन सुनने को मिल गये. एक ही चेतना विभिन्न योनियों में प्रकट हो रही है. हर योनि के प्रति आदर रखना भीतर चैतन्य की निशानी है. वे जब इस संसार के साथ एकत्व का अनुभव करते हैं तो अपने चैतन्य को अनुभव करना सम्भव होता है. देह के साथ जब एकत्व का अनुभव करते हैं तो उसी क्षण पार्थक्य का अनुभव होने लगता है. एक कोशिका से यह देह बनी है, इससे अधिक कलात्मक क्या हो सकता है. कला का सभी आदर करते हैं, यह संसार ईश्वर की एक कला है. जीवंत व्यक्ति ही दूसरों का सम्मान कर सकता है. फिर ज्ञान का बंधन छूट जाता है !

आज सुबह देर तक परमात्मा से भीतर वार्तालाप हुआ. वर्षों पहले का एक वाक्य उभर कर आया और फिर उसे एक गहरे कुँए में धकेल दिया गया, जिसका कोई अंत नहीं था, जिसकी कोई तली नहीं थी, वह कुआं अँधेरा था पर उसकी दीवारें और गोलाई अभी भी स्पष्ट है. अहंकार के प्रतीक वे शब्द वर्षों पूर्व जून के लिए कहे गये थे. कल जब वे फिल्म देखकर आये और दीदी ने फोन पर कहा, आप लोग तो सदा समय का पालन करते हैं. जो शब्द उसने कहे, कि जून को फिल्म अच्छी लगी, वही कारण हैं इस देरी का, तो इसमें भी कहीं अहंकार छिपा हुआ था. स्वयं को विशेष मानकर अन्य को वे स्वयं से कम आंकते हैं, यही तो अहंकार है. फिर भीतर से आवाज उठी, काम समाप्त हो गया ? जिस कार्य की पूर्ति के लिए वह साधना के क्षेत्र में आई थी, वह पूर्ण हो गया. अब समझ में आ रहा है, परमात्मा की राह पर जब वे चलते हैं तो उनका एक हिडन एजेंडा भी होता है. वे स्वास्थ्य, सुन्दरता, यश की कामना से अध्यात्म के क्षेत्र में आते हैं. परमात्मा ही जिसका लक्ष्य हो ऐसे बिरले ही होते हैं. कल से ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का बेसिक कोर्स आरम्भ हो रहा है. कम से कम पन्द्रह और अधिक से अधिक बीस महिलाएं प्रतिभागिनी हो जायेंगी.

Thursday, March 28, 2019

ओस की बूँदें



तीन दिनों का अन्तराल ! डायरी लेखन की कला अब जैसे छूटती जा रही है. रात्रि के पौने नौ बजे हैं. जून बंगलूरु हवाई अड्डे से नन्हे के घर जा रहे हैं. पांच-छह दिन बाद आयेंगे. उसे इस समय का उपयोग अपनी साधना में करना होगा. सुबह कितने सुंदर वचन सुने थे, जिनकी सुगंध से मन का कण-कण अभी तक भीगा हुआ है पर क्या कहा था, कुछ भी याद नहीं है. कल से साथ-साथ नोट कर लेना उचित होगा, पर शब्दों का उद्देश्य तो पूर्ण हो ही गया. गुरूजी कहते हैं जो शब्द मौन में ले जाते हैं, वे ही सार्थक हैं. शाम को एक पुरानी परिचिता का फोन आया, दोपहर को भी एक सखी का फोन आया था, कल से इन दोनों को व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल कर लेगी. दोपहर वाली सखी नन्हे की तारीफ कर रही थी. उसने इन्हें न केवल अपने घर आने का निमन्त्रण दिया, बल्कि कहा, नाश्ता भी यहीं करें और यहीं से उनकी बिटिया कालेज जाये. उसका कालेज यहाँ से निकट है. वह नन्हे के बचपन की बातें भी बता रही थी, उसका पुत्र और नन्हा साथ ही बड़े हुए हैं. कल ही एक अन्य पुरानी सखी ने फेसबुक पर वर्षों पहले की एक समूह तस्वीर पोस्ट की, उसमें की एक महिला ने कल से ही योग कक्षा में आना आरंभ किया है. वक्त कैसे बिछुड़े हुओं को बार-बार मिलाता है. आज दोपहर मृणाल ज्योति गयी थी. नेट पर दिव्यांगों के लिए सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली योजनाओं के बार में पढ़ा. उसे उनके लिए एच आर पालिसी बनाने के लिए कुछ सुझाव देने को कहा गया है. नन्हे और सोनू से बात की, सोनू ड्राफ्ट बनाकर कल तक भेजेगी.  

परमात्मा स्वयं की उपस्थिति जताता है. वह अनंत ज्ञान का सागर है. वही आत्मा रूप से इस देह में व अनंत देहों में विद्यमान है. इस सृष्टि का चक्र कितनी कुशलता से चला रहा है. वास्तव में प्रकृति में सारी क्रियाएं हो रही हैं. यह हाथ कलम के माध्यम से लिख रहा है, चेतन इसका साक्षी मात्र है. बुद्धि में चिन्तन चलता है, मन में भाव उठते हैं, इन्हें भी कोई देखता है. रात्रि के नौ बजने को हैं, जून अपने गन्तव्य पर पहुँच गये हैं. सुबह नन्हे के आसन करते हुए फोटो उन्होंने भेजे, अच्छा लगा. मौसम आज काफी गर्म है. तापमान चौंतीस डिग्री है. दीदी घर आ गयी हैं, और छोटी बहन अपने घर. मंझला भाई अपनी नई पोस्टिंग पर चला गया है. जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता ही रहता है.

आज सुबह सवा चार बजे नींद खुली. सुबह होने के बाद भी वातावरण में उमस थी, हवा बंद थी, हरी घास पर नंगे पैर चलने से गर्मी का असर कुछ कम हुआ. प्राणायाम करने बैठी तो एक सखी का फोन आया. उसकी तबियत कल रात से ही खराब है, पतिदेव टूर पर हैं. बुखार, पेट दर्द और सिर दर्द भी. नहाकर हार्लिक्स पीया, फिर सात बजे से कुछ पहले ही उसके घर गयी फिर अस्पताल. नौ बजे घर लौटी, उसके लिए नाश्ता बनाकर आई. उसकी बिटिया को दोपहर के भोजन के लिए निमन्त्रण देकर. उसे चिल्ड्रेन मीट के लिए डांस प्रेक्टिस में भी जाना है. सबसे बड़ा बल है आत्मा का बल और वह जन्मता है श्रद्धा और प्रेम से. स्वयं तथा परम के प्रति आस्था से. किताब जो लाइब्रेरी से लायी थी काश्मीर पर, काफी रोचक है, कुछ देर बाद पढ़ेगी.

शाम के पांच बजे हैं. बाहर धूप है, शायद शाम तक बदली छा जाये. जून मदुराई से वापस बंगलूरू पहुँच गये हैं. आज वे उनका नया घर विला देखने जाने वाले हैं. परमात्मा ने उन्हें कितना कुछ दिया है. इस सुंदर सृष्टि में मानव जन्म दिया, सद्गुरू का सान्निध्य दिया. यह सृष्टि कितनी रहस्यपूर्ण है. यहाँ वे कुछ भी तो नहीं जानते. गुरूजी के सुंदर वचन सुने. कितना अद्भुत ज्ञान उन्होंने सरल शब्दों में दे दिया. आज की सुबह सुंदर थी. हरी घास पर ओस की बूंदे थीं, उन पर टहलना व ज्ञान के मोतियों को भीतर समेटना एक साथ हो रहा था. दोपहर को नैनी बगीचे से ढेर सारी सब्जियां लेकर आई. पड़ोसी के यहाँ भिजवाई, पर उनके यहाँ भी इतनी ही सब्जी हो रही है. इसी बहाने उससे बात हो गयी. कल क्लब की प्रेसिडेंट से ‘योग दिवस’ पर ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का ‘बेसिक कोर्स’ कराने के सिलसिले में बात की. अब वह सखी स्वस्थ है पर उसकी बिटिया के हाथ में चोट लग गयी है, एक्सरे कराया है, परसों रिपोर्ट मिलेगी. मिलने गयी तो उसने औरा देखना सिखाया और एक ध्यान के बारे में बताया जिसमें सभी चक्रों पर विभिन्न रंगों का ध्यान करना होता है.

Wednesday, March 27, 2019

नीरज की कविता




सुबह चार बजे वे उठे. वर्षा होकर थम चुकी थी सो प्रातः भ्रमण में कोई बाधा नहीं पड़ी. सड़कें धुलकर स्वच्छ हो गयी थीं और वृक्ष नींद से जैसे जग रहे थे. लौटकर प्राणायाम करते समय आयुर्वेद पर कुछ विचार सुने. मानव की हितायु होनी चाहिए, मात्र सुखायु नहीं, अहितायु तथा दुखायु तो कदापि नहीं. परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण हो तभी यह घटित होती है. जब वे अपनी अल्प बुद्धि से अपने जीवन को चलाते हैं तो दुःख के भागी होते हैं. जब प्रकृति के नियमों के अनुसार चलाते हैं तो जीवन धारा सहज रूप से बहती है. अस्तित्त्व के साथ एक होकर जीने का अनुभव कितना अलग होता है हर दिन. आज पहली बार किसी ने भीतर से कहा, वह विदेह है, आज से पूर्व न जाने कितनी बार ये शब्द दोहराएंगे होंगे, पर इनका वास्तविक अर्थ आज घटा लगता है. असम्प्रज्ञात समाधि भी एक दिन तो घटेगी ही ! आज नरेंद्र मोदी एप पर आज की सरकार को रेटिंग दी, अच्छा लगा, इस तरह सरकार और जनता के मध्य एक संवाद चलता है. सरकार के इरादे नेक हैं, यह तो उसकी चाल-ढाल से प्रतीत होता है. दो दिन पहले किसी उल्फा उग्रवादी ने तेल की पाइप में बम लगाया, खुद भी मारा गया, हजारों लीटर तेल व्यर्थ बह गया, आदमी की मूर्खता की कोई सीमा नहीं है.

आज क्लब में कविता पाठ प्रतियोगिता है. ‘गोपाल दास नीरज’ की कविता, ‘जब याद किसी की आती है’, उसने ही चुनकर दी थी. उसने भी याद कर ली है, प्रतियोगिता में भाग नहीं लेगी पर अवसर मिला तो सुना सकती है. मौसम अच्छा है. बांग्लादेश में आये ‘मोरा’ तूफान का असर उत्तर-पूर्व पर पड़ना ही था, वैसे उतना ज्यादा भी नहीं पड़ा है. परसों सुबह मंझले भाई से बात हुई, फिर भाभी से भी. भतीजी के साथ जो भी घटा, वह उन्होंने बताया, अब अलग होने के सिवा कोई रास्ता नहीं है. वह दो हफ्ते पूर्व घर वापस आ गयी है. परसों व कल भी दिन भर मस्तिष्क में वही बात याद आती रही. कल शाम को छोटी बहन से बात हुई. जीवन को उनके ही कर्म सुंदर या असुन्दर बनाते हैं. वे ही अनजाने में अपने दुर्भाग्य के निर्माता होते हैं, पर जानते नहीं कि इस दुश्चक्र से बाहर कैसे निकलें. कल जन्मदिन अच्छा रहा, फेसबुक तथा व्हाट्सएप पर ढेरों शुभकामनायें मिलीं. काव्यालय की संचालिका का मेल आया, वह उसकी एक कविता प्रकाशित करना चाहती हैं. दीदी अगले हफ्ते विदेश से वापस आ रही हैं, वहाँ ठंड बढ़ गयी है. परसों उनका जन्मदिन है, केक की जगह वह तरबूज काटती हैं जन्मदिन पर. छोटे भाई ने जून से कहा है, चाची जी के मकान के लिए कुछ मदद आजकल में भेज दें.

जून का प्रथम दिन ! रिमझिम झड़ी लगी है. आज पहली बार उसने रसगुल्ले की सब्जी बनायी. मृणाल ज्योति की पानी की समस्या के बारे में जानने के लिए जून भी आज उसके साथ जाने वाले हैं. उनसे जितना बन सके, समाज की सहायता करनी है. सद्गुरू सेवा पर इतना जोर क्यों देते हैं, अब समझ में आने लगा है. भीतर की शुद्धि तभी हो सकती है जब उनका मन सेवाभाव से युक्त हो. आज दिन भर पढ़ने का समय नहीं निकल पायी. ढेर सारी किताबें हैं आजकल पढ़ने के लिए, लाइब्रेरी की किताबें, उसके जन्मदिन पर नन्हे की भेजी किताबें. उसे नई पुस्तकों को सही प्रकार से रखने के लिए एक उचित स्थान की भी आवश्यकता है. जून आजकल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ देखते हैं.

आज बहुत दिनों बाद कम्प्यूटर पर कुछ लिखने का मन नहीं हुआ, किताब पढ़ती रही. पानी लगातार बरस रहा है. कल रात स्वप्न में देखा, वह एक छत पर जाती है. लाल और हरे फूलों वाली ड्रेस पहनी है. एक सखी मिलती है, कहती है, वही सुबह वाले वस्त्र पहने हैं, तो वह कहती है, नहीं, सुबह तो श्वेत कुरते पर गुलाबी फूल थे, फिर वह और ऊपर जाती है. बड़ा सा प्लेटफार्म है. उस पर ध्यान करने बैठती है, पर वह चारों तरफ टकराता है बरी-बारी से, फिर नींद खुल जाती है. पिछले दिनों नियमित ध्यान में नहीं बैठी शायद इसीलिए यह स्वप्न आया हो. इस समय मन शांत है, भीतर एक तृप्ति का अहसास भी है. कुछ पाने की लालसा ही मन को अशांत करती है. आज मंझले भाई-भाभी पिताजी से मिलने घर गये हैं, ईश्वर उन्हें भी सद्बुद्धि व शांति प्रदान करे.

Friday, March 22, 2019

उपनिषद का श्रवण




आज से ईशोपनिषद सुनना आरम्भ किया है. उपनिषद उन्हें परमात्मा के निकट ले जाते हैं. भारतीय संस्कृति की आत्मा अध्यात्म ही है. आचार्य सत्यजित सरल ढंग से व्याख्या करते हैं. वह कहते हैं, मुख्य ग्यारह उपनिषदों का अध्ययन वह धीरे-धीरे करायेंगे. ईशोपनिषद सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. यह यजुर्वेद के एक भाग से लिया गया है. दस उपनिषद ब्राह्मण ग्रन्थों से लिए गये हैं कुछ आरण्यक ग्रन्थों से भी. विद्या, अविद्या, आनंद और तुरीय में अविद्या को छोड़कर तीन अमृत स्वरूप हैं. आत्मा का स्वरूप आनंद है, उसका गुण ज्ञान अथवा विद्या है, वह अविनाशी है. जो सदा एक रूप में न रहे वह अविद्या है. देह निरंतर बदल रही है. जब कोई पदार्थ किसी विशेष गुण में प्रकट हो जाये तो वह विवर्त कहलाता है. माया, कला अथवा अविद्या परमात्मा का विवर्त है. ब्रह्म का एक चरण विश्व के रूप में प्रकट हुआ है, उसके तीन चरण अमृतमय हैं.  

आज मौसम सुहाना है, वर्षा रात भर होती रही. सुबह वे छाता लेकर टहलने गये. जून को डाक्टर ने एक घंटा टहलने के लिए कहा है, इससे उनका स्वास्थ्य भी सुधर रहा है. उन्होंने विटामिन डी व थायराइड का परीक्षण भी कराया है, रिपोर्ट अगले हफ्ते मिलेगी. सभी प्राणी स्वयं को केवल अन्नमय कोश के रूप में जानते हैं. इस तरह तो वे भोजन पचाने का एक उद्योग मात्र ही तो हैं. वे अन्न पर निर्भर हैं पर केवल अन्नमयकोश ही नहीं हैं, वे देह से परे एक ऊर्जा भी हैं, जो स्वयं में पूर्ण है. कल रात स्वप्न में अपने पीले कुरते में उसने एक सैनिक का अवशेष ले जाते हुए देखा, सूखा हुआ. एक दुर्घटना भी देखी, लोगों को घायल अवस्था में देखकर भी वे निर्लिप्त भाव से आगे बढ़ जाते हैं. पर स्वप्न में भी यह ख्याल आया, देखो, वे उनकी मदद नहीं कर रहे हैं. पिछले दो दिन फिर पूर्ण शुद्धि नहीं हुई. देह भारी हो तो मन भ्रमित हो जाता है.

कल मृणाल ज्योति की मीटिंग थी, दस में से केवल चार ही जन थे. इसका कारण वहाँ के दो नये कर्मचारियों की अपेक्षाएं थीं, उनकी मांग थी. कितना सही है, अपेक्षाएं आनंद को घटा देती हैं. उसे भी कुछ कार्य करने हैं. शिक्षक दिवस पर एक प्रेरणात्मक वर्कशॉप करनी है. स्कूल में हर हफ्ते जाना है. आज ध्यान के बाद हाथों में एक अनोखी ऊर्जा का अहसास हो रहा है. उस एक ने उसके हृदय पर अपना अधिकार कर लिया है. धी, धृति, स्मृति में वही समा गया है. जून ने कहा है वह कंपनी में कार्यरत दिव्यांग जनों की सूची दिला सकते हैं तथा स्कूल के पानी का परीक्षण भी करवा सकते हैं. ये दोनो बातें कल मीटिंग में उठी थीं. जून भी मृणाल ज्योति के आजीवन सदस्य बने हैं. इस माह उसका जन्मदिन है उसने सोचा क्यों न इस बार सर्वेंट लाइन के बच्चों व उनकी माओं को भी पार्टी दे.


Friday, March 15, 2019

नींद और जागरण



आज से नन्हे और सोनू ने योग सीखना आरम्भ किया है, ईश्वर से प्रार्थना है कि वे इसे जारी रखें और अपने जीवन को शुद्धतम बनाएं. आज स्कूल गयी थी, रास्ते में एक सहकर्मी अध्यापिका ने बताया, अभी तक उसके माँ-पिता जी उसका ध्यान रखते हैं और अकेले यात्रा करने पर चिंता व्यक्त करते हैं. उसकी खुद की बिटिया इतनी बड़ी हो गयी है कि जॉब कर रही है पर माता-पिता के लिए बच्चे कभी बड़े नहीं होते. कल कई कविताओं की मात्राएँ ठीक कीं, अतुकांत कविताओं के विषय में पढना होगा.
उसने एक बार पुनः सुना, विवेक का अर्थ है देह से स्वयं को पृथक जान लेना. देह में स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर तथ कारण शरीर तीनों ही आ जाते हैं. ज्ञानी विदेह अवस्था में रहता है. जगत में रहते हुए भी मुक्त अवस्था में ! साधना के बिना ऐसा होना सम्भव नहीं है. विवेक की प्राप्ति में यह संसार सहायक है पर एक बार विवेक हो जाने के बाद संसार होते हुए भी विलीन हो जाता है. भक्ति, ज्ञान अथवा कर्म के मार्ग पर चलकर मन को शुद्ध करना प्रथम साधना है, जो साधक को करनी है. मन जितना-जितना शुद्ध होता जाता है, पुराने संस्कार नष्ट होते जाते हैं, अथवा तो ध्यान का संस्कार दृढ़ हटा जाता है और अंत में समाधि का अनुभव होता है. समाधि के समय क्या बोध होता है, इसको सुनना ही कितनी शांति से भर जाता है. चित्त समाधि का अनुभव करता है तो उस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. समाधि के लिए ज्ञान और वैराग्य जीवन में साधना है. मैत्री, करुणा, मुदिता व उपेक्षा यदि जीवन में होगी तभी साधना दृढ़ होगी.

ग्यारह बजने को हैं. ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के ‘अभ्यास’ व ‘सत्व’ एप ने उसकी सुबहें ज्यादा प्राणवान बना दी हैं. सुबह क्रिया की फिर सूर्य नमस्कार व पद्म साधना भी. बाद में दो ध्यान किये, रुचिकर थे. कल बड़े भाई व छोटी बहन को भी इस एप के बारे में बताया. मौसम आज बेहद सुहावना है, कल रात वर्षा हुई. कल रात स्वप्न भी थे, जागरण भी था, नींद गहरी नहीं थी, पर वर्षा का पता भी नहीं चला, अर्थात भीतर का होश था बाहर का नहीं. कल दो हफ्ते के लिए नैनी की सास गाँव गयी है, उसके बिना सारे बच्चे व दोनों बहुएँ असहाय महसूस कर रहे हैं, एक-दो दिन में अभ्यास हो जायेगा उन्हें. जून आज जल्दी आने वाले हैं. सुबह अस्पताल गये थे रक्त की जाँच कराने, भोजन के बाद भी एक टेस्ट होगा. महीनों बाद आज कढ़ी बनाई है. काव्यालय से उपहार की सूचना आई है, एक पुस्तक ‘कनुप्रिया’ तथा एक चित्र अथवा तो गीति काव्य का एक सॉफ्टवेयर !

कल शाम नैनी को चावल चोरी करने के लिए मना किया. उसने स्वीकारा तो नहीं पर वह जानती है कि उसके सिवा कोई स्टोर में जाता ही नहीं. आज सुबह आई तो रोज की तरह ही व्यवहार कर रही थी, अर्थात उसका संस्कार गहरा है. परमात्मा ने उसे इस घटना का साक्षी बनाया है तो इसके पीछे कोई गहरा कारण है. उसके भीतर भी संदेह था. रोज सुनती पढ़ती है, ‘विचार ही वास्तविकता बन जाते हैं, अच्छे विचार चुनें’, तो जो विचार भीतर था वही सम्मुख आकर प्रकट हो गया है. न जाने कितनी बार भीतर संदेह का विचार पनपा होगा. यह सही है कि भरोसा किया था पर भीतर गहराई में संदेह भी था. जैसे वह संस्कार बदल नहीं पाती, नैनी भी अपने इस संस्कार को बदलने में अशक्य है. जीवन में उन्हें जो भी अनुभव होते हैं वह उनके ही पूर्व कर्मों के कारण होते हैं. बाहर माली द्वारा भेजा गया एक बूढ़ा व्यक्ति घास काट रहा है, उसे भी थोड़ा सा भोजन आज देना होगा.


Thursday, March 14, 2019

युधिष्ठिर का कुत्ता



दो दिन पहले वे घर लौट आये हैं. आज शाम क्लब जाना है, दो सदस्याओं की विदाई पार्टी है. उसने दोनों के लिए कविताएँ लिखी हैं, कल कुछ मेम्बर्स के साथ निकट के एक गाँव में किसी बालिका विद्यालय में गयी. किशोरी छात्राओं को योग सिखाया, एक महिला डाक्टर ने किशोरावस्था में आने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डाला, उनसे बातें कीं, समस्याएं पूछीं. हर वर्ष किसी न किसी स्कूल में क्लब की तरफ से यह कार्यक्रम होता है. जून एक पुराने मित्र से मिलने आज फ़ील्ड गये हैं. कल विभाग के एक पुराने अधिकारी को उन्होंने बुलवाया, गाडी भेजी, जो निकट ही किसी काम से आये हुए थे. उनका मन विशाल हो गया है, उसमें ऊर्जा भर गयी है. परमात्मा की ऊर्जा !  

आज सुबह स्वप्न में एक कुत्ते को बगीचे से दौड़ लगाते हुए अपनी ओर आते देखा, कल सचमुच में एक कुत्ता देखा था बगीचे में. दो दिन पूर्व सड़क पर चलते समय चार-पांच कुत्तों का एक समूह देखा, एक-दो दिन पहले ध्यान में भी दिखा था. शायद आजकल कुत्तों से जुड़ा कोई कर्म उदय हुआ है. उनके प्रति अचाह का भाव न रहे, वे भी परमात्मा की सृष्टि का अंग हैं. युधिष्ठिर के साथ तो स्वर्ग तक चला गया था कुत्ता. संस्कार परिवर्तन के लिए ही प्रकृति यह सब दिखा रही है. संस्कार परिवर्तन के लिए चाय का कप भी दिखाया है कई बार. अस्वस्थ होने पर त्याग भी दी थी, अब गर्मी के कारण शायद मन ही न हो. मन का मालिक बनना है न कि उसका गुलाम. कल की मीटिंग अच्छी रही. उसने देखा, प्रेसिडेंट कुछ लोगों पर अधिक ध्यान देती हैं, उस दिन एक सदस्या ने सही कहा था. अज बंगाली सखी को संदेश भेजा है, दोपहर को बात करेगी. रूठे सुजन मनाइये...

आज एक सखी से बात हुई, उसका जन्मदिन जब था वे ट्रेन में थे, बधाई देना ही भूल गयी. उसने बताया, उसके पिताजी की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है. वह क्रोध करते हैं तथा कुछ सामान घर से बाहर जाकर रख आते हैं. वृद्धावस्था तो परिपक्वता की निशानी होनी चाहिए किन्तु आजकल अनेक लोगों को बुढ़ापे में डिमेंशिया हो रहा है, पता नहीं इसका कारण क्या है. कल दोपहर मूसलाधार वर्षा हुई, आज मौसम गर्म है. प्रकृति के रंगढंग अनोखे हैं. जून बता रहे थे कि आज फिर एक सहकर्मी के जवाब को लेकर परेशान हुए. जब तक वह भीतर शांति का अनुभव न कर लें, इस उहापोह से छुटकारा नहीं. उसने प्रार्थना की, उन दोनों की बुद्धि उन्हें सत्य का खोजी बनाये. वे स्वतंत्र हैं कि ईश्वर की आज्ञा का पालन करें या न करें. यदि वे सभी को ईश्वर में और ईश्वर को सबमें देखते हैं तो किसी की निंदा नहीं करेंगे. जब तक भीतर निंदा दोष है तब तक ईश्वर पर उनका विश्वास संशय रहित नहीं है. परमात्मा पर अटल विश्वास ही उन्हें उसकी सृष्टि को निर्दोष देखने के योग्य बनाता है. ऐसा व्यक्ति किसी से भी द्वेष नहीं करता.

Wednesday, March 13, 2019

गुलमोहर के वृक्ष



मौसम आज भी वर्षा का है, सुबह छाता लेकर टहलने गये, वापसी में वर्षा आरम्भ हो गयी थी. पौने ग्यारह बजने को हैं. भोजन तैयार है, जून के आने में पन्द्रह मिनट का समय है, उसने डायरी उठा ली है. केजरीवाल ने फिर ईवीएम की गड़बड़ी का राग अलापना शुरू कर दिया है. मोदी जी द्वारा किये काम उन्हें नजर ही नहीं आते. बंगाली सखी को संदेश भेजा है, अभी उसने देखा नहीं है, उसके लिए शुभकामनायें ! छोटी बहन ने एक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है, अभी दो शेष हैं, उसे जो नया जॉब लेना है उसके लिए, विदेश में नौकरी करना इतना भी सहज नहीं है. दीदी भी अपनी बिटिया के पास सुदूर महाद्वीप की यात्रा पर जा रही हैं. कल रात्रि जून ने अपने बचपन के बारे में पहली बार सहजता से बताया. प्राइमरी स्कूल की अपनी अध्यापिका सरोज मैम के बारे में तथा अन्य स्कूलों के बारे में भी. इंटर में उनका दाखिला काफी लेट हुआ था. उन्हें अपने उन स्कूलों में जाने का मन है. अगली यात्रा में वे उस कालेज में जा सकते हैं, जहाँ साथ पढ़ते थे.

परमात्मा की धुन, उसका भजन और उसकी शरण में जब मन को आनंद आने लगता है तो उसे दीन दुनिया की कोई खबर ही नहीं रह जाती ! वह ही पाने योग्य है और भजने योग्य है ! आत्मा कर्म फल को भोगने वाला है, पिछले दिनों जो स्वास्थ्य की समस्या से उसे दोचार होना पड़ा उसका कारण पूर्व में उसके द्वारा किये कौन से कर्म थे, उनका भी स्पष्ट अनुभव हुआ, इतनी तीव्रता से वह अनुभव उसे प्रकृति द्वारा कराया गया. वे वस्तुओं को वैसा नहीं देख पाते जैसी वे हैं, इसे ही निंदा कहते हैं. वे अपने दृष्टिकोण से ही वस्तुओं को परखते हैं, जबकि वास्तव में वे वैसी नहीं होतीं. उनके हर कर्म का फल परमात्मा से मिलने ही वाला है, उनकी जरा भी हानि नहीं होती. यदि वे प्रशंसा के रूप में अपने कर्म का फल पहले ही ले लेते हैं तो ईश्वर की व्यवस्था में इसका भी विधान है. उनके किसी कर्म से यदि अन्य का हित या अहित होता है तो यह उसके कर्मों का हिसाब है. अपेक्षा ही उन्हें आत्मा से नीचे ले आती है. कल पुस्तकालय से एक किताब लायी है, First thing First everyday  अच्छी है. कल उन्हें बंगलूरू की यात्रा पर निकलना है.

इस समय वे बंगलूरु शहर से दूर हवाई अड्डे के पास एक रिजोर्ट में हैं. कल सुबह दस बजे वे यहाँ आये थे. यहाँ का वातावरण सुंदर है. हरियाली है, पंछी हैं, फलों और फूलों के वृक्ष हैं, सुंदर रास्ते हैं. सुबह–सुबह बाहर तक टहल कर आये. गुलमोहर तथा ताड़ के वृक्ष सडक के दोनों ओर लगे थे और रिजॉर्ट के अंदर भी विभिन्न तरह के इंडोर व आउटडोर खेल का इंतजाम है. कमरे वातानुकूलित हैं, जिसमें आरामदेह फर्नीचर है. इसी वर्ष नवम्बर माह में यहीं पर नन्हे और सोनू  का सामाजिक रीति से विवाह तथा रिसेप्शन होने वाला है. कल उन्होंने मैनेजर और शेफ के साथ बैठकर भोजन की सूची के बारे में वार्तालाप किया. पंडित जी भी आकर मिल गये और विवाह नियोजक भी. टीवी पर सुरेश ओबेराय व शिवानी बहन संस्कारों पर बात कर रहे हैं. नन्हा अपने मित्र को हवाईअड्डे छोड़ने गया है. अभी-अभी सोनू ने एक दुखद समाचार सुनाया. कल उसका भतीजा मुंबई में जिस मित्र के यहाँ रुकने वाला था, उसे बचपन से जानता था, वह उनके पारिवारिक मित्र का पुत्र था. वह कल घर शिफ्ट कर रहा था. तीन मित्र और भी थे, सभी ने सहायता की. रात को जब भतीजा सो रहा था तो बाहर शोर सुनकर उठा, पता चला, उसके मित्र ने अठाहरवीं मंजिल से गिरकर जान दे दी है. दो मित्र चले गये, एक लड़का और वह खुद रह गये. सोनू की चचेरी बहन भी मुम्बई में रहती है, उसे फोन किया तो वह रात को दो बजे उसे अपने घर ले आई. मृतक के पिता तंजानिया में हैं तथा माँ कोलकाता में. आज की पीढ़ी की सहनशक्ति कितनी घटती जा रही है. उस आत्मा की शक्ति तो वास्तव में बहुत कम थी. अभी कुछ दिन पूर्व ही उनके एक संबंधी की पुत्री ने ऐसा कदम उठाया था पर वह बच गयी. वर्षों पूर्व कालेज में जल जाने पर एक बार उसने भी ऐसा ही सोचा था. मन की दुर्बलता ही इसके पीछे एकमात्र कारण है और अपने मन की बात किसी से न कह पाने की दुर्बलता भी. नाश्ते का समय हो रहा है, जून के आते ही वे नाश्ते के लिए जायेंगे.

Friday, March 8, 2019

बनारसी साड़ियाँ




ग्यारह बजने को हैं. आज सुबह छह बजे वे उठे. स्वास्थ्य ठीक लग रहा था. कल दोपहर बाद से तबियत कुछ नासाज थी. सम्भवतः चुनार घूमते समय लू लग गयी थी. शाम को बाजार जाना था. विवाह के लिए तीन बनारसी साड़ियाँ व एक सूट खरीदा. दूकानदार ननद की सहेली की जान-पहचान का था और बनारसी साड़ियों का थोक विक्रेता था, बहुत धैर्य के साथ उसने वस्त्र दिखाये. वापसी में वे विश्वनाथ गली गये. कंगन, हार, चूड़ियाँ आदि कुछ सामान खरीदा. भीड़ भरी सड़कों से गुजरना यहाँ एक बड़े साहस का काम है. धूल, धुआं, भीड़ आदि की इंतिहा होती है. घर से वे कुछ दूरी पर ही थे कि उसकी तबियत बिगड़ने लगी. घर पहुंचने तक ठंड लगने लगी थी. चार-पांच कम्बल ओढ़ने के बावजूद भी ठंड लग रही थी. काफी देर बाद ठंड कम हुई और नींद आ गयी. सुबह उठी तो सब कुछ ठीक लग रहा था. शाम को जून के एक मित्र के यहाँ निमन्त्रण है.

संध्या के पांच बजे हैं. आज उन्हें वापस जाना है, यानि कुल पांच घंटे यहाँ और शेष हैं. दोपहर को भोजन के बाद विश्राम के लिए भीतर के कमरे में जा ही रहे थे कि एक बहुत पुराने परिचित वृद्ध मिलने आ गये, जिनकी बातें करने की आदत है. जून पहले उनसे मिलने गये थे पर जितनी देर बैठे रहे, वह पहुंच ही नहीं पाए. इसी बात पर अपने एक डाक्टर मित्र की समय की पाबन्दी के कितने किस्से उन्होंने सुना दिए. मकान की खरीद-फरोख्त का काम करते हैं, कई दुकानें आदि भी हैं, जहाँ भारतीय व विदेशी पर्यटक आते हैं. उनके तीन सुपुत्र हैं, अपने एक पोते के विवाह के चक्कर में जेल भी हो आये हैं. दहेज उत्पीड़न के केस में उनकी पतोहू व उसके पिता ने परिवार के पांच लोगों को बीस दिन तक जेल की हवा खिलवा दी थी. उनकी बातें किसी कहानी के पात्र के मुख से निकली हुई लग रही थीं. मौसम यहाँ गर्म है, तापमान इकतालीस डिग्री होगा. अज फेसबुक पर आश्रम के फोटो प्रकाशित किये, जो सक्तेश गढ़ में स्थित है, और तहसील चुनार व जिला मिर्जापुर में आता है.

पूरे ग्यारह दिनों के बाद डायरी उठायी है. कितना कुछ घटा पिछले दिनों. तेरह की रात वे ट्रेन में बैठे, पन्द्रह की सुबह घर पहुँचे. सोलह को इतवार था, बच्चों को योग भी सिखाया. अगले दिन जून को दिल्ली जाना था. वह बुध को लौटे, तब तक भी उसका स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था. अगले दिन वे अस्पताल ले गये, दवा शरू हुई. इस इतवार तक स्वास्थ्य पुनः प्राप्त हुआ. कल सोमवार को  जून के एक सहकर्मी ने अपने घर बुलाया था. उन्होंने योग का एक नया सीडी दिया है, आज उसमें से देखकर कुछ आसन किये. कल पहली बार ॐ ध्यान’ कराया, आज ‘राम ध्यान’ करना है, अवश्य ही साधिकाओं को अच्छा लगेगा. बंगाली सखी ने व्हाट्सएप पर प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया. वे आज वे लोग वापस आ रहे हैं. लोग वफा उतनी शिद्धत से नहीं निभाते जितनी शिद्धत से बेवफाई निभाते हैं. शनिवार को एक नयी यात्रा पर निकलना है. नन्हे ने अगले इतवार के लिए वह होटल बुक कर दिया है, जहाँ पर वे विवाह समारोह करने वाले हैं. कल स्कूल से लौटते समय क्लब की एक सदस्या के यहाँ गयी, जिसका विदाई समारोह होने वाला है. उसके लिए एक कविता लिखनी है.

चुनार का किला



सुबह-सुबह ही वे चार जन इनोवा से चुनार के लिए रवाना हुए. बनारस से चुनार के लिए कई रास्ते हैं पर उन्होंने वह चुना जो पाइप के पुल को पार करके किले तक ले जाता है. शहर से बाहर निकलते ही खेतों के मध्य से गुजरती हुई कार उन्हें मनमोहक दृश्य दिखाने लगी. आगे चलकर दुर्गा देवी का मन्दिर आया फिर शीतला माता का. पहले वे गाँव के भूतपूर्व सरपंच के घर पर रुके, आगे की यात्रा में वे साथ जाने वाले थे. उनके वृद्ध पिताजी बाहर ही बैठे थे. घर पक्का था तथा बैठक में सोफा आदि पड़ा था. उनके द्वारा परोसे मालपुए ग्रहण किये तथा नगरो बाँध की तरफ रवाना हुए. अब रास्ता रेतीला हो गया था. दोनों तरफ सूखी धरती और पत्तों से विहीन वृक्ष नजर आ रहे थे. वे सिद्धनाथ की दरी पर पहुंचे जहाँ पत्थरों की विशाल चट्टानों पर चढ़ते-उतरते मुख्य स्थान पर पहुँचे जहाँ गुफा में शिव का मन्दिर है. बरसात में यहाँ झरना बहता है पर इस वक्त सब सूखा हुआ था. गर्मी बहुत थी पर हवा चल रही थी. उन्होंने आधा घंटा वहाँ बिताया फिर स्वामी अड़गड़ानंद जी के आश्रम की ओर रवाना हुए. छोटे-बड़े वृक्षों से घिरा यह आश्रम अपनी गौशाला और बड़े हॉल के कारण प्रसिद्ध है. यहाँ हजारों की संख्या में एक साथ बैठने की व्यवस्था है. स्वामी जी इस वक्त आश्रम में नहीं थे, उनकी पुस्तक ‘यथार्थ गीता' पढ़ने की मन में आकांक्षा जगी, जिसे सरपंच जी ने पूरा करवाया. आश्रम में खिचड़ी व चूरा का प्रसाद मिला. वहाँ से चुनार के किले की तरफ रवाना हुए. रास्ते में गाँव की एक चाय की दुकान पर रुककर चाय पी तथा सरपंच जी को उनके घर उतारकर वे किले की और बढ़े. गंगा नदी पर पीपों का एक पुल बनाया गया है, जिस पर से पर जाना अपने आप में एक रोमांचक अनुभव था. प्रवेश द्वार से अंदर आते ही एक वृक्ष के नीचे एक महिला रजिस्टर लेकर बैठी थीं, जिसमें उन्होंने अपने नाम लिखे. ननदोई जी पहले आ चुके थे, सो गाइड को नहीं लिया, उन्होंने सारा किला घुमाया और इसके इतिहास से भी परिचित कराया. इस किले का जिक्र ‘चन्द्रकान्ता’ में मिलता है. इसमें गहरी सुरंगें हैं, कुएं हैं, कैदियों को रखने के लिए भुतहा कैदखाने हैं. काफी डरावना इतिहास है यहाँ का. चमगादड़ों का बसेरा है. किले की हालत जर्जर हो रही है. कुछ समय पहले ही इसे पुरातत्व विभाग को सौंपा गया है. धूप तेज होती जा रही थी सो वे शीघ्र ही वापस लौट पड़े और मडुआडीह होते हुए चौकाघाट स्थित निवास पर पहुंच गये.   

कल शाम तैयार होते-होते उन्हें देर हो गयी थी और रात्रि साढ़े आठ बजे के लगभग विवाह के स्वागत स्थल पर पहुँचे. जून के एक पुराने मित्र के दो पुत्रों के विवाह का रिसेप्शन था. मित्र अब इस दुनिया में नहीं हैं पर उनकी पत्नी ने बड़े स्नेह से बुलाया है. द्वार पर सुंदर श्वेत पुष्पों की झालरें लगी हुई थीं. भीतर जाकर मंडप दो भागों में बंट जाता था. दांयी तरफ पुरुषों के लिए और बायी तरफ महिलाओं के लिए. हॉल के अंत में स्टेज बना था, सामने कुर्सियां रखी थीं. एक तरफ भोजन के स्टाल लगे थे. कुछ देर में दोनों दुल्हनें गुलाबी लहंगों में सजी हुई लायी गयीं. मित्र की पत्नी बेहद खुश थीं कि इतनी दूर से वे उनकी ख़ुशी में सम्मिलित होने आये थे. दावते वलीमा में शाकाहारी भोजन एक अलग स्थान पर परोसा गया था, जो उन्होंने ग्रहण किया. आज संध्या जून के एक अन्य पुराने प्रिय मित्र मिलने आ रहे हैं. वाराणसी की हवा में कुछ अलग बात है, यहाँ होटलों के नाम भी काफी आध्यात्मिक हैं, समर्पण होटल, अपना होटल, हनुमान चाय, कानूबाबू होटल आदि, मोदी सरकार के आने के बाद से सुबहे-बनारस कार्यक्रम आरम्भ हुआ है, जिसमें हर दिन कोई नया कलाकार अपनी कला की प्रस्तुति रखता है.

Monday, March 4, 2019

अस्सी घाट पर दादरा



शाम के सात बजने को हैं, वे पांच बजे घर से चले थे. उस समय आकाश में सूरज बादलों के पीछे से झांक रहा था. धीरे-धीरे साँझ ढलती गयी, गगन गुलाबी से सुरमई हो गया और स्टेशन पहुँचने तक तो पूर्ण अंधकार हो चुका था. मार्ग में हरे-भरे चाय बागान, झोपड़ियाँ और बांसों के झुरमुट थे. कहीं-कहीं खेतों में पानी भरा था. कहीं महिलाएं घरों के सामने बैठ कर बातें कर रही थीं तो कहीं ठूँठ बचे खेतों में दूर तक कोई पंछी भी नजर नहीं आ रहा था. डिब्रूगढ़ शहर का मुख्य बाजार रोशनियों से जगमगा रहा था. कई नई दुकानें भी नजर आयीं. रेलवे स्टेशन काफी साफ-सुथरा था, कहीं भी गंदगी नजर नहीं आई. लगभग खाली ही था पूरा स्टेशन. टीटी के दफ्तर में जाकर पता किया, प्रथम श्रेणी के चार के कूपे में अन्य दो यात्री कौन हैं, तथा कहाँ से चढ़ने वाले हैं. पता चला कोई मारवाड़ी दंपति हैं, आधी रात के बाद ही चढ़ेंगे. वे लगभग तीन वर्ष बाद वाराणसी जा रहे हैं. ट्रेन की इतनी लंबी यात्रा किये भी काफी अरसा हो गया.

दस बजे हैं अभी सुबह के. ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी हुई है. सुबह वे पांच बजे के बाद ही जगे. रात को देर तक नींद नहीं आ रही थी, फिर आयी भी तो स्वप्नों भरी. रेल यात्रा बहुत दिनों बाद कर रहे हैं सो जैसे अभ्यास ही नहीं रहा. जून ने नाश्ते में आलू परांठा व दही मंगवाया. कॉर्न फ्लेक्स तो था ही. सहयात्री आ चुके हैं, उनका एक चार-पांच वर्ष का पुत्र भी है, जिसकी आँखें बहुत कमजोर हैं. मोबाइल को लगभग आँख से सटाकर देखता है. उसके दांत में भी दर्द था. माता-पिता तो बन जाते हैं लोग पर उसके लिए ज्यादा श्रम नहीं करना चाहते. माँ को सोने में ज्यादा आनंद आ रहा है, बजाय इसके कि पुत्र के साथ खेले जो मोबाइल में ही खेल रहा है. उसने एक कहानी लिखी छोटी बहन के साथ घटी घटना पर आधारित.

कल रात्रि समय पूर्व ही उनकी ट्रेन वाराणसी स्टेशन पर पहुँच गयी थी. पौने दो बजे घर पर थे. छोटी ननद व ननदोई ने स्वागत किया. हाल-चाल पूछ कर सो गये पर सुबह साढ़े पांच बजे ही लगातार आती तोते की आवाज ने उठा दिया, पता चला पड़ोस के घर में रहता है और सुबह से रटना शुरू कर देता है. प्रातः भ्रमण भी किया और वापस आकर प्राणायाम भी. नाश्ते में छोलिया-पोहा था और फल. शाम को विवाह उत्सव में जाना है, जहाँ बहुत लोगों से मुलाकात होगी. कल शाम बाजार जाना है, परसों गंगा आरती देखने, एक दिन चुनार का किला देखने तथा किसी आश्रम में भी. यहाँ मौसम थोडा गर्म है, पर बहुत अधिक भी नहीं.

दोपहर के ढाई बजे हैं. बाहर धूप तेज है पर कमरा एसी के कारण ठंडा है. वे दोपहर का विश्राम करके अभी उठे हैं. शाम से पूर्व बाहर निकला नहीं जा सकता है. आज की सुबह शानदार थी. वे साढ़े चार बजे उठ गये थे और अस्सी घाट गये. घर के पास ही इ-रिक्शा वाला रहता है, जिसे शाम को ही बुक कर लिया था. छह बजे घाट पर पहुंचे तो शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम चल रहा था, कुछ कुर्सियां लगी थीं और दरियां भी बिछी थीं. सुबह पांच बजे ही आरती होती है, जो वे नहीं देख सके. एक गायिका जो कोलकाता से आई थी, स्थानीय तबला वादक ( युवा छात्र) तथा हारमोनियम वादक के साथ बहुत ही सधे हुए अंदाज में दादरा गा रही थी. सात बजे योग का कार्यक्रम आरम्भ हुआ. योगाचार्य जी ने पहले नौ प्राणायाम कराए-अनुलोम-विलोम, कपालभाती, शीतलीकरण, भस्त्रिका, उज्जायी, अग्निसार, भ्रामरी तथा तीन बंध. उनकी वाणी ओजस्वी थी तथा उत्साहवर्धक भी. उसके बाद आसन करवाए, ताड़, अर्ध चन्द्र, मंडूक, पर्वत आसन. कुछ क्रियाएं पैरों हाथों तथा सर्वाइकल के लिए भी थीं, जिनमें पैरों को जमीन पर पटकना भी शामिल था. सिंहासन तथा हास्यासन भी करवाए. योग करने के बाद तन-मन ऊर्जा से भर गया, फिर वे नाव से गंगापार गये. स्नान करके नाव से वे दशाश्वमेध घाट पर उतरे. नाश्ता किया, शालिग्राम तथा नर्मदेश्वर से मिलने वाला एक पत्थर लिया. दुकानदार का नाम धर्मेन्द्र था, जो बातें बनाने में कुशल था. उसने दोनों पत्थरों के बारे में बताया तथा उनकी पूजा करने से पूर्व उन्हें पंच गव्य से अभिषिक्त करने को कहा. उसके बाद वे पैदल ही चलकर पुरानी गली में गये. कुछ समय पुराने घर में बिताया. वर्षों पूर्व वहाँ जो विद्यार्थी उससे गणित के सवाल पूछा करता था, अपने परिवार के साथ रह रहा था. दो बच्चों का पिता वह एक अख़बार में काम करता है. एक स्वयं सेवी संस्था से भी जुड़ा है.   

नमामि ब्रह्मपुत्र



कल शाम को क्लब में छह सदस्याओं का विदाई समारोह था. उसने सबके लिए एक-एक कविता लिखी थी. पूरा कार्यक्रम ही अच्छा रहा, पर एक-एक करके क्लब से सभी वरिष्ठ महिलाएं जा रही हैं. आज आर्ट ऑफ़ लिविंग के एक स्वामी जी गोहाटी से आये हैं. उन्हें सुबह छह बजे ही आना था, पर उनकी ट्रेन दो घंटे देर से चली फिर रास्ते में और देर करते हुए साढ़े आठ बजे तिनसुकिया पहुँची, साढ़े नौ बजे वे घर पहुँचे. सम्भवतः दो दिन यहाँ रहेंगे. गोहाटी के आश्रम में नवीन निर्माण कार्य चल रहा है, उसी सिलसिले में वे यात्रा कर रहे हैं. वे शाम को महिलाओं की योग कक्षा को भी सम्बोधित करेंगे. जून अभी-अभी डेंटिस्ट के पास से आये और फिर दफ्तर चले गये. उनकी दर्द सहन करने की क्षमता काफी बढ़ गयी है, पर जितना-जितना वे दर्द को सहन करना सीख जाते हैं, उतना-उतना उससे मुक्त होने की कामना घटती जाती है.

दोपहर के साढ़े बारह बजे हैं. वर्षा की टिपटिप सुबह से जारी है, बल्कि कल रात्रि से ही. कल दोपहर वर्षा रुकी थी, वे डिब्रूगढ़ गये थे. नमामि ब्रह्मपुत्र कार्यक्रम देखने. मोरान, नाहरकटिया व माजुली से कई नृत्य समूह आये थे, जिन्होंने अद्भुत कार्यक्रम प्रस्तुत किये. एक फैशन शो भी था, जिसमें सुंदर परिधान प्रदर्शित किये गये. कल शाम को स्वामी जी ने बताया, हर आसन उनके भीतर शुद्धि लाने में सहायक होता है, हर ध्यान भी और हर मुस्कान भी ! उसने प्रार्थना की, ईश्वर उनके लक्ष्य में उन्हें सफलता प्रदान करे. अगले हफ्ते उन्हें काशी की यात्रा पर निकलना है. आजकल दिन कितनी सहजता से व्यतीत हो रहे हैं.

रात्रि के आठ बजने को हैं, अभी कुछ देर पूर्व बाहर टहलकर वे आये हैं. रात की रानी की खुशबू हवा में घुली थी और सरदारनी आंटी द्वारा दी गये ओर्किड्स की खुशबू भी ! और एक सुगंध जो आजकल कई बार महसूस होती है, मीठी-मीठी खुशबू, प्राणायाम करते समय भी और इस समय भी हो रही है नासिका के पास ! आज योग कक्षा में चार महिलाएं आयी थीं. एक ने कहा, कभी-कभी उसे कुछ आवाजें सुनाई देती हैं, दूसरी ने कहा, उसे कभी-कभी लगता है, पीछे कोई है, पीछे मुड़कर देखती भी है पर कोई नहीं होता. एक अन्य ने कहा, उसे रात को नींद नहीं आती, आती भी है तो खुल जाती है. एक  ब्राह्मी पौधा लेकर आयीं, उसे भूमि में लगवाना है. उन्होंने कहा, प्रतिदिन इसके चार पत्ते खली पेट खाने से बहुत लाभ होता है. आज क्लब की प्रेसिडेंट से मृणाल ज्योति की सहायता राशि बढ़ाने के लिए कहा, पर वह अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं.

आज टीवी पर अनुशयी आत्माओं के बारे में सुना, जो इस समय सुप्त हैं, वे किसी को दुःख आदि नहीं दे सकतीं. वे श्वास, भोजन, जल आदि के साथ उनके भीतर प्रवेश कर लेती हैं. अनुकूल परिस्थिति मिलते ही उन्हें देह मिल जाती है. कितनी ही शुद्ध आत्माएं प्रतीक्षारत हैं कि उन्हें अच्छे माता-पिता मिलें. एक स्वाभिमानी आत्मा हरेक के भीतर रहती है. उसे ये बातें कुछ ज्यादा समझ में नहीं आयीं पर मन आश्चर्य से भर गया. नन्हे से बात हुई, वह कुछ परेशान लग रहा था. कम्पनी छंटनी कर रही है और उसे अपनी टीम से कुछ लोगों को निकलना पड़ा. कह रहा था कि किसी को नौकरी जाने की खबर मिलती है तो बेहद दुखद व शॉकिंग होता है. उसे स्वयं भी उनकी पीड़ा का अहसास हो रहा था. जिन्दगी में कभी-कभी कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं. आज छोटी बहन ने अपने साथ घटी एक घटना बतायी जिस पर एक कहानी लिखी जा सकती है.

Friday, March 1, 2019

चुकन्दर की फसल



परसों वे मिजोरम से लौट आये. यात्रा के दौरान लिखे विवरण से एक आलेख लिखा है, ब्लॉग पर पोस्ट करना है. कल मृणाल ज्योति में ‘डाउन सिंड्रोम दिवस’ मनाया गया, डिब्रूगढ़ स्थित एक समाज सेवी संस्था व समाज के कई लोग शामिल हुए. पिछले दिनों अनोखे स्वप्न भी देखे, एक में स्वयं को चाबी के बिना एक ताला खोलते देखा, माना अपना ही घर था, पर इससे पता चला कि किसी न किसी जन्म में यह कला भी आती थी, तभी मन में झट संदेह जागता है जब कोई वस्तु नहीं मिलती. एक स्वप्न में आकाश में विशाल रीढ़ की हड्डी देखी, सारी कशेरुकाएं ! कितनी विशाल आकृति थी, वह नन्हे को बुलाकर कहती है, देखो आकश में क्या है, तब तक आकृति बदल जाती है. एक पक्षी को देखा, काले रंग का कौआ, जो निकट आ जाता है और उसे वे सहलाते हैं, उस पर साबुन लगाते हैं, वह आराम से बैठा रहता है. जून डेंटिस्ट के पास गये हैं.

आज अपेक्षाकृत मौसम गर्म है. सुबह सामान्य थी, ब्लॉग पर लिखा, कई अन्य ब्लॉगस पढ़े, प्रतिक्रिया दी. लेखक या कवि के लेखन के लिए पाठक न हों तो किसी हद तक उसका उद्देश्य अधूरा ही रह जाता है, लिखे को पढ़ने वाले हों तभी रचना सार्थक है. स्वान्तः सुखाय लेखन भी पाठकों के कारण ही अपने लक्ष्य को पाता है. टीवी पर समाचार देखे, उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को दुरस्त करने के लिए नई सरकार पूरा जोर लगी रही है. जून मिजोरम से वापस आकर देहली भी घूम आये हैं. आज दोपहर लंच पर नहीं आये, दफ्तर में कोई आयोजन था. बंगाली सखी के पतिदेव को दफ्तर में प्रमोशन मिल गया है, शायद अब उसकी नाराजगी दूर हो. दुःख का कारण सुख की चाह ही तो है. कई दिनों से उससे बात नहीं हुई है. छोटी बहन की खांसी अभी तक दूर नहीं हुई है, उसे अपने मन को खाली रखना होगा पहले. दीदी से बात हुई, वह शायद इस वर्ष आस्ट्रेलिया जाएँगी, शायद नार्वे भी जाएँ. नन्हे और सोनू  से होली पर बात की, उन्हें पहली होली की बधाई दी, अच्छा लगा उन दोनों को. आज अपने विवाह के वर्ष की डायरी पढ़ी, उसमें लिखा था, जून अपने सीनियर्स के प्रेम पात्र बने रहें, ऐसे कामना वह करती है. ..और ऐसा ही हुआ है !

आज अयोध्या कांड का अगला अध्याय लिखा. बड़ी ननद से फोन पर बात की, उसके यहाँ जाने की बात भी, एक दिन अवश्य वहाँ जाना सम्भव होगा. अनेक वर्ष पूर्व वे वहाँ गये थे, शायद दस-बारह वर्ष पूर्व. आज भी मौसम गर्म है, सर्दियों के वस्त्र सहेज दिए और गर्मियों के निकाले. कौन जाने कल से वर्षा शुरू हो जाये और ठंड पुनः लौट आये. आज बगीचे से चुकन्दर तोड़े और एक कटहल भी. अगले दो वर्ष वे ताज़ी सब्जियों का आनंद और ले सकते हैं. उसका वजन आजकल बढ़ गया है. व्यायाम अधिक करना होगा और भोजन कम, सीधा सा उपाय है.