आज सुबह वे कुछ दिनों की काशी
व इलाहाबाद की यात्रा के बाद घर वापस लौट आये हैं. सुबह से ही घर को व्यवस्थित
करने में लगे हैं, काफी कुछ हो गया है, कुछ शेष है. आज सुबह से ही बल्कि परसों शाम
ट्रेन में बैठने से पहले से ही सासु माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उसे उनके साथ
बहुत सहजता से, सम्मान तथा समझदारी से बातचीत तथा व्यवहार करना है, उन्हें कुछ दिन
तो अकेलापन भी लगेगा. धीरे-धीरे अभ्यस्त हो जाएँगी. शरीर का स्वस्थ होना ज्यादा
जरूरी है, तन स्वस्थ हो तो मन अपने अप खुश रहता है. जब कोई अस्वस्थ होता है, शरीर
अपने को स्वस्थ करने की प्रक्रिया शुरू कर देता है, पर वह जल्दी घबरा जाती हैं, वृद्धावस्था
में कई तरह के भय मन में समा जाते हैं. उनका बगीचा भी अस्त-व्यस्त हो गया है. फूल
तो ढेरों खिले हैं, पर घास बढ़ गयी है. माली
पिछले डेढ़ माह से नहीं आ रहा है. नये माली का प्रबंध करना होगा. बनारस में जो
तस्वीरें उन्होंने उतारी थीं, कम्प्यूटर पर डाल दी हैं जून ने, कुछ घाट अति सुंदर
लग रहे हैं और गंगा स्नान के फोटो भी अच्छे हैं. आज सभी सखियों से फोन पर बात हुई,
सुख-दुख के साथी होते हैं मित्र. सभी के लिए वे छोटा-मोटा कुछ उपहार लाये हैं. उसे
छोटी ननद को पत्र लिखना है और प्रयाग में मिली एक परिचिता को भी, जिनके घर वे एक रात
रुके थे. कल क्लब की मीटिंग है, परसों सत्संग है. कल जून तिनसुकिया भी जाने वाले
हैं नई ड्रेसिंग-टेबल लाने !
अभी कुछ देर पहले वह टेलीफिल्म
‘निशब्द’ देख रही थी, एक वृद्ध व्यक्ति कितना अकेला होता है, वैसे तो हर व्यक्ति
अकेला है अपने भीतर के संसार में, पर बच्चे के सामने अभी पूरा जीवन पड़ा है और युवा
के पास अभी शक्ति है, बल है, वह अपनी दुनिया स्वयं बना सकता है पर वृद्ध असहाय होता
है, उसका जीवन उसके हाथों से निकल चुका होता है उसको सिर्फ मृत्यु की प्रतीक्षा
होती है, और जो अपने आप से नहीं मिला उसके लिए मृत्यु कितनी भयावनी वस्तु होती
होगी. उसे मरने से डर नहीं लगता. इस वक्त उसके पास शक्ति है, भीतर ऊर्जा है और
सबसे बड़ी बात स्वयं से पहचान है, जो कभी नहीं मरता. उसके पास अनंत ऊर्जा का भंडार
है, अनंत प्रेम व अनंत आनन्द का भंडार है, पर इस भंडार का आनंद केवल भीतर ही भीतर वह
उठाती रहे इतना तो काफी नहीं न, इसे तो सहज ही बिखरना चाहिए..जैसे फूल की सुगंध और
जैसे हवा की शीतलता, उसके शब्द किसी के हृदय को स्पर्श करें ऐसे गीत वह लिखे..
आज सुबह गुरूमाँ ने
कहा,
जो दिल से निकलती है वह
दुआ कबूल होती है
पर मुश्किल तो यह है कि..
निकलती नहीं है
धर्म के मार्ग पर चलने
से पहले उसकी प्यास जगानी है ! जिसके भीतर उसकी प्यास जग जाती है वह तो इस अनोखी
यात्रा पर निकल ही पड़ता है, और एक बार जब कोई उस अज्ञात पर पूर्ण विश्वास करके उसे
सब कुछ सौंप कर आगे बढ़ता है तो वह हाथ ऐसा थाम लेता है जैसे वह उनकी ही प्रतीक्षा
कर रहा था. वह उसे बल देता है राज बताता है, जब कोई पथ से दूर होने लगे तो पुनः
लौटा लाता है. वह हजार आँखों वाला, हजार बाहुओं वाला और सब कुछ जानने वाला है.
उसका विश्वास ही भक्त का विश्वास है, वही उसका सच्चा स्वरूप है. वे दो नहीं हैं,
वह उसका अपना आप है. भक्त उसकी तरफ चलते-चलते घर लौट आता है, तब वह पूर्ण
विश्रांति का अनुभव करता है !