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Friday, March 3, 2017

अँधेरे के प्राणी


दोपहर के तीन बजने को हैं, आज धूप तेज है, ग्रीष्म ऋत है सो गर्मी होना स्वाभाविक है. जून चार-पांच दिनों के लिए अहमदाबाद गये हैं. उसने सोचा गर्मियों के वस्त्र सहेज कर रखने और सर्दियों के वस्त्र बाहर निकलने का यही उचित समय है. कल रात तेज वर्षा, आंधी, तूफान के कारण बिजली चली गयी. घोर अंधकार छा गया, बाहर भी भीतर भी. पल भर के लिए एक अजीब सा भय उत्पन्न हो गया. भीतर न जाने कितने संस्कार दबे हैं. भय का संचार होते ही वे जग जाते हैं. जैसे अँधेरे में सारे रात्रि के जीव निकल आते हैं वैसे ही मन यदि तनिक भी भय का शिकार हुआ तो भूत बनकर कुसंस्कार चिपक जाते हैं. प्रकाश होते ही सब जीव चले जाते हैं वैसे ही ज्ञान का प्रकाश होते ही वे भी जल जाते हैं. साधना के द्वारा उन्हें पूरा नष्ट करना होगा, ताकि घोर अंधकार में भी मन अभय का पात्र ही बना रहे.

उस दिन से शुरू हुई वर्षा आज थमी है, पर हवा ठंडी है, स्वेटर पहनना पड़े इतनी ठंडी. आज सुबह सुंदर व्याख्यान सुना, शब्दों को वे सुनते हैं, कानों को भले लगते हैं पर थोड़ी ही देर में अपना असर खो देते हैं. उसके अर्थ पर जब ध्यान हो, अर्थ में मन टिक जाये, वे अर्थरूप ही हो जाएँ तभी शब्दों का काम पूरा होता है.

कल दोपहर एक सखी के यहाँ हालैंड वासी एक आर्ट ऑफ़ लिविंग के स्वामी से भेंट हुई, वह बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं तथा संस्कृत में धाराप्रवाह श्लोक भी. शाम को जून के दो मित्र आए, समय बदलता रहता है, एक सा नहीं रहता. कभी वे सब परिवार एक साथ बैठकर भोजन करते थे, अब सब दूर-दूर हो गये हैं. मृणाल ज्योति का एक बच्चा जिसे कई रोग एक साथ थे, कल रात नींद में ही चल बसा. उस दिन वह स्कूल गयी थी तो हॉस्टल के कुछ बच्चे मिले थे, पता नहीं उनमें से कौन सा था.

कुछ दिनों से नन्हे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उससे बात करके उसने कुछ सोचा और जून को एक पत्र लिखा, ताकि वापस आकर वह इसे पढ़े. उन्होंने इकलौते पुत्र को बचपन में बहुत स्नेह से पाला, लेकिन उसकी युवावस्था में उसे अकेला छोड़ दिया, अठारह वर्ष की उम्र बहुत नाजुक होती है. कोटा में उसे हॉस्टल में छोड़ आए थे तो वह बहुत तनाव में रहा होगा. घर की सुरक्षा से दूर एक अनजान शहर में...फिर कालेज में कितनी हिंसा और तनाव झेलना पड़ा, अच्छे पल भी यकीनन थे पर वह कहते हैं न कि नकारात्मक की ओर झुकने की प्रवृत्ति मानव में सहज ही होती है. उसे लगता है बंगलुरू में भी उसे कार्यभार और जीवन की कठिनाइयों से अकेले ही जूझना पड़ रहा है. उसे लगता है पुत्र के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने में उनसे कुछ चूक अवश्य हुई है. वे एक-दूसरे के प्रति जिस तरह पूर्ण समर्पित हैं वैसे ही उसके प्रति नहीं हो पाए. उसने लिखा, जून को अब मजबूत बनना होगा, उसके बिना रहने की आदत डालनी होगी. कुछ दिनों के लिए वह नन्हे के साथ रहना चाहती है. उसे नया जीवन शुरू करना है, जिसके लिए उसे मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए. उसे उनका साथ सदा ही चाहिए था पर वे अपने जीवन में इतना खोये थे कि उसके साथ रहकर उसे सहारा नहीं दे सके. वह कितनी-कितनी परेशानियों को अकेला ही सहता रहा, उसने कभी उन्हें अपना राजदार नहीं बनाया. अब समय आ गया है पुत्र के लिए अपने सुख के त्याग का समय, उसे अपना कर्त्तव्य स्पष्ट दिखाई दे रहा है. उनका शेष जीवन उसके लिए हो, उसे जीवन में अभी प्रवेश करना है. यही उम्र है जब उन्होंने विवाह बंधन में बंधकर नया जीवन शुरू किया था और उन्हें परिवार का पूर्ण सहयोग था. उसने उम्मीद की, जून जब यह पत्र पढ़ेंगे, उसकी बात समझ रहे होंगे.  

    

Thursday, November 15, 2012

दाल, बाटी, चूरमा



पिछले एक घंटे से शायद उससे भी ज्यादा से वह अपने आप को प्रेजेंटेबल बनाने का प्रयत्न कर रही है..पर असफल, खैर अब साढ़े दस से ऊपर हो चुके हैं, जून और सोनू का आने का समय हो रहा है. भोजन बनाना, जो थोड़ा शेष है, आरम्भ करना होगा. आज सुबह भारत छोड़ो पर दिल्ली दूरदर्शन की एक फिल्म देखी, बहुत अच्छी थी, बी आर नंदा थे उसमें. वर्षा शुरू हो गयी है, नन्हे को आज वैसे भी जून कार से लाने वाले थे, कल लोला ग्रेग का अंतिम अध्याय पढते-पढते आँखों से आँसूं टपक रहे थे, कितनी तेजस्वी महिला और कितनी अभागी..और उसका सात साल का पुत्र, बेटी छोटी है पर चार साल का बच्चा छोटा नहीं होता न..

पिछले शनिवार से कल बुधवार तक उसने डायरी नहीं लिखी जबकि लिखने को बहुत कुछ था. अल्फ़ा, पन्द्रह अगस्त और जून का जन्मदिन सभी बीत गए. शनिवार को ही तो वे दोनों आये थे हथियार लेकर, फिर इतवार को और उनकी कार ले गए. उसी का परिणाम है कि उसकी नींद गायब है..रातों की..कल रात तो अजीब सा लग रहा था, जैसे दिमाग फट जायेगा, अजीब अजीब बातें..रात का अँधेरा और..खैर अब तो इस समय तो उजला उजला सा दिन है. दोपहर के दो बजे हैं, पहले वह दोपहर को गीत सुना करती थी फिर दो दस के हिंदी समाचार. आज सोचा था नहीं सोयेगी, पर नन्हे को सुलाते-सुलाते खुद भी सो गयी. अभी बहुत से काम करने हैं, एक डेढ़ घंटे में जितने हो सकें, कपड़े प्रेस करने हैं, खत लिखने हैं, कुछ सवाल हल करने हैं, कुछ कपड़ों को ठीक करना है. समाचार शुरू हो गए हैं, इराक अमेरिका के खिलाफ युद्ध शुरू नहीं करेगा. कल वे एक परिचित महिला से मिलने गए थे, उनके पति पिछले कई दिनों से कुवैत में हैं, पर उनकी कोई खबर नहीं मिल रही है.

क्लब में फिल्म है त्रिदेव, उसकी देखी हुई है, पर जून कह रहे हैं कि उन्होंने नहीं देखी है सो वे जायेंगे. कल रात वह ठीक से सो सकी. जून टीवी देख रहे थे सोनू सो गया था और वह भी सो गयी, फिर सुबह ही नींद खुली. कल सुबह अस्पताल गयी थी पर डाक्टर बरुआ छुट्टी पर थे, डा. फूकन के पास बहुत भीड़ थी, जून ने तो रुकने को बहुत कहा पर ...उसे अजीब सा लग रहा था कि डाक्टर से कैसे कहेगी नींद नहीं आती..सुरभि का पत्र आया है, उसे भी नूना के मार्क्स नहीं मिल सके. शायद अगले पत्र में मिले. उसका रिजल्ट पता नहीं कब मालूम होगा. कल शाम वे बहुत दिनों के बाद हैलिपैड पर घूमने गए. तीन सिक्योरिटी के आदमी थे और सीआईएसएफ की वैन भी धीरे-धीरे चल रही थी, अजीब सा लगा अँधेरे में..

आज शनिवार है..जून के आने में थोडा ही वक्त शेष है. आज पेंडिंग पड़े सभी खतों को पूरा करना है..पूरे दो घंटों का काम होगा सम्भवतः. राजस्थान का नाश्ता था आज मॉर्निंग टीवी प्रोग्राम में, दाल, बाटी, चूरमा और देसी घी. बाटी वे लोग घर पर बना सकते हैं ओवन में, कल ट्राई करंगे, उसने सोचा. आज तो खाना बन गया है. नन्हे को आज सुबह उठाने में बहुत देर लगी, उसकी नींद बहुत गहरी है. उनके नए पड़ोसी कल जा रहे हैं, नन्हा दोपहर को बातें करता था उनसे. सोचा उसने कि उन्हें चाय पर बुलाए पर...अगले ही पल सोचा वे कहीं न कहीं निमंत्रित होंगे, उनके बहुत से मित्र हैं. गणित में कल एक सवाल को लेकर थोड़ी प्रौब्ल्म हुई, दोपहर को सो गयी सो पढ़ नहीं पायी, अब से एक दिन पूर्व ही पढ़ने से अच्छा होगा.

आज मंगल है, कल ही वे सब खत लिखे गए, शनि और रवि तो टीवी के नाम समर्पित होते हैं आजकल. छोटी बहन व छोटे भाई के कार्ड मिले दोनों लेट लतीफ हैं, पर दोनों के कार्ड बहुत सुंदर हैं. आज सुबह वह साढ़े छह समझ कर साढ़े पांच बजे ही उठ गयी और जून को उठाया. जल्दी-जल्दी वह तैयार हुए, घड़ी देखी तो छह बजने में दस मिनट बाकी थे. पहली बार ऐसा हुआ. कितनी अच्छी गजल आ रही है टीवी पर..फासले कम से कम रह गए...मन होता है असमिया सखी के यहाँ जाये पर..बेतकल्लुफ़ वह औरों से है, नाज उठाने को हम रह गए..तेरे दीवाने कम रह गए..अहले दहरो हरम रह गए..इसका मतलब पता नहीं क्या है?



Monday, August 27, 2012

मृत्यु का आघात



कल वे अपने परिचित दम्पत्ति के साथ चाय बागान गए, फोटोग्राफी की. सड़क के दोनों ओर ढलान पर लगे टी गार्डन यहाँ बहुतायत में हैं, पहले भी कई बार वे इन्हें देखने गए हैं पर उनके मध्य जाकर पहली बार चित्र उतारे. वह लिख रही थी कि पड़ोसिन ने आवाज दी, वह चावल की फुलवड़ी बनाने में उसकी मदद चाहती थी. कल शाम उसने इडली बनायी थी दो परिवारों को बुलाया था. नन्हा बहुत समझदारी भरी बातें कर रहा था, सभी उसकी प्यारी बातें सुनकर हँस रहे थे. उसे अब डांटने की जरूरत नहीं पड़ती बातों को समझने लगा है व खुद की बात भी समझा देता है.

आज सुबह वे जल्दी उठे थे, पर विडम्बना यह थी कि जून को सुबह फ्लाईट पकड़नी थी, इसलिए वे जल्दी उठे थे. कल दोपहर ढाई और तीन बजे के मध्य यह हृदय विदारक समाचार मिला कि जून का छोटा भाई सभी को छोड़कर चला गया. मानव मन भी कितना मजबूत होता है, बड़े से बड़ा आघात भी वह सह लेता है, नहीं तो यह लिखते समय उसके हाथ कांप रहे होते. कल जून ने कैसे इसे झेला होगा, किस तरह दिल पर पत्थर रखकर वह गया है, यह सिर्फ वही जान सकता है. कल रात भर वह सो नहीं सका.

आज सुबह नन्हा सिसकियाँ भरता हुआ उठा, पापा कहाँ हैं ? यह उसका पहला सवाल था, किस तरह मुँह बना-बना कर अंदर ही अंदर रुलाई पी रहा था वह, जाने उसने सपने में क्या देखा था. बाद में बोला पापा पिक्चर में गए हैं, जब उसने कहा कि वह बनारस गए हैं दादी, बुआ को लाने. कल दिन भर किसी न किसी के आते रहने से पता ही नहीं चला शाम कब हो गयी. खाना भी बन कर आ गया था, आज भी सब्जियां भिजवायीं हैं उसकी एक परिचिता ने. ये सब लोग न होते तो जून और वह कितने अकेले पड़ गए होते. जून घर पहुँच गए होंगे, उसने सोचा, उनका टेलीग्राम कब मिलेगा उसे, शायद कल ही मिले. नन्हा कल दिन भर सोया ही नहीं. आज सोया है.

आज उसे गए तीसरा दिन है, आज तो तार जरूर आना ही चाहिये. वहाँ जाकर वह माँ-पिता को सम्भालने में लग गया होगा, उसे याद तो रहा होगा पर वक्त कहाँ मिला होगा. पता नहीं वे लोग कैसे होंगे, हर वक्त यही ख्याल आता है दिमाग में, जब भी कोई मिलने वाला आता है, सहानुभूति दिखाता है दुःख जैसे और स्पष्ट हो जाता है. कल शाम को मिला देवर का पत्र व कार्ड पढ़कर तो वह आँसू रोक ही नहीं पायी. दो हफ्ते पहले उसने पोस्ट किया था वह पत्र. पता नहीं क्या करने गया था वह गुजरात. हँसता गाता कोई इंसान ऐसे देखते-देखते चला जाय तो कैसा लगता है.

कल वह कुछ नहीं लिख पायी. सुबह पांच बजे होंगे, नींद खुली तो मालूम हुआ कि कमर में हल्का दर्द है, उठी अलमारी खोली और फिर अचानक आँखों के सामने जैसे अँधेरा छा गया, दिल घबराने लगा, वह बैठ गयी फिर दो मिनट बाद उठकर बिस्तर पर गयी बेहद दर्द और कमजोरी महसूस हो रही थी, पता नहीं कितनी देर लेटी रही, फिर धीरे-धीरे दर्द कम होता लगा, नन्हा नींद में आकर उसकी बाँह पर सो गया और उसे लगा उसी क्षण से दर्द कम कम हो रहा था. दोपहर को आने वालों का सिलसिला शुरू हुआ, न ही कल ही न आज ही कोई समाचार मिला. वह चार दिन बाद जायेगी एक परिचित दम्पत्ति के साथ. देवर नहीं है अब धीरे-धीरे मन ने इस बात को स्वीकार कर लिया है.  

Tuesday, April 24, 2012

गन्ने के खेत



आज उसका पत्र आया रजिस्टर्ड पत्र था, उसमें कुछ पैसे भी थे. नूना ने सोचा कि वह उसका इतना ध्यान रखता है कि अपने लिये कम खर्च करके उसके लिये उपहार देना चाहता है. वह मोरान में है सो उसे खत भी देर से मिल पाएंगे. सुबह वह अपने पूर्व समय पर उठी, कोई स्वप्न देख रही थी. शाम को शर्मा आंटी के साथ दूध लेने गयी, उसके आगे भी निकल गए वे लोग, रजवाहे तक, वहाँ से गन्ने के खेत भी नजर आते हैं, अच्छा लगा पर माँ के साथ शाम को टहलना और भी भाता है.
सुबह धूप में बैठकर वह ईख की शहद सी मीठी गनेरियां खा रही थी कि शर्मा आंटी के साथ मिलेट्री कैंटीन जाने के लिये माँ ने कहा और उसने वहाँ से जून के लिये मोज़े खरीदे. दोपहर बाद उसके स्वेटर के बटन लेने गयी, स्वेटर बन गया है, पार्सल भी सिल दिया है, कल भेज देगी.

आज कितना इंतजार किया उसने डाकिये का पर...कल आयेगा यह सोचकर मन को मना लिया. ठंड बढ़ गयी है सुबह सवा छह बजे भी बहुत अँधेरा था और हवा काटती हुई सी चुभ रही थी. कोई श्रीमती गुप्ता आयीं थीं, अपनी दक्षिण भारत की यात्रा के संस्मरण बहुत चटखारे ले लेकर सुना रही थीं.