Thursday, May 24, 2018

देव दत्त पटनायक की माय गीता



ग्यारह बजे हैं सुबह के. जून नये घर में हैं. काम शुरू हो गया है. मिस्त्री, प्लम्बर, बढ़ई सभी आ गये हैं. अभी कुछ देर पहले बड़ी भतीजी के लिए एक कविता लिखी. बंगाली सखी के लिए भी लिखनी है, उसके विवाह की वर्षगांठ आने वाली है. अभी-अभी बड़ी ननद का फोन आया, नये घर की बधाई दी है. एक सखी ने अपनी भतीजी के विवाह का कार्ड भेजा है.

परसों उन्हें वापस जाना है. दो दिन में घर काफी साफ हो जायेगा. जून आज भी वहीं गये हैं. नन्हा व उसके मित्र दफ्तर चले गये हैं. नन्हा कल रात देर से आया, फिर भी देर से सोया और अब उठकर चला गया है. उसकी दिनचर्या में कोई तारतम्य नहीं है, पर उसका काम ही ऐसा है. मानव मन व तन की सहनशक्ति अपार है. उसे परमात्मा ही शक्ति से भरता है. हर कोई अपने कर्मों के अनुसार ही पाता है तथा जीवन निर्वाह करता है. वहाँ असम में योग कक्षा सुचारुरूप से चल रही है. अब भविष्य में कभी भी उसे कहीं जाना हुआ तो मन में यह खेद नहीं रहेग कि साधिकाओं को कोई परेशानी होगी. यहाँ जो शिवकुमारी नाम की मेड आती है उसे अपने निर्धारित काम के अलावा कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती. इसी तरह लोग अपने को सीमित कर लेते हैं. असीम परमात्मा ही सीमित जीव बनकर देह में कैद हो गया है. मुक्तता का अनुभव इसी मानव देह में हो सकता है, पर मानव इतनी गहरी नींद सोया है कि उसे इस सत्य की कोई खबर ही नहीं लग पाती.

कल वे घर लौट आये हैं. इस समय दोपहर के तीन बजने वाले हैं. मौसम बादलों भरा है. कल रात भर वर्षा हुई. बगीचा फूलों से भर गया है. डहेलिया, सिल्विया, एन्थ्रेनियम, कैलेंडुला, और भी जाने कितने फूल..एक हफ्ते में काफी परिवर्तन आ गया है मौसम में, अब बसंत पूरे निखार पर है, कंचन के विशाल वृक्षों में भी गुलाबी और श्वेत फूल दिख रहे हैं. सुबह स्कूल गयी थी, बच्चों को योग की कुछ क्रियाएं करवायीं. छोटी बहन से स्काइप पर बात हुई. बड़े भाई को घर में पूजा करवानी है, समय कितनी तेजी से बीत जाता है. भाभी को गये दस महीने हो गये हैं. पिताजी से भी बात हुई, वे अकेले हैं, भाभी मायके गयी हैं, उनकी माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. भाई कल शाम को घर आ रहा है. उसने इस बार देवदत्त पटनायक की पुस्तक, ‘माइ गीता’ खरीदी एअरपोर्ट से. जून ने कहा, फ्लिपकार्ट से यह पुस्तक आधे दाम में मिल रही है. पर फ्लाइट में पढ़ने का जो आनंद है, वह नहीं मिलता, फिर भी आगे से ध्यान रखना है. किताबें उसकी सबसे बड़ी मित्र हैं, ज्ञान की देवी सरस्वती इनमें ही तो बसती है !

Monday, May 21, 2018

मोटो जी का अलार्म



परसों रात साढ़े दस बजे वे यहाँ पहुँचे थे. कल शाम को टहलने गये. धूप तेज निकलती है यहाँ आजकल. एक कबूतर बाहर सूख रहे गमले से एक सूखी पत्ती का टुकड़ा अपनी चोंच में दबाकर ले गया है, शायद घर बनाएगा. जून नेत्रालय गये हैं. नैनी काम कर रही है. नन्हा व उसके मित्र, जो उसके साथ ही रहते हैं, पहले ही काम पर चले गये हैं, अब सभी देर शाम को वापस आयेंगे. नन्हा अभी तक अपने भविष्य के बारे में तय नहीं कर पाया है. वह अकेला ही रहना चाहता है, दो होकर भी अकेला, पता नहीं ऐसा कब तक चलेगा. समय कितना बदल गया है, अस्तित्त्व तो दूर स्वयं की भी खबर नहीं है. एक नींद में जैसे जी रहे हैं लोग, उसकी खुमारी को आनंद समझते हैं. जीवन की भव्यता और दिव्यता से सर्वथा अपरिचित ! उसे सभी के प्रति सहानुभूति होती है और यह भाव भी होता है, इसी तरह की या इससे भी गयी अवस्था में वह भी थी. ये भी एक दिन नींद से जगेंगे और तब धर्म के मार्ग पर कदम रखेंगे, खुद को जानने का प्रयत्न करेंगे. कल मकान की रजिस्ट्री हो जाएगी, परसों से सफाई का काम शुरू हो जायेगा. शनिवार को गृह प्रवेश के पूजन का कार्यक्रम होगा, इतवार को उन्हें वापस जाना है. नन्हा अगले महीने शिफ्ट करेगा, हो सकता है पहले ही कर ले.
आज से इस सोसाइटी में एक घर उनका अपना भी है. दस बजे से पहले ही वे रजिस्ट्रार के दफ्तर पहुँच गये थे. रजिस्ट्री हो गयी है. नन्हे और उसके नाम पर. अगली बार जब वे बंगलूरू आयेंगे तो नये घर में ही रहेंगे. शाम को जायेंगे वे उस घर में, कल से रंग-रोगन का काम आरम्भ हो जायेगा. छोटी बहन ने गाकर बधाई दी है नये मकान की, वह ऊर्जा से भरी है, सकारात्मक ऊर्जा ! ईश्वर उसे हर ख़ुशी दे !  उन्होंने ‘१९४७’ में दोपहर का भोजन खाया. रेस्तरां के नाम भी लोग बहुत चुन कर रखते हैं यहाँ. सुबह प्राणायाम के बाद आज अनोखे अनुभव हुए, कोई जैसे भीतर गा रहा था, पढ़ रहा था, सिखा रहा था. जैसे कोई सृष्टि के आरम्भ की बात समझा रहा था. सतयुग की बात और जीव के इस जगत में आने की बात. आरम्भ में सब कुछ नया होता है तो विकार रहित होता है फिर धीरे-धीरे परिवर्तन आता है. सद्गुरू की बताई साधना के बाद भीतर एक गहन शांति का अनुभव होता है. तभी वे चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग इस ज्ञान से जुड़ें. वह पांचवीं मंजिल पर है, नीचे से बच्चों के खेलने की आवाजें आ रही हैं. जून दूसरे कमरे में फोन पर बात कर रहे हैं, छुट्टी पर भी उनका दफ्तर चलता रहता है.

आज सुबह उसके पुराने मोटो जी के अलार्म से नींद खुली. वह जो एक बार गाड़ी में छूट गया था और जिसे वापस लाने के लिए ड्राइवर को एक हजार देने पड़े थे. बाद में एक दिन गिरकर जिसकी स्क्रीन टूट गयी थी, जिसे जून ने नोएडा में बदलवा दिया था, पर दो-तीन दिन ही चली नई स्क्रीन. इतने दिनों से बैग में बंद पड़ा था, आज अचानक उसकी घंटी पूर्व निर्धारित समय पर बजने लगी. शायद रोज बजती हो और उसने सुनी ही न हो...नींद खुलने के बाद कुछ देर ध्यान किया. किसी भी विधि से ध्यान करे, सभी अंत में एक हो जाते हैं, जिसके बाद मन खाली हो जाता है और तन हल्का. फेसबुक पर एक प्रसिद्ध तथा वरिष्ठ लेखक ने कहा है, मई में होगा हिंदी सम्मेलन. जोरहाट का माजुली भी उसका एक केंद्र है. वे अवश्य जायेंगे. माजुली देखने की उनकी इच्छा भी ऐसे पूर्ण हो जाएगी.

हौलो एंड एम्पटी



कल उन्हें यात्रा पर निकलना है, इस वर्ष की उसकी पहली यात्रा. तैयारी अभी शेष है, नन्हे के लिए हलवा भी बनाना है. बड़े भाई से बात की, उनके विवाह की सालगिरह है आज, भाभी के बिना पहली वर्षगांठ. कितना कठिन होगा उनके लिए. इसी माह वह भी बंगलूरू जा रहे हैं, इकलौती बिटिया से मिलने. उसने भी भतीजी से बात की, शायद वह उनसे मिलने आये. नहीं भी, सकती, कालेज में व्यस्त रहती है, और बड़े शहरों में ट्रैफिक की समस्या इतनी है कि कहीं भी जाने के लिए कम से कम तीन-चार घंटों का समय चाहिए. वैसे भी उसे औपचारिकताओं में विश्वास नहीं है, उसकी उम्र में नूना भी ऐसी ही थी. आज सुबह वे उठे तो वर्षा नहीं हो रही थी, पर जैसे ही जूते पहन कर बाहर निकले तो टप-टप बूंदें बरसने लगीं. शाम की योग कक्षा के लिए उसने एक सखी को नियुक्त कर दिया है, ताकि उसकी अनुपस्थिति में भी निर्बाध रूप से कक्षा चलती रहे. आज सरस्वती पूजा है, कुछ लोग कल भी मनाने वाले हैं. कुछ बच्चे आए थे, पूजा करने, पिछले इतवार को उसने इस दिन का महत्व बताया था. उसी दिन सासु माँ की पुण्यतिथि थी, उसने बच्चों को भोजन कराया था. अस्तित्त्व उनसे ज्यादा सजग है, वे एक दिन में कितनी बार असजग हो जाते हैं. पूजा की बात वह भूल ही गयी थी पर कक्षा छह का एक विद्यार्थी सभी बच्चों को लेकर आया. कल ‘सिया के राम’ के कई अंक देखे, मन-प्राण भीतर तक एक अनोखी शांति से भर गये.

साढ़े आठ बजे हैं, आधे घंटे बाद उसे ‘मृणाल ज्योति’ जाना है, आज वहाँ सरस्वती पूजा हो रही है. साढ़े ग्यारह बजे यात्रा के लिए निकलना है. इस बीच बच्चों को घर में हुई पूजा की प्रसाद स्वरूप खिचड़ी भी खिलानी है, स्वयं भी भोजन करना है. दस बजे लौट आना होगा, तभी सब कार्य हो पाएंगे. शेष सभी तैयारी हो चुकी है. नैनी का काम अभी शेष है, वह बहुत काम करती है, बिना परेशान हुए. अगले महीने उसकी डिलीवरी होनी है, पर वह जरा नहीं थकती. उसकी देवरानी श्वेत फूलों की एक माला बना रही है, जो वह पूजा में ले जाएगी. जून ने फल लाकर दिए हैं. भीतर का मौन अब स्थिर होने लगा है. कल शाम को योग कक्षा में एक साधिका जब रोने लगी तो उसे सहज ही आश्वस्त कर पायी, इस पर स्वयं को भी आश्चर्य हुआ. वह इतना स्वाभाविक था, उसे भी नहीं पता कैसे उसके शब्द सुनकर वह क्षण में ही सहज भी गयी. उम्मीद है उसकी अनुपस्थिति में भी वे सभी योग कक्षा में आएँगी. योग का उद्देश्य ही है, लोगों को आपस में जोड़ना. सद्गुरू सारी दुनिया को एक परिवार के रूप में जोड़ रहे हैं और उसे तो कुछ महिलाओं को ही आपस में जोड़ना है. आज वर्षा थमी हुई है. वर्षा के कारण सुबह पाँच दिन बाद वे टहलने गये, इक्का-दुक्का लोग ही दिखे. 

समय, दिन, तारीख जैसे थम गये हैं. देख-देख कर याद करके लिखना पड़ रहा है कि आज कौन सी तारीख है. भीतर कितना शून्य प्रतीत हो रहा है, तन में भी और मन में भी, हौलो एंड एम्प्टी का अर्थ आज समझ में आ रहा है. गुरूजी का बताया यह ध्यान जो वर्षों पहले पहली बार किया था, आज फलित हुआ है. उस दिन विपासना ध्यान में एक साधिका जिस पिघलने के अनुभव का जिक्र कर रही थी, वह भी शायद ऐसा ही कुछ होता होगा.


Thursday, May 17, 2018

गुलाब की टहनियाँ



सुबह एक अजीब सा स्वप्न देखा, वह एक नदी के तट पर है, उस पार से एक छोटी सी नौका में बैठकर एक नन्हा सा बच्चा उसके पास आता है. उसके हाथों में पीले-सफेद फूलों की एक सूखी माला है, जो वह उसे देता है. वह बदले में उसे कुछ देने के लिए, उसे वहीं छोड़कर भीतर आती है, फूल के बिना गुलाब की टहनियाँ हैं, कांटों से बचाने के लिए वह केवल पत्तियाँ तोड़ती है कि बाहर से किसी महिला के रोने की आवाज आती है, मेरा बच्चा पानी में डूब रहा है, उसे बचाओ, फिर आवाज आती है, डूब गया. वह घर के भीतर से ही समझ रही है कि महिला उसके घर की तरफ हिकारत भरी नजर से देख रही है, तभी नींद खुल जाती है. यह दुःस्वप्न अवश्य ही आत्मा ने जगाने के लिए गढ़ा होगा. आत्मा कितनी विचित्र है, कितनी मनमोहिनी ! सुबह वह स्कूल गयी थी, बच्चों व अध्यापिकाओं के साथ ध्यान किया. दोपहर को काफी दिन बाद ब्लॉग पर लिखा. इस समय रात्रि के दस बजने को हैं. पूरे गर्जन-तर्जन के साथ बाहर वर्षा हो रही है. शाम को देर तक मालिन ने बगीचे में पानी डाला था, और अब बादल भेज रहे हैं. मालिन का बेटा जो कल अस्पताल में भर्ती था आज खेल रहा था. जून कल देहली गये हैं, परसों लौटेंगे. देहली का मकान अगले महीने बिक जायेगा. सप्ताहांत में उन्हें बंगलूरू जाना है.

पौने छह बजे हैं शाम के, कुछ देर में योग कक्षा आरम्भ होगी और एक घंटा कैसे बीत जायेगा पता ही नहीं चलेगा. सुबह एक स्वप्न देख रही थी कि मध्य में ही नींद खुल गयी, कोई कह रहा था, यह तो स्वप्न है, कितना आनंद आया. ऐसे ही एक दिन नींद में भी पता चल जायेगा कि यह तो नींद है और तब स्वप्न आने ही समाप्त हो जायेंगे. दिवास्वप्न तो अब बहुत कम हो गये हैं, हर पल भीतर जागरण की एक धारा बहती रहे, यह प्रयास रहता है. आज क्लब की एक डाक्टर सदस्या से मिलने उनके घर गयी, अगले महीने वह सदा के लिए यहाँ से जा रही हैं. उन्होंने बताया, डिब्रूगढ़ में जन्मी थीं. वे लोग चार भाई तथा तीन बहने हैं, सभी पढ़े-लिखे तथा उच्च पदों पर हैं. पिता चाय बागान में फैक्ट्री प्रमुख थे. उन्होंने आसाम मेडिकल कालेज से डाक्टरी की पढ़ाई की, फिर एपीएससी की परीक्षा पास करके सरकारी नौकरी में आ गयीं. वर्तमान में वह तिनसुकिया में स्वास्थ्य विभाग में डिस्ट्रिक्ट प्रमुख हैं. स्कूल के समय से ही उन्हें पेन फ्रेंड बनाने का शौक था, पतिदेव पहले पेन फ्रेंड बने, फिर फ्रेंड और अंत में हसबेंड. अब वे समाजसेवा से जुड़ना चाहती हैं. चाय बागान के मजदूरों काम लिए कुछ काम करना चाहती हैं. उसने इन सभी बातों का जिक्र करते हुए उनके लिए एक कविता लिखी, ताकि क्लब की अन्य सदस्याओं को भी उनके कर्मशील जीवन के बारे में जानकारी हो. समाज को ऐसी महिलाओं की बहुत आवश्यकता है.

Monday, May 14, 2018

मन की बात



प्रधानमन्त्री का कार्यक्रम ‘मन की बात’ वे सुबह नहीं सुन सके सो शाम को यू ट्यूब पर सुन रहे हैं. तीस जनवरी को ठीक साढ़े ग्यारह बजे सारे भारतवासी एक साथ दो मिनट का मौन रखें तो कितना अच्छा हो, प्रधानमन्त्री यह कह रहे हैं. वह खादी की तारीफ भी कर रहे हैं. उसने सोचा वे भी वस्त्रों की अगली खरीदारी के समय खादी को ही महत्व देगी. उन्होंने सूर्य ऊर्जा से चलने वाले चरखे का भी जिक्र किया, उसे बचपन में छठी कक्षा में चलायी तकली और रुई की पतली-पतली पूनियां याद हो आईं, कितनी कोमल होती थीं वे श्वेत पूनियां. आतंकवादियों के भय के बावजूद देश में गणतन्त्र दिवस भव्य तरीके से मनाया गया. हरियाणा में ‘बेटी बचाओ’ कार्यक्रम की सफलता का जिक्र भी वह कर रहे हैं. किसानों के लिए फसल बमा योजना पर वे देशवासियों की मदद चाहते हैं, वे चाहते हैं, किसानों तक यह बात पहुँचे. उन्होंने एक मोबाईल नम्बर दिया जिस पर मिस कॉल करके वे ‘मन की बात’ कभी भी सुन सकते हैं. स्टार्ट अप के इवेंट की बात की, सिक्किम के ऑर्गेनिक स्टेट होने की बात कही, पशु आहार की उत्तमता की बात और स्वच्छता की बात जो उनका प्रिय विषय है. कई शहरों में रेलवे स्टेशन सुंदर बन रहे हैं. उन पर परंपरागत कला का अंकन किया जा रहा है. अगले महीने विशाखापत्तनम में दुनिया भर के नौसेना के युद्धपोत अभ्यास के लिए एकत्र हो रहे हैं. गोहाटी में सार्क देशों के खेलों का आयोजन हो रहा है. विद्यार्थी चिंतामुक्त होकर कैसे परीक्षाएं दे सकें इसका जिक्र भी उन्होंने किया, कुल मिलाकर सभी मुख्य मुद्दों को उन्होंने छुआ है. उनकी जोश से भरी बातें सुनकर मन देश के भविष्य प्रति आशावान हो जाता है और प्रेम से भरने लगता है.  
नये वर्ष के दूसरे माह का प्रथम दिन ! मौसम ठंडा है, बादलों भरा ! सुबह टहलने गये तो सड़कें भीगी थीं और स्वच्छ लग रही थीं. बहुत दिनों बाद गुरूजी को टीवी पर सुना. साधना टीवी पर सात बजे उनका प्रवचन आता है, सोचा, अब नियमित सुनेगी. ज्ञान का कोई अंत नही, और जैसे रोज ही घर को साफ करते हैं, स्नान करते हैं, वैसे ही रोज सत्संग के द्वारा मन को भी स्वच्छ करना होता है. तीस दिनों का प्रोजेक्ट पूरा हो गया है जो युनिवर्स संस्था ने ऑन लाइन शुरू किया था, किन्तु उसे हर महीने पुनः दोहराना होगा. नये विचार और नई कल्पनाओं का सृजन तो निरंतर होने वाली घटना है. कल बड़ी भांजी का जन्मदिन है, उसके लिए कविता लिखनी है, परसों एक सखी की बिटिया का और इसी माह छोटे भांजे का भी, जिसका हाल ही में विवाह हुआ है, उसके लिए भी कुछ लिखना होगा. लेडीज क्लब की तीन सदस्याएं इसी माह जा रही हैं, सबके लिए विदाई कविता. मृणाल ज्योति के लिए एक लेख लिखने का भी आरम्भ करना है. आज से ‘योग वशिष्ठ’ पढ़ना भी शुरू किया है.
सुबह के नौ बजने वाले हैं. वह धूप में बैठी है, मौसम बदलते यहाँ देर नहीं लगती. मन उत्साह से भरा है और परमात्मा के प्रेम से ! उसके प्रति कृतज्ञता के भाव उमड़ते हैं, जो शब्दों में नहीं समाते. गुरूजी को आज भी सुना, हो सकता है वे विश्व सांस्कृतिक सम्मेलन के लिए मार्च में देहली भी जाएँ, उसने जून से नहीं कहा, उन्होंने स्वयं ही कहा. सुबह नींद देर से खुली, मन अपने पुराने स्वभाव के अनुसार स्वप्न बुन रहा था. कल शाम को वह बंगाली सखी से मिलने गयी, उसकी माँ यहाँ आयी हुई हैं, बहुत खुश हुईं. उनके लिए भी कुछ लिखेगी. इस महीने क्लब की कमेटी की मीटिंग उनके यहाँ है, एक अन्य सदस्या भी सहायता करेगी. उसने सोचा उससे मिलकर मेनू तय करने के बाद खरीदारी के लिए सामानों की सूची बना लेगी. आज शाम को नन्हे के एक मित्र के विवाह की रिसेप्शन पार्टी में जाना है.
कल शाम को लौटने में देर हुई, भोजन भी काफी गरिष्ठ था. बाजार जाकर खरीदारी की, परसों ही मीटिंग है. कुछ काम कल ही कर लेना होगा. सभी को संदेश भी भेजना है, सभी के लिए नये वर्ष के कार्ड्स पर नाम भी लिखे, अभी इतनी देर नहीं हुई है कि नये वर्ष के कार्ड्स न दिए जा सकें. दोपहर के दो बजने को हैं. आज सुबह से सफाई का कार्य भी चल रहा है. घर की तरफ कुछ दिन भी ध्यान न दिया जाये तो कैसा अस्त-व्यस्त हो जाता है. कल की मीटिंग के लिए ही है यह सब, इसी बहाने स्टोर और रसोईघर भी अच्छी तरह साफ हो गये. पिछले एक हफ्ते से उसने चाय पीनी बंद की है, पर कुछ भी अंतर महसूस न्ह्यीं हो रहा है. शायद इतनी जल्दी पता नहीं चलेगा, किसी भी बात का असर देखना हो तो कम से कम तीन माह का समय देना ही चाहिए. एक दिन नेट पर चाय के फायदों के बारे में पढ़ा था, फिर हानियों के बारे में भी. आत्मा को तो इसकी कतई आवश्यकता नहीं है. भौतिक वस्तु की पहुँच भौतिक तक ही होती है.

Saturday, May 12, 2018

बहते हुए कमल



आज सुबह आत्मभाव में रहने का अनुभव कितना प्रबल था, देह स्वयं की अनुमति के बिना हिल नहीं सकती, बिलकुल जड़ हो गया था शरीर. भीतर से किसी के कहते ही उठकर बैठ गया. मन भी आत्मा के सम्मुख विवश है, वह लाख कहता रहे पर जब तक अन्तर्वासी हामी नहीं भरता, उसकी बात का क्या अर्थ है, तभी तो वे मन से जिन वायदों को करते हैं, उन्हें टूटने में देर नहीं लगती, क्योंकि किसी गहराई में वे स्वयं ही उन्हें पूरा करना नहीं चाहते. आत्मा तक पहुंच होगी तभी तो उसकी ‘हाँ’ या ‘न’ को समझ पाएंगे. ध्यान के सिवा आत्मा को जानने का कोई तरीका नहीं है.

कल रात को कितना सुंदर स्वप्न देखा. नदी किनारे कुछ ऊँचाई पर एक कच्ची-पक्की सड़क के किनारे उनका घर है. ऊपर से नदी दिखती है. पानी में हजारों की संख्या में लाल कमल बहे चले आ रहे हैं. कितने वास्तविक लग रहे थे. पर उसे विचार आया कि नदी के उस पार जाकर निकट से देखे, फिर फूल समाप्त हो गये. पानी बह रहा था और उसमें एक पतली सी नौका थी, जिसके द्वारा नदी को पार किया जा सकता था. तभी अचानक स्वप्न बदल गया. अब एक वाहन में बैठकर वह सड़क के अंत तक जाती है. वापसी में एक बहुत बड़ा सा शेर पानी से निकल कर सड़क किनारे स्थित पर्वत पर चढ़ जाता है. ड्राइवर भी भयभीत है. शेर बोनट पर आकर खिड़की से सिर अंदर कर लेता है, मृत्यु निकट है पर अचानक वह शेर शांत हो जाता है, वे उसके पंजे बाँध देते हैं और वह उसका चेहरा सहलाती है. वह मित्र बन गया है. कितना अद्भुत था यह स्वप्न ! सुबह नींद भी समय से खुल गयी. क्लब के आयोजन का प्रबंध कार्य ठीक चल रहा है, यकीनन इस बार का कार्यक्रम पहले से अच्छा होगा. परसों पूरा दिन उसी को समर्पित होगा. इस डायरी के पन्ने पर नीचे लिखा वाक्य कितना सुंदर है, उसने सोचा फेसबुक पर उसे पोस्ट करेगी.

We find comfort among those who agree with us, growth among those who don’t.
By Frank A.Clark

कल रात्रि कोई स्वप्न नहीं देखा. आज पढ़ा व कल सुना था कि बायीं करवट लेकर सोना बहुत फायदेमंद है. आज से वही करेगी. मन को व्यर्थ के संकल्पों से बचाना है, जो कुछ बाहर दिखाई दे रहा है, अथवा जिसके बारे में मन सोच रहा है, वह सब प्रतिपल बदल रहा है. भीतर मन की गहराई में जो एक रस, स्थिर, अडोल सत्ता है, वही सदा एक है, उसी में टिकना है, वह ऊर्जा का स्रोत है. मन के व्यर्थ विचार उसे व्यर्थ बहाना है. वही ऊर्जा कविता बन सकती है, प्रेम, ज्ञान और शांति बन सकती है. वही उर्जा संसार के हित में कुछ करने की शक्ति बन सकती है. कल नैनी के पुत्र के अन्नप्राशन में गयी. उसे अच्छी तरह पाल रहे हैं ऐसा लगा, काफी चुस्त है और ठीक बढ़ रहा है. आज माली ने एक नई क्यारी खोदी, उनके सुंदर बगीचे में एक और कदम ! आज धूप में बैठने का भी मुहूर्त निकला है, अंदर काफी ठंड है, यहाँ धूप में कितनी राहत है. पड़ोस के घर में मजदूर काम कर रहे हैं, नये पड़ोसी आने में अभी समय लगेगा. आज एक पाकिस्तानी गीत देखा, सुना, जो उन बच्चों की याद में बना है जिन्हें आतंकवादियों ने स्कूल में ही मार दिया था. आतंकवादी निरीह बच्चों तक को नहीं छोड़ते. समाचारों में सुना एक नया वायरस निकला है जो कई देशों में तबाही मचा रहा है, जिसका इलाज अभी खोजा नहीं गया है, लेकिन यह वायरस आया कहाँ से ?

आज का सारा दिन क्लब में गुजरा. सुबह सामान्य थी, वे प्रातः भ्रमण के लिए गये. तत्पश्चात तैयार हो ही रही थी की एक सखी का फोन आया. वह बुला रही थी. दोपहर को जून के साथ ही लंच के लिए लौटी और उन्होंने ही वापस जाते समय छोड़ दिया. शाम को फिर एक बार घर आई नाश्ते के लिए और उसके बाद रात्रि साढ़े आठ बजे. गोहाटी, जोरहाट, तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, मार्गरेट तथा स्थानीय आस-पास के कितने ही डिजाइनर और वस्त्र विक्रेताओं ने अपने स्टाल लगाये थे. इसी तरह का आयोजन दो माह बाद एक बार और करना है. जून ने कहा, वह उस दिन कहीं घूमने चले जायेंगे, सम्भवतः दिन भर अकेले रहना उन्हें खल गया है. हो सकता है उनका कोई टूर अपने आप ही तभी निकल आये.   


Thursday, May 3, 2018

दिव्यांगोंं का समाधान



सुबह चार बजे नींद खुल गयी, कुछ देर यूँही बैठी रही, सुबह का वक्त कितना पावन लगता है, गुरुजी कहते हैं, देवता भ्रमण करते हैं उस वक्त, किसी ध्यानस्थ को देखते ही उसकी सहायता करने आ जाते हैं, सो अव्यक्त का चिन्तन किया कुछ पल, भीतर एक शून्य है, जहाँ जाते ही शब्द छूट जाते हैं. टहलने गये तो कोहरा घना था. दस बजे हैं सुबह के, अभी यात्रा पर निकलने में दो घंटे शेष हैं, अभी-अभी स्मरण हो आया क्यों न नन्हे के मित्र यानि दूल्हे के लिए एक कविता लिखे. उसके जन्म से पूर्व से नाता है उससे, नन्हा सा था कुछ ही दिनों का जब नन्हे का जन्म हुआ, साथ-साथ बड़े हुए, कुछ वर्षों के लिए स्कूल अलग थे फिर पांच वर्षों तक दोनों एक ही स्कूल में पढ़े. कितनी पार्टियाँ कितनी पिकनिक एक साथ मनायीं. आज उसके जीवन का विशेष दिन आया है. उसने झटपट कुछ पंक्तियाँ लिखीं, जून को मेल कर दीं, ताकि आते समय वह प्रिंट ले आयें.

आज चार दिन बाद कलम उठाया है. मंगल को वे कोलकाता गये थे, बृहस्पतिवार को विवाह था, शुक्र को वापस लौटे. अगले दिन यानि कल शनिवार को बंगाली सखी की बिटिया और दामाद को घर पर बुलाया. कल ही मृणाल ज्योति का एक कार्यक्रम था. ‘उत्तर-पूर्व पेरेंट मीट’, कई लोगों से मिलने का अवसर मिला. विशेष बच्चों के लिए काम करने वाली दो महिलाएं उनके घर पर रहीं. बाहर से आये ‘परिवार’ संस्था के लोगों ने कई उपयोगी जानकारियां उन्हें दीं, सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली घरौंदा स्कीम तथा स्किल इण्डिया के बारे में भी. दिव्यांग बच्चों के माता-पिताओं को एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी होगी, तभी कुछ सम्भव होगा. कुछ बच्चों व माताओं से भी बात हुई. उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वे उसकी कल्पना से बाहर हैं. किन्तु यदि समाज का सहयोग मिले तो उनकी जीवन यात्रा कुछ सरल हो जाती है. मृणाल ज्योति के संस्थापक संतुष्ट नजर आ रहे थे. सभी के सहयोग से उनका यह कार्यक्रम सफल रहा. अध्यापकों ने भी बहुत काम किया. आज रविवार है, जून आज मोरान गये थे, अभी कुछ देर पहले लौटे हैं. असमिया सखी का फोन आया, वे लोग विवाह के बाद घर पहुंच गये हैं. बेटा-बहू एक हफ्ते बाद लौटेंगे.  

सुबह के दस बजे ही बाहर तेज धूप है पर घर के भीतर एक स्वेटर पहनकर भी ठंड महसूस हो रही थी. रात को नींद में रजाई भी भारी लग रही थी और मन कल दोपहर में हुई घटनाओं को दोहरा रहा था. आज सुबह स्कूल का चिन्तन चल रहा था. जैसे हवा का काम है बहना और सूरज का काम है प्रकाश और ताप देना, वैसे ही मन का काम है विचार करना. विचारों की नदी के रुख को किधर मोड़ना है यह तो एक साधक के हाथ में होना ही चाहिए. मन जब तक समाधान नहीं पा लेता किसी समस्या का तब तक उधेड़बुन में लगा रहता है. कितना सुंदर शब्द है यह ‘उधेड़बुन’ स्वयं ही बन कर उधेड़ता है, स्वयं ही संकल्प जगाता है और विकल्प उठाता है. मन को जब तक नये-नये मार्गों पर नहीं ले जायेंगे तब तक वह उसी पुरानी चाल से चलता रहेगा. नयापन, नयी माटी, नई राहें पाकर मन की धारा सदा जीवंत बनी रहती है. उनके मस्तिष्क में अपार सम्भावनाएं हैं. नये-नये पथ बनाने होंगे इसे सदा सरस बनाये रखने के लिए ! आज छोटी बहन के विवाह की वर्षगांठ है और बड़े भांजे की बड़ी बिटिया का जन्मदिन. दोनों को शुभकामनायें भेजनी हैं.