Thursday, March 31, 2016

खोया हुआ सा कुछ - निदा फाजली


जब कोई मर्यादा को तोड़ देता है तब पतन निश्चित है. ज्ञान की अग्नि में मन रूपी सोने को उन्होंने तपाया है किन्तु ज्ञान की मर्यादा का भंग भी वे कर देते हैं. सत्य तो यह है कि स्वयं को मुक्त जानकर मर्यादा रखते ही नहीं, बड़ों के प्रति सम्मान भी एक मर्यादा है, वाणी की भी मर्यादा है. उनके भीतर की ग्रन्थियों को जो खोल दे वही तो मर्यादा है. मर्यादा भंग करते-करते वे इतने असंवेदनशील हो गये हैं कि जिनके प्रति व मर्यादाहीन हो रहे हैं उनकी भावनाओं का भी ध्यान उन्हें नहीं आता. आज जून दिल्ली गये हैं, दो दिन बाद आएंगे. उसे आराम से रामकथा सुनने का मौका मिला है. संत कह रहे हैं सोच को हृदय तक लाना आयास-प्रयास से नहीं होता, ज्ञान को प्रेम में बदलना सायास नहीं होता. हृदय में स्वतः आना ही ज्ञान की सफलता है. बुद्धि और हृदय जब एक हो जाते हैं तभी योग होता है. हृदयवान व्यक्ति जब बुद्धि के बहकावे में आ जाये तो घाटे का सौदा है पर बुद्धिमान व्यक्ति जब हृदय के क्षेत्र में आ जाये तो यह परमात्मा तक की यात्रा है. निरंतर उस तत्व से जुड़ जाना ही संतुष्टि है. ऐसा संतोष जब मिलता है तब सारी तृष्णायें छोटी हो जाती हैं. असंगता, समता, निरभिमानी होना, अक्षोभता तथा अनंतता ये सभी ज्ञान की मर्यादाएं हैं. प्रेम की प्रगाढ़ता में ये टूटती हैं पर तब ज्ञान सफल हो जाता है. प्रेमी असंग नहीं होता, वह समता भी नहीं रख पाता, विरह उसे सताता है. प्रेमी अभिमानी भी है, उसे प्रियतम का और अपने प्रेम का अभिमान है. हाँ, प्रेम भी अनंत होता है. इसलिए इसकी तो चिंता ही नहीं करनी चाहिए यदि वे सभी को प्रेम बांटते रहे तो उनके पास कम हो जायेगा और यदि कोई बदले में उन्हें प्रेम न दे तो वे खाली हो जायेंगे, बल्कि जब कोई किसी को प्रेम देगा तो वह अपने आप पुनः भर जायेगा. परमात्मा ही तो प्रेम है, वही तो आनन्द है, शांति है, तो जब कोई किसी को इनमें से कुछ भी देता है तत्क्षण वह जगह भर जाती है. आज पुस्तकालय में मीटिंग थी, मुख्य अतिथि को उसने आदरपूर्वक असमिया गमछा पहनाया. आज की कथा में यह शेर भी सुना था पता नहीं किसका लिखा है-
ये तुझसे किसने कहा कि दिल गम से तबाह नहीं
ये और बात है कि मेरे लब पे आह नहीं
एक मैं हूँ कि सरापा सवाल हूँ
एक तू है कि तुझे फुर्सते निगाह नहीं !

निदा फाजली की पुस्तक खोया हुआ सा कुछ उसने पढ़ी, कल से पढ़ रही है. एक आत्मकथात्मक उपन्यास भी पढ़ा था. हर लेखक/ कवि/ कलाकार के भीतर साझा दर्द होता है, साझी खुशियाँ होती हैं. प्रकृति के विभिन्न रूपों से प्रेम, ईश्वर की मौजूदगी का अहसास या तलाश और रिश्तों को गहराई से महसूसने की ताकत, भीतर उमड़ता ढेर सारा प्यार, जिसे बिखरने के लिए कोई रास्ता नहीं नजर आता. निदा फाजली से पाठक का एक रिश्ता बन जाता है, वह उसे अपना जैसा लगता है. उनके दोहे भी अच्छे लगे. सीधे-सादे शब्दों में दिल की बात, दिल की गहराई से निकली बात ही दिल को छू जाती है.

‘वो सूफी का कौल हो या पंडित का ज्ञान
जितनी बीते आप पर उतना ही सच जान

माटी से माटी मिले, खो के सभी निशान
किसमें कितना कौन है कैसे हो पहचान

युग-युग से हर बाग़ का ये ही एक उसूल
जिसको हँसना आ गया वो ही मिट्टी फूल

जीवन भर भटका किये खुली न मन की गाँठ
उसका रस्ता छोड़कर देखी उसकी बाट’

आज तीज है, सावन के शुक्ल पक्ष की तीज. उसने सुबह-सुबह मंझले व बड़े भाई तथा बड़ी बुआ से बात की. जून कहते हैं वह भावनाओं को ज्यादा महत्व देती है, बुद्धि को कम. भावना के साथ-साथ बुद्धि का होना भी कितना आवश्यक है, मात्र भावना के कारण वह कितनी बार मूर्ख बनी है. मुरारी बापू कहेंगे, कोई बात नहीं, मूर्ख बनी है न, किसी को बनाया तो नहीं. खैर, ओशो कहते हैं कि बेवकूफ ही परमात्मा के मार्ग पर चल सकते हैं, पर वह कहते हैं ऐसा बेवकूफ बुद्द्धि का अतिक्रमण कर जाता है, यहाँ तो बुद्धि के लाले पड़े हैं, लांघने की बात ही नहीं है. परमात्मा की कृपा तो हर क्षण बरस रही है, लूट मची है, इतनी ज्यादा है कि दोनों हाथों में नहीं समाती, अनवरत बरस रही है, लगातार उसकी कृपा हरेक पर बरस रही है. वे आँखें मूँदे बैठे रहें तो कोई क्या करे. वर्षा पुनः शुरू हो गयी है. दस बजे तक रुक जानी चाहिए. आज सुबह स्वीपर नहीं आया, अब आया है जो उसके ध्यान का समय है. दस बजे एक परिचिता के यहाँ जाना है, उसे समय दिया है. पूजा की छुट्टियों वे यात्रा पर जायेंगे. जून ने अभी से टिकटें कर दी हैं. उनके जीवन में पहले से कहीं अधिक क्रियाशीलता है, इसका पता कल बनाई लिस्ट देखकर लगता है. उसे भी अपनी ऊर्जा का पूरा उपयोग करना है. आजकल कितने अनोखे अनुभव होते हैं, जैसे वह है ही नहीं, बस वही है. उसके हाथों की जैसे कठपुतली है, वह जैसा कहे वैसा करती जाये. कितना असीम है वह और कैसे एक मानव के हृदय में समा जाता है. कितना असंग है पर लगता है उसका संग कभी छूटता ही नहीं ! वह जादूगर है !     


     

Wednesday, March 30, 2016

हंस का विवेक


आज वर्षा रुकी है पर मौसम सुहाना है. कल शाम को हुए सत्संग में उसने गाइडेड मैडिटेशन कराया. जब तक सोच-सोच कर बोल रही थी, अंग्रेजी थोड़ी अटपटी थी पर बाद में जब सहज होकर बोलने लगी तो अपने आप ही जैसे शब्द निकलते गये. कल हयूस्टन में लिखी डायरी पढ़ी, अच्छी रचना हो सकती है कितना कुछ लिखा हुआ है जो टाइप करना है. ईश्वर ने उसे शब्दों से प्रेम सिखाया है पर वह उस कला की उतनी कद्र नहीं कर रही, इच्छा शक्ति की कमी, आत्मविश्वास की कमी, प्रमाद तथा ऐसे ही किसी दुर्गुण के कारण ही तो, संकल्प करती है पर पूरे नहीं कर पाती. अज टीवी पर सुना, स्वामी रामदेव जी कह रहे थे वह कुत्ते की तरह होता है जो अपने संकल्पों का पालन नहीं करता. हंस की तरह उन्हें बनना है. हंस जो नीर-क्षीर का विवेक कर सकता है. अगले महीने रक्षाबन्धन का त्यौहार है. जून के हाथ राखियाँ भिजवा सकती है, पत्र लिखने होंगे. कल शाम एक नयी फिल्म देखी, ‘जाने तू या जाने ना’.

आज एकादशी है. गुरु माँ गा रही हैं. ‘करां सजदा ते सिर न उठावां कि दिल विच रब दिसदा’ जब बुद्ध को ज्ञान हुआ तो वृक्षों में असमय फूल आ गये, वे जो अपनी संवेदनशीलता खो चुके हैं, खिले हुए फूल भी नहीं देख पाते. उस पर राम कृपा हुई है तभी सत्संग में रूचि है. जून से इस विषय पर थोड़ी बातचीत भी हो गयी. वह इतने व्यस्त हैं अपने रोजमर्रा के जीवन में कि उससे निकालकर कुछ और सोचने की उनके पास फुर्सत ही नहीं है. आज वह छोटी बहन के लिए एक बहुत सुंदर कार्ड लाये. कल सभी को राखी के पत्र लिखे. इस समय दोपहर की कड़ी धूप है, पंखे की हवा पसीना सुखाने में असमर्थ है. सुबह सवा चार पर उठी, प्राणायाम आदि किया, ध्यान भी आज घटा. देह में पित्त का प्रकोप शायद बढ़ गया है. पीठ पर घमौरी निकल आयी है, वर्षों बाद ऐसा हुआ है शायद दशकों बाद, बचपन मे घमौरी से उसका चेहरा लाल हो जाता था. परमात्मा उसे किसी भी अनुभव से अछूता नहीं रखना चाहते. पहले दांत, फिर गला फिर पीठ और आगे जाने क्या-क्या, पर हर अनुभव कुछ न कुछ सिखा जाता है. संवेदनशील होना भी और नम्र होना भी. कल पुस्तकालय की मीटिंग हो गयी अब कला प्रतियोगिता अगले महीने होगी. दो बजने को हैं, उसे कई सारी कविताएँ टाइप करनी हैं.

वे सदा इस इंतजार में रहते हैं कि कब वे शाश्वत सुख पा सकते हैं, वे यदि विवेक का उपयोग करें तथा स्वयं को आत्मा जानें तो इसी क्षण उस परमात्मा को पा सकते हैं, क्यों कि वह उनका अपना आप है, वह कभी उनसे अलग ही नहीं हुआ, वह है तो वे हैं, वे ही नहीं सभी उसी से हैं. जड़-चेतन सब उसी की लीला है. अभी कुछ देर पूर्व एक औरत गोदी में छोटे बच्चे को लेकर आई. कहने लगी कि उस व्यक्ति ने उसे इन घरों से पैसे मांगने के लिए भेजा है. पति का परसों ब्रेन का आपरेशन होने वाला है, उसने जब कहा उनका नम्बर दो, फोन करके पता करेंगे तो उलटे पावों लौट गयी. लोभ की प्रवृत्ति उसके भीतर है, शायद इसी कारण मदद करने को तुरंत मन नहीं हुआ. गुरु माँ कहती हैं जो लोभी होगा उसे रोग होंगे ही. लेकिन यह लोभ नहीं है बल्कि सजगता है, खैर ! आज मौसम पुनः ठंडा है. कल शाम पांच बजे से रात दस बजे तक बिजली गायब थी, वे तारों की छाँव में बैठे थे, पहली बार उन्होंने रात का भोजन बाहर खाया. नैनी की नन्ही बेटी पढ़ने आई थी पर उसका मन पढ़ने में जरा भी नहीं लगता है, कुछ ही देर बाद उसकी बनी ड्राइंग लेकर घर चली गयी है. अगले महीने स्कूल खुलने पर ही शायद उसमें पढ़ाई के प्रति रूचि जगेगी.   

Monday, March 28, 2016

पूजा की तैयारी


आज वे गुरु पूजा का उत्सव मना रहे हैं, उसने स्वयं हॉल बुक किया, वहाँ चादरें व दरियाँ आदि छोड़कर आई. शाम को चार बजे फूल, अगरबत्ती तथा दीपदान आदि लेकर जाना है, गुरूजी की तस्वीर तथा माला भी. जून नारियल व अनार आदि फल ला रहे हैं. यह सारा सामान दोपहर बच्चों के पढ़ने आने से पहले ही एकत्र करना है. सारा प्रबंध ठीक होना चाहिए. आज सभी को गुरू पूर्णिमा का संदेश भी भेजा लेकिन मंझले भाई को छोड़कर किसी का जवाब नहीं आया है. मौसम आज गर्म है, शाम तक सम्भवतः ठीक हो जाये. रात को अजीब सा स्वप्न देखा, अपने किसी पिछले जन्म की बात थी. आज भी गुरूजी को सुना. वह कितनी सुंदर परिभाषा देते हैं मन की, मन यानि जो ‘मैं नहीं हूँ’. वे अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय तथा आनन्दमय कोष में रहने वाले जीव नहीं हैं. वास्तव में वे इन सबसे परे सत्यस्वरूप हैं. सद्गुरु उन्हें उनके उसी रूप का परिचय देते हैं. उन्हें कितना अपनापन, कितनी ख़ुशी और समझ देते हैं. बदले में वे उन्हें दे ही क्या सकते हैं. यदि कृतज्ञता देते भी हैं तो वह उनके स्वयं के लिए ही लाभप्रद है, प्रेम देते हैं तो वह भी उन्हें ही भरता है. अपने भीतर के सारे विकार, सारे दोष, सारी कमियां यदि वे उन्हें दे दें तो वे उन्हें भी भस्म कर देते हैं. सद्गुरू ऐसे होते हैं !
आज भी सुंदर वचन सुने थे. प्रेम ही वह सूत्र है जिसे पकड़कर वे ईश्वर तक पहुंच सकते हैं तभी वे जानते हैं कि वे अस्तित्त्व की उर्मियाँ हैं, इससे उनका कोई विरोध नहीं है. जब वे प्रेमपूर्ण हो जाते हैं तो ध्यान पूर्ण हो जाते हैं. जब आँख भर कर अपने को देखते हैं तो पाते हैं कि वे हैं ही नहीं. अपने को मिटाने पर अपने में ही यह पता चलता है कि वे नहीं हैं और वैसे ही उन्हें पता चलता है कि परमात्मा है. वे हैं यह सोचना ही आँखों पर पड़ा पर्दा है. ध्यान में वही मिटता है जो है ही नहीं. जो है वह कभी मिटता ही नहीं. जब तक मन अशांति से ऊबे नहीं तब तक झूठ-मूठ ही खुद को बनाये रखना चाहता है, अहंकार की यात्रा जब तक तृप्त नहीं होती तब तक ‘मैं’ नहीं मिटता !
आज सुबह सोमवार का सीडी लगाकर प्राणायाम किया. सुबह वे अस्पताल भी गये, सारे टेस्ट कराए. फ्राईब्राइड्स हैं तीन, पर छोटे हैं सो डाक्टर के अनुसार इसके कारण कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. आज वर्षा हो रही है मौसम ठंडा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी सारी समस्या उसके मन द्वारा ही बनाई गयी हो. वे अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं. खैर शाम तक पता चल जायेगा. हाथ-पैरों में जो हल्का-हल्का सा दर्द हो रहा है वह शरीर में हुए किसी इन्फेक्शन के कारण हो सकता है. जून उसका ध्यान रख रहे हैं. कल दोपहर उसकी नैनी की जेठानी ने आत्महत्या करने का प्रयास किया. वह शायद अपने पति को डराना चाहती थी पर हॉस्पिटल जाते-जाते रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी, तीन छोटी लडकियाँ हैं उसकी !
टीवी पर usa ओहियो में कही जा रही मुरारी बापू की कथा आ रही है. दोपहर को ‘साहित्य अमृत’ तथा ‘सरस्वती सुमन’ को पत्र लिखने हैं. जून का पायजामा सिलना है. आज भाव ध्यान किया, अद्भुत था जैसे कोई फिल्म चल रही हो, सुंदर दृश्य दिखे, पर जो देखने वाला है वही दृश्य है, जो दिखता है वह मन का प्रतिबिंब है. मन सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त हो, राग-द्वेष से मुक्त हो तथा प्रेम से भरा हो तो स्वस्थ रहा जा सकता है. मन में कोई वासना न हो, उसके मन में यह तीव्र वासना है कि शरीर स्वस्थ रहे, पर प्रारब्ध के अनुसार या प्रज्ञापराध के कारण फल तो मिलने ही वाला है !


Sunday, March 27, 2016

गुरु पूर्णिमा का उत्सव


लगता है इस बार ‘गुरु पूर्णिमा’ का उत्सव वे उस स्थान पर नहीं मना पाएंगे जहाँ वह बच्चों को योग सिखाने जाती है. एओल की टीचर ने अभी तक स्वीकृति के लिए फोन नहीं किया है. खैर, जो भी हो, वह लिख रही थी कि जून के दफ्तर के प्रमुख की पत्नी का फोन आया, वह अगले हफ्ते यूएस जा रही हैं अपने बड़े बेटे के पास जिसकी दूसरी सन्तान होने वाली है. भारतीय माता-पिता सहर्ष अपने बच्चों के बुलाने पर चले जाते हैं, पर अमेरिका में जन्मने वाले ये बच्चे भी क्या इसी तरह अपने माता-पिता पर भरोसा कर पाएंगे. आज धूप तेज निकली है, कल दिन भर वर्षा होती रही. उसके स्वास्थ्य में हल्का सुधार है, जून उसका बहुत ध्यान रख रहे हैं. लगता है एक चक्र पूरा हो गया है, अब से कुछ वर्ष पूर्व वह इसी तरह डायरी लिखती थी, जब वह अनुभव नहीं हुआ था. अपने स्वास्थ्य की बातें तथा इधर-उधर की बातें और उसके बाद से...संत वाणी तथा ज्ञान की गहन बातें ! अब भीतर तृप्ति है सो कुछ पाना शेष नहीं है, अपना पता चल गया है तो अपने दोष भी साफ नजर आते हैं. ईर्ष्या का आभास ध्यान के दौरान भी हुआ, अहंकार व क्रोध तो झलक ही जाते हैं पर उस वक्त भी यह अहसास रहता है कि वह ‘वह’ नहीं जो विकारों से ग्रस्त है, वह साक्षी आत्मा है. पीछे के बंगले के सर्वेंट क्वाटर से एक बच्चा आज पढ़ने आया है, ईश्वर ने उसे ऐसा जन्म दिया है कि उसके पढ़ने का कोई प्रबंध नहीं है. इस जगत में न जाने कितने अभागे ऐसे हैं जो अपने जीवन को अर्थ नहीं दे पाते, अपने ही कर्मों का फल वे भोगते हैं पर ऐसे कर्म जो उन्होंने अज्ञानावस्था में किये होते हैं. माया के अदृश्य फंदों में जकड़े ये मानव ये भी नहीं जानते कि ये कैद हैं, क्यों कैद हैं ये तो बाद की बात है. कल शाम छोटी बहन से बात की, वे लोग परसों वापस यूएई जा रहे हैं. चचेरा भाई वहां ठीक है. नन्हा अपने हॉस्टल पहुंच गया है, उसका खर्च बहुत बढ़ा हुआ है, जून कभी-कभी चिंतित होते हैं, पर उसे कुछ कहते नहीं, वह इतने समर्थ हैं कि सहर्ष सब कर रहे हैं.

कल शाम टीचर का प्रतीक्षित सकारात्मक फोन आया, अब उसे अपनी एक सखी के साथ मिलकर सारी व्यवस्था करनी है. कल शाम तथा रात सोते वक्त तक मन में वही विचार आ रहे थे. गुरूजी इतने सारे देशों में इतने सारे आयोजन कर लेते हैं. उनके पास अनंत शक्ति है, वह कितने सहज रहते हैं. परमात्मा न जाने कब से इतने सारे ब्रह्मांडों को चला रहा है और वह उनसे विलग है, जल में कमल की भांति ! वे एक छोटा सा घर भी ठीक से नहीं चला सकते. घर के दो चार लोगों को ही प्यार नहीं दे सकते. उन्हें भी अपनी ऊर्जा का प्रयोग करना है, गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाने का अर्थ है अपने भीतर की अपार सम्भावनाओं को उजागर करना ! उसे सद्गुरु से कितना कुछ मिला है, अपरिमित प्रसन्नता, अनंत ज्ञान तथा सेवा करने की प्रेरणा, सबसे बड़ी बात अपनी पहचान, आत्मसम्मान तथा आत्मविश्वास, ईश्वर की खोज करने की प्रेरणा तथा ऊर्जा ! गुरु का होना जीवन को खिला जाता है, उन्हें अपने होने का अर्थ मिलता है, अब इस गुरु पूर्णिमा को उन्हें सार्थक बनाना है, सफल करना है. आज से ही तैयारी शुरू कर दी है. मन को भी उच्च भावों में स्थित रखना है, देह से ऊपर, छोटे मन व तुच्छ बुद्धि से भी ऊपर..एक उदार चित्त के साथ इस पवित्र आयोजन को करना है. इस दिन वहां जो भी उपस्थित हो उसे गुरु की कृपा का अनुभव हो ऐसा वातावरण उन्हें बनाना है. सद्गुरु इस ईश्वर की कृपा रूप प्राप्त शरीर में सत्यता का बोध कराते हैं. अंतःकरण में व्याप्त चैतन्य तथा सर्वत्र व्याप्त चैतन्य एक ही है यह ज्ञान देते हैं. जो इन्द्रियों का रस, विचार का रस, भावना का रस, आनन्द का रस इन पंच शरीरों से लेता रहता है तो ऐसे ही शरीर उसे मिलते हैं पर जब गुरू साधक को इनसे पार ले जाता है तो वह शांतात्मा हो जाता है. 


Friday, March 18, 2016

पलटू साहिब की वाणी


आज बहुत दिनों बाद पूरी साधना की. स्वास्थ्य लौट रहा है. शनिवार है सो बच्चों की योग कक्षा में जाना था, गाड़ी को पौने नौ बजे बुलाया था पर देर से आई और पल भर के लिए उसका मन तथा वाणी रोष में आ गये,. सद्गुरू कहते हैं, सहज रहो और कभी-कभार यदि क्रोध आ जाये तो उस पर पश्चाताप न करो, खैर..वह क्षण भर में ही सहज हो गयी क्योंकि रोष का भागी बना ड्राइवर जिसका कोई दोष नहीं था. बच्चे काफी आये थे, लगभग तेतीस-चौंतीस बच्चे, तबला भी ले गयी थी, जिसे एक बच्चा ले गया जो बहुत सुर में गाता है. वस्तुएं भी अपना मालिक ढूँढ़ लेती हैं. हारमोनियम असमिया सखी के यहाँ है, उसकी बेटी सीख रही है, दोनों यहाँ पड़े-पड़े व्यर्थ हो रहे थे. इस समय दोपहर के तीन बजे हैं, माँ कोई दक्षिण भारतीय धार्मिक फिल्म देख रही हैं. कल जून वापस आ रहे हैं, नन्हा वापस अपने हॉस्टल जा रहा है. रात सद्वचन सुनते-सुनते सोयी तो नींद ठीक सुबह साढ़े चार बजे खुली, कोई स्वप्न भी नहीं, गहरी नींद. शुभ संकल्प मन को शांति से भर देते हैं, मन व्यर्थ ही सोचता रहे तो नींद में स्वप्न चलते हैं. दोपहर को पलटू महाराज के पदों की व्याख्या सुनी, एक में वह कहते हैं कि वसंत आ गया है और वह अभी तक सो रही है, कैसे बावरी हुई है, उसे इस बात की भी चिंता नहीं है कि कन्त अभी तक घर नहीं आए हैं. जीवन रूपी वसंत उन्हें परमात्मा ने सौंपा है पर वह स्वयं अभी दूर है, परमात्मा उन्हें इसीलिए तो दुनिया में भेजता है कि एक दिन वे उसे अपने दिल में बुलाएँ और उससे प्रेम का आदान-प्रदान करें !   

आज तो शरीर में एक और उपद्रव हो गया है, सिर के पिछले भाग में पीड़ा हो रही है, ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’. शायद किसी कर्म का उदय हुआ है. आज रामदेव जी साप्ताहिक योगचर्या के पहले भाग ‘सोमवार’ के अनुसार आसन किये. मन शांत है क्योंकि ज्ञान में स्थिर है ! पिछले दिनों क्रोध भी जगा, ईर्ष्या भी, जब तक अहंकार की ग्रन्थि नहीं खुलती, विकार बने ही रहेंगे. एक मूल कारण है अज्ञान, आत्मा का ज्ञान न होना ही वह अज्ञान है. कई बार लगा है कि बस सब जान लिया लेकिन मन व बुद्धि के स्तर पर जानना और है, उसे जीवन मे उतारना बिलकुल अलग है. अब भी कई बार दिन भर में मन में गलत भाव बनते हैं, भाव बिगड़ता है. जब आस-पास कोई न हो तब साधना में दृढ़ रहने में क्या दिक्कत है. जब लोगों से वास्ता पड़े उनके साथ संबंध बनें तभी परीक्षा होती है. पिछले कुछ दिनों से नैनी को सुबह हरिओम कहना भी छोड़ दिया है क्योंकि कोई लाभ नहीं लगा, ईश्वर का नाम लेने में भी मन लाभ सोचता है कैसा बनिया मन पाया है, खैर उसके पीछे दूसरा कारण भी था, उसे ही बंधन लगता था सो मुक्त कर दिया. सासु माँ के साथ संबंध गहरा नहीं है, वह ज्यादा निकटता नहीं चाहती, यह भी उतना बुरा नहीं है पर क्रोध का जगना दिखाता है कि उसके भीतर अहंकार की जड़ें कितनी गहरी हैं !



Thursday, March 17, 2016

स्वप्न में भूचाल


आज नन्हे का जन्मदिन है, सभी के फोन आये. दो दशक पूर्व आज ही के दिन वह उसकी कोख से जन्मा था, उसके जन्म से पूर्व जून और वह कितनी कल्पनाएँ किया करते थे तब वे आज से बिलकुल अलग थे, वक्त के साथ सब कुछ परिवर्तित होता ही है. वह छोटा था उस समय की कितनी बातें याद हैं पर उसे वर्तमान में जीना है, उसका आज देखना है. फोन किया तो उठ गया, आवाज उनींदी सी थी, आज की पीढ़ी को पता नहीं क्या हो गया है. तमस वातावरण में बढ़ रहा है तो लोगों की सोच भी बदल गयी है. मूल्य बदल रहे हैं. वह अपनी बात ही करे तो बेहतर होगा, अभी भी गले व नासिका में विकार है. कल रात कई दिनों बाद आम खाया, पर उससे बढ़ गया लगता है या जो भीतर था बाहर निकल रहा है. कल दोपहर को एक स्वप्न देखा, भूचाल आ रहा है, सब कुछ नष्ट होने वाला है, भीतर कौन है जो स्वप्न रचता है उन्हें जगाने के लिए वह कैसी-कैसी कल्पनाएँ करता है, उनका मन या बुद्धि या इनसे परे आत्मा ? रात भी सद्वचन सुनकर सोयी थी तो नींद में ध्यान का अनुभव हुआ. जून इतवार को आएंगे तब तक वह देर तक जग के पढ़ सकती है या कुछ लिख सकती है, सुन या देख सकती है अर्थात पूरी आजादी ! एक वक्त था जब वह उनके जाने पर आँसू बहाती थी. जीवन में सद्गुरू का पदार्पण जमीन-आसमान का फर्क ला देता है. आज शाम को सत्संग है. सुबह 9x पर सद्गुरू को सुना. ‘पतंजलि योग सूत्र’ पर बोलते हुए उन्होंने कहा, भीतर जोश व उत्साह की कमी ही मानसिक तनाव का कारण है. वे जड़ जैसे हो गये हैं, संबंधों में भी एक ढीलापन आ गया है. एक साधक को अपने भीतर की भावनाओं में सच्चाई व तीव्रता को महसूस करना आना चाहिए तभी वह उसके पार जा सकेगा !


आज भी गला पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, जून ने कहा, फोन पर उसकी आवाज भारी लग रही थी. प्रज्ञापराध ही उसकी इस हालत का कारण है. सुबह डायरी खोली थी कि ससुराल से पिताजी का फोन आ गया, वह उदास थे, वैसे तो इस दुनिया में कौन ऐसा है जो पूर्ण प्रसन्न हो, पर जब कोई फोन पर बात करते-करते ही रुआंसा हो जाये या बात न कर पाए तो बात कुछ गंभीर है, माँ ने पूछा तो उन्हें भी थोडा-बहुत बताया, तब से वह भी कुछ गम्भीर हो गयी हैं. आज धारावाहिक की जगह भगवान की चर्चा सुनती रहीं, जो दुःख ईश्वर की ओर ले जाये वह सार्थक है. इस समय मौसम बहुत अच्छा है, माली बगीचे में काम कर रहा है, माँ टहलने गयी हैं. उसे आत्मा ने दो बार सचेत किया, दोपहर को कुछ सुनते-सुनते सो गयी, ठीक एक बजे किसी ने जगाया, देखा तो बाहर उसका विद्यार्थी आ गया था. कल गैस पर खीर रखी थी, जलने से ठीक एक क्षण पहले किसी ने याद दिलाया, भीतर कोई है जो हर पल नजर रखे है. वह सुह्रद है, वही सत्मार्ग पर जाने की प्रेरणा देता है. वह सत् है चित् है और आनन्द स्वरूप है. उसके होते किसी बात का भय नहीं है. आज भी टीवी पर सत्संग सुना, एक से एक सुंदर विचार सुनने को मिलते हैं, हृदय श्रद्धा से झुक जाता है, संत उस दिव्य परमात्मा की साक्षी देते हैं. संतों का जीवन एक प्रमाण है पर लोग फिर भी नहीं देख पाते. ईश्वर की कृपा होती है तभी संत की वास्तविकता प्रकट होती है.

Saturday, March 5, 2016

काजीरंगा का सौन्दर्य


उसे कल रात अस्वस्थता की बेचैनी में भी भीतर सूर्योदय के दर्शन हुए, देह अस्वस्थ है पर भीतर की शांति वैसी ही है. पिछले चार-पांच दिनों से सर्दी-जुकाम ने अपना डेरा डाला हुआ है. उसके भीतर रोग-प्रतिरोधक क्षमता जैसे घटती जा रही है. फरवरी से यह सिलसिला शुरू हुआ है, उसकी लापरवाही का नतीजा ही है या किसी कर्म का फल है. इस समय सुबह के साढ़े आठ हुए हैं, बाहर तेज धूप है. कल जून दिल्ली जा रहे हैं, इतवार को लौटेंगे, इन पांच दिनों में उसे स्वयं को पूर्णतया स्वस्थ कर लेना है. इस वक्त आँखें भारी हो रही है, उनमें पानी भर गया है. भीतर जल तत्व की अधिकता हो जाने से ही जुकाम होता है. खैर, शरीर के रोग तो एक न एक दिन समाप्त हो ही जायेंगे, मृत्यु के साथ तो यह शरीर भी नष्ट हो जायेगा, लेकिन वह तब भी रहेगी एक नई  दुनिया में आँख खोलने के लिए. परमात्मा की रची यह सृष्टि कितनी अद्भुत है, वह स्वयं भी तो कितना अद्भुत है, वह हर क्षण उन पर नजर रखे हुए हैं, उनका एक भी कर्म, एक भी चेष्टा, एक भी विचार उससे छिपा नहीं है, जब भी वे असहज होते हैं समता खो देते हैं वह भीतर से चेताता है, बल्कि जब भी वे कुछ गलत करते हैं वही असहजता के रूप में उनके भीतर प्रकट होता है. जब वे अपने मूल स्वभाव में होते हैं, उसी में होते हैं. जब कभी मन उससे हट जाता है और वे कुछ और सोचने लगते हैं तो हाथ का काम भी ठीक नहीं होता, कान भी नहीं सुनते, उससे जुड़कर ही इन्द्रियां अपने-अपने काम ठीक से करती हैं. उसके पेट का घेरा भी बढ़ गया है, पिछले दो-ढाई महीने जिस तरह बीते उसमें यह होना ही था. कोई खुराक तो ज्यादा ले पर काम उतना ही करे तो नतीजा वही होगा जो उसके साथ हो रहा है, पहले अजीर्ण बाद में सर्दी-जुकाम ! प्रकृति अपना काम मुस्तैदी से करती है. देह को जो नहीं चाहिए उसे निकालने का मार्ग खोज लेती है, वे ही अज्ञानी की तरह व्यवहार करते हैं. डायरी लेखन भी नियमित नहीं हुआ, डायरी लिखते समय वे अपने करीब होते हैं, खुद की खबर मिल जाती है वरना दुनिया की खबरें एकत्र करते-करते अपना ही हाल बेहाल हो जाता है. लिखने का क्रम (कविताएँ) भी छूट सा गया है, मन कैसी विरक्ति में चला गया है, इस परिवर्तनशील जगत का उसे कुछ भी नहीं भाता, लिखने की प्रेरणा अब मिली है. ‘साहित्य अमृत’ में उसकी कविताएँ छपी हैं, ‘काजीरंगा’ पर लिखी वे चार कविताएँ जो उसकी यथार्थ अनुभूतियों पर आधारित थीं. कविता जब जीकर उतरती है तभी सार्थक होती है. गढ़ी हुई कविता तुकबन्दी हो सकती है. अनुभूतियाँ तो अब भी होती हैं पर लिखने के लिए कलम नहीं उठती.

जून ने आज एक ऐसी खबर सुनाई जिससे मन में चचेरे भाई की चिंता होने लगी, वह युएई की उस फैक्ट्री में सही सलामत हो, वह अपने देश ही लौट आये तो अच्छा है. उसकी पत्नी भी वापस आ गयी है, उसे वहाँ का खाना अच्छा नहीं लगा. खाने की बात पर ही तो फैक्ट्री के मजदूरों ने हड़ताल की थी, गाड़ियों में आग लगा दी, लेकिन वे अरब जो पैसा कमाने के लिए ही फैक्ट्रियां चलते हैं, उन्हें यह कैसे बर्दाश्त होता. जून एक और खबर भी लाये हैं. प्रलय का दिन भी आने वाला है मात्र चार वर्ष और यह पृथ्वी रहेगी, ब्रह्मकुमारियाँ भी तो यही कहती हैं. दुनिया में ऐसी-ऐसी घटनाएँ हो रही हैं जो पहले नहीं होती थीं, कुछ हलचल तो है, दुःख-बीमारियाँ बढती जा रही हैं, पर ऐसे वातावरण में भी श्री श्री तथा रामदेव जैसे अनेकों संत हैं जो जन-जन को सद्मार्ग पर ला रहे हैं, आशा का संदेश दे रहे हैं यदि ऐसा कुछ होने वाला है तो उन्हें भी आभास होना चाहिए. परमात्मा जो भी करेंगे अच्छा ही होगा. यदि धरती न रही तो वे किसी और सौरमंडल के किसी अन्य ग्रह पर जन्म लेंगे. आत्मा तो अमर है, वह शाश्वत है, परमात्मा की लीला है कि यह ब्रह्मांड ऐसा है. अपने नियमों के अनुसार ही इसे रखने या नष्ट करने का उसे अधिकार है. उनके पास थोड़ा समय है उसको जानने का अवसर हाथ से न निकल जाये. कभी लगता है कि वह तो मिल ही गया है पर कभी अपने अज्ञान पर नजर जाती है तो लगता है अभी बहुत आगे जाना है.  

आज पुनः भीतर एक नयी सुबह हुई है, जून बाहर हैं उसके पास ढेर सारा अवकाश है. माँ हैं पर वह भी उसकी तरह मौन ही रहना ज्यादा पसंद करती हैं, कानों से सुनाई भी कम देता है. उसका स्वास्थ्य पहले से बेहतर है पर छाती में अभी भी कफ है, हल्का व सुपाच्य भोजन मानव की सबसे बड़ी आवश्यकता है, जून भी अब उसका ख्याल रखने लगे हैं फोन पर 9x की बात बताकर सद्गुरु का दर्शन कराया, वह तो सदा से ही ध्यान रखते आये हैं पर वह कभी-कभी उल्टा भी पड़ जाता है. 

Thursday, March 3, 2016

वसंत के फूल


हर रोज वह दो पेज ‘भागवत महापुराण’ तथा एक-दो पेज ‘महाभारत’ के पढ़कर सासु माँ को सुनाती है. कभी-कभी पढ़ते वक्त यदि मन किसी अन्य बात के बारे में सोचने लगता है जैसे कि नाश्ते में क्या बनाना है, तो मुख बोलता है, आँख्ने देखती हैं, कानों में शब्द भी पड़ते हैं, पर भीतर एक भी शब्द का ज्ञान नहीं पहुँचता, फिर सजग होकर पूरा वाक्य पुनः पढ़ती है. आत्मा यह खेल भी देखती है, बुद्धि उस वक्त भी है पर क्योंकि मन से जुड़ी नहीं है तो इन्द्रियों के कार्यों का उसे भान  नहीं होता. मन एक वक्त में एक ही बात का चिन्तन कर सकता है और वे उसे टुकड़ों में बांटना चाहते हैं. आत्मा ही पाँचों देहों को सत्ता स्फूर्ति देती है, वह सत्य है, उपासना के योग्य है, ‘मैं’ का मूल है, यहाँ मन की गति नहीं, वाणी, बुद्धि की ताकत नहीं, क्योंकि बुद्धि का आधार वही है. इसी महीने गुरुपूर्णिमा है, वे सभी मिलकर इस उत्सव को मनाएंगे. ईश्वर प्राप्ति ही मानव का ध्येय है, सद्गुरू उसी मार्ग पर ले जाते हैं. एक ब्रह्मज्ञानी करोड़ों को ऊंचा उठाने का सामर्थ्य रखते हैं, ऐसे ब्रह्मवेत्ता व्यास जी की स्मृति में व्यास पूर्णिमा मनायी जाती है. इसे देव पूर्णिमा भी कहते हैं. 

आज फिर उसने सुंदर वचन सुने, ईश्वर उनके भीतर है, जब वे तय करें उससे मिल सकते हैं. जीवन से भागना नहीं है, सारे अनुभवों से गुजर जाना मुक्ति का उपाय है. विचार की सीढियाँ चढ़कर ही कोई निर्विचार तक पहुंच सकता है. संसार एक चुनौती है, एक आयोजन है परमात्मा तक पहुंचने का. जीवन की पाठशाला मेनन उतर कर उत्तर स्वयं ही खोजने होंगे. जीवन उन्हें तीन सोपान देता है देह, मन तथा आत्मा, इनसे चढकर ही चौथे को पाया जा सकता है. जीवन के सभी रूप शुभ हैं, उन्हें सहज स्वीकारना होगा. जीवन में क्षुद्रताओं को उच्चताओं से लड़ाने जायेंगे तो उच्चता ही हारेगी.

यह जीवन तो वसंत है, सारा जगत उल्लास से भरा है और वे अब भी सो रहे हैं. एक बार यदि कोई जग जाये तो ऐसा वसंत जीवन में आ सकता है जो परम है. संसार की हर खोज व्यर्थ हो जाती है क्योंकि संसार वह दे ही नहीं सकता जो वे चाहते हैं, वे जिसे फूल बनकर चाहते हैं वह काँटा बनकर चुभने लगता है. उनका मन कहीं बैठना ही नहीं चाहता क्योंकि वह हर वक्त किसी न किसी की तलाश में रहता है. परमात्मा के बिना उसका ठौर नहीं, वह संसार में भी उसी को खोज रहा है, पर वह संसार के पार ही मिलता है. वे जिस प्रेम भरी नजर से इस जगत को देखते हैं उसी नजर को परमात्मा को देखने में लगाना है. उन के भीतर जो छोटा सा प्रेम का झरना है उसी को एक दिन सागर से मिलाना है. साधना में कुछ नया नहीं करना है, बस दिशा बदलनी है. हर कोई आनन्द पाना चाहता है, वह ठीक है, लेकिन जिस राह से चल कर पाना चाहता है वह राह गलत है. भक्त संसार के सौन्दर्य को भी परमात्मा का ही मानता है. उनका जीवन कब गुजर जायेगा पता ही नहीं चलेगा. वे अपने रूप की अकड़ में अपने असली स्वामी को रिझा ही नहीं रहे. उनके जीवन की एकमात्र सफलता इसी में है कि वे अपने भीतर के अमृत से जुड़ जाएँ. उनके चित्त का पंछी उसी अमृत का पान करना चाहता है, वे संसार में लगाने के लाख उपाय करें यह वहाँ नहीं लग सकता, यह तो शाश्वत को ही चाहेगा. जैसे-जैसे चित्त को लगता है वसंत बीता जा रहा है, उसकी अशांति बढती जाती है, उसकी बेचैनी का अर्थ है कि वह परमात्मा की ओर चलना चाहता है, वह अपने घर जाना चाहता है.

Wednesday, March 2, 2016

बगीचे में गुलाब या घास-पात


दो दिन की गर्मी के बाद आज पुनः वर्षा हो रही है. मौसम पूरे भारत में मेहरबान है. असम के कई गावों में बढ़ आ गयी है. उसका मन उन दुखी लोगों के पास भी जाता है जो बाढ़ से प्रभावित हैं. कल शाम वह पब्लिक लाइब्रेरी की मीटिंग में गयी. अगस्त की तीन तारीख को वे एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं. वे बच्चों में पुनः पढ़ने की आदत डालना चाहते हैं, कहानी की किताबें, कविता की किताबें, उपन्यास और भी किताबें..
आज उसने सुना. मीठे बच्चे, जब कोई गुस्सा करे तो उसमें भी दुआएं हैं, वह तो परवश है, पर आप तो शीतल जल डालने वाले बनो. गुलाब का फूल खाद से खुशबू लेता है. दूसरों से उन्हें क्या लेना है यह उन पर निर्भर है. कभी भी यह न सोचें की यह ठीक हो जाये तो वे भी ठीक हो जायें. वे सागर की लहरों को मन मुताबिक नहीं चला सकते तो संसार सागर को भी उसी नजर से देखना चाहिए. व्यक्ति बड़ा या परिस्थिति ?, स्वयं को बदले बिना विश्व परिवर्तन सम्भव नहीं है. ये सभी महावाक्य अनमोल ज्ञान हैं. बुद्धि शीघ्र नकारात्मक भाव में चली जाती है पर जैसे-जैसे उनके संस्कारों में परिवर्तन आने लगेगा वे सदा ही सकारात्मक भाव से बने रहेंगे. ज्ञान को जब वे प्रयोग में लाते हैं तभी वह उनका अपना ज्ञान होता है.
आज बहुत दिनों बाद दोपहर का यह वक्त वह इस ठंडे कमरे में बिता रही है. बाहर तेज धूप है. आज उनके दायीं ओर के पड़ोसी चले गये. कम्पनी से कई लोग जा रहे हैं. नये-नये आ रहे हैं, क्लब में कितने नये चेहरे दीखते हैं जिन्हें वे पहचानते नहीं, एक दिन उन्हें भी यहाँ से जाना होगा और एक दिन इस दुनिया से भी. रामदेव जी कहते हैं उनके लिए एक दिन एक जीवन जैसा है, जो काम एक आदमी एक जीवन में करना चाहता है वह एक दिन में करना चाहते हैं. उसका जीवन यूँ ही व्यर्थ जा रहा है, ऐसा उसे आज लग रहा है. बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं, कुछ पढ़ा भी नहीं, समय ऐसे ही बीतता रहा, व्यस्तताएं तो बहुत रहीं पर सार्थक कुछ नहीं. अब कुछ समय मिला है तो सोच-विचार कर अगले लक्ष्य का निर्धारण करना है. यह नया वर्ष भी आधा बीतने को है. नन्हे को अगले महीने जॉब के लिए इंटरव्यू में बैठना है. वह आज से पंजाब में अकेले है, अगले ग्यारह-बारह दिनों तक अकेले ही रहेगा. एकांत उन्हें अपने भीतर जाने को प्रेरित करता है. नया माली छुट्टी पर गया है, शाम को उसकी जगह दूसरा आयेगा. वे बगीचे में एक छोटा सा तालाब बनवा रहे हैं, कमल के फूल उगाने लिए. जीनिया के फूलों पर आजकल बहुत तितलियाँ मंडराती हैं, असमिया सखी की बेटी ने कहा है, उसे पेड़ों पर एक कविता दिखानी है, आज वही लिखेगी. किताबों पर कविता नहीं मिल पायी. सफदर हाशमी की वह कविता बहुत प्रभावशाली थी, एक दिन मिलेगी अवश्य. सद्गुरू को टीवी पर नहीं देख पाती पर वह सदा स्मृति में हैं.
बहुत दिनों बाद ओशो को सुनने का अवसर मिला. नाव मिली, केवट नहीं, कैसे उतरे पार ?, सद्गुरु के निकट गये बिना प्रेम किये बिना पर नहीं उतर सकते. जमीन तैयार होते ही बगीचा तैयार नहीं हो पता, गुलाब को तो लगाना पड़ेगा पर घास-पात अपने आप ही उग जायेगा. मन यदि संसार से दूर हो गया तो काम हो गया ऐसा नहीं है, उस मन में परमात्मा बसा या नहीं, असली बात तो यह है.
आज उसने फलाहार लिया है, पिछले दिनों गरिष्ठ भोजन खाया, आवश्यकता से अधिक भी. डायरी रूपी मित्र भी नियमित साथ नहीं था. पिछले दो-ढाई महीने जैसे एक स्वप्न में बीते से मालूम होते हैं. आज कई दिनों बाद नन्ही छात्रा पढ़ने आई है. दोपहर को लिखने का कार्य भी शुरू करना है. साधना में भी कमी आ गयी थी, ध्यान के समय को पूर्ववत् लाना है. कल रात नन्हे से उसके ब्लॉग के बारे में बात की. आज की पीढ़ी बौद्धिक रूप से बहुत आगे है. आज का युग ही मस्तिष्क का युग है, भावनाएं जैसे मृत हो जा रही हैं. पुरानी पीढ़ी भौंचक है, वह समझ नहीं पा रही है कि प्रेम व्यक्त करने में यह पीढ़ी इतनी कंजूस क्यों है. प्रेम, श्रद्धा, आदर, दया आदि शब्द जैसे उनके शब्दकोश में नहीं हैं.


हिना का रंग


आज सुबह अजीब सा स्वप्न देखा. एक नवजात शिशु का जन्म, जन्म देने वाली माँ को वह जानती है और वह बच्चा जन्मते ही कितना लम्बा था. स्वप्नों की दुनिया कितनी निराली है. देर तक वह स्वप्न चला. जन्म का रहस्य पता चल जाता है एक  बार सद्गुरू ने कहा था. सुबह अभी सवा सात ही बजे थे कि बातूनी सखी का फोन आया, उसने कुछ दिन पहले भी कहा था, मिलने आएगी. उसका गला बैठा हुआ था, उसकी कहानी सुनी जब उसके घर गयी. वह अपने ही मन, अपने व्यवहार, अपनी ही आदतों व अपने ही स्वभाव के कारण इतना दुःख पा रही है, वह इस बात को समझ नहीं पा रही है. नूना ने उसे समझाया तो है पर जब तक वह अपने को परिवर्तित करने की बात स्वयं नहीं सोचेगी, तब तक उसको ख़ुशी मिलना मुश्किल है. मन के हाथों या कहें माया के हाथों, अज्ञान के हाथों, अहंकार के हाथों मानव पिसा जाता है, पर उसे होश नहीं आता. मन, माया, अहंकार, अज्ञान यही तो उस आवरण का नाम है जो उसके और परम के बीच है. आत्मा, ब्रह्म, प्रेम, ज्ञान यही तो उस आनन्द स्वरूप के नाम हैं, जो सदा हाजिर है. परमात्मा उसके भी साथ है. इस समय दोपहर के सवा तीन बजे हैं. उसका पुत्र गणित पढ़ने आता है, इस समय परीक्षा दे रहा है. परिवार के दुःख की छाया उसके चेहरे पर भी झलक रही है. जून परसों मुम्बई जा रहे हैं.

कल ध्यान में उसे पल भर में परमात्मा के आनन्द का अनुभव करने की कुंजी हाथ लग गयी.  एक क्षण के शतांश में वहाँ पहुंचा जा सकता है. वह परम हर पल निमन्त्रण देता है. वह अपना घर है. उनके जन्मों से आहत हुआ मन का अपना घर..वहाँ जाकर मन जैसे खिल जाता है, तृप्त हो जाता है, खो जाता है, समाधि इसी को कहते हैं क्या ? जगती आँखों की समाधि ! बैंगलोर आश्रम में गुरूजी एडवांस कोर्स करा रहे हैं, वह उनकी कृपा का अनुभव यहाँ रहकर कर रही है. भीतर झींगुर की सी ध्वनि इस वक्त भी सुनाई दे रही है, कहाँ से आती है यह ध्वनि, कोई नहीं जानता. उस सखी का फोन आया, आज दिल्ली से आने वाले किसी मेहमान के लिए भोजन बना रही है, कल जो दुःख से दबी जा रही थी. ईश्वर सबको शक्ति देता है, वह उन्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ता. वे परमधाम न भी जा सकें वह तो उनके पास आ ही जाता है.
टीवी पर मुरारी बापू राम कथा कह रहे हैं. कितना रस है उनकी कथा में, शेरो-शायरी और पुराने फ़िल्मी गीतों का आध्यात्मिक अर्थ देते हैं.
‘पत्थर के सनम, पत्थर के खुदा ही पाए हैं
लोग शहरे मुहब्बत कहते हैं हम जान बचा के आये हैं’
‘इश्क का जहर पी लिया साकी
अब कौन मसीहा दवा करेगा’ !
‘चंद मासूमों का लहू है
लोग जिसे मुहब्बत की हिना कहते हैं’ !
इस बार उनकी कथा का विषय भगवान नागेश्वर हैं, अर्थात शिव. भगवान महादेव आदिदेव हैं. वही निराकार ब्रह्म हैं, अजन्मा हैं, उनके रूप की कल्पना कर ऋषियों ने जो छवि बनाई है उसका वर्णन हो रहा है. हजारों वर्षों से वह प्रतिमा लोगों के मनों में बसी है. उनका रंग, कुंद, इंद्र तथा शंख के समान श्वेत है, उनकी कृपा असीम है.


जून कल आ गये, वहीं से बड़ी ननद से मिलने भी गये, उसने ढेर सारा सामान भेजा है, कुछ जून ने खरीदा है, उनकी आलमारी का निचला हिस्सा भर गया है, फ्रिज भी भर गया है और तुर्रा यह कि उनका पाचन ठीक नहीं है. इतना गरिष्ठ भोजन खाकर कहीं उसका भी न हो जाये, इस बात का डर है. कल दोपहर बाद से समय कुछ अलग तरह से बीत रहा है. मौन रहने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. आज एक सखी का जन्मदिन है, शाम को वे जायेंगे. आज भी मौसम भीगा है, सुबह उठे तो मूसलाधार पानी बरस रहा था, अभी पुनः आरम्भ हो गयी है. कल डेंटिस्ट के पास गयी थी. उसने कहा, सुबह हो गयी है, सूरज बादलों के पीछे छिपा है. मौसम की उदासी देखकर मन भी जैसे उदास हो गया है. इस भाव के लिए कोई एक शब्द या कुछ शब्द लिखें. उसका मन भी सम्भवतः इस वक्त उदास है, नन्ही छात्रा उसकी एक भी बात नहीं सुन रही है. बच्चों को पढ़ाना इतना सरल भी नहीं है, वे उनके धैर्य की पूरी परीक्षा लेते हैं.