Tuesday, May 31, 2011

साथ-साथ


पिछले तीन दिन तक उसने डायरी नहीं लिखी, शनिवार और इतवार को तो वे हर पल साथ होते है ऐसे किसी काम के लिये वक्त निकाल पाना मुश्किल है जिसे दोनों एक साथ न कर सकते हों. शनिवार को वे दूर तक घूमने गये, बहुत अच्छा लगा पर यदि वह अपने परिवार जनों के साथ होती तो कुछ दूर तक कच्ची सड़क पर भी जरूर जाती. कितने दिन हो गए हैं मुक्त भाव से खुली हवा में घूमे हुए, वह शामें जब वह बड़े से मैदान में अस्त होते हुए सूर्य व बादलों के बदलते हुए रंगों को देखा करती थी. पूजा की छुट्टियों में जब वे घर जायेंगे तब शायद वह कुछ देर के लिये वहाँ जा सके. परसों उससे एक कप टूट गया और वह जो पहले से ही उदास थी और उदास हो गयी, पर ऐसे वक्त उसने नूना को संभाला, उसको सचमुच कई बार सम्भालना पड़ता है, कई बार तो समझ ही नहीं आता वह इतना धैर्य कहाँ से लाता है.

जब नूना एक पुस्तक पढ़ रही थी कि लिखने का ख्याल आया, यह पुस्तक एक आत्मकथा है world within world . कुछ देर पूर्व वह आया था, सिर्फ यह बताने कि आज  घर आने में थोड़ी देर हो जायेगी, यद्यपि कहा यही कि वह उसे हॉस्पिटल ले जाने भी आया था. उसे चिंता थी कि देर हो जाने पर नूना को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. पिछले इतवार उसने पहली बार टेबिल टेनिस खेला और इस शहर में पहली हिंदी फिल्म साथ-साथ देखी. कल की शाम उसने रुबिक क्यूब को बनाने के प्रयत्न में बितायी. वे मित्रों की तरह रहते हैं पर अब वह सोचती है, उन्हें सिर्फ अपने बारे में सोचना छोड़ कर औरों के बारे में और बातों के बारे में भी सोचना चाहिए.
 क्रमशः

Monday, May 30, 2011

यादें और सपने


आज के दिन एक महीना पूर्व वे विवाह बंधन में बंधे थे, कितने वर्षों की अद्भुत प्रतीक्षा के बाद तो आया था यह दिन, अद्भुत इसलिए कि उन्होंने खुशी-खुशी बिताए थे ये वर्ष एक दूसरे की याद के सहारे, खतों के सहारे. आज वे सब कल की बातें लगती हैं. नूना को तो लगता है कि वे कब से यूँ ही एक साथ जिए चले जा रहे हैं. आज संभवतः घर से कोई खत भी आयेगा, आज ही के दिन वह उन सबको छोड़कर इस नए संसार में आयी थी, कितनी मधुर यादें हैं इस दिन की आँखें बंद करे तो... पर अभी वक्त नहीं है सपने देखने का... सपने तो वे साथ बैठकर देखेंगे ..अपने भविष्य के सुंदर सपने !

दोपहर के दो बजे हैं, मौसम ठंडा है. लगभग रोज ही ऐसा होता है. बादल बने ही रहते हैं, कभी बरस जाते हैं कभी यूँ ही चहलकदमी करते हैं और ताका करते हैं धरती को. पंछियों की आवाजों के अतिरिक्त कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही, हाँ एक आवाज आ रही है फ्रिज की आवाज. कपड़े कब तक सूखेंगे पता नहीं शायद कल धूप निकल आये. ‘चिनार’ यह पुस्तक कल पढ़नी शुरू की थी, रात को तो कुछ पढ़ पाना संभव नहीं है, दोपहर का यही वक्त होता है. आज सुबह उसके जाने के बाद वह लेट गयी, सोचा पांच मिनट में उठती है पर नींद खुली महरी के आने के बाद, इतनी गहरी नींद आती है आजकल और सपनों में रोज ही सबको देखती है, मम्मी-पापा और छोटी बहन, जैसे तब इनको देखा करती थी. 
क्रमशः

Saturday, May 28, 2011

पहला महीना



पिछले माह यह सुंदर डायरी जून ने नूना को दी थी कि वह अपने अनुभवों को लिपिबद्ध कर सके, पर यह हो न सका, वह नहीं जानता कि शब्द नहीं मिलेंगे उन भावों को व्यक्त करने के लिये जो पिछले दिनों उसके साथ रहकर नूना के मन में उमड़ते रहे हैं. आज भी कितनी जल्दी उनकी नींद खुल गयी थी, लगभग रोज ही ऐसा होता है और एक के जगने पर दूसरा अपने आप उठ जाता है, जीना इतना सरल है यह आज के पहले वह नहीं जानती थी. अपने घर की जैसी कल्पना उसने की थी यह वैसा ही सुंदर है.
अभी दस भी नहीं बजे हैं सुबह के, आज बारिश हो रही है. उसने सब काम जल्दी-जल्दी कर लिये हैं जिससे कुछ पढ़ने का या चिट्ठी लिखने का समय मिल जाये. उसके घर पर होने पर तो यह संभव ही नहीं हो पाता, बस मन होता है ढेर सारी बातें करते रहें या यूँ ही बैठे रहें पास-पास. कल रात को उस ने जून से कहा कि घूमने चलते हैं, पहले ही दिन कहा था, नियमित जायेंगे रात के खाने के बाद पर जनाब को तो ठंड लगने लगी, दिन पंख लगाकर उड़ रहे हैं. कल उनकी शादी को एक महीना हो जायेगा.
क्रमशः