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Monday, November 18, 2024

श्रमिक दिवस


श्रमिक दिवस 


आज मई दिवस है। पिछले वर्ष लिखी एक कविता फ़ेसबुक पर प्रकाशित की। शाम को पापाजी ने कहा, उन्होंने पढ़ी यह कविता और मज़दूर क्रांति की बात उन्हें याद आ गई। कार्ल मार्क्स को याद किया, जिसने कहा था, दुनिया के मज़दूरों एक हो जाओ। वार्तालाप में उन्होंने मज़दूरों के योगदान को सराहा, कि उनके बिना मानव के लिए निर्माण का कोई भी काम संभव नहीं है। कल जून के एक पुराने सहकर्मी के निधन का समाचार मिला, उन्हें कई वर्षों से किडनी का रोग था। जीवन और मृत्यु के आगे मानव का कोई ज़ोर नहीं चलता। चिकित्सा शास्त्र की इतनी प्रगति के बावजूद भी लोग असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं, तब भाग्य को मानने के अलावा कोई विकल्प नज़र नहीं आता।जीते जी कोई मृत्यु को प्राप्त न हो इतना तो उसके हाथ में है, यानी उसके उत्साह की, उसके प्रेम की और उसके आनंद की मृत्यु न हो ! जून के एक अन्य पुराने मित्र की पत्नी को कोरोना की वजह से शायद अस्पताल में जाना पड़ सकता है। नन्हे से बात हुई, अब वे लोग बेहतर हैं। उनके नीचे वाले फ़्लैट में एक वृद्धि व्यक्ति की मृत्यु  हो गई। दीदी ने फ़ोन पर बताया, उनकी पहचान की तीन महिलाएँ और एक पुरुष भी कोरोना की भेंट चढ़ गये हैं। नैनी ने बताया, सोसाइटी में कोरोना से एक व्यक्ति चला गया है, उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। अख़बार में पढ़ा, कितने ही बच्चों के दोनों माता-पिता में से एक की मृत्यु हो गई।न जाने कितने जीवन अभी काल के गाल में समाने वाले हैं। महामारी का यह भीषण रूप अति भयानक है। 


आज सुबह वह उठी तो मन शांत था, शायद रात्रि स्वप्न में कोई अनुभव घटा हो। जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरिया चारों का अनुभव मानव करता है।सुबह टहल कर आये तो दिन निकल आया था, आजकल सूर्य के दर्शन नहीं  हो रहे हैं, बदली बनी रहती है। प्राणायाम करते-करते कभी आँखें खोलकर देखें तो सामने बादलों से झांकता सूर्य दिखाई देता है पर झट ही छुप जाता है। सुबह पड़ोसन से बात हुई, उन्होंने भी कहा, सोसाइटी में दो व्यक्ति जा चुके हैं और ग्यारह घरों में मरीज़ हैं।शाम को पापाजी से बात हुई, वह आशा और विश्वास से भरे थे। उनका ज्ञान बहुत गहरा है, उन्हें अब मृत्यु से जरा भी भय नहीं है। ओशो की लाओत्से पर लिखी किताब वह कई बार पढ़ चुके हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी जीत गई है और वे बीजेपी कार्यकर्ताओं को हिंसा का शिकार बना रहे हैं। सत्ता परिवर्तन का एक अच्छा अवसर पाकर भी वहाँ की जनता ने मोदी जी को नकार दिया। शाम को जून के मित्र का फ़ोन आया।उसकी पत्नी जिसे कुक के कारण कोरोना हुआ, अब ठीक हो रही है, ऑक्सीजन लेवल ९० हो गया है। अस्पताल से लौटते समय वह उसे पार्क होटल में खाना खिलाने ले गये। उसे आश्चर्य हुआ, कोरोना मरीज़ होते हुए इस तरह होटल जाना ठीक तो नहीं है न, यदि बाद में जाँच हुई तो सजा भी हो सकती है।


आज का दिन भी कोरोना की खबरों के साथ शुरू हुआ। दोपहर को नन्हे ने बताया,  कर्नाटक में अगस्त तक तो हालात सुधरने वाले नहीं हैं। उसके बाद तीसरी लहर आने की आशंका भी है। शायद पूरे प्रदेश में कड़ा लॉक डाउन लगाना पड़ेगा।समाचारों में बिहार के अस्पताल की दुदशा देखकर मन को बहुत पीड़ा हुई। ८०० करोड़ का एक अस्पताल बिना किसी सुविधा के भगवान भरोसे चल रहा है। अस्पतालों में भ्रष्टाचार भी बहुत बढ़ रहा है।नन्हे ने कहा, सीटी स्कैन के लिए उन्हें प्रति व्यक्ति १२००० लगे जबकि रेट २५०० का है। आज सुबह उन्हें उठने में थोड़ी देर हुई, टहल कर आये तो छत पर धूप बढ़ गई थी। टीवी के सामने कार्पेट पर बैठकर मुरारी बापू को सुनाते हुए योगासन किए। उन्होंने श्री कृष्ण के जीवन के अंतिम दिनों के बारे में बताया। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की पत्नी लक्ष्मणा थी, जो दुर्योधन की पुत्री थी, यह जानकर भी आश्चर्य हुआ।आज ब्लॉग पर तीन पोस्ट प्रकाशित कीं, कोई सहृदय पाठक या पाठिका मिल जाये तो लिखना सफल हो जाता है। 


आज सुबह साढ़े तीन बजे अपने-आप ही नींद खुल गई थी। ध्यान करने बैठी, परमात्मा के सिवा कोई आश्रय नहीं है, यह तो सुना था पर आजकल तो यह बात शत-प्रतिशत सही सिद्ध हो रही है। जगत जिस तरह एक वायरस से जूझ रहा है, कहाँ, कौन संक्रमित होगा और उसकी जान को कितना ख़तरा होगा, कुछ भी कहा नहीं जा सकता। ऐसे में परमात्मा के नाम का स्मरण ही मन को मुक्त रखता है। शाम को पापा जी से बात हुई। वह ठीक हैं, कभी-कभी उम्र के तक़ाज़े के अनुसार उनका शरीर कमजोरी की शिकायत करता है, पर एक नियमित दिनचर्या हैं उनकी। हर दिन दो पेज लिखने का वर्षों का क्रम है, जिसे पूरा करते हैं। अख़बार पढ़ना, संगीत सुनना और आजकल मोबाइल पर वीडियो देखना। नन्हे का फ़ोन आया, उनके डॉक्टर्स दिन में दस हज़ार कॉल्स ले रहे हैं आजकल, वे लोग सभी तरह के डॉक्टर्स को कोरोना के बारे में सलाह देने को कह रहे हैं। आज बैंगलुरु में साढ़े तीन लाख सक्रिय मामले हैं, पूरे देश में ३६ लाख, यह आँकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना अधिक है। आज असमिया सखी का फ़ोन आया, अमेरिका में रहने वाली उसकी नन्ही पोती स्कूल जाने लगी है, कक्षा में चार ही विद्यार्थी हैं। कोरोना प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जाता है। पश्चिम बंगाल में हिंसा ख़त्म नहीं हो रही है। 

   


Friday, August 9, 2019

काले खट्टे शहतूत



रात्रि के पौने नौ बजे हैं. अभी-अभी जून से बात हुई. वह एयरपोर्ट से सीधे लाजपतनगर गये, सूखे मेवों की दुकान पर, जहाँ से वह पिछले अनेक वर्षों से खरीदारी करते हैं. बात चल रही थी कि कुछ गिरने की आवाज आई, पर सब तरफ देखा, कहीं भी कुछ दिखा नहीं, बाद में बाहर जाकर भी देखा, सब कुछ अपनी जगह व्यवस्थित था. जीवन एक रहस्य है, यह बात मन में कौंध गयी. पिता जी से भी बात हुई, दोपहर को पता चला था, उन्हें ज्वर है, इस समय ठीक थे. आज ही बड़ी बुआ जी से भी बात की, अस्वस्थ हैं, दर्द में थीं. अंत समय में कितना कष्ट होता है किसी-किसी को, और कोई सहज ही देह का त्याग कर देता है. आज दोपहर ब्लॉग पर मृत्यु के बारे में ही लिखा. एक न एक दिन तो देह की मृत्यु होनी ही है. कल सुबह मृणाल ज्योति के किसी काम से अकेले डिब्रूगढ़ जाना है. बहुत पहले सासु माँ जब अस्पताल में थी, कई बार जाया करती थी. दोपहर को बच्चों की संडे क्लास चल रही थी, उड़िया सखी का वीडियो कॉल आया, जो पहले हर इतवार को उसकी मदद किया करती थी, उसने बच्चों से कुछ सवाल पूछे. सभी को बहुत आनंद आया. आज भी पिछले कुछ दिनों की तरह 'मान्डूक्य उपनिषद' की व्याख्या सुनी. जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति से भी परे है तुरीया और इन सबमें  है एक ही आत्मा या ब्रह्म, ऊँ इन चारों का प्रतीक है. वैश्वानर, तैजस और प्राज्ञ इन तीन अवस्थाओं के प्रेरक हैं तथा इनका प्रेरक ब्रह्म ही है.  

जून से बात हुई, उन्हें गले में खराश व हरारत महसूस हो रही थी. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह शीघ्र स्वस्थ हो जाएँ. परमात्मा उन्हें शक्ति प्रदान करेंगे. वह सफर में हैं और घर का आराम उन्हें नहीं मिल पायेगा, अभी दो दिन और उन्हें बाहर रहना है. कल रात दो बजे उठना होगा, सुबह की फ्लाईट के लिए. दिन भर गोहाटी में भी व्यस्त रहना होगा. घर आकर ही उन्हें पूरा आराम मिलेगा. इतवार को उनका इंटरव्यू भी है. परमात्मा सदा उसके साथ है. वैश्वानर, तैजस और प्राज्ञ के रूप में वह हर घड़ी सबके साथ है. अभी-अभी टीवी पर समाचार देखे. अमिताभ बच्चन को भारी पोशाक की वजह से शरीर में दर्द हो गया था, डाक्टरों की टीम उन्हें देखने गयी. फुफेरे भाई से बात हुई, बुआ जी अस्पताल में हैं, उनेक पैर का आपरेशन हुआ है. दोपहर को उनकी कितनी बातें याद आ रही थीं. आज काश्मीर में गुरूजी के कार्यक्रम के बारे में वीडियो देखे. कोई-कोई मडिया कितनी गलतबयानी करता है. आज वह पूना में है. वह अपने आराम की परवाह किये बिना जगह-जगह घूमकर लोगों में प्रेम व शांति का संदेश दे रहे हैं. सुबह पाकिस्तान में योग के प्रति बढ़ते आकर्षण पर भी वीडियो देखा, गुरूजी को मानने वाले वह भी हैं. आज भागवद् में कृष्ण का ऊद्ध्व को दिया गया उपदेश भी पढ़ा जिसे बहुत सुंदर ढंग से लिखा गया है. टीवी पर रामदेव जी पर जो कार्यक्रम आ रहा है, उसमें रामकिशन का अभिनय करने वाला बालक बहुत अच्छा काम कर रहा है. बचपन से ही कितना संघर्ष किया है उन्होंने. गुरूकुल में रहकर पढ़ाई की, अपने आदर्शों पर डटे रहे. उनके गुरूजी का भी बहुत बड़ा योगदान है उनके जीवन को गढ़ने में. बालकृष्ण भी बहुत अच्छी तरह बात करता है. आज उम्मीद पर एक कविता लिखी, शायद ब्लॉग समूह पर पहुँच गयी हो.

आज योग कक्षा के बाद 'जल नेति' करना सिखाया, पर शायद ही किसी को इसे करने का उत्साह जगे, क्योंकि जब उसने जलनेति पात्र मंगाने के लिए कहा, तो किसी ने भी हामी नहीं भरी. आज गुरूजी के पुराने वीडियो देखे. नारद भक्ति सूत्र पर वे बोल रहे थे. उनके जीवन पर भी फिल्म बन सकती है. दोपहर को लेखन कार्य किया.

जून दोपहर को एक बजे के थोड़ा बाद ही आ गये थे. भोजन करके दो बजे पुनः चले गये, शाम को लौटे तो हल्की हरारत थी. शाम से ही उपचार आरम्भ कर दिया है. जल्दी ही वह ठीक हो जायेंगे. आज सत्संग पूरा होते ही वर्षा होने लगी, उन पांच साधिकाओं ने मिलकर परमात्मा के नाम का कीर्तन जो किया था. बगीचे में शहतूत लगे हैं आजकल. दिन में कई बार बच्चों की टोली उन्हें तोड़ने जाती है. अभी काफ़ी खट्टे हैं काले रंग के शहतूत. आज एक ब्लागर ने टोन-टोटके आदि के बारे में विचार पूछा. कल वाणी कजी का मेल आया था, ईबुक के बारे में. आज एक कविता लिखी जो ध्यान के अनोखे अनुभव के बाद हुई मस्ती से उत्पन्न हुई थी, कितना अनोखा था आज का अनुभव..अनूठा. ध्यान पर जितना कहा जाये कम है, ध्यान की महिमा अपार है. दीदी ने बड़े पुत्र तथा परिवार से वीडियो चैट करवाई, पता चला बुआ जी अब पहले से बेहतर हैं.


Thursday, November 16, 2017

कटहल का पेड़



ओशो ने कहा है, जीवन की तरह मृत्यु भी सीखने की बात है. मृत्यु जीवन के साथ जुड़ी है. उसका आगमन कभी भी हो सकता है. उसके लिए स्वयं को तैयार रखना होगा. शाम को वह पुनः गयी, लोगों की भीड़ लगी थी. महिला के माता-पिता व पुत्र सभी आ गये थे. सात बजे के लगभग मृतक की देह भी आ गयी, फिर कुछ कर्मकांड के बाद उन्हें ले गये. अगले दिन सुबह जब वहाँ गयी. दो-एक लोग ही थे, उसे नाश्ता खिलाया थोड़ा सा. उसका दुःख देखा नहीं जाता. उसने जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी वैसा उसके साथ घट गया है. जून आज नुमालीगढ़ गये हैं, कल शाम तक लौटेंगे. कल सम्भवतः ‘असम बंद’ है. फ्रिज ने फिर काम करना बंद कर दिया है.

व्यर्थ हैं ये अश्रु जो गम में बहते हैं
बेबस है आदमी ये इतना ही कहते हैं
रुदन यह तुम्हारा किसी काम का नहीं
लौट के न आये जो परलोक में रहते हैं

क्या मौत नहीं होती रिश्ते का खात्मा
दो दिन का ही संग साथ था यही मानना
जो उड़ गया वह पंछी परदेसी ही तो था
संयोग से मिला था, बिछड़ना था मानना

आज सुबह से वर्षा हो रही है. जून आठ बजे तक आने वाले हैं. शाम को लॉन में सूखे पत्तों और फूलों को हटाया. बच्चों को खेलते देखा. बच्चे कितने खुश रहते हैं, मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो, जैसे उसे मिल गया है भीतर एक खजाना ! शाम को टहलते समय छोटी बहन की भेजी तस्वीरें मिलीं, जो उसने उसी क्षण अपने बगीचे से भेजीं थीं, जवाब में उसने भी कटहल के वृक्ष की तस्वीर भेजी, कटहल अब बड़े हो गये हैं, उनमें से एक, एक दिन तोड़ेगी, कल ही वह दिन हो सकता है. फ्रिज तो ठीक नहीं हुआ है, सो सब्जी तो अभी लानी नहीं है. दोपहर को भोजन के बाद कुछ देर के विश्राम के लिए लेटी तो उसे जगाने के लिए एक स्वप्न आया, जिसमें वह मीठा आम खा रही है, नन्हा आम काट रहा  है, वह हँस भी रहा है. उसकी ख़ुशी से कैसे उनकी ख़ुशी जुड़ी है, शायद इसी तथ्य की ओर इशारा कर रहा था यह स्वप्न. मोह और ममता को स्पष्ट रूप से देखने की ताकीद भी कर रहा था. आनंददायक स्वप्न था पर सिखा रहा था कि जहाँ से ख़ुशी मिलती है, वहाँ से उतना ही दुःख मिल सकता है. उस महिला को इतना दुःख इसलिए ही तो हो रहा है कि उसने उतना ही आनन्द पाया था. हर सुख की कीमत चुकानी पड़ती है.


Thursday, November 9, 2017

जीनिया की पौध


आज सुबह भी प्रतिदिन की तरह थी. शीतल, शांत और बाद में वर्षा भी होने लगी. नर्सरी गयी थी, जीनिया की पौध नहीं मिली, शाम को फिर जाना है चार बजे. दोपहर को फिर भूचाल आया. नेपाल, भारत, अफगानिस्तान, चीन सभी जगह. गोहाटी और दिल्ली-देहरादून में भी पता चला, उन्हें यहाँ पर कोई अहसास नहीं हुआ. वे सोये थे उस वक्त. उसके पेट में हल्का सा दर्द था, बहुत दिनों से कुछ नया लिखा भी नहीं, बहुत सी भावनाएं ही शायद जमा हो गयी हों. नन्हे से सुबह बात हुई, वह एक नये संबंध में बंध रहा है. लडकी के पिता अन्य धर्म के हैं, जून को इस पर एतराज है, पर यह कोई मसला नहीं है. आजकल बच्चों के लिए रिश्ते बनाना और तोड़ना एक सामान्य सी बात है. नन्हे से बात हुई, उसने कहा, अगले महीने वह घर आएगा. जून भी परसों कह रहे थे, उससे मिलकर उसके भविष्य के बारे में बात करनी है, आखिर चेतना तो एक ही है, इधर की चाह उधर पहुँच ही जाती है, विचार सूक्ष्म होते हैं, अति शीघ्र यात्रा कर लेते हैं. सुबह जून से उनके नये प्रोजेक्ट के बारे में बात हुई. जो वे गोहाटी में करने वाले हैं, प्लास्टिक से तेल बनाने का प्रोजेक्ट. उसे भी कोई सार्थक कार्य हाथ में लेना चाहिए. अपने समय व ऊर्जा का सही उपयोग करने के लिए. लगता है, रजोगुण बढ़ रहा है. अभी बाल्मीकि रामायण का कितना काम शेष है और पढ़ने का काम तो है ही. पढ़ने से ही नया लिखने का सूत्र मिलेगा. भीतर जाकर मन को टटोलना होगा. पर भीतर तो मौन है, शांत और आनंद से भरा मौन..उसे ही लुटाना है किसी न किसी रूप में. उस शांति से ही सृजन करना है. अगले महीने दीदी का जन्मदिन है और उनकी नतिनी का भी, उनके लिए भी कुछ लिखना है.

कल सुबह जब नर्सरी से जीनिया की पौध व एक पौधा लेते हुए वापस आई तो जून का फोन आया. कम्पनी के एक अधिकारी का कैम्प में रहते हुए नींद में ही देहांत हो गया है. सुनकर कैसा सा तो लगा, दोपहर को उनके घर गयी, व्यथित महिला बहुत रो रही थी, दो घंटे रुककर लौटी तो ‘मृत्यु और जीवन’ लिखा.

मृत्यु और जीवन - १

मौत एक पल में छीन लेती है कितना कुछ
माथे का सिंदूर हाथों की चूड़ियाँ
मन का चैन और अधरों की हँसी
पत्नी होने का सौभाग्य ही नहीं छीनती मौत
एक स्त्री से उसके कितने छोटे-छोटे सुख भी
पिता का आश्रय ही नहीं उठता सिर से
पुत्र की निश्चिंतता, उसका भरोसा भी
अश्रु बहते हैं निरंतर ऑंखें सूज जाती हैं
रुदन थमता नहीं विधवा का
रह-रह कर याद आती है कोई बात
और कचोट उठती है सीने में
रोते-रोते चौंक जाती है
कह उठती है, मुझे साथ ले चलो
पर कोई जवाब नहीं आता
कभी नहीं आया,
उस पार गया कोई भी लौट कर नहीं आया
क्या है मृत्यु ?
जो छीन लेती है जीवन का रस अपनों का
भर जाती है ऐसी उदासी
जो कभी खत्म होगी इसका विश्वास नहीं होता
मर सकता है कोई भी.. कभी भी.. किसी भी क्षण
तो क्यों न सामना करें इस प्रश्न का
क्यों न रहें तैयार हर पल.. सामना करने मौत का...
मौत जो जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है
जिसकी नींव पर ही जीवन की भीत टिकाई है
जीवन के पीछे ही छुपी है मौत
करती रहती है इंतजार उस पल का
जब शांत हो जायेगा सांसों का खेल
और झपट लेगी वह हलचल जीवन की
मुर्दा हो जायेगा यह शरीर
पर भीतर जो जान थी उसे
छू भी नहीं पायेगी मौत
कौन जानता है उसका होना
वही जो उतरा है भीतर जीते जी
जिसने चखा है मृत्यु का स्वाद जीते जी
जिसने पहचान की है घर के मालिक से !  


Wednesday, February 8, 2017

पहाड़ी पर घर


कल रात को एक और स्वप्न..मन न जाने कितने गड्ढे, कितने गहरे तल छिपाए है और अवचेतन मन न जाने कितना व्यर्थ भी अपने में समाये है. वासना और कामना, लोभ और अहंकार सभी के बीज भीतर हैं ही..यहाँ हर व्यक्ति अपने भीतर एक गहरा कुआँ समोए है और एक अनंत आकाश भी. वे जो अन्यों की तरफ ऊँगली उठाते हैं पहले अपने भीतर झाँक कर देखना चाहिए. एक मन जिसने जान लिया, सारे मन उसने जान लिए. यहाँ सभी एक ही कीचड़ से उपजे हैं और कमल बनने की सभी को छूट है. लोगों का आपस में मिलना अकारण नहीं है, न जाने कितने जन्मों में वे एक दूसरे के मान-अपमान का सुख-दुःख का कारण बने हैं. कितनी बार उन्होंने फूल भी उगाये हैं और कांटे भी. माँ की हालत बिगड़ती जा रही है, उनका मस्तिष्क अब साथ नहीं दे रहा है, पिताजी बहुत परेशान रहने लगे हैं.

पिछले तीन दिन डायरी नहीं खोली. परसों सुबह एक सखी के यहाँ आयोजित धार्मिक उत्सव में भाग लेने वह मोरान गयी थी, शाम को लौटी, उसी दिन माँ बिस्तर से उठकर बाथरूम जाते समय चक्कर आने से गिर गयीं. उनके दाहिने कूल्हे में चोट लगी है. इस समय वह अस्पताल में हैं, जून और पापा भी उनके साथ हैं. बहुत दिनों बाद पूरे घर में वह अकेले ही है.

आज माँ का अस्पताल में दूसरा दिन है, न जाने कितने दिन, कितने हफ्ते या कितने महीने उन्हें अस्पताल में रहना होगा. जीवन की संध्या में यह दारुण दुःख उन्हें झेलना पड़ रहा है, कर्मों की ऐसी ही गति है. कल दिन भर उसका मन भी कुछ अस्त-व्यस्त सा रहा, कोई भी कार्य पूरे मन से नहीं कर पायी. आज सुबह से दिनचर्या नियमित हुई है. जून आज फील्ड गये हैं.

आज तीसरा दिन है. जून अभी कुछ देर में आने वाले हैं. अस्पताल में खाना ले जाना है. एक परिचिता  का फोन आया है, विश्व विकलांग दिवस पर उसे बच्चों के कार्यक्रम में भाग लेना है. दो दिन बाद बाल दिवस है, शायद वह न जा पाए. सभी को फोन पर माँ के बारे में बताया. जीवन क्या मात्र मृत्यु की प्रतीक्षा है ? प्रतीक्षा जो केवल एक व्यक्ति ही नहीं करता, करते हैं उसके अपने भी (?) जून के एक मित्र की माँ पिछले पांच-छह महीनों से बिस्तर पर हैं. अब माँ ने भी बिस्तर पकड़ लिया है अगले दो-तीन महीनों के लिए, डाक्टर ने कहा है इतना समय तो हड्डी को जुड़ने में लगेगा. नूना खुद भी धीरे-धीरे बढती हुई उम्र का अनुभव देह के तौर पर करने लगी है. मन के तौर पर तो कोई स्वयं को बूढ़ा कभी महसूस नहीं करता. कहना कठिन है उम्र घटती है या बढ़ती है.

‘संडे स्कूल’ व ‘मृणाल ज्योति’ के बच्चों के साथ बालदिवस मनाया, जून कापी और पेंसिलें ले आए थे. मिठाई और केक भी. एक ही स्थिति में लेटे-लेटे माँ की परेशानी थोड़ा बढ़ गयी है. पिताजी का उत्साह पूर्ववत है, वह ज्यादातर समय अस्पताल में ही रहने लगे हैं. उसे अभी ‘विवेक चूड़ामणि’ का काव्यानुवाद आगे लिखना है. नवम्बर आधा बीत गया है, अभी तक सभी क्यारियों में फूल नहीं लगा पायी है. आज शाम को सत्संग है. उस सखी का फोन आया जो यहाँ से चली गयी है. काफी देर तक बात करती रही. वहाँ का जीवन यहाँ से बिलकुल अलग है. उनका घर एक पहाड़ी पर है, चढाई करके घर तक आना पड़ता है. पांचवीं मंजिल पर घर है और अभी तक लिफ्ट चलनी शुरू नहीं हुई है सो सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते साँस फूल जाती है. बालकनी से सुंदर सूर्योदय दीखता है, ऊपर ठंड भी रहती है. नैनी दोपहर को एक ही बार आती है. कुछ काम खुद भी करने होते हैं. माँ को अस्पताल गये आज पूरा एक सप्ताह हो गया. ऐसे ही देखते-देखते समय बीत जायेगा और वह घर आ जाएँगी.

जून देहली गये हैं, नन्हा भी वहाँ किसी काम से आया था उससे भी मिले. एक सखी का फोन आया, उसने कहा माँ को ठीक से खाना चाहिए, उसे पता नहीं है किस स्थिति में वह हैं. उस दिन उसने अस्तित्त्व से उन्हें दुःख से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की थी, उसे अभी तक पूरा होना बाकी है लेकिन यह दिखाकर ईश्वर उसके मन में वैराग्य दृढ़ कर रहे हैं, ओशो कहते हैं, जीवन के अनुभव ही काफी हैं किसी को वैरागी बनाने के लिए. सुबह से कई संतों के वचन सुने, अच्छा लगता है सुनना पर मनन् भी करना चाहिए मात्र सुनना ही पर्याप्त नहीं है.

    

Friday, October 14, 2016

बगीचे में झूला


आज बसंत पंचमी है. सुबह मृणाल ज्योति में पूजा में सम्मिलित हुई और दोपहर बाद एक सखी के यहाँ हवन में, पहले सत्य नारायण की कथा भी थी. बच्चों की कहानी सी लगती है. भगवान भी बात-बात पर रूठ जाते हैं, फिर प्रसन्न हो जाते हैं, भोले-भाले लोगों के भगवान भी तो वैसे ही होंगे, लेकिन पूजा करने से बाहरी वातावरण सात्विक बन जाता है. मन के भीतर भी तरंगें पहुंचती हैं और वातावरण सात्विक होने में मदद मिलती है. हर कोई अपनी-अपनी समझ से काम करता है, जो जैसा करता है वैसा ही भरता है. यदि कोई घबरा कर कोई शब्द बोल रहा है तो वह घबराहट का संस्कार ही बना रहा है और यदि कोई दूसरों के व्यवहार पर कोई निर्णय दे रहा है तो वह भी एक संस्कार बना रहा है. आज सुबह उसे बिजली के उदाहरण से आत्मा, मन व बुद्धि का भेद स्पष्ट हुआ. आत्मा जिसके साथ जुड़ जाती है उसी का रूप धर लेती है. जैसे विद्युत हीटर के साथ जुड़कर गर्मी का, एसी में ठंड का, टीवी में आवाज व चित्र का तथा विभिन्न उपकरणों में विभिन्न रूप, वैसे ही उनके भीतर की ऊर्जा भिन्न-भिन्न भावों, विचारों तथा धारणाओं के रूप में व्यक्त होती है. जब यह परमात्मा के साथ जुड़ जाती है तब उसी के रूप में स्वयं को जानती है. शेष सब बाहर की यात्रा में काम आते हैं और अंतिम भीतर की यात्रा में !

आज ध्यान में सुंदर अनुभव हुआ. जब, वे जब चाहें तब अपने-आप में स्थित हो पाते हैं तभी मानना चाहिए कि साधना में गति हो रही है. मन में यदा-कदा इधर-उधर के व्यर्थ संकल्प उठते हैं पर वे सागर में उठी लहर, बूंद या बुदबुदों से ज्यादा कुछ नहीं. सागर का उससे क्या बिगड़ता है, उसी की सत्ता से वे उपजे हैं और उसी में लीन हो जाने वाले हैं. इस ज्ञान में स्थिति बनी रहे तो मन व बुद्धि से मैल की परत छूटने लगती है, झूठ बोलने का जो संस्कार है, जड़ता का जो संस्कार है, अहंकार का जो संस्कार है और ईर्ष्या का जो सबसे गहरा संस्कार है, इन सबसे मुक्त होना है. इन्हें मानकर यदि स्वयं की सत्ता दी तो मुक्त होना असम्भव है. सद्गुरु कहते हैं कि माने सत्य ही उसका संस्कार है. उत्साह व जोश ही उसके भीतर कूट-कूटकर भरे हैं. इर्ष्या तो उसे छू भी नहीं गयी, क्योंकि उसे ज्ञात हो गया है कि नदी-नाव संजोग की तरह लोग आपस में मिलते हैं, मोह के कारण संबंध बना लेते हैं, फिर बिछड़ जाते हैं. उनके साथ मृत्यु के बाद कोई जाने वाला नहीं है, केवल परमात्मा ही उनके साथ रहेगा और रहेंगे उनके कर्म. आज वर्षा के कारण पुनः ठंड हो गयी है. जून को देहली जाना है. चार दिन बाद पिताजी को साथ लेकर आयेंगे. एक सखी ने बगीचे में लगाने के लिए झूला माँगा है, प्रतियोगिता में भाग ले रही है. उनके बगीचे में फूल अब कम हो गये हैं. माँ उठकर बाहर जा रही हैं, फिर लौट आई हैं, शायद देखने गयीं थी, पिताजी बैठे हैं या नहीं.

बादल आज भी बने हैं, ठंड बढ़ गयी है. शाम को जो कविता लिखी थी, ज्यादा लोगों ने नहीं पढ़ी, आत्मा को चाहने वाले ज्यादा नहीं हैं. सुबह एक स्वप्न देखकर नींद खुली. एक सखी का भाई घर से भागकर यहाँ आया है. रातभर उनके बरामदे में लिनन बॉक्स में बैठा रहा. सुबह जैसे ही वह दरवाजा खोलकर बाहर आयी तो उसने बताया. स्वप्न कितना सत्य प्रतीत हो रहा था. रात भी मन ने एक स्वप्न बुना और तभी समझ में आ गया यह स्वप्न है. इसी तरह उनका जीवन भी एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है, उनका अतीत तो स्वप्न बन ही चुका है, भविष्य एक स्वप्न है ही पर वर्तमान का यह दौर भी स्वप्न ही है. अब कोई पढ़े या नहीं क्या फर्क पड़ता है क्योंकि सोये हुए लोगों की बात का क्या आदर और क्या अनादर, सत्य इस सबके पीछे छिपा है. झलकें मिलने लगी हैं पर पूरा सूर्य अभी नजर नहीं आया है, यह कामना भी छोडनी होगी, साधो सहज समाधि भली !       




Tuesday, June 28, 2016

मंजिल और रास्ता


‘मृत्यु के साथ यदि किसी की मित्रता हो तभी वह धर्म के पथ से विमुख रहकर भी प्रसन्न रहने की आशा रख सकता है. ऐसा हो नहीं सकता तो धर्म का पथ चुनना ही पड़ेगा. सजगता का वरण, समता की साधना भी तभी होती है. भीतर आग्रह हो तो अहंकार शेष है, अहंकार की तृप्ति करनी है तो उसे दुःख सौंपना ही होगा. स्वयं को जानना ही धर्म में अर्थात स्वभाव में स्थित होना है. जो स्वयं को जानता है उसे संसार से कोई अपेक्षा नहीं रहती, वह दाता बन जाता है. वह जानता है कि द्वेष करने से वह स्वयं भी उसी की भांति बन जायेगा जो उसके द्वेष का पात्र है. मन रुग्ण होता है तो शरीर अस्वस्थ होने ही वाला है. नकारात्मक भावनाएं देह पर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकतीं. जितना जितना कोई स्वयं में स्थित रहता है मुक्ति का अनुभव करता है. मुक्ति विकारों से, द्वेष से, दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से और व्यर्थ चिन्तन से !’ आज सद्गुरु को सुनकर लगा वह उसके लिए ही बोल रहे थे.
यह जगत एक दर्पण है, उसमें वही झलकता है जो उनके भीतर होता है. भीतर प्रेम हो, आनन्द हो, विश्वास हो तथा शांति हो तो चारों ओर वही बिखरी मालूम होती है, अन्यथा यह जगत सूना-सूना लगता है. यहाँ किस पर भरोसा किया जाये ऐसे भाव भीतर उठते हैं. भीतर की नदी सूखी हो तो बाहर भी शुष्कता ही दिखती है. लेकिन भीतर का यह मौसम कब और कैसे बदल जाता है पता भी तो नहीं चलता. कर्मों का जोर होता है अथवा तो पापकर्म उदय होते हैं या वे सजग नहीं रह पाते. कोई न कोई विकार उन्हें घेरे रहता है तो वे भीतर के रब से दूर हो जाते हैं. हो नहीं सकते पर ऐसा लगता है. यह होना ठीक भी है क्योंकि भीतर छिपे संस्कार ऐसे ही वक्त अपना सिर उठाते हैं. पता चलता है कि अहंकार अभी गया नहीं था, सिर छिपाए पड़ा था, कामना अभी भीतर सोयी थी. ईर्ष्या, द्वेष के बिच्छू डंक मारने को तैयार ही बैठे थे. अपना आप साफ दिखने लगता है. साधना के पथ पर चलते-चलते जब वे यह सोचने लगते हैं कि मंजिल अब करीब ही है तो अचानक एक घटना ऐसी घटती है जो इशारा करती है कि रुको नहीं, अभी और चलना है. इस यात्रा का कोई अंत नहीं, इसमें मंजिल और राह साथ-साथ चलते हैं. जैसे कोई क्षितिज की तरह पास आता मालूम होता है निकट पहुंचो तो फिर उतना ही दूर..जिसने माना कि उसने जान लिया है उसका ज्ञान चक्षु बंद हो जाता है. वह खुला रहे इसके लिए सतत जिज्ञासु बने रहना होगा, सदा सजग रहना होगा, सदा स्वयं के भीतर झाँकने का काम करना होगा, कौन जाने कहाँ कोई विकार छिपा हो जो सही मौसम की प्रतीक्षा कर रहा हो !

स्वराज चेतना क्या है ? सत्य की खोज और मानव मात्र को जिसकी तलाश है क्या वही नहीं है स्वराज्य चेतना..आज मुरारी बापू की ‘मानस महात्मा’ को कुछ देर सुना. भीतर सद्विचारों की प्रेरणा जगाती है उनकी कथा. उन्हें भी अब कुछ करना होगा, मात्र विचार ही पर्याप्त नहीं है. उसे अपने लेखन को गति देनी होगी. हर कोई अपना-अपना कार्य ठीक से करे तो समाज पुनः अपने मूल्यों के प्रति जागरूक हो सकता है. उनकी परिचिता बुजुर्ग महिला आज गिर गयीं, उनका कंधा अपने स्थान से खिसक गया है, अस्पताल में हैं, वे मिलने गये थे. आज एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है, शाम को पार्टी में जाना है. कल सिंगापुर का शेष विवरण लिखा, अभी टाइप करना शेष है. सुबह प्राणायाम के बाद परमात्मा के साथ एक करार किया, वह उसे प्रकट करेगी और वह उसे अप्रकट करेगा. वह उसके जीवन में झलकेगा बाहर और वह भीतर खत्म होती जाएगी. उसका नाम उसकी शक्ति है और उसका पवित्र स्मरण उसका एकमात्र कर्त्तव्य, शेष तो अपने आप होता जायेगा. परमात्मा उनके भीतर सोया रह जाता है और वे बार-बार खुद को दोहराते चले जाते हैं, व्यर्थ का रोना रोते हैं. वह हर क्षण तैयार बैठा रहता है, सत्य सर्वदा सर्वत्र है ! 

Tuesday, June 7, 2016

वसीयतनामा


कई बार मन में विचार आया है कि उसे अपनी वसीयत लिख देनी चाहिए. मन ही मन कई बार लिख भी चुकी है. सर्वप्रथम मृत्यु की बात. अंतिम श्वास अस्पताल में नहीं अपने घर पर ही ले. यदि कोई रोग हो जाये तो बिना कारण देर तक दवाओं के सहारे जिलाने का प्रयत्न नहीं किया जाये. उसकी सभी वस्तुएँ, आभूषण आदि दान कर दिए जाएँ. मृणाल ज्योति तथा आर्ट ऑफ़ लिविंग ये दो संस्थाएं इसे ग्रहण करें ! जहाँ तक सम्भव हो मानव को अपने हाथों से ही दान करके जाना चाहिए ! आज दशहरा है, सत्य की विजय असत्य पर. राम की विजय रावण पर. दुर्गा की शक्ति लेकर राम आत्मा ने रावण अहंकार पर विजय पाई और सीता भक्ति को प्राप्त किया लक्ष्मण वैराग्य की सहायता से...

शक्ति पूजन से हुए कृतार्थ
रामात्मा ने पाया संबल,
अहंकार रावण का कर वध
सीता का प्रेम मिला निर्मल
जय दुर्गा ! जय राम दिलाई
विजयादशमी की बधाई !

आज सुबह एक अनोखा अनुभव हुआ. श्वासों के रूप में अनंत का अनुभव. सुना था कि प्राण परम हैं,  सच तो है श्वास है तभी तक तो आत्मा इस देह के साथ बंधी है. श्वासें कितनी हल्की हो गयी हैं तब से, कितनी मधुर और सुगंध से भरी श्वासें ! सद्गुरु कहते हैं कम्प रहित श्वास ही ध्यान है, सो एक बार पुनः ध्यान घटा है. श्वास स्थिर हुई है तो मन कितनी आसानी से ठहर गया है. प्राणायाम आज पूर्ण हुआ ऐसा लगता है. नासिका के अग्रभाग में सारा रहस्य छिपा है एक बार एडवांस कोर्स में सुना था. श्वासें कितना आनंद छिपाए हैं अपने भीतर, श्वास-श्वास में उसी का नाम छिपा है, सोहम्  छिपा है. ये सारी शास्त्रोक्त बातें सत्य प्रतीत हो रही हैं. कभी-कभी श्वास रुक जाती है, कभी अति सूक्ष्म हो जाती है, कितना अद्भुत अनुभव है यह !


आज गर्मी बहुत ज्यादा है जैसे मई-जून का महीना हो, पसीना सूखता ही नहीं है, धूप से या किसी अन्य कारण से सिर में हल्का दर्द है. कल शाम वे जून के एक सहकर्मी के यहाँ गये, उनके ससुर का देहांत हो गया था, लगा ही नहीं कि किसी ऐसे परिवार से मिल रहे हैं जहाँ एक दिन पूर्व मृत्यु घटी है. सभी संयत थे और सामान्य व्यवहार कर रहे थे. बचपन में देखती थी कि मृत्यु होने पर लोग दहाड़ें मारकर रोते थे. अब मौत को भी सहजता से स्वीकारने लगे हैं लोग, परिपक्वता की निशानी है. कल उस परिचिता के यहाँ रात्रि भोज है, जिसके ससुर का देहांत पिछले दिनों हुआ था. तैयारियों में लगे होंगे सभी और कुछ दिनों में ही सामान्य हो जायेंगे. उनका जीवन यूँ ही चलता रहेगा, नये-नये शरीर धारण करते रहेंगे. आज ओशो की आत्मकथा का वह अंश पढ़ा जहाँ वह अपने भीतर गौतम बुद्ध की आत्मा का प्रवेश होना स्वीकार करते हैं. कितना विचित्र रहा होगा उनका अनुभव !

Monday, June 6, 2016

शारदीय नवरात्रि


आज से नवरात्रि का उत्सव आरम्भ हुआ है, वह एक संदेश लिखना चाह रही है जो दुर्गा पूजा के साथ-साथ नवरात्रि तथा विजयादशमी का भी संदेश देता हो. शक्तिस्वरूपा देवी से वे शक्ति की प्रेरणा पायें, शरदकाल के आश्विन शुक्ल पक्ष में प्रकृति के अनुसार सादा भोजन कर शरीर व मन को पुष्ट करें. विजयादशमी पर अपनी विजय के लिए निश्चिन्त हो जाएँ, दुर्गापूजा का उत्सव कितना उत्साह व उमंग अपने साथ लाता है. ये सारी बातें छोटे से संदेश में समा जाएँ ऐसा उसका प्रयास रहेगा.

आज ईद है. मुस्लिम लोगों का उत्सव जो रमजान के पूरे एक महीने बाद आता है. आज ही नवरात्रि का तीसरा दिन भी है. कल शाम एक परिचिता के ससुर का डिब्रूगढ़ में देहांत हो गया. जून ने सुना और फिर भी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार क्लब गये फिल्म देखने, या तो उनको दिल की कोई खबर ही नहीं है या वे इससे बहुत ऊपर उठ गये हैं अर्थात मृत्यु उनके लिए सामान्य घटना है. वह पूरी फिल्म नहीं देख पाई. हिंसा और अभद्रता के सिवा उसमें कुछ भी नहीं था. यही आजकल समाज में हो रहा है सम्भवतः. सुबह वे उस परिचिता के यहाँ गये तो पहले ही मृत शरीर को ले जाया जा चुका था. उसकी सास बहुत रो रही थीं, और इक्यानवे वर्षीय अपने लम्बे समय से अस्वस्थ पति की मृत्यु का शोक ही नहीं मना रही थीं, बल्कि इलाज ठीक से न होने की शिकायत कर रही थीं, आने वाले लोगों से अपने ही पुत्र की शिकायत. इतनी उम्र बिता लेने के बाद भी लोग कितने अज्ञानी बने रहते हैं !


टीवी पर मुरारी बापू गोपी गीत मानस पर व्याख्यान दे रहे हैं. वह राम और कृष्ण में कोई भेद नहीं देखते. ब्रह्म एक है वह सर्वव्यापक है पर कभी-कभी वह मानव रूप धर के आता है, अपनी सारी कलाओं के साथ ! आज एक और मृत्यु की बात सुनी. एक परिचिता को ब्रेन ट्यूमर हुआ था, डेढ़ वर्ष पूर्व लंग कैंसर हुआ था. अंतिम समय में वह बिलकुल निष्क्रिय हो गयी थी, बोल भी नहीं पाती थी. बातूनी सखी के अपनी व्यथा सुनाई, वह अपने शरीर से परेशान है जो रोगों का घर है. जीवन में दुःख है, जीवन रहस्यमय है. यहाँ आनंद भी उतना ही है, कब क्या मिलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता ! असमिया सखी ने अपने एक नैनी की व्यथा कथा सुनाई, वह उसके लिए कुछ सहायता राशि एकत्र करना चाहती है. उसके इलाज के लिए तथा जब तक वह ठीक नहीं हो जाती उसके भोजन आदि के लिए. उसके हृदय में दुखियों का दर्द करने का जज्बा भरा है, ईश्वर की कृपा हुई है ! जून ने आज उसकी तीन किताबें AIPC के लिए खुर्जा भेजी हैं, कोई रोशनारा हैं जो दिल्ली में कवयित्री सम्मेलन करने जा रही हैं. आज बड़ी ननद को कल्याण पत्रिका भी भेजनी है. नन्हे की MCA की किताबें भेज दीं. जून आजकल बहुत व्यस्त हैं फिर भी ये सारे काम कर दिए. जिन दिनों वे व्यस्त रहते हैं, ज्यादा खुश रहते हैं ! परमात्मा को कुछ करना शेष नहीं है, पर वह कार्यरत है ! 

Friday, May 20, 2016

हवनकुंड का प्रकाश


पहले-पहल इस बात का अनुभव हुआ जब विवाह के बाद आर्यसमाज परिवार में नियमित हवन करने लगी, अग्नि के सामने बैठे श्लोक उच्चारण करते-करते मन जब शांत हो जाता तो भीतर एक नये तत्व का जन्म होता हुआ लगता. बचपन में माँ-पिता को बृहस्पतिवार का व्रत करते देखा था, स्वयं भी कितने सोलह शुक्रवार किये, पर उससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ सिवाय स्वादिष्ट भोजन के जो व्रत के बाद मिलता था, लेकिन विवाह के बाद धर्म का वास्तविक रूप समझ में आया. चार बच्चे हुए सभी को अच्छे संस्कार दिए. सदा डाक्टर पति का साथ व सहयोग मिला. जीवन अपनी गति से चल रहा था कि मायके में हुई छोटे भाई की दुखद मृत्यु ने हिला कर रख दिया. भाई की उम्र ही क्या थी, उसका पुत्र अभी मात्र चार वर्ष का हुआ था. माता-पिता भी जवान बेटे की मौत से दुखी थे. उसे दुगना दुःख हुआ, भाई का व माता-पिता का. उसने अपना ध्यान रखना छोड़ दिया, किडनी की समस्या शुरू हो चुकी थी, भीतर ही भीतर वह जड़ पकड़ रही थी पर बाहर के दुःख में उस पर ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं थी. भाई की मृत्यु का दर्द अभी कम भी नहीं हुआ था कि पिता भी चल बसे. अब वह बिलकुल ही टूट गयी. माँ ने ही उसे हिम्मत बंधाई. माँ का दुःख उसके दुःख से बड़ा था पर वह बड़ी जीवट वाली स्त्री है. वह अपने बड़े पुत्र का परिवार देखकर जीने का अम्बल पा रही थी. वह सच्चाई को स्वीकार रही थी. जीवन अपनी रफ्तार से आगे चलता रहता है, जाने वालों के साथ थम  नहीं जाता.

अस्ताल के इस कमरे में लेटे-लेटे वह स्मृतियों में खो जाती है. कितने हफ्तों से यहाँ आ रही है, यहाँ सभी को पहचानने लगी है. बच्चे, बूढ़े, जवान सभी को यहाँ आते देखा है. मृत्यु को नजदीक से देखा है. एक दिन वह उसका भी द्वार खटखटाएगी, पर तब तो जी ले. मृत्यु से पहले क्या मरना, शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक इस सुंदर सृष्टि को रचने वाले परमात्मा की शक्ति का अपमान क्यों करे. वही तो है जो धडकनें चला रहा है, वह जब चाहेगा तब विदा हो जाएगी और खत्म हो जाएगी एक कहानी जो बरसों पहले शुरू हुई थी. माँ की उम्र अभी सोलह भी पार नहीं हुई थी जब उसने बिटिया को जन्म दिया. बालिका माँ ने उसे कैसे पाला होगा, सुना है वह खूब रोती थी, दुबली भी थी. जाने कब देश में बालिका वधु की प्रथा खत्म होगी. माँ गोरी थी, वह सांवली तो बचपन में माँ रगड़-रगड़ कर नहलाती थी, पैर लाल हो जाते थे पर वह उन भाई-बहन को रुलाते हुए भी खूब साबुन मल-मल कर नहलाती. पिता सेना में थे, कभी-कभी आते तो बहुत दुलार करते. कभी वे सब साथ रहते, नये- नये शहरों में पढ़ाई हुई. असम, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश कई प्रदेशों में बचपन बीता. पढ़ाई के लिए डांट भी खूब पडती थी पर स्नेह भी उतना ही मिलता था. बचपन में तैयार होकर चचेरे भाइयों को राखी बाँधने जाती थी, उनकी कोई बहन नहीं थी, सो पांच भाइयों की वह इकलौती बहन थी. बचपन कब बीता पता भी नहीं चला.    


  

Thursday, May 19, 2016

गुरुद्वारे में अरदास


आज रामनवमी है, सभी को शुभकामनायें भेजीं. टीवी पर ‘गुरुवाणी एजुकेशन’ कार्यक्रम आ रहा है. एक रात स्वप्न में स्वयं को गुरुद्वारे में अरदास सुनते हुए पाया, पिछले किसी जन्म में जरूर वह सिख धर्म से जुड़ी रही होगी. गुरुवाणी दिल की गहराई में किसी तार को झंकृत करती है. पिछले दिनों एक सिख गुरु को सुनने का अवसर भी मिला. कल शाम सत्संग में ध्यान कराया, एक साधक को अच्छा लगा. परमात्मा जो चाहता है वैसा वह कर सके, अहंकार न रहे, यही तो सद्गुरु की शिक्षा है. आज रामदेवजी ने अपनी दीक्षा के पन्द्रहवें साल के उपलक्ष्य में अद्भुत उपहार व संदेश देश को दिया. वेदों की ऋचाएं आस्था भजन के माध्यम से प्रतिदिन सुनने को मिलेंगी तथा भजन भी जब कोई चाहे सुन सकता है.

‘मानस नवमी’ को केंद्र बनाकर मुरारी बापू भीलवाड़ा में कथा कर रहे हैं. ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ परमात्मा और सद्गुरु में पुष्प सुरभि जैसा नाता है. सुरति रूप में जो गुरू है वही प्रकाश रूप में, ज्ञान रूप में परमात्मा है. जब राम वनवास में गये तो भील-किरात आदि को लगा कि उनके घर में नौ प्रकार की निधियाँ आ गयी हैं. नील, शंख, मुकुंद, नंद, खर्व, पद्म, महापद्म, मकर, कच्छप आदि नौ निधियां तो पुरानी हैं पर उनके घर नई निधियां आई हैं. व्यक्ति के विवेक के प्रकाश को नवीन अर्थ दे वह सद्गुरु है ! विवेक के प्रकाश को अपने जीवन में ढाल ले वही संत है ! विवेक के प्रकाश को नवीन लिपि में ढाल दे वही सद्साहित्य है. सौन्दर्य भी एक निधि है, भावना, निष्ठा, मर्यादा तथा शील में भी एक सौन्दर्य है. शक्ति, आत्मबल, मनोबल, बुद्धिबल जो सेतु बनाये, विभाजित न कर सके, वह भी एक निधि है. करुणा भी एक निधि है, किसी के भीतर प्रेम हो तो मानना चाहिए कि उसके पास एक खजाना है.

उसकी फुफेरी बहन जो कई वर्षों से अस्वस्थ थी, देह के बंधन से मुक्त हो गयी. नूना के मन में स्मृतियों का एक सैलाब उमड़ आया. मन को उनसे मुक्त करने के लिए तथा मृतात्मा के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप उसने बहन की तरफ से एक आलेख लिखना शुरू किया.

अस्पताल के इस कमरे की दीवारें, छत तथा पर्दे उसकी सूनी दृष्टि से भली-भांति परिचित हैं, जब डाक्टर या नर्स आती है तो उसकी मुस्कान उन्हें चकित कर जाती है. देह का रंग काला हो गया हो पर मन में अब भी उमंग का अनुभव करती है. पिछले पांच वर्षों से भीषण व्यथा सहने के बावजूद भी जीने की इच्छा खत्म नहीं हुई है. फिर मृत्यु क्या माँगने से आती है, जन्म व मृत्यु एक ऐसा रहस्य है जो बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी भी नहीं जान सके. देह तो ढांचा मात्र है, भीतर जो आत्मा है वह तो कभी रुग्ण नहीं होती. कभी जर्जर नहीं होती. लोग केवल बाहरी शरीर देखते हैं, नहीं देखते वह भीतर की चेतना जो सदा एक सी रहती है. मन में दुःख होता है जब शरीर में सूइयाँ चुभोई जा रही हों. जब हफ्ते में दो बार रक्त बदला जा रहा हो, उस समय भी कोई है जो इस घटना को देखता रहता है साक्षी भाव से. जो शक्ति प्रदान किये जाता है.  


  

Wednesday, April 27, 2016

मुम्बई में आतंक


कितनी खौफनाक थी वह घड़ी जब आतंकवादियों ने कल रात मुम्बई के सात इलाकों में धमाके किये. निर्दोषों का खून बहाया और रात भर चलने वाला यह आतंक का दौर अभी तक थमा नहीं है. सुबह छह बजे के समाचार उन्होंने सुने तो दिल दहल गया, तब से लगातार टीवी पर हर समाचार चैनल इसी खबर को दिखा रहा है. एक सौ बीस लोग मारे जा चुके हैं और तीन सौ से ज्यादा घायल हो चुके हैं लेकिन दहशत के शिकार तो करोड़ों लोग हुए हैं. ऐसा लगता है देश में कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं है. ताज होटल, ओबेराय होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, अस्पतालों तथा अन्य भी कुछ स्थानों पर फायरिंग हुई और ग्रेनेड फेंक कर धमाके किये गये. नरीमन हाउस तथा कोलाबा में भी धमाके हुए. नन्हा आज सुबह चार बजे घर पहुंच गया है, इस समय सो रहा है, जून अभी तक आए नहीं हैं. एनएसजी के कमांडो होटल ताज में प्रवेश कर चुके हैं. सेना का हेलिकॉप्टर ताज के ऊपर मंडरा रहा है, न जाने कब मुक्त होंगे वे लोग जो कैद हैं होटल के अंदर, डरे हुए लोग जो कल तक खुश थे, शांति का आनन्द उठा रहे थे. वे लोग जो स्टेशन के बाहर मार दिए गये. नीरू माँ कहती हैं जो घट चुका वह न्याय था, तो जो हुआ क्या यही होना चाहिए था, कितना वीभत्स और घृणित था, महाभारत के युद्ध में हुई हिंसा क्या इससे कम थी ? अहिंसा का प्रशिक्षण, एओल का वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश सब भुला दिए गये, लेकिन कुछ पागल लोगों की वजह से संसार से प्रेम उठ गया ऐसा भी तो नहीं मान सकते. उसका मन उन लोगों के साथ है जो मारे गये जो घायल हुए, उन की पीड़ा उसके मन में बस गयी है.

वे समुद्री रास्ते से आये थे
हथियार बंद और लैस विस्फोटकों से
अपने दिलों में भरे नफरत और हिंसा का लावा लिए
वे दरिंदे थे मौत के
आतंक फ़ैलाने.. करने तबाह शांति
उसने झेली हैं उनकी बन्दूकों से निकली गोलियां
हथगोलों की आग में झुलसी है त्वचा
उड़ कर दूर जा गिरे हैं उसके अंग कटे क्षत विक्षत
खौफनाक मृत्यु का सामना किया है अनेकों बार
और महसूस किया है दर्द उन मरे हुओं का
जिनकी सूक्ष्म देह मंडरा रही है अपने घायल शरीरों पर
जो भौचंक हैं देख ताडंव मृत्यु का !

जीवन की कटु सच्चाई का अनुभव एक बार और हुआ. सच्चाई का सामना कितना ही कटु क्यों न हो, हरेक को करना ही पड़ता है. इस बात को गांठ से बांध लेना चाहिए कि इस दुनिया में वे अकेले आये हैं और अकेले ही जाना है. जीवन में भी वे अकेले हैं और मृत्यु में भी, उनका किसी पर कोई अधिकार नहीं, वे हैं ही नहीं तो अधिकार की बात ही कहाँ आती है. आत्मा स्थूल शरीर से अलग है औए सूक्ष्म शरीर से भी. ये तीनों माया के आवरण हैं जो उसन भ्रमवश ओढ़ लिए हैं, उन्हें इनसे मुक्त होना है.

टीवी पर मेजर उन्नीकृष्णन तथा हेमंत करकरे की अंतिम यात्रा के दृश्य दिखाए जा रहे हैं. सेना, NSG तथा ATS के साथ पुलिस ने भी उनसठ घंटों तक चले युद्ध में भाग लिया तथा मेजर संदीप को भी गोली लगी और भी कई पुलिस व सेना के लोग घायल हुए होंगे, कितने ही देशी व विदेशी मेहमान भी जो होटलों में ठहरे थे. बुधवार शाम से चला यह ऑपरेशन साठ घंटे चला, अभी होटल में सफाई होना बाकी है. पिछले तीन दिनों से यह भयानक युद्ध मुम्बई की भूमि पर लड़ा जा रहा था. मानसिक पीड़ा और घुटन के तीन दिन. कमांडो राजेन्द्र सिंह भी शहीद हुए, कुल सोलह अधिकारी शहीद हुए.

Friday, November 13, 2015

मधु-कैटभ


मृत्यु के समय और उसके पहले क्या होता है, इसके बारे में नीरू माँ भी आजकल बता रही हैं तथा वह जो पुस्तक पढ़ रही है, Tibeten book of living and dying उसमें भी यह बताया गया है कि मरने की तयारी कैसे करनी चाहिए. मृत्यु को जीवन का अंग मानकर जीवन में ही इसके लिए तयारी करनी चाहिए. एक-एक करके सारे सेन्स ऑर्गन काम करना बंद करने लगते हैं, इसी तरह मन भी आपने शुद्ध स्वरूप में आ जाता है, जिसने जीवन में अभ्यास किया है वह इसे पहचान कर मुक्त  हो सकता है पर जो जानता ही नहीं वह पुनः जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है. उन्हें नित्य-प्रति हर क्षण आत्मा में ही रहना होगा, कोई राग नहीं, कोई द्वेष नहीं, कोई छल-कपट नहीं, कोई चाह नहीं ! आज सुबह नींद चार बजे से भी पहले खुल गयी, आजकल सुबह उठकर टीवी नहीं खोलती तो समय काफी बच जाता है, स्नान भी सुबह हो जाता है. कल रात को जून से वह बात करने लगी कि उन्हें तथा कुछ अन्य को विदेश चले गये कुछ लोगों को देखकर जो लगता है कि पिछड़ गये, यहीं रह गये, यहाँ का जीवन एकरस लगता है, इन बातों का कांटा मन से निकाल देना चाहिए, जो ज्ञान से ही सम्भव है, पर वह समझ नहीं पाए. मानव अपने दुखों से भी मुक्ति नहीं चाहते, उन्हीं में रहकर स्वयं को पीड़ित मानकर सुखी होते हैं. पर इससे उसके लिए सीखने की बात यह है की चाहे कोई अपना हो या पराया ( वैसे पराया कोई है नहीं ) किसी को सलाह देने या समझाने की कोई जरूरत नहीं है, यदि कोई स्वयं दुःख से दूर होना नहीं चाहता तो कोई दूसरा उसे चाहकर भी नहीं निकाल सकता. सो अपने ज्ञान को अपने भीतर ही सम्भाल कर रखना चाहिए, हरेक को अपना रास्ता खुद ही ढूँढना पड़ता है ! उसे हर हाल में मुक्त रहना है !

आज मई का एक गर्म दिन है, आज उन्होंने मृणाल ज्योति में पुराने पर्दे, कुशन वगैरह भिजवाये, शायद उनके कुछ काम आयें. घर में जितना कम सामान हो अच्छा है. कल शाम दक्षिण भारतीय पड़ोसिन अपने भाई अरुणाचलम् तथा माँ को लेकर आई, उसकी माँ ने क्रोशिये से बना एक ऊन का रुमाल दिया, उनकी अवस्था भी काफी है तथा मस्तिष्क की कोई बीमारी भी है पर अभी तक हाथ से काम करती हैं क्रोशिये का. उनके माथे पर चन्दन लगा था तथा चेहरे पर मुस्कान थी. वह हिंदी नहीं बोल पातीं पर दिल की भाषा में कोई शब्द नहीं होते. जून अभी आने वाले होंगे, उसने ध्यान कक्ष की सफाई की, इसके बावजूद वहाँ चीटियों का आना जारी है. इतिहास पढने में उसे उतनी रूचि नहीं है यह नेहरु जी की पुस्तक पढ़ते समय पता चल रहा है.

आज सद्गुरु ने बताया चंड-मुंड, मधु-कैटभ था शुम्भ-निशुम्भ सब भीतर हैं. रक्तबीज भी डीएनए की विकृति है. राग-द्वेष ही मधु-कैटभ हैं और उनसे तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती जब तक चेतना प्रेम में विश्राम न पाले. हृदय और मस्तिष्क ही चंड-मुंड हैं, अति भावुकता भी नहीं और अति-बौद्धिकता भी नहीं, दोनों का संतुलित मेल ही जीवन को सुंदर बनाता है. जन्मों-जन्मों के संस्कार जो बीज रूप में भीतर पड़े हैं उनसे भी तभी मुक्ति हो सकती है जब चेतना मुक्त हो अर्थात स्वयं को शुद्ध-बुद्ध आत्मा जानें, तन व मन दोनों के साक्षी व द्रष्टा बनें, अभी तो तीन एक-दूसरे से चिपके हुए हैं, एक को पीड़ा हो तो दूसरी उसे अपनी पीड़ा मान लेता है, एक को हर्ष हो तो दूसरा उसे अपना हर्ष मान लेता है और होता यह है कि एक न एक को तो सुख-दुख का अनुभव होता ही है, तो हर वक्त बेचारी चेतना बस परेशान-दुखी या फूली हुई रहती है, उसे कभी मन के साथ भूत में जाकर पछताना पड़ता है तो कभी भविष्य में जाकर आशंकित होना पड़ता है, वह कभी चैन से रह ही नहीं पाती, नींद में भी मन उसे स्वप्न की दुनिया में ले जाता है.



Friday, October 30, 2015

प्रयाग के घाट


आज सुबह वे कुछ दिनों की काशी व इलाहाबाद की यात्रा के बाद घर वापस लौट आये हैं. सुबह से ही घर को व्यवस्थित करने में लगे हैं, काफी कुछ हो गया है, कुछ शेष है. आज सुबह से ही बल्कि परसों शाम ट्रेन में बैठने से पहले से ही सासु माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उसे उनके साथ बहुत सहजता से, सम्मान तथा समझदारी से बातचीत तथा व्यवहार करना है, उन्हें कुछ दिन तो अकेलापन भी लगेगा. धीरे-धीरे अभ्यस्त हो जाएँगी. शरीर का स्वस्थ होना ज्यादा जरूरी है, तन स्वस्थ हो तो मन अपने अप खुश रहता है. जब कोई अस्वस्थ होता है, शरीर अपने को स्वस्थ करने की प्रक्रिया शुरू कर देता है, पर वह जल्दी घबरा जाती हैं, वृद्धावस्था में कई तरह के भय मन में समा जाते हैं. उनका बगीचा भी अस्त-व्यस्त हो गया है. फूल तो ढेरों खिले हैं, पर घास बढ़ गयी है.  माली पिछले डेढ़ माह से नहीं आ रहा है. नये माली का प्रबंध करना होगा. बनारस में जो तस्वीरें उन्होंने उतारी थीं, कम्प्यूटर पर डाल दी हैं जून ने, कुछ घाट अति सुंदर लग रहे हैं और गंगा स्नान के फोटो भी अच्छे हैं. आज सभी सखियों से फोन पर बात हुई, सुख-दुख के साथी होते हैं मित्र. सभी के लिए वे छोटा-मोटा कुछ उपहार लाये हैं. उसे छोटी ननद को पत्र लिखना है और प्रयाग में मिली एक परिचिता को भी, जिनके घर वे एक रात रुके थे. कल क्लब की मीटिंग है, परसों सत्संग है. कल जून तिनसुकिया भी जाने वाले हैं नई ड्रेसिंग-टेबल लाने !

अभी कुछ देर पहले वह टेलीफिल्म ‘निशब्द’ देख रही थी, एक वृद्ध व्यक्ति कितना अकेला होता है, वैसे तो हर व्यक्ति अकेला है अपने भीतर के संसार में, पर बच्चे के सामने अभी पूरा जीवन पड़ा है और युवा के पास अभी शक्ति है, बल है, वह अपनी दुनिया स्वयं बना सकता है पर वृद्ध असहाय होता है, उसका जीवन उसके हाथों से निकल चुका होता है उसको सिर्फ मृत्यु की प्रतीक्षा होती है, और जो अपने आप से नहीं मिला उसके लिए मृत्यु कितनी भयावनी वस्तु होती होगी. उसे मरने से डर नहीं लगता. इस वक्त उसके पास शक्ति है, भीतर ऊर्जा है और सबसे बड़ी बात स्वयं से पहचान है, जो कभी नहीं मरता. उसके पास अनंत ऊर्जा का भंडार है, अनंत प्रेम व अनंत आनन्द का भंडार है, पर इस भंडार का आनंद केवल भीतर ही भीतर वह उठाती रहे इतना तो काफी नहीं न, इसे तो सहज ही बिखरना चाहिए..जैसे फूल की सुगंध और जैसे हवा की शीतलता, उसके शब्द किसी के हृदय को स्पर्श करें ऐसे गीत वह लिखे..

आज सुबह गुरूमाँ ने कहा,
जो दिल से निकलती है वह दुआ कबूल होती है
पर मुश्किल तो यह है कि.. निकलती नहीं है

धर्म के मार्ग पर चलने से पहले उसकी प्यास जगानी है ! जिसके भीतर उसकी प्यास जग जाती है वह तो इस अनोखी यात्रा पर निकल ही पड़ता है, और एक बार जब कोई उस अज्ञात पर पूर्ण विश्वास करके उसे सब कुछ सौंप कर आगे बढ़ता है तो वह हाथ ऐसा थाम लेता है जैसे वह उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा था. वह उसे बल देता है राज बताता है, जब कोई पथ से दूर होने लगे तो पुनः लौटा लाता है. वह हजार आँखों वाला, हजार बाहुओं वाला और सब कुछ जानने वाला है. उसका विश्वास ही भक्त का विश्वास है, वही उसका सच्चा स्वरूप है. वे दो नहीं हैं, वह उसका अपना आप है. भक्त उसकी तरफ चलते-चलते घर लौट आता है, तब वह पूर्ण विश्रांति का अनुभव करता है !