Showing posts with label होली. Show all posts
Showing posts with label होली. Show all posts

Wednesday, September 18, 2024

सब्ज़ी वाला ट्रक

सब्ज़ी वाला ट्रक


आज सुबह सब्ज़ी वाला ट्रक आया था, कुछ ताजी सब्ज़ियाँ व फल भी मिल गये। ड्राइवर कह रहा था, अब से हफ़्ते में दो बार आया करेगा।वहाँ सभी सब्ज़ियाँ उसने नीली प्लास्टिक की बास्केट में सड़क पर पंक्ति में लगा दी थीं। दूर से लग रहा था, जैसे छोटा सा बाज़ार लगा हो।उसने पहली बार इस तरह सब्ज़ियाँ ख़रीदीं, तभी हल्की बूँदा-बाँदी होने लगी, झट प्लास्टिक के कवर से सब कुछ ढक दिया गया और लोग सामने वाले घर  के गैराज में खड़े होने चले गये। वह तो अच्छा हुआ, पाँच मिनट में ही बरखा रुक गई, शायद इंद्रदेव ने किसी की प्रार्थना सुन ली हो।दिन में फ़ोन पर फुफेरे भाई से बात की, फिर असम में उनके यहाँ काम करने वाली नैनी से।उसने सोचा है रोज़ ही किसी न किसी परिचित से बात करनी है, कोरोना के कारण सब अपने-अपने घरों में ही तो बंद हैं, फ़ोन से घर बैठे एक-दूसरे का हाल मिल जाता है।आज दो रचनाएँ प्रकाशित कीं, ‘शिवलिंग’ कविता पाठकों को अच्छी लगी है, परमात्मा ही लिखवा लेता है सुबह-सुबह, शेष दिन भर तो कविता का ‘क’ भी मन में नहीं आता। शाम को मँझली भाभी से बात की, उनकी माँ घर में हुई एक दुर्घटना में जल जाने के कारण अस्वस्थ हैं, इलाज चल रहा है, अपने पुत्र के यहाँ हैं।वृद्धावस्था में इंसान कितना बेबस हो जाता है। दोपहर बाद पापाजी से बात हुई, छोटी भाभी अपनी मायके गई है, दो दिन के लिए खाना बनाकर फ्रिज में रख गई है। रोटी या चावल वे ताजा बनवा लेते हैं, यदि कामवाली न आयी तो ख़ुद बनाते हैं।


आज वे इसी सोसाइटी में रहने वाली एक महिला डाक्टर से मिलने गये। उन्होंने भली प्रकार उन दोनों का चेकअप किया। कल पर्ची बना कर देंगी। उसे गर्दन  के व्यायाम तथा रात को सोने से पूर्व गरारे करने की सलाह दी। उनका घर बहुत अच्छी तरह से रखा एक गोदाम लग रहा था। अभी हाल में ही वे लोग यहाँ आये हैं। आज असम में उनके यहाँ काम करने वाले माली व धोबी से बात की।वर्षों तक उन्होंने अपनी सेवाएँ दी थीं।बात करके उसे अच्छा लगा, जीवन में कितने ही लोग मिलते हैं और फिर कभी न मिलने के लिए छूट जाते हैं। पापा जी ने बताया, अभी तीन दिन उन्हें और अकेले रहना है। 


आज दिन में गर्मी बहुत थी। सुबह सोसाइटी की तरफ़ से पानी डालने वाला आदमी आया था। बगीचे की घास और पौधों की हालत इस गर्मी में नाज़ुक हो जाती है। सुबहें और शामें अपेक्षाकृत सुहानी होती हैं, हवा बहती रहती है। आज गोधूलि बेला में सूर्यास्त के सुंदर दृश्य देखे। आम के बगीचे में पेड़ फलों से लदे हुए थे।सुबह सूर्योदय का वीडियो बनाया। ‘द ब्लू अंब्रेला’ का कुछ अंश देखा, मसूरी-देहरादून की कहानी है। एक छोटी लड़की के पास नीले रंग का एक छाता है, जापानी छाता, जो बेहद सुंदर है। 


रात्रि भ्रमण हो चुका है।इसके दौरान नियमित रूप से उन्हें एक ईसाई दंपति मिलते हैं, सामने वाली लाइन में सड़क के उस पार ही रहते हैं, पर ‘हैलो’ के अतिरिक्त कुछ बात नहीं हुई।आजकल सभी अपने काम से काम रखते हैं।आज सुबह उसका मन कितना स्थिर था, जैसे समता को पूरी तरह धारण कर लिया हो, पर कुछ ही देर बाद जून को किसी बात के लिए टोका, मन हिल गया चाहे एक सेकण्ड के लिए ही सही। लेकिन भीतर की स्थिरता कहीं जाने वाली नहीं है, अटल रहने वाली है, यह अनुभव कोई छीन नहीं सकता, क्यूँकि ‘वह’ वही है,  भला उससे ‘उसे’ कौन छीन सकता है ?


आज सुबह एक स्वप्न देखा, जिसमें वह रास्ता भूल गई है। स्वप्न उनके अचेतन मन की कहानी कहते हैं, कुछ सिखाते भी हैं। अभी नन्हे का फ़ोन आया, उसने घर का वीडियो दिखाया, काफ़ी काम हो गया है।कल यहाँ पहली बार आलू के चिप्स बनाये थे, सूख गये हैं, होली पर बनायेंगे। एक सखी का फ़ोन आया, वह भी होली की तैयारी कर रही थी।दोपहर को बड़ा भांजा आ गया था, उसके आने से जून में जैसे बचपन लौट आया है। इतमा मुक्त तो वह बेटे-बहू के आने पर भी महसूस नहीं करते। सुबह समय से पूर्व उठे, प्रातः भ्रमण के बाद पौने छह तक घर लौट आये, छत पर सूर्योदय देखा और बालसूर्य के सान्निध्य में योग साधना की। साप्ताहिक सफ़ाई का दिन था, सो पंखों की विशेष सफ़ाई करवायी। रात्रि भ्रमण के समय लगभग गोल चंद्रमा देखा, कल पूर्णिमा है। कल सुबह ही नन्हा और सोनू आ रहे हैं। होली का उत्सव कल ही मनाएँगे।परसों उनका अवकाश नहीं है। कुछ देर पहले समाचार मिला, मँझली भाभी की माता जी का देहांत हो गया है।वे कई दिनों से मृत्यु से जूझ रही थीं, जिसका भी जन्म होता है एक न एक दिन उसे जाना ही है। उसने सोचा, कल ही भाभी से बात करेगी। 


आज होलिका दहन है, प्रह्लाद की रक्षा का दिन ! जब भीतर का आह्लाद शेष रह जाये और हर कलुष जल जाये तभी मनती है होली ! वे होलिका दहन में नहीं गये। सोसाइटी में कई घरों में कोरोना के मरीज़ हैं, उन्हें अपनी सुरक्षा करनी है। पूरे कर्नाटक में विशेष तौर से बैंगलुरु में कोरोना का प्रकोप बहुत बढ़ गया है। भांजा आज भी यहीं है, उसे परसों नयी कंपनी में जॉइन करना है। शाम को असमिया सखी का फ़ोन आया, होली की मुबारकबाद दे रही थी। सुबह जून के तीन पुराने मित्रों का फ़ोन आया था। पुरानी दोस्ती देर तक क़ायम रहती है। सुबह बच्चे आ गये थे, विशेष भोज बनाया। शाम को वे दोनों पड़ोसियों के यहाँ गुझिया और रंग लेकर होली की शुभकामना देने गये। होली की तस्वीरें खींचीं। परिवार के एक सदस्य के यहाँ शोक का माहौल है, इसलिए कोई पारिवारिक ग्रुप में तस्वीरें नहीं डाल रहा है। एक उम्र के बाद यदि व्यक्ति अस्वस्थ हो तथा दूसरों पर निर्भर हो तो घरवालों पर बोझ बन जाता है। इसलिए भाभी से बात हुई, तो उसने कहा,  जो हुआ ठीक है, माँ बहुत कष्ट में थीं। 


आज होली है, उन्होंने प्रेम के रंग बहाए। सभी से बातचीत की। छोटे भाई को परसों से बुख़ार है। वह सफ़र से आया था, शायद थकान की वजह से ही हो। वहाँ कोरोना टेस्ट नहीं हो पा रहा है। सिवाय सरकारी अस्पताल के जहां बहुत भीड़ है। पापाजी भी कुछ परेशान से लगे, ज़ाहिर सी बात है, लगेंगे ही। एक सखी से बात की, वे लोग आगरा में हैं, भरतपुर घूम कर आये थे, पक्षी विहार देखा, बहुत उत्साहित होकर वह बता रही थी।            



Tuesday, August 4, 2020

हनुमान जयंती


आज ये सुंदर वचन सुने, अच्छे लगे तो लिख लिए. “मित्रता और शत्रुता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जब तक वे दूसरे के प्रति बह रहे हैं, स्वयं से दूर ही जा रहे हैं. चित्त की शुद्धि के लिए आवश्यक है कि वे देह के श्रृंगार और स्वादिष्ट भोजन में अत्यधिक रस न लें. अन्य की मौजूदगी में यदि वे स्वयं को अनुभव करते हैं तो स्वयं की अभी खबर नहीं है. भीतर की ऊर्जा को अनुभव करने के लिए उन्हें मात्र स्वयं को जानना है.” इस समय रात्रि के साढ़े सात बजे हैं. बाहर से टहलकर आये तो गंधराज का एक फूल लाये. आजकल फूलों की बहार है यहाँ, टेसू, रूद्र पलाश और भी न जाने कितने सुंदर फूल ! आज एक योग साधिका अस्वस्थ थी, उसे अस्पताल जाने को कहा है, ईश्वर करे वह जल्दी स्वस्थ हो जाये. सुबह उठने से पूर्व स्वप्न में नैनी के पुत्र का पूर्वजन्म देखा, उसका बचपन का चेहरा, फिर किशोरावस्था का, नीले रंग की कमीज पहने था, वह बहुत बहादुर था उस जन्म में. इसीलिए वह जरा भी नहीं डरता, बारिश में भीगता है. मिट्टी पर लोटता है और मन को दिन भर तक देता है. आज ही सुना कि साधना गहरी होती है तो अपने ही पूर्वजन्म का पता नहीं चलता अपने आस-पास के लोगों के पूर्वजन्म का भी ज्ञान होने लगता है. 

रामदेव जी जयपुर में राज्यवर्धन राठौर के नामांकन कार्यक्रम में लोगों का आवाहन कर रहे हैं कि वे एक बार फिर मोदी जी को जिताएं और देश को ऊँचाइयों तक ले जाने में अपना भी योगदान दें. आज चुनाव का दूसरा चरण है, मोदी जी अपने कामों के द्वारा एक बार पुनः भारी बहुमत से जीतकर आ जायेंगे, ऐसा उसे ही नहीं हर देशभक्त भारतीय को पूर्ण विश्वास है. लगभग एक महीने बाद परिणाम आ जायेंगे. आज एओल के एक शिक्षक का संदेश आया, गुरूजी के जन्मदिन पर कवि सम्मेलन होगा, उसके लिए दो कविताएं भेजनी हैं. वे इस वर्ष बंगलूरू में रहेंगे उस दिन. उसने कवि सम्मेलन के लिए रजिस्ट्रेशन किया. व्हाट्सएप पर एओल कवियों के ग्रुप में शामिल हुई. कविता बाहर-भीतर सब ओर मुखरित हो रही है. आत्मा की छिपी और गूढ़ सौंदर्य राशि का भावना के आलोक में प्रकाशित हो उठना ही कविता है ! 

आज सुबह उठने से पूर्व किसी ने चेताया वह उसकी बात सुनेगी या नहीं ? ये शब्द एक बार नहीं अनेक बार सुने. इतनी तीव्रता से कि जैसे कोई धमका रहा हो. परमात्मा उन्हें प्यार से अनेक इशारों से और फिर दृढ़ता से समझाता है. वह उन्हें अपने जैसा देखना चाहता है, वह उनका सुहृद है, उनका सखा और उनका अपना ! आज हनुमान जयंती है, नैनी ने हनुमान जी की तस्वीर के आगे सुंदर फूल सजाये. पूरी हनुमान चालीसा पढ़ी वर्षों बाद. सत्य के मार्ग पर उन्हें अपार आनंद मिलता है फिर भी वे राग-द्वेष के शिकार हो जाते हैं. शाम को मीटिंग थी, नई अध्यक्ष को क्लब का चार्ज दे दिया. 

अब अतीत की बात.. बरसों पुरानी, कालेज के अंतिम वर्ष की. सुबह नींद नहीं खुली और आज वह स्वतन्त्र है, कल से जल्दी उठ सकती है. बाजार गयी थी, सूट सिल गया, बेहद सुंदर लग रहा है पर पहनने वाला सुंदर हो तब तो बात भी है.  होली का दिन, महीना फागुन का नहीं सावन का लग रहा है, या आषाढ़ का एक दिन !  पानी तेजी से बरस रहा है. ईश्वर भी होली खेलना पसन्द करते हैं. वह इस समय किताबें लेकर बैठी है. तीन बजने वाले हैं, किसी को होली खेलना पसन्द नहीं, पिछले वर्ष भी होली इसी तरह मनायी गयी थी. दरबारा सिंह जी, पंजाब के मुख्य मंत्री का भाषण सुना, उसने इससे पूर्व प्रधान मंत्री या जगजीवन राम के अतिरिक्त किसी का भाषण नहीं सुना. दरबारा सिंह जी बोले और खूब बोले लेकिन अधिकतर बातें ऐसी थीं जो कई बार सुनी हुई थीं. इसके अलावा पंजाब में सिखों के अलग प्रदेश बनाये जाने के बार में, उस विवाद के बारे में उन्होंने कोई बात नहीं की, जिसकी कि कुछ लोग उनसे आशा रखते होंगे जो कि आज के भाषण से सम्बन्धित भी थी. कौमी एकता कमेटी के प्रेसीडेंट की आवाज में जो जोश था, उससे उनके दिल की गहराई में जो बात है, वह वाकई में है, यह जाहिर हुई. वे जहनी तौर पर इस कदर सहमे हुए हैं मुसलमानों से, उन्हें उनसे एक दूरी का अहसास बराबर होता रहता है. जब तक ये आंतरिक जड़ें जो मन में दूर तक धंस गयी हैं समाप्त नहीं होतीं, जब तक सिर्फ यह भाव पैदा नहीं होता कि कोई व्यक्ति इस वजह से कि वह बंगला भाषी है या मुसलमान है या किसी अन्य प्रदेश का है, इस तरह का या उस तरह का है, कौमी एकता दूर की चीज है. प्रश्न सिर्फ भाषा का नहीं है. भाषा का प्रश्न उछाला जाता है नारे बाजी में, दरअसल वे अपने-अपने खानों में इस तरह फिट बैठ गए हैं कि बाहर निकल कर देखना ही नहीं चाहते. कूप मंडूक की तरह अपने इर्दगिर्द नजर डालकर चुप हो जाते हैं, इस पीढ़ी को अपनी पुरानी पीढ़ी से क्या मिला ! कुशिक्षा, असभ्य भाषा, आधुनिकता के नाम पर भोंडापन, फ़िल्में और नारेबाजी. वे अपनी पीढ़ी को क्या देकर जायेंगे इससे भी नीचे की चीजें. आदर्शवाद का जिस तरह मखौल आज उड़ाया जा रहा है, आगे चलकर तो वह सिर्फ कल्पना की वस्तु रह जाएगी. 

Sunday, July 28, 2019

होली की गुजिया



कल दिन भर में केवल एक कविता की आठ पंक्तियाँ लिखीं, अब आगे की पंक्तियाँ कब बनेंगी, बनेंगी भी या नहीं, कौन जानता है. आज शनिवार है, साप्ताहिक सफाई का दिन और कल सुबह वे घूमने जाने वाले हैं, सो कल की जगह आज ही इतवार का विशेष स्नान भी. सुबह टहलने गये तो कोहरा भी था, जैकेट में भी ठंड महसूस हो रही थी. नन्हे से बात की, सोनू का गला ठीक नहीं है. नये घर के लिए उसने कुछ लोगों से बात की, कुछ घरों में किचन का काम भी देखा, काफ़ी जानकारी है उसे और समय भी दे रहा है, उनका घर बहुत सुंदर बनने वाला है. कल जून दोपहर को घर आ गये, मौसम दिन भर ठंडा ही रहा, एक योग साधिका के लिए कविता लिखी, जो वह बहुत दिनों से फरमाइश कर रही थी. एक सदस्या ने कहा, उन्होंने भी उसके लिए एक कविता लिखी है, जो अभी पूरी नहीं हुई है. आज दोपहर जून की एक सहकर्मी की बिटिया के पहले जन्मदिन की पार्टी में उन्हें जाना है.

आज दिन भर बदली बनी रही. मौसम कल और ठंडा होने वाला है, होली पर भी वर्षा का अनुमान है. आज सुबह एक आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना हुई. स्कूल से लौटी तो नैनी ने स्वर्ण का कान का बुंदा दिया, जो रसोईघर में गिरा हुआ उसे मिला था, पर पीछे की ठीपी नहीं मिली, उसका हाथ कान पर गया, ठीपी वहीं थी. खराब रास्तों पर कार से दो बार की यात्रा में, बच्चों को व्यायाम और आसन कराने में किसी भी समय वह गिर सकती थी पर जाने किस शक्ति से वह गुरुत्वाकर्षण के सारे नियमों को तोडती हुई अपने स्थान पर बनी रही, जैसे किसी ने अदृश्य हाथ लगाकर थामे रखा हो. एक और बात हुई भोजन करते समय दायीं तरफ का ऊपरवाला एक दांत टूट गया, बाद में देखा तो वह दांत पर लगी कैप थी, जो कई वर्ष पहले लगवायी थी. कल डेंटिस्ट के पास जाना है. कल ही दोपहर को गुजिया भी बनानी है और शाम को एक सखी की विदाई पार्टी में जाना है. कल दो योग कक्षाएं भी लेनी हैं. ईश्वर ही इन सब कार्यों को करने की शक्ति प्रदान करेंगे. आज स्कूल में जो भी बच्चों को कराया और बताया, जैसे कोई और ही भीतर से प्रेषित कर रहा था. स्कूल जाते समय ष अध्यापिका ने अपने चाचा के देहांत का समाचार बताया, जिन्होंने नब्बे वर्ष के अपने बड़े भाई को अपना उत्तराधिकारी बना दिया है. उन्हें कुछ समय पूर्व ही अस्पताल से लाये थे, वह ठीक हो रहे थे. श्रीदेवी की मृत्यु के कारणों पर भी अटकलें बढ़ती जा रही हैं, उसकी मृत्यु पानी में डूबने से हुई. जीवन छोटा हो या बड़ा, अर्थपूर्ण होना चाहिए, उसने अपने जीवन में जो हासिल किया, कम ही लोग कर पाते हैं. समय और लहर किसी का इंतजार नहीं करते, यह वाक्य इस डायरी के पन्ने पर नीचे लिखा है, कितना सटीक है यह वाक्य. समय गुजरता ही जाता है अपनी गति से. कुछ देर पहले सोनू से बात की, उसका बुखार अभी उतरा नहीं है.

सुबह टहलने गये तो कोहरा घना था, धुंधला-धुंधला सा सब कुछ.. जैसे किसी स्वप्नलोक का दृश्य हो. वापस आकर साधना की. कल जो दांत निकल गया था, उसके कारण दायीं तरफ से कुछ भी खाने में दिक्कत हो रही है. आज पूरा दिन व्यस्तता में बीतने वाला है.
दो दिनों का अन्तराल ! आज सुबह से ही वर्षा हो रही है. अच्छा ही हुआ कि होली का उत्सव उन्होंने कल ही मना लिया. सुबह जून दफ्तर जा रहे थे कि मंझले भाई का फोन आया, उसने जून के एक पुराने सहकर्मी से बिटिया के पीजी में रहने की बात की है. दूधवाला, सफाई कर्मचारी, धोबी, नैनी, माली-मालिन, ड्राइवर सभी को गुजियाँ दे दी हैं, शाम को योग साधिकाओं को भी खिलानी हैं. कल शाम को एक परिवार को बुलाया था, होली का विशेष भोज अच्छा रहा. सभी के साथ संबंध अब सहज और प्रेमपूर्ण हो गये हैं, अब कोई पुराना संस्कार नहीं रहा, परमात्मा की कृपा से मन खाली है और कल दोपहर जून भी अपनी नाराजगी ज्यादा देर तक नहीं रख सके. उसकी सकारात्मकता ने  अवश्य उन्हें छुआ होगा. उनके भीतर माँ का दिल है. उसे भूख लगी है यह सुनते ही कितनी सारी वस्तुएं ले आये. सुबह उन्होंने मिलकर दही-बड़े बनाये, बहुत ही अच्छे बने हैं. उन्हें भी शाम के विशेष भोज में परोसेंगे. कल दोपहर बाद मृणाल ज्योति में मीटिंग है. वहाँ ले जाने के लिए भी मिठाई का डिब्बा पड़ा है, जो सोनू के पिताजी लाये थे. देने की इच्छा हो तो सब सामान उपस्थित हो जाता है.



Monday, July 9, 2018

फूलों के रंग



पिछले दिनों काफी घूमना हुआ, कई परिजनों से भेंट हुई. बड़े भाई के साथ कुछ दिन बिताये. परसों दिल्ली से वह लौटी तो घर में एक मेहमान मिला, छोटी ननद का छोटा पुत्र यानि उसका भांजा, जो वार्षिक परीक्षाओं के बाद कुछ दिनों के लिए यहाँ घूमने आया है. जून उसी दिन गोहाटी चले गये. आज वह वापस आ रहे हैं, पर कल उन्हें पुनः जाना है. यह किशोर सभी कार्य धीरे-धीरे करता है, और इसका बड़ा भाई उतनी ही शीघ्रता से. सुबह चार बजे उठाने को उसने कहा था, पर साढ़े पांच बजे उठा, वे ट्रैक पर टहलने गये, जिसके निकट स्थित गुलाब का बगीचा फूलों से भर गया है. कल शाम वे मृणाल ज्योति गये, स्कूल आगे बढ़ रहा है. भांजा भी गया था, चुपचाप बैठकर किताब पढ़ता रहा. बिस्किट ले गया था, पर बांटे नहीं उसने, उसके कहने पर शायद बाँट भी देता, वे देकर आ गये. आज नैनी की जगह मालिन काम कर रही है. नैनी अस्पताल में है, उसका तीसरा बच्चा जन्म लेने को है, सब कुछ ठीक से हो जायेगा, उसने मन ही मन प्रार्थना की. शनिवार को साप्ताहिक सफाई का दिन है, सफाई कर्मचारी दीवारों और छत के जाले साफ कर रहा है.

कल हफ्तों बाद ब्लॉग पर लिखा. परमात्मा इस अस्तित्त्व की समग्र ऊर्जा का नाम है. जिसके पूर्व न कोई कारण है न कोई आशय. वह बस है जो इस विराट आयोजन के रूप में प्रकट हो रहा है. वह पूर्ण है और शून्य भी, वह अनंत है और अति सूक्ष्म भी, वह दूर भी है और निकट भी, वही सब कुछ हुआ  है पर वह कुछ भी नहीं है. जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद वे उसी असीम के साथ एकाकार हो जाते हैं. यह सृष्टि वर्तुलाकार है, सारा ब्रह्मांड किसी केंद्र का अनुगमन कर रहा है. इस जगत में विरोध नहीं है, सारे विपरीत एक दूसरे के पूरक हैं. जो भी विरोध नजर आता है वह अज्ञान के कारण ही है. कितना रहस्यमय है यह ज्ञान, जो समझकर भी समझाया नहीं जा सकता, योग वसिष्ठ में जब मुनि राम को कहते हैं, कुछ हुआ ही नहीं, ब्रह्म अपने आप में स्थित है, तो उनका मन अचरज से भर गया था. किशोर मेहमान को ध्यान के बारे में जानना अच्छा लग रहा है, वह कितने ही प्रश्न पूछता है. सुबह योगासन भी करता है. परसों उसके माँ-पापा आ रहे हैं, जिनके साथ वे होली का त्योहार मनाएंगे और कहीं घूमने भी जायेंगे, लिखने का समय तब नहीं मिलेगा.

मेहमान कुछ दिन रहे और चले भी गये. इस बार होली का त्योहार उन्होंने फूलों के रंगों से मनाया. पलाश और गुड़हल के फूलों से बनाया गीला रंग, हल्दी व आटे से सूखा रंग, हर्बल गुलाल तो मंगाया ही था. आज एक सप्ताह बाद डायरी खोली है. मौसम बादलों भरा है. सुबह छाता लेकर प्रातः भ्रमण किया, फिर भी हल्की सी फुहार पीठ और चेहरे को भिगो रही थी, जो ठंडक से भरने के बावजूद भली लग रही थी. सुबह स्कूल गयी, प्रिंसिपल के कहने पर बच्चों को ध्यान कराया, पता नहीं उन्हें कितना भाता है, आसन तो यकीनन उन्हें भाते थे. क्लब की सेक्रेटरी बाहर गयी हैं, इस महीने उसे ही मासिक बुलेटिन बाँटना है, जून ने बारह क्षेत्रों के लिए सदस्याओं की संख्या के अनुसार बंडल बनाने में उसकी सहायता की, सुबह अपने ड्राइवर से ही ही वे उन्हें भिजवा भी देंगे. इसी हफ्ते क्लब का एक कार्यक्रम भी है, इस वर्ष का अंतिम व सबसे बड़ा आयोजन.

आज भी सुबह से घनघोर घटा छायी है, दिन में रात होने का आभास करा रही है. मौसम इतना ठंडा हो गया है कि स्वेटर जो धोकर रख दिए थे, पुनः निकालने पड़े हैं. सुबह नयी पड़ोसिन को फोन किया, वह सदा अपने घर आने का निमन्त्रण देती थीं. उन्होंने कहा दोपहर को तीन बजे वह उसका स्वागत कर सकती हैं, अर्थात वह खाली हैं. कल शाम को योग कक्षा में एक साधिका ने ध्यान की जगह ज्यादा आसन कराने को कहा. कुछ न करने से कुछ करना ज्यादा अच्छा लगता है सभी को, कुछ न करना ज्यादा कठिन भी है और ध्यान है कुछ भी न करना. अगले महीने मंझले भाई की बिटिया की सगाई होनी है और सम्भवतः इसी वर्ष विवाह भी हो जायेगा. छोटी बहन आज भारत आने वाली है. कल भाई के यहाँ पूजा है, वे तैयारी में लगे होंगे, उसने फोन किया तो उन्होंने नहीं उठाया.

Tuesday, September 19, 2017

क्रिकेट का विश्वकप


आज होली है, हर बार से कुछ अलग रही आज की होली ! रंग को छुआ भी नहीं, पर अंतर रंग गया हो तो बाहर के रंग और क्या करेंगे. दोपहर को स्वयं को सोते हुए देखा, बिलकुल स्पष्ट, भीतर कोई जाग रहा था और देह शांत थी, श्वास भी गहरी हो गयी थी. बाद में कोई स्वप्न चलने लगा. जब स्वप्न नहीं रहेंगे तभी पूर्ण मुक्ति का अनुभव होगा. इस समय टीवी पर क्रिकेट विश्वकप का मैच चल रहा है. भारत बहुत विषम परिस्थिति में है. पांच विकेट गिर गये हैं. शाम को नाश्ते में लिट्टी चोखा बनाया, होली का विशेष भोजन. बड़ी भाभी अब पहले से बेहतर हैं, भाई शांति से उनकी देखभाल कर रहे हैं.

आज सुबह उठी तो एक स्वप्न की स्मृति बनी हुई थी. वे नन्हे के घर गये हुए हैं. उसे अपने मित्रों के साथ एक विवाह में जाना है. मित्र पहले ही आ गये हैं पर वह स्वयं अभी आया नहीं है. आता है तो कहता है वह नहीं जायेगा, बिलकुल तटस्थ लग रहा है. एक दिन स्वप्न में गुरूजी को कितना स्पष्ट देखा था. एक में तो वह दूर से निकल जाते हैं तेज-तेज चलते हुए, दूसरे में वे उनके निकट हैं, उनका स्नेह बरस रहा है. अज दोपहर को भी बहुत जीवंत स्वप्न थे. एक अनोखी दुनिया उसके भीतर खुल गयी है, जागृत से भी अधिक जीवंत दुनिया. विपासना केंद्र में एक दिन ध्यान के वक्त ऐसा अनुभव हुआ जैसे हाथ में काला पेन आ गया है निब वाला और पलक झपकते ही सारा बांया हाथ काला हो गया, आश्चर्य करे इससे पूर्व ही सामान्य हो गया. एक क्षण में कोई पूर्व कृत्य जैसे सम्मुख आया हो. एक बार तो किसी के खांसने की आवाज ऐसे लगी जैसे कोई वृक्ष गिर गया हो. एक दिन तो स्वयं को देह से पृथक महसूस किया. आज सुबह चार बजे एक बाद उठी. प्रतिदिन की भांति रही दिनचर्या. इतवार था और महिला दिवस भी, सो इडली का नाश्ता जून ने बनाया. शाम को एक विवाह उत्सव में जाना है. कल लेडीज क्लब की मीटिंग है और डेंटिस्ट के पास भी जाना है. नीचे के दातों की स्केलिंग कर दी है, कल शेष करेगा.

आज घर में गुरू पूजा है. तैयारी लगभग हो चुकी है. बड़ी भाभी के लिए प्रार्थना करने का मन होता है. ईश्वर उन्हें शक्ति दे. आज प्रातः भ्रमण से लौटते समय भीतर का वासी कितना मुखर हो गया था. कितने स्पष्ट शब्दों में अपने होने का अहसास दिला रहा था. अब लग रहा है कितने दूर की बात है. सुबह वाकई सतयुग होता है, मन कैसा खिला-खिला सा. दोपहर तक उसी भाव में डूबा रहा मन. तितली पर एक कविता भी लिखी. बगीचे में सुंदर फ्लौक्स खिले हैं, देर से खिले पर बहुत सुंदर हैं. फूलों की बहार है इस समय उपवन में. नन्हे से बात की, वह अपने काम से खुश है, काम ज्यादा है पर उसे कोई शिकायत नहीं है. यू ट्यूब पर श्री श्री के विचार सुने. परमात्मा की उपस्थिति को हर पल अपने होने से अभिव्यक्त करने वाले सद्गुरू कितना बड़ा योगदान समाज, देश और दुनिया को दे रहे हैं.     


Wednesday, May 10, 2017

जीवन की शाम


आँगन में आम के पेड़ से पंछियों की आवाजें निरंतर आ रही हैं. हवा दरवाजे को धकेल कर बंद कर रही है. प्रकृति निरंतर क्रियाशील है. कल शाम से उसे देह में एक हल्कापन महसूस हो रहा है, जैसे भार ही न हो और चलते समय एक तिरछापन सा लगता है, शायद यह वहम् ही हो. मन हल्का हो तो तन भी हल्का हो जाता है. पिताजी आज अपेक्षाकृत ठीक हैं. आज होली पर पहली कविता ब्लॉग पर पोस्ट की. हर कोई अपनी अहमियत किसी न किसी तरह जताना चाहता है, हर कोई उसी परमात्मा का अंश जो है, हर कोई पूर्ण स्वतन्त्रता चाहता है, परमात्मा का भक्त भी पूर्ण स्वतंत्र है. परमात्मा उनके कितने करीब है, उनसे भी ज्यादा करीब..श्वासों की श्वास में वह है..सुक्षमातिसूक्ष्म.. जून आज देर से आयें शायद, उनके पूर्व अधिकारी आये हैं, शाम को उन्हें भोजन पर भी बुलाया है. पिताजी बाहर बरामदे में बैठे हैं, जून की प्रतीक्षा करते हुए, चटनी के लिए धनिया व पुदीना तोड़ लाये हैं बगीचे से.

कल शाम का आयोजन अच्छा रहा. अतिथि अकेले ही आये, भोजन बच गया. आज सुबह वास्तविक अलार्म बजने से पहले ही मन में अलार्म की घंटी की आवाज सुनाई दी, जगाने के लिए अस्तित्त्व कितने उपाय करता है, कभी ऐसे स्वप्न भेजता है कि उठे बिना कोई रह ही नहीं सकता. कल शाम जून और पिताजी को योग वशिष्ठ पढ़कर पढ़कर सुनाया तो वे प्रसन्न हुये आत्मा के बारे में जानकर. अभी-अभी दो सखियों को होली के लिए निमंत्रित किया. गुझिया के लिए तिनसुकिया से खोया भी लाना है. शनिवार को जून ने एक कुर्ती का ऑर्डर किया था नेट से, आज पहुंच गयी, बहुत सुंदर एप्लिक का काम है उस पर. मौसम बहुत अच्छा है आज, हल्के बादल हैं और ठंडी सी हवा भी बह रही है. शायद कुछ दूर वर्षा हुई है. परमात्मा नये-नये रूपों में प्रकट हो रहा है. डायरी के पन्नों पर चमकते हुए प्रकाश कणों के रूप में, फिर श्वेत धुएं सा कोई बादल तैरता हुआ सा दीखता है, हाथ के चारों ओर नीले रंग की आभा के रूप में, सब कुछ कितना सुंदर लग रहा है, हवा, धरा, गगन और परमात्मा.. कल रात स्वप्न में ठोस वस्तु को देखते-देखते आकर बदलते देखा, स्वप्न कितने विचित्र अनुभव कराते हैं.  

कल शाम जून ने कहा शुक्रवार को वे कुछ सहकर्मियों को खाने पर बुलाना चाहते हैं, जबकि उसे होली पर या उसके बाद ही ऐसा करने का मन था, सो अपने मन की बात कही, कारण क्या था वह उसे स्वयं भी पता नहीं था, पर भीतर से यही आवाज आ रही थी कि शुक्रवार को ठीक नहीं रहेगा. आज सुबह जब जून को फोन आया कि उस दिन उन्हें बाहर जाना है तो बात स्पष्ट हो गयी, कोई अंतः प्रेरणा थी शायद. पिताजी की गर्दन में दर्द है, गर्म पानी की बोतल से सेंक करते-करते सो गये हैं, भोजन के लिए आवाज देने पर उठे नहीं. जून उनके लिए दर्द कम करने की दवा ले आये हैं. आजकल वे बैठे-बैठे भी सो जाते हैं, धीरे-धीरे चलते हैं और ज्यादा वक्त लेटे रहते हैं, शांत हो गये हैं. जीवन धीरे-धीरे सिमट रहा है, उन्हें देखकर ऐसा ही लगता है. टीवी देखना कम कर दिया है. दोपहर को जून के एक मित्र आये थे खाने पर, सदा की तरह देर से आये, जल्दी-जल्दी खाकर चले गये. इन्सान का स्वभाव बदलता कहाँ है, जैसे उसका मन..जो हल्की सी कसक, एक हल्का सा स्पंदन बना ही लेता है, लेकिन सद्गुरू कहते हैं पता तब ही चलता है जब कोई उसके पार हो जाता है. सूक्ष्म स्पंदन भी जब नहीं रहते, तब वह अचल, स्थिर सत्ता स्वयं को प्रकट करती है, वह स्वयं ही स्वयं को देख सकती है. आज ठंड काफी है, जून के आने के बाद वे भ्रमण के लिए जायेंगे. 

Tuesday, October 18, 2016

जापान में भूकम्प


पिछला पूरा हफ्ता बिलियर्ड मन पर छाया था. शनिवार को कुछ ज्यादा ही. रात को स्वप्न में भी बॉल दिख रही थी. ज्वर इसे ही कहते हैं. असमिया सखी कितनी शांत और सहज नजर आ रही थी, वह खेल में जीत भी गयी. कल जून ने उनके बगीचे के फूलों का वीडियो भी उतारा. कल दीदी से बात हुई, सभी बच्चों के बारे में, माँ के पास बच्चों के सिवाय बात करने का दूसरा क्या विषय हो सकता है. होली में मात्र पांच दिन रह गये है, कविता लिखी है, बस रंगों से सजाना भर है, आज शाम को जून सहायता करेंगे, फिर सभी को भेजेंगे. कल संडे क्लास में बच्चों को काल्पनिक रंगों से होली खिलाई, बच्चे कितने सरल होते हैं, झट मान गये और एक-दूसरे पर रंग छिड़कने लगे. आजकल माँ बाहर बगीचे में जाकर नहीं बैठतीं, पिताजी अकेले बैठे अखबार पढ़ते हैं या कोई पत्रिका.

बड़ी भांजी ने कविता पढ़कर जवाब भेजा है. जापान में जो हुआ उसके बाद प्रकृति पर भरोसा करना ज्यादा मुश्किल है, लेकिन वह तो जड़ है, उसे कोई चला भी नहीं रहा. प्राकृतिक नियमों के आधार पर ही वह काम करती है. शरीर, मन, बुद्धि सभी तो प्रकृति के अंग हैं, लेकिन मन चेतना का आश्रय पाकर मनन् कर सकता है, अर्थात मन पदार्थ से ऊपर उठ सकता है यदि चाहे तो, जब पदार्थ का संयोग चेतन से होता है तो एक तीसरा तत्व पैदा होता है, वही अहंकार है, स्वयं के होने का आभास तभी होता है. यह सत्य है कि उनका होना एक लीला मात्र ही है, क्या हो जायेगा अस्तित्त्व में यदि वे न रहें या रहें ! इसका अर्थ हुआ कि वे सदा से थे या सदा नहीं थे !

कल पिताजी का जवाब आया, उन्होंने तीन कविताओं का जिक्र किया है. दो स्मरण में आ रही हैं, तीसरी याद नहीं. कविताएँ भी उससे लिखी जाने के बाद जैसे कुछ और हो जाती हैं, उनसे कोई संबंध नहीं रहता..क्योंकि वह जो वास्तव में है, अलिप्त है, निर्विकार है, कोई वस्तु उसे छू नहीं सकती. कल शाम को मृणाल ज्योति गयी. कई बातों की जानकारी हुई. कम्पनी में हड़ताल हो गयी है, जून वापस आ गये हैं, आज वह गुझिया बनाने वाली है, अब तो वह भी सहायता करेंगे.


वर्षा के कारण मौसम एक बार फिर ठंडा हो गया है. फागुन का महीना जैसे सावन में बदल गया है. वैसे भी मन बार-बार जापान के लोगों की तरफ जाता है. जिनके लिए इतनी बड़ी विपदा सम्मुख आ खड़ी हुई है. लेकिन जापानवासियों को भूकम्प झेलने की आदत हो गयी है, आपदा प्रबन्धन में वे बहुत आगे हैं. परमाणु रिएक्टरों से जो रिसाव हो रहा है उसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं. अभी वे सुरक्षित हैं, लेकिन कब तक रहेंगे, कौन कह सकता है ! अभी कुछ देर पूर्व पिताजी की उम्र की बात चल रही थी. अस्सी के होकर भी वह बिलकुल सीधे चलते हैं, मन में जोश भरा है और जवानों की सी फुर्ती है. कल क्लब में होली उत्सव मनाया जायेगा. 

जला हुआ दूध


फिर एक अन्तराल ! सुबह चार बजे ही अलार्म सुनकर नींद खुल गयी, न बजे तो पता नहीं कितनी देर से खुले. दिन ऐसे बेहोशी में बीत रहे हैं. आज दूध देर से आया था, दोपहर को गैस पर रख कर भूल गयी. जून को लंच के बाद बाहर तक छोड़कर आई तो दूध चूल्हे से उतारने के बजाय कम्प्यूटर के सामने बैठ गयी और पतीला बुरी तरह से जल गया. देखें कितना साफ होता है, नैनी को कहा है कि रगड़-रगड़ कर साफ करे. सारे घर में जले हुए दूध की गंध फ़ैल गयी है. ब्लॉग पर ‘गंगा’ कविता डाली, तस्वीर नहीं आ पाई, स्पीड बहुत कम थी. जून ने दोपहर को पपीते के परांठे की तारीफ़ क्या कर दी, सब भूल गयी. दुःख में मानव सजग रहता है, सुख उसे बेहोश कर देता है, पर उन्हें तो दोनों का साक्षी होकर रहना है. सजग होकर रहना ही आत्मा में रहना है. विचार सदा भूत या भविष्य के होते हैं, वर्तमान में कोई विचार नहीं होता, वर्तमान का पल इतना सूक्ष्म होता है कि बस वह होता है. पिछले दिनों जो पुस्तक पढ़ती रही उसने भी मन पर जैसे पर्दा डाल दिया था. खैर, ठोकर लगकर ही इन्सान सुधरता है. भीतर जो साक्षी है, वह तो अब भी वैसा ही है, निर्विकार और स्थितप्रज्ञ, यह जो उथल-पुथल मची है, यह अहंकार को ही सता रही है.

कल से एक नई किताब पढ़नी शुरू की है, जो कोलकाता यात्रा के दौरान खरीदी थी पर अभी तक पढ़ी नहीं थी. इसके अनुसार सबसे अच्छा ध्यान है कुछ भी न किया जाये, साक्षी भाव में रहा जाये. जब जरूरत हो तभी मन से काम लेना है, अन्यथा उसे शांत रहने दें. अपने आप आकाश में बादलों की तरह कोई विचार आये तो उसे गुजर जाने दें, बिना कोई टिप्पणी किये क्योंकि टिप्पणी करके भी क्या होगा, व्यर्थ ऊर्जा नष्ट होगी. जीवन में भी इसी सिद्धांत को अपनाना होगा तथा ध्यान में भी. हर समय इसी को पक्का करना होगा तब न अहंकार रहेगा न दुःख ! साक्षी भाव इतना सूक्ष्म है कि मन, बुद्धि की पकड़ में नहीं आता, जब कुछ न करें तो बस वही होता है लेकिन जैसे ही भीतर कोई स्फुरणा हुई वह लोप हो जाता है, बड़ा शर्मीला है ! अंतर के आकाश में जब वर्तमान का सूरज खिलता है तो अतीत के बादल छंट जाते हैं.

आज विश्व महिला दिवस है, उसे अपने भीतर अनंत शक्ति का उदय होता दिखाई दे रहा है. कल शाम को क्लब में पहली बार बिलियर्ड खेला. q तथा v का भेद जाना, अच्छा लगा. कोच अच्छी तरह सिखा रहे हैं. कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए. होली का उत्सव आने वाला है. होली का उद्देश्य है सारे मतभेद भुलाकर मस्त हो जाना, अद्वैत का संदेश देती है होली..एकता का, प्रेम का, मिठास का, मधुरता का..जब आम पर बौर छा जाते हैं और पलाश के फूलों से वृक्ष सज जाते हैं. भंवरे और तितलियाँ गुंजन करती हैं, जब हवा में मदमस्त करने वाली सुगंध भर जाती है. जब महुआ फूलों से लद जाता है. गाँव-देहात में फागुनी बयार की मस्ती में लोग फागुन गाते हैं और जब बच्चों की परीक्षाएं होने वाली होती हैं, तब होली आती है. रंगों की बातें करे तो हर रंग सुंदर है. सतरंगी यह जगत और सुंदर बन जाता है, तो होली पर कविता लिखी जा सकती है..


Monday, July 11, 2016

होली के रंग


मौसम भीगा-भीगा सा है, गरज रहा है मेघ और छम-छम बरस रही हैं बूँदें ! मन भी भीगा है किसी अनजाने प्रेम की मस्ती में ! सद्गुरु क्या आये उसकी आध्यात्मिक यात्रा को पंख लग गये हैं, कितनी असीम करुणा है उनकी, वह जानते हैं सब कोई तो उन तक पहुंच नहीं सकते, सो उन्हें खुद ही आना पड़ा. ईश्वरीय कृपा का कोई पार नहीं पा सकता, वह दिन-रात अखंड अनवरत उन पर बरस रही है. वे ही अनदेखा किये अपने क्षुद्र मन का शिकार होते रहते हैं और झूठे अहम को सजाते रहते हैं, एक बार जब आभास होता है कि परमात्मा उनके साथ है ओर उनसे नितांत एकान्तिक प्रेम करता है, वे कृत-कृत्य हो जाते हैं, भीतर हिलोरें उठती हैं, तन-मन हल्का हो जाता है, फूल सा हल्का और ऐसा लगता है जैसे जन्मों का भार सिर से उतर गया हो...मुक्ति इसी को कहते हैं न ? भक्ति की दासी है मुक्ति यह कभी सुना था, सच ही सुना था !

गुरू का आदेश यही है कि वे हुकुम में रहें, उसका संदेश है कि हुकुम में रहकर जो शांति, आनंद और सुख उन्हें मिला है वह सभी को बाँटें. आज सुबह स्नान के बाद अनुग्रह हुआ और भीतर ध्यान का सूत्र मिला. उन्हें कुछ नहीं करना है, कुछ नहीं पाना है और वे कुछ नहीं हैं. कितना आसान है ध्यान करना सद्गुरु की कृपा के बाद. परमात्मा ने उन्हें अपने जैसा बनाया है और वे हैं कि अपने होने से ही संतुष्ट नहीं हो पाते, वे अपने होने को भी जान नहीं पाते. सबमें उसी परमात्मा का नूर है, जो एक ओंकार, अकाल मूरत, निर्भव, निर्वैर, अजूनी है. वह सत्य स्वरूप परमात्मा उनका अपना आप होकर भीतर ही बैठा है. वह कितना निकट है उनके, वह प्रकाश रूप है, वह चिन्मय है ! वह उनके हर कार्य हर भाव को देखता है, वह द्रष्टा है ! टीवी पर मुरारीबापू राम कथा सुना रहे हैं. उन्होंने भी अपने भीतर उस परमात्मा को अनुभव किया है. वह कह रहे हैं, हरि उनका फैमिली डाक्टर है, वह सारे अस्तित्त्व को सम्भालने वाला है. यदि वे भी अस्तित्त्व का हिस्सा बन जाएँ तो उनका भी ध्यान अपने आप होने लगता है !


कल होली है और परसों दुलहण्डी, इस वर्ष वे होली नहीं मना रहे. न ही गुझिया बनाने का उत्साह है, न ही सबको बुलाकर रात्रिभोज करने का, न ही सबके लिए टाइटिल लिखने का. कुछ खल तो रहा है तभी तो बार-बार ख्याल इसी बात की ओर जा रहा है, पर हर अच्छी चीज भी आखिर कभी न कभी तो खत्म होती है. इस साल ऐसे कई कारण हैं. सबसे बड़ा तो माँ का गिरता हुआ स्वास्थ्य, पिताजी के दातों की समस्या है. एक सखी के बेटे के बारहवीं के इम्तहान हैं. दूसरी की सासूजी को हाथ में चोट लगी है. एक अन्य को लोहरी पर बुलाया था तो बहुत बुलाने पर आये थे, इन सब बातों से जैसे भीतर उत्साह नहीं है. नैनी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है, काम बढ़ जायेगा तो वह भी परेशान हो जाएगी और इन सब बातों से बढकर जो कारण है वह है सद्गुरु का आना, उस पर कृपा करना और भीतर जागृति दिलाना कि समय बहुत कीमती है. व्यर्थ गंवाने की जरा भी गुंजाइश नहीं है. इस वर्ष वे ध्यान करते हुए ईश्वर के प्रेम के रंगों से भीगने की होली खेलने वाले हैं. बाहर की होली बहुत खेल ली, अब भीतर जाने का वक्त है. मैदे की वस्तुएं उन्हें रास नहीं आतीं, सो गुझिया कैंसिल, हाँ गुलाब जामुन बनायेंगे, जो भी मिलने आये, खुले दिल से उनका स्वागत किया और उन्हीं का रंग लगाकर खिला दिया गुलाब जामुन ! 

Monday, May 16, 2016

होली की पावन ज्वाला


ध्यान का फल ज्ञान है. कोई जगत में लगाये या परमात्मा में.. संसार में जिसका ज्ञान मिल जाता है, वहाँ से ध्यान हट जाता है क्योंकि ध्यान ज्ञान बन गया है. पदार्थ में जोड़ा ध्यान व्याकुलता को जन्म देता है, क्योंकि जब एक पदार्थ का ज्ञान मिल जाता है, दूसरे को जानने की चाह जग जाती है, पर इतने बड़े जगत में कितना कुछ अनजाना है. अपनी इस व्याकुलता को भूलने के लिए मानव क्या-क्या नहीं करता. वह अपने आप को इतर कामों में लगाकर उस प्रश्न से बचना चाहता है जो उसे व्याकुल कर रहा है. वह जगत को दोनों हाथों से बटोर कर अपनी मुट्ठी में कैद करना चाहता है पर वह भी नहीं कर पाता क्योंकि जगत में सभी कुछ नश्वर है, वह तब भी जगता नहीं बल्कि नींद के उपाय किये जाता है. जब तक कोई मांग है तब तक भीतर की स्थिरता को अनुभव नहीं किया जा सकता. संसार भीतर का प्रतिबिम्ब है. परमात्मा सदा रहस्य बना रहता है. वह हर कदम पर आश्चर्य उत्पन्न होने की स्थिति पैदा कर देता है ! परमात्मा में यदि कोई ध्यान लगाये तो वह ज्ञान होने के बाद भी नहीं हटता क्योंकि परमात्मा का ज्ञान कभी पूरा नहीं होता.

आज भी सुंदर वचन सुने. ध्यान बाहर की तरफ जाए तो केंद्र अहंकार है, ध्यान भीतर जाये तो केंद्र निरंकार है. बाहर जाना सरल है, भीतर जाना कठिन है. अहंकार कानून की पकड़ में नहीं आता, केवल गुरु की शरण में आता है और परमात्मा की पकड़ में आता है. अधूरे मन की पहचान है अशांति तथा चिंता, पूर्ण मन की पहचान है पूर्ण से जुड़ना ! हर सुख की अपनी उमर है, आनंद अमर है. तात्कालिक भय तथा असुरक्षा की भावना जब किसी को घेर लेती है तो बुद्धि काम करना बंद कर देती है. उसे लगता है, खतरा है, पर आत्मा को भय हो ही नहीं सकता, वह अभय, निर्भय तथा अजर, अमर है. भय के पीछे मोह है, मोह के पीछे अज्ञान, अज्ञान ही उन्हें बाहर की घटनाओं से प्रभावित करता है, जबकि बाहर की घटनाओं का मन के विचारों से कोई संबंध नहीं है, वे संबंध जोड़ लेते हैं ! पुराने संस्कारों के कारण अथवा प्रारब्ध के कारण भी मन भय जगाता है, जो बीज पहले बोये थे उनके फल आने लगें तो भी मन विचलित होता है. ज्ञान के बिना इनसे मुक्ति का कोई उपाय नहीं.  

कल होली है, रंगों वाली आज होलिका दहन है. पिछले वर्ष भर में जितने भी मन मैले हुए, कटुता जगी, उन सब अशुद्धियों को जलाकर शुद्ध हो जाने का पर्व ! बीती हुई बातों को भुलाकर बिलकुल नये व्यक्ति की तरह जगत का, लोगों का स्वागत करना होली का त्यौहार सिखाता है ! पिछले हफ्ते वह सत्संग में होली की कविता लेकर गयी थी. जैसे खर-पतवार खेत में अपने आप बिना उगाये उग जाते हैं तथा वे फसल को भी खराब करते हैं वैसे ही मन में व्यर्थ के विचार सद्विचारों को भी प्रभावित करते हैं. इस समय टीवी पर रामकथा आ रही है. टीवी के माध्यम से लाखों व्यक्ति उसकी तरह ज्ञान प्राप्त करते हैं. बापू कह रहे हैं केवल स्मरण मात्र से भी समाधि की अवस्था का अनुभव किया जा सकता है. स्मरण उनकी साधना में आई बाधाओं को दूर करता है. पवित्र मन ही जप करता है और जप करने वाला मन ही पवित्र होता है. भीतर टटोलें तो उनके पास कुछ भी नहीं हैं, जो भी है वह परमात्मा का है. संसार की गति का कारण वह परमात्मा है जो गति नहीं करता.

  

   

Monday, February 8, 2016

कृष्ण चरित्र - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की पुस्तक


आज द्वादशी है, रंग पाशी का उत्सव, होली के आने में अब तीन-चार दिन रह गये हैं. आज दोपहर को कोई पढ़ने नहीं आया और उसे कहीं जाना भी नहीं है. कल डेंटिस्ट के पास पुनः जाना है. उसने सोचा क्यों न कुछ पंक्तियाँ उसी के लिए लिखे, उस दिन उसका व्यस्तम दिन था. मरीजों की कतार बढ़ती जा रही थी, हरेक के दातों का इतिहास उसकी डायरी में दर्ज था. कैसा लगता होगा लोगों के मुखों में झांकना, श्वेत मोती से, पान मसाला खाने से हुए काले, पीले, गंदे, टूटे-फूटे दातों को देखना और फिर दुरस्त करना, दातों का डाक्टर बनने का निर्णय कोई कैसे और क्यों लेता होगा या ईश्वर स्वयं ही उनके भीतर बैठ ऐसी बुद्धि देते होंगे, ईश्वर की दुनिया में सभी तरह के कार्यकर्ता मिलते हैं. वह स्वयं ही अनेक होकर बैठ गया है.

‘कृष्ण चरित्र’ अभी-अभी खत्म की है, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित तथा ओमप्रकाश द्वारा अनुवादित इस पुस्तक में कृष्ण को ईश्वर को अवतार मानते हुए उनके मानवीय रूप को प्रकाशित किया गया है. ईश्वर जब मानव रूप लेकर अवतरित होते हैं तो वे मानवीय गुणों की सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकते, यदि उन्हें दैवीय शक्ति का ही उपयोग करना हो तो वे बिना मानवीय रूप लिए भी कर सकते हैं, हाँ, मानव होते हुए उनके गुण चरम सीमा तक पहुंच सकते हैं. वे सोलह कला सम्पूर्ण थे, जीवन के सभी क्षेत्रों में अग्रणी तथा कुशल, चाहे वह कला हो, धर्म हो अथवा राजनीति, ऐसे कृष्ण को जो आदर्श मानव थे प्रणाम करके कौन अपना उद्धार करना नहीं चाहेगा. आज सुबह ‘मृणाल ज्योति’ गयी, योग के बाद हास्य आसन भी कराया, लौटकर डाक्टर के पास जाना था. कल जो कविता लिखी थी, दंत चिकित्सक उसे दे दी. असमिया होने के बावजूद वह भी हिंदी में थोड़ा-बहुत लिख लेते हैं. आज मूसलाधार वर्षा हुई, गर्जना भी भी बड़े जोरों से की बादलों ने. इस समय रुकी हुई है. आज उसका विद्यार्थी मेघनाथ पढ़ने नहीं आया, जो मेघ का नाथ है वह मेघों से भयभीत होकर घर में छुपा बैठा है.

उत्सव मन में कैसा उल्लास जगा देता है. आज गुरूजी की बातें सुनीं और उसके बाद प्रेम का कैसा ज्वार चढ़ा भीतर, बड़े, मंझले, छोटे तीनों भाई-भाभी, दीदी-जीजाजी, पिताजी, चचेरी बहन सभी से बात की, फुफेरी बहन को कल फोन किया था. छोटी बहन का दुबई से फोन आया वे लोग सागर किनारे होली खेलेंगे, फिर स्नान तथा वहीं भोजन का भी प्रबंध होगा. ‘लेडीज असोसिएशन’ की तरफ से यह कार्यक्रम होली के उपलक्ष में आयोजित किया गया है. छोटा चचेरा भाई भी वहाँ पहुंच गया है, उसे टाइल्स फैक्ट्री में काम मिला है. आज भी मौसम भीगा है, प्रकृति भी होली खेल रही है.


प्रेम का जो ज्वार चढ़ा था उस दिन, उसी की परिणति है, आज उसने लाइन की सभी महिलाओं को आमंत्रित किया है, होली मिलन की दावत के लिए.. कल दोपहर डेढ़ बजे. गुझिया और गुलाब जामुन तो हैं ही, छोले और टिक्की और बनाएगी. आज सुबह सुना साधक को मनसा निराकारी रहना है, वाचा निरहंकारी रहना है तथा कर्मणा निर्विकारी अवस्था में रहना है. देह भान में आते ही मन कमियों को देखने लगता है, वाणी में अहंकार भी तभी आता है और ऐसे में कर्म भी पावन नहीं होते. मन आत्मा के जागृत होने पर बेबस हो जाता है, वह इधर-उधर जाना तो चाहता है पर एक क्षण की सजगता उसे वापस खींच लाती है, उसकी डोर आत्मा के हाथ में आ जाती है. अभी कुछ देर पूर्व वर्षा होने लगी थी, अब पुनः तेज धूप निकल आई है, ऐसे ही मन है एक पल में भूत में चला जाता है अगले ही पल भविष्य में छलांग देता है, आत्मा सदा वर्तमान में रहती है, वह पवित्र, शांतिमय, आनन्द से भरी, शक्तिशाली, ज्ञानयुक्त, सुख स्वरूप तथा प्रेमिल है. ऐसी आत्मा का ज्ञान उसे सद्गुरू की कृपा से हुआ है !   

Tuesday, August 4, 2015

कान्हा संग होली


पिछले दिनों घर में काम चलता रहा और होली की तैयारी भी, कल ‘होली’ भी होली ! होली के लिए जो हास्य कविता लिखी उसके अतिरिक्त कुछ नहीं लिखा पिछले दिनों, पढ़ा भी नहीं. बस कानों में प्रभु का नाम अवश्य पड़ने दिया. कृष्ण के प्रेमावतार, रसावतार की चर्चा कल होली उत्सव में सुनी तो हृदय द्रवित होकर बहने लगा. यह कमरा अब बहुत साफ-सुथरा लग रहा है, धुले हुए पर्दे, दीवारों पर नया-नया डिस्टेम्पर तथा फर्श पर पॉलिश. परसों उन्हें यात्रा पर निकलना है. उसे विश्वास है बैंगलोर प्रवास के दौरान गुरूजी से भेंट होगी. उसके जीवन की यह पहली यात्रा है जब वह किसी आश्रम में कुछ समय व्यतीत करने के उद्देश्य से जा रही है. उसका मन गहन शांति का अनुभव कर रहा है, हृदय प्रेम और श्रद्धा से भरा है. आज शाम को साप्ताहिक सत्संग में जाना है. आज ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ की एक महिला टीचर से बात की, जो उम्र में उससे छोटी है. बात करते ही लगा वह कितनी स्थिरमना है. वह सद्गुरु के निकट रह चुकी है, कितनी साधना उसने की है, वह परिपक्व है. उसने सोचा क्लब की मीटिंग में उसे बुलाएगी, वह अन्य महिलाओं को कोर्स करने के लिए प्रेरित कर सकती है. सेवा के इस कार्य में वह उसकी सहायता करेगी.

आज उन्हें यात्रा पर जाना है. उसके अंतर की इच्छा ने ही फल का रूप लिया है अब इससे जुड़े सारे सुख-दुःख की निर्मात्री वह स्वयं है. सारे दुखों का कारण व्यक्ति स्वयं होता है यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाये उतना ही अच्छा है, अध्यात्म का साधक स्वयं की जिम्मेदारी स्वयं उठाना जानता है. मन को असंग रखकर यदि द्रष्टा भाव से जीये तो बिना किसी बाधा के यात्रा फलीभूत होगी. यात्रा से कोई फल मिले ऐसी भी आशा नहीं है, बस कृतज्ञता स्वरूप की जा रही है यह यात्रा, सद्गुरु के प्रति कृतज्ञता और उस परमात्मा के प्रति कृतज्ञता जो कण-कण में व्याप्त है !


उन्हें यात्रा से आये कई दिन हो गये हैं, उन दिनों मन एक अद्भुत लोक में ही जैसे विचरण करता था. इस समय दोपहर के सवा दो बजने को हैं. उसने अभी-अभी योग निद्रा का अनुभव लिया. कैसे अद्भुत दृश्य और ध्वनियाँ, वह स्वप्न था अथवा.. सुबह ध्यान किया गुरूजी के नये सीडी के साथ. कभी-कभी लगता है कि मंजिल अभी भी उतनी ही दूर है, यह मार्ग बहुत कठिन है फिर उनका हँसता हुआ चेहरा याद आता है. उनकी कृपा अवश्य उसपर है, किसी भी कीमत पर उसे अपने को उस कृपा के योग्य बनाना है. उसे कल्पनाओं की दुनिया से निकलकर ठोस धरातल पर आना है. जीवन को उसकी पूर्णता में जीना है. जीवन केवल बाहर ही नहीं भीतर भी है और जीवन केवल भीतर ही नहीं बाहर भी है, दोनों का समन्वय करना होगा. सत्संग में पढ़ने के लिए एक कविता लिखनी है. दीदी के मेल का जवाब भी लिखना है. सद्गुरु को उस डायरी में पत्र लिखना है और इतवार को एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है उसके लिए कविता लिखनी है. लेडीज क्लब के लिए एक लेख लिखना है, लिखने का इतना कार्य सम्मुख हो तो कैसा प्रमाद. ध्यान के समय किसी की उपस्थिति का अनुभव श्वासों के रूप में होता है, यह भी एक रहस्य है, कौन है जो उसके दाहिने कान के पास आकर गहरी सांसे भरता है मगर प्रेम से !

Wednesday, June 24, 2015

दा-विंसी-कोड-एक रोचक उपन्यास


उन्होंने शब्दों की होली खेली, कुछ शब्दों की बौछार इधर से हुई और कुछ शब्दों की बौछार उधर से और लग गई आग दिलों में. इस होली से तो भगवान ही बचाए. न जाने क्यों वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाते फिर वही वाणी के रूप में बाहर आ जाती हैं. जानती है वह कि बाद में पश्चाताप के सिवा कुछ हाथ आने वाला नहीं है. समाज में परिवार में सभी को साथ लेकर चलना है, साधना के लिए स्वार्थी तो नहीं हुआ जा सकता, उसकी आवश्यकता को कोई अन्य कैसे समझ सकते हैं, उसे ही धीरे-धीरे इस पथ पर लाना होगा. संसार का पथ तो अनेक जन्मों में चल कर देख चुकी है, यह बेपेंदी के लोटे जैसा है कितना भी जल डालो यह खाली ही रहेगा. परमात्मा के पथ पर आनंद ही आनंद है, लेकिन इस आनंद का भी यदि लोभ वह करने लगी तो...सहज रहना सीखना होगा, समभाव में रहना. परीक्षा की घड़ियाँ आएँगी पर स्वयं पर नियन्त्रण रखना है.
आज होली है, उसने ज्ञान की पिचकारी का रंग लगाया है, अब कोई और रंग उस पर चढ़ता ही नहीं. होली का अर्थ है सारी पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं को ज्ञान की आग में जलाकर मन को खाली कर देना. फिर से नव जीवन का आरम्भ हो, भुला देना सारे शिकवे-शिकायत, तब जो भीतर उमड़ेगा उसमें सारे रंग मिले होंगे.
कल रात को नन्हे ने जब फोन पर कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं लग रही है तो जून और उसका चिंतित होना स्वाभाविक था. उन्होंने उसे आवश्यक निर्देश दिए और अपने रोज के कार्य सामान्य रूप से करते रहे. सुबह वह उठी तो जून ने कहा उन्हें देर तक नींद नहीं आयी, वह नन्हे की अस्वस्थता की बात से परेशान हो गये थे. वह भी जब अपने मन की अवस्था पर नजर डालती है तो उनसे बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. यह बात और है जब मन को परेशान देखा उसने तो भगवन्नाम का ही आश्रय लिया, परमात्मा को सब कुछ सौंपना चाहा. उससे प्रार्थना भी की. भक्ति के लिए भक्ति अर्थात उससे कुछ भी न मांगे, यह दृढ़ता तो दूर हो ही गयी. उसने उन सबके लिए सुख व स्वास्थ्य माँगा. वह दाता है, सबकी सुनता है, किसी को निराश नहीं करता, उसकी मर्जी से ही वे सब इस दुनिया में आए हैं. वही चैतन्य है, उसका अंश आत्मा रूप से उनमें स्थित है. अभी यह उनका अनुभव नहीं है तभी वे मन की समता खो बैठते हैं. जैसे चित्रकार चित्र बनाता है वे दुःख बना लेते हैं.
कल की रात्रि स्वप्नों भरी थी, नन्हे को कई बार देखा, वह छोटा सा है और खाली फर्श पर सोया है. मन भी कितना पागल है, खुद ही सपने बनाता है और खुद ही परेशान होता है. नन्हे का रिजल्ट आ गया है उसने पहली बाधा पार कर ली है. जून भी निश्चिन्त हुए हैं. उसने da-vinci-code पढ़ ली है, बहुत रोचक किताब है. अज गुरूजी ने ‘योग वशिष्ठ’ पर चर्चा शुरू की. जीवन में दुःख है इसे पहचानना जरूरी है. तभी तो मन के पार जाया जा सकता है.

आज उन्हें यात्रा पर जाना है, इस यात्रा का उद्देश्य है नन्हे को सालभर की कड़ी मेहनत के बाद परीक्षा दिलाकर घर वापस लाना, परीक्षा से पहले उसे उत्साह दिलाना तथा उसका स्वास्थ्य ठीक रहे उसका ध्यान रखना. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनकी यात्रा को सफल करे.

Monday, July 7, 2014

गुझिया की मिठास


आज उसका मन पूर्णत शांत है, उद्ग्विनता है तो यही कि हर पल सचेत नहीं रह सकी, बिना किसी कारण के असत्य भाषण किया, उस समय चेतनता नहीं थी पर बोलते ही अनुभव हुआ. चाहे कितना भी निर्दोष या छोटा सा झूठ भी हो पर दाग तो लग जाता है न, दीदी-जीजा जी से फोन पर बात की, वही जानी–पहचानी आवाज. नन्हा और जून जा चुके हैं. जागरण में बताया जा रहा है कि सबसे भयंकर हिंसा वाणी की हिंसा है, अपनी जिह्वा रूपी गौ को खूंटे से बाँध कर रखें क्योंकि यह दूसरों के हरे-भरे मन उपवन को तहस-नहस कर सकती है. वाणी का बहुत महत्व है. कल सुबह फोन पर जब उसे लगा कि भाषा थोड़ी रूखी थी तो शाम को वह उनके घर गयी अपने उस दोष का प्रायश्चित करने. आज फोन पर बात न ही करनी पड़े तो अच्छा है क्योंकि मौनव्रत लेने को बाध्य है. मानव मन देह के सुख-दुःख से ऊपर उठना ही नहीं चाहता, इसलिए मन से परे बुद्धि  और बुद्धि से परे आत्मा को जानने की बात पूर्वजों ने की. कल शाम वह स्कूल में कम्प्यूटर की अध्यापिका के यहाँ भी गयी, उसका क्लास वन में पढने वाला बेटा बहुत प्यारा है, नन्हा भी बचपन में ऐसा था. आज वह बायोलॉजी कक्षा के लिए कुछ टहनियां लेकर गया है. रसोईघर में नैनी कुछ खटपट कर रही है शायद उसे आकर्षित करने के लिए पर उसका तो मौनव्रत है न !

कल ईद की छुट्टी थी जून और नन्हा घर पर ही थे, परसों रात को असमिया सखी की बिटिया के जन्मदिन पार्टी से लौटकर सोते-सोते थोड़ी देर हो गयी सो सुबह नींद भी देर से खुली, फिर दोपहर को उन्होंने मिलकर गुझिया बनाई. नन्हे ने भरावन का कार्य किया, जून ने तलने का और उसने बेलने का. शाम को एक मित्र के यहाँ गये, उस सखी से काफी देर तक बात हुई, विषय वही था, स्कूल, कभी उसका ज्यादातर सखी का. आज जागरण में कोई जैन आचार्य आये हैं. अभी-अभी कुछ सखियों को फोन किया कल रात्रि होली के विशेष भोज के लिए. पड़ोसिन ने पूछा, वह क्लब की मीटिंग में गए जाने गाने की रिहर्सल में क्यों नहीं आ रही है, उसे वह गाना पसंद नहीं आया था, बहुत हल्का-फुल्का सा गीत है, पर और किसी को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आई. सच्चाई की राह पर अकेले ही चलना पड़ता है, इससे उसे ताकत ही मिलेगी.

आज से वह मुक्त है, कल स्कूल में सभी को होली की गुझिया खिलाकर विदा ली, मन ही मन वह सभी स्मरण किया जो पिछले कुछ दिनों से वहाँ घटा था. आज से अपनी उसी पुरानी दिनचर्या में लौट जाना है, स्वाध्याय, आसन, लेखन व संगीत !

कल भारत शारजाह में साउथ अफ्रीका से पहला मैच हार गया, शायद इस हार से कुछ सीख लेकर आज का मैच जीत जाये. ‘जागरण’ चल रहा है, अपने मूल स्वरूप को पहचानकर अंतहीन सुख के साम्राज्य को प सकने का उपदेश दे रहे हैं. संसार सारहीन है, नश्वर है लेकिन अपना आप जो चेतन है, नित्य है, अपरिवर्तन शील है. उसी चैतन्य को पाना ही जीवन का ध्येय है, ये बातें हर जगह सुनने को नहीं मिलतीं, लेकिन जीवन को सार्थक ढंग से जीने के लिए, अपने कर्त्तव्य का पालन करने के लिए, हृदय में सहनशीलता, त्याग व आत्म विसर्ग की उद्दात भावनाओं के स्फुरण के लिए इनको सुनते रहना अति आवश्यक है. ये मन को उहापोह से मुक्त रखती हैं, वहीं एकाग्र रखने में भी सहायक हैं. कल दोपहर उसने मध्यमा का कोर्स शुरू कर दिया है, अभी बहुत कुछ सीखना है. अध्यापिका को भी सिखाने का शौक है सो उसकी संगीत यात्रा अभी जारी रहेगी. कल बहुत दिनों के बाद माँ-पापा का पहले का सा पत्र मिला. छोटी बहन ने उस दिन फोन पर कविताओं के लिए कहा. अगली मीटिंग में क्लब में भी साहित्य का कार्यक्रम है उसने तीन कविताएँ चुनी हैं, यदि अवसर मिला तो पढ़ेगी.




Tuesday, May 27, 2014

होली की गुझिया


Her mind is full of worries of all kind. It is not a good sign. Last night when jun asked about application and bio data for forthcoming interview, she was nervous, why is it so ? she has no confidence. She does not believe in herself,  thinks, she is a loser but then she thought, she could do any thing in the world. यह भीरूता यह कायरता उसमें  से आ गयी है, क्या यह उसके विकारों का प्रभाव है, विकार जो राग-द्वेष से उत्पन्न होते हैं, राग-द्वेष जो अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति  मिलने पर निर्भर करते हैं. मन को शांत रखने का उस पर नजर रखने का कार्य तो वह हर वक्त करने का प्रयास करती है, पर उसके मानसिक उद्वेगों का सबसे ज्यादा प्रभाव उसके बाद जून को पड़ता है, पर उनका  प्रेम इतना विशाल है कि उसकी सारी कमियों को नजर-अंदाज कर देता है. He is so loving and caring by heart. He is a jewel, a best thing ever happened to her. She loves him so much and respects him as much. उसका विशाल हृदय नूना के क्षुद्र हृदय की कमियों को भी ढांप लेता है, वह उसके जैसा बनने का प्रयास करेगी, मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों तरह से.

Month of march ! month of colours, holi, joy and flowers, month of mango baur  and coo coo of koel,month of hope and happiness. Last night she heard her Assamese song and poem with some friends and felt a different feeling of achievement and satisfaction. Now she wants to record some other songs also. she is at ease with herself, Today their AC is being serviced so can  not sing.

कल रात पहले तो तेज वर्षा व तूफान की वजह से नींद में खलल पड़ा फिर स्वप्नों के कारण नींद गहरी नहीं आई शायद यही कारण है आँखें भारी हैं. सुबह-सुबह अपने आप मन में होली के लिए पंक्तियाँ उभरने लगीं और देखते ही देखते उन सभी के लिए दो-दो लाइनें तैयार हैं जो होली के विशेष भोज में सम्मिलित होने आयेंगे. कल शाम उन्होंने गुलाब-जामुन बनाये, आज गुझिया बनानी हैं.  सुबह-सुबह ही दीदी का फोन आया, वह सोच ही रही थी कि घंटी बजी, वहाँ सभी लोग आज होली खेल रहे हैं.

कल होली थी, रंगों का यह उत्सव उन्होंने सोल्लास मनाया. कल ही नन्हे का परीक्षा परिणाम भी मिला, उसे बहुत अच्छे अंक मिले हैं. उसके साथ-साथ नूना की भी मेहनत का नतीजा है सो ख़ुशी स्वाभाविक है, पर यह तो शुरुआत है अगले दो-तीन सालों में उसे और मेहनत करनी होगी, उसे भी ज्यादा समय देना होगा. नन्हा इस वक्त दादा-दादी के साथ टीवी देख रहा है, कुछ दिनों की बात है फिर वे और उनकी वही दिनचर्या रह जाएगी. The Gospel of Buddha उसे सही समय पर मिली है, उसका मन जो छोटी-छोटी बातों से परेशान हो जाता है, परिस्थितियां थोड़ी सी भी प्रतिकूल हुईं की संतुलन बिगड़ने लगता है, सहनशक्ति का इस्तेमाल करना तो दूर की बात है सहन करना चाहिए इसी बात को सिरे से गलत मानने लगता है. क्रोध, द्वेष और नफरत के बीच स्वयं को जलाने लगता है, ऐसे में प्यार, आदर्श और सत्य के महत्व को दर्शाता भगवान बुद्ध का उपदेश मन पर मरहम सा लगता है. कितने सादे-सरल शब्दों में जीवन के रहस्यों को सुलझा कर रख दिया है. मन पर हर वक्त नजर रखते हुए जीवन यात्रा में सुख के रास्तों पर चला जा सकता है वरना काँटों की चुभन से बचने का कोई उपाय नहीं. Mind is the source either of bliss or of corruption.




Tuesday, March 4, 2014

चुलबुली सी बालिका


आज वह बेहद हल्का महसूस कर रही है. दादा धर्माधिकारी की पुस्तक में मनुष्यता की परिभाषा पढकर मनुष्य की गरिमा और उसकी शक्ति पर विश्वास और बढ़ गया है. कल का दिन एक भरपूर दिन था. कल दिन भर उसने एक एक पल को पूरे मन से जीया. मानव होना और फिर स्त्री होना, संस्कार युक्त, शिक्षित और स्वस्थ होना, अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, कुछ न कुछ करते रहने की तीव्र इच्छा, निरंतर कुछ न कुछ सीखने की आकांक्षा, जीवन को कलात्मक रूप से जीने का प्रयास, स्वयं को समाज के प्रति या परिवार के प्रति उत्तरदायी मानते हुए अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करना, ये सारी बातें उसमें किसी हद तक तो हैं न, और हर बात के लिए स्वयं को दोषी मानते रहना अपनी शक्ति पर संदेह करना, अपने आप पर भरोसा न कर पाना ये दोष भी हैं. पर अब उसे भयभीत होकर पीछे-पीछे रहकर चलने की जरूरत नहीं है, उसकी कमियां जो भी हों उन्हें लेकर स्वयं को अपमानित महसूस करने की जरूरत नहीं है. सदा ही तृतीय स्थान पाने की अपनी आदत को जारी रखने की भी नहीं. आज नन्हे का गणित का इम्तहान है जो उसे कठिन लगता है, पर वह जानती है वह बहुत होशियार है, अवश्य अच्छा करेगा. कल शाम वे टहलने गये, हवा ठंडी थी और चेहरे को छूकर सिहरा जाती थी

Today again she is so happy ! yesterday one friend got a prize of 16,000 Rs from the makers of Nyle Shampoo. They went there to celebrate the joy and to eat sweets. Today she rang her to say that they liked it, then she talked to asamiya friend, she is waiting for the D-day, she promised her to be there in the hour of need and it makes her happy that she will be of some use to someone ! Nanha has prepared well for Sanskrit exam. He has learnt twenty shlokas in Sanskrit, when she was of his age she never learned so many shlokas..

पिछले चार दिनों से नहीं लिख पायी, आज उन्हें तिनसुकिया जाना है, लंच भी वहीं खाना है. कल होली मनायी, परसों शाम बड़े भाई भाभी को फोन किया, छोटी बहन को फोन किया कल सुबह -सवेरे दीदी का फोन आया, उन्होंने कहा, बड़ा भांजा और छोटी भांजी शायद यहाँ आयें छुट्टियों में.

आज संगीत कक्षा में ‘काफी’ की तान सिखाई गयी. कल वे तिनसुकिया में ही थे कि पता चला उस सखी ने बिटिया को जन्म दिया है, वापसी में अस्पताल गये, गुलाबी रंग की छोटी सी बच्ची आँखें बंद किये लेटी थी, अभी तक चेहरा स्पष्ट नहीं था कि किस पर गया है, माँ स्वस्थ लगी, साहसी है वह, वैसे भी उम्र के इस मोड़ पर आकर माँ बनने का निश्चय करना ही साहस पूर्ण कदम था जो वह नहीं उठा पायी थी, अपना सब कुछ दे देना पड़ता है न. आज से उसकी छात्रा ने फिर से आना शुरू कर दिया है. कल उसने एक चप्पल ली, एक जोड़ी बुँदे, एक नेल पॉलिश और एक लिपस्टिक यानि अपने ऊपर खर्च ! इस समय तीन बजे हैं, नन्हा एक कहानी लिखते-लिखते बीच में ही टेनिस खेलने गया है. शाम को वे पुनः अस्पताल जायेंगे और बाद में एक मित्र के यहाँ, उनकी छोटी बेटी बहुत प्यारी है उतनी ही चुलबुली भी.   

‘कविता लेखन के सामान्य सिद्धांत’ पढना शुरू किया तो भीतर विचार जगने लगे. उसे लगा, मन जितना संवेदन शील होगा जितना गहराई से सोचेगा जीवन उतना ही अर्थपूर्ण होगा, वे हैं कि उथले-उथले ही जीए जाते हैं, अंतर में झाँकने से डरते हैं खुद के भी और इर्दगिर्द भी, कहीं कुछ ऐसा न दिख जाये जो आँखों में खटक जाये, बस आँखें बंद किये ताउम्र जिए चले जाते हैं, न ही टूटकर प्यार करते हैं न ही नफरत, बस कामचलाऊ जिंदगी जीते हैं, शिद्दत की कमी है अहसासों  में ती जीवन में गहराई कहाँ से आये.

पिछले कई दिनों से, हफ्तों से, महीनों से कुछ नहीं कहा, कविता लिखी नहीं जाती, कही जाती है पहले अपने आप से फिर कागज से, ऐसा तो नहीं कि महसूस करने की शक्ति नहीं रही, अब भी एक मार्मिक शब्द आँखों को धुंधला जाता है, मौसम के बदलते रूप और ढंग अदेखे नहीं रहते, आते-जाते उगता डूबता सूरज और चाँद जब दिखता है तो मन में एक हिलोर सी जगती है, फूल अब भी भाते हैं और दर्द अब भी होता है पर ऐसा भी बहुत कुछ है जो अब नहीं होता जैसे कि अपनी सुविधा-असुविधा की परवाह किये बिना किसी की सहायता करने की ललक. अपना ख्याल पहले आता है जैसे कि इस डर से फोन न पकड़ना कि कहीं पड़ोसिन किसी काम के लिए न बुला ले, अब अपने नियमित रूटीन को तोड़कर उसके लिए समय निकालना जबकि अपना सिर भी दुःख रहा हो, सेवा/सहायता ही कहलायेगा न, पर क्यों कि लोग नितांत अपने लिए जीते हैं ! दूसरों के लिए इसमें जगह कहाँ है ?