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Tuesday, December 3, 2019

पंचदशी का ज्ञान



सुबह मौसम अच्छा था. स्कूल में एक छात्रा को योग कक्षा लेने को कहा, जब वह यहाँ नहीं रहेगी तो वह आराम से सिखा सकेगी. अभी-अभी छोटी बहन से बात की, पिछले एक महीने से वह बहुत व्यस्त थी. पहले उसकी बड़ी बिटिया आयी, जो विदेश में रहती है, वह व्यायाम करती है, फिट रहती है. एओल का एडवांस कोर्स भी उसने किया और डीएसएन भी करने वाली है. उसकी जीवन चर्या देखकर माँ खुश है, फिर उसकी ननद परिवार सहित आयी, उसके बाद छोटी बिटिया, जो कल लगभग तीन महीनों  के लिए इंटर्न बनकर दक्षिण अफ्रीका गयी है. कनाडा से केन्या के स्कूलों को पढ़ाया जाने वाला गणित उनके लिए कितना उपयोगी है, इस पर रिसर्च करेगी. आज सुबह पिताजी से बात की और छोटे भाई से भी, वह उन्हें एक बार फिर कम्प्यूटर पर वीडियो देखना सिखा रहा था. यू-ट्यूब पर अनुभवानन्द जी को डिब्रूगढ़ मेडिकल कालेज में बोलते सुना, रिकार्डिंग अच्छी नहीं हुई है, पर उनका वही अंदाज है. उन्होंने नब्बे किताबें लिखी हैं. बड़ी-बड़ी किताबें भी. उनकी बातें सुनकर मन झट प्रेरित हो जाता है, जैसे गुरूजी के वचन सुनकर मन शांत हो जाता है. सदगुरू जीवन को पंख देते हैं, वे सीमित दायरों से निकाल क्र एक बड़े फलक का दर्शन कराते हैं. उनका संकीर्ण मन पहले-पहल विरोध करता है, पर आकाश में उड़ना कौन नहीं चाहता. जून ने मुल्तानी मिट्टी मंगाई है, देह पर उसका लेप करने से पित्ती ठीक होती है.

कल दिन भर व्यस्तता बनी रही. सुबह रविवार के विशेष कार्य, दोपहर को बच्चों के साथ गुरूजी का जन्मदिन मनाया. शाम को एओल सेंटर गए वे. कार्यक्रम अच्छा रहा. साढ़े आठ तक वापस लौटे. नैनी ने सुंदर बड़ी सी माला बनाकर दी थी. पहले भी वह बड़ी और छोटी माला बनाकर दे चुकी है. गुरूजी का जन्मदिन सारे विश्व में मनाया गया. बंगलूरू आश्रम में भी कई धर्मों के पुरोहित आए थे. सभी ने उन्हें बधाई दी. युगों-युगों में कोई ऐसी महान आत्मा धरती पर जन्म लेती है. इस समय रात्रि के आठ बजने को हैं. बाहर वर्षा हो रही है. आज सुबह इस मौसम में पहली बार वे टहलकर आते समय भीग गए. पहले हल्की सी बूंदा-बूंदी थी, फिर तेज वर्षा होने लगी. जून ने दौड़ना शुरू किया, वह भी भागने लगी, फिर बच्चों के स्कूल के शेड में आकर रुके वे. कुछ देर बाद वर्षा की गति कम हुई तो घर लौटे. नाश्ते में मकई का दलिया बनाया जी बैंगलोर से लाये थे, सोनू ने दिया था. दोपहर को सहजन की सब्जी बनायी, मोटे वालर सहजन, जो उस दिन बगीचे से तोड़े थे. इससे पहले वह बिलकुल कोमल लगभग गुलाबी सहजन ही खाते थे, मोटे बाँट देते थे, पर इनका अलग स्वाद है. इंसान को अपनी सीमाएं बढ़ाते रहना चाहिए, वे ऐसा कुछ हर दिन करें जो पहले कभी न किया हो. वे देह को ठीक करने के लिए हजार उपाय करते हैं पर आत्मा या मन को अपने सहारे या भगवान के सहारे छोड़ देते हैं. कल से शाम की योग कक्षा में  श्री श्री की पुस्तक का एक पृष्ठ पढ़ना आरम्भ किया है. उन्हें हर दिन एक नोटबुक में कुछ न कुछ लिखने को भी कहा है. एक साधिका ने अपना लिखा भजन गया, धुन भी  मनहर थी.

आज सुबह निकले तो आकाश नीला था, वर्षा काफी पहले होकर रुक चुकी थी. आज सफाई कर्मचारी फिर नहीं आया. नैनी ने घर की सफाई की, उसे कुछ मेहनताना देना ठीक रहेगा. दुबली-पतली है और तीन बच्चों को संभालने व घर का काम करने में दिन भर लगी रहती है. बारह बजने वाले हैं, जून अभी तक नहीं आये हैं. आज उसने गोभी वाले चावल बनाये हैं, जो कल शाम वे लाये थे. शिलांग की गोभी, मई के महीने में. दस दिनों बाद उन्हें भूटान की यात्रा पर निकलना है. आज प्रतियोगिता के लिए कहानी लिखना आरंभ किया है. यू ट्यूब पर ‘पंचदशी’ सुना, अच्छा लगा. इस ग्रन्थ का नाम पहली बार सुन रही है. भारत का प्राचीन साहित्य इतना विशाल है कि कोई सामान्य जन एक जन्म में इसे पढ़ ही नहीं सकता. दोपहर को मृणाल ज्योति जाना है. चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी की मीटिंग है. विशेष बच्चों को होस्टल में रखकर स्कूल चलाना कोई आसान काम नहीं है. उन्हें साफ-सुथरा रहना सिखाना पड़ता है. उन्हें अपना काम खुद करना भी सिखाना पड़ता है. जो सहायक व अध्यापक वहाँ काम करते हैं, उनका वेतन भी अधिक नहीं है. कई समस्याओं पर चर्चा हो सकती है.

आज आडवाणी जी की लिखी किताब पढ़ी. बहुत रोचक है. उनके जीवन के साथ-साथ देश के इतिहास का भी ज्ञान हो रहा है. गुरूजी की पुस्तकें निकालकर योग साधिकाओं के सामने रखीं, पर किसी ने कोई पुस्तक नहीं ली, शायद उन्हें पढ़ने का शौक नहीं है. आजकल रमजान का महीना चल रहा है. पिताजी का फोन आया दोपहर को. जून ने व्हाट्सऐप का फैमिली ग्रुप कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया है. वह यह बात समझ गए कि बड़े-बड़े वीडियो और पोस्ट देखने का समय नहीं है किसी के पास, साथ ही मोबाइल में स्पेस भी नहीं बचता। समाचारों में सुना कर्नाटक में बीजेपी सरकार बना रही है, उन्हें ग्यारह विधायक मिल गए हैं अर्थात उन्होंने खरीदे हैं ! 

Wednesday, February 7, 2018

फूलों की माला


पिछले तीन दिन कुछ नहीं लिखा. शनिवार और इतवार को काम कुछ ज्यादा रहता है. कल सोमवार को फिर नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. माली की पत्नी को भी अस्पताल जाना है, आज उसका आपरेशन हो सकता है, नूना ने ही बहुत समझा-बुझा कर भेजा है. वह भी समझ गयी है, दो बच्चों से परिवार पूर्ण हो गया है, अब तीसरे की कोई आवश्यकता नहीं है. कल रात्रि भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे नहीं रहे. हर कोई उनसे प्रेम करता था. उनके जीवन की तरह उनकी मृत्यु भी शानदार रही. शिलांग में व्याख्यान देते हुए ही उनका अंतिम समय आया. वह भी ऐसी ही मृत्यु चाहती है और ऐसी ही मृत्यु उसे मिलेगी ऐसा विश्वास भी है. अब्दुल कलाम जी के अंतिम क्षणों के बारे में उनके असिस्टेंट ने बेहद मार्मिक शब्दों में जो कहा है, उसे पढ़कर आँखें नम हो गयीं. सचमुच वे भारत रत्न थे. कल रात को पुनः अजीब सा स्वप्न देखा, उनके मन की गहराई में क्या-क्या छिपा है, कुछ पता नहीं चलता. शायद किसी कर्म का भुगतान भी स्वप्न द्वारा होता होगा, शायद नहीं, ऐसा ही है. उनके हर छोटे-बड़े कर्म का फल तो मिलने ही वाला है, सो कुछ कर्मों का फल वे सूक्ष्म देह में पा लेते हैं, कुछ का स्थूल में. कुछ देर पहले बड़ी ननद का फोन आया, वह नन्हे के विवाह के बारे में उत्सुक है. एक रिश्ते की बात कर रही थी. आज धूप बहुत तेज है, तापमान ३६ डिग्री है. एसी रूम में बैठकर कुछ राहत मिल रही है.

शाम के चार बजने वाले हैं. आज भी धूप कल की सी तेज है. दोपहर को एसी में कुछ जल गया, वे गेस्ट रूम में शिफ्ट हो गये, फिर मकैनिक को बुलाया. आज भी नैनी काम पर नहीं आई. उसने पानी का बड़ा पतीला उठा लिया, रीढ़ की हड्डी में कुछ महसूस हो रहा है. उठाते वक्त एक ख्याल आया था कि भार ज्यादा है पर जोश में ध्यान नहीं दिया. सुबह नैनी से पूछा, अस्पताल गयी या नहीं, तो उसने कहा वह इस बच्चे को जन्म देना चाहती है. कल रात ही उसने बीमारी का असली कारण बताया था, पता चला कि जिस भय से मुक्त करने के लिए वह उसे अस्पताल भेज रही थी वह तो पहले ही सत्य सिद्ध हो चुका है. दो बेटियों के बाद उसे पुत्र की चाह है. अभी छोटी बेटी दो वर्ष की भी नहीं हुई है. देवरानी अगले हफ्ते ही सन्तान को जन्म देने वाली है. पता नहीं ये लोग किस मिट्टी की बनी हैं. उसने एक परिचिता को फोन किया जिसके पति डाक्टर हैं. उसने कहा अस्पताल में महला समिति का एक ग्रुप है जो ग्रामीण व अबोध महिलाओं को परिवार नियोजन की जानकारी देता है. बातों-बातों में उसने एक बंगाली कलाकार रॉबिन बार के बारे में बताया, जो दोनों हाथों से एक साथ चित्र बनाता है, जरूरत पड़ने पर पैर से भी. जब वह परिचिता उससे मिली तो मात्र उसके हस्ताक्षर से उसने कृष्ण का चित्र बना दिया. जैसे कला की कोई सीमा नहीं है कलाकार की भी नहीं. छोटी बहन कल नन्हे के यहाँ पहुँच गयी. आज शाम वह आश्रम जा रही है. परसों उसका जन्मदिन है. गुरूजी तो विदेश में हैं पर आश्रम में उनकी उपस्थिति का अहसास फिर भी होता होगा. गुरू से एक बार जुड़ना होता है फिर मुक्त भी होना होता है. जैसे बच्चा माँ की ऊँगली पकड़कर चलता है फिर समर्थ होने पर छोड़ भी देता है वैसे ही शिष्य भी एक दिन उसकी छाया में चलता है फिर जब वह जानता है कि गुरू, आत्मा व परमात्मा में कोई भेद नहीं है तो वह स्वयं को उससे पृथक नहीं मानता. फिर पीछे चलने की बात ही नहीं रहती. भीतर का गुरू तब जाग जाता है जो हर कदम पर चेताता रहता है. शाम उसे भी एक मित्र परिवार के यहाँ जाना है, पर गर्मी इतनी है कि जाने का मन नहीं होता. वे लोग भी गर्मी से परेशान होंगे.

कल शाम आजादी की पहली लड़ाई का चित्रण देखा ‘भारत एक खोज’ में.  वे भाग्यशाली हैं कि आजाद भारत में साँस ले रहे हैं. आज गुरू पूर्णिमा है, शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर जाना है. अभी-अभी बगिया से पुष्प तोड़कर उसने गुरूजी के लिए माला बनाई है. रात को एक सखी के पतिदेव की सेवानिवृत्त होने पर विदाई पार्टी में भी जाना है. आज से चार वर्ष बाद लगभग इसी समय उन्हें भी यहाँ से विदाई मिलेगी. समय तो पंख लगाकर उड़ता जाता है. एक अन्य सखी से बात हुई, उसका पुत्र घर आया हुआ है, उसे त्वचा का कोई रोग हो गया है. जून के एक सहकर्मी को एंजियोग्राफी करानी है, उस के बारे में भी पूछ रही थी, किन्तु उसे इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है. नेट पर पढ़ा, कुछ समझ में तो आया कि रक्त में कोई कैप्सूल डालकर हृदय की धमनियों व शिराओं की जाँच एक्स रे के द्वारा की जाती है. कैमरे जैसा कोई यंत्र होता होगा. उसने ईश्वर से उनके स्वास्थ्य की कामना की. वे किसी भी क्षण उतना ही स्वस्थ होते हैं जितना स्वयं को महसूस करते हैं. आज जून को यात्रा के लिए सामान भी सहेजना है, कल वह पांच-छह दिनों के लिए यात्रा पर जा रहे हैं. उसे अपने समय का सदुपयोग करना होगा. आज सुबह आवाज में हल्की सी तेज आयी तो झट ज्ञान हो गया, फिर सफाई कर्मचारी को पैंट्री में पोछा लगाने पर टोका तो मन की असहनशीलता का तत्क्षण भान हो गया. कभी किसी क्षण जब लगता है कि कुछ सार्थक नहीं घट रहा है तब कोई कहता है, स्वयं में टिकना ही सार्थक है. घास उग रही है, झरना बह रहा है, पंछी गा रहे हैं, यदि ये सब सार्थक हैं तो उनका होना भी सार्थक है. यदि सार्थक से तात्पर्य है कि वे ऐसा कुछ करें जिससे जगत का कल्याण हो तो मानसिक सेवा भी की जा सकती है. कोई गीत रचा जा सकता है, ऐसा गीत जो पाठकों को को प्रेरणा से भर दे. नाचा जा सकता है. बगीचा संवारा जा सकता है और नहीं तो घर का कोई कोना सजाया जा सकता है ताकि जो भी आये उसे ख़ुशी मिले. भीतर का भाव शुद्ध हो तो हर काम पूजा ही है !    


Tuesday, December 19, 2017

भात करेले की बेल


रात्रि के सवा आठ बजे हैं. जून आईपीएल मैच का फाइनल देख रहे हैं जो चेन्नई और मुम्बई के मध्य खेला जा रहा है. इसके पूर्व ‘पृथ्वीराज चौहान’ पर एक एपिसोड देखा. उसने दिन भर में हुई विशेष बातों को स्मरण किया. आज दोपहर की कक्षा में एक नया बच्चा आया, जिसके पिता उसे खुद छोड़ने आये थे और विशेष ध्यान देने को कह गये हैं. बच्चों ने बहुत सुंदर कला कृतियाँ बनायीं. दोपहर को भात करेला की सूखी सब्जी बनाई थी, जो जरा भी कड़वा नहीं होता. बगीचे में उसकी बेल अपने आप ही हर वर्ष निकल जाती है और सब तरफ फ़ैल जाती है. आज मंझले भाई का फोन आया, वह तबादले पर लेह जा रहा है. जून में वे भी वहाँ जायेंगे.

चार बजने को हैं शाम के. सुबह बिस्तर त्यागने से पूर्व संध्याकाल का अनुभव किया. बाहर वर्षा हो रही थी, बरामदे में ही टहलते रहे कुछ देर. अब जाकर थमी है. आज मंगलवार है, साप्ताहिक भजन का दिन, समूह में सत्संग किये सालों हो गये हैं. जून को पसंद नहीं है पर घर पर करना उन्हें अच्छा लगता है. संस्कार पड़ रहे हैं, एक दिन तो पनपेंगे. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी, बच्चों को व्यायाम कराया, उन्हें अच्छा लगा. आज तीनों ब्लॉगस पर पोस्ट प्रकाशित कीं. जीवन में क्या महत्वपूर्ण है, यह समझने में व्यक्ति कितना समय लगा देता है. कल शाम को जून के एक सहकर्मी अपने परिवार के साथ आये थे, उनके साथ फिल्मों की बातें कीं, और पौधों की भी. वे मैकरोनी लाये थे. सालों बाद खायी.

एक दिन का अन्तराल, आज का दिन कुछ अलग सा बीता, जून को चेन्नई जाना था सो भोजन दस बजे ही कर लिया. उसे भी स्कूल से एक शिक्षिका के साथ अन्य स्कूलों में जाना था, लौटी तो एक बजने को था. वे किशोरियों के एक कार्यक्रम के लिए आमन्त्रण देने कई स्कूलों में गयीं. हिंदी हाई स्कूल, नहोलिया, गोपीनाथ बरदलै हाई स्कूल, लखिमी बरुआ हाई स्कूल, दुलियाजान गर्ल्स कालेज, राष्ट्रभाषा हाई स्कूल और दुलियाजान उच्च विद्यालय. कल एक और स्कूल आशादीप में जाना है. वापस आकर कुछ देर सोने की कोशिश की पर नींद नहीं आई. माली की बेटी कुछ मांगने आयी थी, होते हुए भी उसे नहीं दी, शाम को दी. गधा अपनी मर्जी से ही चलता है. परमात्मा उन्हें बेशर्त हर पल ही दे रहा है पर वे कितने सुविधा लोभी हैं. कुछ देर नेट पर किशोरावस्था के बारे में पढ़ा. वह छात्राओं को कुछ व्यायाम सिखाएगी और प्राणायाम भी. शाम को टहलते हुए उन वृद्ध सज्जन से मिलने गयी. बहुत जिंदादिल हैं, उन्होंने अपना जीवन बहुत सलीके से जीया है. अभी भी सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं. सुबह उठकर योगासन करते हैं. आंटी ने दोनों हाथ फैलाकर घूमकर दिखाया जो वे सुबह इक्कीस बार करती हैं. ज्ञान जीवन को पुष्पित करता है और गुरू का होना कितना अंतर ला देता है किसी के जीवन में. गुह्यतम ज्ञान का खजाना मिल जाता है, भीतर का प्रकाश मिल जाता है. उस प्रकाश के बिना ज्ञान टिकता नहीं. अंकल ने कहा, वह उस प्रकाश को पा चुके हैं इसके बारे में कुछ नहीं कहेंगे. वाकई उसके बारे में क्या कहे कोई. उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा है. नन्हे को भी बताया उनके बारे में. उसने बताया वह एक अच्छे से नये घर में रहने लगा है, पौष्टिक आहार भी लेने लगा है. तैराकी भी शुरू की है. उन्हें वहाँ आने के लिए निमन्त्रण दिया. अगस्त में वे उसके पास जा सकते हैं. जून अभी तक चेन्नई नहीं पहुंचे होंगे, फोन अभी आया नहीं है.

Tuesday, December 8, 2015

केक की ख़ुशबू


मन की शक्तियाँ जब बढ़ती हैं तो दैवीय सत्ता भीतर जगने लगती है. वे जब पहले बार इस धरा पर आये थे तो देवता स्वरूप थे. उस देवत्व को उन्होंने दबा दिया है पर वह रह-रह कर उन्हें अपनी सत्ता से परिचित कराता है. वे देवताओं के वशंज हैं, अमृत पुत्र हैं, सद्विवेक उनका स्वभाव है. आज उनका विवेक ढक गया है पर भीतर वह पूर्ण जागृत है. उन्हें उसे बाहर निकालना है. सृजन और मनन की शक्ति भीतर है. व्यर्थ के विचारों को यदि आवश्यक विचारों में बदल दें तो उनकी क्षमता पांच गुणी हो जाएगी. मन शांत हो तो सद् संकल्प उठते हैं, सहज ज्ञान भी तभी होता है जब मन अडोल होता है. परमात्मा के प्रति प्रेम भी तभी जगता है. जो उसका है वह उन का भी है यह यकीन होने लगता है. तब वे संसार के लिए भी उपयोगी बनने लगते हैं, परमात्मा उनके द्वारा काम करने लगता है. जीवन उत्सव बनने लगता है !

परमात्मा को मिलना कठिन नहीं है, जो वस्तु उनके पीछे है, उसे देखने के लिए कोई दूरबीन लगाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उसके सम्मुख होने की आवश्यकता है. भगवान चुनौतियाँ परिवर्तन के लिए देते हैं, क्योंकि परिवर्तन के बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता, अपनी शक्तियों से परिचित नहीं हो पाता. आज गुरु पूर्णिमा है, उसने गुरूजी की आवाज में रिकार्ड किया स्पेस मेडिटेशन किया. शाम को सत्संग है तथा गुरू पूजा भी. जो आत्मज्ञान प्राप्त करता है, हृदय से अज्ञान अन्धकार मिटाता है, जो कण-कण में व्याप्त पर नजरों से छिपे तत्व को उजागर कर देता है, वह सद्गुरु उनके नमन का पात्र है. जो सिद्ध है, अरिहंत है, तीनों गुणों से परे है, जो आत्मा को हस्तामलकवत् देखता है, जो ईश्वर को जानता है ऐसा सद्गुरू जो उनके संशयों को दूर करने की क्षमता रखता है, उनके नमन का पात्र है. आज सुबह समय से उठी, साधना का क्रम भी ठीक चला. रात को सोने में देर हुई. तिलक, टीका, मन्दिर, मूर्तिपूजा पर आचार्य रजनीश के विचार अद्भुत हैं, सुनती रही, कितना विस्तृत ज्ञान है उनका, कितनी तक्ष्ण मेधा और कितनी तीव्र याददाश्त. उनकी तीसरी आंख खुल गयी है. जब कि वे  मस्तिष्क का आधा हिस्सा भी इस्तेमाल नहीं कर पाते, कोई कहता है कि दस प्रतिशत से भी कम उस क्षमता का प्रयोग मानव करता है जो प्रकृति ने उसे दी है. यह सृष्टि न जाने कितनी बार बनी और नष्ट हुई और कितनी बार मानव ऊंचाइयों पर पहुंचा है और कितनी बार गिरा है. वे आगे बढ़ें यही उनकी नियति है, उन्हें बढ़ना ही है !


शरीर, श्वास, मन, प्राण, भाव ये पांच मिलकर जीवन है. सभी एक दूसरे को प्रभावित करते हैं. भाव वे सूक्ष्म स्पंदन हैं जो भीतर से आकर स्थूल देह को संचालित करते हैं. प्राण धारा यदि सबल हो तो देह स्वस्थ रहती है. श्वास भी नियमित रहती है. भाव ही मन को भी प्रभावित करते हैं. आज वर्षा थमे दूसरा दिन ही है और अभी सुबह के दस भी नहीं बजे हैं पर गर्मी तेज हो गयी है. घर में रंगाई-पुताई का काम चल रहा है, सो आज ध्यान में नहीं बैठी. समय का सदुपयोग किया एक सखी के लिए केक बनाकर, केक की खुशबू आ रही है जैसे कल उसे आ रही थी, कल उसके यहाँ जन्मदिन की पार्टी थी. उनके भीतर जो चेतन शक्ति है, उसका ज्ञान हो जाने के बाद वे कालातीत हो जाते हैं, भूत तथा भविष्य से परे पूर्ण वर्तमान में रहना सीख जाते हैं, सखी को उसने बताया पूर्ण आनन्द तथा पूर्ण शांति वर्तमान में ही है. उनके घर काम करने वाली नयी नैनी को उसने कहा दस बजे अपने अपाहिज पति को लेकर आए जिससे प्राणायाम सिखा सके पर वह नहीं आई है. किस्मत में हो तभी यह अमूल्य विद्या प्राप्त हो सकती है. वह नहीं आया तो क्या हुआ, वह स्वयं जाकर उसे सिखा सकती है, अभी-अभी पता चला कि वह चादर पहन कर बैठा है, सारे कपड़े धोने के लिए भिगा दिये हैं, कल आएगा ! कल जून दिल्ली जा रहे हैं एक हफ्ते के लिए, सो समय ध्यान-साधना में बीतेगा, घर की सफाई, सत्संग, संगीत तथा स्वाध्याय और सेवा में भी. सासुमाँ आज सुबह के भ्रमण के समय मिलने वाली अपनी एक परिचिता से किताब के पैसे उनके देने पर ले आयीं फिर नौ बजे वापस करने गयीं, लौटते में धूप लग गयी ऐसा कह रही हैं. शरीर को वे कितना सुकुमार बना लेते हैं. अभी ध्यान कर रही हैं.     

Thursday, August 6, 2015

नन्ही नन्ही चिड़ियाँ


आज सुबह पाँच बजे से थोड़ा पहले चिड़ियों की चहचहाहट से उठी. कल शाम सत्संग से लौटी तो जून क्लब में ही थे, उन्हें रात को देर से घर आना था. अकेले भोजन किया और जन्मदिन की कविता लिखी. तेजपुर में एडवांस कोर्स होने वाला है, उसने पूछने से पहले ही कल्पना कर ली थी कि जून का जवाब नकारात्मक रहने वाला है, सो सुबह उनकी सहज रूप से कही बात कि कोई और जा रहा है या नहीं, उसे नागवार गुजरी, उसने कहा किसी के जाने या न जाने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. मन ने प्रतिक्रिया की और शायद उसी का असर है कि मन उत्साहित नहीं है, अब जो वस्त्र बिलकुल स्वच्छ हो उस पर हल्का सा दाग भी चुभता है, जो मन पूरी तरह शांत रहने का आदी हो उसे जरा सी भी बेचैनी नहीं सुहाती. उसके भीतर जो डर है कि उन्हें नाराज करके वह नहीं जी सकती, शायद इस बेचैनी का कारण वही है. जहाँ प्रेम होता है वहँ डर नहीं होना चाहिए, जहाँ डर है वहाँ प्रेम नहीं है. यह डर उसके अवचेतन में बैठ गया है. उसे यदि मुक्त होना है तो इससे छुटकारा पाना होगा. ईश्वर है, सद्गुरु है, ज्ञान है, पर भीतर तब भी अँधेरा है तो इसका अर्थ है कि वे सब कुछ नहीं कर सकते, अपने भीतर का अंधकार स्वयं ही दूर करना है, उन्हें देखकर प्रेरणा ले सकते हैं पर यदि कोई यह सोचे कि उनके सारे दुखों का अंत कृपा से ही हो जायेगा तो यह भूल है.

भीतर ही भीतर ऐसा लगता है कि कहीं कुछ अधूरा रह गया है. सद्गुरु ने जो कहा वह उस पर नहीं चल रही. लेकिन यह आत्मग्लानि तो सेवा न करने से ज्यादा घातक है. इससे बचने को तो उन्होंने विशेष तौर पर कहा है. जब अवसर मिले तब सेवा के कार्य से पीछे न हटना भी तो सेवा है. स्वयं से परे जो भी है उसका कार्य करना संसार की सेवा ही कही जाएगी, ध्यान भी उसमें आ जायेगा. आज योग वसिष्ठ में उद्दालक का चरित्र पढ़ा, कितनी अद्भुत पुस्तक है यह, स्वामी रामसुखदास ने कहा कि जड़ता से संबंध तोडना है तो चित्र से मोह क्यों ? अब भविष्य में फोटो नहीं खिंचाएगी ?
‘मन मस्त हुआ तब क्यों बोले, तेरा साहिब है घर माहिं बाहर नैना क्यों खोले ?’ जब तक संसार के अच्छे-बुरे कहने की परवाह थी तब तक भीतर की मस्ती का पता नहीं था. उसकी एक सखी ने कहा, अब उसके जीवन में सब स्पष्ट है..वह इसी वर्ष एक सन्तान को गोद ले रही है. उसे खुश देखकर नूना को बहुत ख़ुशी हुई, उसका ज्ञान टिका तरहे ऐसा उसने प्रार्थना की.

आज सुबह भी चिड़ियों ने जगाया, रात सोने में देर हुई. कल दोपहर लेख लिख लिया आज उसे टाइप करना आरम्भ किया है. शाम को एक परिचित वृद्ध महिला आने वाली हैं, उससे पहले शाम के सब काम खत्म करने हैं. अभी चार बजने को हैं, कुछ देर पहले दीदी से बात की, जीजाजी का स्वास्थ्य कुछ दिन पहले बिगड़ गया था, अब ठीक है. उन्होंने याद दिलाया कि सद्गुरु के प्रति उसके मन में कितनी भक्ति से भरी भावनाएं हैं. आजकल वह अपने मन को देख रही है, वह ज्यादा समय जगत में खोया रहता है, वैसे उसे परेशान नहीं कर रहा और न ही स्वयं है. भीतर एक अलग ही वातावरण बन गया है, जहाँ अब दो नहीं हैं. गुरू और ईश्वर जो पहले जुदा प्रतीत होते थे कि उनसे प्रेम किया जाये अब कोई भेद ही नहीं लगता, जैसे कोई तलाश पूरी हो गईं है. जैसे जो जानना था जान लिया है. एक तृप्ति का अहसास हो रहा है. यह भावना बिलकुल अलग है, पहले भी तृप्ति का अहसास होता रहा है पर वह भिन्न भाव था. सद्गुरु ने ही उसके मन पर कोई जादू किया है, कोई असर डाला है. विरह के दिन जैसे समाप्त हो गये हैं और मिलन की शांत धारा में मन बह रहा है. जून और नन्हा दोनों से रात को बात होगी. वे उसे छोड़ने गये हैं. आज बहुत दिनों बाद धूप निकली है, दो-दो माली बगीचे में काम कर रहे हैं, आज मजदूर कमरा बनाने नहीं आये. लग रहा है जैसे जीवन में एक ठहराव आ गया है, पर सुबह सद्गुरु को भजन गाते देखकर कदम थिरके जरूर थे !    


Friday, July 31, 2015

अनित्य- मृदुला गर्ग का उपन्यास


इस वर्ष उस यह नीले रंग की सुंदर डायरी मिली है. मन कई भावनाओं से भरा है. नये वर्ष के लिए कई संकल्प पिछले कई दिनों से उमड़ते-घुमड़ते रहे हैं. जीवन कितना अद्भुत है, कितना सुंदर तथा कितना भव्य ! कितना अनोखा है सृष्टि का यह चक्र ! मन कभी आश्चर्य से खिल जाता है कभी मुग्ध हो जाता है उस अनदेखे परमात्मा की याद आते ही उसके लिए श्रद्धा से भर जाता है. इसकी खुशबू को वे अपने भीतर समोते हैं, इसके रस को पीते हैं, इसकी नरमाई तथा गरमाई को महसूसते हैं. वे कितने भाग्यशाली हैं, भीतर एक संतोष का भाव जगता है. इस सुंदर प्रकृति को बिगाड़ने का उन्हें कोई अधिकार नहीं. जीवन की कद्र करनी है, जीवन को खत्म करने का उन्हें क्या अधिकार है ? नये वर्ष के प्रारम्भ में मन क्यों आतंक का शिकार हुए लोगों की तरफ जा रहा है. मानव के भीतर देवत्व भी है और पशुत्व भी. उसने संकल्प लिया कि अपने भीतर के जीवन को सुन्दरतम करेगी !  
इस समय दोपहर के तीन बजने वाले हैं, आशा पढ़ने आई है. उसने कुछ देर पूर्व सद्गुरु को पत्र लिखा, पिछले वर्ष फरवरी में उन्हें पत्र लिखने का जो क्रम आरम्भ किया था, उसमें आजकल व्यवधान पड़ने लगा है. समय कहाँ चला जाता है पता ही नहीं चलता. आजकल लगभग हर समय उसे अपने लिए कुछ करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती. देह को स्वस्थ रखने के लिए उसे समय पर भोजन, व्यायाम आदि देना तथा परमात्मा के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने हेतु पूजा, शास्त्र अध्ययन, घर के आवश्यक कार्य के बाद जो भी समय बचता है वह भी पढ़ने-लिखने में ही जाता है. जिससे मन भी स्वस्थ रहे तथा बुद्धि को जंग न लगे.
आज वह बहुत खुश है. लगता है वह फरवरी में बंगलुरु जा सकती है. जून उसकी टिकट के लिए प्रयास कर रहे हैं. सुबह एक परिचिता का फोन आया, वह ट्रेन से जा रही हैं, वह चाहे तो उनके साथ जा सकती है. उसे लगा यह गुरू कृपा है, उसने प्रार्थना की कि जून मान जाएँ, उन्होंने फ़िलहाल तो मंजूरी दे दी है. भविष्य में क्या लिखा है कौन जानता है ? वह नन्हे से भी मिल सकती है एक दिन के लिए. आज क्लब में मीटिंग है, वह कुछ किताबें लेकर जाएगी. लॉन में प्रकृति के सान्निध्य में बैठकर मन कैसा हल्का हो गया है. एकात्मकता का अनुभव यहीं होता है. ऊर्जा जैसे मुक्तता का अनुभव करती है.
आज बापू की पुण्य तिथि है. पिछले चार दिनों से मन पुस्तक के पन्नों में खोया था, मृदुला गर्ग का लिखा उपन्यास ‘अनित्य’ कल खत्म किया. इस उपन्यास में गांधीजी का जिक्र कई जगह हुआ है. उनको आदर्श मानने वाले कितने ही व्यक्ति स्वयं को छला हुआ मानने लगे जब उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ वापस ले लिया. कई उनके प्रयोगों के आलोचक भी थे. पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि साधारण मानव एक महामानव का मूल्यांकन कैसे कर सकता है, और ही मिट्टी के बने होते हैं वे लोग जो महान कहलाते हैं, साधारण लोगों से भिन्न होती है उनकी सोच और दृष्टि.

वसंत का आगमन हो चुका है. हवा में ठंडक कम है. अभी सुबह के दस भी नहीं बजे हैं धूप तेज हो गयी है. कल रात स्वप्न में वह सभी को बता रही थी कि मैं ‘आत्मा’ हूँ, यह बात कहने से प्रकट नहीं होगी, उसके आचरण से प्रकट होनी चाहिए. ध्यान की अवधि बढ़ानी चाहिए ऐसे प्रेरणा भीतर से उठी है.   

Friday, June 19, 2015

अनुभव की गूंज


परसों रात को लगभग साढ़े दस बजे होंगे जब सद्गुरु के दर्शन निकट से प्राप्त हुए, ‘अब खुश हो’ ये तीन शब्द उन्होंने उससे कहे, जब उसने एक हाथ से उनका पांव छूने का प्रयत्न करते हुए उनकी आँखों में झाँका. कैसी भ्रमित कर देती है उनकी उपस्थिति, वह कुछ भी न बोल पायी, मात्र सिर हिला कर मुस्करा दी, पर उनकी दृष्टि भीतर तक छू चुकी थी, उसने अपना काम कर दिया था. बाहर निकलते-निकलते तो मन भावों से इतना भर चुका था कि एक अनजान महिला ने, जो सत्संग में उसे देख चुकीं थी, कहा, जय गुरुदेव तो वह उनके गले लगकर रोने लगी. आसपास के लोगों को अजीब लगा होगा स्वयं वह महिला भी पूछने लगी कि आपने ऐसा क्यों किया, पर इन बातों का कोई उत्तर नहीं होता, बस मौन रह जाना पड़ता है. होटल वापस आकर चुपचाप सो गयी. ऐसी मधुर नींद आई जो सुबह साढ़े चार बजे खुली. क्रिया के दौरान अनोखा अनुभव हुआ, जैसे कोई अंतर्मन में प्रविष्ट होकर कुछ समझा रहा हो, तुम वही हो, वही तो हो, तुम्हीं वह हो की गूँज भीतर उठने लगी. वह यह मानकर गोहाटी गयी थी कि इस बार उसे सद्गुरु में ईश्वर के दर्शन होंगे. उसका विश्वास दृढ़ कराने के लिए ही ऐसे दुर्लभ अनुभव कराए. पहले से ही विश्वासी मन अब पूरी तरह ठहर गया है. उस क्षण से जिस भाव समाधि में डूबा है वह अभी तक उतरी नहीं है, रह-रह कर नेत्र भर आते हैं. ट्रेन में लेटे हुए आँखें बंद करने पर न जाने क्या-क्या दिखाई दे रहा था. जंगल, नदी, कभी तालाब, वृक्ष और आज सुबह क्रिया के बाद अनोखा दर्शन हुआ. गुरू की कृपा उसके साथ है !

मन यदि एक बार उच्चावस्था में चला जाये तो उसे और कुछ भाता भी नहीं, कोई अमृत पाकर विष क्यों चाहेगा, कृपा से उसने उस अवस्था का अनुभव किया है अब वहीं लौटने के लिए ही सारी साधना है. पहले आलम यह था कि ध्यान में मन टिकता नहीं था और अब आलम यह है कि ध्यान से मन हटता नहीं है. परमात्मा को पाना कितना सरल है, जगत को पाना उतना ही कठिन, जगत को आज पाया कल खोना ही पड़ेगा, परमात्मा शाश्वत है एक बार मिल जाये तो कभी छोड़ता नहीं. जगत यदि थोड़ा सा मिले तो और पाने की इच्छा जगती है, परमात्मा एक बार मिल जाये तो और कोई चाह शेष नहीं रहती. जगत मिलता है तो दुःख भी दे सकता है, परमात्मा सारे दुखों का नाश कर देता है. और ऐसे परमात्मा का ज्ञान सद्गुरु देता है. सद्गुरु से सच्ची प्रीति किसी के हृदय में जग जाये तो उसका जीवन सफल हो जाता है. गुरु भौतिक रूप से कहीं भी हों, वह शिष्य को तत्क्ष्ण उबार लेते हैं. परसों रात को सोने से पूर्व उसके मन में जो पीड़ा थी, उसे उनके स्मरण ने कैसे हर लिया था. ‘अब खुश हो’ यह वाक्य उसके लिए एक मन्त्र ही बन गया है. गुरुमुख से निकला हर शब्द एक सूत्र ही होता है. कल रात को मृत्यु का ख्याल करके जब वह थोड़ी देर को शंकित हो गयी थी तो प्रार्थना करते-करते सोई. स्वप्न में अनोखा अनुभव हुआ जैसे वह बड़े वेग से शरीर छोड़कर ऊपर की ओर जा रही है, थोड़ा सा भय था, फिर नीचे आना शुरू हुआ और पुनः शरीर में वापस आ गयी. मृत्यु का अनुभव भी कुछ ऐसा ही होता होगा. एक दूसरे स्वप्न में बाथरूम के पॉट से विशाल जानवर निकलते देखे. ईशवर की महिमा विचित्र है. यह सृष्टि अनोखी है और इसका रचियता इससे भी अनोखा है, वह जादूगर है और यह उसकी लीला है. कोई यदि लीला समझकर जगत में रहे तो जगत बंधन में नहीं डाल सकता.         

Wednesday, June 3, 2015

पैर की मोच



इन्सान जो चाहता है, वह एक न एक दिन उसे मिलकर ही रहता है. चाहे परिस्थितियां वैसी न हों, जिसमें उसने वह कामना की थी. सेवा का अवसर मिले ऐसा उसने चाहा था पर इस तरह नहीं. खैर इसी का नाम जीवन है, यहाँ उतार-चढ़ाव उसी तरह आते हैं जैसे सागर में ज्वर-भाटा, यह प्रकृति का नियम है. समय सदा एक सा नहीं रहता. आज सुबह वे पौने पांच बजे उठे. कल रात को सोने में थोड़ी देर हो गयी थी. क्रिया आदि की, व्यायाम नहीं कर पायी, जो सांध्य-भ्रमण से हो जायेगा यदि जून समय पर आ गये. वह बिलकुल नहीं घबराए हैं सासु माँ के पैर की मोच देखकर. जो उनकी अनुपस्थिति में अपनी एक परिचिता के साथ उनकी किसी परिचिता के घर जाने पर उन्हें लग गयी है. ईश्वर उन सभी को ऐसी दृढ़ता दे. उनके मनों को इतनी शुद्धता भी कि किसी के प्रति कोई नकारात्मक विचार भी न पनपे. सभी अपने-अपने स्वभाव के अनुसार करते, कहते हैं.

कल से उसे गुरूजी बहुत याद आ रहे हैं, उनकी कृपा दृष्टि उस पर अवश्य हुई है ! आज क्रिया के बाद भी अद्भुत अनुभव हुआ, पहले वंशी की आवाज सुनाई दी फिर कहीं से विचार आया कि ससुराल में पिताजी बच्चों को डिब्बा खोल कर दिखा रहे हैं और रंग-बिरंगे हिलते-डुलते से कुछ आकार डिब्बे में दिखे, उस क्षण कुछ और सोचा होता तो वह भी दिखा होता. बाद में गुरूजी की भी एक झलक दिखी. ईश्वर की कृपा ही धूल के एक कण को हिमालय की विशालता प्रदान करती है. सीमित को असीमित कर देती है. उनका ज्ञान अद्भुत है और सबसे अद्भुत है उनका प्रेम...उसका मन एक ऐसी शांति से भर गया है, असीम स्नेह से, अनंत प्रेम से और अनोखे आनंद से कि इस क्षण यदि मृत्यु उसके सम्मुख आये तो बाहें फैलाकर उसका भी स्वागत करे. उसके 
हाथ इतने बड़े हो गये हैं कि सारा ब्रह्मांड उनमें समा सकता है !


शाम हो चुकी है, वे अभी टहल कर आये हैं. दिन भर कोई गंभीर अध्ययन नहीं किया, बल्कि आजकल पढ़ने का समय कम ही निकाल पाती है. पर मन में चिंतन चलता है. पढ़े हुए को मथकर उसे पचाने के लिए अलग से कोई समय नहीं निकलना पड़ता, कार्य करते हुए ही मनन चलता रहता है. कोई नकारात्मक विचार मन में टिकता नहीं, फौरन कृष्ण का नाम अंतर में प्रतिध्वनित होने लगता है. कभी कोई मन्त्र या भजन की पंक्ति चलती रहती है, फ्लैश बैक म्यूजिक की तरह. कृष्ण बिलकुल सच्चा वादा करते हैं कि उनके भक्तों के कुशल क्षेम का भार वह अपने सिर पर ले लेते हैं. इसलिए जीवन जितना सहज और हल्का आज लगता है वैसा पहले नहीं था, कुछ वर्षों पहले. अब ऐसा लगता है जैसे हर वक्त ही वह ध्यान में है. एक अनोखी ख़ुशी पोर-पोर से फूटती रहती है, फूल से जैसे सुवास फूटती है. कहीं कोई चाह शेष ही नहीं रह गयी है, जीवन जब उस जीवन दाता ने दिया है तो उसे ही यह अधिकार है कि उसे चलाये. वह जो उसके दिल में रहता है, जो उसे उससे ज्यादा जानता है., जो उसके विचारों को सतह पर आने से पूर्व ही पढ़ सकता है, जो जीवन का स्रोत है. 

Tuesday, June 2, 2015

कान्हा की बांसुरी


आज सुबह गुरू माँ को कुछ देर सुना था, कह रही थीं कि अधिकतर महिलाओं को अपने पति की बचत आदि की कोई जानकारी ही नहीं रहती और अचानक जरूरत पड़ने पर बहुत परेशानी होती है. अभी कुछ देर पहले एक अनजान कॉल ने उसे कुछ देर के लिए व्यर्थ ही परेशान कर दिया, जो जून के बारे में पूछ रहा था, पर पता चल गया कि अभी भी डरने की शक्ति है ! जून को उसने फोन भी कर दिया, वह भी परेशान हुए होंगे शायद नहीं, उन्हें उसे अधिक अनुभव है. फोन उनके नये ड्राइवर का था, अभी दुबारा भी आया था, खैर ..जून ने आज ही अपना बीपी भी चेक कराया, थोड़ा अधिक है, उसे उनका ज्यादा ख्याल रखना होगा. किसी की सही कीमत का पता तभी चलता है जब उससे दूर जाने का भय हो. वह अपने मन की इस कमजोरी को नहीं जानती थी, आज का अनुभव कुछ नया सिखा गया है. वे संसार में रहते हैं तो प्रेमवश सभी से बंधे रहते ही हैं, पर इसी बंधन से मुक्ति ही तो मोक्ष है, आसक्ति से मुक्ति छोटे मन के लिए सम्भव नहीं पर जब कोई इस छोटे मन से पार चला जाये तो कोई भय नहीं, उस वक्त वह छोटे मन के साथ थी. आज पिताजी, बड़े भाई व छोटी ननद से बात की. पिताजी अब ठीक हैं पहले से. इसी महीने कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष सत्संग है उसे निमन्त्रण पत्र टाइप करने को दिया गया है, सेवा का छोटा सा कार्य...

आज पूर्णिमा है. रक्षाबन्धन का दिन. ‘जागरण’ में इसके महत्व पर सुना. सद्गुरु और कान्हा उसके लिए एक हो गये हैं. दोनों ही से वह साहित्य के माध्यम से मिलती है, फिर ध्यान के माध्यम से, दोनों मनातीत हैं. कल पढ़ा कि शरीर में होने वाली संवेदनाएं किसी न किसी भावना की द्योतक हैं, यदि संवेदना को देखें और देखते-देखते वह खत्म हो जाये तो वह भावना भी नहीं रहती. ध्यान में तभी उनकी सभी नकारात्मक भावनाएं समाप्त होने लगती हैं और वे साफ-स्वच्छ होकर बाहर निकल आते हैं. ध्यान एक तरह से स्नान ही हुआ न... भीतरी स्नान, फिर जब नकारात्मकता नहीं रहती तब ज्ञान प्रकट होगा, प्रज्ञा जगेगी. अभी रास्ता लम्बा है, पर रास्ता भी कितना मोहक है, अद्भुत है. सद्गुरु का ज्ञान इसे और भी मोहक और आनंद प्रद बना देता है. यह तो जन्मों की साधना है.

आज सत्संग उनके यहाँ है, जून का जन्मदिन है. सुबह से सभी के फोन आ रहे हैं. दो बजने को हैं. शाम बहुत व्यस्त बीतने वाली है. आज भी झकझोरने वाला प्रवचन सुना, संत निर्भीक होता है, वह सिर्फ देता है और जिसे कुछ चाहिए नहीं वह डांट भी सकता है. उनके सम्मुख जाते ही झूठ उजागर हो जाता है. आदर्शवादिता की बातें तो बहुत होती हैं पर उन्हें जीवन में उतारने से वे पीछे हट जाते हैं. सद्गुरु उस कान्हा की बांसुरी की तरह है जो स्वयं पीड़ा सहकर मधुर राग उत्पन्न करती है, वह कटती है, तपती है, विरह की पीड़ा सहती है तभी कृष्ण के अधरों से लगती है, वैसे ही संत, संत होने से पूर्व विरह की आग में जलते हैं फिर प्रभु से दीदार होता है. और प्रभु के मुख बन जाते हैं वह, उसकी तरफ से बोलते हैं, उसका कार्य करते हैं. जब किसी के जीवन में स्वार्थ नहीं रहता, झूठा गर्व नहीं रहता, वह भी उस प्रभु का साधन बन जाता है.



Friday, April 10, 2015

महाप्रभु का जीवन


गुरू रूपी कीली से कोई जुड़ा रहे तो चक्की में पिसने से बच जायेगा. गुरू की कृपा रूपी छाता लेकर वह वर्षा का भी आनंद ले सकता है. गुरु की कृपा ही तो है जो उसे ध्यान में तारे और चाँद दिखे, कितना अद्भुत दृश्य था, पूर्णिमा का चाँद बादलों से झांक रहा था. मन एक अद्भुत शांति से भर गया है. आत्मभाव में स्थित रहते हुए कितना सुख है, देह व मन, बुद्धि से स्वयं को संयुक्त करके वे व्यर्थ ही अपने को सुखी या दुखी मानते हैं, जबकि संसार की किसी भी वस्तु में ऐसी सामर्थ्य नहीं जो आत्मा को अल्प कष्ट पहुँचा सके. समस्याएँ आती भी रहें पर हृदय में उसकी स्मृति है तो वह दुःख दुःख नहीं लगता. नन्हे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, जून उसे लेकर होमियोपैथिक डाक्टर के पास जाने वाले हैं. बीमारी पहले नहीं थी बाद में भी नहीं रहेगी सो उसके लिए परेशान होने की क्या जरूरत है, नन्हे को यही समझाना है !

जीवन में ताजगी चाहिए तो जो कुछ उसे मिला है उसे बाँटना चाहिए. तितलियाँ, फूल, खुशबू और प्रेम को तिजोरी में नहीं रख सकते. बहता हुआ पानी ही स्वच्छ रहता है. हवा एक तरफ से प्रवेश करे और दूसरी ओर से निकलने की भी व्यवस्था हो तो सब कुछ ताजा रहेगा. देह तो किसी के वश में है नहीं, यह अस्वस्थ भी होगी और इसका नाश भी होने वाला है, तो कब तक इसके पीछे दौड़ते रहेंगे जबकि सदा रहने वाला अविनाशी मुक्त आत्मा उसके साथ है बल्कि वह स्वयं ही है. कल शाम उसने भागवद् का प्रथम अध्याय पढ़ना आरम्भ किया है जो पहले नहीं पढ़ पायी थी. महाप्रभु चैतन्य के जीवन चरित पर आधारित रचनाएँ भी पढ़ीं. वे तो साक्षात् कृष्ण थे पर उनमें से हरेक को कृष्ण को स्वयं पाना है, उसकी ओर हर कदम स्वयं बढ़ाना है. कोई सद्गुरु, कोई महात्मा  और ईश्वर स्वयं भी उनकी उतनी ही मदद कर सकते हैं जो पहला कदम बढ़ाने की प्रेरणा दे, उसके आगे तो उन्हें स्वयं ही चलना होगा.

aol का हर बृहस्पतिवार को होने वाला साप्ताहिक सत्संग आज उनके यहाँ है. उसके मन में कुछ बातें हैं जो वह सभी से कहने चाहती थी, उसने सोचा लिख कर रखेगी ताकि कोई बात छूट न जाये...उसे सद्गुरु की उपस्थिति का आभास हो रहा था, सभी के रूप में मानो परमात्मा भी वहीं थे. उसने लिखा..वह जो कुछ कहना चाहती है उसका एकमात्र कारण प्रेम है, सद्गुरु और ईश्वर के प्रति प्रेम..उन सभी का आपस में प्रेम. पहली बात- ॐ के गायन से पूर्व सभी दो बार गहरी श्वास लें, तीन बार ॐ कहने के बाद दो सामान्य श्वास लेने के बाद भजन शुरू करेंगे. हर भजन के मध्य दो मध्यम श्वास लेकर नया भजन होगा. अंतिम भजन के बाद सभी अपने स्थान पर रहेंगे और प्रसाद वितरण के लिए एक या दो व्यक्तियों से अधिक की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. बेसिक कोर्स शुरू हुए एक वर्ष हो चुका है, इस कोर्स से जीवन की एकरसता टूटी थी जीवन में नये उत्साह को अनुभव किया था अब इस सत्संग को भी एकरस न बना लें, यह प्राणों को उत्साह से भरता है. सप्ताह दर सप्ताह मन को निर्मल करता चला जा रहा है, इसका पूरा लाभ तभी मिलेगा जब पूरी तरह मन को इसके साथ जोड़ें. भजन गाते समय मन ईश्वर के प्रति गुरू के प्रति कृतज्ञता के भावों से भरे रहे. सर्वप्रथम अपने-अपने स्थान पर उनका मानसिक पूजन करें और हर भजन के बाद भी नमन करें.

पिछल दो दिन नहीं लिख सकी. शरीर अस्वस्थ हो तो मन भी कैसा हो जाता है. ऐसा नहीं है कि शेष सभी कार्य भी छूट गये हों बस यही एक छूटा अर्थात मन का काम. लिखना तो तभी सम्भव है जब मन किसी एक विचार पर टिके. आज अपेक्षाकृत शरीर ठीक लग रहा है. शाम को एक सखी के यहाँ जाना है, उसे डिबेट में थोड़ी मदद चाहिए. आज सुबह वे समय से उठे. जून आजकल पूरे फॉर्म में हैं. उन्हें अपने काम में इस तरह जुटे देखकर अच्छा लगता है, उतनी ही तन्मयता से योग भी करते हैं. कोर्स किये उन्हें पूरा एक वर्ष हो गया है और कोई भी उनके जीवन में ए परिवर्तन को देख सकता है, जीवन को एक उद्देश्य मिल गया है. मन को एक आधार, तन को साधन और आत्मा को उसकी पहचान. वे पहले से कहीं ज्यादा खुश रहते हैं, ज्यादा स्पष्ट सोच सकते हैं. वस्तुओं को उनके वास्तविक रूप में देखने लगे हैं. दूसरों के प्रति उनका व्यवहार अधिक स्नेहपूर्ण हो गया है. क्रोध उनके लिए अजनबी हो गया है. सद्गुरु का ज्ञान भीतर टिक रहा है. यह उनकी कृपा है. उनके प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का सबसे अच्छा उपाय यही है है कि उनके विचारों पर मनन करें जीवन में उतारें. धर्म जो पहले मात्र थ्योरी था अब प्रेक्टिकल हो गया है. उसने प्रार्थना की, जीवन सत्कर्मों से परिपूर्ण रहे और प्रेम का अविरल स्रोत जिसका पता सद्गुरु ने बताया है कभी सूखने न पाए !


Wednesday, March 25, 2015

तरबूज की ठंडक


आज बाबाजी ने बताया, ‘अहंता’ और ‘ममता’ ही दुखों का कारण है. उन्होंने एक सरल साधन भी बताया जिससे भीतर विश्रांति का जन्म होता है. शनिवार को जून उसे ऑफिस ले गये. eSatsang से श्री श्री की एक छोटी सी टॉक डाउनलोड की Ultimate relationship पर बोल रहे थे. वह इतने प्यार से इतनी अच्छी बातें बताते हैं, उनका ज्ञान अनंत है. कल शाम को एक परिचिता आयीं, उनकी सास icu में हैं, वह उनके दुःख को अनुभव कर पा रही थी. अंतर में प्रेम हो तभी यह सम्भव हो सकता है अन्यथा तो दूसरों की पीड़ा ऊपर से छूकर ही निकल जाती है. स्वयं को यदि ज्ञान में स्थिर करना है तो उसका लक्ष्य प्रेम ही रखना होगा, अन्यथा यहाँ भी स्वार्थ ही है. अपनी आत्मा का विकास मात्र स्वयं के लिए, अपने सुख के लिए... नहीं, अपने ‘स्व’ का विस्तार करते जाना है, सबको अपना सा देखना है. तभी मुक्ति सम्भव है. जितने-जितने उदार वे होते जायेंगे, जितनी देने की प्रवृत्ति बढ़ती जाएगी, लेने की, संग्रह की प्रवृत्ति घटती जाएगी उतने ही स्वाधीन वे होते जायेंगे.     

आज नन्हे का जन्मदिन है. सुबह ससुराल से फोन आया. बड़ों का आशीर्वाद मिले तो जीवन का पथ सरल हो जाता है. भाई-भाभी व पिताजी का फोन भी आया. सभी परिवार जन आपस में प्रेम के धागों से ही तो जुड़े हैं. यह सूक्ष्म भावना बहुत प्रबल है. यही प्रेम उन्हें बार-बार इस जगत में खीँच लाता है, लेकिन जब इस प्रेम की धारा ईश्वर की ओर मुड़ जाती है तो मुक्त कर देती है, क्योंकि उसके सान्निध्य में रहने के लिए उन्हें इस तन में आने की क्या आवश्यकता, वे जहाँ कहीं भी हों उसे चाह सकते हैं. आज अमावस्या है, ईश्वर का स्मरण करते हुए दिन का आरम्भ हुआ. उसे लगता है जिससे उन्हें ममता है उन्हें सुखी वे इसलिए करते हैं कि वे स्वयं सुखी हों. अपनी ख़ुशी के लिए ही वे दूसरों को कुछ देते हैं. ममता में स्वार्थ है पर प्रेम निस्वार्थ है. प्रकृति के गुणों के वशीभूत होकर ही ममता में बंधते हैं. ईश्वर को प्रेम करने में वे स्वतंत्र हैं. ईश्वर के नाते ही सारे सम्बन्ध हों तभी मुक्ति है.

आज सुबह बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ कि वह ‘क्रिया’ नहीं कर पायी. नन्हे के एक मित्र के लिए भी टिफिन बनाना था सो जून ज्यादा सचेत थे. कल शाम को बड़ी बुआ का फोन आया, उनकी बेटी के बड़े पुत्र का चुनाव एयर फ़ोर्स में हो गया है. वह सत्संग में गयी थी, जून ने बताया. वहाँ शुरू में उसका मन स्थिर नहीं रह पा रहा था पर धीरे धीरे गुरूजी से मानसिक प्रार्थना करने के बाद अच्छा लगा. कुछ देर पहले दीदी से बात हुई, जीजाजी के जन्मदिन पर उन्होंने घर पर उगाया हुआ तरबूज काटा. बड़ी भांजी CA बन गयी है, उसकी पांच साल की पढ़ाई पूरी हो गयी. कल छोटे भांजे को लेकर वे दिल्ली जा रहे हैं. परसों उसे हास्टल ज्वाइन करना है. पूजा की छुट्टियों में फिर घर आयेगा. नन्हा भी एक दिन ऐसे हॉस्टल जायेगा. दीदी खुश थीं, वह भी ईशप्रेम में सदा खुश रहती आयी हैं.

कल रात सिर दर्द के कारण उसकी नींद खुली, कुछ देर बैठी रही फिर धीरे-धीरे शवासन में लेटे हुए कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला. आज छोटी ननद का फोन आया, ननदोई जी ने aol के एडवांस कोर्स का फार्म भरा है, उन्हें अभी इसके लिए काफी लम्बा इंतजार करना होगा. ‘क्रिया’ वे नियमित करते हैं और जून को लगता है यह बहुत है.



Tuesday, March 17, 2015

टिंडे की सब्जी


अभी बहुत दूर जाना है, सहिष्णुता की बहुत कमी है. आसक्ति अभी बनी हुई है, लोभ भी बरकरार है और वाणी पर संयम भी नहीं है. ऐसे में ध्यान का क्या लाभ मिलने वाला है. सुबह-सवेरे ही गुरू माँ ने कहा, गलती करो मगर होश से, तो थोड़ी सांत्वना मिली है क्योंकि पूरे वक्त उसे यह पता था कि जो हो रहा है वह ठीक नहीं है यानि होश तो था, अब आगे ऐसी भूल नहीं होगी. कल शाम भजन संध्या में गयी अच्छा अनुभव था. नाम संकीर्तन के द्वारा भी उससे जुड़ा जा सकता है, कृष्ण हृदयों से राग-द्वेष निकाल देते हैं, जब उसका नाम जिह्वा पर नृत्य करता है. असत संग का त्याग करना है, जो भी लक्ष्य से दूर ले जाये वही असत है. कल दोपहर को एक नया अनुभव हुआ बाथरूम में कपड़ों का ढेर उसके देखते-देखते एक निर्मल आभा से युक्त हो गया और एक बार तो हिलता हुआ भी प्रतीत हुआ. उसकी आँखों से कुछ अन्य तरंगें भी निकलने लगी हैं शायद. गुरूजी कहते हैं अनुभवों के पीछे नहीं जाना चाहिए.

आज ‘मृणाल ज्योति’ जाना है, बच्चों को योग सिखाने. मौसम सुहावना है, संगीत की कक्षा हुई. पिछले हफ्ते अभ्यास ठीक से नहीं कर पायी थी, ध्यान में ज्यादा वक्त चला गया, कई बार पुस्तक पढ़ते-पढ़ते ही भाव ध्यान घटने लगता था. ‘ध्यान’ अब एक स्वाभाविक कार्य लगता है जैसे यह उतना ही सामान्य हो जितना भोजन करना. अभी दोपहर के भोजन की थोड़ी सी भी तैयारी नहीं हुई है, नैनी टिंडे काटकर रख गयी है, जो जून कल लाये थे. कल ही वह ढेर सारे आम भी लाये थे. नन्हे को रात को देर तक पढने की आदत है. कई बार लाइट जलाकर ही सो जाता है सो जून ने उसके नॉवल वापस करने के लिए अपने आपस रख लिए थे, पर उसे यह बात नहीं भायी, बहुत नाराज हुआ और सुबह बिना बात किये ही स्कूल चला गया. वे भी कभी माँ से ऐसे ही नाराज हो जाते होंगे. स्कूल से वापस आने तक सब भूल चूका होगा. उन्होंने उसकी किताबें वापस भी रख दी हैं. जून अपने लिए एक तकिया लाये पर वह भी उन्हें अधिक माफिक नहीं आया. पिछले दिनों तकिये की वजह से उनकी गर्दन में दर्द हो गया था. परसों विभाग में उनका एक प्रेजेंटेशन था, अच्छा रहा. कल से वह रह-रह कर सिर के दायें भाग में कुछ सुरसुरी सी अनुभव कर रही है शायद ‘ध्यान’ की वजह से. ईश्वर उसके साथ है जो भी होगा या हो रहा है उनकी देख-रेख में ही हो रहा है !

जुलाई का प्रारम्भ ! मौसम बरसात का है, वर्ष रात को हो चुकी है, सभी कुछ साफ और धुला-धुला सा है. मन भी ईश्वर की भक्ति रूपी जल से धुलकर इस वक्त तो स्वच्छ  प्रतीत हो रहा है लेकिन कब, कैसे और क्यों और कहाँ इस पर मैल का छींटा लग जाता है, पता नहीं चलता, कब सिलवटें पड़ जाती हैं, पड़ने  के बाद तो लेकिन फौरन पता चल जाता है. एक पल भी नहीं लगता इसे निस्तेज होते हुए. .०००१ % भी यदि स्वच्छता घटे तो अहसास फौरन दिलाता है भीतर स्थित परमात्मा रूपी मित्र, वह तो हर क्षण सजग है न. बहुत बचा-बचा कर रखना पड़ता है, व्यर्थ की बातचीत नहीं, व्यर्थ का कुछ भी नहीं. आज सुबह दीदी का फोन आया, वे भांजियों के ब्याह की बात बता रही थीं. अगले डेढ़-दो वर्षों में दोनों की अथवा एक की तो शादी करने का वे इरादा रखते हैं. छोटे भांजे का दाखिला दिल्ली के एक कालेज में हो गया है. पर अभी वह चंडीगढ़ में बीटेक के दाखिले का इंतजार भी कर रहा है. कल शाम को सासु माँ व छोटी ननद की अस्वस्थता की खबर भी मिली. छोटी बहन इसी माह पूना जाने की उम्मीद रखती है. उस दिन चचेरे भाई का खत आया था, उसकी भाषा अच्छी है, विचार भी सधे हुए हैं पता नहीं क्यों उसने अपने शारीरिक रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया, गरीबी को इसलिए अभिशाप कहते हैं. नन्हे की फिजिक्स की कोचिंग कल समाप्त हो गयी, अगले टीचर गणित आएंगे. वह अपने मन की करता है, आजाद ख्याल किशोर है. जून और वह दोनों ही उसे बहुत प्यार करते हैं और दो वर्ष वह उनके साथ रहेगा फिर तो पढ़ाई  के लिए उसे बाहर जाना है, हो सकता है तब उसे उनका टोकना याद आए कि वे उसके सुधार के लिए ही उसे सन्मार्ग पर लाने के लिए ही टोकते हैं ! आज दोपहर एक सखी और उसका पुत्र आ रहे हैं राखी बनवाने.     


Friday, March 6, 2015

महाभारत का अध्ययन


गुरू के प्रति प्रेम मन से शुरू होता है और आत्मा तक पहुँचता है. गुरू से मिला ज्ञान अथवा प्रेम ही इस प्रेम को उपजाता है, उसके प्रति कृतज्ञता और आभार की भावना भी प्रेम का ही दूसरा रूप है. कल शाम उन्होंने योग शिक्षक से बात की. कल दोपहर उसकी आंखों में रह रह कर आंसू भर आते थे, यह आद्रता अंतर में कहाँ छुपी थी उसे स्वयं भी पता नहीं था, जो गुरू स्मरण से सारी सीमाएं तोड़कर बह निकली है. सम्भवतः यह सारी सृष्टि के लिए है जो ब्रह्म का ही दूसरा रूप है, बल्कि ब्रह्म स्वरूप है, सभी के भीतर वही प्रकाश है जो गुरू के भीतर है पर उनके भीतर का प्रकाश उनके चेहरे पर झलकता है, क्योंकि वह ईश्वर के निकट हैं. सब प्राणियों के प्रति उनके भीतर प्रेमपूर्ण भाव है, प्रसन्नता की मूरत हैं. निस्वार्थ भाव से इस जगत के कल्याण में लगे हैं. उनकी आँखों में ईश्वर का प्रकाश है. नूना ने सोचा, ऐसी ही भावना उनके हृदयों में उत्पन्न हो, उनका अभ्यास और वैराग्य दृढ़ हो. शाम को वे योग शिक्षक से मिलने जायेंगे. उनका मुख्य कर्त्तव्य है अपने सच्चे स्वरूप को जानना, जिसे भुला दिया है उसको याद करना. वह स्मरण इतना सहज हो जैसे धूप और हवा और जल अपने सहज रूप में सदा रहते हैं, झरते हुए, बहते हुए, बिखरते हुए वैसे ही उनका मन उसकी याद में झरता रहे, बहता रहे, पिघलता रहे, द्रवित होता रहे. कुछ स्थूल न बचे, कोई ठोसपना नहीं...सब कुछ बह जाये...

कल शाम वे क्लब गये, बेसिक कोर्स चल रहा था. पुरानी स्मृतियाँ उसके मानस पटल पर आ गयीं. उन्होंने सितम्बर में यह कोर्स किया था, आठ महीने होने को हैं. उसके जीवन के वे सुनहरे दिन थे. उन्ही दिनों उस परमपिता का अनुभव हुआ था, वह जो सत्य स्वरूप है, जो सदा से है, सदा रहेगा, जो सबका आधार है, जिसकी सत्ता से उनकी धड़कनें चल रही हैं. जो उनके भीतर है, उनके हर क्षण का साक्षी है, जो उन्हें सदा प्रेरित करता है, जिसका न आदि है न अंत, वह न स्थूल है न सूक्ष्म. वह जिसे वे इन्द्रियों से देख नहीं सकते जो मन की गहराइयों में भी अव्यक्त है. वह जो सुख का स्रोत है, प्रेम और ज्ञान का सागर है, वह जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है. वही शब्द है, वही नाद है, वही प्राण है और वही इन सबका आधार...ऐसे परमात्मा जिसकी स्मृति से उसका अंतर कमल की भांति खिल उठता है, एक अनजानी सी ख़ुशी की लहर पोर-पोर में समा जाती है, उनका स्मरण ही इतना प्रभाव डालता है तो उनका दर्शन कितना असर डालता होगा यह कल्पना से भी बाहर है. उनसे जो जुड़ा है वह गुरू पूजनीय है और उस गुरू से जो जुड़े हैं वह योग शिक्षक शाम को उनके यहाँ भोजन पर आ रहे हैं.

कल रात्रि आठ बजे शिक्षक आये, दस बजे गये, दो घंटे कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. उनकी बातें मन को छूती हैं, ज्ञानप्रद हैं. नन्हे और जून को कोर्स करने व सत्संग में जाने को उत्साहित किया, दोनों प्रभावित नजर आ रहे थे. नन्हे को ‘महाभारत’ पढ़ने को कहा है. अभी कुछ देर पहले पड़ोसिन सखी से बात की. कल की मीटिंग की बहुत तारीफ़ क्र रही थी, श्लोक, गीत व गेम सभी अच्छे थे. अभी-अभी गुरुमाँ का प्रवचन सुना. बहुत स्पष्ट शब्दोंमें बोलती हैं.
चाह चूड़ी चाह चमारण, चाह नींचा दी नीच
तू तां बुलया शाह सी, जो चाह न होती बीच

योग वशिष्ठ में कहा गया है जिसके हृदय से सब अर्थों की आस्था चली गयी है, अर्थात जो जगत में रहते हुए भी यह जानता हो कि सब सपना है, सब माया का खेल है, आत्मशांति तभी मिलती है जब यह ज्ञान होता है. श्री श्री के हृदय में भी यही ज्ञान है और तभी वह इतना काम कर पाते हैं. वे भी ज्ञान में स्थित रहें, अविद्या को दूर करें तभी आत्मिक सुख पा सकते हैं और तब कोई भौतिक आकांक्षा नहीं रह जाती क्योंकि उस एक के सिवा प्राप्त करने को क्या है ? प्रवृत्ति और निवृत्ति का ज्ञान प्राप्त करना है. उसका दिया उसको अर्पण करके ग्रहण करना है.


Saturday, February 7, 2015

स्वेटर्स की धुलाई


कल शाम वह पहली बार aol के सत्संग में गयी. ॐ के उच्चारण से आरम्भ हुआ और फिर एक के बाद एक कई भजन गए गये. कृष्ण, राम, शिव और गणेश के नामों का उच्चारण संगीत के साथ श्रद्धापूर्वक किया गया. प्रसाद बंटा फिर एक महिला ने अपने अनुभव सुनाये. तेजपुर से इटानगर तक उनकी कार में गुरूजी ने सफर किया उनसे बातें की, पूरा परिवार बेहद उत्साहित व प्रसन्न था मानों उन्हें गुरू रूप में अमूल्य निधि मिल गयी हो. गुरू की महिमा ऐसी ही होती है. वापस लौटने में उसे देर हो गयी, पौने आठ बज गये जबकि चर्चा अभी जारी थी, जून को लेने भी जाना पड़ा और उन्हें इतनी देर होना भी नहीं भाया. खैर...भविष्य में क्या होगा भविष्य ही बतायेगा. रात को देर तक गुरूजी के बारे में सोचती रही. मन में कई विचार आ जा रहे थे, सब कुछ जैसे अस्पष्ट सा हो गया था. दो नावों पर पैर रखने वाले की स्थिति सम्भवतः ऐसी ही होती है. उसे अपना मार्ग स्वयं ही खोजना होगा. उपासना की भिन्न-भिन्न विधियों के जाल में स्वयं को उलझाना ठीक नहीं है. कृष्ण को अपने जीवन का आधार मानकर उससे ही ज्ञान पाना होगा. इस बार ‘महाभारत’ भी वे लाये हैं. स्टेशन पर ही मिल गया. अभी आरम्भ से पढ़ना शुरू नहीं किया है. कल द्वितीय खंड की भूमिका पढ़ी. सफाई का कार्य अभी चल रहा है, दो-एक दिन और चलेगा.

आज ‘जागरण’ में ध्यान की विधि सिखा रहे थे. सुंदर वचनों से हृदय प्रफ्फुलित हो उठा. कुछ देर संगीत अभ्यास किया फिर एक परिचिता आयीं अपने तीन-चार वर्ष के पुत्र को लेकर. जाते समय वह नन्हे के तीन-चार खिलौने लेता गया जो उसकी आदत है. अगले दिन माँ सबको वापस भिजवाती हैं. पुत्र मोह इन्सान से क्या-क्या करवाता है. आज नन्हा वाशिंग मशीन में स्वेटर धोने का कार्य कर रहा है. सभी स्वेटर धोकर अगली सर्दियों तक सहेज कर रखने होंगे. कल कुछ वस्त्र मृणाल ज्योति में देने के लिए निकाले, सोमवार को एक अन्य महिला के साथ वह वहाँ जाएगी. एक अन्य परिचिता का फोन आया, मुख्य अधिकारी की विदाई के लिए उन्हें दो कविताएँ चाहियें.


आज सुबह पौने पांच बजे उठी. जून ने मच्छरों के कारण नेट के अंदर ही क्रिया करने की तैयारी कर रखी थी जब वह ब्रश आदि करके कमरे में आयी. कल पहली बार एसी भी चलाया, गर्मी एकाएक बढ़ गयी थी. आज फिर बादल छा गये हैं. सुबह घर में सभी से बात हुई, पिताजी काफी ठीक लगे. छोटी बहन मेजर बनने वाली है मई में, उसे बधाई देनी है. गुरू माँ ने कहा, जिसके हृदय में प्रेम नहीं वह धार्मिक नहीं हो सकता, दिल में प्रेम हो, सरलता, सहजता हो, विश्वास हो तो ईश्वर की तरफ चलने के पात्र बन सकते हैं वे. ईश्वर जो उनके भीतर है उन्हें उनसे भी ज्यादा अच्छी तरह जानता है. उसे बाह्य आडम्बरों से कुछ भी लेना-देना नहीं है, वह तो मन, बुद्धि का साक्षी है. वे कितने भले हैं अथवा कितना ढोंग क्र रहे हैं, उसे सब पता है इसलिए उसके सम्मुख कोई दुराव नहीं चल सकता. खुले मन से उसे पुकारना है, खुली आँखों से उसे निहारना है. जिस मन में कोई छल न हो, जिन आँखों में कोई भ्रम न हो..  

Thursday, January 15, 2015

फूलों का साथ


उसने कितनी ही बार इसका अनुभव किया है, ‘ध्यान’ में जब हृदय पूरी तरह लीन हो जाता है तो कोई फिर आगे का रास्ता दिखाने आ जाता है. ‘नारद भक्ति सूत्र’ में भी यही कहा गया है कि भावपूर्ण हृदय से जब भक्त ईश्वर को पुकारता है तो ईश्वर तत्क्षण उसे अपना अनुभव दे देते हैं. वह अत्यंत निकट है, पुकारने या न पुकारने की जिम्मेदारी उनकी है. कल aol  का दूसरा दिन था, वे कल भी गये थे. योग शिक्षक ने आध्यात्मिकता का एक सूत्र बताया कि दूसरों को क्षमा करते रहने का स्वभाव नहीं बनाया तो ईश्वर दूर ही रहेंगे, हृदय पूरी तरह खुला हो, पवित्र हो, राग-द्वेष रहित हो तो ईश्वर आनंद, शांति और प्रेम के रूप में हृदय में प्रकट होता है. आत्मभाव में स्थित रहना मानव का प्रथम और अंतिम कर्त्तव्य है. सत, रज और तम गुणों के कारण मानव इस संसार में बद्ध हैं. ये तीनों गुण भी दैवीय हैं, अर्थात प्रकृति भी ईश्वर के आधीन है. इनसे मुक्त होने का एकमात्र उपाय उसकी शरण में जाना है उसकी प्राप्ति वही करा सकता है !
आज उन्हें ‘सुदर्शन क्रिया’ के लिए जाना है. शरीर, मन और इन्द्रियों का स्वामी बनना है. हर क्षण सजग रहना है, एक पल का भी दुरूपयोग हुआ तो सारे विश्व का धन भी उसे वापस नहीं ला सकता. ईश्वर की स्मृति ही संतुष्ट करने में समर्थ है, संसार की अन्य कोई भी वस्तु मानव को संतुष्टि नहीं दे सकती. परम ईश्वर ही इस जगत के कारण हैं, एक मात्र उन्हीं का शासन मन पर स्वीकार करना होगा ! प्रभु अंतर के पट खोल ! उसने प्रार्थना की, कान्हा को देख सके ऐसी ज्ञान की आँखें कब मिलेंगी !

कल aol का अंतिम दिन था. शिक्षक ने गुरू की महिमा का बखान किया. गुरू के सान्निध्य में भक्ति का वरदान मिलता मिलता है, भक्ति से बड़ा कोई गुण नहीं, जब हृदय में ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति का उदय होता है तो अन्य सभी गुण गौण हो जाते हैं. ईश्वर की कृपा से ही उसके मन में उसके प्रति प्रेम जगा है, यह प्रेम ही उसके सारे प्रश्नों का उत्तर है. कल स्वप्न में किसी से कह रही थी, ‘ये फूल जो तुम्हें अच्छे लगते हैं वास्तव में तुम्हार्रे भीतर स्थित परमात्मा को अर्पित हैं’, अब तो बस वही है और कोई नहीं. भीतर स्थित वह परमात्मा निकट आने को उतना ही उत्सुक है जितना कोई उसके निकट आने को. इस बार की क्रिया में उसे तीव्रतर अनुभव हुआ. दैवीय संगीत भी सुना और अनुपम दृश्य देखे. वह तो अपनी उपस्थिति का अहसास हर पल कराता है. शिक्षक के अनुसार अनुभवों को ज्यादा महत्व नहीं देना है, बिलकुल सही बात है. आचरण कैसा है, बाहरी जीवन कैसा है, उसमें कुछ बदलाव आ रहा है या नहीं, यही प्रमुख बात है. वाणी में मधुरता आयी या नहीं, कर्मों  में सरसता आयी या नहीं, जीवन से संतुष्ट हैं या नहीं, मधुमय आत्मा के आनंद को पाया है या नहीं, परमात्मा निकटतर हुआ है या नहीं, निर्दोष भाव से अपना अहम उसके अम्मुख अर्पण कर दिया है या नहीं, उसके प्रति अटूट विश्वास अंतर में उदय हुआ है या नहीं, कान्हा तो सबका मित्र है, वही आत्मशांति देता है, जिससे सामर्थ्य उत्पन्न होता है.

ईश्वर से मानव का संबंध प्रेम का है, उसमें भक्ति का रस मिलता है. भौतिक जगत में इन्द्रिय तृप्ति के लिए ही विभिन्न संबंधों की उत्पत्ति होती है. मन संसार और ईश्वर दोनों के मध्य बंटा रहता है, अच्छा तो यह होगा कि मन सदा उच्च भाव में रहे और इन्द्रियाँ अपने काम करती रहें. आत्मा में स्थित रहें तो यह द्वंद्व उसी क्षण दूर हो जाता है, क्योंकि आत्मा नित्य शुद्ध और शाश्वत है. कल शाम को वे उसकी किताब देने एक मित्र के यहाँ गये और आज वे लोग उनके यहाँ आ रहे हैं. जून उसकी कुछ तस्वीरें उतारने वाले हैं, बाहर लॉन में फूलों के मध्य और शाम को वे मित्र भी अपना कैमरा लायेंगे.




Thursday, January 1, 2015

गीत समर्पण के


पिछले दो दिन डायरी नहीं लिख सकी. सुबह का वक्त जो श्रवण-लेखन में बीतता है, छुट्टी होने पर अन्य कार्यों में चला जाता है. जीव हर वक्त इन्द्रियों को तुष्ट करने में लगा रहता है. देहात्म बुद्धि से निजात पाना कितना कठिन हो जाता है पर इन सबके बीच ‘क्रिया’ के क्षण वरदान बनकर आते हैं, जब मन आत्मभाव में स्थित हो जाता है. आज बड़े भांजे का जन्मदिन है, सुबह सभी से बात की, कल रात पिता से भी बात हुई, उन्होंने बताया, पत्र लिखा है. दीदी ने पत्र का जवाब फोन पर दिया. कल दोनों भाई उनके यहाँ परिवार सहित पहुंच गये आज दोपहर तक वापस आयेंगे. कुछ देर पहले छोटी बहन का फोन आया उसने नन्हे से यहाँ का पिन पूछा और कुशलता का समाचार लिया दिया. सुबह ससुराल से फोन आया यह याद दिलाने के लिए कि वे बधाई देने के लिए फोन अवश्य करें. यह फोन उन सभी परिवारजनों को आपस में जोड़े हुए है.

आज पूरे एक हफ्ते बाद नन्हे का स्कूल खुला है. वे सुबह जल्दी नहीं उठ पाए सो क्रिया भी नहीं हो सकी. अभी कुछ देर पहले बाबाजी का हिमाचल में हुआ सत्संग देखा, मन भर आया, गुरू का सन्निध्य कितना अमूल्य होता है. योग शिक्षक से वे पिछले इतवार को डिब्रूगढ़ में मिले थे, उसके बाद से कोई खबर नहीं है. उस दिन एक मित्र परिवार ने दो कैसेट दिए एक में समपर्ण के गीत हैं. सुनकर बहुत अच्छा लगता है. गुरू उन्हें कितनी ऊँचाइयों तक ले जाते हैं, गुरू भीतर ही हैं, सदा उनके पास हैं पर फिर भी किसी बाहरी आश्रय की आवश्यकता का अनुभव होता है, कोई ऐसा जो दो आँखों से ही अंदर का सारा हाल जान लेता है, जिसका एक वचन ही काफी होता है. जीवन के प्रत्येक कार्य के लिए किसी न किसी से शिक्षा लेनी पड़ती है तो ईश्वर को जानने जैसे महान कार्य के लिए गुरू की आवश्यकता हो इसमें आश्चर्य क्या है. गुरू मन का वैद्य होता है. जो विकारों से मन को मुक्त करता है. ऐसा सद्गुरु आसानी से नहीं मिलता, पर ईश्वर की अनुभति वही करा सकता है. वह शिष्य के मंगल की कामना हर क्षण करता है, उसका हृदय ईश्वर की तरह अनंत प्रेम से भरा हुआ है. कल शाम से ही बल्कि दोपहर से ही उसका सिर भारी था, खैर, शरीर का अपना धर्म है और आत्मा तो सदा मुक्त है, कल उसने इन दोनों को अलग-अलग रखते हुए कोई दवा आदि नहीं ली और रात को कब अपने-आप ही दर्द ठीक हो गया पता नहीं चला. आज ‘जागरण’ में विभिन्न चक्रों के बारे में सुना. आत्मा के स्तर पर जीना यदि कोई सीख ले तो सारे चक्र अपने आप ही जाग्रत हो जायेंगे और उनसे मिलने वाली ऊर्जा से जीवन ओत-प्रोत हो जायेगा.

कल अंततः जून को शिक्षक का ईमेल मिला. उनके भाई का देहांत हो गया था जिसके एक्सीडेंट की खबर सुनकर वे गोहाटी गये थे, जीवन कितना क्षणिक है यह उनसे बेहतर कौन जान सकता है. देह का संबंध क्षणिक है मात्र ईश्वर से मानव का संबंध शाश्वत है. उन्होंने उसे दो आदेश दिए थे पहला सेवा करनी चाहिए दूसरा ऋषिकेश जाकर एडवांस कोर्स करने का आदेश. पर दोनों ही आदेशों का पालन वह नहीं कर पायी है. सेवा करने की क्षमता नहीं है, अपने परिवार और निज आत्मा की सेवा करने में ही सारा समय बीतता है. ईश्वर प्राप्ति की इच्छा बलवती होती जा रही है. कृष्ण की चेतना में अपनी चेतना जोड़ने की इच्छा. भगवद स्मरण के सिवा और कोई भी कार्य स्वीकार्य नहीं लगता है. आज सुबह वे उठे तो गला खराब लग रहा था पर अब देह को आत्मा से अलग रख कर देखने की कला गुरूजी ने सिखा दी है. परमात्मा उसे जिस हाल में रखना चाहें, क्योंकि वही सब करा रहे हैं. उसके लिए जो भी अच्छा है वही होगा. वह जड़ वस्तु पर निर्भर न रहकर चेतना की ओर कदम बढ़ा रही है. इन्द्रियां अपना काम करती रहेंगी, मात्र उसकी चेतना इन्द्रियों की ओर न जाकर कृष्ण की ओर जा रही होगी.


कल सुबह एक सखी आई थी अपनी समस्या लेकर और गुरूजी ने उसे उसकी सहायता करने की प्रेरणा दी. सुबह उसको फोन किया. सुबह एक अन्य सखी के साथ बाजार गयी, वह अपने यहाँ कल पूर्णिमा की कथा का आयोजन कर रही है. बाद में लंच भी होगा जो उसके जन्मदिन का भी होगा, क्योंकि उस दिन करवाचौथ है. कल शाम दीदी का फोन आया उन्होंने बताया उनके घर के पास एक नर्सिंग होम बिक रहा है वह चाहती हैं वे सभी मिलकर उसे खरीद लें और चलायें पर उन्हें यह विचार जंच नहीं रहा है, न तो  उन्हें इसका कोई अनुभव है और न ही इतना धन है. जून आज देर से आने वाले हैं. इसी माह होने वाले एक कोर्स के लिए सहायता करने में व्यस्त हैं. कल पिता का एक लम्बा सा पत्र आया है. उसने उनके लिए एक कार्ड खरीदा और अभी छह कार्ड खरीदे जो जिनको मिलेंगे उन्हें ख़ुशी अवश्य देंगे, क्योंकि बहुत प्यार से चुने गये हैं. सुबह एक सखी को भी उसने इसी प्यार और विश्वास की बात कही, उसका जीवन कैसा अजीब सा हो गया है उसने स्वयं ही बना लिया है. ईश्वर से प्रार्थना करेगी और गुरूजी से भी की उसे सामर्थ्य दे, शक्ति दे ! art of living ने जैसे उसके जीवन में एक शांति, स्निग्धता और प्रेम की लहर ला दी है वैसी ही लहर उसके जीवन में भी आये. वह अपने रिश्तों की कद्र करना सीखे. 

Tuesday, December 16, 2014

अदृश्य की तरंग



सारी रात सुबह की प्रतीक्षा करती रही. नींद आती भी कैसे. आँखों में उस परम की छवि जो बसी थी. अंतर में उसका असीम स्नेह, उसके दिए प्रेम का अनमोल भंडार ! कल शाम को क्रिया के दौरान उसे आनंद का वह स्रोत पुनः मिला. वह उससे थोड़ी ही दूर पर प्रकाश के रूप में स्थित था. उसका हृदय भावों से भरा हुआ था. निष्पाप, पवित्र हास्य जो झरने की तरह भीतर से फूट रहा था, नियंत्रित नहीं हो रहा था, इतना तो शायद वह पिछले कई हफ्तों में मिलाकर भी नहीं हँसी होगी. इतना प्यार, इतनी ख़ुशी उनके भीतर छिपी है, इतना ज्ञान भीतर छिपा है पर वे उससे दूर रहते हैं. सद्गुरु की जीवन में कितनी महत्ता है, वह अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. वास्तव में वही जीने की राह दिखाते हैं. कल उसे अनुभव हुआ उसका जन्म इसी क्षण के लिए हुआ था. उस क्षण की प्रतीक्षा में इतने वर्षों से उसके सारे प्रयास चल रहे थे. उस परम से उसने पूछा वह कौन है, वह उसके सारे सवालों के जवाब दे रहा था. उसका प्रश्न समाप्त होते ही न होते जवाब हाजिर हो जाता था. वह उसकी चेतना थी या उसकी चेतना का अंश, वह जो भी रहा हो पर उसका मन गुरूजी व उनके शिक्षक के प्रति कृतज्ञता से भर गया है.

कल शाम ‘ज्ञान चर्चा’ के बाद घर आने से लेकर इस वक्त तक एक क्षण के लिए भी उसके मन से गुरूजी और ईश्वर का भाव नहीं हटा है. मन उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है. मन को जैसे एक आधार मिल गया है, अब तक सिर्फ अव्यक्त ईश्वर ही उसके प्रेम का केंद्र था पर अब एक धारा गुरू की ओर भी प्रवाहित होने लगी है, जैसे ईश्वर ने ही उन्हें भेजा है. ईश्वर के प्रति प्रेम ही वास्तव में प्रेम है, उसके लिए रोने और हँसने दोनों में ही आनंद है.

कल वे तिनसुकिया गये थे, नया ‘म्यूजिक सिस्टम’ खरीदना था. उसके बाद शिक्षक को लेने एक परिचित के यहाँ गये जो उन्हीं के यहाँ रुके हुए हैं. वापसी में उन्होंने श्री श्री के बारे में बहुत सी बातें बतायीं. तेजपुर में होने वाले अगले कार्यक्रम के बारे में भी बताया. art of living हजारों-लाखों व्यक्तियों के जीवन में परिवर्तन ला रहा है और भक्तों को परमात्मा के करीब ला रहा है. जहाँ परमात्मा है वहाँ क्या भय, वहाँ उसके अतिरिक्त कोई कामना भी नहीं रहती. वह तो सदा ही मानव के हृदय में है पर वह उससे दूर बना रहता है. यदि कोई उसे अपने हृदय पर थोड़ा सा भी अधिकार करने दे तो धीरे-धीरे वह उसका स्वामी बन जाता है. इतर इच्छाएं अपने आप झर जाती हैं. एक उसी की सत्ता चलती है. उसके सान्निध्य में रहना मानो स्वर्ग में रहना है. कोई विषाद शेष नहीं रहता. तन भी हल्का हो जाता है. आँखों में ऐसी गहराई की दर्पण में स्वयं अपना चेहरा देकें तो पानी भर आता है. ईश्वर की स्मृति में डूबा मन कैसे मस्ती का अनुभव करता है. बैठ-बैठे ध्यान में डूब जाता है !