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Sunday, June 28, 2020

श्री श्री और बाबा


आज बापू की पुण्यतिथि है, टीवी पर सर्वधर्म प्रार्थना का प्रसारण किया जा रहा है. बापू का जीवन भी पुण्यशाली था और मृत्यु भी, शहीद दिवस के रूप में उनकी पुण्यतिथि मनायी जाती है. स्कूलों के बच्चे मधुर स्वरों में गीत व भजन गा रहे हैं, गीत अत्यंत भक्तिभाव जगाने वाले हैं. आज सुबह गांधीजी की आवाज में उनके भाषण सुने. दूरदर्शन के अभिलेखागार में उनके वीडियो सुरक्षित रखे गए हैं. उनके हृदय में हर व्यक्ति के लिए प्रेम था, चाहे वह किसी जाति, किसी धर्म का हो. इस समय बहाई प्रार्थना कही जा रही है. परमात्मा से की गयी कोई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती. अब कुरान का पाठ किया जा रहा है. कल रात तारिक अहमद को सुना, जो पाकिस्तानी हैं पर उसके सबसे बड़े आलोचक भी हैं. हिंदुस्तान की तारीफ करते हैं. कल शाम को अचानक तेज वर्षा व आंधी आयी. एक योग साधिका ने कहा, गुरूजी का कोई सन्देश दे वह उन्हें घर जाने से पूर्व, वह साधिका हिंदी में कविता लिखती है और गाती भी अच्छा है. आज धोबी अपने बगीचे से नारियल और ढेर सारा हरा  धनिया लाया था, उसने भी दो पत्ता गोभी तोड़ कर दीं.

आज नए वर्ष के प्रथम माह का अंतिम दिन है. अब जून को सात माह का समय और यहाँ अपने विभाग प्रमुख के रूप में व्यतीत करना है. आज शाम को एक योग साधिका को विदाई दी, वह सूजी का हलवा बना कर लायी थी, शेष सभी लोग भी कुछ न कुछ बनाकर लाये थे. नूना ने उसके लिए लिखी कविता पढ़ी. दोपहर की कक्षा में दस लोग थे, दो नई लड़कियों ने आना शुरू किया है जो बहुत मन से योग अभ्यास करती हैं. सुबह आसन किये, कुछ ही दिनों में शरीर हल्का लगने लगा है. पिछले दिनों यात्रा आदि के कारण नियमित व्यायाम न करने से वजन भी बढ़ गया है. 

दोपहर के साढ़े चार बजे हैं, आज टीवी पर कुछ नए चैनल देखे. यूट्यूब पर एक वीडियो देखा जिसमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ काम की बातें थीं. सुबह उठकर गर्म पानी पीना है, कुछ देर टहलना है. शंख प्रक्षालन के आसन नियमित करने हैं. भोजन के डेढ़ घण्टे बाद पानी पीना है . नमक कम, सफेद चीनी व मैदा नहीं खाना है. भोजन चबाकर खाना है. रीढ़ की हड्डी को सीधा रखना है. नाभि व छाती के मध्य की दूरी को बढ़ाकर रखना है. भोजन करते समय नीचे बैठना है अथवा सीधे बैठना है. भोजन स्वयं से ऊपर रखना है. दिन में सोना भी ठीक नहीं है.  रामदेव बाबा पर एक कार्यक्रम भी देखा. आज सुबह श्री श्री व रामदेव बाबा को संगम तट पर एक साथ योग करते हुए देखना एक अभूतपूर्व अनुभव था. दोपहर को लॉन की धूप में विश्राम किया, पैरों पर धूप पड़ रही थी और सिर छाया में था. इसी तरह जीवन में भले संघर्ष हो पर मन में विश्राम हो वह जीवन सार्थक है. बड़ी भांजी के लिए आज सुबह कविता लिखी, अपनेआप ही भीतर उतर आयी हो जैसे, सोचा नहीं था कि लिखनी है. 

Friday, June 26, 2020

बापू के सपनों का भारत



टीवी पर गणतन्त्र दिवस की पूर्व सन्ध्या पर राष्ट्रपति का भाषण प्रसारित हो रहा है. वह कह रहे हैं देश इस समय गरीबी को मूलतः कम करने अथवा खत्म  करने प्रयासों में अंतिम पायदान पर पहुँच गया है. विकास के नए-नए कार्य हो रहे हैं. जवान व किसान दोनों सशक्त हो रहे हैं . आम आदमी में भी अपने जीवन को ऊपर उठाने की लालसा जगी है. सरकारी सुविधाएँ नीचे तक जा रही हैं. बेटियों को आगे बढ़ने के अवसर मिल रहे हैं. विकास के अवसर सभी को मिले क्योंकि देश के संसाधन पर सबका अधिकार है. गांधीजी के सपनों का भारत धीरे-धीरे साकार होता जा रहा है. तकनीक और नई सोच के बल पर देशवासी एक साथ आगे बढ़ें इसके लिए अपने लक्ष्यों और उपलब्धियों को रेखांकित करना होगा. पारस्परिक सहयोग और साझेदारी के द्वारा ही समाज आगे बढ़ सकता है. विचारों का आदान-प्रदान हो, समाज में समरसता हो. भरत की संस्कृति में, परंपरा में लोकसेवा का बहुत महत्व है. अच्छी नीयत के साथ किये गये प्रयास को सराहना मिलनी ही चाहिए. भारत की सेना विश्व में शांति के लिए एक प्रमुख स्थान रखती है. आपदा में भारतीय जवान करुणा व संवेदना का प्रदर्शन करते हैं. राष्ट्रपति का भाषण बहुत ही सारगर्भित है. यह अवसर है भारतीयता को मनाने का. इस वर्ष गाँधीजी की डेढ़सौवीं जयंती है, संविधान दिवस भी आने वाला है. इसी वर्ष चुनाव भी होने हैं जिनमें इक्कीसवीं सदी में जन्मे मतदाता भी वोट दे सकेंगे. यह सदी भारत की सदी है. 

दो दिनों का अंतराल. इस समय शाम के साढ़े छह बजे हैं. शाम को उन्हें कम्पनी के एक अधिकारी की बेटी के विवाह की पार्टी में जाना है. जून और उसका वजन बढ़ता जा रहा है, अब दोनों समय टहलने जाना होगा, कुछ खान-पान में परिवर्तन करके तथा कुछ ज्यादा व्यायाम करके उसे सीमित करना है. मौसम अब उतना ठंडा नहीं रहा. शाल लेने से काम चल जायेगा. आज माँ की अठाहरवीं पुण्यतिथि है, सभी उन्हें याद कर रहे हैं. छोटी बहन से बात हुई, उसकी गाड़ी भी साइड से लग गयी, जैसे उसकी लगी थी. जून ने पैकिंग कर ली है, दो दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं. नन्हे ने कहा, अस्सी प्रतिशत काम हो गया है इंटीरियर का उनके नए घर में, सम्भवतः मार्च तक पूरा हो जायेगा. कल क्लब में महिला मीटिंग है, चार सदस्याओं का विदाई समारोह है, उसने सभी के लिए कविताएं लिखी हैं. 

उस तीन दशकों से भी पुरानी डायरी में पढ़ा, आज उस मैदान में दोनों बाहें सामने की ओर झूलते तेजी से दौड़ नहीं सकती. सुबह से एक हल्की खुमारी छायी है मन पर. उसके तर्कों में रंचमात्र भी बल नहीं है, वह उससे जो कुछ कह रही थी उस पर स्वयं भी विश्वास नहीं, लगता है उसके पास मस्तिष्क नहीं, वह सोच नहीं सकती, विचार नहीं कर सकती. वह सदा कल्पना ही किया करती है. उसके शब्द, उसके विचार खोखले हैं यदि कल्पना उनके साथ न हो. वह किस तरह इस कमी को पूरा कर सकती है. अभी तो उसके सम्मुख बस एक ही लक्ष्य है परीक्षा देना, सिवाय इसके कि उसकी परीक्षाएं कुछ दिनों में होनी हैं, अन्य बातें उसे भूल जानी चाहिये. ठंड लग रही है, उसने सोचा खिड़कियां बन्द कर दे या रहने ही दे, फिर रहने ही दिया. कल वसन्त पंचमी है और बापू की पुण्यतिथि भी. पिछले वर्ष जब उनकी कुछेक पुस्तकें पढ़ी थीं, बापू के आदर्श वाक्य उसे हर पल संभालते थे. अब कहाँ याद आते हैं, जबकि उनकी तस्वीर हर वक्त उसकी दृष्टि के सम्मुख रहती है. अब वह आसन, प्राणायाम और व्यायाम भी नहीं कर रही है. कल अवश्य करेगी. ठंडी हवा चुभ रही है स्वेटर को छेदती नीचे त्वचा तक. ब्लो ब्लो दाओ विंटर विंड यह तो उसने जंगल में कहा था और वह कमरे में भी नहीं बैठ सकती. तापमान 15 डिग्री से कम ही होगा, सेल्सियस और सेंटीग्रेट एक ही होता है न ! 

Tuesday, March 28, 2017

जल, जंगल और जमीन


टीवी पर हिरोशिमा में बापू की कथा का प्रसारण हो रहा है. हवा की तरह हल्का, फूल की तरह महकता हुआ और पानी की तरह बहता हुआ मन कथा सुनकर ही होता है, लेकिन कथा के पूर्व ही कोई वक्ता बोल रहे हैं, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे. बोलने का भी एक आकर्षण होता है. सत्य का रथ, प्रेम के पथ पर, करुणा के मनोरथ के साथ चलता रहे यही तो बापू चाहते हैं. जून अहमदाबाद में हैं, सुबह उनका फोन आया था. नन्हा इतवार को तमिलनाडु गया था, फुफेरी बहन व जीजाजी से मिलने. बाइक पर यात्रा करना उसे मेडिटेशन जैसा लगता है, पूरे होश में रहना पड़ता है, नितांत अकेले अपने साथ ! साढ़े दस बजे हैं, आज वे भोजन देर से करेंगे, वह एक घंटा कम्प्यूटर पर बैठकर आज की पोस्ट लिखेगी.

जी-टीवी पर दिल्ली के रामलीला मैदान से बाबा रामदेव का काला धन लाने के लिए दिया गया भाषण प्रसारित हो रहा है. देश में कितना तेल, कितना कोयला आदि प्राकृतिक संपदा के रूप में पड़ा है, जल, जंगल, जमीन की जो लूट मची है, उस पर बोल रहे हैं. काला धन कितना है, इसका तो पता नहीं, पर लाखों करोड़ों में है. जनता को सजग करना ही उनका उद्देश्य है.

अज जून का जन्मदिन है, उसका मन भी खिला है. कल दिन भर एक अजीब सा भाव छाया था. छोटी बहन की सासुमाँ ने देह त्याग दी. रामदेव जी का आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था. कल दोपहर भर टीवी पर वही देखती रही. आज बहुत दिनों बाद एक परिचिता का फोन आया, उनके पुत्र का विवाह किसी कारण से टूट गया है, उस अनुभव से उबर रही थीं, अब मन कुछ ठहरा है. क्लब की प्रेसिडेंट के बारे में उनसे कुछ बातें पूछीं. उनके लिए कविता लिखनी है. वह एक अच्छी अध्यक्षा साबित हुई हैं. मिलनसार हैं, अच्छी लीडर हैं, मैनेजर हैं और सुलभ हैं. सब कोई उनसे बात कर सकते हैं. अहंकार नहीं है. सामाजिक कार्यों के प्रति उत्साह है, समाज सेवा का जज्बा है. दादी, नानी बन चुकी हैं. सास की अच्छी बहू हैं, अच्छी माँ हैं, स्वास्थ्य व सौन्दर्य के प्रति सजग हैं, इस उम्र में भी युवा दिखती हैं. ऊँचा कद है, वस्त्र शालीन हैं और एक गरिमा है उनमें. इतना सब तो काफी है उनके बारे में लिखने के लिए. आज मौसम सुहाना है, कल दिन भर बेहद गर्मी थी. कल बंगाली सखी की बिटिया को अचानक देखकर बहुत ख़ुशी हुई, वह पहले से ज्यादा मुखर हो गयी है और थोड़ी मोटी भी. नौकरी करने लगी है.

बाबा रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण जी को जमानत मिल गयी है. उनके आन्दोलन से पूर्व ही उन्हें फर्जी डिग्री व फर्जी पासपोर्ट के कारण जेल में रखा गया था. बाबा पूरी निर्भयता की साथ प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को शासन की कमियों की तरफ आकर्षित कर रहे हैं. देश के हालात इस समय नाजुक बने हुए हैं. सारे विश्व में ही मंदी के कारण परेशानी है फिर भी युद्द्धों पर व्यर्थ पैसे खर्च किये जा रहे हैं. इन्सान अपने स्वार्थ के कारण दुःख पा रहा है.   

तुम मेरे साथ होते हो, कोई दूसरा नहीं होता ! बापू की कथा आ रही है राजस्थान के नाथद्वारा से. विरह ही प्रेम है. किसी के जाने के बाद जो सन्नाटा हो जाता है, उसमें कितनी पीड़ा है, जो इस सन्नाटे को सहता है, वही प्रेम को अनुभव कर ही सकता है. एक शून्य प्रकट होता है जीवन में तभी प्रेम प्रकटता है. उनका कोई क्रियाकलाप ऐसा न हो जो प्रेमास्पद के प्रतिकूल हो. 

Friday, July 31, 2015

अनित्य- मृदुला गर्ग का उपन्यास


इस वर्ष उस यह नीले रंग की सुंदर डायरी मिली है. मन कई भावनाओं से भरा है. नये वर्ष के लिए कई संकल्प पिछले कई दिनों से उमड़ते-घुमड़ते रहे हैं. जीवन कितना अद्भुत है, कितना सुंदर तथा कितना भव्य ! कितना अनोखा है सृष्टि का यह चक्र ! मन कभी आश्चर्य से खिल जाता है कभी मुग्ध हो जाता है उस अनदेखे परमात्मा की याद आते ही उसके लिए श्रद्धा से भर जाता है. इसकी खुशबू को वे अपने भीतर समोते हैं, इसके रस को पीते हैं, इसकी नरमाई तथा गरमाई को महसूसते हैं. वे कितने भाग्यशाली हैं, भीतर एक संतोष का भाव जगता है. इस सुंदर प्रकृति को बिगाड़ने का उन्हें कोई अधिकार नहीं. जीवन की कद्र करनी है, जीवन को खत्म करने का उन्हें क्या अधिकार है ? नये वर्ष के प्रारम्भ में मन क्यों आतंक का शिकार हुए लोगों की तरफ जा रहा है. मानव के भीतर देवत्व भी है और पशुत्व भी. उसने संकल्प लिया कि अपने भीतर के जीवन को सुन्दरतम करेगी !  
इस समय दोपहर के तीन बजने वाले हैं, आशा पढ़ने आई है. उसने कुछ देर पूर्व सद्गुरु को पत्र लिखा, पिछले वर्ष फरवरी में उन्हें पत्र लिखने का जो क्रम आरम्भ किया था, उसमें आजकल व्यवधान पड़ने लगा है. समय कहाँ चला जाता है पता ही नहीं चलता. आजकल लगभग हर समय उसे अपने लिए कुछ करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती. देह को स्वस्थ रखने के लिए उसे समय पर भोजन, व्यायाम आदि देना तथा परमात्मा के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने हेतु पूजा, शास्त्र अध्ययन, घर के आवश्यक कार्य के बाद जो भी समय बचता है वह भी पढ़ने-लिखने में ही जाता है. जिससे मन भी स्वस्थ रहे तथा बुद्धि को जंग न लगे.
आज वह बहुत खुश है. लगता है वह फरवरी में बंगलुरु जा सकती है. जून उसकी टिकट के लिए प्रयास कर रहे हैं. सुबह एक परिचिता का फोन आया, वह ट्रेन से जा रही हैं, वह चाहे तो उनके साथ जा सकती है. उसे लगा यह गुरू कृपा है, उसने प्रार्थना की कि जून मान जाएँ, उन्होंने फ़िलहाल तो मंजूरी दे दी है. भविष्य में क्या लिखा है कौन जानता है ? वह नन्हे से भी मिल सकती है एक दिन के लिए. आज क्लब में मीटिंग है, वह कुछ किताबें लेकर जाएगी. लॉन में प्रकृति के सान्निध्य में बैठकर मन कैसा हल्का हो गया है. एकात्मकता का अनुभव यहीं होता है. ऊर्जा जैसे मुक्तता का अनुभव करती है.
आज बापू की पुण्य तिथि है. पिछले चार दिनों से मन पुस्तक के पन्नों में खोया था, मृदुला गर्ग का लिखा उपन्यास ‘अनित्य’ कल खत्म किया. इस उपन्यास में गांधीजी का जिक्र कई जगह हुआ है. उनको आदर्श मानने वाले कितने ही व्यक्ति स्वयं को छला हुआ मानने लगे जब उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ वापस ले लिया. कई उनके प्रयोगों के आलोचक भी थे. पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि साधारण मानव एक महामानव का मूल्यांकन कैसे कर सकता है, और ही मिट्टी के बने होते हैं वे लोग जो महान कहलाते हैं, साधारण लोगों से भिन्न होती है उनकी सोच और दृष्टि.

वसंत का आगमन हो चुका है. हवा में ठंडक कम है. अभी सुबह के दस भी नहीं बजे हैं धूप तेज हो गयी है. कल रात स्वप्न में वह सभी को बता रही थी कि मैं ‘आत्मा’ हूँ, यह बात कहने से प्रकट नहीं होगी, उसके आचरण से प्रकट होनी चाहिए. ध्यान की अवधि बढ़ानी चाहिए ऐसे प्रेरणा भीतर से उठी है.   

Monday, August 18, 2014

सत्य के प्रयोग - बापू की आत्मकथा


Abraham Lincoln says, Most people are about as happy as they make up their minds to be. She is agreed with him… Yes, she has made her mind to be happy always ! yesterday she was busy in sewing fall to new saree and mending new dress so could not open diary. In the evening they went to meet and have dinner with one friend’s guest, they(four) all are happy, social persons. Daughter is fat and sun is studious(seems to be) lady is talkative and has jolly nature. Today she has invited them in their house for dinner. Nanha and she will decorate the house and prepare food. He takes interest in keeping the house clean and in cooking also. Jun(these days) is busy in his office work. Yesterday she got didi’s letter after so many days. It was good and informative, she will write her too and to brother also. Babaji told that God is always there so never consider alone or helpless in any condition. Her  mind is full of love for God, babaji and all. She is at peace with herself most of the time. God’s love is great and sometimes she feels very protective towards it. She enjoys each and every moment of her stay at mother earth and she…

उसे लगा कि वे दुनियावी बातों में इस कदर उलझे रहते हैं कि सर उठाकर देखने की फुर्सत भी नहीं निकाल पाते कि उलझाव से परे भी कोई दुनिया है. वे इस बात से बेखबर ही रहते हैं कि कहीं कोई उलझन है. इसी भटकाव को जिन्दगी मानकर चलते चले जाते हैं, जैसे पतंगों को दीपक की लौ में मर जाना ही अपने जीवन का परम उद्देश्य लगता है वैसे ही वे भी इन रोजमर्रा के साधारण से दिखने वाले कामों में अपनी ऊर्जा (शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक ) खपाते रहते हैं. इस ऊर्जा का कोई और भी उपयोग हो सकता है सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं करते. ईश्वर से की गयी प्रार्थनाएं भी स्वार्थ से परिपूर्ण होती हैं. वे यही चाहते हैं कि इन झंझटों में वृद्धि हो कि वे इनमें और उलझे रहें, मदहोश रहें ताकि बड़े प्रश्नों से बचे रहें, ऐसे सवाल जो मन को झकझोरते हैं, आत्मा को कटघरे में खड़ा करते हैं, वे इस भूलभुलैया में मग्न रहना चाहते हैं.

दो अक्तूबर को पूज्य बापू के जन्मदिवस के अवसर पर उसने उनकी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़नी आरम्भ की थी जो अभी कुछ देर पूर्व ही समाप्त की है. उनके जीवन को जितना गहराई से देखें उतने ही अद्भुत प्रसंग व आख्यान मिलते हैं. सागर की तरह विशाल और गहरा है उनका जीवन, आत्मशुद्धि के लिए उनका प्रयास और उसके लिए किसी भी स्तर तक पहुंच जाने की उनकी आतुरता, नम्रता में वह सबसे आगे थे तो निर्भीकता में भी. उनकी कथनी व करनी में कोई भेद नहीं था, वह महानतम थे. उनकी इस पुस्तक से आत्मदर्शन की प्रेरणा मिलती है, उसके लिए मार्ग मिलता है, सत्य और अहिंसा के प्रति श्रद्धा जगती है. यदि प्रतिपल वह सत्य की खोज में चलती रहे तो ईश्वर दर्शन सम्भव है और अहिंसक हुए बिना वह सत्य को नहीं पा सकती. अहिंसा मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों से होनी चाहिए. उसका सौभाग्य है कि गाँधी भारत में हुए थे. उनकी बातें, उनके आदेश व उनके प्रयोग आज भी प्रासंगिक हैं, वे शाश्वत हैं क्यों कि आत्मदर्शन की इच्छा शाश्वत है, ईश्वर की खोज शाश्वत है. जैसे बाहरी शुद्धि आवश्यक है, उसी तरह मानसिक व आंतरिक शुद्धि भी. जितनी देर कोई मन का प्रक्षालन करता है, शांति का अनुभव होता है, लेकिन जैसे ही कोई विकार प्रबल होता है तो मन अशांत हो जाता है. बाबाजी ने कहा, प्रतिक्रमण सीखना है, अविद्या के कारण उत्पन्न हुए दोषों को देखना है. इच्छाओं को संयमित करना ही धर्म है, उन्हें शुद्ध करना ही उपासना है और उन्हें निवृत करना ही योग है. योग ही लक्ष्य है.




Wednesday, January 29, 2014

हावड़ा ब्रिज - कोलकाता की शान


आज उनका टीवी खराब हो गया, टीवी के बिना दिन जैसा भी गुजरे रोज से काफी अलग होगा. टीवी उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. जून के अनुसार शाम तक ठीक हो जायेगा. कल शाम मीटिंग थी, क्लब में कुछ खा लिया, आठ बजे जब जून और नन्हा भोजन कर रहे थे, उसे जरा भी भूख नहीं थी, दस बजे उसे भूख लगी, उस समय कुछ खाना ठीक नहीं है यह सोचकर नहीं खाया, पर खाली पेट नींद काफी देर तक नहीं आ रही थी.

अब धूप में पहले की सी तेजी नहीं है. सुबह नाश्ता करने के बाद उसने नन्हे के लिए पेपर की छोटी-छोटी कारें बनायीं जो हावड़ा ब्रिज पर खड़ी की जाएँगी. उसका प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो गया है, जिसे पिछले कई दिनों से वह और उसके मित्र मिलकर बना रहे थे. आज दो अक्तूबर है, बापू की १२८वी जयंती ! दोपहर को दूरदर्शन पर ‘गाँधी से महात्मा’, श्याम बेनेगल की फिल्म ‘Making of Mahatma’ का हिंदी रूपांतरण देखा. गाँधी दिल के और करीब हो गये. आज क्लब में कार्यक्रम है पर इतने बड़े महापुरुष के जीवन पर फिल्म देखने के बाद कुछ और देखना शेष नहीं रह जाता. बापू के पुत्रों को विशेषकर हरिदास को उनसे शिकायत रही, वैसे कुछ न कुछ शिकायत हर बेटे को अपने पिता से रहती ही है.

कुछ देर पहले छोटी बहन से फोन पर बात की, उसने अभी तक नवजात शिशु का नाम नहीं सोचा है, ३.४ केजी की गोरी सी बच्ची का नाम जो बड़ी बहन से कुछ मिलता-जुलता भी होना चाहिए. जून आज तिनसुकिया गये हैं, वापसी की टिकट के लिए, नहीं मिलने पर जाने की टिकट भी कैंसिल कर देंगे, सुनने पर यह वाक्य उसे कठोर लगा किन्तु यथार्थ यही है. आजकल बिना रिजर्वेशन के सफर करना उनके लिए असम्भव है, अपनी सुविधा की कीमत पर परिवार के साथ त्योहार में शामिल नहीं हुआ जा सकता. यह आधुनिक समाज की देन ही है जिसने एक ओर प्रगति की है दूसरी ओर कठिनाइयां भी बढ़ा दी हैं. घर से इतनी दूर रहने का खामियाजा ही समझ लें. पर यहाँ रहना उसे सदा से ही भाता रहा है और भाता रहेगा जब तक भी यहाँ रहना पड़े.

उसकी एक सखी बीएड करना चाह रही है, और उससे नोट्स मांग रही है. उसे आश्चर्य हुआ ऐसा कहते हुए वह बहुत निरीह लग रही थी, पहले कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी. यही तो जिन्दगी है, जो कभी सिखाती है कभी झकझोरती है. हर दिन एक नया संदेश लेकर आता है. अगर कोई ध्यान से देखे और समझे तो !

कल सुबह जून को तिनसुकिया में कम्प्यूटर लिंक न होने के कारण वापस लौटना पड़ा पर उनके मित्र के छोटे भाई( जो एक ट्रेवल एजेंट बन गया है) ने टिकट ले ली है, उन्हें ख़ुशी तो हुई पर छोटी ननद उसी समय ससुराल जा रही है, उससे शायद मिलना न हो. शाम को वे टहलने गये मौसम में एक ठंडक सी आ गयी है और हरसिंगार के फूलों की महक भी. उनके हरसिंगार में अभी कलियाँ ही आई हैं. जून ने उस दिन गुलाबों की कटिंग भी कर दी है, अगले हफ्ते वे गोबर भी डलवा देंगे. कल शाम बल्कि रात को ही पड़ोसिन ने कागज की कारें बनाने के लिए कहा, पर उसके पास समय नहीं था, मना करने में अच्छा नहीं लग रहा था, पर किया, it means she is learning to be assertive, अपने वश से बाहर के काम को भी पहले वह ले लेती थी फिर चाहे कितना परेशान होना पड़े. जून अभी आने वाले हैं, उन्हें आज अस्पताल भी जाना है, उसके कान में हवा की कुछ खुसुर-पुसुर सी लग रही थी, आज सुबह से ठीक है, फिर भी कहा है न कि छोटे रोग की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.  




Thursday, July 12, 2012

जाने भी दो यारों


कल वह आगे नहीं लिख पायी, नन्हा उठ गया फिर सारी शाम उसके साथ ही बीती. आज बापू की पुण्यतिथि है, कभी विचारों में बहुत निकट लगते थे, आत्मीय हों जैसे, आजकल तो याद भी करती है तो सिर्फ दो अक्तूबर और तीस जनवरी को. टीवी पर युवामंच में एक कार्यक्रम हुआ था, ‘युवा पीढ़ी और गाँधी’. अच्छा लगा था उस दिन एक युवा, संजना के विचार सुनकर. गांधीजी की आत्मकथा फिर से पढ़नी चाहिए. आज वह गयी थी अपनी दक्षिण भारतीय सखी के यहाँ, वही कल रखकर गयी थी वह पैकेट, उसने घर पर बनायी थीं दोनों चीजें.
कल माह का अंतिम दिन था, एक माह कैसे बीत गया पता ही नहीं चला, समय तो अपनी चाल से ही चलता है. रात को कुंदन शाह की फिल्म देखी, ‘धुंधले साये’ वही जिनकी “जाने भी दो यारों” देखकर कितना हँसे थे वे. आज से उसने नयी महरी को रखा है, पुरानी का नाम मिनी है, जो थोड़ा गर्म दिमाग की है, देखें कल वह क्या कहती है.
कल जून देर से गए सांध्य भ्रमण को, नन्हा उठ गया सो वह कुछ नहीं लिख पायी. वक्त तो सुबह भी था, दोपहर को भी, धर्मयुग पढ़ती रही, इण्डिया टूडे तो अभी पढ़ना आरम्भ ही नही किया और लाइब्रेरी से भी जून उसके लिये दो किताबें लाए थे. सोनू अब अपने आप वाकर में घूमता है, कभी कभी इतनी तेजी से पूरे कमरे में चक्कर लगाता है और किलकारी भरता है, कि उन्हें डर लगता है, पर वह पल भर में पास से गुजर जाता है.
आज दिन भर धूप आती-जाती रही, ज्यादा समय बादलों की चली. इस समय भी बदली बनी है सो शाम कुछ ठंडी हो गयी है. उसकी आँखों में विशेषतया बायीं आँख में हल्का दर्द है, और दायीं ओर सर में भी थोड़ा, जून कहकर गए हैं कि सो जाये वह चुपचाप, पर वह जानती है नींद कहाँ आयेगी...हाँ यूहीं चुपचाप लेटा जा सकता है, ऐसा मौका कम ही मिलता है शामों को कि अपने आप से मिला जा सके. 
आज तीन पत्र आये, वे हर हफ्ते दोनों घरों पर व हर महीने अन्य सभी को पत्र लिखते आये हैं, हर हफ्ते किसी न किसी का पत्र आता ही है, और सबकी खबर लाता है. कुछ देर पहले वे तीनों घर के बाहर ही कुछ देर टहलते रहे, पश्चिम में आकाश गुलाबी था, और उनके सिर के ऊपर नीला आकाश और रुई के फाहों से सफेद बादल. नन्हा सात माह का हो गया, आज वह देदे, देदे तुतलाकर बार-बार  बोलने की कोशिश करता रहा. उसकी हरकतें देख देख कर वे खूब हँसे.  

क्रमशः