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Tuesday, August 18, 2020

साहित्य का उद्देश्य

 

पिछले आधे घण्टे से नूना ‘प्लैनेट अर्थ’ देख रही थी. वालरस की विचित्र दुनिया और रंगीन पक्षियों के अद्भुत नृत्य ! प्रकृति की विविधता और सौंदर्य अनूठा है पर माया की इस नगरी का कोई अंत नहीं है. कोई कितना भी देखे और कितना भी सराहे, इसमें न कोई सार है न कोई अंत. नेत्र थक जायेंगे और मन भी पर न तो जीवन में कोई ऐसा आनंद झलकेगा जिसका कोई अंत न हो और जो पूर्णता का अनुभव कराने वाला हो, वह तो मायापति से मिलकर ही पाया जा सकता है. आज भी सुबह कल की तरह थी, वापस लौटे तो रक्तजांच के लिए रक्त का नमूना लेने एक व्यक्ति आकर बैठा था. कैल्शियम की जाँच होगी और कुछ दूसरे टेस्ट भी. रिपोर्ट ईमेल में आ जाएगी. जून ने भी कल डॉक्टर को दिखाया, आज घर बैठे टेस्ट हो गए. बड़े शहर में रहने का यह बड़ा फायदा है. दोपहर को वे नए घर जायेंगे, पेंटिंग का कार्य सम्भवतः पूरा हो चूका होगा. नन्हा दफ्तर जा चुका है, उसका कालेज का  मित्र जो पास ही रहता है और जिसका भोजन यहीं बनता है, अभी तक आया नहीं है. उसकी चाय दो घण्टे से बनी हुई है, आकर गर्म करेगा और नाश्ता भी. 


सत्व, रज और तम की साम्यावस्था होने पर ही वे गुणातीत होते हैं. पहले तमस को रजस में बदलना होगा, फिर रजस को सत्व में. बढ़ा  हुआ  तमस मन को  क्रोधित और ईर्ष्यालु बनाता है. रजस  व्यर्थ के कामों लगाता है. जब यह ऊर्जा सत्व में परिवर्तित हो जाती है तो भीतर समता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है. साम्यावस्था में दीर्घ काल तक टिके रहने के बाद ही साधक गुणातीत अवस्था का अनुभव करता है. आज सदगुरू को सुना, तमस की अवस्था में भी भीतर एक शांति का अनुभव होता है पर वह जड़ता का प्रतीक है. बाहर का जीवन गतिमय हो और भीतर शांति हो वही गुणातीत की निशानी है. आज दिन भर व्यस्तता बनी रही. 


रात्रि के आठ बजे हैं, आज भी कल की तरह वे दिन भर व्यस्त रहे. घर में काम काफी आगे बढ़ गया है. आज योग कक्ष में वॉल पेपर भी लग गया. ऊपर की बैठक  तथा मुख्य शयन कक्ष में भी. कमरे अच्छे लगने लगे हैं, अभी पर्दे नहीं लगे हैं  और न ही फर्नीचर आया है. कल सम्भवतः गहन सफाई होगी. आज यहाँ आये छठा दिन है, समय जैसे भाग रहा है. आजकल योग वशिष्ठ पढ़ रही है और सुन भी रही है. अनुभवानन्द जी कहते हैं, परमात्मा सद है इसका अर्थ है वह सत व असत दोनों से परे है, वह चिद है यानि चितिशक्ति उसके पास है जिसका विस्तार आनंद के रूप में होता  है. आनंद -  इच्छा, क्रिया व ज्ञान इन तीन शक्तियों के रूप में प्रकट होता है. ज्ञान यदि शुद्ध है तो इच्छा भी शुद्ध होगी और उसकी पूर्ति हेतु क्रिया भी श्रेष्ठ होगी. जैसा ज्ञान, वैसी इच्छा, वैसा कर्म ! यदि कोई सांख्य मार्ग का साधक है तो वह स्वयं को शुद्ध, बुद्ध, मुक्त आत्मा के रूप में अनुभव करता है. कर्म के मार्ग का साधक धीरे-धीरे अंतःकरण को शुद्ध करता है, इसी तरह उपासना मार्ग का साधक भी अपने भीतर परम का अनुभव करता है. ज्ञान प्राप्त करने का साधन अंत:चतुष्टय तथा ज्ञानेन्द्रियाँ हैं. इच्छा आत्मा का सहज स्वभाव है, सुख-दुःख, इच्छा-द्वेष, प्रयत्न-ज्ञान आत्मा के गुण हैं.  


‘’वह विज्ञान की छात्रा रही है किन्तु उसका रुझान साहित्य की ओर है यदि वह साहित्य की छात्रा रही होती तो सम्भवतः इसका विपरीत हुआ होता अथवा नहीं भी. शब्दों से उसे प्यार है, शब्दों का जादू उस पर चलता है. कभी रुलाते कभी हँसाते शब्द ! मानव ने जब प्रथम बार शब्दों का प्रयोग किया होगा तो वह क्षण कितना महान होगा ! फ़िराक गोरखपुरी साहित्य को उद्देश्यपूर्ण होना आवश्यक नहीं समझते. वह समझती है चाहे साहित्य हो या अन्य कोई कला विकास तो वह करती ही है, चाहे मानसिक विकास ही, लेकिन लक्ष्य तक पहुँचाने का उत्तरदायित्व वह नहीं ले सकती. चरैवेति-चरैवेति का संदेश वह अवश्य देती है. परन्तु साहित्य बिना किसी उद्देश्य के लिखा जाता है यह बात कभी भी मान्य नहीं हो सकती.  रचनाकार यदि स्वयं का उत्थान चाहता है तो यह भी एक उद्देश्य हुआ, या सन्तुष्टि अथवा प्रसन्नता ही. उसकी इच्छा है कि वह भी कुछ लिखे. लिखना और पढ़ना ये दो कार्य ही उसे पसन्द हैं और वह आसानी से इन्हें कर सकती है पर वह कितनी-कितनी देर यूँही बैठी रह जाती है. कितना समय नष्ट करती है, कल से नियमित रहेगी हर कार्य वक्त पर’’. कालेज के अंतिम वर्ष में उसने यह सब लिखा था, उसे स्वयं ही पढ़कर आश्चर्य हुआ ! 



Wednesday, April 6, 2016

राखी के धागे


आज ‘अंकुर बाल संस्कार केंद्र’ में बच्चों से राखियाँ बनवानी हैं, अगले शनिवार को रक्षाबंधन का त्योहार है. वे सभी मिलकर मनाएंगे. कल शाम मीटिंग में साहित्य सभा ‘जोनाली सारू’ के बारे में पता चला. मंगल को है शाम चार बजे. वह जा सकती है, जून को बताना होगा. धीरे-धीरे उसका कार्य क्षेत्र बढ़ता जा रहा है. कृष्णाय अर्पणमस्तु सब उसी की लीला है. जो कुछ भी इस सृष्टि में हो रहा है वही करा हो रहा है, मूल तो वही है, जो हो सो हो उसके सारे कर्म उसी को अर्पित हैं, मन द्वारा सोचना भी तो एक कर्म है, वाणी का कर्म तथा स्थूल कर्म, सभी उसी की लिए हों. कल रात सुना अहंकार का भोजन दुःख ही है, दुःख के कीट खाकर ही वह जीवित रहता है और अहंकार किये बिना मानव रह नहीं सकता. कितना सही कहते हैं सद्गुरु, ‘मैं’ को मिटाए बिना उनके दुखों का अंत नहीं हो सकता और ‘मैं’ को दिन-रात पोषने का वे उपाय करते हैं, चाहते हैं शीतलता और मिलती है जलन, क्योंकि बढ़ते हैं आग की तरफ, दुःख को सम्भाल कर रखते हैं, शायद वे दुःख ही चाहते हैं.
परसों उन्हें मृणाल ज्योति जाना है, राखी का त्यौहार मनाने. उसने स्कूल की हेड मिस्ट्रेस से बात की, उन्होंने हिंदी में स्कूल का एक एक छोटा सा परिचय लिखने को भी उसे कहा है. कल पुस्तकालय का कार्यक्रम ठीक हो गया, दुलियाजान कालेज के एक रिटायर्ड अध्यापक से मिलना हुआ. कल कवि गोष्ठी है, उससे कहा गया है कि हिंदी के लिए भी ऐसी ही शुरुआत वह करे ! उनके पास ऊर्जा है, काम करने की इच्छा है तो कोई भी कार्य असम्भव नहीं है. आज दोपहर को वस्त्रों की आलमारी ठीक करनी है, पुराने वस्त्र निकलने हैं नयों को सहेज कर रखना है, ऐसे ही उनका मन है, पुराने सड़े-गले अनुभवों को, विचारों को निकाल कर नये ताजे शुभ विचारों से इसे भरना है ताकि निरंतर आगे बढने की प्रेरणा मिलती रहे ! इसी हफ्ते दोनों कमरों में पेंट भी होना है, दीवाली से पूर्व की सफाई ! आज ध्यान में परमात्मा से एकता का अनुभव कितना स्पष्ट था, उसे आँखें बंद करते ही आत्मा का अनुभव करवाता है वही, उससे परे भी वही है, कितनी गहन शांति का अनुभव मन करता है. वे ध्यान नहीं जानते तो जीवन के एक सुंदर अनुभव से वंचित रह जाते हैं, अपने आपको जाने बिना जीवन कितना सूना होता होगा, लेकिन जब तक इसका अनुभव नहीं होता तब तक यह सूनापन भी कहाँ दिखता है ?  

कल शाम वह साहित्य सभा की मीटिंग में गई, उसे जून को बताना याद ही नहीं रहा, वहीं से फोन करके बताया, वे थोड़ा क्रोधित हुए पर जल्दी ही सामान्य हो गये, जब देखा कि उनके क्रोध का उस पर कोई असर नहीं हो रहा है. पर बाद में उसे अहसास हुआ अपनी ख़ुशी के लिए किसी को परेशान करने का उसे कोई हक नहीं है. उसे उनके लिए एक कविता भी लिखनी है कल उनका जन्मदिन है, दोपहर को उन्होंने पहली बार उसे एक मनोवैज्ञानिक की तरह समझाया, जैसे पहले कई बार वह उन्हें कुछ कहती रही है. ईश्वर कितने-कितने रूपों में उनके सम्मुख आता है. वह परिपक्व हो रहे हैं, जीवन में हर एक को धीरे-धीरे ऊपर आना है, कोई जल्दी कोई देर से, पर कोई-कोई ही आत्मा को लक्ष्य बनाकर चलता है. अहंकार मुक्त होकर ही कोई शुद्ध चेतना के रूप में स्वयं को जानता है. अहंकार का अर्थ ही है वह अन्यों से भिन्न है, श्रेष्ठ है, तथा उसे संसार के सारे सुख-आराम चाहिए, उसे जीना भी है और स्वयं को कुछ मनवाकर जीना है, लोग कहें, देखो, यह फलाना है, अर्थात इस ‘मैं’ का भोजन  है द्वेष, स्पर्धा, भेद और यही सब क्रोध का कारण है, क्रोध दुःख का कारण है अर्थात अहंकार का भोजन दुःख ही हुआ, जैसे ही कोई अपने शुद्ध स्वरूप को जान लेता है, सारा विश्व एक ही सत्ता से बना है, प्रकट हो जाता है, माया का खेल खत्म  हो जाता है, अब न कुछ पाना है न किसी से आगे बढ़ना है, न कुछ करके दिखाना है, अब तो बस खेलना है, लीला मात्र शेष रह जाती है. वह असीम सत्ता जैसे छोटी सी देह में, मन में समा जाती है, अब जो भी होगा वह उसी के द्वारा होगा और वह तो एक ही काम जानता है, खेल उत्सव, मस्ती और उसके लिए सुख-दुःख, मान-अपमान समान है, वह कालातीत है, द्वन्द्वातीत है, गुणातीत है, अपरिमेय है, आनन्द, शांति, प्रेम, ज्ञान, शक्ति, पवित्रता और सुख का भंडार है. उसे कुछ करके कुछ पाना ही नहीं है, तो अब सारी दौड़ समाप्त हो गयी, सारा दुःख समाप्त हो गया, जन्मों-जन्मों की तलाश समाप्त हो गयी, अब तो बस होना मात्र शेष है !  

Tuesday, September 2, 2014

अस्पताल में


नन्हे का होमवर्क अभी भी खत्म नहीं हुआ है, उसका स्कूल अगले हफ्ते खुल रहा है. आज सुबह एक अच्छी बात सुनी, यदि किसी को आध्यात्मिक उन्नति करनी है तो अपनी आस्था, निष्ठा और श्रद्धा को एक बिंदु पर केन्द्रित करना होगा, भटकाव कहीं पहुंचने नहीं देगा, जैसे कोई किसान अपने खेत में जगह-जगह गड्ढे खोदता है, उसका विश्वास डगमगाता रहता है और इस तरह कुआँ कभी पूरा नहीं हो पाता. इसी तरह साधक कभी योगी, कभी भक्त, कभी वेदांती, कभी उपासक बन जाता है, उसकी निष्ठा एक तरफ न होकर अनेक ओर बिखर जाती है. उसका लक्ष्य कभी नहीं मिलता. ईश्वर के सान्निध्य का अनुभव वह क्षणिक रूप से तो करता है पर सदा उसी में अनुरक्त नहीं रह पाता.

आज के दिन की शुरुआत जून से फोन पर बात के साथ हुई, नैनी आज फिर छुट्टी पर है सो सुबह के काम करते-करते ग्यारह बज गये हैं, आज दोपहर को वह सखी अपने बेटे के साथ आएगी. पड़ोसिन का फोन आया, आजकल वह उसका ज्यादा ध्यान रखने लगी है. जब से उसे सूट लाकर दिया है, लिखकर वह मुस्कुरा दी. आज का प्रवचन करुणा और मैत्री पर था. सुनते समय कई उद्दात भाव हृदय में उठते हैं, संवेदनशीलता, करुणा, सहानुभूति और मैत्री. यही गुण मानव को मानव बनाते हैं. छोटी बहन से बात हुई, उसे बच्चों से अलग रहना मान्य  नहीं, चाहे बीच-बीच में परेशानी खड़ी हो, फ़िलहाल उसकी फील्ड ड्यूटी नहीं है. ‘योग वशिष्ठ’ में श्रीराम की जीवनचर्या का, उनके विषाद का वर्णन पढ़कर मन अभिभूत हो जाता है. रात को वह श्री अरविंद का ‘वेद रहस्य’ पढ़कर सोती है, अभी तक भूमिका ही चल रही है. 

आज उनका फोन डेड है सो जून से बात नहीं हो सकी, वह अवश्य ही प्रतीक्षा कर रहे होंगे. सुबह एक बार तो नींद खुल गयी पर वह पंछियों की आवाजों को सुनने का प्रयत्न  करने लगी, उसी समय हल्का उजाला भी खिड़की से स्पष्ट होने लगता है. सुबह ही सुबह लेडीज क्लब की एक सदस्या का फोन आया, उन्होंने शाम को बुलाया है. ‘हसबैंड नाईट’ के कार्यक्रम के लिए हिंदी में ‘नवरस’ पर कुछ लिखना है, ऐसा उन्होंने कहा. ‘जागरण’ सुना पर मन स्थिर नहीं रह पाया, कभी पढ़े साहित्य के नवरसों में डूबने लगा. महाकुम्भ पर समाचार देखे, दुनिया का विशालतम धार्मिक मेला कुम्भ करोड़ों लोगों के आगमन से सभी के आकर्षण का केंद्र बना है. मेले की व्यापकता का अनुमान लगाना कठिन है. भविष्य में कभी अवसर मिला तो वह अवश्य जाएगी. विदेशी पर्यटकों को योगासन करते व संगम में डुबकी लगाते देखना एक अनोखा अनुभव था. नागा साधुओं का जुलुस भी शोभनीय था. सदियों से यह मेला हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है, ईश्वर की अनोखी कृतियों में यह भी एक है. दोपहर को वह बच्चा आयेगा, पढ़ने में अच्छा है, उसका लेख भी स्पष्ट है.  

कल रात वे सो चुके थे, पता नहीं कितने बजे होंगे, फोन की घंटी बजी, उसने फोन उठाया पर उधर से कोई आवाज नहीं आई. अजीब सी बेचैनी मन पर छाई थी. कुछ देर बाद पुनः घंटी बजी तो उसने जानबूझकर फोन नहीं उठाया. फिर फोन शांत हो गया. कोई बुरी खबर होगी, इसका भी अंदेशा था, अजीब से ख्यालों ने मन को घेर लिया था. रात के सन्नाटे में धीमी आवाजें भी स्पष्ट सुनायी देती हैं. जून के बिना रात डरावनी लग रही थी. ईश्वर भी कहीं दूर चले गये थे, ईश्वर जिसको दिन में अपने आस-पास ही महसूस करती है. फिर पता नहीं कब सो गयी. नन्हा दूसरे कमरे में आराम से सोया था. सुबह फिर फोन की घंटी से ही नींद खुली, बड़ी भाभी का फोन था, माँ अस्पताल में हैं. वे लोग शताब्दी से घर जा रहे हैं. जून से बात हुई तो पता चला, वह भी यहाँ न आकर उनके साथ ही जा रहे हैं. उन्होंने कहा, वहाँ पहुंचकर खबर देंगे.



Monday, September 1, 2014

योग वशिष्ठ - महारामायण


कल शाम से ठंड एकाएक बढ़ गयी है, अभी तक कोहरे ने सूरज को ढक रखा है. ऐसी शीतलता पहाड़ों पर लोग रोज ही महसूस करते होंगे. कल दुबारा डायरी नहीं खोल सकी. दोपहर को चार पत्र लिखे, शाम को वे टहलने गये, क्लब जाने का उत्साह नहीं हुआ. अभी-अभी पड़ोसिन का फोन आया, उसे लगा था सम्भवतः अस्वस्थता के कारण वे क्लब नहीं जा रहे हैं, फिर उस बातूनी सखी का फोन आया, उसे अपने बेटे के लिए एक ऐसी ट्यूटर चाहिए जो होमवर्क करा सके. दोपहर को वह कुछ समय निकाल सकती है और क्लास वन के बच्चे का साथ यकीनन अच्छा रहेगा, सो उसने हाँ कर दी है. जून को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी. कल वह जा रहे हैं, उन्हें इतवार को किये जाने वाले कार्य आज ही कर लेने हैं जिसमें बालों में मेंहदी लगाना भी शामिल है. कल रात उसने जून से पूछा कि विवाह की वर्षगाँठ मनाने का उनकी नजर में क्या औचित्य है, उन दोनों के सोचने का ढंग एक ही निकला. उसे भी हर दिन उतना ही खास लगता है जितना वह दिन !

कल शाम अंततः वे क्लब गये और वहाँ का माहौल बेहद खुशनुमा लगा. हर तरफ फूलों की बहार ही बहार थी. सामने के बरामदे को बेहद कलात्मक ढंग से सजाया गया था. पीछे स्टेज था तथा शामियाना लगाया गया था. आग तपने के लिए भी इंतजाम था. लोग आकर्षक पोशाकों में थे.

सुबह जून से बात हुई, कल शाम गन्तव्य पर पहुंच कर भी उन्होंने समाचार दे दिया था. कल रात कई बार उसकी नींद खुली, स्वप्न भी देखे जो परेशानी को बढ़ाने वाले थे. उनके जाने पर पहली रात ! सुबह सवा छह बजे उठी, नैनी कल बिना कहे दिन भर नहीं आयी, इस समय काम कर रही है, उसने अपनी गलती मान ली और उसकी फटकार का कोई विरोध नहीं किया जैसा कि वह पहले करती है. इधर कुछ दिनों से उसमें बदलाव आया है. कल क्लब गये थे वे, नीली साड़ी सुंदर लग रही थी, जून होते तो फोटो खींचते. नन्हा लिख रहा है, सुबह उसे नॉवेल पढने पर कुछ दिनों के लिए रोक लगाने को कहा तो बुरा मान गया. ‘नसीहत’ पचाना आसन काम नहीं है. आज ‘योग वशिष्ठ’ की कथा प्रारम्भ हुई है, कहानी में कहानी कहने की संस्कृत साहित्य में अनोखी प्रथा है. आज गोयनका जी भी आये थे, विपासना के बारे में आरम्भिक व्याख्यान दिया. मन को ऊपरी सतह पर शांत कर लेना तो सहज है पर भीतर का पता तो वक्त पड़ने पर ही चलता है. उस दिन ट्रेन में यात्रियों की भीड़ देखकर वे विचलित हो गये थे. आज सभी के फोन आये सभी ने एनिवर्सरी की मुबारकबाद दी.

आज सुबह सवा छह बजे चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर नींद खुली. उठते ही जून के होटल का नम्बर लगाया, वे भी उठ चुके थे. रात को दस बजे सो गयी थी, पर कुछ देर बाद बड़ी भाभी का फोन आया, वे परसों शुभकामना देना भूल गयी थीं, भाई से भी बात हुई. जून दिल्ली में उनसे मिलने जायेंगे. कल एक परिवार को लंच पर बुलाया था, वे लोग सुबह ही तिनसुकिया मेल से आये थे. एक और सखी तभी घर की चाबी देने आई, वे मुम्बई जाने के लिए एयरपोर्ट जा रहे थे. उन्हें इतनी जल्दी थी कि एक मिनट भी नहीं बैठे. जून की समय की पाबंदी की आदत के कारण वे लोग यात्रा पर निकलने से आधा घंटा पहले ही पूरी तरह से तैयार होकर बैठ जाते हैं.





Monday, July 22, 2013

जंगल का फूल


आज सुबह पता नहीं किस ख्याल में वह सब्जी में नमक डालना ही भूल गयी, नन्हे को टिफिन में वही सब्जी दी है, पर जून के आने पर उसे नमक वाली सब्जी भेजनी होगी, अन्यथा वह भोजन नहीं कर पायेगा. उसने माली को डहेलिया की क्यारी साफ करने को कहा, उसमें पहला फूल अगले हफ्ते खिल जायेगा, चन्द्र मल्लिका पहले ही खिल चुकी है., सफेद, बैंगनी, पीले, गुलाबी और मैरून फूल ! जून कल शाम खेल न पा सकने के कारण बेहद परेशान लग रहे थे, उनके बैडमिन्टन के पार्टनर के पैर में चोट लग गयी है, अभी कुछ दिन और वह नहीं खेल पाएंगे, क्विज में भी वह उनकी सहायता नहीं कर पा रहे हैं.

आज सुबह जून से जब उसने होमियोपैथी डॉक्टर को दिखाने की बात कही तो उनका रेस्पॉंस वही था उदासीनता भरा, कल रात भी यही हुआ, हो सकता है वह भी उनकी परेशानियों के प्रति उदासीनता का प्रदर्शन करती रही हो. उसकी समस्या तो समझ से बाहर है, इस बार बैंडेज करने पर शायद ठीक हो जाये. यूँ उसके कारण उसे फ़िलहाल तो कोई परेशानी नहीं है पर भविष्य में क्या होगा कहना मुश्किल है, लगता है धोबी आया है, कैसा भी मौसम हो वह नियमित रूप से अपने निर्धारित समय पर आता है. कल दोपहर वह एक परिचित के यहाँ गयी, जो असमिया में लिखती हैं, साहित्य के बारे में कुछ चर्चा हुई, आते-आते पौने तीन बज गये. जून ने कुछ देर पूर्व फोन करके हिंदी सप्ताह के लिए स्वागत भाषण लिखने को कहा था उसने ड्राफ्ट लिखा तो है उन्हें दिखाकर फिर से लिखना ठीक रहेगा. आज उनके यहाँ क्विज है, उसने मन ही न उन्हें शुभकामनायें दीं. आज नन्हे के स्कूल में भी इंस्पेक्शन है, कब्स की ड्रेस पहन कर गया है, आज सुबह जल्दी उठ गया था, सारे काम भी समय पर कर लिये जबकि परसों इतवार को आर्ट स्कूल के लिए तैयार होने में पूरे दो घंटे लगाये. उस दिन पहली बार इतना रोया था बाथरूम में नहाते हुए, और कल शाम को उसके इतना कहने पर कि उसका रजिस्टर किसी को दे दिया, आँखें भर लाया, शायद उसकी drawings थीं उसमें, लेकिन जल्दी ही संभल गया. he is growing up fast.

माह का अंतिम दिन, कल जून ने उसे दो अच्छे समाचार दिए, पहला था उसकी कविता के लिए पुरस्कार और दूसरा उसकी बंगाली सखी का भेजा पत्र और उपहार. आज नन्हे का स्कूल बंद है, उसकी पड़ोसिन अपने पति के साथ कोलकाता जा रही है, हृदय रोग का परिक्षण कराने.

आज उसके भीतर का कवि जाग उठा है...
अनगिनत अफसाने, हजारों कविताएँ लिखी जा चुकी हैं कबीर के जिस ढाई आखर वाले प्रेम पर और जो आज भी उतना ही अछूता है उतना ही कोमल और  नई दुल्हन सा सजीला, उसी को शब्दों में बाँधने का प्रयास है यह रचना-

दूर कहीं उजाला फैलाता
एक नन्हा सा दिया माटी का
जैसे दिल के आंगन में प्यार की लौ
जो आस्था, विश्वास और श्रद्धा के अमृत से जलती है
लौ जो चिरन्तन है, जिसे आंधी, पानियों का कोई खौफ नहीं

दूर कहीं जंगल में खिला एक अकेला फूल
जैसे दिल के आंगन में प्यार की खुशबू
जो युगों से कस्तूरी सी बिखेर रही है सुगंध
जिसे बन्धनों और दीवारों का कोई भय नहीं

सुदूर पहाड़ी से उतरती जलधार
जैसे दिल के रास्तों पर प्यार की ठंडक
जो युगों से प्रवाहित है अविरत
जिसे जंगलों और बीहड़ों दोनों को खिलाना है