Tuesday, June 30, 2020

बसन्त में बौर

आज स्कूल में योग अभ्यास के बाद कक्षा तीन की एक छात्रा ने कहा, उसे योग करना अच्छा लगता है. उसने सामने आकर आसन भी किये. बाकी बच्चों को भी अवश्य ही इससे प्रेरणा मिलेगी. बच्चे ही नहीं बड़ों को भी आज के वक्त में योग सीखना ही पड़ेगा. उस दिन एक परिचिता आयी थी, जो बहुत परेशान थी. आज लड़कियाँ पढ़ लिख गयी हैं, अच्छा कमा रही हैं पर जीवन के सामान्य सुखों से वंचित हैं. वह यहाँ अकेली रहती है, ससुराल दूर है, तबादले की कोशिश कर रही है. आज दोपहर अस्पताल गयी जहाँ क्लब की वाइस प्रेसीडेंट इलाज करा रही हैं, वह कुछ दिन पहले गिर गयी थीं और घुटने में चोट लगी. वह उनके लिए फूल ले गयी और एक कविता भी, जो पढ़कर सुनाई. वापसी में क्लब में खिले फूलों की तस्वीरें उतारने कुछ देर के लिए रुकी. घर के सामने बने हैलीपैड कम वॉकिंग ट्रैक में  कोई टीम गिटार बजाकर शूटिंग कर रही है.

कल रात से ममता बनर्जी अपने ही राज्य में धरने पर बैठी हैं. कोलकाता के पुलिस कमिश्नर भी उनके साथ थे, जिनसे पूछताछ करने कल सीबीआई की टीम आयी थी और उन्होंने उसे ही गिरफ्तार कर लिया था. देश में चुनाव से इतनी हलचल होनी शायद स्वाभाविक ही है. मोदी जी की बढ़ती लोकप्रियता से विरोधी पक्ष घबराने लगा है. जनता समझ रही है कि ममता जी अब बौखलाहट में ऐसे कदम उठा रही हैं. रात्रि के आठ बजे हैं, जून अभी तक नहीं आये हैं, उनके दफ्तर में ऑडिटिंग चल रही है, अभी दो दिन और चलेगी. बसन्त पर एक कविता लिखी, उस दिन सुबह एक मधुर सुवास का अनुभव हुआ तो जून ने कहा था यह आम के बौर की सुगन्ध है, तभी  लिखने का विचार मन में आया था. उनके विचार बदल रहे हैं, यात्रा पर जाने के लिए अब वह पहले जैसे उत्सुक नहीं दीखते. सादा भोजन पसन्द करने लगे हैं. यूट्यूब पर  गुरूजी को सुना, सरल शब्दों में गूढ़ प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे, कितने महान हैं वह, अपने आप में एक पूर्ण सत्ता ! कल रात्रि दो-तीन बार आँख खोलकर घड़ी देखी, सुबह की प्रतीक्षा थी. सुबह जगने से ठीक एक क्षण पूर्व आज्ञा चक्र पर सुंदर कलात्मक ॐ की आकृति दिखी. श्वेत प्रकाश पर काले रंग से बनी, कितना अद्भुत था वह दर्शन ! उसके बाद नीले प्रकाश में कोई चेहरा सा दिखा, सुबह से कई बार दिखा है, पहले भी दीखता है पर वह कौन है, कुछ ज्ञात नहीं. परमात्मा के सिवा जब यहाँ कुछ है ही नहीं तो वह उसकी का भेज देवदूत होगा. 

 नूना ने पुरानी डायरी पढ़ी - एक कविता, जो कालेज की लड़कियों के लिए लिखी थी. 

बड़ी समझदार, थोड़ी नादान
खुद से अनजान, करतीं पहचान 
वर्तमान और भविष्य की कड़ी लड़कियाँ
हवा सी तेज, पानी सा बहाव
आँखों को चुनौती देती 
घड़ी-घड़ी लड़कियाँ 
हँसती-खिलखिलाती 
सदा नए मोड़ पर खड़ी लड़कियाँ
जग की शान, परिवार का मान 
धरती की अंगूठी में जड़ी लड़कियाँ !

भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, जो उन्हें हर जगह देखता है वह उसका नाश नहीं करते. उसे पूरा यकीन है कि एक दिन ऐसा आएगा जब सब यह तय कर लेंगे कि उन्हें एक साथ मिलकर अपनी अक्ल से आगे बढ़ना है. 
तुलसी यह जग आई के, सबसे मिलिए धाई
न जाने किस रूप में नारायण मिल जाई !

सुबह से वह मृत थी, स्पंदन का अनुभव हुआ अभी कुछ क्षण पूर्ण गेंदे के फूलों के मध्य; अब वह प्रसन्न है. उसके प्रिय वृक्ष के नीचे कितनी ही सूखी फलियाँ पड़ी थीं. उस जगह बैठते ही उसे विचित्र अहसास होता है जैसे वह धरती से दूर कहीं और पहुँच गयी है. उसे यकीन है कि चाहे किसी भी मूड में वहाँ जाये, जाते ही पोर-पोर अनजाने भय से, अनजाने सुख से सिहर उठेगा. अब वह स्वतन्त्र है, हर तरह के दुःख, परेशानियों से स्वतन्त्र, पढ़ने और लिखने के लिए स्वतन्त्र ! 

Sunday, June 28, 2020

श्री श्री और बाबा


आज बापू की पुण्यतिथि है, टीवी पर सर्वधर्म प्रार्थना का प्रसारण किया जा रहा है. बापू का जीवन भी पुण्यशाली था और मृत्यु भी, शहीद दिवस के रूप में उनकी पुण्यतिथि मनायी जाती है. स्कूलों के बच्चे मधुर स्वरों में गीत व भजन गा रहे हैं, गीत अत्यंत भक्तिभाव जगाने वाले हैं. आज सुबह गांधीजी की आवाज में उनके भाषण सुने. दूरदर्शन के अभिलेखागार में उनके वीडियो सुरक्षित रखे गए हैं. उनके हृदय में हर व्यक्ति के लिए प्रेम था, चाहे वह किसी जाति, किसी धर्म का हो. इस समय बहाई प्रार्थना कही जा रही है. परमात्मा से की गयी कोई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती. अब कुरान का पाठ किया जा रहा है. कल रात तारिक अहमद को सुना, जो पाकिस्तानी हैं पर उसके सबसे बड़े आलोचक भी हैं. हिंदुस्तान की तारीफ करते हैं. कल शाम को अचानक तेज वर्षा व आंधी आयी. एक योग साधिका ने कहा, गुरूजी का कोई सन्देश दे वह उन्हें घर जाने से पूर्व, वह साधिका हिंदी में कविता लिखती है और गाती भी अच्छा है. आज धोबी अपने बगीचे से नारियल और ढेर सारा हरा  धनिया लाया था, उसने भी दो पत्ता गोभी तोड़ कर दीं.

आज नए वर्ष के प्रथम माह का अंतिम दिन है. अब जून को सात माह का समय और यहाँ अपने विभाग प्रमुख के रूप में व्यतीत करना है. आज शाम को एक योग साधिका को विदाई दी, वह सूजी का हलवा बना कर लायी थी, शेष सभी लोग भी कुछ न कुछ बनाकर लाये थे. नूना ने उसके लिए लिखी कविता पढ़ी. दोपहर की कक्षा में दस लोग थे, दो नई लड़कियों ने आना शुरू किया है जो बहुत मन से योग अभ्यास करती हैं. सुबह आसन किये, कुछ ही दिनों में शरीर हल्का लगने लगा है. पिछले दिनों यात्रा आदि के कारण नियमित व्यायाम न करने से वजन भी बढ़ गया है. 

दोपहर के साढ़े चार बजे हैं, आज टीवी पर कुछ नए चैनल देखे. यूट्यूब पर एक वीडियो देखा जिसमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ काम की बातें थीं. सुबह उठकर गर्म पानी पीना है, कुछ देर टहलना है. शंख प्रक्षालन के आसन नियमित करने हैं. भोजन के डेढ़ घण्टे बाद पानी पीना है . नमक कम, सफेद चीनी व मैदा नहीं खाना है. भोजन चबाकर खाना है. रीढ़ की हड्डी को सीधा रखना है. नाभि व छाती के मध्य की दूरी को बढ़ाकर रखना है. भोजन करते समय नीचे बैठना है अथवा सीधे बैठना है. भोजन स्वयं से ऊपर रखना है. दिन में सोना भी ठीक नहीं है.  रामदेव बाबा पर एक कार्यक्रम भी देखा. आज सुबह श्री श्री व रामदेव बाबा को संगम तट पर एक साथ योग करते हुए देखना एक अभूतपूर्व अनुभव था. दोपहर को लॉन की धूप में विश्राम किया, पैरों पर धूप पड़ रही थी और सिर छाया में था. इसी तरह जीवन में भले संघर्ष हो पर मन में विश्राम हो वह जीवन सार्थक है. बड़ी भांजी के लिए आज सुबह कविता लिखी, अपनेआप ही भीतर उतर आयी हो जैसे, सोचा नहीं था कि लिखनी है. 

Friday, June 26, 2020

बापू के सपनों का भारत



टीवी पर गणतन्त्र दिवस की पूर्व सन्ध्या पर राष्ट्रपति का भाषण प्रसारित हो रहा है. वह कह रहे हैं देश इस समय गरीबी को मूलतः कम करने अथवा खत्म  करने प्रयासों में अंतिम पायदान पर पहुँच गया है. विकास के नए-नए कार्य हो रहे हैं. जवान व किसान दोनों सशक्त हो रहे हैं . आम आदमी में भी अपने जीवन को ऊपर उठाने की लालसा जगी है. सरकारी सुविधाएँ नीचे तक जा रही हैं. बेटियों को आगे बढ़ने के अवसर मिल रहे हैं. विकास के अवसर सभी को मिले क्योंकि देश के संसाधन पर सबका अधिकार है. गांधीजी के सपनों का भारत धीरे-धीरे साकार होता जा रहा है. तकनीक और नई सोच के बल पर देशवासी एक साथ आगे बढ़ें इसके लिए अपने लक्ष्यों और उपलब्धियों को रेखांकित करना होगा. पारस्परिक सहयोग और साझेदारी के द्वारा ही समाज आगे बढ़ सकता है. विचारों का आदान-प्रदान हो, समाज में समरसता हो. भरत की संस्कृति में, परंपरा में लोकसेवा का बहुत महत्व है. अच्छी नीयत के साथ किये गये प्रयास को सराहना मिलनी ही चाहिए. भारत की सेना विश्व में शांति के लिए एक प्रमुख स्थान रखती है. आपदा में भारतीय जवान करुणा व संवेदना का प्रदर्शन करते हैं. राष्ट्रपति का भाषण बहुत ही सारगर्भित है. यह अवसर है भारतीयता को मनाने का. इस वर्ष गाँधीजी की डेढ़सौवीं जयंती है, संविधान दिवस भी आने वाला है. इसी वर्ष चुनाव भी होने हैं जिनमें इक्कीसवीं सदी में जन्मे मतदाता भी वोट दे सकेंगे. यह सदी भारत की सदी है. 

दो दिनों का अंतराल. इस समय शाम के साढ़े छह बजे हैं. शाम को उन्हें कम्पनी के एक अधिकारी की बेटी के विवाह की पार्टी में जाना है. जून और उसका वजन बढ़ता जा रहा है, अब दोनों समय टहलने जाना होगा, कुछ खान-पान में परिवर्तन करके तथा कुछ ज्यादा व्यायाम करके उसे सीमित करना है. मौसम अब उतना ठंडा नहीं रहा. शाल लेने से काम चल जायेगा. आज माँ की अठाहरवीं पुण्यतिथि है, सभी उन्हें याद कर रहे हैं. छोटी बहन से बात हुई, उसकी गाड़ी भी साइड से लग गयी, जैसे उसकी लगी थी. जून ने पैकिंग कर ली है, दो दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं. नन्हे ने कहा, अस्सी प्रतिशत काम हो गया है इंटीरियर का उनके नए घर में, सम्भवतः मार्च तक पूरा हो जायेगा. कल क्लब में महिला मीटिंग है, चार सदस्याओं का विदाई समारोह है, उसने सभी के लिए कविताएं लिखी हैं. 

उस तीन दशकों से भी पुरानी डायरी में पढ़ा, आज उस मैदान में दोनों बाहें सामने की ओर झूलते तेजी से दौड़ नहीं सकती. सुबह से एक हल्की खुमारी छायी है मन पर. उसके तर्कों में रंचमात्र भी बल नहीं है, वह उससे जो कुछ कह रही थी उस पर स्वयं भी विश्वास नहीं, लगता है उसके पास मस्तिष्क नहीं, वह सोच नहीं सकती, विचार नहीं कर सकती. वह सदा कल्पना ही किया करती है. उसके शब्द, उसके विचार खोखले हैं यदि कल्पना उनके साथ न हो. वह किस तरह इस कमी को पूरा कर सकती है. अभी तो उसके सम्मुख बस एक ही लक्ष्य है परीक्षा देना, सिवाय इसके कि उसकी परीक्षाएं कुछ दिनों में होनी हैं, अन्य बातें उसे भूल जानी चाहिये. ठंड लग रही है, उसने सोचा खिड़कियां बन्द कर दे या रहने ही दे, फिर रहने ही दिया. कल वसन्त पंचमी है और बापू की पुण्यतिथि भी. पिछले वर्ष जब उनकी कुछेक पुस्तकें पढ़ी थीं, बापू के आदर्श वाक्य उसे हर पल संभालते थे. अब कहाँ याद आते हैं, जबकि उनकी तस्वीर हर वक्त उसकी दृष्टि के सम्मुख रहती है. अब वह आसन, प्राणायाम और व्यायाम भी नहीं कर रही है. कल अवश्य करेगी. ठंडी हवा चुभ रही है स्वेटर को छेदती नीचे त्वचा तक. ब्लो ब्लो दाओ विंटर विंड यह तो उसने जंगल में कहा था और वह कमरे में भी नहीं बैठ सकती. तापमान 15 डिग्री से कम ही होगा, सेल्सियस और सेंटीग्रेट एक ही होता है न ! 

Wednesday, June 24, 2020

गायत्री परिवार के मुखिया



दाहिनी आँख में हल्का दर्द है, सम्भवतः पित्त बढ़ने से हुआ है. कल रात को एक पार्टी में गए, भोजन गरिष्ठ था,थोड़ा सा गाजर का हलवा भी खाया. देह जब तक है तब तक कुछ न कुछ इसके साथ लगा ही रहेगा. आज ठंड ज्यादा है पहली बार फिरन पहना है. आज भी किसी ‘बंद’ की सम्भावना थी पर समझौता हो गया लगता है, इसी कारण जून दस मिनट लेट हुए दफ्तर जाने में. आज दोपहर से मन स्थिरता का अनुभव कर रहा है. भीतर कुछ करने को नहीं है, आजकल ऐसा लगता है. जैसे हाथ में दो कंगन हों तो बजते हैं, एक रह जाये तो कैसी आवाज, जब हृदय व बुद्धि एक हो जाएँ तो भीतर मौन का ही साम्राज्य शेष रहेगा. ऐसा मौन जो सहज है, पुलक से भरा है और पूर्ण तृप्त है. इस समय शाम के साढ़े सात बजे हैं, टीवी स्क्रीन पर यू ट्यूब में प्रणव पांड्या जी तनाव पर बोल रहे हैं, वह आर्ट ऑफ़ लिविंग के साथ आर्ट ऑफ़ थिंकिंग पर भी बल दे रहे हैं. कल वह क्लब में आने वाले हैं, वे उन्हें सुनने जायेंगे. सुबह प्रेसीडेंट के यहाँ गयी थी, उन्हीने पीठा खिलाया, अपने इकलौते पुत्र के बारे में बताया जो मुम्बई में रहता है. आज छोटी बहन से बात हुई, उसकी एक परिचिता सदा के लिए भारत वापस आ रही हैं, उसे बगीचे के लिए कृत्रिम घास व एक फौवारा देकर जा रही हैं. उसने आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक कोर्स भी किया पिछले दिनों. कहीं दूर से गाने की आवाज आ रही है, सर्दियों के मौसम में दूर की आवाज ज्यादा स्पष्ट सुनाई देती है. आज एक योग साधिका का फोन आया, उसका नन्हा पुत्र भी अपने जैसा एक ही है. वह एक जगह टिककर नहीं बैठता है और पढ़ने में उसका मन ज्यादा नहीं लगता है. 

आज सुबह बड़ी भांजी के लिए एक कविता लिखी, कल उसके विवाह की वर्षगाँठ है. वर्षों पहले दिल्ली में जब उसका विवाह हुआ था, घर में पहला विवाह था, वे एक सप्ताह के लिए गए थे. आज बगीचे से मेथी और हरे लहसुन तोड़े, मकई के आटे में मिलाकर ठेपला बनाया. नन्हा व सोनू भी सड़क यात्रा पर जा रहे हैं, एक रात एक फार्म हाउस में रुकेंगे. यात्रा करना सभी को भाता है, मन एक अलग ही स्थिति में रहता है यात्रा में, सजग पर विश्रामपूर्ण ! आज सुबह वे उठे तभी से गायत्री मन्त्र, भजन तथा हवन में बोले जाने वाले मन्त्रों की ध्वनि आ रही है. डेली बाजार के पीछे गायत्री शक्ति पीठ की स्थापना हो रही है. कल प्रणव पांड्या जी का भाषण सुना. उनकी टीम ने भजन भी गाए और शांति पाठ किया, गायत्री मन्त्र का अर्थ भी समझाया. भोजन में मसालों की तरह जीवन में थोड़ा सा तनाव आवश्यक है, पर जब यह अधिक हो जाता है तो कई रोगों को जन्म देता है, ऐसा भी कहा. इस समय शाम के पांच बजे हैं, जून मोबाइल पर ‘अँधा धुन’ देख रहे हैं. दोपहर को  लॉन में ही विश्राम किया, धूप भली लग रही थी, दो बजे धूप आगे खिसक गयी तो उठकर भीतर आ गए. कल मोदी जी को भारतीय सिनेमा के संग्रहालय के उद्घाटन पर बोलते सुनना एक सुखद अनुभव था. 

उस पुरानी डायरी में पढ़ा- आज साढ़े छह बजे उठी, इसलिए सारा दिन एक छाया से आवृत रहा मन, जल्दी उठने पर दिन-दिन भर खिला रहता है. बुआजी ने उस यात्री की कहानी सुनाई जो ट्रेन में सफर करते-करते अपनी जिंदगी का आखिरी सफर भी तय कर गया. एक अनाम यात्री, जिसके साथ उसके अंतिम सफर में सिर्फ गैर थे कोई अपना नहीं. अभी एक घण्टे बाद टीवी पर कवि सम्मेलन दिखाया जायेगा. कल भी सुना था. कल जो कविताएं सुनीं थीं उनकी कुछ पंक्तियाँ नोट की हैं. कन्हैयालाल नंदन की जो छवि उसने सोची थी वह उससे बिलकुल उलटे दिखे. उनकी कविता भी ज्यादा अच्छी नहीं लगी. इंदु कौशिक की आवाज व गीत के भाव दोनों भा गये. सूरज, उगते सूरज से मिले.. अभी कवि सम्मेलन देख कर आयी है. गिरिजा कुमार माथुर, बिसारिया, कैलाश वाजपेयी, कुमार शिव के गीत और कविताएं सुनीं. फिर आये भवानी प्रसाद मिश्र, जिनके साथ उसकी एक मधुर स्मृति भी जुड़ी है. उनकी कई एक कविताएं भी उसने पढ़ी हैं. आज की कविता को मात्र कविता नहीं कहा जा सकता, वह तो एक संदेश था, दैवीय संदेश, प्रेरणादायक, स्फूर्तिदायक और साथ ही यथार्थ का सही बोध कराने वाला सीधा-सादा, मन पर चोट करने वाला उनका आंसुओं से भीगा कथ्य !

Tuesday, June 23, 2020

डांगरिया बाबा का मंदिर



शाम के सवा छह बजे हैं, वे पासीघाट के सर्किट हाउस में के अति विशेष अतिथिगृह में हैं. पासीघाट अरुणाचल का सबसे पुराना शहर है, 1911 में इसका नामकरण हुआ था. खुला-खुला सा वातावरण है, जनसंख्या कम है. सुबह आठ बजे एक अन्य परिवार के साथ सदिया-धौला पुल से नदी पार कर दोपहर को ही पहुँचे  हैं. रास्ते में एक शांत जगह पर रुककर साथ लाया पाथेय ग्रहण किया. सन्तरे के बगीचे देखे, ढेर सारी तस्वीरें उतारीं। नदी, पुल, पत्थर और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य तथा पहाड़ों, बादलों और आकाश की तस्वीरें ! वे लोग सियांग नदी के पुल पर सूर्यास्त देखने गए फिर नीचे उतर कर पत्थरों पर चलते हुए नदी तक भी. हवा शीतल थी और इतनी शुद्ध कि जैसे शुद्ध प्राणवायु ही नासिक पुटों में भर रहे हों.  रंग-बिरंगे सुडौल हर आकार के पत्थर नदी तट को बेहद आकर्षक बना रहे थे. सियांग नदी ही आगे चलकर ब्रह्मपुत्र कहलाती है. उनके कमरे की बालकनी से नील पर्वत दिखाई देते हैं. 

सुबह जल्दी उठकर बालकनी से सूर्योदय देखा पर एक बड़े वृक्ष की शाखाएं उसे छिपा रही थीं, नीचे उतर कर गए तो स्पष्ट दिखा. पूरे भारत में अरुणाचल में ही सबसे पहले सूर्य के दर्शन होते हैं. कल शाम वे डांगरिया बाबा व बाला जी के मंदिर देखने गए थे. मंदिर के प्रांगण विशाल थे, वहाँ आरती और भजन चल रहे थे. दशकों पहले बिहार से कुछ लोग यहाँ आकर बसे थे, उन्होंने ही यह बनाये होंगे. अरुणाचल प्रदेश में स्थानीय लोग भी अच्छी हिंदी बोल लेते हैं. अभी कुछ देर बाद उन्हें वापसी की यात्रा के लिए निकलना है. 

इस वर्ष में पहली बार दोपहर के समय बगीचे में  झूले पर बैठकर लिख रही है. लॉन की घास ठंड के कारण हल्की भूरी नजर आ रही है. आंवले के पेड़ की पत्तियां झर गयी हैं, नीचे छोटे-छोटे आंवले भी गिरे हैं. जगह-जगह मिट्टी के ढेले घोंघों ने निकाल दिए हैं. हल्की हवा बह रही है और रह-रह कर पंछियों के स्वर वातावरण की निस्तब्धता को भंग कर रहे हैं. एक समरसता का अनुभव जैसे सृष्टि कर रही है. कल ही वे पासीघाट से लौटे. एक दिन की छोटी सी यात्रा ने कितने अनुभव कराये. सदिया और बोगीबिल दोनों पुलों को देखा, लोगों की भीड़ थी बोगिबील पर. मकर संक्रांति के कारण लोग घरों से बाहर निकले हुए थे.नदियों में पानी कम था, वे शांत लग रही थीं. पैंगिंग में जहाँ वे हैंगिंग ब्रिज देखने गए, वहाँ सियांग नदी तीव्र गति से बह रही थी. पुल को पार करते समय वह नीचे नदी को तभी देख पायी जब स्थिर खड़ी थी. चलते समय पानी की ओर देखने पर भीतर भय जैसा  कुछ लगता था. आज सुबह टाइनी टोट्स स्कूल का पुराना फर्नीचर मृणाल ज्योति भिजवाने का प्रबन्ध किया. जब तक यहाँ है स्कूल की खोज खबर लेते रहनी है. 


उस पुरानी डायरी में गणतन्त्र दिवस का जिक्र था. देश का सबसे प्रिय दिन रिपब्लिक डे ! माँ ने बताया जब वह छोटी थीं तो देशवासी जो उस समय गुलाम थे, सुख की साँस नहीं ले पाते थे. वे सरकारी नौकरी नहीं पा सकते थे, जो भी पा लेते थे उन्हें अपने भाइयों पर जुल्म करने पड़ते थे. कैसी भयानक होती थी वह जिंदगी. आज आजाद भारतवासी अपने गांवों, शहरों अपनी मिट्टी में घूम सकते हैं, निर्बन्ध, मुक्त ! क्या वे किसी दूसरे देश में इस तरह रह सकते हैं, आ जा सकते हैं, क्या वे उनके लिए अजनबी नहीं रहेंगे ? अपने देश में ही वह सब कुछ किया जा सकता है जो भी कोई करना चाहता है. लड़ाई कितनी बुरी है दुनिया में, बदतर चीजों में से बदतर लड़ाई, उसे किसी दिन फ्रंट पर जाना पड़े तो... 


Saturday, June 20, 2020

पासीघाट के सन्तरे


आज इतवार था, सुबह के सभी कार्य, प्रातः भ्रमण, योग आदि बड़े इत्मीनान से किये, बिना किसी जल्दबाजी के. नाश्ते में अप्पम बनाये ढेर सारी हरी सब्जियां डालकर. बगिया में हरे प्याज, गाजर, गोभी आदि हो रही हैं. यह अंतिम वर्ष है जब वे सब्जियां उगा रहे हैं, अगले वर्ष से महानगर में सम्भवतः फूल ही उगा पाएंगे या सजाने के लिए गमलों में कुछ हरे पौधे. दोपहर को बच्चों को योग सिखाया साथ ही गणित भी, उन्हें बहुत आनंद आया. एक लड़का बहुत उदास था, अगली कक्षा में उसका दाखिला अभी तक नहीं हुआ है, बच्चों के लिए स्कूल जाना कितना जरूरी है , उससे बात करके लगा. एक बच्चे का पैर सूजा हुआ था, उसे अभी तक इलाज नहीं मिला, माता-पिता को सन्तान के प्रति ज्यादा सजग होना चाहिए पर... शाम को एक बाल फिल्म का एक अंश देखा. एक किशोरी अपनी सखियों के साथ सागर तट पर जाती है पर घर पर बताकर नहीं आयी है, सबके माँ-पिता कुशंकाएँ करने लगते हैं. मन कितनी जल्दी भयभीत हो जाता है, आत्मा अभय है सदा एक सी ! 

अभी वे रात्रि भ्रमण से लौटे, पिटूनिया के फूलों  का लाल रंग हल्के प्रकाश में सुंदर लग रहा था. आज दोपहर छोटी बहन से वीडियो कॉल पर बात हुई. वह मेथी काट रही थी, वीडियो कॉल पर बात करो तो लगता ही नहीं कि हजारों मील की दूरी है, उसका घर जैसे पड़ोस में आ गया हो. बताया, उसकी छोटी बिटिया विदेश पहुँच गयी है. बहनोई विदेश जाने वाले हैं, उनके लिए लिखी कविता का अंतिम भाग समझ में नन्हीं आया, ऐसा बताया. परमात्मा को भीतर या बाहर अनुभव किये बिना समर्पण का गीत गाया नहीं जाता. शाम को भगवद्गीता के एक श्लोक का भावार्थ सुना, आचार्य प्रद्युम्न कितनी अच्छी तरह भक्ति भाव में डूबकर गीता की व्याख्या करते हैं. कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग को बहुत सरलता से परिभाषित कर देते हैं. उसके पहले प्रेसीडेंट से मिलने गयी, उनका गला खराब है, पर क्लब का काम करने का उनका उत्साह देखते ही बनता है. उनके लिए विदाई कविता लिखनी है. दोपहर को पावर ऑफ़ नाउ का एक और अध्याय पढ़ा.उनके भीतर एक छाया शरीर भी होता है जो पीड़ा से ही पोषित होता है. पुराने नकारात्मक संस्कार तथा घटनाएं जब कभी जागृत हो जाती हैं तब वह शरीर मुखर हो जाता है और वे स्वयं को भूल जाते हैं, अपने स्वरूप से डिग जाते हैं. उसके भीतर भी हीन भावना, ईर्ष्या, अहंकार तथा दम्भ के रूप में पुराने संस्कार हैं, जो अचेत होने पर उभर आते हैं. दुबई से वापसी की यात्रा में कुछ पलों के लिए कैसी विवेकहीनता छा गयी थी, जैसे वह वह नहीं थी, कोई अन्य ही था. चाय के प्रति आसक्ति भी इसी छाया शरीर की मांग पर टिकी है, आत्मा को कोई अभाव नहीं है . उसे किसी सुख के लिए किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति पर निर्भर होने की जरा भी आवश्यकता नहीं है. आज मकर संक्रांति है, कल वे पासीघाट जा रहे हैं, अरुणाचल प्रदेश में स्थित यह स्थान सेंटरों के लिए प्रसिद्ध है. कल से कुम्भ भी आरम्भ हो रहा है. 

उसने फिर उस वर्षों पूर्व की डायरी का अगला पन्ना खोला, कुछ कविताएं कालेज की पत्रिका में छपने के लिए दीं थीं उसी दिन. एक कविता तो अवश्य छपेगी उनमें से ऐसा भी लिखा था.  अगले पन्नों पर वे कविताएं थी जो रेडियो पर सुने कवि सम्मेलन से लिखी थीं, 

जिंदगी जैसे शिकन रुमाल की 
एक नन्हीं सी लहर है ताल की 
जिंदगी है एक चिड़िया डाल की  
देखते ही देखते उड़ जाएगी 

बादलों में छिप गयी वह धूप है 
घूँघटों में कैद गोरा रूप है 
एक गिरते फूल का मकरन्द है 
एक झूठे प्यार की सौगन्ध है 
आंसुओं के नीर में बस जाएगी 
कुंवर बेचैन 

जीना  हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा
हर आँधी का उत्तर हो तुम, तुमने नहीं विचारा 
.............

सोचो तुमने इतने दिन में कितनी बार हुंकारा 

बाल कवि बैरागी  

है महानगर में शोर शोर में महानगर 
नागरिक नहीं रहती है भीड़ यहाँ, 

ये पंक्तियाँ किसकी हैं, नहीं लिखा है. 


Thursday, June 18, 2020

पावर ऑफ़ नाउ


आज ठंड अपेक्षाकृत अधिक है. सुबह वे उठे तो कोहरा बहुत घना था. प्रातः भ्रमण के लिए देर से निकले पर उतनी ठंड में भी एक व्यक्ति को सामान्य कमीज पहने दौड़ लगाते देखा. मानव की सर्दी-गर्मी सहने की क्षमता व्यक्ति सापेक्ष है. नेहरू मैदान में तेज बत्तियां जल रही थीं, दिन-रात वाले फुटबॉल मैच चल रहे हैं वहाँ तीन दिनों के लिये. एक युवा संस्था करवा रही है कम्पनी की सहायता से. आज भी किसी ‘बंद’ की बात थी पर कम्पनी खुली है. एनआरसी और सिटीजनशिप बिल को लेकर उत्तर-पूर्व में वातावरण काफी अस्थिर बना हुआ है. इस समय कमरे में धूप आ रही है और धूप की गर्माहट भली लग रही है. कल दोपहर मृणाल ज्योति गयी, उसकी संस्थापिका कह रही थीं भविष्य में उनके न रहने पर उनकी दिव्यांग पुत्री अकेली न रह जाये इसलिए वह कुछ वर्षों बाद अपने रिश्तेदारों के पास रहेंगी. माँ का दिल कितनी दूर की सोच रखता है. उनके बाद स्कूल कौन सम्भालेगा इसकी भी चिंता उन्हें होती होगी. कल शाम भजन से पूर्व गले में खराश हुई और ॐ का उच्चारण नहीं कर सकी, देह एक मशीन की तरह ही है, कहीं कुछ फंस गया और मशीन ठप ! एक छोटा सा खाकी रंग का कुत्ते का बच्चा बरामदे में आकर बैठा था कल, उसे कुछ खाने को दिया तो दूर तक छोड़ आने के बावजूद थोड़ी ही देर में वापस आ जाता था, उसका दिशा बोध कितना प्रबल रहा होगा. वे उसे घर में नहीं आने दे रहे थे, शायद रोग का भय था, उसे कोई टीका भी नहीं लगा होगा. परमात्मा ही उसकी रक्षा करते रहे हैं आजतक, आगे भी करेंगे. बाहर मैदान से बच्चों के खेलने की आवाजें आ रही हैं, ये बिना थके शाम तक खेलते रह सकते हैं. 

टीवी पर प्रधानमंत्री का भाषण आ रहा है जो वह बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में दे रहे हैं. महिला सशक्तिकरण की बात की, फिर किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया. उनकी आवाज में बल है और भारत को आगे ले जाने का दृढ संकल्प भी. ‘पावर ऑफ़ नाउ’ वर्षों पहले पढ़ी थी, कल से दुबारा पढ़ रही है, पढ़ते-पढ़ते ही अनुभव घटने लगता है. वर्तमान में रहने का जो मन्त्र ज्ञानी देते आए हैं उसका सर्वोत्तम चित्रण इस पुस्तक में हुआ है. अगले सप्ताह वे अरुणाचल प्रदेश जा रहे हैं एक रात के लिए. शाम को क्लब में एक विज्ञान फिल्म दिखाई जाएगी, रजनीकान्त की हिंदी में डब की गयी फिल्म.  

उस दिन यानि वर्षों पूर्व सुबह साढ़े छह बजे पिताजी द्वारा आवाज लगाने पर नींद खुली तो एक स्वप्न टूट गया. स्वप्न, जो काफी देर से चल रहा था. स्वप्न जो सुंदर था... सुखद था. पता नहीं किस खेत में काम कर रहे थे वे लोग, साथ-साथ बातें भी. फिर घर आये. सबको पता चल गया. मिटटी से सने हाथ, हल चलाते हुए लगी होगी या .. कुछ याद नहीं. फिर स्वप्न में ही एक पत्र मिला और ‘मेरे संसार; ऋषियों की बातों से भरी किताब, श्लोकों और आख्यानों को उसमें देख वह चकित थी फिर दक्षिण भारत का भ्रमण  और सुंदर दृश्य... बस सब बातों की एक बात कि स्वप्न अच्छा था. कालेज में ‘फिलॉसफी ऑफ़ हार्डी’ पर एक सेमिनार था, मध्य में एक गजल की प्रस्तुति... मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता.. ऐसी ही कुछ. कल भारत बन्द का आयोजन है विपक्षी दलों द्वारा. बस में एक वृद्ध ने पेन्सिल खरीदी,  लिखने के लिए सिगरेट की डिब्बी का ढक्कन, उसने उसे एक कागज अपनी कापी का दिया, वह खुश हुआ होगा पर उसने ऐसा जाहिर नहीं किया. बस ड्राइवर ने बस गेट से काफी आगे रोकी, वह क्रोध में भी था.अब से वह सबसे आगे वाली सीट पर बैठेगी, या फिर खड़े होना भी ठीक है ताकि उसे पहले से बता सके. 

Wednesday, June 17, 2020

सूरज की बिंदी


सुबह के साढ़े आठ बजे हैं. दो दिनों के ‘बंद’ के बाद आज जून दफ्तर गए हैं. सरकार सिटिजनशिप बिल के द्वारा कुछ अन्य देशों के धर्म के आधार पर पीड़ित हिंदुओं को भारत की  नागरिकता देना चाहती है, जो किसी तरह जान बचाकर भारत आते रहे हैं, बिना नागरिकता के रह रहे हैं. इसके खिलाफ ही था परसों का बंद. आज जो सफाई कर्मचारी आया है कह रहा है, उसके पूर्वजों को अंग्रेज बिहार से यहाँ असम लाये थे, पर अब तो यही उनका घर है. कल रात भर गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा होती रही, कई बार बिजली चमकने व गड़गड़ाहट से नींद भी खुली. सुबह टहलने गए तो बारिश रुकी हुई थी, सड़क खाली थी, कुछ देर बाद ही सारी बत्तियां भी बुझ गयीं, लगभग अँधेरे में ही प्रातः भ्रमण हुआ. कल शाम को क्लब की मीटिंग थी, वर्तमान प्रेजिडेंट की अंतिम कमेटी मीटिंग. कुछ जिम्मेदारी उसे सौंपी गयी है, भावी प्रेसीडेंट ज्यादा व्यस्त है इसलिए. दुबई से लाये खजूर वह सबके लिए ले गयी थी.  आज दोपहर मृणाल ज्योति जाना है नए वर्ष के कैलेंडर, डायरी और केक लेकर, हर वर्ष वहाँ टीचर्स को प्रतीक्षा रहती है. बाहर से झगड़ने की आवाजें आ रही हैं, पिछले घर में रहने वाली किशोरियां हैं जो पिता की बात जरा नहीं मानतीं, स्कूल जाना भी छोड़ दिया है. दुबई यात्रा पर दो कविताएं लिखीं, दो सखियों की विदाई कविताएं टाइप करनी हैं जिनके पतिदेव सेवा निवृत्त हो रहे हैं. 

उस पुरानी डायरी में लिखा है, जीवन में कुछ पल भी अवसाद भरे क्यों हों, कुछ क्षण भी बोझिल क्यों हों. जिन पलों में मन की शांति भंग हो जाये, आँखों में अश्रु आ जाएँ. मुख से कोई शब्द न फूटे पर भीतर मौन भी रुचि न रहा हो. मन खुद से बात करे पर बाहर चुप्पी छायी हो. क्या ऐसा पहले भी कितनी बार नहीं हुआ होगा, इस जन्म में या पिछले जन्मों में. जीवन इसी तरह गिरता-पड़ता, रोता हुआ अपनी यात्रा तय करता आया है. ऐसे क्षण ही मन की दुर्बलता के, मन के अंधियारे के पोषक हैं. इन्हें दूर फेंक कर जलती हुई शिखा की तरह मुस्काना होगा. जीवन सुख का ही नाम है और सुख जीवन का. जिन पलों में आँखें हँसी हैं उन स्मृतियों का ऋण है मन पर, कुछ गीतों का और सपनों का भी. हँसते-गाते कुछ बच्चों का भी और सबसे बढ़कर इक धरती और इक सूरज का ऋण है उस पर ! 

मेरे गीत अमर कर दो ! इंसानी दिल को को ही यह फरियाद करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि ऐसा करने से उसे सुकून मिलता है, पर ‘सूरज’ उसे कभी कहने की आवश्यकता नहीं हुई, वह जो नित नए गीत लिख जाता है आकाश पर, धरती पर भी ! अभी कुछ क्षणों पहले सूर्योदय का भव्य और रोमांचकारी दृश्य देखकर आयी है. मन जो पोर-पोर तक उस उस वक्त सूरज का कृतज्ञ था, ग्रे और श्वेत रंग की विशाल स्लेट पर जैसे कोई लाल चमकदार बिंदी सजा दे, और वह बिंदी उसके साथ-साथ चल रही थी. वह दो कदम आगे तो वह भी आगे पीछे तो वह भी पीछे ! कोई अन्य सजीव या निर्जीव वस्तु नहीं दिख रही थी. कोहरे की परत ने सभी पर आवरण कर दिया था, सिर्फ एक सूरज और दूसरी वह स्वयं... 

जॉली और ड्यूक ! राजकुमारी और जॉली, सिल्विया और राजा, ये पात्र बचपन से उसके मन में सजीव हैं. जब भी ‘एक गीत की मौत’ रेडियो नाटक  सुनती है, करुणा से भर जाता है मन ! जॉली और ड्यूक का अद्भुत ऊँचा प्रेम ! सोहराब मोदी की तीसरी फिल्म ‘पृथ्वी वल्लभ’ देखी आज. छोटे भाई ने एक घायल चिड़िया का बच्चा उसे लाकर दिया जैसे वह दम तोड़ने की प्रतीक्षा कर रहा था. हाथों में आते ही बिना पानी पिए चला गया, उसने ऐसा क्यों किया, पहले वह हिल-डुल रहा था फिर शांत... किसी की मौत अपने हाथों में.. पता भी नहीं चला एक सेकण्ड से भी कम समय में उसके प्राण निकल गए. उसने उसे मिट्टी में दबा दिया चंद आँसुओं के साथ ! 

Tuesday, June 9, 2020

अतीत और वर्तमान


वर्तमान के इस छोटे से क्षण में अनंत छिपा है, जिसने इस राज को जान लिया, वह मुक्त है. मन सदा अतीत में ले जाता है, या भविष्य की कल्पना में, वर्तमान में आते ही वह मिट जाता है. उसे टिकने के लिए कोई आधार चाहिए, वर्तमान का क्षण इतना छोटा है कि उसमें कोई शब्द नहीं ठहर सकता, मन शब्द के सहारे ही जीवित रहता है. उस पुरानी डायरी में पढ़ा, वह फिर कड़वा बोली, कितनी बार कहा है खुद को, अपने तुर्श मिजाज को बदले, उसे पछताना पड़ेगा. जितना कम बोलेगी उतना सही बोलेगी, जितना ज्यादा बोलेगी उतना गलत बोलेगी. जहाँ जानकारी न हो या कोई मतलब न हो वहाँ रहकर चल रहे वार्तालाप में भाग लेने की क्या जरूरत है, अन्य की बातों में दखल देने में क्या तुक है ? कालेज में जब एक खाली पीरियड था, वह कुछ लिख रही थी, उसके हाथों और आँखों की गतिविधियों को देखकर एक छात्रा ने अनुमान लगा लिया कि वह उनके बारे में कुछ लिख रही है. उसने कालेज के कार्यक्रम में कविता पाठ किया है सो इतना तो वे जानती हैं कि उसे लिखने का शौक है. वह उसके निकट आकर वही सब कहने लगी जो पहले भी दो छात्राएं कह चुकी हैं, फिर यह कि मैथमैटिशियन हैं, दिमाग चढ़ा हुआ है. वह चुपचाप सुनती रही. मन में एक नाम कौंध गया, उसका नाम लेते ही उसकी सारी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं, क्या जादू है उसके नाम में या उसके नाम के प्रति उसकी आस्था में. आस्था सिर्फ नाम में है उसमें नहीं पर यह कौन मानेगा ? वह कविता उसने एक छात्रा को दे दी, पता नहीं उसे कैसी लगेगी. अपनी एक प्रिय सखी को देती तो प्रतिक्रिया उसके अनुकूल होती, वह तो मिली नहीं जिसके लिए लिखी थी. कोई एक ऐसा वाक्य लिखने का मन होता है जिसमें उसकी सारी भावनाएं समा जाएँ और वह वाक्य सुकून भी दे - तुम्हारी आँखें हर वक्त मुस्कुराती क्यों हैं ? 

मन ही वह राक्षस है जिसका दमन करके पुरुष  अवतारी कहलाये, मन ही वह मार है जिसका सामना बुद्ध ने किया. मन के अनुसार नहीं चलना है, उसको उसका सही स्थान दिखाना है. एक साधक यदि मनमुख होकर जीता है और अपने विवेक का अनादर करता है तो उसे साधक कहलाने का अधिकार नहीं है. मन को मारना आत्मा को जगाना है. कल रात्रि पुनः वही स्वप्न देखा, ‘वह कौन है’ इसका उत्तर जिसमें मिला. स्वप्न शुरू होता है तो वह एक पार्टी में है, जून की कोई ऑफिशियल पार्टी है. साथ में बड़ा भांजा भी है. उसके पास एक बैज है जिसे वह लगाना चाहती है, पर वह जून का है और वह लगाना नहीं चाहते. फिर अचानक वर्षा होने लगती है. वह उठ जाती है. और बाहर निकल आती है. कुछ दूरी पर ही कुछ महिलाएं बैठी हैं, जहाँ जाना है पर रास्ता कच्चा है और ढलान है. वह उतरती है तो कुछ पत्थर भी गिरने लगते हैं, पर सुरक्षित पहुँच जाती है. वर्ष संभवतः रुक गयी है, आगे चल पड़ती है, आगे रास्ता चौड़ा है और सुनसान है. काफी दूर निकल जाने के बाद लौटने का मन होता है तो सड़क पर आते वाहन दिखते हैं, बड़े-बड़े वाहन गुजर जाते हैं फिर एक बड़े से रथ पर कृष्ण और अर्जुन की मूर्ति दिखाई देती है. एक दूसरे विशाल रथ में केवल कृष्ण की. फिर आवाज आती है, माँ, माँ, माँ, माँ  और नींद खुल जाती है. माँ की ध्वनि इतनी तीव्र और स्पष्ट थी, मधुर थी. वह किस  की आवाज थी, वर्षों पहले भी किसी ने माँ कहकर उसे जगाया था. यशोदा का अर्थ है दूसरों को यश देना, जो उसे अच्छा लगता है. 

कालेज से लौटने पर पहला काम जो उसने किया वह था पुनः जून के उस पत्र को पढ़ना, जो बहुत प्रतीक्षा के बाद मिला था. हर बार पढ़ने पर नया लगता, उसने कहा है, फालतू बातें मत सोचा करे ! मन लगाकर पढ़े, यही तो उससे होता नहीं. प्रयत्न करेगी.  स्टीवेन्सन की उस कहानी के पात्र की तरह वह किन्हीं अदृश्य हाथों द्वारा संचालित होती है. डायरी में पेज के ऊपर लिखा आज का वाक्य है ‘निष्क्रियता मनुष्य के लिए अभिशाप है’ अभी नजर गयी उस पर, वह भी उसे समझा रहा है. आज सुबह कालेज जाते समय दो छोटे बच्चों की बातें कानों में पड़ गयीं, आपकी नाक कितनी लम्बी है, आपके बाल कितने घुंघराले हैं ! और वह बच्चियां .. आओ दीदी, झूल लो, फिर वह छोटी लड़की... यह लड़की हँसती जा रही है. बस में भिखारी बच्चा उसके घुटने को छूकर पैसे मांगने लगा ... यह सब बच्चे उसे कभी -कभी बहुत उदास कभी बहुत खुश नजर आते हैं. उसे बच्चों को देखकर लगता है, अभी स्पंदन है, धरती जीवित है... जीवन है ... सारिका का स्मृति विशेषांक मिला, पूरा तो नहीं पढ़ा है पर जितना पढ़ा बहुत अच्छा लगा. काफी दिनों बाद सारिका का साहित्यिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक रूप देखने को मिला. 



Thursday, June 4, 2020

सोहराब मोदी की फिल्म


अभी-अभी टीवी ओर एक विशाल सभा देखी और भाषण सुना. देश का मिजाज बदल रहा है, जनता बदल रही है. उसे भरोसा है कि उनका नेता उन्हें सही मार्ग पर पर ले जा रहा है. आने वाले चुनाव में बीजेपी पुनः जीतकर आएगी, मोदी जी का आत्मविश्वास यह बता रहा है. 'सबका साथ, सबका विकास' का उनका मन्त्र देश को नई ऊँचाइयों की ओर ले जायेगा. उसने तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी उस डायरी में कुछ अगले पन्ने खोले. 

कालेज जाने के लिए उसे बस का इंतजार करना होता था, जो कभी -कभी आती ही नहीं थी, इंतजार तब बोझिल लगने लगता था, उस समय यह राज नहीं पता था कि वर्तमान के क्षण में कैसे जिया जाता है. खाली खड़े-खड़े मन कभी अतीत और कभी भविष्य के चक्कर काटता और बेवजह ही थक जाता. दीदी उन दिनों घर के पास ही रहती थीं, कभी माँ और कभी वह रात्रि को उनके घर ही रह जाते, जीजाजी तब विदेश में थे. उस दिन कोहरा घना था, एक कुत्ता ज़मीन पर पड़ा अजीब सी आवाजें निकाल रहा था. एक बुढ़िया भी अक्सर उसे इस रास्ते पर मिलती थी पर उस दिन नहीं थी, शायद ठंड के कारण. कालेज से लौटते समय बस में बहुत भीड़ थी. एक महाशय संसार की झूठी, फरेब से भरी बातों और लोगों पर ठंडी साँस भर रहे थे. लोगों की हृदय हीनता और अनुसाशन हीनता पर भी पर स्वयं जनाब मूंगफली खा खाकर छिलके वहीं बस में ही फेंकते जा रहे थे. सड़क पर करते समय वह एक निजी बस से टकराते- टकराते बची. 

रात्रि का समय, पर नीरवता नहीं, माँ रेडियो पर नाटक सुन रही थीं जिसकी आवाजें उसके कमरे तक आ रही थीं. दोपहर को चाची जी आयी थीं उनके घर, उसे हँसी आती थी उनके बोलने के अंदाज पर, अब नहीं आती. जो जैसा है वैसा ही स्वीकारने की कला जो तब नहीं सीखी थी. गोर्की की एक कहानी उसने उस दिन पढ़ी थी, जिसमें ‘गरीब लोग’ का जिक्र जिस तरह हुआ है, उससे भी हँसी आ गयी, वह उसे खत भेजता है,  वह उसे भेजती है. वाह ! दोस्तोव्यस्की पर सारिका का विशेषांक पढ़कर कोफ़्त हुई थी उसे. व्हाइट नाइट्स का कितना असुंदर अनुवाद किया है, मात्र शब्दानुवाद.  मूल पढ़कर तो वह पागल ही हो गयी थी पर सारिका में पढ़ा तो उसका सौवां हिस्सा भी मजा नहीं आया. 

रविवार को सोहराब मोदी की मशहूर फिल्म 'पुकार' देखी सबके साथ.  इंसाफ प्रेम पर कुर्बान नहीं हो सकता. उसको ठुकरा सकता है. इंसाफ इंसाफ है, वह आँखें मींच कर चलता है, वह चेहरे नहीं पहचानता, यह तब की बात थी, गुजरे वक्त की, क्या आज भी ऐसा है ? आज तो पैसे के बल पर इंसाफ को खरीदा-बेचा जा सकता है, जाता है. 

जब आदमी अकेला अनुभव करता है, वह सृजन कर सकता है. जब उसका एकांत भंग कर दिया जाता है, तब वह सृजन नहीं कर सकता, क्योंकि अब वह प्रेम का अनुभव नहीं करता. सभी सृजन प्रेम पर आधारित हैं. - लू शुन, उसे इस लेखक के बारे में आज भी कुछ नहीं पता, उसका यह विचार कहीं पढ़ा तो लिख लिया। 

तीन दशकों से भी अधिक का सफर...  उनके विवाह की सालगिरह है. जून शहर से बाहर गए हैं. आज दोपहर एक अनोखे अतिथि को भोजन खिलाया. ज्ञान और नीति, दोनों पर एक कहानी लिखी जा सकती है. एक बिहार का है दूसरी असम की. दोनों की पहचान फेसबुक पर हुई और दोनों के भीतर आध्यात्मिक, सेवा और समर्पण की भावना प्रबल है. नायक पेड़ों को भी नाम से बुलाता है और जीवन में एक उच्च लक्ष्य को लेकर चल रहा है. नायिका उसके प्रति श्रद्धा का भाव रखती है, उसके लक्ष्य में पूरे मन से सहयोग कर रही है. अपने परिश्रम से कमाई धन राशि का एक विशाल भाग वह उसके ज्ञान मन्दिर में दान करना चाहती है. अपने परिवार व समाज का आक्षेप सहकर भी वह यह कार्य करना चाहती है. ऐसे लोग ही समाज को दिशा देने वाले होते हैं. 





Tuesday, June 2, 2020

सरसों के फूल



नया वर्ष ! आज सफाई करते समय उसे वर्षों पुरानी एक डायरी मिली, जब वह कालेज के अंतिम वर्ष में थी.  उसके पहले पन्ने पर लिखा है, आज प्रथम जनवरी है. कल रात्रि टीवी पर नए वर्ष के विशेष कार्यक्रम देखे सो वर्ष के प्रथम दिन ही देर से उठी. आज भी तो ऐसा ही हुआ. उस समय भी उसे लगा था कि एक ही दिन में पिछला वर्ष पुराना कैसा हो गया. वही आकाश, वही धरती बस मानव का बनाया हुआ सन ही तो बदला है. एक वर्ष गुजरता है तो उनकी उम्र का एक वर्ष और बढ़ गया, नहीं घट गया..., फिर भी नया साल मुबारक हो !  एक पुस्तक में एक पंक्ति पढ़ी थी उसने उस दिन, जैसे या जो कुछ आप करते हैं, वही आप हैं, पढ़कर चौंक गयी थी एकबारगी, पर बाद में लगा ठीक ही तो है किसी के मन में क्या है यह उसके कर्मों से ही तो जाहिर होता है. यदि मन में आदर्श भरे हों पर आचरण उनके अनुकूल न हो तो, आज भी वाचा, मनसा, कर्मणा एक होने की बात वह कहती है. जितना -जितना भाव, विचार तथा कर्मों में एकता होती जाएगी जीवन से दुःख विदा होते जायेंगे. 

दो जनवरी को मंझले भाई का जन्मदिन होता है, उस समय फूफाजी भी जीवित थे, दोनों के लिए अपने-अपने घरों में गाजर का हलवा बना करता था. आज भी यह प्रथा कायम है, सभी भाई-बहनों के जन्मदिन पर माँ एक विशेष व्यंजन अवश्य बनाती थीं. उन दिनों पिताजी उन्हें रविवार को गांव-खेत में घुमाने ले जाया करते थे. सर्दियों की उतरती हुई धूप में खेतों की पगडंडियों पर चलते हुए वे सब बेवजह ही ख़ुशी से भरे रहते थे. इतवार की फिल्म भी सब साथ बैठकर देखते थे, उस दिन सिकन्दर देखी थी, पृथ्वीराज कपूर सिकन्दर बने थे और सोहराब मोदी पोरस, दोनों बड़े कलाकार ! उन दिनों रेडियों पर कवि सम्मेलन आया करते थे, शिव कुमार की एक कविता की कुछ पंक्तियां भी उसने लिखी हैं - 

हवा बंधी पर नए बन्धन  में गुजर गयी पगडंडी से 
पीले-पीले चेहरे वाले हिला किये सरसों के फूल 
शायद किसी किशोरी की वेणी आमन्त्रित इन्हें करे 
देर रात तक जगते रहते यह छलिये सरसों के फूल
मौसम के अपशब्द सहे अपमान सहा हँसते-हँसते
खेतों के सुकरात बने खूब जिए सरसों के फूल !

दस दिन बाद कालेज खुलना था, गयी भी, किन्तु हाकी मैच जीतने की ख़ुशी में बन्द था. कम्पनी बाग़ के रास्ते से बेरी बाग चली गयी. कम्पनी बाग़ बिल्कुल वैसा ही लगा जैसा उस समय से दस वर्ष पहले था, उसके बचपन की कितनी ही संध्याएं वहाँ गुजरी हैं. वहां एक छोटी लड़की से भेंट हुई, कितनी प्यारी और समझदार ! उस नन्ही बच्ची में सौंदर्य की सराहना करने की शक्ति है, हवा में भागते हवा से खेलते बोली, हम कबूतरों की तरह उड़ रहे हैं. वह नदी को सराह सकती थी, उसने ठंडी हवा और उसकी मित्रता को  एक वाक्य कहा - तुम अच्छी लगती हो ! आज भी याद  करे तो उस सुबह के दृश्य उसकी आँखोँ  के सामने आ जाते हैं. अगले पन्ने पर भी किसी कविता की चार पंक्तियाँ लिखी हैं -

आँखें पगडंडी पर रख दीं दिया रख दिया देहरी पर 
तुमने मेरे इंतजार में लट में क्यों उलझाई रात 
पलकें हैं बोझिल-बोझिल और चेहरे पर सिंदूर लगा 
सुबह पूछती है सूरज से बोलो कहाँ बितायी रात !