आज इतवार था, सुबह के सभी कार्य, प्रातः भ्रमण, योग आदि बड़े इत्मीनान से किये, बिना किसी जल्दबाजी के. नाश्ते में अप्पम बनाये ढेर सारी हरी सब्जियां डालकर. बगिया में हरे प्याज, गाजर, गोभी आदि हो रही हैं. यह अंतिम वर्ष है जब वे सब्जियां उगा रहे हैं, अगले वर्ष से महानगर में सम्भवतः फूल ही उगा पाएंगे या सजाने के लिए गमलों में कुछ हरे पौधे. दोपहर को बच्चों को योग सिखाया साथ ही गणित भी, उन्हें बहुत आनंद आया. एक लड़का बहुत उदास था, अगली कक्षा में उसका दाखिला अभी तक नहीं हुआ है, बच्चों के लिए स्कूल जाना कितना जरूरी है , उससे बात करके लगा. एक बच्चे का पैर सूजा हुआ था, उसे अभी तक इलाज नहीं मिला, माता-पिता को सन्तान के प्रति ज्यादा सजग होना चाहिए पर... शाम को एक बाल फिल्म का एक अंश देखा. एक किशोरी अपनी सखियों के साथ सागर तट पर जाती है पर घर पर बताकर नहीं आयी है, सबके माँ-पिता कुशंकाएँ करने लगते हैं. मन कितनी जल्दी भयभीत हो जाता है, आत्मा अभय है सदा एक सी !
अभी वे रात्रि भ्रमण से लौटे, पिटूनिया के फूलों का लाल रंग हल्के प्रकाश में सुंदर लग रहा था. आज दोपहर छोटी बहन से वीडियो कॉल पर बात हुई. वह मेथी काट रही थी, वीडियो कॉल पर बात करो तो लगता ही नहीं कि हजारों मील की दूरी है, उसका घर जैसे पड़ोस में आ गया हो. बताया, उसकी छोटी बिटिया विदेश पहुँच गयी है. बहनोई विदेश जाने वाले हैं, उनके लिए लिखी कविता का अंतिम भाग समझ में नन्हीं आया, ऐसा बताया. परमात्मा को भीतर या बाहर अनुभव किये बिना समर्पण का गीत गाया नहीं जाता. शाम को भगवद्गीता के एक श्लोक का भावार्थ सुना, आचार्य प्रद्युम्न कितनी अच्छी तरह भक्ति भाव में डूबकर गीता की व्याख्या करते हैं. कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग को बहुत सरलता से परिभाषित कर देते हैं. उसके पहले प्रेसीडेंट से मिलने गयी, उनका गला खराब है, पर क्लब का काम करने का उनका उत्साह देखते ही बनता है. उनके लिए विदाई कविता लिखनी है. दोपहर को पावर ऑफ़ नाउ का एक और अध्याय पढ़ा.उनके भीतर एक छाया शरीर भी होता है जो पीड़ा से ही पोषित होता है. पुराने नकारात्मक संस्कार तथा घटनाएं जब कभी जागृत हो जाती हैं तब वह शरीर मुखर हो जाता है और वे स्वयं को भूल जाते हैं, अपने स्वरूप से डिग जाते हैं. उसके भीतर भी हीन भावना, ईर्ष्या, अहंकार तथा दम्भ के रूप में पुराने संस्कार हैं, जो अचेत होने पर उभर आते हैं. दुबई से वापसी की यात्रा में कुछ पलों के लिए कैसी विवेकहीनता छा गयी थी, जैसे वह वह नहीं थी, कोई अन्य ही था. चाय के प्रति आसक्ति भी इसी छाया शरीर की मांग पर टिकी है, आत्मा को कोई अभाव नहीं है . उसे किसी सुख के लिए किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति पर निर्भर होने की जरा भी आवश्यकता नहीं है. आज मकर संक्रांति है, कल वे पासीघाट जा रहे हैं, अरुणाचल प्रदेश में स्थित यह स्थान सेंटरों के लिए प्रसिद्ध है. कल से कुम्भ भी आरम्भ हो रहा है.
उसने फिर उस वर्षों पूर्व की डायरी का अगला पन्ना खोला, कुछ कविताएं कालेज की पत्रिका में छपने के लिए दीं थीं उसी दिन. एक कविता तो अवश्य छपेगी उनमें से ऐसा भी लिखा था. अगले पन्नों पर वे कविताएं थी जो रेडियो पर सुने कवि सम्मेलन से लिखी थीं,
जिंदगी जैसे शिकन रुमाल की
एक नन्हीं सी लहर है ताल की
जिंदगी है एक चिड़िया डाल की
देखते ही देखते उड़ जाएगी
बादलों में छिप गयी वह धूप है
घूँघटों में कैद गोरा रूप है
एक गिरते फूल का मकरन्द है
एक झूठे प्यार की सौगन्ध है
आंसुओं के नीर में बस जाएगी
कुंवर बेचैन
जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा
हर आँधी का उत्तर हो तुम, तुमने नहीं विचारा
.............
सोचो तुमने इतने दिन में कितनी बार हुंकारा
बाल कवि बैरागी
है महानगर में शोर शोर में महानगर
नागरिक नहीं रहती है भीड़ यहाँ,
ये पंक्तियाँ किसकी हैं, नहीं लिखा है.
स्वागत व आभार !
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