Friday, November 18, 2016

घना घना सा जंगल


आज सुबह फिर किसी ने कहा, अब अलार्म बजेगा और तत्क्षण बजा, कौन है वह जो सुबह-सुबह उसे चेता जाता है. रात को स्वप्न में जंगल देखा, भीगा घना जंगल, उन्हें उसमें रेंग कर जाना पड़ रहा  था. कितना अद्भुत है स्वप्न लोक और यह जागृत अवस्था का लोक भी ज्ञानियों के लिए स्वप्न से बढ़कर नहीं.  उस दिन भी एक अजीब सा स्वप्न देखा था, अपने ही तन के एक अंग को कटोरा बनाकर उसमें भोजन करते हुए और फिर एक सखी का दरवाजे से झांक कर छि छि कहते तथा स्वयं को तो क्या हुआ कहते हुए, फिर नन्हे का आना..उनका अचेतन मन एक अजीब गोरखधन्धा है. भीतर न जाने कितने जन्मों की कितनी गांठें पड़ी हैं, आत्मज्ञान इन्हीं गांठों को खोलने का काम करता है. दरअसल साधना का आरम्भ होता है आत्मज्ञान के पश्चात !

कल उसे प्रेरणा हुई है कि जीवन यात्रा लिखे डायरी के पन्नों के माध्यम से तथा एक नया ब्लॉग भी आरम्भ करे आध्यात्मिक यात्रा पर, जिसमें प्रेरणादायक विचार लिखेगी. आज ही दोनों का आरम्भ करेगी, आज शुभ दिन है, अब लेखन ही उसके जीवन का केंद्र होगा. वही उसकी साधना होगी और वही मोक्ष भी लायेगा. योग आदि तो रहेंगे ही. हर चीज का एक वक्त होता है. जीवन ने उसे जो दिया है, उसे जाने से पहले लौटा दे यही इस लेखन का अभिप्राय है. अहम का विसर्जन हो और सेवा का कुछ कार्य भी हो. परमात्मा की बात है तो परमात्मा के लिए ही है, वही उसके मार्गदर्शक हैं, सद्गुरू और परमात्मा एक ही हैं और उसकी अंतरात्मा भी. जून भी आजकल उसकी कविताओं में रूचि लेने लगे हैं. प्रकृति का सौन्दर्य उन्हें भी लुभाने लगा है. हरी घास पर लेटने में उन्हें कोई डर नहीं लगता..यह भी तो चमत्कार है !


चर्चामंच पर उसकी दो कविताएँ आयी हैं. दो नये ब्लॉग पढ़े आज, इस दुनिया में परमात्मा के भक्तों की कमी नहीं है, जो भी इस रास्ते पर चलता है उसे अनंत प्रेम मिल जाता है. जून आज बैंगलोर गये हैं. अब तक तो नन्हे से भेंट हो गयी होगी. वह वहाँ फ़्लैट लेने की सोच रहे हैं. आदमी जीवन भर जो कमाता है, ईंट-पत्थरों के मकान में लगा देता है. उनके भविष्य में यह काम आयेगा, रिटायर्मेंट के बाद वे बैंगलोर में ही रहने वाले हैं. भविष्य ही बतायेगा क्या होने वाला है, इन्सान तो योजनायें ही बनता है. टीवी पर थाईलैंड में हो रही मुरारी बापू की कथा का सीधा प्रसारण आ रहा है. कल रात को फिर एक अनोखा स्वप्न देखा. जैसे किसी ने उसे देह के बाहर कर दिया हो, आवेशित कर दिया हो या पीछे से पकड़ लिया हो और हवा में उड़ने का अनुभव करा रहा हो. उसे लग रहा था कि देह मृत है या हो जाएगी और वह पृथक है, पर कोई भय नहीं महसूस हो रहा था. बाद में नींद खुल गयी पर तब भी कुछ प्रतिबिम्ब नेत्रों के सामने आते रहे. जागते हुए भी वे स्वप्न देखते रहते हैं, वास्तव में वे कभी जगे ही नहीं, एक गहरी नींद में सोये हैं, वे एक सम्मोहन का अनुभव कर रहे हैं और उसी कारण इतने दुःख हैं. जो जैसा है वैसा न देखकर वे अपने मन को ही आरोपित कर देते  हैं, मन जो अभिमान और दुःख का पोषक है. इस मोह को तोडना ही साधक का उद्देश्य है.   

Wednesday, November 16, 2016

मूल से उगा फूल


दस बजे हैं, मौसम गर्म है. परसों शाम को मेहमानों के आने से पूर्व अंततः उसके मन ने विद्रोह कर दिया और जून से उसने उनके उस दिन के व्यवहार की शिकायत कर दी. विवाद का कोई भी परिणाम नहीं होता, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कल सुबह हुई बातचीत से निकला. खैर, मन हल्का है. परमात्मा की कृपा से सद्गुरू मिले, सद्गुरू की कृपा से ज्ञान और उस ज्ञान को टिकने में साधना का सहयोग रहा फिर क्यों यह बाहर के अशांत वातावरण ने भीतर अशांति पैदा की. माँ की हालत बिगड़ती जा रही है पर पिताजी व जून के भीतर दुःख का बढ़ते जाना घर के माहौल को अशांत कर रहा है. पहले जिन बातों को वे हँसी में उड़ा देते थे अब उन्हीं पर झुंझला जाते हैं. उसने ‘श्रद्धा सुमन’ ब्लॉग में बहुत दिनों से कोई कविता पोस्ट नहीं की ह. एक नयी कविता का भाव भीतर भगवद गीता पढ़ते-पढ़ते प्रकट हुआ है कि परमात्मा को पाने के लिए कितने जोड़-तोड़ किये, उपाय किये पर जब तक करने वाला रहा तब तक वे सब व्यर्थ ही सिद्ध हुए ! गुरूजी के लिए कविता लिख रही है, उनका जन्मदिन आने वाला है, परसों ही तो है.

आज का ध्यान एक बड़ी सिखावन दे गया. वे जो भी भाव अन्यों के कारण प्रकट करते हैं, उनका स्रोत उनके ही भीतर होता है, वे ही कारण हैं, बाहर तो बस खूंटियां होती हैं, जिनपर वे अपने मन की भावनाओं को टांग देते हैं. उनका प्रेम या उनकी घृणा उनकी निज की सम्पत्ति है. आज सुबह एक स्वप्न देखकर उठी थी पर याद नहीं है. परसों रात को उड़ने वाला स्वप्न देखा था जिसकी स्मृति सुबह बनी हुई थी.

कल भी वर्षा हुई ! आज सुंदर शब्द सुने जो भीतर अभी भी गूँज रहे हैं. जग की आपाधापी में कहीं चुक न जाये संवेदना उर की... अंतर भीगा हो, वाणी में ओज हो और सहज ही सबको साथ लेकर चलने की कला हो..कलाकार की कला तभी फलती-फूलती है. कला का अभिमान भीतर की संवेदना को हर लेता है ! मार्ग में यदि कांटे हों तो कोई अनदेखा कर देता है, कोई खुद को बचा कर निकल जाता है पर संवेदनशील कांटे बीनता है और राह को अन्यों के लिए कंटक विहीन बना देता है ! जो सहनशील होगा वही अपनी कला को विकसित कर सकता है, सृजन शील हो जो वही कलाकार नित नया सृजन करता है. हर दिन कोई नया विचार, कोई नया गीत रचे मन.. प्रकृति ज्यों नित नई है, सनातन मूल्यों को पकड़ कर नया सृजन हो वैसे ही जैसे मूल को पकड़ कर नया फूल खिलता है.. स्वप्नशील हो अंतर उसका, एक शिव संकल्प जलता रहे भीतर जो सदा प्रेरित करे..

कल रात स्वप्न में मुस्लिम समाज को देखा, कोई जलसा हो रहा है, मुस्लिमों का इतिहास बताया जा रहा है, वह भी उसी हुजूम का हिस्सा है. कुछ दिन पहले भी कई मुस्लिम औरतों को, जो सफेद बुर्के पहने थीं, देखा था. शायद कोई पिछला जन्म रहा हो. स्वप्न में एक सखी को भी देखा. मन कितनी गहरी याद भीतर छिपाए रखता है. वे किसी के लिए कुछ भी करते हैं तो उसके पीछे यही भावना होती है कि लोग जानें. अहम की तुष्टि के लिए ही वे सारे कर्म करते हैं, ऊपर से भले यह दिखाई न पड़े.



Tuesday, November 15, 2016

सूरज और बादल


अप्रैल का अंतिम दिन ! देखते-देखते नये वर्ष के चार माह गुजर गये और गुजर गया उनके जीवन का का भी एक और हिस्सा. एक दिन सारी सांसें गुजर जाएँगी और वे आकाश में स्थित होकर देखेंगे अपने ही तन को निस्पंद ! उससे पहले ही यदि संसार को कुछ देना है तो दे देना चाहिए कुछ और गीत कुछ और कविताएँ ! ! मार्च माह की कविताओं में भी उसकी कविता सातवें पायदान पर आयी हुई, ‘पिता’ नामकी कविता अभी अगले तीन हफ्ते तक कहीं प्रकाशित नहीं करनी है. आज जून ऑफिस में ही लंच लेने वाले हैं. मुख्य अधिकारी का विदाई समारोह है. उन्होंने काफी कलात्मक भाषा में विदाई भाषण लिखा है. नन्हा पिछली बार एक किताब लाया था जिसमें साईं बाबा के किसी भक्त ने उनके साथ घटे अपने अनुभवों को लिखा है, आज कुछ देर पढ़ी.

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, गले में दर्द था परसों शाम से ही. आज काफी ठीक है, लेकिन नाक बंद है. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है तभी जुकाम हुआ या फिर यह किसी कर्म का परिणाम है. यदि भीतर प्रश्न जिन्दा रहते हैं तो समय-समय पर नये विचार आते हैं. यदि समझा-बुझा कर मन को शांत कर दिया और भीतर तक पहुंचे नहीं तो मार्ग अवरुद्ध हो गया, उदासीन होकर बैठ जाने से रास्ता मिलता नहीं.

कल चार तारीख थी, बच्चों को पढ़ाते समय उसने तीन लिखी, उन्होंने भी नहीं बताया, जबकि वे स्कूल भी गये थे. सोये-सोये ही वे सारी उम्र गुजार देते हैं, आखिर कब होगा जागरण ? आज मौसम गर्म है. मई में यही स्वाभाविक ही है. गले में चुभन है सो चावल खाने का मन नहीं है. योग वशिष्ठ में पढ़ा कि जब भोजन पचता नहीं तब व्याधि होती है. तनाव होने से भोजन नहीं पचता. महीनों से भोजन के समय वातावरण बोझिल हो जाता है, माँ कुछ खाना नहीं चाहतीं तो कभी पिताजी झुंझला जाते हैं कभी जून. आत्मा है ऐसा भान हर समय बना नहीं रहता, रहे तो भी मन, बुद्धि, शरीर सब अपनी जगह हैं जो प्रकृति के अनुसार चलेंगे. आज उसे लग रहा है अवश्य ही साधना में कोई गहरी भूल हो रही है अभी तक परमात्मा की कृपा को पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर पायी है. अब भी लगता है कुछ नहीं जानती !

उस साधक की लिखी किताब पढ़कर काफी कुछ स्पष्ट होता जा रहा है, कितने सोये रहते हैं वे, आसक्ति, राग व द्वेष के शिकार होते हैं और सोचते हैं कि सब जानते हैं. अपने अज्ञान का ज्ञान होना ही वास्तव में ज्ञान की पहली सीढ़ी है. मन कैसा धुला-धुला सा लग रहा है, पर अभी भी कितनी परतें छुपी होंगी, दबी होंगी. सद्गुरू दूर रहकर भी शिष्य को सन्मार्ग पर लाने का कार्य करते रहते हैं. सद्गुरू का प्रेम अनंत है, वे उन्हें क्या प्रेम करेंगे, उनके पास एक बूंद भी नहीं जो है भी तो उसमें न जाने कितनी वासनाएं घुली-मिली हैं. परमात्मा को जो अर्पित होगा वह पावन होगा, पर परमात्मा कृपालु है, वह कोई भेद करना जनता ही नहीं, जो उसे पुकारे उसी पर कृपा लुटाता है !

तन स्वस्थ हो तो मन भी स्वस्थ रहता है. आज एक गर्मी भरा दिन है, बाहर धूप बहुत तेज है. चमचमाता हुआ सूर्य जैसे गुस्सा गया है, बादलों को चिढ़ा रहा है कि अब देखें वे उसे ढक के...उधर बादल भी जब मौका देखेंगे बदला लेगें ही. पिताजी बाहर बैठे हैं, अख़बार पढ़ चुके हैं, चुपचाप बैठे हैं, भीतर कमरे में अपनी कुर्सी पर माँ बैठी हैं जैसे उनकी दुनिया से बाकी दुनिया जुदा है, वैसे ही बाकी दुनिया से उनके बच्चों की दुनिया जुदा है. कल नन्हे को साईं बाबा की बात कही तो वह उन्हें जादूगर कह रहा था. भगवान से बड़ा कोई जादूगर है क्या ? परमात्मा की ओर जो ले जाये वह जादूगर कृष्ण भी तो था.. 


Thursday, November 10, 2016

ए राजा का महल


कल टीवी पर ए.राजा का महल देखा जो चेन्नई में स्थित है. कितनी शरम की बात है की देश का पैसा राजनीतिज्ञ अपने ऐशोआराम के लिए इस तरह लुटाते हैं. आज सुबह दीदी से स्काइप पर बात हुई, उन्हें बीहू का वीडियो मिल गया है. कल से एक नया विद्यार्थी पढ़ने आएगा, वर्षों पहले उससे मिली थी, जब वह छोटा सा था और उसकी संगीत अध्यापिका ने उसे गोद लिया  था. कई वर्ष बाहर रहने के बाद वे लोग दुबारा यहाँ आ गये हैं. वर्षा पर लिखी उसकी कविता पर कई टिप्पणियाँ आयी हैं. नन्हे के एक तिब्बती मित्र ने जो एक बार चार सप्ताह के लिए यह रहने आया था, उसके ब्लॉग को पढ़ना शुरू किया है. उसके लिए कविता लिखी थी उसने जब वह आया था. उसने बौद्ध धर्म पर दो पुस्तकें भी भेजी थीं. कविता मन के वृक्ष पर खिला फूल है, जिसकी खुशबू सब ओर फ़ैल जाती है यदि कोई लेना चाहे तो. स्वान्तः सुखाय लिखी गयी कविता भी यदि औरों को सुख दे जाये तो इसमें कुछ भी गलत नहीं, हाँ, अहंकार से बचना चाहिए क्योंकि जो लिखा गया है वह भी किसी ऐसे स्रोत से आ रहा है जो सबका है, कवि माध्यम होता है. सहज, निर्दोष आनन्द का सृजन ही कवि का उद्देश्य है, हरेक का नहीं हो सकता क्योंकि जिसने अभी भीतर के आनन्द को स्वयं ही नहीं पाया है तो वह उसे बांटेगा कैसे ? पिताजी का मेल आया है, आखिर वे भी कम्प्यूटर का थोड़ा-बहुत इस्तेमाल करना सीख ही गये हैं. कल गुड फ्राइडे है, उसे इसके बारे में भी जानकारी लेनी है, फिर  कुछ लिखना भी है, उसने सोचा दोपहर को पढ़ेगी. लंच में आज ‘कर्ड-राइस’ बनाये.

पिताजी को कल साईकिल चलते समय चोट लग गयी. जून उन्हें लेकर अस्पताल गये हैं. माली की साईकिल लेकर चलाने निकले थे, शुरू में ही गिर पड़े फिर भी बैठकर एक चक्कर लगा कर आये और कहने लगे अपनी खुद की साईकिल खरीदेंगे. मानव वृद्ध हो जाता है पर इसे स्वीकारना नहीं चाहता. अंतिम श्वास तक भी उसके भीतर की जिजीविषा विश्राम नहीं लेने देती. ‘जब तक श्वास तब तक आस’..माँ इसके बिलकुल विपरीत हैं, वह कुछ ज्यादा ही विश्राम कर रही हैं. उन बुजुर्ग आंटी को भी फिर से चोट लग गयी है. कल रात जब उनके बेटा-बहू सब पार्टी में थे. वह टीवी देखते-देखते कुर्सी पर ही सो गयीं, वे जब लौटे तो उन्हें उठाकर भोजन खिलाया और हाथ धोने जब बरामदे में गयीं तो गिर गयीं. नींद की दवा का असर रहा होगा. वृद्धावस्था में कितना दुःख झेलना पड़ता है, ऋषि-मुनि ऐसे ही तो नहीं कह गये हैं. कल नन्हे ने फोन पर बताया, उसके कालेज की एक मित्र की माँ का हाथ मिक्सर में कट गया. जीवन कितना विचित्र है, यहाँ किसी भी पल कुछ भी घट सकता है.  


आज सुबह वे टहलने गये तो बातों का सिलसिला व्यर्थ ही चल पड़ा. सुबह-सुबह मन खाली होना चाहिए पर...खैर..मन का असली रूप भी सामने आ गया. अभी भी अहंता और ममता सताते हैं. आत्मा में रहने पर वे तत्क्षण विदा तो हो जाते हैं पर नुकसान तो हो ही चुका होता है. एक असमिया परिचिता का फोन आया वे हिंदी में कविता पाठ करना चाहती हैं, उसमें कुछ मदद चाहिए, उसने भी अभ्यास किया, याद तो हो गयी है फिर भी अपने साथ रखना जरूरी है, क्लब में काव्य पाठ प्रतियोगिता है.  

Tuesday, November 8, 2016

बीहू नृत्य


कल शाम को इतने वर्षों में उनके यहाँ ‘बीहू नृत्य’ का आयोजन हुआ. ‘मृणाल ज्योति’ के ग्रुप ने मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया. कुछ देर के लिए उसने भी भाग लिया. जून ने पूरे मन से इसमें सहयोग दिया. पिताजी ने भी बहुत सहायता की. उनका कर्मठ स्वभाव देखकर बहुत आश्चर्य होता है. इस उम्र में भी उनमें युवाओं से बढ़कर उत्साह व ऊर्जा है. सुबह टहलने जाते हैं तो फूल उठा लाते हैं, बगीचे से आंवले ले आते हैं. जून ने कल भोजन परोसने का कार्य किया. मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल तथा उनके पति दोनों बहुत खुश लग रहे थे. नूना और जून को भी बहुत अच्छा लगा. उसका नया फोन एकाएक चलते-चलते बंद हो गया है. नन्हे का नंबर उसे याद नहीं है, लैंड लाइन से बात कर ले. वह वापस चला गया है. अब जून के आने पर ही बात होगी. आज कई दिनों के बाद व्यायाम करने बैठी तो देह साथ नहीं दे रही थी, एकाध दिन में ठीक हो जाएगी. आज हनुमान जयंती है, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा. कल से वैसाख का आरम्भ है. दस बजे हैं, बाहर धूप तेज है पर भीतर कितनी ठंडक है, ऐसे ही उनका मन बाहर कितना अशांत है पर भीतर कितन ठहरा हुआ है. वहाँ तक जाने का मार्ग जिसने खोज लिया वही चैन पा सकता है. पिछले दिनों कितना कुछ घटा, लेकिन भीतर कहीं यह विश्वास था कि सब ठीक है. नन्हा सूफिज्म पर पुस्तक ले गया है. इसका अर्थ है कि परमात्मा के प्रति उसके अंतर में आकर्षण तो जग ही चुका है, वह ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता. उसका संग यदि सुधर जाये तो यह काम और जल्दी हो सकता है, लेकिन हर कार्य अपने समय पर ही होता है. आज चर्चामंच पर उसकी कविता पोस्ट हुई है, वह भी ‘उसी’ की याद दिलाती है. कई ब्लॉग पढ़े, एकाध अच्छे भी लगे, शब्दों का जाल ही हैं ज्यादातर तो, जो मौन को उपजा दें वही शब्द सार्थक हैं. गुरूजी को भी सुना, उन्होंने कहा धर्म व राजनीति दोनों में आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया जाए, सभी धर्मों के लोग एक दूसरे से परिचित हों. अभी कुछ देर में बच्चे पढ़ने के लिए आने वाले हैं. माँ जो अपनी कुर्सी से उठती नहीं हैं, भय के कारण पीछे के आंगन का दरवाजा बंद आयी हैं.  

दस बजे हैं सुबह के, रात से ही वर्षा की झड़ी लगी है. दिन में अंधकार छा गया है. सुबह बड़े भाई-भाभी से बात की, भतीजी ने डांस क्लास ज्वाइन की है, साथ ही नारायण कोचिंग भी. आजकल बच्चे सभी कुछ एक साथ करना चाहते हैं. उसने ब्लॉग पर बीहू की तस्वीरें डाली हैं. दीदी ने प्रतिक्रिया भेजी है, और वीडियो की फरमाइश की है. कल शाम को जून की बात नहीं मानी तो उदास हो गये. मानव अपने ही मन द्वारा छला जाता है..इस क्षण में उसके भीतर एक प्रतीक्षा है, भीतर बहुत कुछ है जो प्रकट होना चाहता है.

आज भी वही कल का सा समय है, पर अब बादल छंटने लगे हैं. आज वर्षा पर लिखी एक नई कविता ब्लॉग पर पोस्ट करनी है, यहाँ तो पावस का आरम्भ हो ही चुका है. कुछ देर पहले माँ पूछती हुई आयीं, खाना नहीं बनायी हो, आजकल वह ज्यादा बात नहीं करती हैं, पर आज उन्हें बात करते देखकर अच्छा लगा. जब उसने पूछा, आप खायेंगी, तो पहले कुछ नहीं बोलीं फिर अपना ही प्रश्न दोहराने लगीं, उसने अब थोड़ा ऊंची आवाज में जवाब दिया, पर अगले ही पल लगा पिताजी को अच्छा नहीं लगा होगा. फिर वही वाणी का दोष..या अधैर्य का संस्कार. आज सुबह का स्वप्न भी जगाने के लिए था, किसी बच्ची के जन्मदिन पर जून एक बहुत ही सामान्य सा स्कूल बैग लाये हैं. उसके सामने ही वह खोलती है और कहती है, इतना खराब गिफ्ट है, वह शरम के मारे कुछ बोल नहीं रही है फिर हाथ बढ़ाती है और नींद टूट जाती है. वर्षा हो रही थी सो टहलने नहीं गये वे, प्राणायाम किया, एक आचार्य को सुना, सत्यार्थ प्रकाश के बारे में वे बता रहे थे.        


Sunday, November 6, 2016

आंधी-पानी और आंवले


नन्हा उठा और उससे पूछने लगा, क्या सुबह उसने उन्हें बहुत परेशान किया ? उसके जीवन में उनका क्या स्थान है, यह तो वही जानता है, पर उनके जीवन की वह आशा है, जब उसने बुद्धा की कहानी भेजी तब वे समझे थे कि वह भी सत्य की खोज में लगा है, सजगता इसके लिए पहली आवश्यकता है पर मादक द्रव्य तो चेतन मन को ही अचेत कर देता है, कुंद कर देता है, सोचने-समझने की शक्ति को ही नष्ट कर देता है. इस समय वह काम कर रहा है, अभी भोजन भी नहीं किया है, रात को जो फोटो खींचे उन्हें देखकर उसे लगता है, क्यों आतुर है आज की पीढ़ी इस जहर को अपने भीतर उतारने के लिए. बड़े शहरों का असर है, काम का तनाव है या पता नहीं क्या है. वे समझने में असमर्थ हैं, पर उनके पास एक सम्पत्ति है, विश्वास की सम्पत्ति, परमात्मा पर अखंड विश्वास. वह परमात्मा नन्हे के साथ भी है, वही उसे सन्मार्ग पर ले जाएगा !   

उस दिन जो स्वप्न देखा था वह आज की घटना की ओर इंगित कर रहा था. अब भी कितना स्पष्ट है, नन्हा दौड़ता हुआ आ रहा है, साथ ही एक भद्दा सा पशु बड़े आकार का, वह उसे कहती है बचो, बचो.. पर वे दोनों भिड़ जाते हैं, नन्हा भाग रहा है रेलिंग पर आ गया है, आगे कुआँ पीछे खाई वाली स्थिति है. नीचे पानी से भरा एक ड्रम है वह कूद जाता है. वह ऊपर से चिल्ला रही है, नन्हा, नन्हा..आखिरी आवाज तक जून भी आ जाते हैं, वे दोनों ऊपर से देखते हैं, नन्हा पानी में है. तभी नींद खुल जाती है. आज उसने कहा कि माता-पिता होने के नाते उन्होंने उसे कुछ नहीं बताया जीवन के बारे में. कैसे लोग अच्छे होते हैं, कैसे बुरे होते हैं. वह जिस संगति में है या कालेज में था..उसी का परिणाम है कि..बच्चों को माँ-पिता से शिकायतें होती ही हैं और आज के माहौल में, इस उम्र में यह सब करना भी स्वाभाविक है. आज वातावरण ही ऐसा दूषित हो गया है. लेकिन उन्हें उस पर भरोसा था, उसकी बुद्धिमता पर, उसके दिल पर, उसके विचारों पर, उसमें अवश्य ठेस लगी है, पर हर व्यक्ति अपना भाग्य अपने साथ लेकर आता है. गुण ही गुणों में बरत रहे हैं.

आज बैसाखी है. कल रात ही उसने ब्लॉग पर कल दोपहर लिखी छोटी सी कविता पोस्ट की थी. मौसम खुशगवार है, ठंडी हवा और गगन पर बादल..वह बाहर झूले पर बैठी है. रात को आंधी-पानी के कारण ढेरों आंवले जमीन पर गिर गये थे, जिन्हें पिताजी ने उठाकर इकट्ठा कर लिया है और अब अख़बार पढ़ रहे हैं. जून बाजार जाने के लिए तैयार हैं. नन्हा अपना काम कर रहा है, माँ अपनी कुर्सी रोज की तरह बैठी हैं. नैनी आज देर से आयी, अभी तक काम कर रही है. कल वह हायर सेकेंडरी स्कल गयी, मृणाल ज्योति के बच्चों ने वहाँ बीहू नृत्य प्रस्तुत किया. दो दिन बाद वे उनके यहाँ आयेंगे. नन्हे को उसने बताया कि उन सबके भीतर ऊर्जा का स्रोत है, जो कभी समाप्त नहीं होता जो..  


Thursday, November 3, 2016

असमिया साड़ी के डिजाईन


दोपहर के तीन बजे हैं, कुछ देर पूर्व चार सखियों से एक-एक कर फोन पर बात की. एक का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. एक की सासुमाँ को, गिर जाने से, सिर में थोड़ी चोट लग गयी है, उन्हें अस्पताल जाना पड़ा. कल नन्हा आ रहा है, जून शाम को मिठाई बनायेंगे व गुझिया बनाने में उसकी मदद करेंगे. उनके भीतर भी एक माँ है. कल रात एक विचित्र स्वप्न देखा, पर देखते समय भी यह भास हो रहा था कि यह स्वप्न है. नन्हा एक काले-कलूटे बड़े से पशु से लड़ रहा है फिर ऊपर से छलांग लगाता है, पता नहीं इस स्वप्न का क्या अर्थ है पर उस समय यह भी समझ में आया कि उसे भयभीत नहीं करना है, व्यर्थ ही उपदेश नहीं देने हैं. परमात्मा उनमें से हरेक के साथ हर पल है और हरेक को भीतर से जगा ही रहा है. उन्हें  स्वयं को सजग रखना है, बस अपने भीतर के दीपक को जलाये रखना है, बुझने से रोकना है. वे यदि खुद को समझ पाए तो सबको समझने में समर्थ होंगे. सद्गुरू, आत्मा और परमात्मा एक ही सत्ता के नाम हैं. मन से परे जहाँ केवल मौन है, कोई साक्षी बनकर सब कुछ जान रहा है, वहाँ रहकर यदि वे जगत को देखें तो सब कुछ खेल ही जान पड़ता है. वे दृश्य में उलझ जाते हैं तभी भीतर विषाद का जन्म होता है. मन ही अँधेरा है, मन ही दृश्य है, मन ही बंधन है, वे दुधारी तलवार की तरह हैं, द्विमुखी तीर की तरह हैं, चाहे तो साक्षी में रहें, चाहें तो दृश्य में रहें. जीवन उन्हें एक अवसर दे रहा है महाजीवन को पाने का. भीतर अनंत प्रेम है उसे जग में लुटाने का, भीतर अनंत शांति है, उसे जग में बहाने का और भीतर अनंत आनंद है उसे जहाँ में बिखराने का, इसके अलावा जीवन का और कोई उद्देश्य हो भी सकता है ? उनका जीवन ही उनका संदेश है, यह बापू ने कहा था और यही उसका भी अभिप्राय है !

रात को बहुत मजेदार स्वप्न देखा. शायद हाथ के दबाव से श्वास रुक रही थी. पहले देखा पानी में तैर कर वे शैवालों को पार करते हुए ब्रह्मपुत्र नदी में जाते हैं. रास्ते में सुंदर उपवन भी थे. वापसी में नदी की तलहटी में रेत पर सुंदर डिजाईन बने हुए थे. असमिया साड़ी के डिजाईन रंगीन रेत से बने थे, फिर क्या हुआ कि शैवाल वस्त्र बन कर उसके तन पर लिपट गये और वह जल से बाहर आ गयी, फिर आंतकवादी पीछे पड़ गये. वे कितने अलग-अलग तरीकों से बचाव की कोशिश करती है. एक सब्जी वाले के ठेले से छोटे-छोटे भार उठाकर फेंकती है पर हाथ में जोर नहीं था. फिर एक बैंडवाले को देखकर बोलती है, पुलिस..पुलिस, पर वह छोटे कद का बैंडवाला भी देखकर आश्चर्य जाहिर करता है, उसे खुद ही हँसी आ जाती है और नींद खुल जाती है.    


कल नन्हा अपने मित्र की मंगनी समारोह में शामिल होने गया था. सुबह वे टहलने गये तो उसे लौटते देखा. जिस हालत में उसे देखा उसकी कभी कल्पना नहीं की थी. इसलिये जैसी प्रतिक्रिया उन्होंने की वह स्वाभाविक ही है. अभी सुबह ही है पर इस समय दोपहर जैसी धूप निकली है, उसका कमरा बंद है, शायद सो रहा होगा क्योंकि उसकी आवाज का कोई जवाब नहीं दिया. वह कैमरा वहीं छोड़ आया था, उसके मित्र ने भिजवा दिया है. सुबह वह एक ही बात को बार-बार बोल रहा था, जैसे जून के दफ्तर के ड्राइवर को उसने बोलते सुना है. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वह पिछले पांच वर्षों से कई बार इस हालत तक पहुंच चुका होगा. जून बहुत पहले क्लब में कभी-कभार लेते रहे हैं पर इस तरह नहीं. शायद मित्रों के दबाव में वह स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रख पाया. उसके दादा-दादी, दोनों बुआ, फूफा, मामा, मासी, नानाजी सबको कभी न कभी यह बात पता चल ही जाएगी तो सभी को दुःख होगा ही, जैसे उन्हें हो रहा है. लेकिन वे उसे दोषी नहीं मान रहे हैं. जिन हालातों में वह विवश हुआ होगा और इस रास्ते पर चला होगा, वे हालात ही जिम्मेदार हैं. उसे उनसे भी ढेरों शिकायतें रही होंगी, हो सकता है अब भी हों, लेकिन उन्हें उससे कोई शिकायत नहीं हैं. उसकी सेहत ठीक रहे न केवल शारीरिक, मानसिक व भावात्मक भी. वह समाज में अपना योगदान करे. देश, समाज, परिवार तथा अपने आप के प्रति, अपनी जिम्मेदारियों को समझे. अपनी वास्तविक क्षमता को जाने. स्वयं के सत्य स्वरूप को पहचाने, वह अपने आप को नष्ट न करे, उसे बनाये, परमात्मा की उपस्थिति को पहचाने, उसे अपने जीवन का केंद्र बनाये. उसने एक पत्र उसके नाम लिखा जिसमें बताया, वह स्वयं को पहचाने, आनन्द उसका स्वभाव है, शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति उसका अपना आप है. वही वह है...तब उसे आनन्द के लिए यात्रा करना, घूमने जाना, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी. वह आनंदित होगा इसलिये यात्रा पर जायेगा, वह खुश होगा इसलिये कुछ कार्य करेगा, यही सच्ची सफलता है. पता नहीं उसकी ये बातें नन्हे को अच्छी लगेंगी या नहीं, पर इतना तो विश्वास है कि वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से इनको समझ जायेगा.      

Wednesday, November 2, 2016

फटी हुई पुस्तक


दायें तरफ की पड़ोसिन ने फोन किया और पूछा क्या वह क्लब की कमेटी में है, उसने कहा, नहीं, और फिर कहा इस बार नहीं. वर्षों पहले एक ही बार वह कमेटी में थी, प्रोजेक्ट कन्वेनर तीन साल से है, लेकिन उसकी बात से लग रहा था जैसे वह हमेशा ही रहती है पर इस बार नहीं. मन कितना झूठ बोलता है, अपने आपको कुछ दिखाने के लिए, फिर यह भी कहा कि मीटिंग में देर से जाकर जल्दी आ गयी, जबकि सारा समय वह लाइब्रेरी में ही बैठी रही. मन को झूठ बोलने में सोचना भी नहीं पड़ता. अपनी इमेज बनाये रखने के लिए कितने झूठ बोलता चला जाता है. झूठी इमेज की रक्षा के लिए झूठ के सिवा और साधन हो भी क्या सकते हैं. आज सुबह का अंतिम स्वप्न बड़ा मजे का था. उसने एक पुस्तक नींद में फाड़ दी है पर जिसकी है उसे तो लौटानी होगी सो सेलो टेप लगाकर जोड़ने का प्रयास कर रही है, पर जुड़ना कठिन है सो परेशान होकर नींद खुल जाती है व ठीक अगले ही पल अलार्म बजता है, बल्कि उस क्षण मन में यह विचार आया अब अलार्म बजेगा और ऐसा ही हुआ. तभी बंद आँखों के आगे प्रकाश नृत्य करने लगा, यह परमात्मा के आने का ढंग है, सुबह सन्ध्याकाल में वह इसी तरह मिलने आता है. फिर उसने उससे बात भी की. सुबह उठते ही कुछ पंक्तियाँ उसने लिखीं क्योंकि बाद में वे भाव ओस की बूंदों की तरह उड़ जाते हैं ! कितनी देर तक तो वह भीतर अपनी उपस्थिति जाहिर किये रहा फिर मन पर पर्दे छाते चले गये और वह छुप गया, उनके पीछे, झूठ, अहंकार और अज्ञान के पर्दे ! शाम को सूप उसकी असावधानी से कुर्ती पर गिर गया पर मन ने झट कह दिया कि मैच देखते समय उसका ध्यान विकेट की तरफ था सो..कितना चालाक है उसका मन, एक क्षण में कैसे-कैसे बहाने गढ़ लेता है.पर उसे पता चल गया था, उसके भीतर कोई जाग रहा है जो सब जानता है !

आज सुबह फिर चमत्कार घटा, आज्ञा चक्र पर ज्योति जल रही थी, एक दीपक की लौ, नींद खुली और विचार आया, अब अलार्म बजेगा और वही हुआ, ठीक चार बजे कोई जगा देता है, वही जो भीतर जाग रहा है. परमात्मा उसे धीरे-धीरे अपने नजदीक ले रहा है, पहले वह उसे पुकारती थी अब वह खुद उसे बुलाता है, उसने अपने को प्रकट कर दिया है. उसके अहंकार को चूर करने के उसके प्रयास भी जारी हैं. उसे अपने भीतर सूक्ष्म से सूक्ष्म विकार भी स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं. सभी के भीतर उसी की ज्योति भी दिखाई देती है, किसी को तिलमात्र भी चोट पहुँचाने पर भीतर कैसी पीड़ा जगती है जैसे खुद को ही सताया हो..वे सब एक ही हैं, इस बात का अनुभव भी हो रहा है. अब सारी कामनाएं एक ही केंद्र पर केन्द्रित हो गयी हैं. वह परमात्मा इसी जन्म में उसे मुक्त कर दे. इस में बाधा उसके पूर्व संस्कार हैं व प्रारब्ध कर्म, लेकिन सद्गुरू की कृपा का अक्षय भंडार भी तो साथ है. आज सत्संग है, वे भजन गायेंगे, ध्यान करेंगे और परमात्मा को अपने सारे गुण-अवगुण समर्पित कर देंगे, खाली होकर बैठ रहेंगे फिर वही वह रहेगा, वह एकछत्र साम्राज्य चाहता है..दो दिन बाद नन्हा आ रहा है, उससे भी अध्यात्म पर चर्चा होगी. मुरारी बापू बाबा रामदेव के पतंजलि आश्रम में कथा कर रहे हैं. वे पतंजलि के योग सूत्रों का रामचरित मानस के आधार पर वर्णन कर रहे हैं. यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि ! ये आठ अंग रामायण के सात कांडों में व्यक्त हुए हैं ! वह कह रहे हैं कृपा का पात्र बनना है, अंतर घट को पावन करना है, उसे सीधा करना है तथा उसके छिद्रों को पूरना है.

सुबह अलार्म बजा तो वह पहले से ही जगी थी, परमात्मा को जगाने नहीं आना पड़ा, वैसे भी वह कहीं दूर तो है नहीं जो उसे आना पड़े. वह उनकी आत्मा ही तो है, प्रकाश उसका स्वरूप है, शांति, आनंद, प्रेम, सुख, शक्ति, ज्ञान तथा पवित्रता उसके गुण हैं, जिनके अनंत प्रकार हैं. वह परमात्मा छिपा नहीं है पर उनकी दृष्टि पर ही मोटे-मोटे पर्दे पड़े हैं. उसे देखने के लिए अंतर की आँख चाहिए. कल दिन भर जून ठीक रहे पर शाम को नन्हे का फोन आ गया. वह बंगलूरू में एक घर खरीदने की सोच रहे हैं. उनको भी अपनी स्वतन्त्रता उतनी ही प्रिय है जितनी उसे. कल आभास हुआ कि किसी को जब वे सलाह देते हैं तो उसे कैसे चुभती है, कोई भी नहीं चाहता कि कोई और उसे बताये कि उसके लिए क्या ठीक है, उसे क्या करना चाहिए. अब जबकि वह तथाकथित साधना कर रही है, अहंकार को विसर्जित करना जिसकी पहली शर्त है, उसे कितना नागवार गुजरा चाहे पल भर को ही, क्योंकि तुरंत भीतर वाले ने सचेत कर दिया, लेकिन अब उसे कान पकड़ लेने हैं, किसी को भूल कर भी कोई सलाह नहीं देनी है, क्योंकि उन्हें दी गयी पीड़ा उसे ही मिलने वाली है, अंततः वे जुड़े हए हैं. जून का उसे सम्मान करना करना है और उनकी रजोगुणी प्रवृत्ति स्वत: ही सतोगुण में बदलेगी, वैसे ही नन्हे की भी, वह ऊपर उठ रहा है, उसे तो केवल खुद को देखना है, भीतर कोई दम्भ न रहे, पाखंड न रहे, भेद न रहे, खाली हो जाये मन..तभी तो उस परमात्मा को भरा जा सकता है..सारी इच्छाएं बस इसी एक में मिल गयी हैं..एक ही काम है लिखना, पढ़ना और सुनना..   


Tuesday, November 1, 2016

नींबू का पेड़


कल कुछ नहीं लिखा और आज इस वक्त जब लोग भारत-पाकिस्तान क्रिकेट सेमी फाइनल मैच देख रहे हैं, वह अपने साथ कुछ पल बिताने आई है. कल एक उपदेशात्मक कविता लिखी थी. किन्तु सच्चाई यह है कि कोई भी सत्य को सीधे-सीधे स्वीकारना नहीं चाहता या फिर वह जो जानता ही है उसे सुनकर स्वयं को कटघरे में खड़े हुआ नहीं देखना चाहता, कोई नया भाव, नई बात और वह भी मधुर शब्दों में कही जाये जो उसकी नींद को न तोड़े, स्वप्न को चलने दे और बल्कि उसे और भी गहरा कर दे. वे सभी तो सो रहे हैं और जागरण के कुछेक क्षण जो जीवन में आते हैं, उन्हें पसंद नहीं आते. वे उन्हें नकार कर अपनी नींद में मस्त रहना चाहते हैं. वे बेखबर रहते हैं अपने ही भीतर बहते उस आनन्द के निर्झर से, लेकिन उसकी खबर कोई अन्य किसी को नहीं दे सकता, खुद ही भीतर से ललक जगे तभी कोई उस अज्ञात की राह का पथिक बनता है, तो न तो उसे किसी को जगाने की जरूरत है न उन्हें झकझोरने की, उसे तो उस आनन्द के गीत गाने हैं जो भीतर पाया है, हो सकता है कोई उस आनन्द की झलक अपने भीतर पाले और अनजाने ही चल पड़े उस राह पर. आज लेडीज क्लब की मीटिंग है. उसे हिंदी प्रतियोगिता के लिए एक कविता और एक कहानी भी देनी है.

कल रात मैच खत्म हुआ तब सोये, आज सुबह देर से उठे. भारत क्रिकेट मैच जीत गया, पिताजी ने ख़ुशी में हलवा बनाने की फरमाइश की. पूरे देश में जश्न का माहौल है. लोग सारी कड़वाहटें भूल गये हैं. क्रिकेट ने सारे देश को एकता के सूत्र में बाँध दिया है. सभी राज्यों के खिलाडी भारत के लिए खेलते हैं. आज जग्गी वासुदेव जी का सम्बोधन सुना बाबारामदेव जी के कार्यक्रम में. कोयम्बतूर में ईशा योग सेंटर है, वहाँ बाबाजी भी गये थे. सही कहा है किसी ने, सारे संत एक मत ! कल क्लब गयी पर लाइब्रेरी में बैठकर एक तिब्बती पुस्तक पढ़ती रही. योग ग्रन्थों में जिस चिदाकाश का वर्णन है, वही बौद्ध ग्रन्थों में है, दोनों का स्रोत तो उपनिषद ही हैं, अद्भुत है सनातन धर्म ! परमात्मा की कृपा अद्भुत है, वह अद्भुत है और उसके ज्ञान को हजारों वर्षों से अक्षुण रखते आये ऋषि भी अद्भुत हैं. एक आत्मा या परमात्मा ही सभी रूपों में प्रकट हो रहा है. वह आधार है, वे उसके हैं, वह उनका है. जीवन कितनी क्षुद्र बातों से भर जाता है, जब वे साधना के पथ पर नहीं होते. साधना उन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान कराती है, उनके जीवन को पूर्णता देती है.

आज सुबह ही जून ने कहा, शाम को उन्हें क्लब जाना है आने में देर होगी, उसने मना किया, कहा, यदि अति आवश्यक न हो तो नहीं जाना चाहिए, दोपहर को भी किसी बात पर मतभेद हुआ शायद बंगलूरू में घर लेने की बात पर. इतना ही नहीं जब जून ने कहा नींबू के पेड़ पर फल नहीं लगते, उसकी शाखाएँ कटवा देते हैं, तो उसे हरे-भरे पेड़ को कटवाने की बात भी पसंद नहीं आयी, उसकी भाषा रक्षात्मक हो गयी और जून कुछ अजीब मूड में घर से बाहर गये. उसे भी तब से अच्छा नहीं लग रहा है. वह प्रसन्न रहे उसकी यही दिली इच्छा है, क्योंकि उसके खुश रहने पर वह भी खुश रह सकती है वरना तो..शाम को वह क्लब जायेंगे ही..नाश्ते के समय तक वह उसकी सब बातों को भुला देंगे..है न ! उसने मन ही मन पूछा. कल डीपीएस का परीक्षा परिणाम आ गया. उसकी छात्राओं का भी आ गया होगा, जिनकी मातृ भाषा हिंदी नहीं है, लेकिन दोनों में से किसी ने फोन नहीं किया, उसने स्वयं ही एक से पूछा. आज ब्लॉग पर कल वाली कविता पोस्ट की, जिसमें नृत्य का वर्णन है, एक कहानी लिखी.