Tuesday, June 23, 2020

डांगरिया बाबा का मंदिर



शाम के सवा छह बजे हैं, वे पासीघाट के सर्किट हाउस में के अति विशेष अतिथिगृह में हैं. पासीघाट अरुणाचल का सबसे पुराना शहर है, 1911 में इसका नामकरण हुआ था. खुला-खुला सा वातावरण है, जनसंख्या कम है. सुबह आठ बजे एक अन्य परिवार के साथ सदिया-धौला पुल से नदी पार कर दोपहर को ही पहुँचे  हैं. रास्ते में एक शांत जगह पर रुककर साथ लाया पाथेय ग्रहण किया. सन्तरे के बगीचे देखे, ढेर सारी तस्वीरें उतारीं। नदी, पुल, पत्थर और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य तथा पहाड़ों, बादलों और आकाश की तस्वीरें ! वे लोग सियांग नदी के पुल पर सूर्यास्त देखने गए फिर नीचे उतर कर पत्थरों पर चलते हुए नदी तक भी. हवा शीतल थी और इतनी शुद्ध कि जैसे शुद्ध प्राणवायु ही नासिक पुटों में भर रहे हों.  रंग-बिरंगे सुडौल हर आकार के पत्थर नदी तट को बेहद आकर्षक बना रहे थे. सियांग नदी ही आगे चलकर ब्रह्मपुत्र कहलाती है. उनके कमरे की बालकनी से नील पर्वत दिखाई देते हैं. 

सुबह जल्दी उठकर बालकनी से सूर्योदय देखा पर एक बड़े वृक्ष की शाखाएं उसे छिपा रही थीं, नीचे उतर कर गए तो स्पष्ट दिखा. पूरे भारत में अरुणाचल में ही सबसे पहले सूर्य के दर्शन होते हैं. कल शाम वे डांगरिया बाबा व बाला जी के मंदिर देखने गए थे. मंदिर के प्रांगण विशाल थे, वहाँ आरती और भजन चल रहे थे. दशकों पहले बिहार से कुछ लोग यहाँ आकर बसे थे, उन्होंने ही यह बनाये होंगे. अरुणाचल प्रदेश में स्थानीय लोग भी अच्छी हिंदी बोल लेते हैं. अभी कुछ देर बाद उन्हें वापसी की यात्रा के लिए निकलना है. 

इस वर्ष में पहली बार दोपहर के समय बगीचे में  झूले पर बैठकर लिख रही है. लॉन की घास ठंड के कारण हल्की भूरी नजर आ रही है. आंवले के पेड़ की पत्तियां झर गयी हैं, नीचे छोटे-छोटे आंवले भी गिरे हैं. जगह-जगह मिट्टी के ढेले घोंघों ने निकाल दिए हैं. हल्की हवा बह रही है और रह-रह कर पंछियों के स्वर वातावरण की निस्तब्धता को भंग कर रहे हैं. एक समरसता का अनुभव जैसे सृष्टि कर रही है. कल ही वे पासीघाट से लौटे. एक दिन की छोटी सी यात्रा ने कितने अनुभव कराये. सदिया और बोगीबिल दोनों पुलों को देखा, लोगों की भीड़ थी बोगिबील पर. मकर संक्रांति के कारण लोग घरों से बाहर निकले हुए थे.नदियों में पानी कम था, वे शांत लग रही थीं. पैंगिंग में जहाँ वे हैंगिंग ब्रिज देखने गए, वहाँ सियांग नदी तीव्र गति से बह रही थी. पुल को पार करते समय वह नीचे नदी को तभी देख पायी जब स्थिर खड़ी थी. चलते समय पानी की ओर देखने पर भीतर भय जैसा  कुछ लगता था. आज सुबह टाइनी टोट्स स्कूल का पुराना फर्नीचर मृणाल ज्योति भिजवाने का प्रबन्ध किया. जब तक यहाँ है स्कूल की खोज खबर लेते रहनी है. 


उस पुरानी डायरी में गणतन्त्र दिवस का जिक्र था. देश का सबसे प्रिय दिन रिपब्लिक डे ! माँ ने बताया जब वह छोटी थीं तो देशवासी जो उस समय गुलाम थे, सुख की साँस नहीं ले पाते थे. वे सरकारी नौकरी नहीं पा सकते थे, जो भी पा लेते थे उन्हें अपने भाइयों पर जुल्म करने पड़ते थे. कैसी भयानक होती थी वह जिंदगी. आज आजाद भारतवासी अपने गांवों, शहरों अपनी मिट्टी में घूम सकते हैं, निर्बन्ध, मुक्त ! क्या वे किसी दूसरे देश में इस तरह रह सकते हैं, आ जा सकते हैं, क्या वे उनके लिए अजनबी नहीं रहेंगे ? अपने देश में ही वह सब कुछ किया जा सकता है जो भी कोई करना चाहता है. लड़ाई कितनी बुरी है दुनिया में, बदतर चीजों में से बदतर लड़ाई, उसे किसी दिन फ्रंट पर जाना पड़े तो... 


2 comments:

  1. डायरी के पृष्ठों से अच्छी जानकारी दी है आपने।

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