Sunday, July 31, 2016

दर्द का अनुभव


सन् अठानवे में TTC Phase1(शिक्षक कोर्स) भी कर लिया और उसके बाद से पूर्णकालिक शिक्षिका हैं और सदा यात्रा करती रहती हैं, सरल स्वभाव है, रंग गोरा है, मीठा बोलती हैं, धीरे-धीरे बोलती हैं, उसे उन्होंने मन्त्र दीक्षा दी है. स्नेहमयी हैं, मस्त हैं और प्रसाद पूरी रुचि से ग्रहण करती हैं. गुरूजी के प्रति पूर्ण समर्पित हैं, कहती हैं कि वे सब कुछ जानते हैं. सहज समाधि कहाँ हुआ, किसके घर हुआ, उसे तो सुनकर ही सिहरन होने लगी. सद्गुरू के साथ उन्हें भी कृपा के कई व्यक्तिगत अनुभव हुए हैं. वह जादूगर हैं..ईश्वर से अभिन्न हैं, ऐसे महापुरुष, महात्मा कभी-कभी ही होते हैं, बिरले ही होते हैं. वह एक सखी के यहाँ बैठी थी, उनकी प्रतीक्षा कर रही थी कि सहज ध्यान होने लगा. सद्गुरू का भावपूर्वक स्मरण करते ही वह भीतर अनुभूत होने लगते हैं, वह एक ही सत्ता है, वह कैसी अनोखी सत्ता है..जितना रहस्य खुलता जाता है, उतना ही बढ़ता जाता है.  

आज बैसाखी है, पंजाब का त्यौहार ! फसलों और मेलों का उत्सव ! कुछ लोगों को उसने SMS संदेश भेजा है. कल से बीहू की छुट्टियाँ हैं. जून का दर्द अभी तक ठीक नहीं हुआ है. पूरा एक महीना होने को है. आज वह न तो टहलने गये न ही सुबह प्राणायाम, व्यायाम आदि कर पाए.

बीहू का पहला अवकाश. मौसम आज खुला है. धूप के दर्शन हो रहे हैं. कल रात जून को दर्द के कारण नींद नहीं आ रही थी. उनकी छाती में दायीं ओर पसलियों में दर्द होता है, दिल की धड़कन भी महसूस होती है. कल डिब्रूगढ़ दूसरी बार गये इसी सिलसिले में. इस वक्त भी लेटे हैं. मानव का बस, बस थोड़ी दूर तक ही चलता है, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु के सामने उसका कोई बस नहीं चलता. इस समय दोपहर के साढ़े बारह बजने को हैं. वह सहज ध्यान करने बैठी तो दुनिया भर के विचार आने लगे, पहले कुछ शारीरिक व्यायाम करके ध्यान करने बैठो तो सहज ही होता है !
योग शिक्षिका का SMS आया है –

छोटे से जीवन में छोटी सी
मुलाकात थी प्यार भरी
आज आपका शब्दों का गुलदस्ता पाया मैंने और समर्पित किया उनको जो मुझे बनाये आप जैसे उनके प्यारों के लिए !  

उसे जवाब लिखना है –

माना छोटी सी थी मुलाकात
दिल ने दिल से कर ली बात,
आपका जीवन जन-जन अर्पित
सृष्टा को है पूर्ण समर्पित !

शांति सरलता की जो मूरत
सदा प्रेम झलकाती सूरत,
नृत्य भरा कदमों में जिनके
याद रहेगी उनकी मन में !

मस्त चाल अनोखी मुद्रा
सजल नयन विश्वास भरा,
सारी पूजाएँ, अर्चना
हों एक के लिए सदा !





Saturday, July 30, 2016

चाट का स्टाल


आज उनके घर में इस ध्यान कक्ष में ‘सहज समाधि’ कोर्स का पहला भाग सम्पन्न हुआ ! सद्गुरु की कृपा उनके शहर पर हुई है उनके घर पर भी हुई है, उन सब पर हुई है. सदा से ही थी पर वे उसे  अनुभव कर सकें ऐसी पात्रता भी तो चाहिए ! आज सुबह उसने गुरू पूजा की तैयारी की, ठीक समय पर टीचर आ गयीं, कुल उन्नीस साधक हो गये, तीन ने पहले ही कोर्स कर लिया था, उसे और पिताजी को मिलाकर सोलह ने दीक्षा ली. पहले सहज समाधि का अर्थ बताया फिर मस्तिष्क की कार्य प्रणाली, फिर तनाव का कारण..और फिर एक-एक करके मन्त्र दिए. सात बार मौन होकर जाप करने को कहा, बीच-बीच में सात सामान्य श्वास लेनी हैं. उसे छोटा सा मन्त्र मिला है, सुंदर है, हो सकता है सभी को यही देते हों, क्योंकि किसी को बताना तो है नहीं, है न गुरूजी का ट्रेड सीक्रेट ! बहुत अच्छी तरह सारा कार्य हो गया, अब कल सुबह नौ बजे से एक घंटा ध्यान होगा तथा परसों भी. उसने कल कितनी जगह फोन किये लेकिन दो महिलाओं को छोड़कर कोई नहीं आया, जो लोग एडवांस कोर्स कर रहे हैं, उनमें से ही अन्य सभी लोग आये. जून अभी तक फील्ड से नहीं आये हैं, सम्भवतः अब आ रहे हों. आज कितना हल्का-हल्का लग रहा है, वैसे तो रोज ही लगता है पर आज सद्गुरु का एक काम उनके घर पर हुआ, वे निमित्त हुए, आर्ट ऑफ़ लिविंग परिवार का हिस्सा तो वे थे ही आज उस पर मोहर लग गयी. आज का दिन खास है. आज पिताजी ने अपने जीवन में पहली बार मन्त्र दीक्षा ली. उन्होंने बाद में अभ्यास भी किया, उनका जीवन सफल माना जा सकता है, उम्र के अस्सीवें वर्ष में हैं पर जोश जवानों से बढ़कर है, जीवन दर्शन बहुत ऊंचा है, प्रेम भी है पर थोड़ा  क्रोध है और अभी तक परमात्मा का पूर्ण अनुभव नहीं किया है, झलकें अवश्य पायी होंगी. उसे इस क्षण लग रहा है जैसे कुछ करने को नहीं है, कृत-कृत्य हो गया है मन..प्राप्त-प्राप्तव्य हो गयी है आत्मा..   
पिछले साल इन्हीं दिनों दीदी अपने बड़े पुत्र के विवाह की तैयारी कर रही थीं और वे भी यहाँ योजना बना रहे थे कि जाना है भांजे की शादी में...
महीनों से करती तैयारी..     
भरे उमंग, उत्साह अति मन में  
सारे घर को चमका डाला
कितना कुछ नया मंगवा डाला
दुकानों में जातीं लम्बी फेहरिस्तें
मेहमानों के आने के देखे रस्ते
साड़ियाँ, सूट और रेशमी परिधान
सपनों में आने लगे अब तो थान
कार्ड छपवाने से हाल बुक करने तक
चाट, मिठाई के स्टाल लगाने तक
सजाने हैं फूलों से आंगन और हाल     
बेटे की शादी है नहीं कोई खेल !

थोड़ी देर पहले टीचर से मिलकर आयी, उनके घर पर बचपन से ही आध्यात्मिक माहौल था. पिताजी रामकृष्ण मिशन से जुड़े थे, कई संत उनके घर आकर रुकते थे, भविष्यवाणी की थी कि वह भी अध्यात्म के पथ पर चलेंगी, पर वह ऐसा मानती थीं कि दोनों मार्ग साथ-साथ चलेंगे. सामान्य जीवन भी अपने कर्म से चलेगा और अध्यात्म का भी एक उचित स्थान रहेगा, पढ़ाई आदि उसी तरह की, लेकिन सन सतानवे में बेसिक कोर्स करने आश्रम गयीं तो वहाँ योग की टेकनीक सीखने गयी थीं पर गुरूजी से मिलने के बाद जो अनुभव हुआ, वह अविस्मरणीय था. उसने जीवन की दिशा ही बदल दी.



Friday, July 29, 2016

सहज समाधि


शाम के सात बजे हैं, आजकल बादल जब देखो तब बरसने लगते हैं. इस समय भी सुबह से शायद दसवीं बार मूसलाधार वर्षा हो रही है. जून क्लब गये हैं, वहाँ stress managment पर कोई योग का कार्यक्रम है. उसकी बाईं आँख के निचले कोने पर हल्का सा दर्द हो रहा है, शायद कोई छोटा सा दाना निकला है. माँ बहुत कहने पर अब लेट गयी हैं, पहले दिन भर उन्हें लेटना पसंद था, अब घंटों बैठी रहती हैं. उनका व्यक्त्तित्व बिलकुल बदल गया है, लेकिन कई बातें पहले की तरह हैं पर हैं वे सारी की सारी नकारात्मक. अभी कुछ देर पूर्व सुना मुरारी बापू कह रहे थे, अहंकार, स्वार्थ और कपट गुरु कृपा से दूर रखते हैं. नूना कभी-कभी तेज स्वर में बोलने लगती है, यह अहंकार का ही रूप है. स्वार्थ थोड़ा भी नहीं है, ऐसा तो नहीं कह सकते, निज की मुक्ति की कामना तो है ही, कपट भी अक्सर झलक जाता है, अब चाहे भले के लिए ही बातों को वे जैसी हैं वैसी प्रकट न करके उन्हें मधुर करके सहज करके प्रस्तुत करती है, लेकिन उस छिपाव में किसी का अहित करने का भाव नहीं है और सबसे बड़ी बात कृपा का अनुभव हर क्षण होता है.

पिताजी लौट आए हैं. आज सुबह आकर उन्होंने स्टोर के खाली डिब्बों को भर दिया है. वे लाये हैं- आंवले का मुरब्बा, पेठे की केसरिया मिठाई, मावे का लड्डू, मूँगफली, चने, मिस्सा आटा, किशमिश, काजू, बादाम, हरे चने, ककड़ी, खजूर, बिस्किट, राजधानी ट्रेन में मिला सामान और भी एक वस्तु- अंजीर ! वह आठ दिनों के लिए बेटी के घर गये और उनका कितना काम करके आये हैं. सामने और पीछे के स्थान की सफाई, दोनों कूलर साफ करके इस्तेमाल के योग्य करवाए. ट्यूब लाइट साफ करवाई, घड़ा लाकर दिया और भी न जाने क्या-क्या. घर में एक जिम्मेदार बुजुर्ग के रहने से घर ठीकठाक चलता है, जहाँ पति-पत्नी दोनों काम पर जाने वाले हों वहाँ घर के कुछ काम छूट ही जाते हैं. कम्प्यूटर पर बैठकर कुछ लिखा नहीं आज. नेट पर नन्हे का साईट देखा, फेसबुक पर बड़े भांजे ने उसके जवाब दिया है उसके प्रश्न का. सारी सुबह पिताजी के लाये सामानों को व्यवस्थित करने में निकल गयी. दोपहर माली से बगीचे में काम करवाने में. अभी कुछ ही देर में जून आने वाले होंगे शाम का कार्यक्रम आरम्भ हो जायेगा, इसी तरह एक और दिन बीत जायेगा, इस जीवन का एक और दिन कम हो जायेगा. हजारों लोग इस समय यही बात सोच रहे होंगे, हजारों हँस रहे होंगे और न जाने कितने आत्मबोध को पा रहे होंगे..एक तरह से देखे तो सभी कुछ व्यर्थ है और दूसरी तरह से देखे तो सभी कुछ सार्थक है. यहाँ होना ही काफी नहीं है क्या ? हर कोई स्वयं को कुछ साबित करना चाहता है, हर कोई अपना विज्ञापन की रहा है, लेकिन अंततः तो वह तड़प आत्मा ही की है या कहें परमात्मा की..चेतना की..जो न जाने कितने-कितने रूपों में प्रकट होना चाह रही है, न जाने कितने चेहरे लगाकर एक ही सत्ता.
.सद्गुरु कहते हैं, साधक उनका काम करें और वे तो उनका काम कर ही रहे हैं. आज उसे एक सुनहरा मौका मिला है सद्गुरु का काम करने का. सुबह ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ की एडवांस कोर्स टीचर से मिलने गयी, जो इटानगर से आयी हैं. दो दिन पहले ही गुरूजी ने उन्हें कहा कि यहाँ एडवांस कोर्स कराना है. उनकी कृपा यहाँ के लोगों पर कुछ विशेष ही बरस रही है. उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं या सही होगा कि सद्गुरु चाहते हैं कि उनके ‘सत्संग कक्ष’ में सहज समाधि कोर्स रखा जाये. उसने तत्क्षण ‘हाँ’ कह दी और अब कुछ लोग चाहियें जो कोर्स करें, उसने कई लोगों को फोन किये लगता है कुछ तो अवश्य ही राजी हो जायेंगे ! सद्गुरु की कृपा से अवश्य ही ‘सहज समाधि’ उनके घर में सम्पन्न होगा. कुछ वर्ष पूर्व वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी पर आज वह सम्भव है तो इसके पीछे परमात्मा की शक्ति ही काम कर रही है. उसकी कृपा कहें, प्रेम कहें या आनंद कहें, वह सब एक के ही नाम हैं. उनका सद्गुरु दुनिया में कहीं भी हो वह हर क्षण उनके साथ रहता है, रहा करता है, वह अनोखा है, अन्तर्यामी है और उस अनन्त गुणों को धारण करने वाले की नजर उन पर है, उसका हाथ उनके सिर पर है, उसकी दृष्टि उन पर पड़ी है, वह जीता-जगता परमेश्वर उन्हें अपनी झलक दिखाने खुद चलकर आया, प्यासा कुएं के पास जाता है पर यहाँ तो खुद कुआँ ही सामने खड़ा है, गंगा उनके द्वार आई है, सद्गुरु रूपी हीरा उन्हें सहज ही मिल गया है.

Wednesday, July 27, 2016

वृद्धावस्था के भय


कल शाम जो कविता लिखकर भेजी थी उसका जवाब आया है. उसके मन में जो यह उत्सुकता बनी रहती है यह भी तो अहंकार को पोषण करने का मार्ग है. कविता अच्छी लगी यह सुनकर भीतर जो तोष होता है वह क्या सात्विक है, यदि हो भी तो उसे उसके ऊपर उठना है. कविता लिखना ही उसका आनन्द है, उसके बाद उससे कुछ पाना प्रभु से दूर जाना है. जो आनंद परमात्मा से आया है और जो आत्मा का है वही साधक का हेतु है. मन को तृप्त करने का हर साधन अहंकार को बढ़ाता ही है. आज भी वर्षा की झड़ी लगी है, कल नन्हे ने बताया कि उसके ऑफिस बॉय की नाभि का आपरेशन हुआ. वे लोग उसे अपने घर पर रखने को भी तैयार थे. कितने भले हैं ये आज की नई पीढ़ी के बच्चे, वे सहज रूप से दयालु हैं. कोई विशेष आयोजन करके दूसरों का भला करने नहीं जाते. परिवार के बंधन से मुक्त होकर वे सारे समाज को अपना परिवार बना पाने में समर्थ हैं. भारत का हो या विश्व का भविष्य सुरक्षित है. लड़के-लड़कियाँ काम में जुटे हैं. उसकी पीढ़ी की महिलाएँ कितनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाती हैं. दो बजने को हैं, अब दिन का तीसरा पहर शुरू होता है !  

दोपहर के ढाई बजे हैं. बादल बरस-बरस कर थक चुके हैं सो अब आराम कर रहे हैं अथवा तो जितना जल लाये थे, सब लुटा चुके हैं. अब थोड़ी देर में उनके साथी आते होंगे फिर से आकाश धरा का मिलन होगा.  कितनी ठंड हो गयी है. मार्च महीने का आज अंतिम दिन है, जून आज फील्ड गये थे, अभी कुछ देर पहले ही आये हैं. माँ सो रही हैं, सुबह पांच बजे उठी थीं, उसके बाद सीधे साढ़े बारह बजे ही लेटीं. उन्हें डर लगता है शायद आजकल जब-तब लेटने से, कहीं सब उन्हें छोड़कर  चले जाएँ. बुढ़ापा एक रोग है, कैसी-कैसी वृद्धावस्थाएं देखने-सुनने को मिल रही हैं. उसकी भी उम्र बढ़ रही है, पर खुशवंतसिंह हैं जो चौरानवे वर्ष के होकर सक्रिय हैं, राजनेता भी काम करते हैं उम्र के अंतिम पड़ाव पर. आज सुबह फुर्सत थी सो फोन पर कई लोगों से बात की. दोनों पिताजी, फुफेरी बहन, चचेरा भाई, चाची जी, बड़ी बुआ के नाती और नतिनी, बड़े भाई, दीदी, मंझली भाभी..कुल दस लोगों से बात की. ओशो को सुना कुछ देर, बुद्ध वायवीय नहीं थे. उनके पैर धरा पर टिके थे पर मस्तिष्क आकाश को छूता था. उन्हें जड़ को नकारना नहीं है पर स्वयं को चेतन जानना जरूर है. वे चेतन हैं जो जड़ को चला रहे हैं, न कि जड़ जो चेतन का उपयोग अपने सुख के लिए कर रहे हैं. कितना सरल है अध्यात्म का ज्ञान, चेतन व जड़ के संयोग से जो तीसरा तत्व निकला वह है अहंकार. अब अहंकार यदि दुःख पाना चाहता है तो स्वयं को जड़ माने, सुख पाना चाहता है तो चेतन माने. हो रहा है उल्टा पाना है सुख मानते हैं जड़, मिटाना है दुःख पर मानते नहीं चेतन..यही तो मोह है माया है, मिथ्याभास है. सद्गुरु उसे वक्त-वक्त पर संदेश भेजते रहते हैं. आज उनकी तस्वीर देखी, बर्फ की दरार में कितने प्रसन्न होकर बैठे हैं, जैसे अपने घर में हों, सारी दुनिया ही तो उनका घर है !

अप्रैल आ चुका है, आज दूसरा दिन है. धूप निकली है. कई दिनों के बाद मौसम खुला है पर कह नहीं सकते कब तक, शाम होते न होते फिर बदली छा जाएगी और वर्षा रानी अपने ताम-झाम के साथ पुनः पधारेंगी. माँ से आज थोड़ी देर बात की. वह कहती हैं, उन्हें कई आवाजें सुनाई पडती हैं. रात को डरावने सपने आते हैं और अकेले रहने में डर लगता है. पिताजी के जाने के बाद से ऐसा हो यह बात नहीं है, उनके होने पर भी वह घबरा जाती थीं. इस समय धूप में बाहर बैठकर बाल संवार रही हैं. आज मेडिकल गाइड में dementia के बारे में पढ़ा, लक्षण मिलते हैं लेकिन इलाज कुछ नहीं है. बूढ़े होकर मृत्यु के मुख में जाने से पूर्व यह कैसा दुःख किसी-किसी को झेलना पड़ता है, सारे वृद्धों को तो ऐसा नहीं होता. मानसिक रूप से जो आशावादी रहा हो, जो सजग, जागरूक तथा सदा कुछ न कुछ सीखने को तैयार रहता हो ऐसे व्यक्ति को बुढ़ापे में दिमाग की ऐसी हालत से शायद नहीं गुजरना पड़ता होगा. उनका मन क्या है, कैसे काम करता है, वे उस पर कैसे नियन्त्रण रख सकते हैं, यह सब सीखना हर एक का कर्त्तव्य है. आज उसने लेडीज क्लब को दिए जाने वाले सुझावों की एक लम्बी फेहरिस्त मन ही मन बनायी. प्रौढ़ शिक्षा उसमें से एक थी. बच्चों व बड़ों के लिए योग शिविर लगाना दूसरी थी. मृणाल ज्योति के लिए नये-नये सहायक ढूँढना भी उसमें शामिल है. वैसे उसने कुछ लोगों को फोन किया था, पर किसी ने भी ‘हाँ’ नहीं कहा है. यहाँ सभी अपने-अपने जीवन में मस्त हैं. किसी के बारे में सोचने की फुर्सत ही किसके पास है. एक उसका मन है कि सदा यही सोचता है कैसे सबके पास पहुँच जाये, सबको स्नेह से भिगो दे, सबकी झकझोर कर जगा दे, देखो, दुनिया तुम्हारी अपनी है !


Tuesday, July 26, 2016

नीली गर्दन वाली चिड़िया


जीवन पुनः-पुनः एक पहेली बन कर सामने आता है. कितनी बार ऐसा लगता है मानो सारे राज खुल गये अब जो जानना था जान लिया पर आगे चलते ही एक नया मोड़, एक अनजानी डगर, एक नया रहस्य सम्मुख आ खड़ा होता है, और वे भौंचक तकते रह जाते हैं. उसे अपने कर्त्तव्य का पता था, ऐसा लगता था. परमात्मा की कृपा का अनुभव होता है, अपने भीतर उस विराट के साथ एकता का अनुभव होता है, भीतर शांति व आनंद भी पाया है लेकिन जीवन है तो सहज ही कर्म करने की इच्छा जागृत होती है. प्रकृति के वशीभूत होकर सभी कर्म कर रहे हैं. अच्छे-बुरे, खरे-खोटे जैसे भी कर्म प्रकृति में हो रहे हैं वे न्याय हैं अर्थात वैसे ही होने हैं. मन में संकल्प उठते हैं जो कार्यों में परिणत होते हैं. जो इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, वे स्वप्न बनकर आती हैं, अथवा तो विचारों के रूप में मन में घूमती रहती हैं. जो क्रियान्वित हो जाती हैं, वे तृप्ति दे जाती हैं. यही कर्म दिन-रात चला करता है. इस विशाल सृष्टि का कोई प्रयोजन है क्या ? शायद नहीं, यह आनंद का विस्तार है, प्रेम का प्रदर्शन है, जो आत्मा के सहज गुण हैं..इनका अनुभव करना और इनका अनुभव औरों को कराना ही आत्मा का लक्ष्य है. इसके सिवा इस जग में क्या करने को है ? क्या पाने को है ? और क्या जानने को है ? तो निर्णय यही हुआ कि निज आनंद में मगन रहना और अन्यों को भी ख़ुशी बांटना, बस यही जीवन का मकसद है. ढेर सारी उपलब्धियाँ हासिल करके अभिमान का पुलिंदा बढ़ाए चले जाने से तो बेहतर है कि निरहंकारी होकर मुस्कान बिखेरना ! उसे अब पढ़ने में रूचि नहीं रह गयी है, लगता है पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ..
उस दिन एक सखी से कहा था कि उसकी अनुपस्थिति में उसके पतिदेव व सासुमाँ दोनों उसे याद कर रहे थे, अच्छा लगा था उन्हें. उन्होंने चिड़िया का एक वीडियो दिखाया, जिसमें नीले गले व हरे पंखों वाली एक छोटी सी चिड़िया पेड़ में अपनी चोंच के हथियार से बिल्कुल गोल आकार में एक घोंसला बनाती है, भीतर घुसकर बुरादा निकलती है और घूमकर मुआइना करके आती है, चिड़िया का साथी भी आता है, वह उड़ जाती है और तब वह काम करता है. फिर दोनों मुग्ध भाव से अपने घर को देखते हैं. हर वर्ष वे नया घर बनाते हैं. कौन जाने वे पंछी भी नये हों, नये पेड़ पर बनाते हों हर साल ! उसने कहा था कि एक कविता लिखेगी इन भावों पर. आज वक्त है. मौसम भी अच्छा है. गगन पर बादल हैं, नीचे हरियाली है. पिताजी घर गये हैं. जून ऑफिस में हैं. माँ अपने रोग के कारण थोड़ी परेशान सी उस कमरे में बैठी हैं. खाली बैठे रहने से मस्तिष्क भी कुंद हो जाता है, वृद्धा  हो या वृद्ध कुछ न कुछ करना सबके लिए बहुत जरूरी है. पिताजी के न रहने से माँ का अकेलापन और बढ़ गया है, अभी कुछ देर पूर्व उसे देखने आई थीं और अब आवाज लगा रही हैं, देखना चाहती हैं कि वह मौजूद है या नहीं ! पड़ोसिन से उसने कहा कि वे अपनी लेन तथा पीछे की लेन की महिलाओं व पुरुषों को बुलाकर सत्संग की शुरुआत क्यों न करें. उसके पतिदेव आर्ट ऑफ़ लिविंग के टीचर हैं. देखें क्या होता है, जून भी अब सत्संग में उत्सुक हैं. उसने लिखा-
मदमाता मार्च ज्यों आया
सृष्टि फिर से नयी हो गयी
मधु के स्रोत फूट पड़ने को
नव पल्लव नव कुसुम पा गयी I

भँवरे, तितली, पंछी, पौधे
हुए बावरे सब अंतर में
कुछ रचने जग को देने कुछ
आतुर सब महकें वसंत में I

याद तुम्हें वह नन्हीं चिड़िया
नीड़ बनाने जो आयी थी
संग सहचर चंचु प्रहार कर
छिद्र तने में कर पाई थी I

वृत्ताकार गढ़ रहे घोंसला
हांफ-हांफ कर श्रम सीकर से
बारी-बारी भरे चोंच में
छीलन बाहर उड़ा रहे थे I

आज पुनः देखा दोनों को
स्मृतियाँ कुछ जागीं अंतर में
कैसे मैंने चित्र उतारे
प्रेरित कैसे किया तुम्हीं ने I

देखा करतीं थी खिड़की से
क्रीडा कौतुक उस पंछी का
 ‘मित्र तुम्हारा’ आया देखो
कहकर देती मुझको उकसा I

कैद कैमरे में वह पंछी
नीली गर्दन हरी पांख थी
तुमने दिल की आँख से देखा
लेंस के पीछे मेरी आँख थी I

गॉड लव्स फन


अगले दिन समुद्र तट पर कार्यक्रम था लोग फूल, मालाएं व उपहार दे रहे थे जिन्हें वह गुरूजी के हाथ से लेकर कार में रख कर आते थोड़ी देर में पुनः गुरूजी का हाथ भर जाता वह पकड़ा देते, रेत पर धोती पहन कर भागना बड़ा कठिन लग रहा था, डर था कहीं धोती में पैर न फंसे I गुरूजी को अब मंच पर जाना था, उन्हें आगे जाकर आसन बिछाना था, पर लोगों का हुजूम आगे जाने से रोक रहा था, लगभग भीड़ को धकेलते हुए जब तेजी से आगे बढ़े तो अचानक धोती खुल गयी, बहुत शर्म आयी, पर इतनी भीड़ में किसी का ध्यान नहीं था लोग गुरूजी की झलक पाने को बेताब थे जो अभी आने वाले थे, आसन बिछाने का काम किसी अन्य सहयोगी को सौंपा और किनारे पर जाकर धोती ठीक करने लगे, गुरूजी मंच पर पहुँच गए और अपनी जगह पर जाकर बैठ गये, रैम्प पर चल कर जब वह लौटे तो माइक हटा कर मुस्कुराते हुए बोले, अब सब टाइट है न ? हनी शर्म से पानी-पानी हो गये, कहाँ वह सोच रहे थे अच्छा हुआ किसी ने देखा नहीं, गुरूजी तो काफी पीछे थे, अब लगता है गुरूजी ठीक कहते हैं, God Loves Fun” I

उसी टूर की बात है, एक शाम दिन भर के थके एक हाल में जमीन पर ही अपने बैग पर सर रखकर लेट गये, सबके लिये कमरे नहीं थे, मच्छर भी काट रहे थे, माँ की याद भी आ रही थी, अपने घर का सुविधाजनक वातावरण छोड़ कर यहाँ अकेले सोये हैं, मन बहुत उदास था, सोचते-सोचते नींद आ गयी I सुबह क्या देखते हैं एक वरिष्ठ शिक्षक भी निकट ही फर्श पर सोये हैं I उनसे पूछा आपको तो सोने का स्थान मिला था फिर यहाँ कैसे? उनका जवाब सुनकर आँखों से अश्रुपात होने लगा, वे बोले आधी रात को गुरूजी का फोन आया, हनी हाल में अकेला रो रहा है, उसके पास जाओ I लगा कोई है जो माँ से भी ज्यादा ध्यान रखता है I पल भर में सारा दर्द कृतज्ञता में बदल गया I

यात्रा समाप्त हुई और वह घर लौटे, बहुत कुछ बदल चुका था, जीने में आनंद आ रहा था I पहले मन में क्रोध था, हिंसा थी, गुस्सा आने पर हाथ में पकड़ी वस्तु तक तोड़ देता था, why-why मन अब  Wow-Wow मन में बदल चुका था I प्रश्न वाचक चिन्ह ? का घुमाव सीधा होकर विस्मय बोधक ! चिन्ह में परिवर्तित हो गया था I खुशी-खुशी कॉलेज गये, कोर्स कर लिया था, गुरूजी के साथ रहे थे मन एक अद्भुत आनंद व शक्ति का अनुभव कर रहा था I पहले ही दिन कुछ लड़के पकड़ कर रैगिंग के लिये ले गए, मन में जरा भी डर नही था, उन्होंने व्यर्थ के सवाल पूछने शुरू किये, व्यर्थ के काम करने को कहे, मना किया तो दस-बारह लड़कों ने पकड़ लिया और उनके नेता ने लोहे की एक चेन निकाल ली I गुरूजी ने कहा था कि यदि किसी के मन, वाणी और भाव से हिंसा विलीन हो जाती है तो उसके सामने हिंसक प्राणी भी हिंसा त्याग देता है I जरा भी भय नहीं लग रहा था, भीतर गुरूजी के वचनों के प्रति विश्वास था, अचानक उस लड़के ने मारने के लिये उठाया हाथ नीचे कर लिया, कॅालर से पकड़ कर धक्का दिया और वे सब चले गये I उस दिन पता चला कि सबसे बड़ी ताकत क्या है? कि वे ज्यादा शक्तिशाली थे या भीतर का प्रेम व आनंद !  

Monday, July 25, 2016

लाल चावल


तब उम्र भी कम थी टीनएजर के ख़िताब से अभी निकले भर थे I किसी तरह इतना ही कहा कि सोचना पड़ेगा I आगे बढ़े, गुरूजी से मिलने आये एक परिवार में एक छोटी लड़की परीक्षा के आनेवाले परिणाम के भय से रो रही थी, गुरूजी ने कहा, क्यों रोती है? तू तो हर सुबह ओम नमो शिवाय का जप करती है न? लड़की रोना भूल कर आश्चर्य से बोली आपको कैसे पता? मुस्कुराते हुए गुरूजी कहने लगे, मुझे सब पता है I फिर उनसे बोले, कल सुबह सात बजे फ्लाइट है तुम छह बजे तैयार रहना हनी ने फिर कहा, सोच के बताऊँगा आँखों के सामने पिताजी का चेहरा आ रहा था कितनी मुश्किल से कुछ दिनों के लिये आज्ञा मिली थी अब दो हफ्ते और घर से दूर रहने पर वे अवश्य ही बहुत नाराज होंगे I लौट कर मित्रों को बताया तो उनका चेहरा देखने लायक था, उन्हें ईर्ष्या भी हो रही थी और वे खुश भी थे I रात भर सोचते रहा जाऊँ या न जाऊँ, जानना चाहते थे कि गुरु क्या होते हैं? गुरु तत्व क्या है ? अंततः निर्णय लिया कि जाना चाहिए, सुबह साढ़े छह बजे निर्धारित जगह पर पहुँचे तो पता चला गुरूजी चले गए हैं, रात भर जगने के कारण आधा घंटा देर तो हो ही गयी थी I अपना सामान उठाये पीछे लौट ही रहे थे कि एक बार फिर एक वरिष्ठ शिक्षक आये और बोले तुम हमारे साथ ट्रेन से चल रहे हो, तुम्हारा टिकट बना हुआ है, वह एक बार फिर आश्चर्य से भर गये,  समझ में कुछ नहीं आ रहा था, वह शिक्षक बोले, गुरूजी जानते थे कि देर से आओगे इसीलिए ट्रेन का टिकट बनवाया है I
तमिलनाडु पहुँचे तो गुरूजी का व्यस्त कार्यक्रम आरम्भ हुआ, सत्संग, सभाएँ, उदघाटन समारोह, मीटिंग्स, आदि आदि में सारा समय निकल जाता था I वह गुरूजी का बैग और आसन लेकर उनकी कार में पीछे बैठता था I सब कुछ ठीक था पर एक तो दक्षिण भारतीय भोजन फिर उसमें वहाँ लाल चावल मिलते थे, ठीक से खा नहीं पाता था कई बार भूख मिटती नहीं थी संकोच के कारण किसी से कह भी नहीं पाता था I एक दिन गुरूजी ने बुलाया और पूछा, ठीक से खा नहीँ रहे हो? वह चौंके किसने कहा होगा वही प्रश्न उठाने वाला मन सामने आ गया और गुरु की क्षमता पर सहज ही विश्वास नहीं हुआ लेकिन उसके बाद हर दिन उनके लिये उत्तर भारतीय भोजन की व्यवस्था होने लगी I यात्रा के दौरान एक बार कई गाड़ियों का काफिला जा रहा था, गुरूजी ने अपनी गाड़ी एक कच्चे रस्ते पर मोड़ने को कहा, एक कुटीर के सामने कार रुकी, एक बुजुर्ग महिला आयी और बोली कबसे प्रतीक्षा कर रही थी I गुरूजी ने उसे कुछ फल व पैसे दिए, कुछ दिनों बाद पता चला कि उनकी देह शांत हो गयी I
वे यात्रा के दौरान किसी एक स्थान पर ज्यादा नहीं रुकते थे, सारे कपड़े मैले हो गए थे, धोने का समय ही नहीं मिला था I चिंतित थे कि कल गुरूजी के साथ क्या पहन कर जाएंगे, तभी दरवाजे पर किसी ने खटखटाया, गुरूजी बुला रहे हैं, वह फिर डरते डरते उनके पास गये, कहीं कोई भूल तो नहीं हो गयी, एक धोती और अंगवस्त्र देते हुए वे बोले, कल इसे पहन लेना आश्चर्य से वह कुछ देर मौन खड़े रहे, यह बात तो अभी तक किसी से कही भी नहीं थी, कहा, पर उन्हें तो यह पहनना नहीं आता, तो वे कहने लगे इस धोती को साड़ी की तरह पहन लेना और ऊपर से अंगवस्त्र डाल लेना I

Friday, July 22, 2016

एडवांस कोर्स


२००३ आया, कॉलेज में अवकाश था I बैंगलोर आश्रम में एडवांस कोर्स होने वाला था I एक बार फिर मित्रों ने कहा बैंगलोर चलना है I पिताजी को मनाना आसान नहीं था, मन में विचार भी चल रहे थे कि यदि छुट्टियों में यहीं रहा तो पिताजी दुकान पर बिठा देंगे I बैंगलोर जाकर कोर्स नहीं भी किया तो कम से कम एक नया शहर घूमने को मिलेगा, सो युक्ति से पिताजी को मनाया और उन्हें तब महसूस हुआ कि जरूर कोई और भी चाहता है कि वह बैंगलोर आकर कोर्स करें, कि कोई शक्ति है जो उन्हें एक पूर्व निर्धारित मार्ग पर ले जा रही है I वे कुछ मित्र रवाना हुए I यात्रा के दौरान जैसा कि सभी के साथ होता है मन में विचारों की रेल भी चलती रही I इसे हनी why-why माइंड कहते हैं, आश्रम कैसा होगा? क्या रहने के लिये वहाँ कुटीर होंगे? क्योंकि एक सुविधाजनक वातावरण में वह बड़े हुए थे, सदा ए सी में सफर करना, अपनी ही वस्तुएं इस्तेमाल करना, अपने ही बिस्तर पर सोना, ये उनकी प्राथमिकताएँ थीं I किताबों में पढ़ी प्राचीन कथाओं के अनुसार झोपड़ियों वाले आश्रम का एक चित्र मन में बन गया था, किन्तु जैसे ही बैंगलोर आश्रम में कदम रखा मन में सन्नाटा छा गया I सारे विचार एकाएक रुक गए I शाम का समय था आश्रम में उत्सव का माहौल था I देखते ही देखते बत्तियां जल उठीं और सारा आश्रम सुंदरता का मूर्तिमान रूप बन सज उठा I भीतर से आवाज सुनाई दी धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है I अगले दिन से कोर्स शुरू हो गया, जिसमें उन्हें मित्रों से अलग कर दिया गया I मौन का पालन भी करना था, मन में आशा लेकर गये थे कि गुरूजी से भेंट होगी, पर अभी तक नहीं हुई थी, सो उदासी महसूस कर रहा थे I एक संध्या बालकनी में बैठे थे  गुरूजी ने ऊपर देखकर हाथ हिलाया तो हनी ने भी सबके साथ हाथ हिलाया, उन्हें लगा गुरूजी को उनका स्मरण कहाँ होगा, अगले दिन वह दूसरी तरफ बैठे गुरूजी ने फिर उन्हें देख कर हाथ हिलाया, इसके बाद एडवांस कोर्स बहुत अच्छा लगने लगा I पूर्ण मौन चल रहा था जो भीतर से जोड़ रहा था, कई प्रश्न पुनः उठने लगे जिनके जवाब भी भीतर से मिलने लगे I लगा ऐसा बहुत कुछ है जो दिखाई नहीं देता, सुनाई नहीं देता, बचपन के अधूरे सवालों के भी कुछ-कुछ जवाब मिलने लगे थे I

कोर्स के बाद सब प्रतिभागियों की विदाई से पहले गुरूजी एक-एक कर सबसे मिल रहे थे हनी एक कोने में थे वहीं से हाथ हिलाकर विदा ली तो गुरूजी ने हाथ की उंगलियां मोड़ कर जैसे अभिवादन का जवाब दिया मन में आया कहीं गुरूजी उन्हें बुला तो नहीं रहे फिर सोचा इतने सारे लोग प्रतीक्षा में खड़े हैं I वह कुछ ही दूर गये थे कि एक शिक्षक दौड़ते हुए आये और बोले, गुरूजी बुला रहे हैं उनके साथ लौटे तो उन्होंने एक रेलिंग का मार्ग रोक कर वहीं गुरूजी की प्रतीक्षा करने को कहा I अनेक लोग पीछे खड़े थे, गुरूजी वहीं से आने वाले थे I हाथ में पकड़ी माला घुमाते हुए अपने चिर-परिचित अंदाज में वह आये और अचानक उनका हाथ पकड़ कर भागने लगे, वहाँ खड़े लोग भी पीछे भागने लगे, पूरी भगदड़ मच गयी I उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था, कुछ दूर जाकर गुरूजी कहा, जा रहे हो? मत जाओ, आश्रम में रुक जाओ I
उन्होंने कहा, कल तो वापसी की टिकट बुक है, जाना ही होगा I
वे बोले, कल दो सप्ताह के लिये तमिलनाडु जा रहे हैं, लौट र मिलेंगे I
मन ने झट प्रतिक्रिया की, अकेला छोड़ कर खुद तो जा रहे हैं, फिर रुकने को भी कह रहे हैं !
गुरूजी बोले, ऐसा करो तुम भी मेरे साथ चलो उन्हें एक और झटका लगा पहले आश्रम में आकर बिना कुछ किये भीतर मौन का अनुभव, कोर्स के दौरान गुरूजी का हचानना, हाथ पकड़ कर भगाते हुए ले जाना और अब अपने साथ यात्रा का निमंत्रण!