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Thursday, June 18, 2020

पावर ऑफ़ नाउ


आज ठंड अपेक्षाकृत अधिक है. सुबह वे उठे तो कोहरा बहुत घना था. प्रातः भ्रमण के लिए देर से निकले पर उतनी ठंड में भी एक व्यक्ति को सामान्य कमीज पहने दौड़ लगाते देखा. मानव की सर्दी-गर्मी सहने की क्षमता व्यक्ति सापेक्ष है. नेहरू मैदान में तेज बत्तियां जल रही थीं, दिन-रात वाले फुटबॉल मैच चल रहे हैं वहाँ तीन दिनों के लिये. एक युवा संस्था करवा रही है कम्पनी की सहायता से. आज भी किसी ‘बंद’ की बात थी पर कम्पनी खुली है. एनआरसी और सिटीजनशिप बिल को लेकर उत्तर-पूर्व में वातावरण काफी अस्थिर बना हुआ है. इस समय कमरे में धूप आ रही है और धूप की गर्माहट भली लग रही है. कल दोपहर मृणाल ज्योति गयी, उसकी संस्थापिका कह रही थीं भविष्य में उनके न रहने पर उनकी दिव्यांग पुत्री अकेली न रह जाये इसलिए वह कुछ वर्षों बाद अपने रिश्तेदारों के पास रहेंगी. माँ का दिल कितनी दूर की सोच रखता है. उनके बाद स्कूल कौन सम्भालेगा इसकी भी चिंता उन्हें होती होगी. कल शाम भजन से पूर्व गले में खराश हुई और ॐ का उच्चारण नहीं कर सकी, देह एक मशीन की तरह ही है, कहीं कुछ फंस गया और मशीन ठप ! एक छोटा सा खाकी रंग का कुत्ते का बच्चा बरामदे में आकर बैठा था कल, उसे कुछ खाने को दिया तो दूर तक छोड़ आने के बावजूद थोड़ी ही देर में वापस आ जाता था, उसका दिशा बोध कितना प्रबल रहा होगा. वे उसे घर में नहीं आने दे रहे थे, शायद रोग का भय था, उसे कोई टीका भी नहीं लगा होगा. परमात्मा ही उसकी रक्षा करते रहे हैं आजतक, आगे भी करेंगे. बाहर मैदान से बच्चों के खेलने की आवाजें आ रही हैं, ये बिना थके शाम तक खेलते रह सकते हैं. 

टीवी पर प्रधानमंत्री का भाषण आ रहा है जो वह बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में दे रहे हैं. महिला सशक्तिकरण की बात की, फिर किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया. उनकी आवाज में बल है और भारत को आगे ले जाने का दृढ संकल्प भी. ‘पावर ऑफ़ नाउ’ वर्षों पहले पढ़ी थी, कल से दुबारा पढ़ रही है, पढ़ते-पढ़ते ही अनुभव घटने लगता है. वर्तमान में रहने का जो मन्त्र ज्ञानी देते आए हैं उसका सर्वोत्तम चित्रण इस पुस्तक में हुआ है. अगले सप्ताह वे अरुणाचल प्रदेश जा रहे हैं एक रात के लिए. शाम को क्लब में एक विज्ञान फिल्म दिखाई जाएगी, रजनीकान्त की हिंदी में डब की गयी फिल्म.  

उस दिन यानि वर्षों पूर्व सुबह साढ़े छह बजे पिताजी द्वारा आवाज लगाने पर नींद खुली तो एक स्वप्न टूट गया. स्वप्न, जो काफी देर से चल रहा था. स्वप्न जो सुंदर था... सुखद था. पता नहीं किस खेत में काम कर रहे थे वे लोग, साथ-साथ बातें भी. फिर घर आये. सबको पता चल गया. मिटटी से सने हाथ, हल चलाते हुए लगी होगी या .. कुछ याद नहीं. फिर स्वप्न में ही एक पत्र मिला और ‘मेरे संसार; ऋषियों की बातों से भरी किताब, श्लोकों और आख्यानों को उसमें देख वह चकित थी फिर दक्षिण भारत का भ्रमण  और सुंदर दृश्य... बस सब बातों की एक बात कि स्वप्न अच्छा था. कालेज में ‘फिलॉसफी ऑफ़ हार्डी’ पर एक सेमिनार था, मध्य में एक गजल की प्रस्तुति... मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता.. ऐसी ही कुछ. कल भारत बन्द का आयोजन है विपक्षी दलों द्वारा. बस में एक वृद्ध ने पेन्सिल खरीदी,  लिखने के लिए सिगरेट की डिब्बी का ढक्कन, उसने उसे एक कागज अपनी कापी का दिया, वह खुश हुआ होगा पर उसने ऐसा जाहिर नहीं किया. बस ड्राइवर ने बस गेट से काफी आगे रोकी, वह क्रोध में भी था.अब से वह सबसे आगे वाली सीट पर बैठेगी, या फिर खड़े होना भी ठीक है ताकि उसे पहले से बता सके. 

Monday, August 21, 2017

चेत्तना की ज्योति


शाम के साथ बजने वाले हैं. आज दिन भर धूप के दर्शन नहीं हुए. इस समय तापमान छह डिग्री है. सुबह उठकर कुछ देर प्राणायाम किया फिर बाहर टहलने भी गयी, चारों और श्वेत कोहरा था जो चेहरे पर शीतलता की छाप छोड़ जाता था. उसके बाद किचन में पहले नाश्ता फिर भोजन बनाने-खाने-खिलाने में व्यस्त. महरी दो दिन से नहीं आ रही है. छोटी भाभी बहुत मिलनसार है और सारा काम आराम से निपटा लेती है. दीदी परिवार सहित कल आयीं थीं, सबसे मिलकर अच्छा लगा. बड़ी भांजी से फोन पर बात हुई, चचेरा भाई मिलने आया था, वह कुछ ज्यादा बोलने लगा है, अकेले रहने के कारण उसका मन अब शायद पहले सा मजबूत नहीं रह गया है, फिर भी शारीरिक रूप से पहले से स्वस्थ लगा. पिताजी आज सुबह कह रहे थे, यात्रा पर जाने से पूर्व उनका दिल घबराता है, दो दिन बाद उन्हें जाना है.

कल चचेरी बहन अपने दो बच्चों के साथ आयी थी, बच्चों ने नन्हे के साथ अच्छा समय बिताया. आज सुबह नौ बजे घर से चले और ढाई बजे दिल्ली पहुंच गये. बड़ी गाड़ी थी, स्विफ्ट डिजायर, यात्रा आरामदेह थी सिवाय दिल्ली में भारी ट्रैफिक का सामना करने के. मंझले भाई-भाभी का नया घर बहुत सुंदर है. शाम को भाभी की माँ से मिलने गये, जो अस्थमा की मरीज हैं. उसके बाद आर्मी रेस्टोरेंट में रात्रि भोजन के लिए. सूप, सिजलर, पनीर टिक्का, तंदूरी रोटी दाल और एक सब्जी. पिछले दिनों छोटी भाभी ने भी काफी व्यंजन बनाये थे. कश्मीरी चटनी, अप्पा, मलाई मेथी मटर तथा खजूर के लड्डू, हल्दी वाला दूध. कल शाम शायद बड़ी भतीजी मिलने आये. दोपहर को बड़ी भाभी के यहाँ जाना है. जून टनोर में हैं, जो जैसलमेर से भी आगे हैं.

आज ठंड कल से भी ज्यादा है. खिड़की से बाहर सिवाय कोहरे की सफेद चादर के कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा. सुबह छह बजे ही उठ गयी, साढ़े आठ बजे तक तैयार थी. पिताजी भी नहा-धोकर नाश्ता करके बांसुरी बजा रहे हैं, चैन की बांसुरी ! नन्हा कल अपने मित्र के यहाँ रहा, अपने मित्रों के साथ कल रात आग जलाकर उसने उत्सव मनाया. आज उसे वापस जाना है. रात्रि के दस बजने को हैं. ठंड बदस्तूर है. दोपहर को बड़ी भाभी ने सरसों का साग व मक्की की रोटी खिलाई. शाम का भोजन भी वहीं किया और आधा घन्टा पहले ही वे लौटे हैं. परसों इस वक्त वे अपने घर में होंगे, समय कैसे बीत रहा है, पता ही नहीं चल रहा.

वे घर लौट आये हैं. सुबह साढ़े पांच बजे उठे और गोभी के पराठों का नाश्ता करके, निकल पड़े, भाई ने चाय बनाई, जैसे मंझला भाई अपने घर पर बनाता है, जैसे जून यहाँ हार्लिक्स बनाते हैं. बड़े भाई को आटा गूंथते हुए भी देखा, अच्छा लगा, वे पहले से ज्यादा शांत और स्थिर लगे. मंझला भाई भी पहले से ज्यादा स्वस्थ लग रहा था. भाभी लेकिन कुछ ज्यादा ही मोटी हो रही हैं. दोनों की बेटियां बहुत लाड़-प्यार में पली हैं. एअरपोर्ट पर दो किताबें खरीदीं, दो दीदी ने दी हैं, एक पिताजी से पढ़ने के लिए ली है, ‘शिवोहम’, वहाँ पढ़ रही थी, पूरी नहीं पढ़ पायी. बहुत अच्छी किताब है. चेतना का दीपक जलता है देह की उपस्थिति में ही, प्राणवायु ही उस दीपक को प्रज्ज्वलित करती है, देह दीपक है, चेतना ज्योति है, चेतना स्वयं को ज्योति स्वरूप जान ले तो सारा भय नष्ट हो जाता है. पिताजी का गला दिल्ली की ठंड में खराब हो गया है, पर उन्हें वहाँ अच्छा लग रहा है. ठंड से बचने के लिए भाभी ने उन्हें गर्म शाल दी, भाई ने ट्रैक सूट और हर समय वे उनके ध्यान रखते हैं. भाभी की माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, वह अस्पताल में हैं, उनसे भी बात हुई. घर आकर अच्छा लग रहा है. परमात्मा उसे किसी उद्देश्य के लिए वहाँ ले गया था. नन्हे ने अपने दिल की बात बताकर स्वयं को हल्का किया, उसका दिल टूटा है पर वह हिम्मती है. भीतर की पीड़ा को व्यक्त नहीं होने देता, स्वयं पर हावी भी नहीं होने देता. परमात्मा ही उसके जीवन का मार्ग तय करने में उसे मदद करेंगे. कल शाम को क्लब में मीटिंग है. अगले हफ्ते प्रेस जाना है. पहली तारीख को एक सखी को भोजन पर बुलाना है. जून ने हरे चने के चावलों बनाये हैं रात्रि भोजन में.


Friday, September 5, 2014

कोहरे का जाल


आज पूरे एक हफ्ते बाद डायरी खोली है. उस दिन जून उसे छोड़ने एयरपोर्ट गये थे. वह दिल्ली पहुंच गयी थी शाम साढ़े सात बजे, घर पहुंचते नौ बज गये. अगले दिन सुबह साढ़े चार बजे ही भाई के साथ टैक्सी स्टैंड गयी. कोहरा घना था और स्टेशन तक के रास्ते में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, लग रहा था कोई स्वप्न चल रहा है. उड़ान के दौरान भी और ट्रेन में भी सारा वक्त मन में एक वही ख्याल मंडरा रहा था. कोहरे के कारण उनकी ट्रेन बहुत रुक-रुक कर चल रही थी. दोपहर बाद वे गन्तव्य पहुंचे, मंझला भाई लेने आया था पर उसकी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया, भागदौड़ में उसे भरवाने का वक्त ही नहीं मिला था, बस से वे अस्पताल पहुंचे. जहाँ शेष सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. थोड़ी देर में ही अस्पताल गयी, उनको ऑक्सीजन दी जा रही थी और भी कई नलियां उनके विभिन्न अंगों से जुडी थीं, देखकर उसकी आँखें भर आयीं. वह उसे देखकर पहले तो खुश हो गयी थीं, जिसे उन्होंने ताली बजकर भी दर्शाया पर उसके आँसूं देखकर दुखी हो गयीं. वह बोल नहीं सकती थीं. उन्हें इतनी पीड़ा सहते देख सभी दुखी हैं पर कोई कुछ नहीं कर सकता. उसके बाद वह चार दिन वहाँ और रही. एक बार माँ ने उसका लिखा संदेश पढ़ा और आशीर्वाद भी दिया. लिखना भी चाहा पर इस बार उनकी लिखाई ठीक नहीं रह गयी थी. एक दिन बाद वह वापस दिल्ली आ गयी और अगले दिन असम, जहाँ जून और नन्हा उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे.

कल रात भर उसे वही स्वप्न आते रहे. ऑक्सीजन, हीमोग्लोबिन, ICU, और डॉक्टर, अस्पताल शब्द कानों में गूँजते रहे. एक बार माँ को बोलते हुए भी सुना. वह ठीक होकर आ गयी हैं और किसी बारे में पिता के सवाल का जवाब दे रही हैं. कल शाम वे लाइब्रेरी भी गये और माँ की बीमारी पर जानकारी हासिल की. उन्होंने बहुत कष्ट सहा है इस रोग के कारण. ईश्वर ही अब उनका सहायक है. उसका सिर भारी है, मस्तक के दोनों ओर की नसें तन गयी हैं. कल शाम को जून को तनावमुक्त रहने का उपदेश दे रही थी पर स्वयं तनावमुक्त रहना कितना मुश्किल है. आज सुबह सुना विजयाराजे सिंधिया तेईस दिन ICU में रहने के बाद स्वर्ग सिधार गयीं तो दिल धक से रह गया. माँ को भी अस्पताल में दो हफ्ते हो गये हैं. अभी-अभी छोटी बहन को फोन किया, शायद वह व्यस्त थी, फोन नहीं उठाया. जून भी उसे उदास देखकर परेशान हो गये हैं. उसे स्वयं को सामान्य रखने का प्रयास करना चाहिए, जिस बात पर उनका कोई वश नहीं है उसके बारे में चिन्तन करते रहने से क्या लाभ ? आज से संगीत का अभ्यास शुरू करेगी, मन को व्यस्त रखने से ही वह शांत रहेगा. सबसे बड़ा दुख संसार में है इच्छा, इच्छा पूरी हो जाये तो दूसरी उत्पन्न होगी, पूरी न हो तो दुःख देगी.

“कबिरा सब ते हम बुरे हम तज भलो सब कोई
जिन ऐसा करि देखिया मीत हमारा सोई”

मन को जितना धोते हैं उतना पता चलता है कि मैल की कितनी परतें चढ़ी हैं.


Wednesday, July 25, 2012

रोना, कभी नहीं रोना



आज सुबह अलार्म सुनाई दिया था पर आलस्यवश दस मिनट और लेटी रही, सुबह की नींद भी तो कुछ अलग होती है ठंड में कम्बल में सिकुड़े रहो बस. आज कोहरा छाया है, दूर के पेड़ दिखाई ही नहीं दे रहे. सर्दियों में तो कभी-कभी सामने वाला घर भी दिखाई न दे ऐसा कोहरा होता है यहाँ. सर्दियाँ बस आने ही वाली हैं. कल माँ का पत्र आया है उन्हें जून के वहाँ न जाने से कितनी निराशा  होगी, कल ही छोटी ननद और मंझले भाई का पत्र भी आया है. कल शाम नन्हा बहुत जिद कर रहा था, जून को उस पर गुस्सा आया. आज से वे उसे बारी-बारी से खिलाएंगे अर्थात ध्यान रखेंगे. उसकी बचपन की दो सखियों की कल शादी थी, एक का पता उसने खो दिया चाह कर भी पत्र नहीं लिख सकी. बड़ी बहन की शादी की वर्षगाँठ भी थी. इस बार घर जाने पर वह ‘शाक तथा पुष्प वाटिका’ से सम्बधित कोई किताब अवश्य लाएगी ऐसा उसने तय किया.

कल रात वे अलार्म देना ही भूल गए, सुबह चिड़ियों ने उठा दिया या फिर उस स्वप्न ने जिसमें जून के साथ उसकी बहस हो रही है, क्योंकि वे दोनों तो कभी बात को बढ़ाते नहीं, ज्यादातर पांच मिनट से ज्यादा नहीं चलती उनकी बात, और होती भी है तो नन्हें की देखभाल को लेकर. उसका रोना जून को जरा पसंद नहीं, वह बहुत जल्दी घबरा जाता है, खुद भी झुंझला जाता है. पर बच्चे उतना रोते भी हैं जितना हँसते हैं, यह नूना को पता है. वह कभी-कभी उसे जी भर कर रोने देना चाहती है. आकाश पर रुई के फाहों के से बादल बिछे हैं, कोहरे का कोई नामोनिशान नहीं. उसे याद आया नन्हें के कुछ वस्त्रों की सिलाई खुल गयी है, आज सबसे पहले वही ठीक करेगी.

कल उसने ‘सर्वोत्तम’ में एक लेख पढ़ा, भीतर के अलार्म से कैसे उठें, अमल भी किया, प्रभावशाली रहा. सुबह सवा पांच बजे वह उठ गयी, नन्हा कल दिन भर मस्त रहा, पर शाम होते ही छोटी सी बात पर रोने लगा, उन्हें कुछ और उपाय सोचना होगा, उनमें से एक को सदा उसके साथ रहना होगा उसके हर कार्य में. वह दिन भर उसका पूरा ध्यान पाता है शाम को उसके दूसरे कामों में व्यस्त होने पर या जब वे आपस में बात करने में व्यस्त हो जाते हैं तो वह किसी न किसी बात पर जिद करने लगता है. आज ही के दिन दीवाली है अगले सप्ताह, वे कुछ लोगों को बुलाएँगे. कल का मैच भारत ने जीत ही लिया.