Friday, August 31, 2012

साहब बीबी और गुलाम



रात के ग्यारह बजने वाले हैं, माँ अभी तक रसोईघर में हैं, पिता पानी भर रहे हैं, ननद पास के घर में है. शाम को बिजली का वोल्टेज बहुत कम था, बल्ब भी मद्धिम जल रहा था. अब जाकर वोल्टेज बढ़ा है. दिन में वे लोग बाहर गए थे, नन्हा दिन भर नहीं सोया, सो नौ बजे ही सो गया, पिछले तीन-चार दिन से वह ठीक से खाना नहीं खा रहा है. उसकी आँखें भी हल्की लाल है, फैमिली डॉक्टर को दिखाया है. जून देहरादून गए हैं, दीदी के यहाँ उसे उसके पत्र भी मिले होंगे.

आज यहाँ आने के बाद पहली बार उसे वक्त मिला है कि वह सुबह-सुबह डायरी लिख सके. जल्दी उठी थी सो.. बाकी सब सो रहे हैं. सूर्योदय के कुछ देर बाद उसने छत पर कुछ चक्कर भी लगाये. मकानमालिक की बेटी भी ऊपर थीं. यहाँ का मौसम बहुत अच्छा है, ज्यादा सर्दी नहीं पड़ती, ठिठुरन वाली सर्दी का तो यहाँ अहसास ही नहीं हुआ. उसे आये डेढ़ महीना हो गया है. मई में वे लोग दुबारा आएंगे. वह यहीं रहकर आगे पढ़ाई करना चाहती है. बीएड या कम्पयूटर डिप्लोमा. उसकी बड़ी ननद की सहेली से इस बारे में जानकारी लेनी है.

कल रात टीवी पर थोड़ी देर साहब-बीबी-गुलाम देखी, अच्छी थी पर सबको नींद भी आ रही थी. जून क्रिसमस के दिन आ रहे हैं, उसके बाद चार-पांच दिन तो पलक झपकते गुजर जायेंगे. छोटी बहन भी आ रही है दो दिन के लिये. उसने सोचा उसे भी नन्हें के साथ हेयर ड्रेसर के पास ले जायेगी, वह चुस्त नहीं दिखती है. समय अपनी रफ्तार से चलता ही रहता है, हम ही हैं जो सुस्त पड़ जाते हैं. कल शाम दो सम्बन्धियों के शोक पत्र आये और परसों उसके भी किसी मित्र का एक पत्र आया था.

आज वह आ रहे हैं, उसमें कुछ अतिरिक्त उत्साह है, और इसी उत्साह की रौ में बहकर वह डायरी और पेन लेकर एकांत की आशा में छत पर चली गयी, हवा थी, पर सुहा रही थी, ठंड पैदा नहीं कर रही थी, पर वहाँ और लोग थे, इस बड़े घर में कई परिवार रहते हैं. सो नीचे कमरे में आ गयी है. कल एक छात्र ने उससे कुछेक प्रश्नों के उत्तर जानने चाहे, वह बता तो पायी पर उतने असरदार तरीके  से नहीं. अब यहाँ चार-पांच दिन ही रह गए हैं, यह उलझाव कैसा अब.


   














Thursday, August 30, 2012

ममता के बंधन



कल जून के दो पत्र मिले, एक उसके मायके के शहर से लौट कर आया हुआ और एक वहीं से लिखा हुआ, वह बाद में उससे मिलने वहाँ गए थे. कल रात बहुत वर्षों बाद उसने अपनी एक पुरानी मित्र को स्वप्न में देखा, अभी उस दिन शादी में किसी से उसके बारे में बात की थी, सचमुच वैसी ही थी जरा भी नहीं बदली. सभी से बातें कर रही थी. फिर मैंने एक दो सवाल पूछे अद्भुत स्वप्न था. जून को भी देखा था शायद याद नहीं. उसके आने में दस-बारह दिन ही तो रह गए हैं. अब यहाँ मन नहीं लगता, कल रात नन्हें के रोने पर, मन पहले से ही भरा होने के कारण उसकी भी आँखें क्या भर आयीं सब उसे दोषी समझने लगे हैं. रात को पिता कितना रो रहे थे. पता नहीं यह सच है या उसका भ्रम कि वे  सब लोग उससे ठीक से बात नहीं कर रहे हैं. मन इतना उदास है कि जून अगर होते तो ऐसा नहीं होता.
माँ और पिता का दुःख अब देखा नहीं जाता. सुबह से ही दोनों रो रहे हैं. संतान का दुःख सबसे अधिक पीड़ात्मक होता है. पापा यह कहकर रोते हैं कि आज उस दुर्घटना को पूरे पचास दिन हो गए और माँ को किसी बहाने की जरूरत नहीं है. सुबह उनके कहने पर ही उसने उसके बैग से कपड़े निकल कर धो दिए, वह जैसे उन्हें देख नहीं पा रही थीं. मानव मन कितना भावुक होता है और स्नेह, ममता का पाश कितना मजबूत. बेटे के लिये किस तरह तडप रहे हैं दोनों. समझ नहीं आता किस दिन वे अपने आपको समझा पाएंगे, संतोष दे पाएंगे. मन इतना बोझिल हो गया है और आँखें जल रही हैं पर इस दुःख का कोई अंत नहीं, अंतहीन है यह पीड़ा, अंतहीन हैं ये आँसू. अपने छोटे से जीवन में कितनी आशाएं, कितने सपने जगाए थे उसने. अब जाने किस लोक में होगा, क्या वह महसूस कर पाता होगा कि उसके जनक उसके पिता कितना सोचते हैं उसको, उसको याद करके घंटों आँसू बहाते हैं.

कल रात उसे फिर स्वप्न में देखा, मन कितना बोझिल है सुबह से. देखा कि माँ और कविता पलंग पर सोयी हैं वह दरवाजे के बीचोंबीच रॉकिंग चेयर पर बाहर की ओर मुँह किये बैठा है, वह अपना सूटकेस खोलती है एक के बाद एक कई वस्तुएं निकलती है एक मिठाई का डिब्बा है उसमें से सबसे बड़ी अच्छी वाली मिठाई निकलकर उसके पास ले जाती है, कहती है, भाई की शादी की मिठाई तुमने खायी ही नहीं, तुम इतने दिन कहाँ चले गए थे. वह सिर्फ हँसता है, वह अपने हाथ से उसे खिलाती है थोड़ा सा रस उसके सफेद कोट पर गिर जाता है वह कहती है क्या पानी से साफ कर दूँ, वह मना कर देता है. उसके बाद देखा कि वे लोग घूमने जा रहे हैं जून वह और नूना, रास्ते में उसके दोस्त मिलते हैं जो आश्चर्य से उसे देखते रह जाते हैं. वह उनसे बात नहीं करता, थोड़ी दूर जाकर वह मुड़कर देखती है वे हाथ हिला रहे हैं. जब उसके किसी मित्र ने कोई सवाल किया तो जाने किस डर से उसका हाथ पकड़ लिया या उसने ही उसे छुपाने बचाने के लिये. उसके बाद एक दृश्य में बहुत बड़ी पार्टी हो रही है. वीडियो पर कोई फिल्म दिखाई जा रही है, वह बैठा है, उससे पूछता है, बच्चा कहाँ है, वह नन्हे को लाकर उसे दिखाती है, जो लाल पैंट और गुलाबी स्वेटर पहने है, वह फोटोग्राफर से नन्हें का एक फोटो खींचने को कहता है, पर वह अकेले खींचने को मना कर देता है. उसके बाद की बात उसे याद नहीं. जब इस स्वप्न की बात उसने माँ को बताई तो वह और पापा फिर रोने लगे, पर बिना बताए जैसे मन पर एक बोझ सा था.

उसने अपने मन को स्वच्छ करने के लिये सारी स्मृतियों से एक साथ दूर होने के लिये एक पत्र लिखा - जैसे कोई इन्द्रधनुष देखते-देखते आकाश में घुलता जाता है, जैसे कोई सुंदर सपना खत्म हो जाता है, जैसे मुट्ठी में बंद मणि कहीं खो जाये ऐसे ही तुम कहीं खो गये हो, अनंत आकाश में, जाने किस लोक में विलीन हो गए हो. मेरा तुमसे परिचय ही कितना था. कुल चार बरस ही तो हुए हैं मुझे इस घर में ब्याह कर आये हुए. विवाह से एक दिन पहले तुम आये थे मुझसे मिलने, शरमायी, सकुचायी सी मैं तुमसे ठीक से बात भी कहाँ कर पायी थी. पर देखा था पहले तुम्हें फोटो में, सो पहचान तो देखते ही गयी थी. मन में कहीं गहरे संतोष हुआ था कि सलोना, सुंदर देवर है. तुम्हारे भाई ने मुझे एक दिन तुम्हारे बारे में कई बातें बतायीं थीं कि तुम उसे बहुत प्रिय थे, तुम दोनों भाई माँ-पिता को बहुत सुख देना चाहते थे, कि तुम अपने भाई की कोई बात टाल नहीं सकते थे, कि तुम ऐसे हो, तुम वैसे हो. विवाह के बाद जब तुमसे मिलना हुआ तुम्हें जीवंत आशाओं से भरा, उत्साह से लबरेज पाया. जैसे कोई शक्ति तुम्हारे मन में कूट-कूट कर भरी थी. हर वक्त नयी उमंग, नयेपन की खोज. जाने क्या ढूँढने तुम शहर-शहर प्रदेश-प्रदेश घूमा करते थे. कौन जाने वही तलाश तुम्हें इस दुनिया से कहीं दूर ले गयी, शायद जो तुम चाहते थे वह इस दुनिया में नहीं है. तुम जैसे लोगों के लिये यह दुनिया नहीं हैं. पर कभी सोचा नहीं होगा कि तुम्हारे जाने के बाद हम सबका क्या होगा, कि तुम्हारी माँ, तुम्हारे पिता शून्य में तकते-तकते अपनी ज्योति न गंवा बैठेंगे. तुम्हारे भाई सूनी-सूनी दृष्टि लिये जब मुझे देखते हैं, मैं अंदर तक कांप जाती हूँ. उन आँखों में उठते सवाल को सहने की शक्ति नहीं है मेरे पास. सभी तो जैसे एक दूसरे से अपने से यही पूछते लगते हैं कि तुम कहाँ खो गए. पर ऐसे सवालों के भी क्या जवाब होते हैं. अनुत्तरित प्रश्न हथौड़े की तरह दिमाग से टकराते हैं ऐसा क्यों हुआ, ऐसा हमारे ही साथ क्यों हुआ. और जब कहीं कोई जवाब नहीं मिलता आँखें झुक जाती हैं आँसुओं के बोझ से भारी हो जाती हैं बरस पड़ती हैं. कोई इस दुनिया को छोड़ चुका हो चला गया हो ऊपर अनुपम लोक में तो क्या उसका खत आता है, तुम नहीं थे पर तुम्हारी चिट्ठी आयी, वही जानी पहचानी लिखावट और.. भाभी, शब्द जैसे जला रहे थे, आज तुम नहीं हो मैं तुम्हारे कमरे में देख रही हूँ तुम्हारी किताबों को, सजाये गए सामान को. इन सबमें तुम्हारा स्पर्श है अनगिनत यादें हैं. यह सब लिखकर उसका मन जैसे खाली हो गया वह नन्हें के साथ खेलने लगी.




   

चूहे की खिटपिट



जून का और पत्र नहीं आया. आज दोपहर छोटे भाई की शादी का कार्ड मिला, जो खुशी सामान्य हालातों में होती वह महसूस नहीं हुई, फिर भी कार्ड हिंदी में है, उन सभी का नाम है, देखकर अच्छा लगा, शादी में जायेगी. सोनू के लिये यह एक अवसर होगा, उसके जीवन की दूसरी शादी, पहली बार बुआ की शादी में वह मात्र चार महीने का था. वह भी सबसे मिल पायेगी, मामा, मामी, बुआजी और सारे रिश्तेदारों से. आज एक पत्र और आया है, गुजरात से मौसा जी का. पढ़कर सभी को अत्यधिक क्षोभ हुआ. सगे रिश्तेदार होकर लोग इस तरह का व्यवहार करते हैं. किसी की मृत्यु हो जाने के बाद उसके माता-पिता से ऐसा व्यवहार, सचमुच यह दुनिया पैसे से ही चलती है. भावनाओं से ज्यादा कीमत पैसे की ही है.

आज इतवार है, कल वह कुछ नहीं लिख सकी. आज का दिन अच्छा बीता. माँ-पिता आज शांत रहे. सुबह नन्हें ने कहा चाचा आसाम में हैं. बड़ा होकर समझ जायेगा कि चाचा कहाँ हैं. जून का पत्र कल आयेगा और चार दिन बाद तो वह आ भी रहे हैं. मौसम ठंडा हो गया है, कल रात एक के ऊपर एक दो चादर ओढ़ी तो ही सो पायी.

रात भर स्वप्न देखती रही जून आ गए हैं और पिछली  कई रातों को उसने स्वप्न में उसे देखा है. अगर वह ना आये तो? यह सोचकर अच्छा नहीं लगता, उसका पत्र भी नहीं आया..सोचा होगा जब स्वयं ही जा रहा है तो पत्र की क्या जरूरत है. कल उसने स्वप्न में एक सफेद कमीज, काली पैंट पहने लडके को दूर से आते देखा, सोचा शायद उसका भाई है पर पास आकर पता चला वह नहीं था, वह बिना उन्हें देखे आगे निकल गया. जाने वह कहाँ होगा, होगा भी या नहीं.

वह भाई की शादी में गयी और लौट भी आयी. जून आ गए थे और उसके अगले दिन वे गए. नन्हा और वह शादी में, वह स्वयं दिल्ली चले गए. वहाँ सभी से मिलना हुआ, शादी का कार्यक्रम भी अच्छी तरह सम्पन्न हो गयी. वापसी में वह भाभी के भाई-भाभी के साथ आयी. आज ही उसने माँ को पत्र लिखा है जून को भी. यहाँ दो महीने रहने के बाद वह वापस जायेगी  अपने घर. वैसे यह भी तो अपना ही घर है बचपन के अपने घर से ज्यादा अपना घर.

कल फोन आया था पड़ोस में, उन्होंने बुलाकर बात करवायी, बहुत अच्छा लगा इतने दिनों बाद जून से बात करके. अब केवल बारह दिन ही रह गए हैं, जब वह आएंगे. किसी चूहे की आवाज आ रही है जहाँ सोनू सोया है, उसके पीछे की अलमारी के पास से. आज संभवतः उन्होंने पहली बार खाना समय पर खा लिया है, तीन बजने में दस मिनट हैं, उसने सोचा कुछ लिख ले या सूची ही बना ले कि उन्हें यहाँ से क्या-क्या लेकर जाना है. कल रात स्वप्न में फिर उसे देखा, उसे लगा वह मोटरसाइकिल पर बैठाकर घुमा रहा है, और इतनी धीमे अच्छी तरह चला रहा है जैसे हवा में उड़ रही हो. कभी वह बड़ा भाई बन जाता था कभी जून कभी खुद, कुछ समझ नहीं आया कैसा स्वप्न था.
क्रमशः

Wednesday, August 29, 2012

स्वप्नों सा संसार



दो सप्ताह बाद उसे कुछ लिखने का समय और सुविधा मिली है. यहाँ आये इतने दिन बीत गए, जून वापस असम चले गए. सभी रिश्तेदार भी एक-एक करके चले गए. अब घर खाली हो गया है. आज छोटी ननद भी कॉलेज गयी है. नन्हा ऊपर खेल रहा है अपने दादाजी के साथ. दादी-दादा दोनों का मन स्नेह का असीम सागर है, कितना गहरा दुःख मन में छिपाए ऊपर से खुश रहने का प्रयत्न करते हैं. सासूजी तो दिन में रोने के कई बहाने निकाल लेती हैं पर पिता शांत ही रहते हैं. एक दिन उसने देवर के खत पढ़े न जाने कितने मित्रों के खत आते थे उसके नाम. उसकी एक दीदी नीला को उसने पत्र लिखा था, मिल गया होगा. मन होता है उसकी उस मौसेरी बहन को पत्र लिखे जो अंतिम घड़ी में उसके साथ थी, पर माँ को पसंद नहीं है. आज जून का पत्र भी आना चाहिए, कल उसका फोन आया था पर उनके पहुंचने के पूर्व ही कट गया, कल शाम वे उसके एक मित्र के घर गए कि वहाँ उसका फोन आयेगा पर उनका फोन ही खराब था. उसका ध्यान अपने लम्बे नाखूनों पर गया, इतने दिन काटने का समय ही नहीं निकाल पायी.

कल रात वे सभी भोजन कर रहे थे कि जून का टेलीग्राम मिला. पहले तो टेलीग्राम का नाम सुनकर ही सब चौंक गए, फिर वह यह सुनते ही कि उसके नाम है, वह घबरा गयी, पर जून की कुशलता का तार था और उसने जानना चाहा था कि वे कैसे हैं, लगता है उसे उसका पत्र नहीं मिला है. परसों तक नहीं मिला होगा, उन्हें भी कल मिले उसके तीन पत्र एक साथ, अब तो जरूर मिल गए होंगे चार-पांच खत जो उसने इतने दिनों में पोस्ट किये. आज उसने कहा, वह छोटे भाई की शादी में जाना नहीं चाहती पर वे लोग जाने के लए बहुत जोर दे रहे हैं. सोनू के लिये एक जूता खरीदना है, कल अपनी  पैंट सिलवाने दादाजी के साथ गया, पहली बार उसकी नाप दिलवाई गयी. देवर के एक मित्र ने लद्दाख के तीन फोटो भेजे हैं. उसके अन्य मित्रों के भी चार-पांच पत्र आ चुके हैं, वह सोचने लगी कि सभी को जवाब दे या एक को लिख दे, वह अन्य सबको सूचित कर दे.

पिता का दुःख माँ के दुःख से बड़ा लगता है. दोनों दुखी हैं. दोनों को दुखी होने का अधिकार है. दोनों का युवा पुत्र दुनिया छोड़कर चला गया है. कहाँ गया है क्यों गया है यह भी कोई नहीं जानता. दुर्घटना तो दुर्घटना होती है इसमें कौन, कब, क्यों, कहाँ जा रहा है इसका हिसाब नहीं रखती. पर उनका दुःख कौन बांटेगा, कौन समझायेगा उन्हें और समझाने से क्या वह समझ जायेंगे. जगे हुए को जगाना कितना मुश्किल होता है वैसे ही दुखी व्यक्ति को समझाना भी. पता नहीं क्यों, पर उसे ऐसा लगता है.
कल रात दो स्वप्न देखे एक शुभ और एक अशुभ. वह और जून किसी पर्वतीय स्थल पर शायद गोवा असम, दार्जलिंग तीनों में से किसी एक जगह पर घूम रहे हैं, सीधी सड़क है, दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे घने वृक्ष हैं, वे चलते ही जा रहे है, सड़क खत्म होती है, दायीं तरफ नीचे घाटी है और बाएं किनारे ऊँचा टीला, जिस पर बहुत सारे हाथी हैं. पहले तो वे प्रकृति की सुंदरता निहारते रहते हैं, फिर जैसे ही उसकी नजर जाती है, वह कहती है हाथी, और एक हाथी जून के पीछे लग जाता है. वह आगे दौड़ता है वह पीछे है. तभी हाथियों के बच्चे भी नीचे उतर आते हैं एक बच्चा उसके पीछे पड़ता है पर उसे चोट नहीं आती. तभी एक जीप आती है, दरवाजा खुलते ही वह बैठ जाती है. ड्राइवर कहता है, your husband is in hospital . उसके बाद जून की मेडिकल रिपोर्ट देखती है औए सपना टूट जाता है.
दूसरे स्वप्न में देखा कि ननद माँ से कह रही है, भाभी का स्वप्न पूरा हुआ, यानि वह माँ बनने वाली है. पता नहीं क्यों आजकल उसे भी ऐसा लगता है. मगर ऐसा होने का कोई कारण नहीं. कितु कभी-कभी चमत्कार भी तो होता है.  

Tuesday, August 28, 2012

जीवन की डोर मृत्यु के हाथों में



कल अंततः वह चिर-प्रतीक्षित टेलीग्राम मिला. भेजे जाने के पूरे पांच दिन के बाद, अभी कुछ देर पूर्व वे लोग आये थे जिनके साथ उसे जाना है, उन्हें भी तार मिला है. जून स्टेशन पर लेने आएँगे. कल भी कुछ लोग आये, उसने सोचा कि माँ या छोटे भाई को पत्र लिखे पर लिखना शुरू किया ही था लगा हाथों में शक्ति ही नहीं है, वह बात लिखे ऐसा सोचते ही इतनी जोर से रुलाई आयी कि थोड़ी देर के लिये पड़ोस में चली गयी मन को हटा कर दूसरी बातों में लगाने के लिये. रात को नींद बार-बार उचट जाती थी, इस वक्त भी हाथों की ताकत कम हुई लगती है, लगता है ब्लडप्रेशर घट गया है. अब वहाँ जाकर ही ठीक होगें मन व तन दोनों. उसने सोचा पत्र भी अब वहीं जाकर लिखेगी.

अभी कुछ देर पूर्व ही वह और सोनू एक परिचित के यहाँ से लौटे हैं. सुबह ही उनका फोन आया था कि वे दोपहर का भोजन उनके साथ करें, उन्होंने भी पूछा कि अपने घर पर कोई पत्र लिखा है या नहीं, ऐसा नहीं कि वह लिखना नहीं चाहती, पर क्या लिखे, कैसे लिखे ? कुछ समझ नहीं आता. जून को भी उसने कि पत्र नहीं लिखा, अब दो-तीन दिन बाद तो वे मिलेंगे ही. कल उसकी असमिया सखी ने भी कहा था कि वह लंच उसके साथ करे, सभी बहुत ध्यान रख रहे हैं, पर रह-रह कर आँखें भर आती हैं, दुःख जितना गहरा हो उसका घाव उतना ही देर से भरता है, और यह घाव तो जीवन भर भरने वाला नहीं है.

नन्हें ने उसकी डायरी के इस पेज पर आड़ी-तिरछी पंक्तियों में पहले से ही कुछ लिख दिया है. अभी कुछ मिनट पहले उसने माँ-पिता को पत्र लिख ही दिया और पोस्ट करने के लिये पड़ोस में देकर आयी है. मन फिर बोझिल हो गया है, और आज सुबह पांच बजे होंगे शायद, जब वह उठी थी, तो सीधी खड़ी नहीं हो पा रही थी. अभी भी चलने पर लगता है कि आगे की ओर गिर रही है. क्या चक्कर है यह, जिंदगी ही एक घनचक्कर है. भाई ने उन सबको धोखा दिया, साथ चलेगा ऐसे सपने दिखाकर बीच राह में छोड़ कर चला गया. कभी-कभी वह सोचती है अब तो वह मुक्त है चाहे जहाँ आ जा सकता है, हो सकता है यहीं कहीं आसपास हो और जो वह लिख रही है वह पढ़ रहा हो, अब तो बहुत सजग रहना होगा, वह तो सब जान जायेगा शायद मन की बात भी. नन्हा अभी सो रहा है अभी सात भी तो नहीं बजे, कल रात वह जल्दी सो गयी थी शायद नौ बजे से भी पहले.
क्रमशः

Monday, August 27, 2012

मृत्यु का आघात



कल वे अपने परिचित दम्पत्ति के साथ चाय बागान गए, फोटोग्राफी की. सड़क के दोनों ओर ढलान पर लगे टी गार्डन यहाँ बहुतायत में हैं, पहले भी कई बार वे इन्हें देखने गए हैं पर उनके मध्य जाकर पहली बार चित्र उतारे. वह लिख रही थी कि पड़ोसिन ने आवाज दी, वह चावल की फुलवड़ी बनाने में उसकी मदद चाहती थी. कल शाम उसने इडली बनायी थी दो परिवारों को बुलाया था. नन्हा बहुत समझदारी भरी बातें कर रहा था, सभी उसकी प्यारी बातें सुनकर हँस रहे थे. उसे अब डांटने की जरूरत नहीं पड़ती बातों को समझने लगा है व खुद की बात भी समझा देता है.

आज सुबह वे जल्दी उठे थे, पर विडम्बना यह थी कि जून को सुबह फ्लाईट पकड़नी थी, इसलिए वे जल्दी उठे थे. कल दोपहर ढाई और तीन बजे के मध्य यह हृदय विदारक समाचार मिला कि जून का छोटा भाई सभी को छोड़कर चला गया. मानव मन भी कितना मजबूत होता है, बड़े से बड़ा आघात भी वह सह लेता है, नहीं तो यह लिखते समय उसके हाथ कांप रहे होते. कल जून ने कैसे इसे झेला होगा, किस तरह दिल पर पत्थर रखकर वह गया है, यह सिर्फ वही जान सकता है. कल रात भर वह सो नहीं सका.

आज सुबह नन्हा सिसकियाँ भरता हुआ उठा, पापा कहाँ हैं ? यह उसका पहला सवाल था, किस तरह मुँह बना-बना कर अंदर ही अंदर रुलाई पी रहा था वह, जाने उसने सपने में क्या देखा था. बाद में बोला पापा पिक्चर में गए हैं, जब उसने कहा कि वह बनारस गए हैं दादी, बुआ को लाने. कल दिन भर किसी न किसी के आते रहने से पता ही नहीं चला शाम कब हो गयी. खाना भी बन कर आ गया था, आज भी सब्जियां भिजवायीं हैं उसकी एक परिचिता ने. ये सब लोग न होते तो जून और वह कितने अकेले पड़ गए होते. जून घर पहुँच गए होंगे, उसने सोचा, उनका टेलीग्राम कब मिलेगा उसे, शायद कल ही मिले. नन्हा कल दिन भर सोया ही नहीं. आज सोया है.

आज उसे गए तीसरा दिन है, आज तो तार जरूर आना ही चाहिये. वहाँ जाकर वह माँ-पिता को सम्भालने में लग गया होगा, उसे याद तो रहा होगा पर वक्त कहाँ मिला होगा. पता नहीं वे लोग कैसे होंगे, हर वक्त यही ख्याल आता है दिमाग में, जब भी कोई मिलने वाला आता है, सहानुभूति दिखाता है दुःख जैसे और स्पष्ट हो जाता है. कल शाम को मिला देवर का पत्र व कार्ड पढ़कर तो वह आँसू रोक ही नहीं पायी. दो हफ्ते पहले उसने पोस्ट किया था वह पत्र. पता नहीं क्या करने गया था वह गुजरात. हँसता गाता कोई इंसान ऐसे देखते-देखते चला जाय तो कैसा लगता है.

कल वह कुछ नहीं लिख पायी. सुबह पांच बजे होंगे, नींद खुली तो मालूम हुआ कि कमर में हल्का दर्द है, उठी अलमारी खोली और फिर अचानक आँखों के सामने जैसे अँधेरा छा गया, दिल घबराने लगा, वह बैठ गयी फिर दो मिनट बाद उठकर बिस्तर पर गयी बेहद दर्द और कमजोरी महसूस हो रही थी, पता नहीं कितनी देर लेटी रही, फिर धीरे-धीरे दर्द कम होता लगा, नन्हा नींद में आकर उसकी बाँह पर सो गया और उसे लगा उसी क्षण से दर्द कम कम हो रहा था. दोपहर को आने वालों का सिलसिला शुरू हुआ, न ही कल ही न आज ही कोई समाचार मिला. वह चार दिन बाद जायेगी एक परिचित दम्पत्ति के साथ. देवर नहीं है अब धीरे-धीरे मन ने इस बात को स्वीकार कर लिया है.  

Saturday, August 25, 2012

बात फूलों की रात फूलों की



आज बड़ी भाभी के परिवार में एक शादी है, उसने सोचा सभी वहाँ गए होंगे. कुछ महीने पूर्व जहाँ एक मृत्यु के कारण गमी का माहौल था अब रौनक होगी, फिर भी उस दुःख की छाया कहीं न कहीं अवश्य पड़ रही होगी. उन्हें भी कार्ड मिला है, उसने सोचा जवाब लिखेगी. बड़ी ननद का खत आया है तथा सदा की तरह उसे नहीं भाई को लिखा है, अब उसका जवाब तो उन्हीं को देने दो.

मन में कैसी अनजानी अनदेखी हिलोरें सी उठ रही हैं. पोर-पोर प्यार में डूबा हुआ, मौसम भी मन को भाने वाला है, ठंडा ठंडा...मन-प्राण को शांत करने वाला. वर्षा की बूंदें एक संगीत उत्पन्न कर रही हैं, कल द्विजेंद्रनाथ निर्गुण की एक अनूठी सी कहानी पढ़ी, ‘सरस्वती’ पढ़ते-पढ़ते विजयलक्ष्मी याद आती रही, ऐसी ही तो थी वह वाचाल, लगातार कुछ न कुछ बोलते रहने वाली. शायद उसने भी पढ़ी हो यह कहानी. उसकी भी शादी अब तक हो गयी होगी, उसका पता शायद किसी पुरानी डायरी में हो. कल क्लब में एक फिल्म थी, हिंसा की पराकाष्ठा थी जिसमें, वे जल्दी ही लौट आये.

कल शाम से ही मन उद्वगिन था, रात को नींद नहीं आ रही यही. साढ़े ग्यारह तक पढ़ती रही उसके बाद सोयी, जून भी उसे देखकर परेशान हो गए थे, पर वह खुद ही अपनी उदासी का कारण नहीं समझ पाती. उसी का परिणाम है आज सुबह एक घंटा बगीची में काम किया, डहेलिया की कटिंग्स लगायी हैं, देखें कितनी बचती हैं. गुलदाउदी के पौधों को भी ठीक किया, माली ने क्यारी ठीक कर दी है, शाम को फ्लॉक्स के बीजों का छिड़काव भी कर देगी. पौधों की प्यार से देखभाल करने से मन प्रसन्न है. उसने सोचा आज से नियमित कुछ देर बगीचे में काम करेगी. आज दोपहर उसे दोनों साड़ियों पर फाल भी लगानी है.

पूजा की छुट्टियाँ भी गुजर गयीं, आज तीन दिन बाद जून ऑफिस गए हैं और धूप भी निकली है आज बहुत दिनों के बाद. सोनू पूरे एक घंटे से दूध का गिलास लेकर बैठा है, बीच बीच में खेलने लगता है, चम्मच से पिलाऊं तो फटाफट पी लेगा पर उसे खुद पीना कभी तो सीखना पड़ेगा. आज सुबह माली आया, पैंजी के बीज भी लगा दिए हैं अब सिर्फ स्वीटपी के बाकी हैं. पूजा के दौरान एक दिन वे दिगबोई गए था, वहाँ गोल्फ फील्ड का खुला मैदान बहुत अच्छा लगा. कल दशहरा देखने गए, बारिश के कारण रावण ठीक से जल नहीं पाया.

Friday, August 24, 2012

पानी में छप छप




कल गणेश पूजा के कारण जून का ऑफिस बंद था, वह घर पर ही थे. नन्हा कल दिन में पानी से खेलता रहा, उसे कितना मना करो पानी में जाना छोड़ता ही नहीं, कितना गर्म था कल मौसम, पर यहाँ के मौसम में ठंड बहुत जल्दी लग जाती है, रात को वह नाक से श्वास नहीं ले पा रहा था, मुँह से श्वास ले रहा था. अभी उसने वाल्मीकि रामायण का पहला सर्ग पढ़ा. आज बादल भी पुनः आ गए हैं, हवा भी बह रही है. पिछले कुछ दिनों से वे रात को भी चावल खाते हैं, यहाँ तो सभी लोग दोनों समय चावल ही खाते हैं, रोटी नाश्ते की वस्तु है. लेकिन रात को चावल खाने का असर तन पर व नींद पर साफ झलक रहा है. कल से ओलम्पिक खेलों की शुरुआत हो रही है. कल विश्वकर्मा पूजा भी है.
उस दिन वह कालोनी में ही एक परिचित महिला द्वारा घर पर चलाए गए ब्यूटीपार्लर में केश कटवाने के लिये गयी थी, उन्हें जुकाम था, एक-दो दिन में उसे भी गले में खराश सी होने लगी. शायद उन्हीं से संक्रमण हुआ हो, पहले हाकी मैच में भारत की हार हो गयी है, आगे क्या होगा आभास होने लगा है.
आज चार-पांच दिनों के बाद उसने डायरी खोली है. वर्षा तेज हो गयी है, पौधों के लिये बहुत अच्छा है, पंजाब, हरियाणा, काश्मीर व उत्तरप्रदेश में भी वर्षा बहुत हो रही है, बाढ़ भी आ गयी है. कैसा अजीब व्यवहार है प्रकृति का, प्रकृति का संतुलन तो मानव ने ही बिगाड़ा है न, भुगतना भी उसे ही होगा. कल दीदी का पत्र मिला और उसने फौरन जवाब भी दे दिया. पिता का पत्र भी आया छोटे भाई का विवाह तय हो गया है, लगता है उसे अकेले ही जाना होगा. मौसम आज भी ठंडा है, नन्हें ने बिस्तर गीला कर दिया है, कपड़े सूखते ही नहीं है, किचन में जो रस्सी लगायी थी वह टूट गयी है. कल शाम जून ने ग्वार की फली की सब्जी बनायी थी. आजकल सुबह टीवी पर साम्बू नामक धारावाहिक शुरू हुआ है, अच्छा है.

अक्तूबर का प्रथम दिन ! आज सुबह नींद बहुत जल्दी खुल गयी थी कौओं की आवाजों से. आज धूप में उसने कारपेट रखे हैं. कल शाम वे जून के दफ्तर गए, कम्प्यूटर पर एक गेम खेला, दूसरे में सोनू परेशान हो गया सो वापस लौट आये. जून सब्जियों के बीज ले आये हैं, माली पहले खाद डालकर क्यारियां बनाएगा. नन्हा अपने में मग्न होकर खेल रहा है बीच बीच में आकर उससे मिल जाता है.
उसे तिथि देखकर याद आया कि आज ही के दिन तीन वर्ष पूर्व जून मोरान गए थे, शाम को उसने फोन क्या उदासी भरा, रात को वह आये, कैसे अनोखे थे वे दिन. शायद पड़ोस के घर से बच्चे के रोने की आवाज आ रही है. उसने झांक कर कमरे में देखा सोनू सुखद नींद में सोया था.
   




Thursday, August 23, 2012

किताबों की दुनिया



सत्य, प्रिय, हितकर और दूसरे को उद्वेग न देने वाले वचनों को बोलना और स्वाध्याय वाणी का तप है. अभी भगवद् गीता के सत्रहवें अध्याय में यह श्लोक पढ़ा. पिछले कई दिनों से जब से उसने सुबह गीता पाठ में नियमितता बरती है उसकी वाणी कुछ कोमल होती जा रही है. जून को परेशान, दुखी करने वाले कई शब्द जो वह पहले हृदय हीनता का परिचय देती हुई कह जाती थी, कहीं विलीन हो गए. उसने फिर वही पुरानी दिनचर्या शुरू कर दी है, पहले स्नान, फिर पाठ, फिर डायरी और उसके बाद नन्हें का कार्य फिर भोजन बनाना. संभवतः आज सफाई कर्मचारी भी आये, पिछले हफ्ते बाढ़ के कारण नहीं आया. बाढ़ का प्रकोप अभी भी बना हुआ है, आज ही खबरों में सुना तेल का उत्पादन भी ठप है. कल इतवार शाम की फिल्म किरायेदार अच्छी थी और दोपहर की बंगला फिल्म फटिक चंद तो उससे भी अच्छी थी.

हफ्तों से घर से पत्र नहीं आया, पता नहीं क्या बात है. बल्कि कल छोटी बुआ का पत्र आया था, फूफाजी का स्वास्थ्य पहले से ठीक है. मौसम आज सुहाना है, पिछले हफ्ते उसे कॉमन कोल्ड हो गया था, कुछ करने का उत्साह नहीं था. जून ने उसी दिन दांत निकलवाया हा, उसे सूजन थी अब दोनों ठीक हैं.

वर्षा अभी भी हो रही है. ऐसा लगता है कि जब भी वह डायरी लेकर बैठी है वर्षा लगातार होती ही रही है. आज वे तिनसुकिया जायेंगे यदि तब तक मौसम ठीक हो गया. कल उसने हिमांशु श्रीवास्तव की किताब खत्म की, नई सुबह की धूप, अच्छी पुस्तक है, अब दूसरी पुस्तक निमाई भट्टाचार्य की मेमसाहब भी पढ़ेगी. बहुत दिनों पहले भी पढ़ी थी जब जून को पत्र लिखा करती थी, कुछ पंक्तियाँ उसमें से चुरा कर भी लिखी थीं. उसने सोचा देखें अब उन लाइनों का वैसा असर होता है यह नहीं. कल चित्रहार में साधना का नृत्य और यह गीत सुंदर था, ‘घेरे नजरें हसीं यानि तुम हो हसीं..’

कल वे तिनसुकिया गए थे, बाद में वर्षा थम गयी थी . अच्छा रहा ट्रिप, खूब खरीदारी की, वाल्मीकि रामायण, ओवन, कुकर, इडली स्टैंड, चप्पल तथा भुने हुए चने. शाम तक थकान हो गयी थी. आलू- गोभी की तहरी ही बनायी. आज अभी आठ बजने वाले हैं, नन्हा अभी सोया है, दस मिनट ही रामायण पाठ किया होगा कि घंटी बजी, स्वीपर आया था. एक दिन भी सफाई न हो तो घर कितना गंदा हो जाता है. सुबह रसोईघर साफ किया, कितनी चीटियाँ आ जाती हैं आजकल हर जगह. उन्होंने बैठक में एक शो केस कम बुक केस रखा है, कमरा कितना भर सा गया है, जून ने किताबें भी कितने करीने से लगायी हैं उसमें.    





Wednesday, August 22, 2012

बारिश लायी बाढ़



कल उसने तीन बार लिखने के लिये डायरी उठाई पर हर बार कुछ न कुछ बात हो गयी और आज अभी सुबह के आठ बजे हैं, सोनू अभी उठने वाला है. कल दिन भर व रात भर भी पानी बरसता रहा, मौसम में खुनकी है अर्थात नमी..सुबह एक बार उठकर फिर सो गयी, उठी तो जून तैयार होकर जा रहे थे, नाश्ते में कॉर्नफ्लेक्स व कोला खाकर, यहाँ केले को कोला कहते हैं, शुरू में यह बात उन्हें अजीब लगती थी अब मुँह से कोला ही निकलता है. उसने एक बार फिर खुद से वादा किया है कि आज से उसका ज्यादा ध्यान रखेगी, कल बहुत दिनों बाद लाइब्रेरी से दो किताबें लायी, बाद में वे एक बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में गए, अच्छा लगा सभी परिचित लोग थे वहाँ.

कल शाम जून और उसने एक प्यारा सा वादा किया, मधुर बातें कीं, एक दूसरे के स्नेह में डूबते-उतराते रहे, सुबह जल्दी उठ गए तभी आज सभी काम समय से हो गए हैं. कल शाम एक नया परिचित तेलुगु जोड़ा उनके घर आया, श्रीमती राव की एक बात उसे बहुत पसंद है, हर समय टिपटॉप रहती हैं, तैयार चुस्त-दुरस्त. एलआइसी की नौकरी के लिये तैयारी कर रही हैं, परीक्षा सितम्बर में है. इसी हफ्ते माँ व ननद जा रही हैं, जून उन्हें छोड़ने गोहाटी तक जायेंगे. नन्हा बुआ से नाश्ता खा रहा है, उसे माँ की साड़ी पर फाल लगानी है, जो उस दिन जल गयी थी उससे प्रेस करते समय.

जून उन्हें गोहाटी तक छोड़कर कल वापस आ गए. दो दिन केवल नन्हा और वह दोनों ही थे घर में, उसने लिखने नहीं दिया, आज भी पेन मांग रहा था, उसे किसी काम में लगाकर वह आयी है. उनके पड़ोस की एक महिला जो बीमार थीं, आज महीनों बाद वापस आयी हैं, बेटे का जन्म हुआ है, गोल गोल शक्ल है बिल्कुल माँ जैसी. कुछ देर पहले वह मिलकर आयी. 

कुछ दिनों का अंतराल और आज छोटे भाई का जन्मदिन है, उसे पत्र लिखेगी उसने मन ही मन सोचा. नन्हा पड़ोस की दीदी के साथ खेल रहा है, आज वह स्कूल नहीं गयी. वर्षा जो यहाँ के जीवन का अविभाज्य अंग है, रात भर होती रही अब भी काले काले बादल बने हुए हैं. सुबह ठंड लग रही है कहकर जून ने नहाने में आनाकानी की तो वह उससे व्यर्थ ही नाराज हो गयी, सोचा है, उसकी पसंद के मूली के परांठे बनाएगी तो वह खुश हो जायेंगे,  

शहर में बाढ़ आ गयी है, बूढी दिहिंग में पानी बहुत बढ़ गया है. कल वे लोग नदी व बाढ़ देखने गए थे. सेटलमेंट एरिया में तो घरों में पानी घुस गया है. सेंट्रल स्कूल जाने वाली सड़क बिल्कुल पानी में डूब गयी है. संभव है रात भर में पानी कुछ कम हआ हो. डिब्रूगढ़ के कई गाँव खाली करवा दिए गए हैं, बहुत से लोग यहाँ भी स्कूलों में रह रहे हैं. बिहार में कल फिर भूचाल आया कुछ सेकंड्स के लिये. पिछले भूकम्प में हजारों व्यक्ति घायल हुए और पांच सौ मारे गए., शायद उससे भी ज्यादा, यहाँ भी पिछले कई दिनों से लगातार वर्षा हो रही है, कुछ देर को थमती है फिर शुरू हो जाती है. मौसम काफ़ी ठन्डा हो गया है.


















Tuesday, August 21, 2012

फिर आया भूमि कंप



आज सोनू जल्दी उठ गया, उसकी नाक जुकाम से लाल हो गयी है. बीच-बीच में उसे सम्भालते व कपड़े धोते आज काफ़ी समय लग गया, सारा काम व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पाया जैसे रोज होता है. उसका खुद का गला भी खिचखिच कर रहा है. कल शाम जब जून आया तो वह पिछले दरवाजे से बाहर जाकर खिड़की के पास खड़ी थी, लगातार खांसी हो रही थी और आँखों से पानी आ रहा था. ऐसे में किसी के सामने रहना उसे अच्छा नहीं लगता, जून की बात और है, वह उसे अंदर ले गया, पानी दिया और सहेजा. बाद में उनके एक परिचित दम्पत्ति अपनी सुंदर नन्हीं बिटिया को लेकर आये. जन्मदिन के फोटो बन कर आ गए है, पर वह बात नहीं है जो होनी चाहिए थी.

आज कितनी गर्मी है, पसीना पोंछते-पोंछते तौलिया भीग जाता है, सुबह से इधर-उधर चलते भागते काम करते सवा दस हो गए हैं. सुबह देर से उठो तो सभी कामों में देर होती चली जाती है. अगर घर का काम करते ही रहो तो कभी खत्म होने को ही नहीं आता, सुरसा के मुँह की तरह फैलता ही चला  जाता है. आराम करने के लिये भी वक्त चुराना पड़ता है दस मिनट ही सही, नन्हा आज ठीक लग रहा है, अभी बाहर पड़ोस की दीदी के साथ उसके घर गया है. सभी के पत्रों के जवाब लिखने हैं  उसने सोचा दोपहर में लिखेगी जब नन्हा सो जायेगा.

परसों वह सासूमाँ व ननद को लेकर अपनी एक तेलुगु मित्र के यहाँ गई थी और कल शाम उड़िया दम्पत्ति के यहाँ. नई दुल्हन ने बहुत अच्छा खाना बनाया था, पांच तरह की सब्जियां थीं. जून इस समय नहरकटिया गए हैं. तेरह को यदि बंद हुआ तो माँ की वापसी की टिकट कैंसिल करानी होगी.

कल सुबह वह किचन में दलिया निकाल रही थी कि भूकम्प का झटका लगा. जून ने आवाज दी और उसके बाद एकाध मिनट तक पूरा घर जैसे झूल रहा था. रात को समाचारों में सुना कि पश्चिम बंगाल, बिहार व दिल्ली में भी भूचाल आया था.

पिछ्ले एक घंटे से लगातार तेज वर्षा हो रही है. सब ओर पानी ही पानी झरर झरर झरता हुआ और बादलों की गड़गड़ाहट ! मानों आकाश में हजारों छेद हो गए हैं जिनमें से पानी छन रहा है. कल  दोपहर वे तिनसुकिया गए थे, उसने कितने दिनों से सोचा था कि वाल्मीकि रामायण लायेंगे पर वहाँ जाकर पता करना याद ही नहीं रहा. भोजन में आज वह उत्तपम बना रही है, सो केवल नन्हें के लिये खिचड़ी बनानी है जिसमें वह सभी सब्जियां डाल देगी. वह बाहर खेलने गया है, दादी व बुआ कार्ड्स खेलने के लिये बुला रही हैं.

Monday, August 20, 2012

चल कहीं दूर निकल जाएँ



आज भगवद् गीता का दूसरा अध्याय पढ़ा, ऐसे लगा जैसे पहली बार पढ़ रही है. एक-एक श्लोक अनमोल हीरे की तरह है, सचमुच गीता भटके हुए को राह दिखाने वाली है. उसने सोचा कि भविष्य में सदा इसका नियमित पाठ करेगी. सवा आठ बजे हैं, सोनू के उठने का समय. कल ‘एक बार फिर’ देखी, कुछ खास नहीं लगी, शायद बड़े स्क्रीन पर ज्यादा सुंदर लगती खासतौर पर लन्दन के दृश्य. आज ईदुलफितरहै. जून के दफ्तर में अवकाश है. सुबह उसने रसोईघर साफ किया, जून ने सारे घर के जाले साफ किये. मौसम में वही ठंडक है और आसमान में बादल. कल शाम वे इतवार की फिल्म देख रहे थे कि एक परिचित दम्पति मिलने आये, एक बार पहले भी वे रविवार को आये थे, वे लोग स्वयं कभी किसी के यहाँ इतवार शाम नहीं जाते. वह लिख रही थी कि नन्हा बार-बार उसका पेन  लेने की कोशिश करने लगा है और गोद में बैठना चाहता है, जब वह पाठ करती है तो किताब उठाता है, कभी हाथ जोड़ कर प्रणाम करता है. उसकी बांह पर मच्छर ने काट लिया है, कोमल त्वचा पर निशान उभर आया है.

आज डिब्रूगढ़ बंद है, जून घर में हैं, सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, सभी का स्नान, नाश्ता हो गया है और अब सभी आराम से बैठे हैं. कल वे जून के बॉस के घर गए चाय पर गए थे. उनका विशाल व भव्य बरामदा व बैठक देखकर तो वह मंत्रमुग्ध रह गयी. इतना साफ-सुथरा आलीशान लग रहा था और शांत व शालीन भी. एक एक वस्तु चमक रही थी. उन्होंने भी अपनी बैठक की साज-सज्जा में कुछ परिवर्तन किया है, आँखों को भला लग रहा है. अपने घर को कैसे सुंदर बनाएँ यही सोच रहे हैं कल रात से. उसकी असमिया मित्र ने आज बहुत सुंदर पारंपरिक पोषाक पहनी थी, मेखला-चादर, काले कपड़े पर लाल व हरे रंग से कढ़ाई की हुई थी. उसने सोचा वह भी उससे सीखेगी और अपना एक कुरता काढ़ेगी.

कल रात पता नहीं जून को क्या सूझा कि अपनी मूँछें ही साफ कर दीं, अच्छा लग रहा है उसका चेहरा ऐसे भी, अपनी उम्र से कम का मालूम होता है. आज सम्भवतः नन्हें के जन्मदिन के फोटो मिल जाएँ. कल शाम वह जून के साथ सब्जी व चीनी लेने डेली मार्केट गयी थी, चीनी नौ रूपये किलो हो गयी है. कल उनकी लेन की एक महिला ने पत्रिका क्लब का सदस्य बनने से यह कहकर इंकार कर दिया कि उनके पास अखबार तक पढ़ने का समय नहीं है पत्रिका तो दूर की बात है, नूना को बहुत आश्चर्य हुआ, वह एक और महिला से मिली, सुख कर कांटा हो जाना किसे कहते हैं यह उन्हें देखकर जाना, बेहद दुबली हो गयी हैं कुछ ही महीनों में, पता नहीं क्या दुःख है या क्या रोग है जो उन्हें खा रहा है. मौसम हसीन है ऐसे में मन होता है कि दूर तक निकल जाएँ पर गृहस्थी के कामों में उलझे वे कहाँ जा सकते हैं.  










Saturday, August 18, 2012

केले का फूल



वर्षा रानी अपने पूरे साज-सिंगार के साथ आ गयी है. सोनू आज सुबह नींद में सिसकियाँ भर रहा था शायद नींद में कोई बुरा सपना देख रहा था. यह लिखकर वह उसे दूध देगी, अभी तक बोतल से पीता है, अब दादी-बुआ के जाने के बाद ही वे कोशिश करेंगे गिलास से पिलाने की. आज उसका मन शांत है और तन भी स्वस्थ है, कल रात नन्हा जब सो गया टीवी पर एक नाटक देखा ‘पाबंदी’, देखकर मन भर आया. रिटायर होने के बाद मन कितना कोमल होता है, छोटी-छोटी बातें भी चुभ जाती हैं. ३०-४० वर्ष की दिनचर्या अगर एकदम से छूट जाये तो पीड़ा तो होगी ही, कसक भी जो समय के साथ ही घट सकती है.

चार-पांच के लिये नैनी छुट्टी लेकर गयी है. उसका काम सब बाँट कर कर लेते हैं. कल रात को दिल को दहला देने वाली वर्षा हुई. बाहर सड़क, नाले और बच्चों का पार्क सभी पानी से भरे हैं. नन्हा अभी सोया है, उसके पेट पर एक मच्छर ने काट लिया है, उसे बोरोप्लस मिली नहीं, अभी ढूँढ कर लगायेगी. कल उन्होंने गुलजार की ‘इजाजत’ देखी, अच्छी लगी. कल जून ने कुछ तस्वीरें उतारीं, और रील भी बनने को दे दी एक हफ्ते में फोटो बन कर आ जाएँगी. आज बीएड की प्रवेश परीक्षा हो रही होगी और वह यहाँ है, उसका फार्म आखिर जमा नहीं हो पाया था. वैसे भी बीएड की प्रवेश परीक्षा का सूचना पत्र जब से उसे मिला था, उसे लग रहा था काफ़ी तैयारी करनी पड़ेगी, खैर अगले वर्ष सही.

‘नुक्ताचीं है गमेदिल उसको सुनाये न बने’ कल रात मिर्जा ग़ालिब देखकर सोयी थी. वर्षा रिमझिम के तराने गा रही है. कल वे सभी तिनसुकिया गए थे. ननदों व छोटी बहन के लिये वस्त्र खरीदे. बहन का टॉप पार्सल बना कर उसने जून को दिया है पर इतनी बारिश में पता नहीं पोस्ट ऑफिस जा भी पाएंगे या नहीं. कल शाम उसे पत्र लिखते समय उसकी कई बातें याद आ रही थीं. पौने आठ बजे हैं, अभी तक सब सो रहे हैं, जून अब पहले से भी ज्यादा ध्यान रखते हैं उसका और वह.. उसके लिए तो वह धूप, हवा, पानी की तरह हैं हर वक्त सासों में बसे हुए. कल रात बल्कि सुबह उसने स्वप्न में देखा कि उसका अपहरण हो गया है तभी जून ने उसे उठाया.

आज सब जल्दी उठे हैं तो उसे ही देर हो रही है हर काम में. नन्हा भी आज जल्दी उठ गया है. कल शाम क्लब में फिल्म होनी थी पर किन्हीं महिला की मृत्यु हो जाने के कारण स्थगित हो गयी, उनका डिलीवरी केस था, पिछले तीन-चार महीनों में यह चौथी मृत्यु है यहाँ. मौसम आज भी अच्छा है, वातावरण में शीतलता है, नैनी को गए कल आठ दिन हो जायेंगे, पिछली लाइन की बंगाली महिला परेशान हैं वहाँ भी वह काम करती थी, पर उसे कोई दिक्कत नहीं हुई, उसका काम सुचारु रूप से चलता रहा. कल बड़ी ननद का पत्र आया है वह थोड़ी परेशान है, वह एक बार वहाँ जाना चाहती है उसके ससुराल में. टीवी पर ‘ताक धिना दिन ताक’ आ रहा है, नन्हें को बहुत पसंद है यह कार्यक्रम.
कल शाम वे उसकी असमिया मित्र के यहाँ गए, उसने आज इडली खाने के लिये बुलाया पर अभी- अभी कहा कि वह दाल भिगोना ही भूल गयी थी. उनके केले का फूल सब्जी बनाने के लिये कोई मांग कर ले गया था, पर बताया की कड़वा निकला, सारे फूल खाने के काम नहीं आते. मौसम अपने खूबसूरत रंग बिखेर रहा है, तनमन कितना हल्का रहता है, जून अपने साथ है और प्यारा सा सोनू, फिर आजकल समय कैसे बीत जाता है खाली समय का अहसास ही नहीं होता. 

Friday, August 17, 2012

कुछ तो खा लो




कल का इतवार कुछ अलग सा रहा, विम्बल्डन के कारण इतवार की फिल्म सुबह साढ़े बारह बजे से दिखाई गयी. उस समय टीवी का रिसेप्शन अच्छा नहीं था सो फिल्म वे देख नहीं पाए. शनिवार को वे फिर से तिनसुकिया गए थे, सोनू के लिये सैंडल व खिलौना और उसके लिये गाउन खरीदा, उसकी पसंद का एक अच्छा सा गाउन मिल ही गया. कल उसने सभी पत्रों के जवाब दे दिए. नन्हा अब बिल्कुल ठीक है, जब उसको बुखार था, उस दिन उसके हमउम्र मित्र की माँ तीन चार बार उसका हाल पूछने आयी थी.

कल शाम उन्होंने वीसीआर पर एक फिल्म देखी, ‘न्यू देहली टाइम्स’ जिसे देखने का बहुत दिनों से मन था, फिल्म की थीम काफ़ी अच्छी थी, किन्तु सासूमा व ननद को ज्यादा पसंद नहीं आयी, उन्हें ‘सिलसिला’ देखने का मन था, पर लगता है आज भी उसका कैसेट मिल नहीं पायेगा. आज फिर काफ़ी दिनों के बाद उसकी बांयी बांह में पीड़ा है. कल रात कई स्वप्न देखे एक के बाद एक और परसों रात देखा वह स्वप्न..उसे आश्चर्य हुआ, उस पर तो एक कहानी लिखी जा सकती है. सभी पात्र उसके आसपास के थे, बस एक को छोड़कर जिसकी शक्ल तक नहीं दिखी पर जिसका इतना प्रभाव था. नन्हा कल दिन भर खेलता रहा, पर अभी उसकी आँख पूरी तरह ठीक नहीं हुई है, और भोजन करने में भी बहुत आनाकानी करता है, कभी कभी उसे डांटना पड़ता है, शायद ज्यादा लाड़-प्यार की वजह से ही वह बिगड़ गया है. लगता है उसे कोई टॉनिक देना पड़ेगा, उसे आजकल भूख जो नहीं लगती.
 कल शाम उन्होंने नन्हें के जन्मदिन की पार्टी के लिये आने वाले मेहमानों व आवश्यक सामानों की सूची बनायी, पर आजकल वह इतना नटखट हो गया है कि लगता है जन्मदिन पर उसे सम्भालना एक बड़ा काम होगा. कुछ भी खाने में बहुत जिद करता है, शायद पिछले दिनों वह उस पर ज्यादा  ध्यान नहीं दे पायी, यही कारण रहा हो.

जून ने सुबह-सुबह कहा happy 7th july कल रात को जो कुछ हुआ उसके बाद उसका नन्हें और उसे स्नेह दिखाने, जताने का प्रयत्न मन को छू जाता है. सोनू को उसने पहले भी डांटा है, पर कल वह ज्यादा क्रोधित था, उसे भी पता नहीं क्या हुआ, शरीर जैसे जलने लगा और कांप रही थी वह, फिर बाद में आँसू. एक बात और समझ में आयी कि किसी भी माँ को अपने बेटे की बात कभी गलत नहीं लगती, शायद यही ममता है. बाद में जून को भी बहुत दुःख हुआ, उसने कहा तो है, अब वह गुस्सा नहीं करेगा. नन्हें के बिना वह कुछ भी नहीं और जून के बिना वे दोनों, और उन दोनों के बिना नन्हा.

नन्हें का जन्मदिन बहुत अच्छी तरह मनाया, उसे ढेर सारे उपहार मिले हैं. अभी अभी गीता में पढ़ा क्रोध करना तामसी प्रवृत्ति है, और उठते ही उसकी असमिया मित्र का भिजवाया एक कप मैदा देखकर तन-मन क्रोध से भर गया, पढ़े, सोचे का कुछ भी तो असर नहीं होता है फिर भी वह रोज पढ़ती है, शायद कभी मन के बंद कपाट खुल जाएँ. दिन भर गर्मी रही पर कल शाम मौसम तो ठंडा हो गया था, पर वह देर तक सो नहीं पायी, या वह जानबूझ कर नहीं सो रही थी, जब मन में कुछ न कुछ उमड रहा हो तो नींद को जगह कहाँ.

Thursday, August 16, 2012

झीनी झीनी पड़ी फुहार



कल दिन भर जून ने उससे विशेष बात नहीं की, उखड़ा-उखड़ा रहा और बिना कुछ कहे गुडनाइट कहकर सो गया. माना कि उसकी आँख में दर्द है पर मुँह में तो नहीं..खैर. आज सुबह माँ अस्पताल गयीं और एक्सरे आदि कराया. आजकल मौसम उनके अनुकूल है दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता.
इतवार बेहद अच्छा बीता, मधुर-मधुर सा, जून ने भी उससे पहले की तरह बात की, शायद उसे बाल कटवाने के बाद नूना का चेहरा पसंद आया, उसे खुद भी कितना हल्का-हल्का लग रहा था. चीना पाक में यह ब्यूटी पार्लर बहुत अच्छा है. परसों रात उसकी असमिया मित्र और एक परिचिता ने किसी चोर के बारे में बताया और उसने स्वप्न में आतंकवादी देखे. लेकिन कल के स्वप्न में जून द्वारा चलाए गए हवाई जहाज में उड़ती रही. कल वह दूसरी बार जून के साथ बाइक से तिनसुकिया गयी, आधे घंटे में वे वहाँ पहुँच गए. एक नाईट गाउन खरीदा जो माँ के नाप का निकला, उसने सोचा है कि अपने लिये कपड़ा लेकर सिलेगी.
आज सुबह उठकर वह जून को दफ्तर के लिये विदा करने बाहर आयी तो पता चला कि उस अधिकारी का परिवार असम छोड़कर जा रहा है जिसे उस दिन गोली लगी थी, सुनकर अच्छा नहीं लगा पर वे लोग कर ही क्या सकते हैं. साढ़े सात बजे हैं बाकी अभी सब लोग सोये हैं, उन लोगों के आने से घर कितना भरा-भरा सा लगता है. हर वक्त कुछ न कुछ करने को रहता है, दिमाग कभी भी शांत नहीं रहता, अर्थात कुछ न कुछ चलता ही रहता है. कल दिन भर बेहद गर्मी थी, वे लोग उनसे ज्यादा परेशान थे, उसे तो अब आदत हो गयी है, गर्मी ज्यादा नहीं सताती.

कल बीएड के फार्म के लिये भेजा २० रूपये का ड्राफ्ट वापस आ गया इस पत्र के साथ कि देर से भेजा गया जबकि उन्होंने उसे अंतिम तिथि से पूरा एक महीने पहले पोस्ट किया था. कल रात फिर वर्षा हुई, खाद फिर गीली हो गयी, माली उसके सूखने का इंतजार कर रहा था. नन्हें को अस्पताल ले गए थे उसके पैर में छोटी सी फुंसी हो गयी थी इन्फेक्शन हो गया है. सासु माँ की रिपोर्ट आ गयी है सब कुछ सामान्य है.

उसी इन्फेक्शन के कारण नन्हे को बुखार हो गया, दो दिन बाद उतरा. रात उसे परेशान देखकर वह बहुत घबरा गयी थी, नन्हें से बच्चे को इतनी पीड़ा इतनी बेचैनी, नींद में बार बार डर जाता था. पर अब सब ठीक हो गया है. कल भी दिन भर वर्षा होती रही जैसे आज सुबह हो रही है. सुबह वह बाहर गयी तो हल्की-हल्की फुहार पड़ रही थी. कितनी प्यारी लग रही थी सुबह, हरे हरे नहाये हुए पेड़ और काले काले बादल धुली ढली सड़क, और सुखद नींद में सोया नन्हा, सहलाता हुआ हथेली से जैसे लौ को ढकता हुआ सा जून. आज उसका मन बेहद खुश है, कल घर से पत्र आया था, उसका फार्म छोटा भाई मेरठ ले गया था. इस वर्ष तो उसका जा पाना कठिन ही लगता है, ठीक ही होता है जो होता है. अपने घर से इतनी दूर, यानि जून से इतनी दूर नन्हा और वह उसको कितना याद करेंगे. परसों माली ने गमलों में मिट्टी व खाद भर दी है, सभी पौधे सुरक्षित हैं.

Tuesday, August 14, 2012

हीट एंड डस्ट



मन उसके वश में नहीं है, कितना पढ़ती है, समझती है फिर भी न जाने कहाँ से उद्वेग, उदासी और उदासीनता के भाव मन में घर कर ही लेते हैं. वह शांत भाव जिसकी हर क्षण तलाश रहती है कहीं नजर आता ही नहीं. कल रात नन्हे के मित्र का बुखार एकाएक तेज हो गया जिसका जन्मदिन मनाया था. उसे हॉस्पिटल लेकर जाना पड़ा. जून वापसी में भीग गए. कल फिल्म देखी - Heat and dust , उपन्यास ज्यादा अच्छा था. फार्म आज भी नहीं आया, मनुष्य कितना विवश है, दीदी की बात का अर्थ अब समझ में आता है. सिर में जैसे कोई बात है जो चारों ओर से दबाव डालती रहती है हल्के-हल्के ही !
कल नहीं परसों उसने अपने सर्टीफिकेटस की फोटोस्टेट कॉपी व दो फोटो घर भेज दिए अब यदि उन्हें समय पर मिल जाएँ तो वे फार्म जमा कर सकते हैं नहीं तो इस वर्ष बीएड एक स्वप्न ही रह जायेगा. नन्हें को कल रात बुखार था कल सुबह से जुकाम था. इस वक्त ठीक लग रहा है. उसके गले में भी हल्की खराश है. अगले हफ्ते सासु माँ व दोनों ननदें आ रही हैं.

कल तीन दिन बाद सबको गोहाटी से लेकर जून आया और उसे उसका व्यवहार कुछ विचित्र सा लगा, उससे बात करने का स्नेह जताने का कोई प्रयत्न नहीं किया, बिस्तर में पहुंचते ही वह गहरी नींद में सो गया. पहले वह एक दिन के लिये भी जाता था तो वापस आते ही इतनी खुशी व्यक्त करता था. माना कि अब वह संभव नहीं था सबके सामने, पर रात को शुभ रात्रि भी नहीं. उसे समझ नहीं आया वह ऐसा क्यों कर रहा था.
कल सुबह एक ऐसी दुर्घटना के बारे में सुना कि दिल दहल गया और उसके मन के वह उलजलूल प्रश्न कहीं दफन हो गए. जीवन का कोई भरोसा नहीं, कब, कौन, किसे गोली मार दे, क्या पता, फिर कितने दिन साथ रहने को मिले हैं. शिकवे शिकायत किये ही क्यों जाएँ. जून की तबियत ठीक नहीं थी उसे बुखार भी था. और अभी तक यात्रा की थकान भी दूर नहीं हुई थी. चाहे यह सब अंशतः सत्य हो या फिर उसने इस बारे में कुछ सोचा ही न हो, खैर..कल जब वे नाश्ता कर रहे थे उनकी पड़ोसिन ने रात हुई एक अधिकारी की हत्या के बारे में बताया. कल दिन भर सारा शहर जैसे सिर्फ वही सोच रहा था, वही कह रह था, भयभीत था. आतंकवादी अपने उद्देश्य में, आतंक फ़ैलाने में सफल हुए. कुछ हद तक उसी संस्था का काम है जिसका हेड ऑफिस बर्मा में है. ऐसा पुलिस की अपराध शाखा का कहना है.
जून को आज माँ को मेडिकल चेकअप के लिये ले जाना था, पर वह बाइक लेकर नहीं गया था. कल दिन भर सामान्य बीता उसकी आँख में  में दर्द कुछ कम है. आज सुबह ही उड़िया पड़ोसिन ने बताया कि नामरूप में एक अन्य अधिकारी (फर्टिलाइजर प्लांट के) की हत्या कर दी गयी है. मौसम इन दिनों शांत है पर वातावरण गर्म है. दीदी का पत्र आया है वह आज जवाब लिखेगी. नन्हा आजकल खूब बातें बनाना सीख गया है, बुआ के साथ खूब खेलता है. जून कल शाम घर पर ही थे जब वे सब घूमने गए था. कभी-कभी उसे लगता है वह उसका ध्यान नहीं रख पा रही है उतना जितना पहले रखती थी. उसे कहे सांत्वना के शब्द भी खोखले लगते हैं, उसकी पीड़ा खुद की पीड़ा बन जाये ऐसा प्रेम कहाँ चला गया. पहले उसे जरा सी चोट लग जाने पर वह व्याकुल हो जाती थी.





Monday, August 13, 2012

राजकपूर की तीसरी कसम



कल व परसों दोनों दिन नन्हा जल्दी उठ गया सुबह उनके साथ ही, आज अभी तक सोया है सो उसने डायरी उठाई है, स्नान-ध्यान तो हो गया पर लगता है कल की तरह आज भी नैनी नहीं आयेगी, कल दोपहर वह जब कपड़े व बर्तन धोकर लेटी तो कैसा अजीब सा सुख महसूस हो रहा था, मेहनत करने का सुख. कल सुबह उस उड़िया लड़की की दोनों बहनें व उसकी माँ उनके घर आयीं थीं काफ़ी देर बैठी रहीं, सो सुबह वह ज्यादा कार्य नहीं कर पायी. उन्हें मकई पिसवानी थी व उसकी असमिया मित्र को जीरा व चटनी. शाम को उसकी एक पंजाबी परिचिता मिलने आयी वह तीन-चार महीनों के लए घर जा रही है. उसका बीएड का फार्म अभी तक आया नहीं है. पिछले तीन दिनों से मौसम बेहद गर्म है.
नैनी आज भी नहीं आयी और अब उसके आने की आशा भी नहीं है, वह स्वयं काम कर तो लेती है फिर क्या जरूरत है नौकरानी रखने की. साथ ही व्यायाम भी हो जाता है. इस समय सवा नौ बजे हैं, नन्हा पड़ोस में खेलने गया है. ट्रांजिस्टर पर गाना आ रहा है - भीगा भीगा है समां...कभी वक्त था जब कि इस तरह के गीत सुनकर ख्यालों में जून घूम जाता था पर अब ऐसा नहीं होता. उसने सोचा वह आज से उसका ज्यादा ध्यान रखेगी, प्यार तो मन में होता ही है पर उसका प्रदर्शन नहीं होता, जो उतना ही जरूरी है. कल महान अभिनेता राजकपूर का देहांत हो गया एक महीना कष्ट झेलने के बाद. रात को उनकी फिल्म दिखायी गयी थी, तीसरी कसम, पर यहाँ बिजली ही नहीं थी, पता नहीं कब आयी वे तो सो गए थे.
कल नन्हे के मित्र का जन्मदिन था, बड़ी पार्टी थी, उनके यहाँ एक छोटी लड़की है जो छोटे-मोटे काम कर देती है व बच्चे पर नजर रखती है, वह शायद उसे असमिया सिखा देगी, उसने सोचा. कल जाकर उसे छोटी बहन व देवर के भेजे जन्मदिन के बधाई कार्ड मिले डाक विभाग की मेहरबानी से. बहुत खुशी हुई. इसी तरह उसका फार्म भी कहीं अटका होगा, भर कर भेजने की अंतिम तिथि भी नजदीक आती जा रही है. पता नहीं क्या होगा, इंसान जो कुछ सोचता है वह पूरा तो नहीं हो जाता.फिर बात वहीं आकर अटक जाती है कि जो ईश्वर को मंजूर होगा वही होगा. नन्हा अभी तक सो रहा है उसने सोचा उसके उठने से पहले ही भोजन बना लेगी.