Wednesday, June 24, 2020

गायत्री परिवार के मुखिया



दाहिनी आँख में हल्का दर्द है, सम्भवतः पित्त बढ़ने से हुआ है. कल रात को एक पार्टी में गए, भोजन गरिष्ठ था,थोड़ा सा गाजर का हलवा भी खाया. देह जब तक है तब तक कुछ न कुछ इसके साथ लगा ही रहेगा. आज ठंड ज्यादा है पहली बार फिरन पहना है. आज भी किसी ‘बंद’ की सम्भावना थी पर समझौता हो गया लगता है, इसी कारण जून दस मिनट लेट हुए दफ्तर जाने में. आज दोपहर से मन स्थिरता का अनुभव कर रहा है. भीतर कुछ करने को नहीं है, आजकल ऐसा लगता है. जैसे हाथ में दो कंगन हों तो बजते हैं, एक रह जाये तो कैसी आवाज, जब हृदय व बुद्धि एक हो जाएँ तो भीतर मौन का ही साम्राज्य शेष रहेगा. ऐसा मौन जो सहज है, पुलक से भरा है और पूर्ण तृप्त है. इस समय शाम के साढ़े सात बजे हैं, टीवी स्क्रीन पर यू ट्यूब में प्रणव पांड्या जी तनाव पर बोल रहे हैं, वह आर्ट ऑफ़ लिविंग के साथ आर्ट ऑफ़ थिंकिंग पर भी बल दे रहे हैं. कल वह क्लब में आने वाले हैं, वे उन्हें सुनने जायेंगे. सुबह प्रेसीडेंट के यहाँ गयी थी, उन्हीने पीठा खिलाया, अपने इकलौते पुत्र के बारे में बताया जो मुम्बई में रहता है. आज छोटी बहन से बात हुई, उसकी एक परिचिता सदा के लिए भारत वापस आ रही हैं, उसे बगीचे के लिए कृत्रिम घास व एक फौवारा देकर जा रही हैं. उसने आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक कोर्स भी किया पिछले दिनों. कहीं दूर से गाने की आवाज आ रही है, सर्दियों के मौसम में दूर की आवाज ज्यादा स्पष्ट सुनाई देती है. आज एक योग साधिका का फोन आया, उसका नन्हा पुत्र भी अपने जैसा एक ही है. वह एक जगह टिककर नहीं बैठता है और पढ़ने में उसका मन ज्यादा नहीं लगता है. 

आज सुबह बड़ी भांजी के लिए एक कविता लिखी, कल उसके विवाह की वर्षगाँठ है. वर्षों पहले दिल्ली में जब उसका विवाह हुआ था, घर में पहला विवाह था, वे एक सप्ताह के लिए गए थे. आज बगीचे से मेथी और हरे लहसुन तोड़े, मकई के आटे में मिलाकर ठेपला बनाया. नन्हा व सोनू भी सड़क यात्रा पर जा रहे हैं, एक रात एक फार्म हाउस में रुकेंगे. यात्रा करना सभी को भाता है, मन एक अलग ही स्थिति में रहता है यात्रा में, सजग पर विश्रामपूर्ण ! आज सुबह वे उठे तभी से गायत्री मन्त्र, भजन तथा हवन में बोले जाने वाले मन्त्रों की ध्वनि आ रही है. डेली बाजार के पीछे गायत्री शक्ति पीठ की स्थापना हो रही है. कल प्रणव पांड्या जी का भाषण सुना. उनकी टीम ने भजन भी गाए और शांति पाठ किया, गायत्री मन्त्र का अर्थ भी समझाया. भोजन में मसालों की तरह जीवन में थोड़ा सा तनाव आवश्यक है, पर जब यह अधिक हो जाता है तो कई रोगों को जन्म देता है, ऐसा भी कहा. इस समय शाम के पांच बजे हैं, जून मोबाइल पर ‘अँधा धुन’ देख रहे हैं. दोपहर को  लॉन में ही विश्राम किया, धूप भली लग रही थी, दो बजे धूप आगे खिसक गयी तो उठकर भीतर आ गए. कल मोदी जी को भारतीय सिनेमा के संग्रहालय के उद्घाटन पर बोलते सुनना एक सुखद अनुभव था. 

उस पुरानी डायरी में पढ़ा- आज साढ़े छह बजे उठी, इसलिए सारा दिन एक छाया से आवृत रहा मन, जल्दी उठने पर दिन-दिन भर खिला रहता है. बुआजी ने उस यात्री की कहानी सुनाई जो ट्रेन में सफर करते-करते अपनी जिंदगी का आखिरी सफर भी तय कर गया. एक अनाम यात्री, जिसके साथ उसके अंतिम सफर में सिर्फ गैर थे कोई अपना नहीं. अभी एक घण्टे बाद टीवी पर कवि सम्मेलन दिखाया जायेगा. कल भी सुना था. कल जो कविताएं सुनीं थीं उनकी कुछ पंक्तियाँ नोट की हैं. कन्हैयालाल नंदन की जो छवि उसने सोची थी वह उससे बिलकुल उलटे दिखे. उनकी कविता भी ज्यादा अच्छी नहीं लगी. इंदु कौशिक की आवाज व गीत के भाव दोनों भा गये. सूरज, उगते सूरज से मिले.. अभी कवि सम्मेलन देख कर आयी है. गिरिजा कुमार माथुर, बिसारिया, कैलाश वाजपेयी, कुमार शिव के गीत और कविताएं सुनीं. फिर आये भवानी प्रसाद मिश्र, जिनके साथ उसकी एक मधुर स्मृति भी जुड़ी है. उनकी कई एक कविताएं भी उसने पढ़ी हैं. आज की कविता को मात्र कविता नहीं कहा जा सकता, वह तो एक संदेश था, दैवीय संदेश, प्रेरणादायक, स्फूर्तिदायक और साथ ही यथार्थ का सही बोध कराने वाला सीधा-सादा, मन पर चोट करने वाला उनका आंसुओं से भीगा कथ्य !

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    डायरी लेखन एक धरोहर होती है।

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  2. वाकई ! स्वागत व आभार !

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