टीवी पर गणतन्त्र दिवस की पूर्व सन्ध्या पर राष्ट्रपति का भाषण प्रसारित हो रहा है. वह कह रहे हैं देश इस समय गरीबी को मूलतः कम करने अथवा खत्म करने प्रयासों में अंतिम पायदान पर पहुँच गया है. विकास के नए-नए कार्य हो रहे हैं. जवान व किसान दोनों सशक्त हो रहे हैं . आम आदमी में भी अपने जीवन को ऊपर उठाने की लालसा जगी है. सरकारी सुविधाएँ नीचे तक जा रही हैं. बेटियों को आगे बढ़ने के अवसर मिल रहे हैं. विकास के अवसर सभी को मिले क्योंकि देश के संसाधन पर सबका अधिकार है. गांधीजी के सपनों का भारत धीरे-धीरे साकार होता जा रहा है. तकनीक और नई सोच के बल पर देशवासी एक साथ आगे बढ़ें इसके लिए अपने लक्ष्यों और उपलब्धियों को रेखांकित करना होगा. पारस्परिक सहयोग और साझेदारी के द्वारा ही समाज आगे बढ़ सकता है. विचारों का आदान-प्रदान हो, समाज में समरसता हो. भरत की संस्कृति में, परंपरा में लोकसेवा का बहुत महत्व है. अच्छी नीयत के साथ किये गये प्रयास को सराहना मिलनी ही चाहिए. भारत की सेना विश्व में शांति के लिए एक प्रमुख स्थान रखती है. आपदा में भारतीय जवान करुणा व संवेदना का प्रदर्शन करते हैं. राष्ट्रपति का भाषण बहुत ही सारगर्भित है. यह अवसर है भारतीयता को मनाने का. इस वर्ष गाँधीजी की डेढ़सौवीं जयंती है, संविधान दिवस भी आने वाला है. इसी वर्ष चुनाव भी होने हैं जिनमें इक्कीसवीं सदी में जन्मे मतदाता भी वोट दे सकेंगे. यह सदी भारत की सदी है.
दो दिनों का अंतराल. इस समय शाम के साढ़े छह बजे हैं. शाम को उन्हें कम्पनी के एक अधिकारी की बेटी के विवाह की पार्टी में जाना है. जून और उसका वजन बढ़ता जा रहा है, अब दोनों समय टहलने जाना होगा, कुछ खान-पान में परिवर्तन करके तथा कुछ ज्यादा व्यायाम करके उसे सीमित करना है. मौसम अब उतना ठंडा नहीं रहा. शाल लेने से काम चल जायेगा. आज माँ की अठाहरवीं पुण्यतिथि है, सभी उन्हें याद कर रहे हैं. छोटी बहन से बात हुई, उसकी गाड़ी भी साइड से लग गयी, जैसे उसकी लगी थी. जून ने पैकिंग कर ली है, दो दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं. नन्हे ने कहा, अस्सी प्रतिशत काम हो गया है इंटीरियर का उनके नए घर में, सम्भवतः मार्च तक पूरा हो जायेगा. कल क्लब में महिला मीटिंग है, चार सदस्याओं का विदाई समारोह है, उसने सभी के लिए कविताएं लिखी हैं.
उस तीन दशकों से भी पुरानी डायरी में पढ़ा, आज उस मैदान में दोनों बाहें सामने की ओर झूलते तेजी से दौड़ नहीं सकती. सुबह से एक हल्की खुमारी छायी है मन पर. उसके तर्कों में रंचमात्र भी बल नहीं है, वह उससे जो कुछ कह रही थी उस पर स्वयं भी विश्वास नहीं, लगता है उसके पास मस्तिष्क नहीं, वह सोच नहीं सकती, विचार नहीं कर सकती. वह सदा कल्पना ही किया करती है. उसके शब्द, उसके विचार खोखले हैं यदि कल्पना उनके साथ न हो. वह किस तरह इस कमी को पूरा कर सकती है. अभी तो उसके सम्मुख बस एक ही लक्ष्य है परीक्षा देना, सिवाय इसके कि उसकी परीक्षाएं कुछ दिनों में होनी हैं, अन्य बातें उसे भूल जानी चाहिये. ठंड लग रही है, उसने सोचा खिड़कियां बन्द कर दे या रहने ही दे, फिर रहने ही दिया. कल वसन्त पंचमी है और बापू की पुण्यतिथि भी. पिछले वर्ष जब उनकी कुछेक पुस्तकें पढ़ी थीं, बापू के आदर्श वाक्य उसे हर पल संभालते थे. अब कहाँ याद आते हैं, जबकि उनकी तस्वीर हर वक्त उसकी दृष्टि के सम्मुख रहती है. अब वह आसन, प्राणायाम और व्यायाम भी नहीं कर रही है. कल अवश्य करेगी. ठंडी हवा चुभ रही है स्वेटर को छेदती नीचे त्वचा तक. ब्लो ब्लो दाओ विंटर विंड यह तो उसने जंगल में कहा था और वह कमरे में भी नहीं बैठ सकती. तापमान 15 डिग्री से कम ही होगा, सेल्सियस और सेंटीग्रेट एक ही होता है न !
बापू को नमन।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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