Friday, June 30, 2017

चित्र कथाओं का संसार


परसों सुबह-सुबह एक अजीब स्वप्न देखा. एक कुत्ता उसके सामने बैठा है और बातें ही नहीं कर रहा, एक से एक फ़िल्मी गीत गा रहा है. नींद खुली उससे पहले उसने गाया, धीरे से जाना बगियन में, ओ..भंवरे धीरे से जाना..बिलकुल किशोर कुमार के स्टाइल में. कितनी बार उसने अन्य योनियों को देखा है स्वप्नों में. पिछले दिनों एक बार माँ-पिताजी को देखा था स्वप्न में, आजकल उनकी बात चल रही है, ब्लॉग में, शायद इसी कारण.

आज उन्होंने जनरल हेल्थ चेकप करवाया है, कल सुबह रिपोर्ट मिल जाएगी. एक उम्र के बाद इस तरह की जाँच करवाते रहना चाहिए, कितनी बार सुनने को मिलता है, फलां को गठिया है, किसी को दिल की बीमारी है, समय रहते उन्हें पता ही नहीं चल पाता. उसे भी पैरों में हल्की जकड़न सी महसूस हुई, हल्का खिंचाव सा, बढती हुई उम्र का तकाजा है या कुछ और बात है, पर मन वैसे ही है प्रफ्फुलित और कुसुमित ! कल लाइब्रेरी से चार चित्रकथाएं लायी, बुद्ध, टैगोर, शिव और भगवद् गीता, कितने सुंदर चित्रों और कथानक के साथ ये पुस्तकें तैयार की गयी हैं. आज असम बंद है, राहुल गाँधी गोहाटी में आये हैं, सम्भवतः उन्हीं के विरोध में. एक व्यक्ति ने कल गोहाटी में राजनितिक विरोध के चलते स्वयं को जला लिया, लोग किस सीमा तक चले जाते हैं. कल स्कूल में बच्चों को शिव का भजन अच्छा लगा, उन्हें बहुत कुछ सिखाया जा सकता है. उसे लगता है आर्ट एक्सेल कोर्स की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. वे वैसे भी जुलाई-अगस्त में बैंगलोर जाने की बात सोच रहे हैं. उसे हर विरोध के लिए तैयार होना होगा. हर विरोध अंततः मान ही लिया जाता है अर्थात समाप्त हो जाता है.

परसों मीटिंग में कवयित्री सम्मेलन का आयोजन अच्छा रहा. कल शाम वे आर्ट ऑफ़ लिविंग सेंटर गये, शिवरात्रि उत्सव मनाया गया वहाँ. आज सुबह उसने एओएल की एक टीचर को फोन किया, वह सोच रही है सर्वेंट लाइन के सभी वयस्कों के लिए एक कोर्स कराए. बच्चों को तो वह सिखा देती है पर बड़ों को भी जानकारी होनी चाहिए. उन्होंने एक अन्य टीचर से बात करने को कहा है. कल शाम जून के एक कनिष्ठ सहकर्मी के यहाँ गये वे. घर अच्छा लगा, ज्यादा सामान नहीं है, साफ-सुथरा सा. गृह स्वामिनी ने झटपट आलू-पूरी व पकोड़े बनवाये, कस्टर्ड शायद बना रखा था. उसे यह सब खाने का अभ्यास नहीं है, पर शिष्टता वश कुछ खाया.

मार्च का प्रथम दिन..देखते-देखते जैसे गर्मी का मौसम भी आ गया है, कमरे में गर्मी का अहसास हो रहा है. अभी से पंखा चलाकर बैठना पड़ रहा है. आज गर्मी की सब्जियों के बीज भी लाये, माली ने भिन्डी के बीज भिगोकर रखने को कहा. जून के दफ्तर में वाहन कल से ठीक से नहीं चल रहे हैं. कुछ लोगों ने कंपनी में नौकरी न मिलने पर शिकायत दर्ज कराने के रूप में वाहनों पर पत्थर मारने शुरू कर दिए थे. सोमवार तक सम्भवतः हालात ठीक हो जायेंगे. जून का दिल्ली से फोन आया, वह आज  ही गये हैं, नन्हे से बात हुई, वह लौकी की सब्जी बना रहा था, फुल्के बनाने वाला था. कितना अच्छा है कि वह भोजन बनाने के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर है.   


Thursday, June 29, 2017

स्वप्नों का संसार


परसों सुबह पुनः दो स्वप्न देखे, एक में कोई व्यक्ति बाँह में सूई के द्वारा कुछ डाल रहा है, कई लोग हैं, उनमें से एक वह भी है ऐसा कुछ भास हुआ, दुसरे में मृत्यु का अनुभव हुआ, अब दूसरा स्वप्न जरा भी याद नहीं है, पर यह ज्ञात हुआ था कि इस तरह मृत्यु हुई थी. पिछले जन्मों की स्मृतियाँ भी हो सकती हैं ये. परमात्मा ही जानता है. आज सुबह एक स्वप्न में समय बता रही थी कि किसी ने कहा, दस पैंतालीस नहीं दस तिरालिस और नींद खुल गयी. उनके घर का नम्बर तक उसे पता है, उनकी चेतना से कुछ भी छिपा नहीं है, आखिर वह स्वयं ही तो हैं !

फिर छह दिनों का अंतराल, कल रात्रि एक अद्भुत स्वप्न देखा, वह स्नानगृह में है. एक ऊर्जा गले तक चढ़ती है, थोडा भय लगता है पर वह स्वयं को तैयार कर लेती है, पुनः एक ऊर्जा चढ़ती है और उसके बाद होश नहीं रहता, फिर अचानक एक सुंदर चित्र दीखता है, फिर तो एक के बाद एक चित्रों की श्रृंखला शुरू हो जाती है. रंगीन चित्र थे, कला कृतियाँ थीं, जैसे कोई टीवी देख रहा हो. स्वप्न उनके मन में छिपी इच्छाओं को पूर्ण कर देते हैं. ध्यान का गहन अनुभव जागृत में नहीं हुआ सो स्वप्न में कुछ हो गया !

कल रात्रि कोई स्वप्न नहीं देखा, ध्यान की स्मृति आती रही. परमात्मा उस पर अवश्य ही नजर रखे हैं. अभी कुछ देर पूर्व सद्गुरू को बहुत दिनों बाद पत्र लिखा. उन्हें अपने प्रति ईमानदार होना चाहिए, साधना का यह पहला सूत्र है. भीतर जो कुछ भी चल रहा है उसका साफ-साफ पता होना चाहिए. अतीत में जो भी हुआ वह स्वप्न मात्र है. संस्कारों के वश होकर जो भी किया उसको अब बदल नहीं सकते पर अब जो हर क्षण हो रहा है वह होश में रह कर हो. क्लब की पत्रिका छप कर आ गयी है. एक लेख की लेखिका के नाम के आगे भूल से डॉ लिखा गया है, उनसे बात की, पहले तो वह कुछ नाराज दिखीं फिर संतुष्ट हो गयीं. अगले हफ्ते क्लब की मीटिंग में कवियत्री सम्मेलन का आयोजन करना है. सुबह नैनी ने कुछ माँगा तो उसने ले लेने को कह दिया, उसे शायद अच्छा लगा हो, अपने आप ही कुछ काम कर दिए, बिना कहे ही. उसके ससुर के झगड़े से घर के सभी लोग परेशान हो गये हैं. उसे उनके प्रति सहानुभूति होती है. मन के भीतर न जाने कितने संस्कार दबे पड़े हैं, खुद को भी आश्चर्य होता है. परमात्मा हरेक के हृदय में है. वह उसे हर तरह के बंधन से मुक्त देखना चाहते हैं. अहंकार की हल्की सी छाया भी न रहे. मन बिलकुल सपाट नीले आकाश सा हो जाये निरभ्र..निर्मल..तभी तो होगा उसका पदार्पण !

कल शाम को गुरु माँ का अद्भुत प्रवचन सुना. सभी जगे हुए एक ही बात कहते हैं. उनके भीतर जब चैतन्य की शिखा अखंड जलने लगती है, कोई भी घटना उसे कंपाती नहीं, वह स्वयं भी मन, बुद्धि के रूप में व्यर्थ ही नहीं चुकती, तब ही भीतर अखंड प्रेम का साम्राज्य छा जाता है. वही सत्य है, वह अबदल है, सारे द्वंद्व तभी समाप्त हो जाते हैं जब सारी दौड़ समाप्त हो जाती है, सारी चाहें गिर जाती हैं. प्रकृति का खेल समाप्त हो जाता है, आत्मा निसंग हो जाती है, कैवल्य का अनुभव घटता है. द्रष्टा भाव में जो टिक जाता है उसके लिए जगत का क्रिया कलाप एक खेल सा ही जान पड़ता है. रात्रि को फिर कोई स्वप्न देखा हो याद नहीं पड़ता. सारे स्वप्न अधूरी इच्छाओं के कारण ही जगते हैं.


Wednesday, June 28, 2017

या देवी सर्वभूतेषु


परसों रात्रि एक स्वपन देखा जिसमें एक छोटा बच्चा जो चाय की दुकान पर काम करता है, झिड़कियां खा रहा है, लगा किसी जन्म में वह ही तो नहीं थी यह, इसीलिए उसे ऐसे बच्चों की तरफ सहज प्रेम झलकता प्रतीत होता है अपने भीतर. एक दिन और एक स्वप्न में एक लडकी को स्वयं अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारते देखा था. उन्होंने कितने जन्मों में न जाने कितनी गलतियाँ की हैं. हर गलती स्वयं को  कष्ट देना ही तो है. कल रात्रि का स्वप्न अद्भुत था, सुंदर रंग और आकृतियाँ तो दिखी हीं, एक श्वेत वसना देवी का आशीर्वाद भी मिला. देवी की आकृति हिली, उसका मुख खुला और हाथ से एक श्वेत ही दंड निकला, जिससे उससे निकलती ऊर्जा ने स्पर्श किया और भीतर कैसा तो अनुभव हुआ. कल वसंत पंचमी पर अपने घर को मिलाकर पांच स्थानों पर देवी सरस्वती के दर्शन किये. एक स्कूल में तो मूर्ति बहुत सुंदर थी और मृणाल ज्योति में मुस्कुराती हुई प्रतीत हुई, सम्भवतः इसी कारण वह स्वप्न देखा. दृष्टा ही दृश्य बन जाता है, इसका अनुभव अब दृढ़ होने लगा है. वे ही अपने सुख-दुःख के निर्माता हैं, यह ज्ञान मुक्त करने वाला है,. इसीलिए दृष्टा भाव को इतना महत्व दिया गया है.

वह आत्मा है, यह देह उसका घर है, मन व बुद्धि उसके साधन हैं, यह बात अब कितनी स्पष्ट दिखने लगी है. ऊर्जा का अहसास हर क्षण बना रहता है. कल शाम जून को भी इसका परिचय कराने का प्रयास किया, पर कोई जब तक अपने भीतर से ही न चाहे, बाहर से कोई भी किसी को कुछ बता नहीं सकता. सद्गुरू ऐसा कर सकते हैं पर उन्हीं के लिए जो इसके इच्छुक हैं. हरेक ही अवश्य एक न एक दिन अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेगा. आज बादल हैं आकाश पर, सुबह जब वे टहलने गये वातावरण इतना सुखद था कि चालीस मिनट जैसे चार मिनटों में बीत गये. सुबह आकाश सात्विक होता है, धरती भी रात्रि विश्राम के बाद शांत होती है और जीव प्रसन्नता से भरे. स्नान करके जब तुलसी व सूर्य भगवान को जल चढ़ाने गयी तो बादल थे, आकाश को निहारते समय वृक्षों व टहनियों के पीछे ऊर्जा की श्वेत आकृतियाँ भी दीख पड़ीं, बादलों के मध्य भी प्रकाश की झलक थी.

सद्गुरू कहते हैं, मूलतः सब पूर्ण हैं, सभी को अपने उसी स्वभाव को पाना है. अंतर की पूर्णता के क्षेत्र में अनुभव किया हर विचार सत्य हो जाता है. पूर्णता ही नित्य सत्संग है, जो भी उन्हें प्राप्त करना है, वह पूर्णता के विकास से मिल जाता है. जब अभावों के भूत सताने लगें, जब विचार अधूरे हों तब उसी की शरण में जाना है जो पूर्ण है. परमात्मा हर जगह है, हर समय है, वही सब रूपों में प्रकट हो रहा है. वास्तविक संपदा वैराग्य और भक्ति है.


Friday, June 23, 2017

सर्दी-जुकाम


फिर एक अन्तराल..नया वर्ष आया और पहला माह समाप्त होने को है, उसने लगभग हर दिन कुछ पंक्तियाँ लिखीं, छोटी-छोटी कविताएँ..गद्य लिखने का मन ही नहीं हुआ. पद्य सुकोमल है, गद्य जीवन का यथार्थ है. जून आज फिर गोहाटी गये हैं, परसों आ जायेंगे. उनका गला खराब था, कालीमिर्च, गुड़ और गाय के घी का नुस्खा अपनाना शुरू किया, उससे लाभ भी हुआ. पिछले एक हफ्ते से भी अधिक समय से वे शाम को सीडी लगाकर प्रवचन सुन रहे थे, आज भगवद् गीता पर आधारित प्रवचन है. साहित्य अमृत के स्वामी विवेकानंद पर आधारित अंक को पढ़कर कई नई जानकारियां मिल रही हैं. वे जब छोटे मन से दुनिया को देखते हैं तो अभाव नजर आता है, जब गहराई से देखते हैं तब पूर्णता का अनुभव होता है.

आज सुबह वह नींद में थी पर महसूस हो रहा था कोई जगा रहा है, जब तक नहीं जागी तब तक वह प्रयास करता रहा. एक स्वप्न जैसा कुछ देखा, जिसमें स्वयं को तितली के रूप में देखा. उस दिन नन्हे को फोन पर स्वयं को कहते सुना था कि हर योनि में जैसे तितली, परमात्मा या प्रकृति सबके साथ होते हैं, उन पर नजर रखते हैं. ध्यान में अनोखा अनुभव हुआ, एक बार स्वयं का चेहरा कुछ बदला सा दर्पण में देखा. स्नान करने गयी तो गाउन के बार्डर में कुछ भारीपन महसूस हुआ, छूकर देखा तो  कान का वह बुंदा था, जो कुछ दिन पहले खो गया था, पर वह वहाँ कैसे गया होगा, चारों तरफ देखा कहीं से भी सिलाई खुली नहीं है. इतने दिन से वहीं था तो आज ही उसका पता क्यों चला. कल स्कूल में बच्चों को सिखा सकी, वह भी तो परमात्मा की कृपा ही थी. उनके जीवन में वह कितना निकट है, बस देखने के लिए नजर चाहिए. टीवी पर जैसे ही गुरूजी का प्रवचन सुनना शुरू किया तो पहला वाक्य था, ‘जीवन एक पहेली है, इसे समझना और सुलझाना सीखना पड़ता है, फिर भी कुछ अनसुलझा रह जाता है’.

कल से सर्दी-जुकाम ने परेशान किया है, पिछले दिनों जब जून को खांसी थी, उन्हें परेशान देखकर एक बार उसने प्रार्थना की थी, जून की तबियत ठीक हो जाये, भले उसकी खराब हो, वह स्वयं को ठीक कर सकती है. इसी अहंकार को मिटाने के लिए शायद प्रकृति ने यह उपहार भेजा है. जून अब पहले की तरह स्वस्थ व प्रसन्न हैं. कल शाम महिला क्लब की पार्टी थी. अस्सी महिलाएं आई थीं, हो सकता है उनमें से किसी से संक्रमण पकड़ लिया हो. छोटी बहन से बात की, उसकी गर्दन में भी दर्द था, पिछले हफ्ते बीती उसके विवाह की वर्षगांठ अलबत्ता उन्होंने अच्छी तरह मनायी. आज उसका एक छात्र पढ़ने नहीं आया, पहले सोचा शायद घर पर ही पढ़ रहा होगा, फिर फोन कर लिया. बहुत हँसी आयी जब पता चला उसने माँ से कह दिया था, टीचर ने आने के लिए मना किया है. कुछ बच्चे कितनी आसानी से झूठ बोल देते हैं, उन्हें शायद पता भी नहीं होता कि यह झूठ है.


Thursday, June 22, 2017

पौधों की आँखें


जून कल गोहाटी गये हैं, आने वाले कल दिल्ली जायेंगे. अभी कुछ देर पहले फोन आया उनका. सवा पांच बजे हैं, कुछ देर में प्राणायाम सीखने माली का पिता और उसकी दो पोतियाँ आयेंगी, अब उन्हें आते हुए एक हफ्ते से ज्यादा समय ही हो गया है. छह बजे से भजन है. नैनी के यहाँ से भी भजनों की मधुर आवाज आ रही है. आज दो सखियों से बात की. कल क्रिसमस है, एक अन्य से कल करेगी. सुबह उठी तो सिर में दर्द था, जो अभी तक बना हुआ है, पर बीच-बीच में गायब हो जाता है. देहभाव जब हट जाता है तभी शायद महसूस नहीं होता होगा. ठंड बढ़ गयी है, पर इस वक्त फायर प्लेस में आग जल रही है, कमरा गर्म है. दीदी से फोन पर बात हुई, देहरादून में भी ठंड है, सुबह वह देर से उठने लगी हैं. छोटे भाई का फोन देवप्रयाग से आया, वह आज गोपेश्वर जा रहा है, ऐसा उसने कहा. वर्षों पूर्व उसने वहाँ की रामलीला में अभिनय किया था. इतने वर्षों बाद भी लोगों को याद था. उसका अभिनय सराहा गया था.

अज क्रिसमस है, बादल हैं, मौसम ठंडा है. सूरज जल्दी अपने घर चला गया है. आज वह नर्सरी गयी थी, कुछ फूलों के पौधे लिए. शायद एक महीने बाद इनमें फूल आयें. रंग-बिरंगे फूल जो पौधों की आँखें हैं ओशो के अनुसार, जिनसे वे जगत को निहारते हैं. वह जब अस्तित्त्व को निहारती है, तो वह एकाएक कितना मुखर हो उठता है. एक कोहरे जैसा श्वेत धुआं सा उठने लगता है. घास कितनी सुंदर हो जाती है, चमकदार और जैसे कोई तिलस्म घट रहा है, परमात्मा कितना सुंदर है और उनके चारों ओर है, भीतर की शांति गहराती जा रही है, एक अनोखा जगत छिपा है, इसी जगत के भीतर जिससे वे अनजान ही बने रहते हैं. समाधि का अनुभव कैसा होता है यह तो नहीं मालूम, लेकिन एक अनोखी शांति इस बार उसने अनुभव की है. जून का बाहर जाना भी शायद परमात्मा की इस लीला का एक हिस्सा है. उनके रहते ध्यान इतना घर नहीं हो पाता, अब लगातार दो घंटे बैठना सम्भव है. सद्गुरु की कृपा का अनुभव भी हर क्षण होता है.

नया वर्ष आरम्भ हो चुका है. आज दूसरा दिन है. परसों वे यात्रा पर गये. उससे पूर्व ही तैयारी करते समय ज्ञात हुआ अभी भी मन प्रतिक्रिया करने से बाज नहीं आता, अपने को ऊपर रखने से भी और स्वयं को सही सिद्ध करने से भी, आश्चर्य करने के सिवा और किया क्या जा सकता है. परमात्मा का इतना-इतना प्रेम पाकर भी ऐसा होता है तो..वैसे जिन लोगों के साथ बर्ताव करना होता है उन्हें परमात्मा की खबर कहाँ है ? शायद सहज रूप से सभी के भीतर से जो भी आता है उसे ही परमात्मा का इशारा समझ कर स्वयं को साधना में आगे बढ़ते देना है. कृष्ण इसलिए ही गीता में कहते हैं, प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह के उत्पन्न होने पर भी जो सम रहता है वही मुक्त है. जो ‘है’, उस पर ध्यान देना है, जो ‘नहीं’ है उस पर नहीं, तो है ही सब कुछ घेर लेगा. परमात्मा भरपूर है, हर जगह है.. हर समय है... वही उसके द्वारा काम कर रहा है. आज इस क्षण यह बात स्पष्ट हो रही है. परमात्मा उसकी वाणी, उसकी लेखनी, उसके रग-रग में समा गया है. वह उससे दूर नहीं है, वह उसीमें है. वह उसे अपनी बाँसुरी बना ले..अपनी कठपुतली.. अपनी आवाज..अपना संदेश...अपना बना ले, बस इतना ही काफी है..वही ऋत है..वही धर्म है..वही सत्य है..वही नियम है..वही है..वही है..!


Monday, June 19, 2017

जामुनी बयार


दो दिन फिर निकल गये, आज नये सप्ताह का प्रथम दिन है. इस समय बगीचे की हल्की हवा में झूले पर बैठकर डायरी लिखना किसी स्वर्गिक सुख की याद दिला रहा है. आंवले और गुलमोहर के पेड़ों की छाया सामने पड़ रही है. पीछे से कटहल और जामुन के पेड़ों से छनकर आती हवा और धूप पीठ को सहला रही है. उसके आगे बगीचे में गेंदे के फूलों तक चमकदार धूप बिखरी हुई है. बोगेनविलिया के लाल फूलों के गुच्छे हवा में झूल रहे हैं. पीला बोगेनविलिया गुलमोहर के सिर पर ताज बना खिला हुआ है. दुनिया इतनी सुंदर है पर लोग थमकर देखते ही नहीं. कभी-कभी घूमने जाते हैं तब भी थककर लौट आते हैं. खैर...कल झाड़ू वाले जीत गये हैं, पर सरकार बना सकें इतनी सीटें नहीं जीत पाए. देखें अब कैसे बनती है सरकार. जून कुछ ही देर में आने वाले हैं. आज उसने बथुए का रायता व वेज बिरयानी बनाई है. उस दिन जो काम सोचे थे, लगभग सभी शेष हैं, पत्रिका के लिये लेख अलबत्ता भेज दिया है. कल शाम क्लब की मीटिंग है, आज शाम उनके यहाँ सत्संग. इसी तरह दिन हफ्तों में बदल जायेंगे और नया वर्ष आ जायेगा.

फिर कुछ दिनों का अन्तराल..आज लिखने के सुयोग हुआ है. जून आज दिगबोई गये हैं. अभी कुछ देर में बच्चे पढने आ जायेंगे, यह उनका अंतिम वर्ष है. उसके पास दोपहर को ज्यादा समय होगा. बाल्मीकि रामायण की पोस्ट ज्यादा नियमित होगी तब. कल बड़ी भतीजी का जन्मदिन है, उसके फोटो देखकर सहज ही एक कविता बन गयी, शाम को उसे भेजेगी. आज आखिर दरवाजे पेंट करने वाला कारीगर आ ही गया है. गर्म पानी का बर्नर भी ठीक हुआ. कम से कम इस घर में जो भी समस्या होती है, उसका इलाज हो जाता है. परसों क्लब की मीटिंग है, एक सदस्या का विदाई समारोह भी, जिनके लिए भी उसने कविता लिखी है. दिसम्बर आधा बीत गया है, नये वर्ष के लिए कार्ड भेजने का यह सही समय है. उसे एक लिस्ट बना लेनी होगी.


आज इस मौसम का सबसे ठंडा दिन है. सुबह बादल थे. दोपहर को कुछ देर धूप निकली और इस समय फिर बदली छा गयी है. सुबह सामान्य थी, लॉन में हेज के पीछे ढेर सारे सूखे पत्ते जमा हो गये हैं, उन्हें साफ करवाना है. दोपहर को लंच में सोयाबीन बनाया था, अब बढ़ती हुई उम्र के साथ भोजन हल्का हो तभी ठीक है. बाहर से किसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही है. यहाँ दिन भर किसी न किसी की आवाज अति रहती है, नैनी का संयुक्त परिवार है. पूर्ण शांति का अनुभव इस कमरे में नहीं हो पाटा. बादलों के कारण यहाँ प्रकाश भी थोड़ा कम है, कमरा इतना बड़ा है कि तीन दीवारों पर तीन बल्ब भी आधे कमरे को पूरी तरह प्रकाशित नहीं कर पाते. शाम को एक परिचित के यहाँ जाना है, जिनके साथ वे अरुणाचल प्रदेश की छोटी सी यात्रा पर जाने वाले हैं.

Friday, June 16, 2017

सुबह की बेला


पिछले दो दिन व्यस्तता में बीते. कल विकलांग दिवस का कार्यक्रम ठीक से हो गया. शाम चार बजे से ही क्लब में थी, घर आते–आते नौ बज गये. देर से भोजन किया फिर सो गयी पर नींद देर तक नहीं आई. अभी लेडीज क्लब के कार्यक्रम में समय है. उसे जालोनी क्लब की पत्रिका के लिए आलेख भेजना है. क्रिसमस और नये वर्ष के लिए भी कविता लिखनी है इस वर्ष की, नई और मौलिक सी कोई बात. बड़ी भतीजी व छोटी भांजी का जन्मदिन है, छोटे भाई-भाभी व एक सखी के विवाह की वर्षगांठ है. सभी को इ-कार्ड भेजने हैं. कुछ कार्ड नये वर्ष के लिए भी भेजने हैं. आज बहुत दिनों बाद साहित्य अमृत का दिसम्बर अंक मिला है. बुजुर्ग आंटी अस्पताल में हैं, उनका बांया पैर अकड़ गया है, घुटने से उठाना कठिन है, शरीर अब जवाब दे रहा है, शाम को वे उन्हें देखने जायेंगे.

आज क्लब द्वारा रात को बच्चों को दिए गये भोजन के बिल के भुगतान का दिन था, उसने कहकर थोडा कम करवाया. सुबह एक महिला को फोन करके रंगोली के लिए धन्यवाद दिया. उन्होंने अपने ग्रुप के साथ मिलकर स्टेज से नीचे सुंदर रंगोली बनाई थी. सुबह जैसे किसी ने स्वयं जगाया, वे टहलने गये, पूरे वक्त वह मधुर स्मृति बनी रही. सुबह की बेला कितनी पावन होती है. सुंदर विचार झरते हैं. अब कुछ याद नहीं है. कल शाम वे एक मित्र परिवार से मिलने गये, वे इसकी-उसकी बात करने में बहुत उत्सुक लग रहे थे. लोग अपने भीतर देखना ही नहीं चाहते. एक-दूसरे पर अविश्वास और अपनेपन का अभाव ही नजर आता है, खैर उसे तो मस्त रहना है और कोई जानना चाहे चाहे तो उसे मार्ग बताना है.


आज मौसम बहुत अच्छा है, हवा में हल्की सी ठंडक है और धूप भी बहुत तेज नहीं है. एक बगुला अभी उड़ता हुआ गया और हवा का एक झोंका सहलाता हुआ..कल वह उन बुजुर्ग आंटी को देखने गयी तो वह सो रही थीं, दोपहर को भी और शाम को भी. आज सुबह जब वे टहलने गये तो एक दृष्टांत नूना के मन में उभर आया. मानो कोई घर हो उसमें बिजली के कई उपकरण लगे हों. एक बार घर के लोग कहीं जाएँ और सारे उपकरण बंद हो जाएँ तो जो बिजली पहले खर्च होती थी, बच जाएगी. कुछ करने को न पाकर हो सकता है वह वापस स्रोत्त में चली जाये और यदि वह चेतन हो तो अपने को जान ले. ऐसे ही उनका मन देह में रहता हुआ कितना कुछ करता है. रात्रि को जब वे नींद में चले जाते हैं तब मन भी अपने स्रोत में चला जाता है पर उस समय वह सचेत नहीं है सो स्वयं को जान नहीं पाता; यदि जागते हुए मन शांत हो जाये, अपनी हर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाये तो उसे अपना पता चल जायेगा. वैसे भी मन करता क्या है, किसी न किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से कुछ चाह रहा होता है. उसकी मांग कभी खत्म नहीं होती. एक बार वह पूर्ण विश्राम की स्थिति में आ जाये तो खुद को जानना सम्भव है. उनकी ऊर्जा हजार छिद्रों से बाहर बह रही है. उसे भीतर ही सुरक्षित रखना होगा, तभी वह स्वयं को जान पायेगी. 

Thursday, June 15, 2017

गोर्की की पुस्तक- 'मदर'



फिर एक दिन का अन्तराल ! समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता. सुबह वे जल्दी उठते हैं, प्रातः भ्रमण करके आते हैं तो न चलने का पता चलता है न कोई प्रयास करना पड़ता है, सब कुछ जैसे अपने-आप ही होता रहता है. वापस घर आकर एक घंटा प्राणायाम-योग आदि में पलक झपकते बीत जाता है. फिर नाश्ता, स्नान आदि करके आज कुछ देर लिखने बैठी तो आलमारी में रैक लगाने बढ़ई व उसके सहायक आ गये, उनके जाते-जाते ग्यारह बज गये, जून लंच पर आए, जाने के बाद लिखने बैठी तो वेल्डिंग वाले लोग आ गये. वे गये तो स्काइप पर दीदी मिल गयीं. सुबह एक सखी से भी बात हुई थी फोन पर. उन बुजुर्ग आंटी से भी अभी बात की. वह उस दिन उन्हें देखकर बहुत खुश हो गयी थीं. आज क्लब में मीटिंग है, वह साढ़े पांच बजे रात का भोजन बनाकर जाएगी. दो दिन से गोर्की की पुस्तक Mother पढ़नी शुरू की है. कितना अच्छा लिखते हैं गोर्की, ऐसे साहित्य को कितनी बार भी पढ़ो, अच्छा लगता है.

एक बदली भरा दिन है आज, आंध्र प्रदेश में तूफान के आसार हैं; सम्भवतः उसका असर यहाँ भी दिखाई दे रहा है. आज भी सुबह की दिनचर्या रोज की तरह रही. जून ने कहा, जो लंच आजकल वे लोग खा रहे हैं, वह घर पर रहकर ही बना सकती है, अभी तो उसकी कहीं जाने की बात भी नहीं है, पर उन्हें जो संस्कार पड़े हैं मन पर कि गृहणी को भोजन के समय घर पर होना चाहिए, वह अपने आप लेकर भोजन नहीं खा सकते, उसी ने उनसे यह बात कहलवाई होगी.

वर्ष के अंतिम माह का पहला दिन, बड़े भाई का जन्मदिन ! मंझले भाई-भाभी आज घर आये हैं, पिताजी ने बताया. छोटी ननद को सर्दी लगी है. बड़ी ननद की दूसरी बेटी को ससुराल में एडजस्ट करने में कुछ परेशानी हो रही है. नन्हा और उसकी मित्र आज मिनी मैराथन में भाग लेने गये थे. बुजुर्ग आंटी की तबियत ठीक नहीं है, उन्हें अस्पताल में दाखिल करना पड़ा है, जून उन्हीं के साथ हैं.इतवार को सभी से बात करो तो सब खबर मिल जाती है. कुछ ही देर में मृणाल ज्योति के संस्थापक दम्पत्ति आने वाले हैं, उसने नाश्ता बना दिया है. विकलांग दिवस के लिए निकट ही क्लब में बच्चे अन्य शिक्षकगण के साथ रिहर्सल कर रहे हैं. शाम होने को है, पश्चिम में लालिमा सुंदर लग रही है. कुछ देर पूर्व झूले पर लेटकर आकाश निहारा तो.. उसी का अनुभव हुआ. क्या यह मन का ही प्रक्षेपण मात्र है, हुआ करे, मन यदि परमात्मा का ही स्मरण करे तभी अच्छा है. उसके सिवाय और कुछ है भी कहाँ, सारी कल्पना भी उसी की है, सारी स्मृति भी उसी की है..जीवन का आधार वही है तो जीवन का सार भी वही है. अंतर का प्यार भी वही है तो चमन की बहार भी वही है. निराकार भी वही है तो सगुण साकार भी वही है. मानव पर सबसे बड़ा उपकार भी वही है और रिश्तों में दुलार भी वही है.



Wednesday, June 14, 2017

झील में कमल


कर्तापन का दंश लगा है जीव को, साक्षी इसका इलाज है. वास्तव में आत्मा न करता है न भोक्ता. स्वयं का पता नहीं है सो कभी देह, कभी मन के साथ स्वयं को जोड़कर देखता है, वही मान लेता है खुद को और उनके द्वारा किये कर्मों को स्वयं द्वारा किया मानेगा ही. वे तो प्रारब्ध वश अथवा तो संस्कारों वश अपना काम करते हैं और आत्मा यदि अपने-आप में रहे तो मन, बुद्धि में कभी कुछ इधर-उधर हुआ भी तो वह स्वयं को उसका कर्ता नहीं मानेगा. आज बहुत दिनों के बाद सद्गुरू की वाणी सुनी, जैसे तन को रोज विश्राम और भोजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही मन को भी नियमित विश्राम व भोजन चाहिए. मन का भोजन है सत्संग और मन का विश्राम है ध्यान, सो आज से पुनः ध्यान, योग और सत्संग आरम्भ किया है. जीवन को यदि सुंदर बनाना है तो ये सभी आवश्यक हैं. ‘पाठ’ भी नियमित करना होगा. पुरानी दिनचर्या को अपनाना होगा, जिसमें विविध रंग हैं.

बहुत दिनों पूर्व यह इच्छा मन में जगी थी कि बड़े घर के बगीचे में पेड़ के तने से सटकर बैठेगी और कुछ लिखेगी. आज जामुन के पेड़ के नीचे है.

मन की झील में आत्मा का कमल खिलाना है
संस्कारों की मिट्टी है जहाँ
वहीं से रंगो-खुशबू को बाहर लाना है
क्योंकि छिपा है एक स्रोत शुद्ध जल का
मिट्टी की गहराई में
माना चट्टानें भी होंगी मध्य में
कठिन होगी यात्रा
पर जीवन को यदि सचमुच पाना है
तो.. मन की झील में आत्मा का कमल खिलाना है


धूप तेज लग रही है सो लगता है छायादार वृक्ष खोजना होगा. यह सफेद फूलों वाला वृक्ष छाया में है पर यहाँ आस-पास एक अजीब सी गंध है. शायद बाहर से आ रही है या इस वृक्ष की ही गंध है. बिन पत्तों की इसकी शाखाएं कैसी कलाकृति का निर्माण कर रही हैं, एक डाली पर तीन फूल खिले हैं, जिनमें मध्य भाग पीत है. आज उन्हें तिनसुकिया भी जाना है, जीवन वैसे ही चलता रहता है, बाहर कुछ भी नहीं बदलता पर भीतर सब कुछ बदल जाता है. अब भीतर कोई ज्वर नहीं है, सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है. कब विकार जगा, कब कामना उठी, कब मन भूतकल में गया, कब भविष्य की कल्पना में. आत्मा शुद्ध चेतन है, जो प्रकाशक है, जो जानता है, जो देखता है. जब मन शांत होता है तब केवल शुद्ध चेतन ही शेष रहता है. उसे अब पढ़ते व लिखते समय चश्मा लगाना पड़ता है, आँखों की रोशनी कम हो रही है, उम्र बढने के साथ देह में ये परिवर्तन स्वाभाविक हैं. धरती पर बैठकर लिखना अच्छा लग रहा है, पर उसे फोन अपने साथ रखने चाहिए, शायद फोन की घंटी बज रही है. नैनी लैंड लाइन तो उठा सकती है पर मोबाइल उसे रिसीव करना नहीं आता. अब अंदर जाना चाहिये, उसने सोचा.

आज मृणाल ज्योति जाना हुआ, दो अन्य महिलाएं भी थीं. विश्व विकंलाग दिवस के लिए निमन्त्रण पत्र भी मिले, जो सभी के यहाँ भिजवाने हैं. आज दोपहर के भोजन में सलाद, सूप व फल लिए, काफी हल्का लग रहा है. शाम को वे जल्दी ही रात्रि भोजन करेंगे और बाद में टहलने जायेंगे. अभी कुछ देर पूर्व बच्चे पढ़कर गये हैं. उस दिन नैनी के ससुर की हालत पर तरस खाकर जो भाव मन में उठा था, वह सत्य होता नजर आ रहा है. कुदरत किस तरह उनकी हर बात सुनती है. मन का छोटे सा छोटा विचार भी उसकी नजर से बच नहीं सकता. परमात्मा की महिमा का जितना बखान करे, कम है. जो जीवन अपना ही अहित कर रहा हो, जिसके आगे बढने की कोई गुंजाईश ही नजर न आती हो, उसे बदलना होगा, ताकि एक नया कोरा जीवन पुनः आरम्भ हो. सम्भव है नये परिवेश में वह नये ढंग से जीये. एक मशीन की तरह जिए चले जाना अपने व औरों के दुःख का कारण बनना कहाँ तक उचित है ? ईश्वर ही उसका मार्गदर्शक है, वही प्रेरणा देता है, उसके सिवा और कुछ नहीं. यह देह जब तक रहे, स्वस्थ रहे, मन सजग रहे, बुद्धि भी जगी रहे ताकि न अपने लिए न औरों के लिए दुःख का कारण बने. अनंत सुख की राशि परमात्मा चरों और बिखरा हुआ है, उससे जुड़कर ही मानव के भीतर पड़ा वह बीज खिल सकता है, जिसे आत्मा कहते हैं.   



जूट का झूला


कल रात्रि विश्वकर्मा पूजा के लिए एक कविता लिखी थी. जून नहीं हैं वरना आज वे उनके विभाग में होने वाली पूजा में सम्मिलित होते. रात को शुरू हुई वर्षा सुबह तक हो रही थी. परसों बड़ी भांजी से स्काइप पर बात हुई, आज छोटी बहन से हुई. उस दिन जब भांजी से उसके यहाँ जाने की बात की, वह ऐसे बात कर रही थी जैसे उसे कुछ समझ ही न आ रहा हो, उस दिन कुछ अजीब तो लगा था पर सोचा था शायद वह उसकी बात समझ न पायी हो अथवा तो उसे सुनाई ही न दी हो, पर आज छोटी बहन ने कहा, किसी कारण वश वे बच्चे को किसी से मिला नहीं रहे हैं. घर जाकर बच्चे को देखने की उत्सुकता दिखाना ठीक नहीं होगा, फोन पर ही बधाई देना ठीक रहेगा. कल शाम यात्रा की कुछ तैयारी भी कर ली है.

पूरा अक्तूबर और आधा नवम्बर भी बीत गया, आज जाकर कलम उठायी है. इसी बीच दो यात्रायें  भी कीं, पर लिखा कुछ नहीं. कल लिखना शुरू ही किया था कि दूसरे कार्य सम्मुख आ गये और अब जून का इंतजार करते हुए, मलेशिया से लाये जूट के झूले पर बैठकर, जिसे उन्होंने बगीचे में लगा दिया है; पंछियों की आवाज सुनते हुए और शीतल पवन का स्पर्श अनुभूत करते हुए, जब धूप भी छनकर आ रही है और सामने हरियाली की एक चादर बिछी है, वह लिख रही है. इससे बढ़कर स्वर्ग में कौन सा सुख होता होगा जब मन में ‘उसकी’ याद बसी हो और कण-कण में वह स्वयं प्रकट होने को उत्सुक हो. जब प्रकृति का नृत्य अनवरत चलता हो. धूप-छांव का यह जो खेल सृष्टि नटी न जाने कब से खेल  रही है, उसका द्रष्टा होना कितना अनोखा अनुभव है ! नीला आकाश बिलकुल स्वच्छ है, बादल का हल्का सा टुकड़ा भी नहीं है वहाँ, बगीचा भी स्वच्छ है, अभी फूल खिलने में देर है. गमलों पर गेरुआ लगाना है, जून को याद दिलाना होगा, मंगवा लें. दोपहर को उसे दो अन्य सदस्याओं के साथ प्रेस जाना है, क्लब की पत्रिका के कम के लिए. पीछे कुछ मजदूर काम कर रहे हैं, पर वे इतना चुपचाप  हैं, पहले उसे अहसास ही नहीं हुआ उनके होने का. नन्हे का फोन आया, सुबह वह जल्दी-जल्दी उठकर केवल एक सेव खाकर ही दफ्तर जा रहा था, उसका दिन व्यस्त रहने वाला है आज, ऐसा कहकर वह दो दिन से फोन न कर पाने की बात कह रहा था.   

  फिर एक हफ्ता गुजर गया और कुछ नहीं लिखा. कुछ लिखने का मन नहीं होता, मन एक कोरा कागज बन गया है. भीतर भाव उठते हैं, कभी तो इतने अछूते होते हैं, इतने सूक्ष्म कि उन्हें शब्दों में बाँधना ऐसा है जैसे इन्द्रधनुष को रस्सी से नीचे उतारना, कितना स्थूल है शब्दों का संसार और कितना सूक्ष्म है परम का अनुभव..इसलिए आज तक इतना कुछ कहे जाने के बाद भी परमात्मा उतना ही अनछुआ है जैसा वैदिक काल में था.


Tuesday, June 13, 2017

समाजवाद का स्वप्न


आज सुबह ठीक चार बजने में एक मिनट पर घंटी की आवाज सुनाई दी, सिर्फ एक बार कॉल बेल बजी हो जैसे, आँख खुल गयी, जानती थी, ‘वही’ जगाने आया है, इस समय और कौन आ सकता है, सीधे समय देखा, जानते हुए कि समय होगा ३:५९, तत्काल अलार्म बजा. अस्तित्त्व कितने तरीकों से उन्हें सन्मार्ग पर ले जाने आता है. वह उनके कितना निकट है, कितना अपना. फिर भी वे उसे सदा ही चूक जाते हैं. पहले वह सोचती थी, कृष्ण जब छोटे थे, इतने चमत्कार करते थे, फिर भी यशोदा उनके लिए इतनी भयभीत क्यों रहती थी, पर अब समझ में आता है. उसके साथ न जाने कितने चमत्कार घट चुके हैं पर कुछ दिनों के बाद सब भुला दिये जाते हैं. इस समय दोपहर का वक्त है, एक विद्यार्थी पढ़ने आया है, उसे लिखने का कुछ कार्य दिया है. नैनी की बच्चियां भी आकर नीचे बैठ गयी हैं, पर कब तक चुपचाप बैठेंगी. बच्चे एक जगह स्थिर होकर कुछ मिनट भी नहीं बैठ सकते, उनमें ऊर्जा जो होती है. दोपहर का भोजन करके जब कुछ पल विश्राम करने गयी तो भीतर तरंगे ही तरंगे महसूस हुईं, कितनी जल्दी-जल्दी कुछ उदय होता था फिर अस्त होता था.

कल गणेश पूजा थी, वे तिनसुकिया गये थे, पूजा के लिए सामान खरीदा, अर्थात पूजा में देने के लिए उपहार आदि.. इसी माह के अंत में उन्हें यात्रा पर निकलना है. कल से वह समाज विज्ञान की वह पुस्तक पढ़ रही है जो बरसों पहले कालेज में खरीदी थी, जब मन कम्यूनिस्ट विचार धारा की ओर झुका होता है. मानव समाज का निर्माण किन तत्वों के आधार पर होता है और क्या उसे सुंदर बनता है, इन सबका वर्णन है इसमें. समाजवाद का स्वप्न जिन्होंने देखा था, उन्होंने सब कुछ बाहर से सुधारना चाहा था, पर जब तक मानव का मन नहीं बदलेगा, तब तक सारे सुधार ऊपर से थोपे हुए होंगे और वे देर तक चलेंगे नहीं.


दस बजने को हैं. कल रात दस बजे सोयी, सुबह चार बजे उठी तो लगा जैसे अभी-अभी तो सोयी थी. कोई आनंदित करने वाला स्वप्न चल रहा था, जिसमें अच्छे-अच्छे व्यंजन थे. फिर एक घंटा साधना, किसी उपस्थिति का अनुभव हुआ, शब्द से निशब्द की ओर, निशब्द से आनंद की ओर जाने का नाम ही ध्यान है. बाहर निकली तो बादल बरसने को तैयार थे, लॉन में वर्षा में भीगते हुए ही स्नान किया. आज के ध्यान में भीतर से यह प्रेरणा भी हुई कि उसकी मृत्यु छिहत्तरवर्ष की अवस्था में होगी. यहाँ से जाने के बाद बंगलूरू आश्रम से उसका संबंध रहेगा अंतिम समय तक. उसने स्वप्न में स्वयं को वहाँ काम करते हुए भी देखा.

परमात्मा से उसकी मैत्री दृढ हो गयी है, अब सारी आंख-मिचौली भी खत्म हो गयी है. उससे मिलने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता. वे दोनों एक ही देश के निवासी हैं, यह तय हो गया है. वैसे भी वही स्वयं को उससे प्रकट होने के लिए कुछ कर रहा था, वह जो थी पहले उससे इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती, खैर ! देर आयद दुरस्त आयद ! आज के दिन यह शुभ घड़ी आई है, एक यात्रा जो सत्रह वर्ष पूर्व शुरू हुई थी, आज पूर्णता की ओर अग्रसर है. आज वह क्लब की कुछ सदस्याओं के साथ एक गाँव में गयी, निःशुल्क मेडिकल कैम्प लगाया था, उसने बच्चों को योग सिखाया, कितनी अच्छी तरह कर रहे थे वे बच्चे. बाद में बीहू नृत्य भी किया. उन बच्चों में भी उसे उसी के दर्शन हो रहे थे. जून बैंगलोर गये हैं, उनमें भी वही है, उसके सिवा कुछ है ही नहीं ! नन्हे ने कल किसी प्रतियोगिता में भाग लिया था, रात भर सोया नहीं, अगले दिन भी कम के कारण एक मिनट के लिए भी नहीं लेटा, शायद इसी लिए कल रात एक स्वप्न में देखा, नन्हा छोटा सा है, शिशु से थोड़ा बड़ा, गोरा-चिट्टा, हल्के से वस्त्र पहने वह दौड़ रहा है, और तेज दौड़ता है, फिर गिर जाता है, घुटने छिल जाते हैं.

Saturday, June 10, 2017

योग की कक्षा


अभी-अभी एक स्कूल की ओर से ड्राइवर आकर नियुक्ति पत्र देकर गया है. एक योग शिक्षिका के तौर पर उसे हर बुधवार को बच्चों को योग सिखाने जाना है. कल रात्रि स्वप्न में उसने स्वयं को एक गुरू का एक भजन गाते हुए सुना, कितनी स्पष्ट आवाज थी. आरम्भ में गले से दबी हुई आवाज निकल रही थी पर दो बार गाने के बाद बहुत स्पष्ट हो गयी. एक अन्य स्वप्न में वह रास्ता भूल गयी है, और छोटे भाई से कहती है, वह घर तक छोड़ आये. एक आनंद से भर देने वाली उपस्थिति अब मन से हटती नहीं है, शायद उसी ने उसे स्कूल में भेजने का जुगाड़ किया है. परमात्मा का प्रेम, ज्ञान और बल ही उन्हें कृत्य में सफल करता है.  

कल शाम जून ने योग के लाभ पर एक छोटा सा पॉवर पॉइंट प्रेजेटेशन बनाकर दिया, उससे अवश्य छात्र-छात्राओं को समझाने में मदद मिलेगी. मन में योग की कितनी ही परिभाषायें उमड़ती-घुमड़ती रहती हैं. योग का अर्थ है जोड़ना, मन के साथ श्वास को, श्वास के साथ देह को और भावनाओं के साथ मन को, फिर उन सबको देखने वाला द्रष्टा अपने आप के साथ जुड़े. योग एक जीवन पद्धति है जिसमें परमात्मा व प्रकृति के प्रति एक श्रद्धा भाव मन में जगाना है, एक आश्चर्य का भाव भीतर जग जाये, ऐसी दृष्टि से इस जगत को देखना है. आज नेट नहीं चल रहा, सो कोई पोस्ट नहीं पढ़ पायी. उनका नया मॉडेम एक दो दिनों में आ ही जायेगा.

स्कूल में आज पहला दिन था, अच्छा लगा. बच्चों को योग करना अच्छा लगता है. कक्षा एक से दस तक के बच्चे थे. कमरा थोड़ा छोटा था पर ठीक ही रहा. दोपहर को महादेव की अगली कड़ी देखी, पार्वती और शिव के स्वेद से एक बालक उत्त्पन्न हुआ है जो भविष्य में उनसे युद्ध करेगा. अद्भुत हैं भारतीय पौराणिक कथाएं !
कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा, नन्हा और उसके दो मौसेरे भाई एक जैसे हैं और कई हैं, वह पूछती है, वे लोग एक से अनेक कैसे हो गये, फिर देखा, दो मिल गये और एक हो गये, कैसा अद्भुत स्वप्न था. उसे नींद से जगाने के लिए था. आज जून दिल्ली गये हैं, सुबह उन्हें जल्दी जाना था, नौ बजे के बाद हवाईअड्डे का घेराव किया गया था. कल शाम छोटी बहन से बात हुई बहुत दिनों के बाद. उसने क्लब के वार्षिक कार्यक्रम के लिए उससे थीम के बारे पूछा तो उसने कहा, उन्हें नदी किनारे बसने वाले लोगों के जीवन पर उसे आधारित किया जा सकता है. असम की विशाल नदी ब्रह्मपुत्र, लोहित, सुवर्ण श्री या तीस्ता पर. कार्यक्रमों में वे मछुआ नृत्य दिखा सकते हैं और सजावट में नौका आदि, जल बचाने का संदेश भी दिया जा सकता है, इसी विषय पर आधारित कोई स्किट भी. शाम को मीटिंग है, वह यह सुझाव दे सकती है.


आज वे मृणाल ज्योति गये थे, शिक्षक दिवस मनाया गया. कल शाम मीटिंग में काफी देर हो गयी, वर्ष भी होने लगी थी. एक सदस्या, जो वहाँ भी काम करती थीं, ने बताया, उनके मिशनरी स्कूल में एक घटना हो गयी, शिक्षक दिवस नहीं मनाया गया. आजकल माहौल बिगड़ता जा रहा है, छात्र-छात्राएँ शिक्षकों का सम्मान नहीं करते, उन्हें कुछ कहने पर माता-पिता शिकायत करने आ जाते हैं. छात्र पढ़ें या न पढ़ें, उन्हें कुछ कहने का अधिकार अध्यापकों को नहीं रह गया है. जीवन कितना विषम हो गया है, कितना जटिल. बदलते हुए वक्त में विद्यार्थी शिक्षक का जो सहज स्नेह भरा संबंध था वह नजर नहीं आता, 

Friday, June 9, 2017

बूँदा-बाँदी


दो दिनों का अन्तराल..परसों राखी थी, वह दो अन्य महिलाओं के साथ  मृणाल ज्योति गयी, सबने बच्चों को राखी बांधी, लड़के-लडकियों दोनों को..ये विशेष बच्चे जो हैं. कल भी वार्षिक सभा में वहाँ जाना है, हर बार की तरह उसने इस अवसर के लिए एक कविता लिखी है. राखी पर मन में कामना उठी थी कि उसने भेजी है तो भाईयों की ओर से भी फोन तो आने चाहिए, पर इस वर्ष भेजते वक्त भी मन में हर वर्ष की तरह उत्साह नहीं था, सो परिणाम भी वही हुआ. किसी ने फोन नहीं किया. अब अंतर के स्नेह के लिए किसी माध्यम की भी क्या आवश्यकता भला..यह तो आसक्ति ही हुई. ईश्वर आसक्तियों के धागे एक-एक करके तुड़वाता जा रहा है. जो हो सो हो, कोई आग्रह नहीं रहा अब भीतर. मन इच्छा का ही दूसरा नाम है, इच्छा न रहे तो मन नहीं रहता और तब अहंकार को टिकने के लिए कोई जगह नहीं रहती. कर्ता भाव भी तो तभी मिटेगा. जब कर्म किया हो तभी उसके प्रतिफल की आशा रहती है, जब वे करने वाले ही नहीं तब परमात्मा ही जाने, और वह कभी कुछ चाहता ही नहीं तभी तो वह परमात्मा है. आत्मा, देह, मन, बुद्धि से पृथक है, उसे अपने आप में सुखी रहना आ जाये तो देह भी स्वस्थ रहेगी और मन भी. 

सुबह हल्की बूँदा-बाँदी में छाता लेकर टहलना अच्छा लग रहा था. मनन-चिन्तन भी चल रहा था. अज्ञान दशा में कोई न कोई अभाव ही उन्ह कृत्य में लगाता आया है, वे कुछ बनकर, कुछ करके दिखाना चाहते हैं ताकि अपने भीतर के अभाव को ढक सकें, वे जो दिखाना चाहते हैं, वास्तव में उससे विपरीत होते हैं. ज्ञान होते ही समीकरण बदल जाते हैं, कृत्य सहज स्फूर्त होते हैं, भीतर जो भी शुभ-अशुभ होता है उससे संबंध मात्र दर्शक का ही रह जाता है. अज्ञानवश उससे स्वयं को चिपका कर वे सुख-दुःख का अनुभव मन द्वारा करते हैं. संवेदनाओं से जो सुख मिलता है वह कितना उथला होता है, इन्द्रधनुष जैसा..ओस की बूंद जैसा..भीतर शाश्वत सुख है, वही वे हैं, वही उन्हें मुक्त करता है !   


अज गर्मी कुछ ज्यादा है. उसने सोचा दोपहर के भोजन में खिचड़ी बनाएगी, तीन दालों वाली खिचड़ी, जून को पसंद आएगी. स्वयं के साथ यदि किसी का संबंध दृढ़ हो जाये तो संसार के साथ अपने आप ही जाता है. स्वयं पर विश्वास हो तो जगत भी विश्वासी नजर आता है. जून और उसका रिश्ता और दृढ हो गया है, बल्कि जगत में किसी से भी जुड़ना अब कितना सहज लगता है जैसे श्वास लेना. एक वक्त था जब परिचय होने पर भी बात करना कठिन लगता था, अब कोई अजनबी लगता ही नहीं. परमात्मा भी तब दूर था, और अब तो वह अपना आप ही है, निकट से भी निकट. उसकी शक्ति अपनी हो गयी है, उसकी प्रीत भी, संसार और परमात्मा दो नहीं हैं. स्वयं से जुड़ने के बाद ही उस शांति का अनुभव कोई कर सकता है जिसका जिक्र धर्म ग्रन्थों में मिलता है. सारी दौड़ समाप्त हो जाती है, कोई हीनता-दीनता भी नहीं रहती. किसी के सम्मुख अब कुछ सिद्ध नहीं करना होता, किसी को कुछ नहीं सिखाना होता उस तरह जैसे पहले सिखाना चाहता है कोई. हर की अपनी यात्रा कर रहा है. हरेक एक पास अपनी पूंजी है. हरेक के पैरों में अपना बल है. हर कोई तो उससे जुड़ा हुआ है पर सबको इसका ज्ञान नहीं है जैसे पहले उसे भी नहीं था, उन्हें भी एक न एक दिन हो ही जायेगा. उनका यह क्षण ठीक रहे बस इतना ही पुरुषार्थ करना है, वे स्वयं से जुड़े रहें, स्वयं से पीठ न फेर लें, बस इतनी सी प्रार्थना है !

Wednesday, June 7, 2017

हीरे का मुकुट


परमात्मा से मांगने योग्य एक ही वस्तु है, सद्बुद्धि ! ऐसी बुद्धि जो सद्कर्मों की ओर प्रेरित करे, जो जीवन को एक अर्थ दे. उनका होना इस जगत के लिए और परमात्मा के लिए कुछ मूल्य का हो. किंतु क्या यह भी अहंकार की पुष्टि के लिए नहीं होगा ? उनका कृत्य तो तभी होगा न जब वे होंगे, और जब तक वे हैं, तब तक परमात्मा उनके द्वारा कार्य कैसे करेगा. उनका होना ही तो सबसे बड़ी बाधा है. तब तो अच्छा है वे कुछ न करें, जो वह कराए हो जाने दें, न कराए तो भी कोई बात नहीं ! यही ठीक रहेगा. कर–कर के भी तो कुछ हासिल नहीं होता, करने से अहंकार की पुष्टि होती है अथवा तो हीन भावना बढती है, अभिमान या ग्लानि.. सेवा का जो भी कार्य बन पड़े, वही करना है और देह तथा परिवार को चलाने के लिए आवश्यक कार्य करने हैं. सहज प्राप्त हुए गुणों का प्रयोग करते हुए लिखने का कार्य करना है. इसके अतिरिक्त क्या करना है ? व्यर्थ ही कर्मों के बंधन बाँधने से कोई लाभ नहीं !

पहले इस लायक तो बनें कि परमात्मा उन्हें चुने, परमात्मा के मुकुट में हीरे लगाए जाते हैं पत्थर नहीं, स्वयं को तराशना है होश की हथौड़ी से, सारे नुकीले कोने मिटाने हैं, एक सरलता, सहजता और सुकुमारता लानी है भीतर, किसी को चुभे नहीं ऐसा व्यक्तित्त्व बनाना है, तो शेष अपने आप ही हो  जायेगा, होश सबसे बड़ा साधन है. हर क्षण सजग रहना है. उसी की स्मृति में रहकर सभी काम उसी को समर्पित करने हैं. अपने सारे अनुभव और साधना उसी के चरणों में डालकर खाली हो जाना है. न जगत के न ही मन के खेल अब लुभा सकें. होश की एक तलवार सदा अपने ऊपर महसूस करनी है. बेहोश व्यक्ति ही पुनः-पुनः भ्रमित होता है. जागा हुआ व्यक्ति भी यदि गड्ढे में गिरे तो उसे सोया हुआ ही मानना होगा. बहुत घट गया बेहोशी में अब और नहीं. आज से ही, इस क्षण से ही एक भी पल व्यर्थ के चिन्तन, व्यर्थ के कार्यों और व्यर्थ को कल्पनाओं में नहीं लगाना है. प्रकृति उन्हें शुद्ध करना चाहती है. देह के भीतर जो भी मल हो वह उसे निकालना चाहती है. मन भी विकार ग्रस्त रहना नहीं चाहता. परमात्मा उन्हें अपने जैसा पवित्र करना चाहता है. आहार में शुद्धता हो तो भीतर भी शुद्धि रहेगी. उन्हें अपनी देह का सम्मान करना है. मन व बुद्धि का आदर करना है. इन्हें पावन बनाना है. आत्मा के मूल संस्कारों को इनके द्वारा अनुभूत करना है. शांति का अनुभव मन में ही होगा. ज्ञान का अनुभव बुद्धि से, पवित्रता का अनुभव देह से होगा. शक्ति का अनुभव भी मन आदि साधनों से होगा. उन्हें स्वयं को इस जगत के योग्य बनाना है.   


Monday, June 5, 2017

आंवले की डाल


छोटे भाई का फोन आया था परसों रात सोने से पूर्व, छोटी बुआजी जो दो वर्ष पूर्व घर से चली गयीं थीं, उनकी खबर मिल गयी है. वह बंगलूरू स्टेशन पर थीं, जब पुलिस द्वारा टाइम्स ग्रुप के करुणा ट्रस्ट में पहुंचायी गयीं और वहाँ उनका मानसिक इलाज होता रहा. जब उन्हें अपने घर की याद आयी तो वहाँ के लोगों ने लखनऊ पुलिस से सम्पर्क किया और आज सुबह वे घर आ गयीं. उनका पुत्र उन्हें लेने गया था, वह जहाँ नौकरी करती थीं उस दफ्तर के लोगों ने  सहायता की. नन्हे ने उनसे बात की पर मिलने नहीं जा सका. कल सुबह उसने हिटलर की आत्मकथा पढनी शुरू की है, अभी तो रोचक लग रही है, देखे, क्या मनोदशा है उसकी, परमात्मा किससे क्या करवायेगा, कौन जानता है. हरेक को पूर्णता की ओर जाना है. जिस क्षण भी कोई अपूर्णता का अनुभव करता है वही क्षण उसे चुभन देता है. भूत में जिस क्षण उन्होंने अपूर्णता का अनुभव किया है, वे सारे क्षण उनके मन पर संचित हो गये हैं, उन सबका भार उठाए वे आगे बढ़ते हैं, बढ़ते क्या हैं, घिसटते हैं. उन्ह किसी से कुछ कहना था, पर कह नहीं पाए तो एक भार सिर पर बैठ गया. वे चाहें तो इसी क्षण में पूर्ण हो सकते हैं, हल्के और खाली, क्योंकि वे सारी घटनाएँ जैसी घटनी थीं, घट चुकी हैं. दीदी से बात की, वह भी यही कह रही थीं, एक ही चेतना  है सबमें जो विभिन्न नाम रूपों के द्वारा काम करवा रही है. वह परसों आस्ट्रेलिया जा रही हैं, अब शायद वहीं से अगली बात हो.

जून कल दोपहर गोहाटी चले गये. दोपहर को वह क्लब के काम से बाहर गयी और शाम को मीटिंग में, लौटने में पौने नौ बज गये थे. इसी माह क्लब की पत्रिका निकलेगी, उसके लिए एक नाम का चुनाव करना है. ऐसा नाम जो क्लब की सदस्याओं में जोश भी भरे और कुछ नया करने का जज्बा भी. बगीचे में आंवले के पेड़ की एक बड़ी डाल टूट कर गिर गयी थी कल रात की आंधी में, उसे साफ करवाया. आज फिर दीदी से स्काइप पर बात हुई, वह अभी देहली में हैं, बड़ी बेटी के यहाँ गयी थीं, उनकी दोहती को देखा, उसके लिए एक कविता भेजी, बहुत प्यारी है वह. जून परसों आ रहे हैं. नन्हे से पूछा उसने, कैमरे से वीडियो टीवी पर कैसे देख सकते हैं, उसने जो बताया वह काफी आसान था. उसे पिताजी का एक वीडियो एक सखी को दिखाना है. आज भी तेज वर्षा हो रही है. उसने भीगी-भीगी सी एक कविता लिखी, जो ब्लॉग पर डाल रही है. कल ईद है, वे सेवइयां बनायेंगे.   

जून आज वापस आ गये हैं, घर जैसे भर गया है. ढेर सारे फल, टिंडे, नींबू, सूखे मेवे, कुकीज और उसके लिए नये कंगन लाये हैं अपने साथ. नन्हे का एक सूटकेस यहाँ पड़ा था, जिसकी चाबी उसने खो दी थी. जिसे पिछले महीने खुलवाया था. उसके कालेज के फोटो, ग्रीटिंग कार्ड्स आदि उसमें पड़े हैं और कुछ चिठ्ठियाँ भी. हर व्यक्ति का अपना एक अतीत होता है. हर व्यक्ति अपने भीतर कितना कुछ छिपाए रहता है. उसने भी खुद को पहचाना है, कितना कुछ अनुभव किया है और आज जो भी है वह उन्हीं का परिणाम है. वह बहुत संवेदनशील है, बहुत स्नेह भरा है उसके भीतर पर साथ ही सबसे अलग भी, एक वैराग्य की भावना भी है. उसका जन्म जिन परिस्थितियों में हुआ, बचपन में उसे जैसे संस्कार मिले, उसी के अनुसार ही तो वह बड़ा हुआ. वे स्वयं ही जब आवेगों के वशीभूत थे, अपना ही पता नहीं था तब उन्होंने उसे बड़ा किया. उसके दुःख उनके ही हैं. हर आत्मा अपनी यात्रा कर रही है. वह कुछ संस्कार अवश्य ही पूर्व जन्म के लाया होगा लेकिन वे उनके सजातीय होंगे तभी तो वह उनके जीवन में आया. अच्छा है कि अब वह सजग है, अब उसके जीवन में ऐसी कोई बात नहीं है जो उन्हें ज्ञात नहीं है. 

Saturday, June 3, 2017

इंद्र का जादू


आज राखियाँ भेज दीं, पता नहीं क्यों इस बार उसे हर बार जैसा उत्साह नहीं हो रहा था, कार्ड भी नहीं बनाया न ही कविता लिखी. जो परमात्मा चाहे, अब तो वही है..वही है.. वर्ष के सातवें महीने का अंतिम दिन ! यानि आधे से ज्यादा साल गुजर गया है. इसी महीने पुराने घर की नैनी के पुत्र का जन्मदिन था, वे भूल ही गये, न ही उसकी माँ उस दिन आई या उसे लायी. उसे ‘शिव’ नाम भी उसी ने दिया था. पिताजी ने उसके लिए उपहार खरीद कर रखा था, पर वे दे नहीं पाए. खैर.. देर आयद दुरस्त आयद, आज ही बुलाकर देगी. कल शाम छोटी बहन के लिए कविता लिखी, फिर जून के एक सहकर्मी के लिए, अब उसके लिए लिखना सहज हो गया है, परमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है. कुछ देर में मृणाल ज्योति के लोग आने वाले हैं, पिताजी के नाम से स्कालरशिप का जो स्वप्न उसने देखा था, वह पूर्ण होने वाला है. उनकी आत्मा को कितना सुकून मिलगा, उनका पुण्य बढ़ेगा. कल शाम को भजन में वे चार महिलाएं आयीं, जिन्हें बुलाया था, उन्हें अच्छा लगा. समूह में भजन व ध्यान करना सदा ही प्रभावशाली होता है, गुरूजी भी कहते हैं.
पहली अगस्त ! सारे घर के कैलेंडर बदलने का दिन, इस महीने किसके जन्मदिन और अन्य शुभ दिन पड़ते हैं यह देखने का दिन और एक और माह की शुरूआत का दिन, सुबह वे उठे वक्त पर और प्रातः भ्रमण को भी गये, फूलों से भरे वृक्ष और धुली-धुली सड़कें..परसों जून को फिर टूर पर जाना है चार दिन के लिए. इस समय दोपहर के सवा दो बजे हैं, अचानक वर्षा होने लगी है, मूसलाधार वर्षा, सारा बगीचा पानी से लबालब भर गया है. पहले तेज गर्जन-तर्जन हुआ, काले बादल आ गये जैसे इंद्र अपनी सेना लेकर आया हो. पानी की बूँदें उसे अपनी ओर खींचने लगीं. उसने सोचा..वर्षा में नहाने का कितना अच्छा दिन है. आज गर्मी बहुत है और इतना बड़ा बगीचा..नीचे भी जल ऊपर भी जल.. वह कुछ देर जल में भीगती रही और फिर जब वर्षा थम गयी तो पुनः कलम उठा ली..   
अचानक छा गये थे काले-कजरारे मेघ अंबर पर
और गरजने लगा था सेनापति इंद्र का
पवनदेव लहराने लगे थे
ऊंचे वृक्षों की डालियाँ
पहले पहल पड़ीं थीं इक्का-दुक्का बूँदें उस दोपहरी
पर देखते ही देखते तीव्र हुआ वेग
जल ही जल भरा चारों ओर क्षण भर में
छप छप छपाक छपाक
कुछ दूर तक ही नजर आती थीं बूँदें आकाश में
ऊपर जिनके सदा की भांति निर्मल था अम्बर
मानो खबर न हुई उसे
और मध्य में ही रचे जाता हो कोई तिलिस्म
अपने जादुई स्पर्श से
कैसे बैठे रह सकता है कोई अडोल
प्रकृति के इस जल विलास को देखकर
जहाँ नीचे भी जल था और ऊपर भी
जिसका स्पर्श अनुपम था और
सुखदायी बड़ा धरा का अंक
सिमट आया था अस्तित्त्व उस क्षण
उसकी आँखों में
और रेशा-रेशा सरस हो गया अंतरतम तक
बन गयी थी वह अतिमोहक प्रकृति का भाग
जैसे पंछी जैसे पेड़
हरी घास और अधखिली कली
वर्षा के राग संगीत मय थे और
उसकी छुअन मखमली !