Thursday, January 19, 2023

एज लेस बॉडी टाइम लेस माइंड


रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं। सोने से पूर्व के अंतिम कार्यों का आरंभ हो चुका है। टहलने गए तो हल्की बूंदा-बांदी होने लगी, पर अब उन्हें इसका अभ्यास हो गया है। सुहानी हवा और बेहद हल्की झींसी को चेहरे पर महसूस करते घर के सामने वाली सड़क के अंत तक जाकर लौट आए। उसके आगे ही फ़ौवारे वाला पार्क है। दो दिन से पड़ोसी नहीं दिखे थे जबकि वह सुबह नियमित दो घंटे पैदल चलते हैं, आज दिखे तो बताया, खाने की मेज़ से कुछ लेते समय गिर गये थे, घुटने पर हल्की चोट थी। एक तरह से वृद्धावस्था भी दूसरा बचपन ले आती है, पर बचपन में चोट का पता नहीं चलता, इस समय बात विपरीत है।  आज से ‘देवों का देव महादेव’ पुनः देखना आरम्भ किया है। कुछ वर्षों पूर्व इसका कुछ भाग देखा था। शाम को ‘हिंदी कविता के हज़ार वर्ष’ पुस्तक में कविता के इतिहास के बारे में पढ़ा। काव्य और मानव का नाता बहुत पुराना है। पुरानी पुस्तकों में कविता के अतिरिक्त भी कितने विषयों को गद्य की अपेक्षा पद्य में लिखा गया है, जिसे याद रखना भी सरल है। 


नन्हे ने नेक्सन ईवी की टेस्ट ड्राइव बुक कर दी है। कम्पनी के लोग गाड़ी लेकर आएँगे। सुबह बिग बास्केट से सूखे मेवे आए, जून को खुद जाकर ख़रीदने का शौक़ पूरा करने में अभी समय लगेगा। भावनगर से सौंठ पाउडर आया, अमेजन उन्हें घर बैठ-बैठे पूरे भारत से समान लाकर दे देता है। 


अभी-अभी छोटे भाई से बात की। आजकल काम के सिलसिले में केरल में है। आज धोती पहनकर त्रिवेंद्रम के पद्मनाभ मंदिर गया था। उसे कभी-कभी ध्यान के अनोखे अनुभव होते हैं। बचपन से ही वह पूजा आदि  की तरफ़ आकर्षित था। उसने बताया कक्षा चार में उसके मस्तक में भौहों के मध्य एक कील चुभ गयी थी, जिसे मित्रों ने खींच कर निकाला, खून भी बहा पर बजाय रोने के वह ज़ोर से हँसने लगा था। शायद उसे पहला अतींद्रिय अनुभव तब हुआ था। उसके बाद वह कक्षा में सबसे पीछे बैठता था पर उसे कुछ सुनायी नहीं  देता था, तब निकट बैठा छात्र ज़ोर से हिलाकर कहता तब कुछ समझ में आता। अब वह ओशो के प्रवचन सुनकर और उनकी बतायी साधना से भीतर ऊर्जा का प्रवाह अनुभव करता है। अनंत ऊर्जा के स्रोत से तो सब जुड़े हैं पर उसका अनुभव कोई-कोई ही कर पाता है। 


आज भी घर के दाँयी तरफ़ का गोदाम तोड़ने की आवाज़ें आती रहीं। अब जेसीबी लगाया जाएगा। उसके बाद वहाँ निर्माण कार्य आरम्भ होगा अर्थात लम्बे समय तक इस शोर को सुनने का अभ्यास करना होगा। आज असम की एक पुरानी परिचिता से बात हुई , परसों उनकी माँ का देहांत हो गया। वह शाम को परिवार के साथ बैठकर चाय पी रही थीं, अचानक दिल का दौरा पड़ा; जबकि उन्हें कभी दिल का रोग नहीं हुआ था। जीवन क्षण भंगुर है कितनी बार वे यह बात सुनते हैं पर मानते नहीं, ऐसी घटनाएँ इसकी सत्यता सिद्ध करने आ जाती हैं। आज सुबह दीपक चोपड़ा की पुस्तक ‘सफलता के सात  आध्यात्मिक नियम’, मोबाइल पर सुनी। कल शाम उनकी एक अन्य पुस्तक ‘एज लेस बॉडी टाइम लेस माइंड’ पढ़नी आरंभ की है। उनके अनुसार चेतना में स्थित रहकर कोई भी अपने शरीर को स्वस्थ रख सकता है। व्यक्ति के सकारात्मक या नकारात्मक विचार अच्छे या बुरे हार्मोंस का निर्माण करते हैं। इस सृष्टि में पदार्थ ऊर्जा में व ऊर्जा पदार्थ में निरंतर बदल रही है।देह जो ठोस जान पड़ती है, वास्तव में तरंगों से ही बनी है। अणु या परमाणु तक आते आते पदार्थ खोने लगता है और अति सूक्ष्म ऊर्जा ही शेष रहती है।  यह ऊर्जा विचारों से नए-नए रूप धारण कर लेती है, वह जब भी दिखेगी, प्रकृति के रूप में ही दिखेगी।वह स्वयं ज्ञाता है और ज्ञेय नहीं हो सकती। उसका अनुभव ध्यान में ही किया जा सकता है। आज उनके साथ एक अठानवे वर्षीय एक वृद्ध महिला का साक्षात्कार सुना। उनकी बातें प्रेरणदायक थीं, वह अभी तक योग सिखाती हैं, नृत्य भी करती हैं। शाम को पापा जी से फ़ोन पर बात की, तो पहली बार उन्हें रिकार्ड भी कर लिया। उनकी बातों में भी जीवन के लम्बे अनुभवों का सार होता है। भक्ति और ज्ञान की चर्चा भी होती है।  


Tuesday, January 3, 2023

देवों की भूमि

बाहर वर्षा हो रही है। रात्रि के नौ बजने को हैं। शाम के ध्यान के बाद जब वे नीचे उतरे तभी से वर्षा आरंभ हो गयी, सो भोजन के बाद रात्रि भ्रमण के लिए नहीं जा सके। शाम का ध्यान गहरा था, गुरूजी के शब्द सीधे दिल की गहराई तक जा रहे थे, उसका असर था या दोपहर को देखी फ़िल्म का, मन कैसा पिघला जा रहा था। जून की ज़रा सी बात भी उसे प्रभावित कर गयी। मन होता ही ऐसा है, पल में तोला, पल में माशा ! जहाँ से मन ऊर्जा पाता है, वह पराशक्ति है। मन शब्दों का ही आश्रय लेता है यदि मौन का ले तो बचा रह सकता है। चेतना पहले श्वास में बदलती है फिर शब्दों में, यदि श्वास रुक जाए तो मन भी ठहर जाता है। आज पंत पर लिखा लेख काव्यालय में प्रकाशित कर दिया। शाम को सब्ज़ी वाला ट्रक आया था, ‘फ़्रेश वर्ल्ड’, पुदीना लिया, जून ने चटनी पीस दी। सुबह बड़ी भांजी से बात हुई, उसने बताया, कैसे उसने अपने अंग्रेज़ी लघु उपन्यास ऑन लाइन प्रकाशित किए, पर मार्केटिंग नहीं कर पायी है।  एओएल की एक शोध कर्त्री द्वारा ‘अवसाद’ पर लिखे एक लेख का अनुवाद किया। कल श्राद्ध पर एक ज्योतिषाचार्य का वीडियो देखकर आलेख लिखना है। लेखन के ये कार्य उसके अनुभव क्षेत्र को बढ़ा रहे हैं, उसने मन ही मन गुरु जी का इस सेवा कार्य में सम्मिलित करने के लिए आभार व्यक्त किया।   


सुबह टहलने गए तो बादलों के पीछे से चाँद की ज्योति झलक रही थी। इस समय कितना सन्नाटा है, बाँयी ओर से जैसे झींगुर  बोलता है, एक ध्वनि आ रही है। सजग होते ही दाँयी तरफ़ से भी आने लगी है। सन्नाटा सधने लगा है कुछ-कुछ। गुरूजी दिन में दो बार ध्यान करवाते हैं। अक्सर वे व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा वाणी के रूप में खर्च करते हैं। बाहर के मौन के साथ-साथ भीतर का मौन भी आवश्यक है, बल्कि ज़्यादा ही आवश्यक है। विचार ही कृत्य बनते हैं। वे जो पहले सोचते हैं वही तो बाद में कर्म रूप में फलित करते हैं। सोसाइटी के जिम में वस्त्रों की सेल लगी है, पर उनके पास इतने वस्त्र हैं कि शायद अगले दस वर्षों तक खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।  


संध्या भ्रमण के समय कोने वाले घर में एक छोटा बच्चा रोज़ मिलता है, हाथ हिलाता है। इतना ही बड़ा नन्हा था, उसे प्रैम में लेकर वे जाते थे तो एक पंजाबी महिला उसे देखकर बहुत खुश होती थीं, बाद में उस परिवार से अच्छी जान-पहचान हो गयी थी। जून के पैरों की जलन सौंफ, धनिया और मिश्री का मिश्रण खाने से काफ़ी ठीक है। असम में कोरोना फैल रहा है। सभी जगह यही हाल है। यह महामारी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है , कितनों की जानें भी जा चुकी हैं। भारत में संक्रमितों की संख्या चार लाख हो गयी है। 


आज शिक्षक दिवस पर अनेक शिक्षिकाओं को कविता भेजकर शुभकामना दी। शाम को वर्षा के कारण छत पर टहलने गए तो देखा पास वाले गोदाम की छत हटायी जा रही थी। हो सकता है यहाँ कोई दुकान बने। वे इधर उधर की बातें करते हुए टहल रहे थे कि बात बचपन के दिनों तक पहुँच गयी। उसने जून को बताया, वे लोग कौन सी पत्रिकाएँ पढ़ते थे, रेडियो पर नाटक सुनना भी उन दिनों विशेष आकर्षण होता था, आँगन में या छत पर सभी लोग अपने बिस्तर पर लेटे होते थे तब रेडियो पर रात्रि नाटक का समय होता था।कल नन्हा और सोनू आएँगे, वे लोग टेस्ट ड्राइव के लिए जाएँगे। नन्हे को अब कार की आवश्यकता महसूस होने लगी है, अब ओला, ऊबर सब बंद हैं। संयोग की बात है कि आज के ही दिन एक वर्ष पहले वे असम में विक्टर बनर्जी से मिले थे और आज ही उनकी पहली फ़िल्म ‘देवभूमि’ देखी, जो केदारनाथ में फ़िल्मायी गयी है।