Sunday, March 31, 2013

कपड़े धोने की मशीन



चुपचाप युगों से खड़े दरख्त
आकाश को तकते ऊंचे-ऊंचे दरख्त
कभी किन्हीं सवालों का जवाब बन जाते हैं
पीले पत्तों सा झर गया
मन का पतझड़
फिर से अंकुरायी है कोंपल-कोंपल
सूखे पत्तों की खडखडाहट सी
कोई आवाज बुलाती है
अभी अभी कोई हेलिकॉप्टर गया है
सन्नाटे को तोड़ता हुआ !

  फिर तीन दिनों का अंतराल और आज फरवरी महीने के प्रथम दिन दोपहर के पौने एक बजे थकान से बोझिल वह खतों, अख़बारों और पत्रिकाओं को साथ लेकर बैठी है, मन तो बस यह चाहता है कि कम्बल ओढ़कर कोई अच्छी सी कहानी पढ़ते-पढ़ते सो जाये, लेकिन खतों के जवाब कल देने थे, दोपहर को किसी के घर जाना पड़ा, लेडीज क्लब के काम के सिलसिले में. सारी सुबह आज ही की तरह किचन में बीती.

पिछले तीन-चार दिन बेहद व्यस्तता भरे थे, सुबह से ग्यारह बजे तक कामों का सिलसिला खत्म होने में ही नहीं आता था, पर आज कितना सुकून महसूस कर रही है, सवा दस हुए हैं, कपड़े, रसोईघर, घर अभी साफ हो चुके हैं, आज एक नई नौकरानी मिल गयी है और स्वीपर भी समय पर आ गया. उस दिन भी और उसके बाद आज तक पत्रों के जवाब नहीं दे पायी अब अगले सोमवार को ही या उसके पहले अगर माहौल या मूड जमा तो, वैसे जून ने कल दोनों घरों पर फोन से बात तो की है. आज दोपहर से एक नया माली भी आएगा काम करने. आज सुबह नन्हे की सर्दी कुछ बढ़ी हुई लग रही थी पर वह स्कूल गया तो है, बहादुर है, कल उसने कक्षा में तीन कहानियाँ सुनायीं, बड़ा होकर कहानीकार बन सकता है. पडोसिन ने कपड़े धोने की मशीन खरीद ली है, देखने का मन है.

दो दिन बाद, शाम के सात बजे हैं, इस समय एकाएक कुछ लिखे ऐसा शुभ विचार मन में आया है, ऐसे अवसर दुर्लभ होते जा रहे हैं, यही सोचकर झट डायरी और पेन उठा लिए हैं, क्योंकि क्या मालूम यह लिखने का आवेग कितनी देर का है, ऐसा क्यों हो रहा है आजकल इसका माकूल जवाब नहीं है, कभी नहीं था, पहले भी कई बार हफ्तों ऐसे ही गुजर गए और उसने कुछ नहीं लिखा, लेकिन मन के किसी कोने में खलबली सी धीमी-धीमी रहती जरूर है कि...आज सुबह धूप निकली थी, फिर बादल छाये रहे और शाम से बरसने भी लगे हैं, उन्हें क्लब जाना था पर..

दो दिन फिर बीत गए, उस दिन जून ने कहा कि जो चार्ट वह बना रहे हैं उसे नूना पूरा करे नन्हे के लिए और उसका पेन वहीं रुक गया, कल वही जानी-पहचानी सी खुमारी थी बदन में, आज ठीक है, समय भी बहुत है, जून आज देर से आने वाले हैं. नन्हे के स्कूल में अचानक छुट्टी हो गयी, वह तैयार हो चुका था, अब ड्रेस बदले बिना पड़ोसी के यहाँ खेलने चला गया है. उसने सर्वोत्तम में उक्ति पढ़ी अभी कुछ देर पूर्व,
“हमें अपना अच्छा मित्र बनने का प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि अक्सर हम अपने बुरे मित्र बनने के जाल में फंस जाते हैं”.
कितनी सही और सटीक है यह बात, उसके साथ भी अक्सर ऐसा होता है, जब वह बेवजह उदास हो जाती है, झुंझलाने लगती है या स्वयं को कमजोर समझने लगती है, क्यों न वह  अपनी सबसे अच्छी साथी बनना इसी पल से शुरू कर दे. अभी-अभी उसकी एक सखी ने फोन पर बताया कि क्लब की पत्रिका में उसकी कवितायें छपी हैं, शायद जून आज लायें. मौसम आज भी बेहद ठंडा है, वर्षा बस होने ही वाली है, सर्वोत्तम की एक और सूक्ति के साथ ही उसने लिखना बंद किया,
“ हमें अपने बच्चों को खुली आंखों से स्वप्न देखना सिखाना चाहिए.”









Friday, March 29, 2013

बूंदी का रायता



आज पैतालीसवां गणतंत्र दिवस है, उसने सोचा, क्यों नहीं मिलते वे शब्द जो भावों को बिना मुलम्मा चढ़ाए व्यक्त कर सकें, ऐसे भाव जो दबे ढके पड़े हैं, मन के ब्रह्मांड की असीमता में, अनुभव सीमित हैं लेकिन उम्मीदें हजार, इन छोटे-छोटे टुकड़ों को धो-पोंछकर, संवार कर  एक गलीचा बनाना है जो रंगदार तो हो ही, कोमल भी हो, जो आकाश के नीले रंग से मिलता-जुलता हो और धरती की हरियाली से भी ! कभी तो यह भटकाव खत्म होगा और उसकी कलम से झर-झर करते झरने की मानिंद गीत फूट पड़ेंगे, अभी तो रास्ते पर चलते-चलते एक दीवार सी खड़ी हो जाती है आगे, वापस लौटना पड़ता है हर बार. लेकिन यह बेचैनी, यह खामख्याली सी, यह सुगबुहाहट यूँ ही तो नहीं है, कहीं कुछ है जिसे रूप नहीं मिल पा रहा है, व्यक्तित्वहीन...बेचेहरा..कोई है जो दस्तक तो दे रहा है पर उसकी आवाज अभी पहुंच नहीं रही है. अकेलेपन का अहसास ऐसे में और बढ़ जाता है...क्या दुनिया का हर रचनाकार अकेला नहीं है अपनी रचना के साथ. कौन जाने..वह तो किसी से मिली भी नहीं, मिलने का प्रयत्न ही नहीं किया.

   कल रात एक स्वप्न देखा, जिसका शीर्षक दिया जा सकता है, “प्यार”, वह अभी कॉलेज में पढ़ती है, पहली नजर में ही उसे उनसे प्यार हो गया है, जून एक स्कूल टीचर हैं, वह किसी सिलसिले में स्कूल गयी है, एक बच्चे को वे दोनों झुककर एक साथ कुछ कहते हैं तो दोनों के सिर मिल जाते हैं, फिर दूसरी बार जानबूझकर वे ऐसा करते हैं, वह घर आ जाती है पर कुछ दूरी तक वह उसके पीछे है, घर की सीढियाँ चढ़ने से पहले पलटकर देखती है, वह अपना हाथ बढ़ाते हैं, वह बढ़ाती उसके पूर्व उसकी नौकरानी वहाँ से गुजरती है, रुक जाती है फिर हाथ बढ़ाने ही वाली थी कि पिता सीढियों से उतरते हैं और वह बिना कुछ कहे ऊपर चढ़ जाती है और छत से देखती है ...और लो..वह भी ऊपर देखते हैं और उनकी नजरें मिल जाती हैं, सुबह से इस स्वप्न का नशा दिलोदिमाग पर छाया है, प्यार में इतनी कशिश है कि स्वप्न में भी इसका जादू सिर चढ़ कर बोलता है...उठते ही यह स्वप्न उसने जून को बताया, अगर रोज ऐसे मधुर स्वप्न आकर जगाएं तो..सवा नौ हुए हैं अभी कितने काम बाकी हैं पर नन्हे को स्कूल बस तक छोड़ने के बाद सबसे पहले उसने डायरी उठायी, कल दोनों घर पर ही थे, सुबह एक परिवार आया, शाम को दूसरा, दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला.

  कल सुबह मधुर थी, दोपहर मदभरी, शाम सजीली थी और रात को लेकिन नींद गायब थी, किसी का उदास रहना अच्छा नहीं लग रहा था, लोग आखिर इतने निराश क्यों हैं, कभी वह  भी ऐसे ही निराश रही होगी पर अब वे सब कल की बातें हैं..जिंदगी के छोटे-छोटे सुखों को, वर्तमान को जीने का रहस्य जान लिया है उसने और जून ने भी, उनका असीम प्रेम ही तो बल देता है, परिस्थिति कैसी भी हो, उससे निकल जाने का कोई न कोई रास्ता तो रहता ही है हमेशा. थोड़ी देर पहले वह पड़ोसिन को थोड़ी सब्जी देकर आयी अपने बगीचे की, अच्छा लगा, उसके यहाँ नई नौकरानी आ गयी है. स्वीपर आज दूसरे दिन भी नहीं आया है, पर अब समय नहीं है, पौने ग्यारह बजे हैं यानि उसके पाकगृह में जाने का वक्त, आज बूंदी का रायता बना रही है नन्हे और जून को अच्छा लगेगा यह सोचकर. कल असमिया भाषा का पहला पाठ पढ़ा अ, आ इ... ऊ तक सिर्फ स्वर, कल जून हिंदी की पत्रिकाएँ भी लाए हैं, धर्मयुग और सरिता, कितने दिनों बाद पढ़ेगी, क्लब गए तो काफी दिन नहीं हुए पर पुस्तकालय गए हो गए हैं, आज से वे टीटी खेलने भी जायेंगे.

Thursday, March 28, 2013

एक घर आस-पास


  

 आज उन के जाने के बाद कामों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि अब जाकर वह थोड़ा वक्त निकाल पाई है, सुबह देर हुई उन्हें उठने में सो सब काम ही लेट होते चले गए, कल की सुबह अच्छी रही, दोपहर भी और शाम भी..वे बाहर गए थे एक मित्र के यहाँ बीहू की चाय पीने. माँ ने नन्हे के लिए एक स्वेटर बनाकर भेजा है, बहुत सुंदर है, कभी वह भी ऐसे ही स्वेटर बना सकेगी अपने.. के लिए. लेकिन अभी जो स्वेटर वह जून के लिए बना रही है, आगे बढ़ ही नहीं पा रहा है, आज से ज्यादा समय देगी, नहीं तो सर्दियाँ खत्म हो जाएँगी और..नन्हा चम्पक पढ़ रहा है इस समय, कल उसके स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम है, वे जायेंगे. आज धूप खिली है पूरी तरह, पहले दो दिनों की वर्षा ने धरती को कितना हर-भरा कर दिया है, पौधों में जैसे जान आ गयी है, और ऐसे ही उजाला भर गया है उसके दिल में जून के आने से. अभी कुछ देर में वह आ जायेंगे, अभी भोजन पूरा नहीं बना है, पर ये चंद लाइनें ...जिसमें नूना वह सब लिखना चाहती है जो महसूस कर रही है. थोड़े दिनों की दूरी स्नेही जनों के लिए टॉनिक का काम करती है. दूर होने पर वे एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह देख सकते हैं, नजदीकियां कभी-कभी दृश्य को धुंधला कर देती हैं न, उसकी सारी खूबियाँ वह महसूस कर रही थी जब वह उसके पास नहीं थे..विवाह के नौ वर्षों बाद जैसे वे एक-दूसरे को नए सिरे से पहचान रहे हैं...कितनी बातें करनी हैं उससे, पर वक्त ही नहीं मिलता क्योंकि अब जितना भी वक्त मिले उसे कम लगता है...

  पिछले पांच दिन व्यस्त थी, नन्हे का स्कूल बंद था, फिर ‘क्लब मीट का सप्ताह’, रोज ही शाम को क्लब जाते थे वे, समय निकाल ही नहीं पायी, समय शायद मिलता भी पर एकांत नहीं, सो मन स्थिर नहीं, एकाग्र भी नहीं. आज नन्हा स्कूल गया है और जून डिपार्टमेंट, और वह अपने विचारों के साथ है. काफी कुछ घटा पिछले दिनों, कई लोगों से मिलना भी हुआ. कोलकाता से उनके एक पुराने परिचित आये. कल खत लिखने का दिन है, उसने सोचा, इस बार पंजाबी दीदी को भी लिखेगी. मौसम आजकल मेहरबान है, सो क्लब के कार्यक्रम भी सुसम्पन्न हो गए, पर जिसका उसे इंतजार था, यानि पत्रिका, वह तो मिली नहीं, शायद कुछ दिनों बाद मिले, छपी तो है ही, पहले कभी इतनी उत्सुकता से प्रतीक्षा नहीं की, इस बार जाने क्या बात है, जिसका उसे भी पता नहीं, इसका अर्थ हुआ कि अचेतन मन में ऐसे कितने विचार हैं, जिनका चेतन मन तक को भान नहीं है. शनिवार को फिल्म देखी, “वह छोकरी” मन आक्रोश से भर उठा और कल की फिल्म में भी सड़क पर, फ़ुटपाथ पर पलने वाले बच्चों की दयनीय स्थिति देखकर बहुत दुःख हुआ, इतनी सुख-सुविधाओं में रहकर कभी-कभी वे ईश्वर से, जीवन से शिकायत करते हैं लेकिन अनाथ जिनका इतनी बड़ी दुनिया में कोई नहीं, कैसे जीते होंगे, बड़े होकर अपराधी बन सकते हैं ऐसे ही कुछ लोग शायद...इस दुनिया में सभी को अपने-अपने सुखों व दुखों के साथ जीना ही है. कोई क्या कर सकता है, वह क्या कर सकती है ? हाँ, इतना तो कर सकती है कि उन अनाथों का दुःख शब्दों में व्यक्त कर सके, लेकिन इससे उनका दुःख कम तो नहीं होगा, न सही, उनके दुःख को महसूस करने वाला कोई है यह संतोष तो होगा, तो पिछ्ले पन्नों पर यही लिखेगी, उसने घड़ी की ओर देखा, साढ़े दस बजने को हैं और अभी ढेर सा कम बाकी है.

  आज एक नया स्वीपर आया है, बुद्धू सा लग रहा है, ऐसे व्यक्तियों को देखकर और पिछले दिनों टीवी पर एक घर आस-पास में अज्जू को देखकर भी बचपन में मिली पिता के एक सहकर्मी की बेटी की स्मृति हो आती है कितनी मासूम थी वह, जिसे उसके माता-पिता छिपा कर रखते थे, और अपनी संतानों में भी नहीं गिनते थे. साढ़े दस हो गए है न, अभी उन्हें  आने में आधा घंटा है, आते ही उन्हें भोजन मेज पर लगा हुआ चाहिए, ताकि आराम से झपकी ले सकें, जितना लम्बा लंच ब्रेक यहाँ होता है शायद ही कहीं और होता हो, पूरा डेढ़ घंटा, कोई चाहे तो एक घंटा आराम से सो सकता है, पर उसे लगता है इतना भी क्या आराम पसंद होना, अति हर चीज की बुरी होती है, कितने सारे काम पड़े हैं घर के, समय ही नहीं मिल पाता जिन्हें करने का, शाम को तो बिलकुल नहीं...कल शाम वे पुस्तक मेला गए थे, पर वहाँ केवल असमिया किताबें थीं. कल नन्हा एक जन्मदिन की पार्टी में गया था, उसे रिटर्न गिफ्ट इतना अच्छा मिला है, वह जो उपहार ले गया था उसकी तुलना में, जून भी कभी-कभी कंजूसी कर जाते हैं. कल उसने छह खत लिखे, अच्छा लगा इतने दिनों बाद सबसे बातें करके. अबसे हर सोमवार को कम से कम दो पत्र तो लिखेगी ही, अभ्यास बना रहता है. दोपहर को पडोसिन के यहाँ जाना है, स्वेटर का नया डिजाइन सीखने, वह बहुत स्वेटर बनाती है हर साल ही. आज उसने दाल-पालक यानि साई-भाजी (सिंधी में) बनाया है, अभी फुल्के बनाने हैं. सचमुच यह स्वीपर अज्जू से कम नहीं है.  


Friday, March 22, 2013

अखरोट और मूंगफली




आज तो जून देहली में होंगे, कल वापस आना है, अब बहुत इंतजार हो गया, उसने सोचा, जल्दी से वे आ जाएँ, आज शाम से ही मन कैसा हो रहा है, इतने दिन गुजर गए पर अब कुछ घंटे गुजारना इतना मुश्किल लग रहा है. सुबह देर से उठे, नन्हे की छुट्टी थी, आज मूली के परांठे बनाये, जाने से पहले ढेर सारी सब्जियों के साथ एक किलो मूली भी रख गए थे वह, पर दो अभी भी शेष हैं. दोपहर को चने की दाल और सेम-आलू की सब्जी, नन्हे को पसंद है चने की दाल, इतने दिनों में तीन बार बनाई है और अब मन करता है तीन महीने तक नाम न ले. आलू खाते खाते भी...दरअसल बात यह है कि अब उसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा, वैसे भी वह किस कदर ध्यान रखते थे उसका. दोपहर भर “डॉक्टरस्” पढ़ती रही, फिर गुजराती फिल्म देखी, शाम को भ्रमण और फिर स्क्रैम्बल, और अब जून के पास है या कहें वह उसके पास है. नन्हे ने उत्साह दिला-दिला कर आलू फ्राई तथा तीन परांठे बनवाये दोनों के लिए. अब वह ब्रश करने गया है, दोपहर से बल्कि सुबह से ही उसका मन कुछ क्रिएटिव वर्क करने का है, दोपहर को दफ्ती की एक मेज बनाई, कुछ उड़ाना चाहता है वह, लिफाफे में आग लगाकर उसे उड़ाना हो या गुब्बारा या पतंग, पर कुछ भी तो नहीं दे सकी वह उसे, अब जून ही आकर देखेंगे और उसके कई सवाल भी इकट्ठे हो गए हैं.

  ओह !...और आज जून ने उसे कितना रुलाया, सुबह जब उसके बॉस की पत्नी ने फोन किया तो वह एकदम से इतनी पजल्ड हो गयी कि...जैसे कोई फूले हुए गुब्बारे में से पिन चुभाकर यकायक सारी हवा निकाल दे या ऐसा कि मंजिल पर पहुँच कर पता चले, मंजिल तो अभी और दूर है. नतीजा आँसू.. नन्हा उसे समझा रहा था, उसने जब कहा, पापा भी बस तुम्हारे....तो बोला क्या किया है पापा ने ? पर उसे तो जून जानते ही हैं, क्या-क्या सोचने लगी कि उसे उनकी फ़िक्र नहीं है, कि वह अपना वायदा भूल गए हैं, याद नहीं रहा कि जाते  समय उसने कहा था, पन्द्रह को पक्का आ जाना. वह सोचने लगी कि जानबूझकर दिल्ली में रुक गए होंगे...दोपहर भर सिर में दर्द रहा, आँखों पर जून का रुमाल रखा, दवा ली. शाम को फिर फोन आया कि वह कोलकाता पहुँच चुके हैं, यानि उसे वह सब नहीं सोचना चाहिए था...सुबह उसकी असमिया सखी अपने बेटे को छोड़ने आई थी, पति के साथ तिनसुकिया जा रही थी, उन्होंने भी कहा, फ्लाईट मिस हो गयी होगी या टिकट कन्फर्म नहीं होगी. तो जून जानबूझकर नहीं रुके बल्कि रुकना पड़ा, उसे बहुत अफ़सोस हुआ अपनी सोच पर. लेकिन सुबह फोन पर पूरी बात बता दी होती तो...पर अब वह उसे करीब ही लग रहे हैं पहले की तुलना में...कोलकाता तो यहाँ से नजदीक है न ? नन्हे को शाम से जुकाम हो गया है, इतने दिनों तक उसे एक छींक भी नहीं आई पर आज दोनों..शाम को उसने “सूरज का सातवाँ घोड़ा” देखी, अच्छी है, शायद जून ने भी देखी हो, एक रात उन्हें और सपनों में मिलना होगा.

  सोमवार सुबह, इस समय उसका हृदय स्नेह से लबालब भर गया है जैसे बादलों में से झाँकते हुए सूर्य ने धरती को रोशनी से भर दिया हो. कल शाम जब वह आया तो उनका मिलना कितना शांत था, कल्पना में उसका स्वागत जिस तरह किया था उसे बिलकुल अलग...और नन्हा कितना खुश था, उत्साह से भरा-भरा..जून ने उन दोनों को हमेशा ही इतनी खुशी दी है ! अभी-अभी वह दफ्तर गए हैं, कार में बैठकर सिर हिलाकर विदा कहना, उसे अंदर तक छू गया और अंदर आकर वह यह डायरी खोलकर बैठ गयी है, उसकी अलमारी खुली है..दूसरे कमरों में भी उसके कल लाए सामान इधर-उधर बिखरे हैं..उसके कारण घर कितना भरा-भरा लग रहा है..एक-एक सामान सहेजते हुए वह याद आते रहेंगे...आते ही रहेंगे. कल रात को उसने पिछले कई दिनों की तरह पन्नों पर अपने दिल का हाल नहीं लिखा बल्कि जून के मन पर..प्रेम में यह कैसा जादू है जो उन दोनों को इतने करीब ले आया है..वे बारह-तेरह दिन बाद मिले पर भीतर कैसी सिहरन पैदा हो रही थी जैसे वे पहली बार मिले हों. कल सुबह और रविवारों की तरह ही थी, दोपहर को टीवी पर फिल्म देखी, उन की प्रतीक्षा में समय बिताना आसान हो गया था..शाम अभी हुई भी नहीं थी शायद साढ़े तीन बजे होंगे कि आ गए. इतने सारे उपहारों की साथ- अंगूर, अनार, रसभरी, दो तरह की गजक, खजूर, तिल की मीठा, मूंगफली, अखरोट, चिरौंजी, चने, उसके लिए गाउन का कपड़ा, नन्हे के लिए दस्ताने, चप्पल और न जाने क्या-क्या...पर अपने लिए तो उसने कुछ नहीं लिया न, और अभी नाश्ता करते समय उनका पीछे हुए खर्चे का हिसाब जानना भी कितना संयत था, डिप्लोमैटिक, वह हैं ही ऐसे. वह उसे सदा प्रेम करेगी..सदा...




स्क्रैम्ब्लर-हिज्जों का खेल




अचानक उसका ध्यान पर्दों पर गया तो सोचा बेडरूम के पर्दे धुलवाने चाहिए, कारपेट धुलवाने की बात भी की है धोबी से. फ्रिज में से सब्जियां धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं, पर लगता है बाजार जाने की जरूरत जल्दी नहीं पड़ेगी, बगीचे से गाजर व गोभी मिल सकती हैं. आज उसने शाम को नाश्ते में पनीर का परांठा बनाया, सो रात को देर तक भूख ही नहीं  लगी, पौने दस बजे है, उसने रोज की तरह लिखना शुरू किया है, सोचा, जून भी इसी वक्त सोने की तैयारी कर रहे होंगे. शायद उन्होंने भी ‘विविधा’ की कहानी देखी हो टीवी पर. शाम को एक मित्र परिवार मिलने आना चाहता था, पर जून के न होने कि बात सुनकर नहीं आया. पड़ोस से नन्हे का मित्र आ गया था, सो वह दूर तक टहलने भी नहीं जा सकी. माली भी नहीं आया, प्लायर्स से नल खोल कर पानी दिया पौधों को फिर वैसे ही बंद किया. सुबह रजाई का गिलाफ धोकर चढाया. दिन में स्वेटर बनाया. नन्हे को स्कूल की पत्रिका के लिए कोई कविता या कहानी लिखनी है, इस समय लेटे हुए वही सोच रहा है. “ओशीन” धारावाहिक आज नहीं दिखाया जा रहा, अगले सोमवार को वह जून के साथ देखेगी. नन्हे को स्कूल में हेल्पेज के लिये बीस रूपये जमा करने थे, उसके पास दस रूपये थे, पचास वह ले जाना नहीं चाहता था, ऐसे वक्त में पड़ोसी ही तो काम आते हैं., लिखाई बिगड़ने लगी तो उसे लगा ठंड से उसकी उंगलियाँ अकड़ गयी हैं शायद, या ज्यादा देर स्वेटर बनाने से, वहाँ जून के शहर में तो इससे भी ज्यादा ठंड होगी.

रात्रि के साढे नौ बजे हैं, नन्हे ने इस वक्त उसे गुस्सा दिलाया है, काम के समय दुनिया भर के सवाल पूछता है और बातें करता है उस वक्त, जब कोई काम कहा गया हो, वैसे वह शायद रोज ही ऐसा करता हो पर आज उसे सिर में दर्द है, दोपहर को फिल्म देखी शायद इसी कारण. उसका रिपोर्ट कार्ड मिल गया है, आज वह स्कूल में पहली बार किसी टीचर के घर गया था.

बुधवार, आज बारह तारीख है, उसका मन हो रहा है जल्दी से सोने के लिए लेट जाये, शाम को बगीचे में काम किया, टहलने गयी अकेले, दोपहर को स्वेटर बनाती रही, थकान हो गयी है, जून होते तो.... अब बहुत हो गया अकेले रहना...अब बिलकुल अच्छा नहीं लगता मन करता है उससे ढेर सारी बातें करूं. उसके बिना कितने सारे काम भी तो बढ़ गए हैं न, नन्हा सो गया है, उसकी छुट्टी आज जल्दी हो गयी थी, कल भी ऐसा ही होगा, उसने कहानी लिख ली है पत्रिका के लिए.

“जिंदगी तू भी पड़ोसन की तरह लगती है
आज तोहफे में कुछ दे है तो कल मांगे है”
‘मुन्नवर राना’ का यह शेर उसे अच्छा लगा तो लिख लिया डायरी में.   

  परसों जून आ जायेंगे, सुबह से यह ख्याल आकर मन को सुकून दे गया है, उन्हें महसूस करने लगे हैं वे अब, उनकी हंसी उनका स्पर्श सब स्पष्ट हो गया है, नन्हा कह रहा है पापा के आने पर हलवा-पूरी बनाइएगा, आज दोपहर को इतने दिनों में वह पहली बार एक घंटा बेड में थी, कारण वही, नन्हा भी लेट कर टीवी देख रहा था, उसके स्कूल में आज जाते ही छुट्टी हो गयी पर वह साढ़े बारह बजे ही आ पाया, अब एक हफ्ते बाद स्कूल में पढ़ाई होगी. क्योंकि छह दिन बाद वार्षिक दिवस है. सुबह सामान्य रही सिवाय इसके कि गाजरें निकलीं गार्डन से, जून के लिए गाजर का हलवा बनाना है न, टमाटर भी मिले. उसके एक सहकर्मी सर्वोत्तम तथा आधा किलो मटर दे गए, उसने मंगाए थे. शाम को पड़ोसियों के साथ क्लब गए बीहू का कार्यक्रम था, सवा सात पर लौटे. घर आकर स्क्रेमब्लर खेलते रहे, समय का ध्यान ही नहीं रहा, खाना देर से खाया. कल टीवी पर ‘हुन हुन्शी हुन्शाराम’ गुजराती फिल्म Sदिखाई जायेगी और परसों “सूरज का सातवाँ घोड़ा”, जो वे साथ-साथ  देखेंगे. उसने मन ही मन जून से स्वप्न में आने कि बात कही, मच्छर दानी भी नहीं लगा रहे वे आज, नन्हा इस समय गुड नाईट में नई मैट लगा रहा है.

Wednesday, March 20, 2013

सिडनी की आग




आज छोटी बहन का पत्र व कार्ड मिला, जून के दफ्तर से उनके सहकर्मी आकर दे गए. सुबह रोजमर्रा के कार्यों में गुजर गयी. दोपहर को बरामदे में रखे गमलों की सफाई-निराई की, उनमें पानी दिया, एक घंटा उसमें लग गया, फिर मन न जाने कहाँ-कहाँ की बातें सोचने लगा, मन बहलाने को पड़ोसिन से मिलने उसके घर गयी, साथ बैठकर स्वेटर बनाया, चायनीज चेकर खेला, टीवी देखा, और फिर घर आकर नन्हे का इंतजार. शाम को वे दोनों घूमने गए और फिर वह पुरानी डायरियों में उस कविता की खोज में लग गयी जो क्लब की पत्रिका में छपने के लिए देनी है. सारी शाम इसी में निकल गयी, एक कविता व लेख चुना तो है. उसे जून का ख्याल हो आया, कल उनका सेमिनार है, जिसके लिए वह गये हैं. आज सुबह ही क्लब से भी विवाह की सालगिरह का कार्ड मिला. हो सकता है आज रात वह उसे स्वप्न में देखे. सरस्वती पूजा के लिए चंदा मांगने फिर एक ग्रुप आया था, उसने छूटते ही मना कर दिया और वे लोग चले गए.

 सुबह उठते ही मन ही मन उसने जून को मुबारकबाद दी, बाद में उसके उपहार के लिए धन्यवाद भी दिया जो नन्हे ने सुबह उठते ही अपनी बधाई के साथ उसे दिया, एक सुंदर कार्ड व चॉकलेट ! जो जून उसे देकर गए थे. वह आजकल जरा भी नखरे नहीं करता है, अच्छे बच्चे की तरह उसका हर कहा मानता है. आज सुबह ठंड ज्यादा थी, नन्हे के जाने के बाद बाहर के गमलों की देख-रेख की, फिर तीन कवितायें उतारीं, पत्रिका में देने के लिए. दोपहर को कुछ देर कढ़ाई की. फिर शाम को नन्हे के साथ अपने घर के सामने वाली सड़क पर घूमने गयी. शाम को पहले उसकी बंगाली सखी आयी, फिर असमिया सखी जो साथ में कचौडियाँ भी लायी थी. और बाद में उड़िया सखी, स्वीट डिश में चॉकलेट बहुत काम आई. कुल मिला कर शाम अच्छी रही, सिर्फ जून की कमी खल रही थी. कल स्वप्न में उसने सचमुच जून को देखा, कह रहा था, दीदी लोगों से मिलने रात को दो बजे गया, सपने तो सपने ही होते हैं आखिर.

  आज पांचवी रात है यानि लगभग आधे दिन बीत गए हैं. उसने सोचा वह भी सोने की तैयारी कर रहे होंगे. दोपहर को नन्हे की पसंद पर अरहर की दाल की खिचड़ी बनाई उसने, सुस्वादु थी. आज लौंग स्टिच की कढ़ाई का कार्य पूर्ण हो गया, अब उसे फ्रेम करवाना होगा. शाम को बैडमिंटन, भ्रमण और वापस आकर नन्हा खेलता रहा, अपने कई पुराने खिलौने निकाले उसने. रोज रात को चम्पक पढकर सोता है. कल नए गमलों में माली ने मिटटी भरी और पौधे लगाये. शाम को ‘रुदाली’ फिल्म थी टीवी पर, उसने सोचा शायद जून ने भी देखी हो. आज सुबह उसने एक नई कविता लिखी ‘रात’, जून के आने पर उसे सुनाएगी, नन्हे ने आज उसकी कुछ पुरानी कवितायें सुनीं, पता नहीं वह कितना समझ पाता है. आज गर्म पानी नहीं आया तो जून की बात याद आई कि शाम को गैस तेज कर दिया करे. पिछली बार जब जून गए थे तो नन्हा बहुत उदास हो गया था, पर इस बार ठीक है, अब वह बड़ा हो रहा है, शायद इसीलिए, या उसे शांत देखकर वह ऐसा है और उसे इस बार शायद ज्यादा उदासी इसलिए नहीं हुई कि दस-ग्यारह दिन ही तो बात है, सिर्फ छह रातें और..उसके स्वप्नों के सहारे.

  उसने डायरी में ही जून को एक खत लिखा जो वह जानती है कि भेजेगी नहीं, आज अभी सवा आठ ही हुए हैं, उसका रात्रि भोजन हो चुका है, नन्हा अभी खा रहा है. आज शाम से ही अच्छा नहीं लग रहा, खल रही है उसकी कमी. सुबह से शाम हो गयी, नन्हा और उसने किसी से बात नहीं की, उनके पड़ोसी भी घर में रहे दिन भर, एक बार भी बाहर नहीं निकले. शाम को वह दो-तीन बार नन्हे पर झुंझला भी गयी, पर वह बहुत बहादुर है उससे भी ज्यादा. सुपरमैन बना था, आज वही सेफ्टी पिन्स से टॉवेल लगाकर. शाम को वे घूमने भी गए. माली आज दूसरे दिन भी नहीं आया, सो शाम को पानी दिया बगीचे में. ‘गार्डन टैप’ लगता है जून के आने के बाद हो ठीक होगी, दोपहर को असमिया फिल्म देखी “मयूरी”, आज उसकी जितनी याद आ रही है पिछले पांच दिनों में एक दिन भी नहीं आयी होगी ऐसी याद जो व्याकुल कर  देती है. उसने सोचा वह उसके पिता के घर गए होंगे, अपना नया बनता हुआ मकान देखा होगा, यकीनन अच्छा लगा होगा. समाचारों में सिडनी की आग के बारे में सुना, कितनी भयंकर आग है, संभवतः आस्ट्रेलिया में तो घर भी लकड़ी के होते हैं न अधिकतर.

डॉक्टर्स की कहानी



नए वर्ष का प्रथम दिवस, नये साल के पहले दिन कई अच्छी बातें हुईं, वे पाइप के पुल पर घूमने गए, बूढी दिहिंग नदी के किनारे दूर-दूर तक रेत फैली थी, नन्हे ने रेत का छोटा सा घर बनाया. कल रात देर तक टीवी पर कार्यक्रम देखने के कारण सुबह नींद देर से खुली, गार्डन में मेरीगोल्ड, फ्लौक्स, एक अनाम फूल, तथा शाकवाटिका में धनिये, पपीते तथा मटर के बीज लगाये. 
  जीवन का कटु सत्य भी बार-बार सामने आता रहा, जिससे भी अपेक्षा रखो यहाँ निराशा ही मिलती है और मन आहत होता है. यह पीड़ा ही शायद उसकी नियति है या वह अपेक्षा ही ज्यादा रखती है. यदि किसी से उसके किये गए वायदे को निभाने की अपेक्षा रखना अधिक है या विवाह की सालगिरह आने पर अपने लिए ज्यादा आत्मीय सम्बोधन की अपेक्षा रखना. उचित यही होगा कि वह किसी से भी कोई अपेक्षा कभी न रखे. कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि वह “Great Expectations” पढ़ रही है आजकल ! उसके थोड़ा सा उदास होने पर नन्हा परेशान हो जाता है और जून झुंझला जाते हैं, और उसे महसूस होता है कि उसकी खुशी ही उनकी पहली चाहत है. रविवार की दोपहर को जून के बनाये गाजर के हलवे की सभी ने तारीफ की. शाम को वे दोनों जब घूमने गए तो इस मौसम की पहली शीतलहर चेहरे पर महसूस की, इस साल यहाँ ठंड काफी कम है.

  कल जून देहरादून जाने वाले हैं, दोपहर तक यह ख्याल मन को बेचैन नहीं कर रहा था, पर अब धीरे-धीरे उदासी की हल्की परत मन पर छाने लगी है. जून इतना ख्याल रखते हैं उसका व नन्हे का. उनकी हर छोटी से छोटी बात में वह शामिल हैं. आज दोपहर को ‘पिप’ की कहानी आगे पढ़ी, और नन्हे के टूटे हुए पैराशूट को ठीक किया. उसकी छात्रा ने कार्ड के लिए धन्यवाद दिया और नन्हे को उसके मित्र ने एक कार्ड दिया. ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ फिर से विश्वास दिलाती रहती हैं कि जीवन इतना कठोर नहीं कि उदास हुआ जाये. दोनों छोटे भाइयों के कार्ड भी मिले, पत्रों के लिखने का दिन था, पर हर हफ्ते फोन पर बात हो जाती है जून की, पत्रों की अहमियत कम हो गयी है.

नीले से फिर हुआ सलेटी, काला होता अम्बर
नृत्य अनोखा करते पत्ते हवा बहे जब सर सर,
टप टप बूंदें बरस पडीं लो तेज हुआ वर्षा स्वर
बिजली चमकी मेघ गरजते, समां बंधा कितना सुंदर !

 आज जून को गये पहला दिन है, उसके लिए स्वेटर बना रही है.  टीवी के सामने काफी देर बैठे रही, शाम को टहलने गयी नन्हे के साथ. सो दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. माली आया था पानी का नल खोल तो दिया पर उससे बंद ही नहीं हुआ, कल उसे ठीक करवाना है.  शाम को ‘सरस्वती पूजा’ का चंदा मांगने एक दल आया था, जिन्हें शिक्षा से कोई मतलब नहीं ऐसे लोग पूजा के नाम पर मौज करते हैं, जून होते तो मना करते, पर उसने दे दिया. नन्हा कह रहा है कल वह स्कूल नहीं जायेगा, छुट्टियों के बाद पहले दिन पढ़ाई नहीं होती है. उसने लकड़ी के बक्से से सारी चम्पक निकालीं, इस वक्त उनमें से एक पढ़ रहा है. दिन भर वह कुछ भी करती रही पर जून का ख्याल हमेशा साये की तरह लगा रहा.

 एक दिन और बीत गया, उसकी बंगाली सखी का फोन आया उसके बगीचे से गुलाब के पौधे चोरी हो गए, सुनकर व सोचकर उसे बहुत दुःख हुआ, वह कितनी उदास रही होगी. आज सुबह नन्हा उसे गुलदस्ते के लिए फूल तोड़ने से मना कर रहा था वह रूठ ही गया इस बात पर कि फूलों को दर्द होगा. पड़ोस का बच्चा भी स्कूल नहीं गया, वह अपनी माँ के साथ सुबह आया था. दोनों खेलते रहे. शाम को उसे लेकर टहलने गयी, झूला पार्क दिखाया नन्हे ने. कुछ देर बैडमिंटन खेला. “डॉक्टर्स” किताब के कुछ पृष्ठ पढ़े. कुछ देर पहले सोच रही थी, अब जब भी समय मिलेगा लिखेगी, एकांत खोजते-खोजते कभी एकांत नहीं मिलता और जब मिलता है तो कविता नहीं बनती, रचना और जीवन जब एक हो जायेंगे, तब हर वक्त मन कुछ रच जाने के काबिल रहेगा. किसी खास वक्त का मुहताज नहीं रहेगा.








Tuesday, March 19, 2013

लटपटे नूडल्स



हैप्पी सेवेंथ...अभी कुछ देर पूर्व जून ने कहा, ठीक एक माह बाद आज के ही दिन उनके विवाह की वर्षगाँठ है. आज सुबह नन्हे के लिए ऊन की टोपी बनाने में लगी रही. कल शाम वह काफी देर तक पढ़ता रहा, घर जाने से उसका काफी कोर्स छूट गया था. आज जून धनिया व मूली के बीज लाए हैं, हरी मिर्च की पौध भी. शाम को सभी लगाने हैं. कल तीन खत लिखे, जो मन में आया, सभी  लिखती गयी, दीदी को भी, माँ-पिता को भी...कब तक कोई चेहरे पर मुखौटा लगाये रह सकता है? सितम्बर का न्यूज़ ट्रैक देखा, कुछ खास नहीं लगा, जुही चावला का इंटरव्यू है, पता नहीं ये सारी अभिनेत्रियाँ एक जैसी भाषा क्यों बोलती हैं, क्या बोल रही हैं शायद इंटरव्यूअर भी नहीं समझ पाती होंगी, लेकिन ‘केएसकेटी’ देखने का मन हो गया है इंटरव्यू सुनकर. नए साल के कार्ड भेजने हैं सभी को फुफेरी बहन को भी और मामी जी को भी.

  अभी-अभी उसने दैनिक व्यायाम किया, तन के साथ मन भी हल्का हो गया, कुछ देर बगीचे में भी काम किया था उसके पहले, गाजर के बीज डलवाए और फ्रेंच बीन्स तोड़े. गुलदाउदी पूरे शबाब में खिल रहा है और गेंदा भी. उन्होंने नया माली रखा है, पता नहीं यह भी कब तक टिकेगा. सुबह नन्हे के लिए नाश्ते में नूडल्स बनाने का प्रयास किया, पर ज्यादा गीले हो गए, मेसी टाइप, पर नन्हा इतना समझदार और प्यारा है कि उसने जरा भी मुंह नहीं बनाया और उसे ही खुशी से खा लिया. दोपहर को उसका स्कूल का चार्ट बनाकर रखेगी, रंग वह आकर भरेगा.

  कल दोपहर जून को जो पहले से ही उखड़े-उखड़े थे, उसने यूँ ही उदास कर दिया, उसने मन ही मन उनसे क्षमा मांगी. कल शाम को उसकी छात्रा ने उसे खुशी का अनुपम उपहार दिया, उसके कारण उसे हमेशा अनजानी, अनसोची खुशियाँ मिलती रही हैं, वह सचमुच प्रिया है. उसने सोचा उसे नए साल का कार्ड अवश्य भेजेगी. कल जब उसने बताया तो सन अठासी की पत्रिका निकल कर अपनी कविता पढ़ी-  
खोल दो मन के सब के दरवाजे, खुली हवाएं आने दो !
बहुत सुकून मिला पढ़कर, प्रिंसिपल साहब ने तारीफ की इसके भावों की.. उसने मन ही मन उसे धन्यवाद दिया. अभी कुछ देर पूर्व उसने एक-एक कर दो सखियों को फोन किया, सम्बन्ध अपनी सुविधानुसार निभाना चाहते हैं आजकल सभी लोग, दूसरों के लिए किसी स्नेह या आत्मीयता के कारण नहीं. रिश्ते अपनी जरूरत के अनुसार बनाये या बिगाड़े जाते हैं. लेकिन इस पर अफ़सोस करने की कोई बात नहीं क्योंकि यह कोई नई बात तो नहीं...अब तो मन इतना कठोर हो चुका है कि सब कुछ आसानी से सह लेता है. इससे तो अच्छा है दोस्त बनाएँ हम अपने विचारों को..किताबों को और फूलों को जो बदले में अनादर तो नहीं करते हमारे स्नेह का. उसने देखा, सवा दस हो चुके हैं, अभी कई कार्य शेष हैं, सो मन की पीड़ा इन्हीं पन्नों में छोड़कर अब शेष कार्यों में लगने चली गयी.

  आज से नन्हे की छमाही परीक्षाएं आरम्भ हो रही हैं. आज हिंदी का पेपर है. उसके लिए अंग्रेजी का पेपर बना कर रखेगी जो वह आकर हल करेगा. परसों उसकी नैनी लक्ष्मी चली जायेगी, फिर कितनी मुश्किल होगी..एक लाभ होगा उसकी कमर जो फैलती जा रही है थोड़ी तो कम होगी कुछ काम करने से. कल एक बच्ची के जन्मदिन की पार्टी में गए थे वे, इतने लोग थे कि बैठने की जगह नहीं मिल पा रही थी कुछ लोगों को. आज खतों का दिन भी है पर पिछले हफ्ते एक भी खत नहीं आया, सो अगले हफ्ते ही लिखेगी नए साल की शुभकामनाओं के साथ.

  अभी कुछ देर पूर्व पुरानी पड़ोसिन से बात की और अब इस बात पर पछता रही है कि व्यर्थ ही लेडीज क्लब के ‘मेहँदी’ कार्यक्रम की आलोचना की, सचमुच कितनी आसान होती है आलोचना लेकिन प्रशंसा करना भी उतना ही आसान है उसके लिए यदि बात उसके मन की हो, चलो, इस बात को यहीं छोड़ते हैं, उसने सोचा. शाम को क्लब जाना है, क्रिसमस ईव है, बचपन में कितने गीत गाते थे वे ईसामसीह के बारे में. आज भी कई दिन बाद लिख रही है, नन्हा पास ही बैठा है उसे काम दिया है, पर वह हर एक मिनट में कुछ पूछ लेता है. उसने सोचा इन छुट्टियों में उसे कोर्स की पुस्तकों के अलावा कुछ पढ़ाएगी, पर इधर-उधर के कामों में ही मन इतना थक जाता है कि...फिर भी कुछ समय तो निकालना ही चाहिए. कल जून वह कार्ड भी ले आए जो उस छात्रा को भेजना है. पिछले हफ्ते सिर्फ मंझले भाई का एक पत्र आया था. कभी वे दिन भी थे जब लिखने से सुकून मिलता था पर आज इस वक्त कुछ जम नहीं रहा है यूँ कलम चलाना, और ऐसा पहले भी हुआ है, हो सकता है पहले यही बेचैनी उसे भाती हो.






Monday, March 18, 2013

गर्म पानी का पाइप



  पिछले दो दिन यूँ हीं गुजर गए जैसे हर बार गुजरते हैं. शनिवार को नन्हा स्कूल नहीं गया था, ऐसे में सुबहें थोड़ा व्यस्त हो जाती हैं, उसकी मार्कशीट मिल गयी है, सोशल में दो नम्बर कम हैं बाकि सभी विषयों में शत-प्रतिशत अंक मिले हैं. अभी-अभी एक पत्र लिखा है, घर जाना है पर जाने क्यों यात्रा का उत्साह नहीं है. पत्र में क्या असत्य लिखा था ? क्या वह अपनों से भी अर्थात अपने से भी झूठ बोल सकती है...रात को फिर अजीब स्वप्न देखे..सर्वोत्तम में एक लेख पढ़ा था, उसमें लिखा था नींद गहरी न हो तो स्वस्थ नहीं रहा जा सकता, या फिर...पर जब ‘वह’ उसके पास है तब इतनी माथापच्ची करने की उसे क्या जरूरत है.

  कल मंझले भाई की चिट्ठी आयी, उससे एक सवाल पूछा था उसने, जब वह ‘योगी कथामृत’ पढ़ रही थी. उसने बहुत अच्छा जवाब दिया है. विनोबा जी ने अध्यात्मवादी होने के लिए तीन निष्ठाएं बतायी हैं-
निरपेक्ष नैतिक मूल्यों पर आस्था,
जीवमात्र की एकता और पवित्रता में विश्वास तथा
मृत्यु के बाद भी जीवन की अखंडता में विश्वास

भाई ने तो स्वीकार किया कि पहली निष्ठा में वह खरा नहीं उतरता और अगर वह अपने मन में झांक कर देखे तो... वह भी अभी बहुत पीछे है, प्रयास करती है, मगर कई बार असफल रहती है. विश्वास उसे तीनों में है. अच्छाई में विश्वास हो..यह तो सभी के साथ होता है लेकिन उसका पालन कौन कितना करता है.

  कल उन्हें घर जाना है, जून अवश्य ही मना करेंगे यह डायरी ले जाने के लिए..वह भी सबके साथ कहाँ लिख पायेगी बल्कि एक पतली कॉपी या कुछ पन्ने ले जाने से ठीक रहेगा...अपने विचारों या भावनाओं को उकेरने के लिए.

 लगभग एक महीने बाद वह लिख रही है. यात्रा के दौरान कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए, जिन्हें मन के पृष्ठों पर तो आज भी स्पष्ट देख रही है. माँ-पिता का जीवन के प्रति अनूठा उत्साह देखकर मन गहरे तक प्रेरित होता है. घर में सभी से मिलकर अच्छा तो लगा पर एक-दो बार ऐसा भी लगा कि एक औपचारिकता है जो सभी निभाए चले जा रहे हैं.. पर इस पर अफ़सोस नहीं होता..यह तो परम सत्य है कि इंसान हर काम अपनी खुशी पहले देखकर करता है, यह बात सभी के लिए सत्य है. उन्हें यहाँ आए चौथा दिन है, पहले दिन उसकी उड़िया सखी मिलने आई, खाना खिलाया. यानि उम्मीद के दिए जल रहे हैं और कयामत तक जलते रहेंगे. दूसरों के लिए सोचना यदि हम शुरू कर दें तो दूसरे खुदबखुद..आज इस वक्त साढ़े दस बजे हैं, सिर भारी है, शरीर की हल्की सी पीड़ा भी मन को कैसे प्रभावित कर लेती है, तभी जो वास्तव में लिखना चाहिए था वह न लिखकर सिर की बात लिख गयी. नन्हे की ऑंखें यात्रा के दौरान शहर के प्रदूषण से लाल हो गयी थीं, बहुत संवेदनशील हैं वे धूल व धुएं के प्रति.

दिसम्बर का महीना शुरू हो चका है कल से, और उसे खबर भी न हुई, बड़े भैया का जन्मदिन था कल, उन्हें खत या कार्ड कुछ भी तो नहीं भेजा. इस बार उनसे कुछ ही घंटों के लिए मिल सकी, भाभीजी भी काफी बदली हुई लगीं, वह बड़ी बुआ जी की तरह लगीं रुआब वाली और कुछ मूडी..आज सुबह से सोच रही थी कि लिखना है पर अब दो बजे वक्त मिला है, डेढ़ घंटा अखबार व संडे पत्रिका पढ़ रही थी, पर इतना पढ़ने का कुछ फायदा भी हुआ, सतही जानकारी से कोई लाभ होता है, अखबार सरसरी निगाह से ही पढ़ा और संडे भी कुछ पन्नों को छोड़कर. यूँ कहे कि आजकल कोई बात उसे प्रभावित नहीं कर पाती है तो ठीक होगा. ‘गीता’ पढ़ते-पढ़ते ही मन शायद अब किसी भी घटना में बंध नहीं पाता, तटस्थ हो गया है. कल सुबह बाएं तरफ आयी नई तेलुगु पड़ोसिन के यहाँ गयी, उसकी दो जुड़वां बेटियां हैं, अच्छा लगा उनसे मिलकर. दोपहर को दायीं ओर वाली उड़िया पड़ोसिन के पास. कल मन था कि घर में लग ही नहीं रहा था.
कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गए उनके विवाह की वर्षगाँठ थी, उनका बगीचा भी देखा. आज खत लिखने का दिन है, दोपहर को लिखेगी. नन्हे की ऑंखों की लालिमा तिनसुकिया के डॉ की दवा से ठीक हो गयी है, उसे फोन करके धन्यवाद कहना चाहिए. कल रात वे देर तक बातें करते रहे, पर सुबह स्कूल जाने से पहले वह उसकी आँखों में दवा डालना भूल गयी, जून आते ही पूछेंगे. गर्म पानी का पाइप खराब हो जाने के कारण आने के बाद से उन्हें बाथरूम में गर्म पानी नहीं मिल पा रहा है, नहाने के लिए पानी गर्म करना पड़ता है. आज भी प्लंबर नहीं आया है अभी तक.

Friday, March 15, 2013

1984-George Orwell



“Let all our passions and emotions go up unto Him. They are meant for Him, for if they miss their mark and go lower, they become vile and when they go straight to the mark, to the Lord, even the lowest of them becomes transfigured, He is the Beloved who is in this world more beautiful than Him? Let Him be the Beloved.”- Swami Vivekannd

  शनिवार को उनके लेडीज क्लब और दिगबोई लेडीज क्लब का सम्मिलित भोज था, बहुत सफल रहा. वह दिन उसकी यादों में एक अनोखे दिन की तरह सदा-सदा रहेगा. इतनी सारी महिलाओं के बीच, जिन्हें वे जानते भी नहीं लेकिन फिर भी एक अपनापन लग रहा था. अगली सभा में वह अवश्य कहेगी अपने इस अनुभव के बारे में. आज उसने दो खत लिखे, सुबह के सारे काम सम्पन्न हो जाने के बाद. कल शाम जून और उसने बगीचे में काफी देर काम किया. उसकी पड़ोसिन ने चायनीज गुलाब की दो कलमें दी थीं, उन्हें भी लगाया, उनके घर से आने तक उसमें नए पत्ते आ जायंगे शायद. कल रात उसने कई सपनों के मध्य एक मजेदार स्वप्न देखा, पिता को एक अरब रुपया मिलने का स्वप्न. 

  कल नन्हा स्कूल से आया तो उसके दोनों घुटनों में चोट लगी थी, शाम को दर्द काफी था. जून स्कूल जाने से पहले अस्पताल ले गए. जाना ही था क्योंकि आज सोशल साइंस का टेस्ट है, स्कूल जाते वक्त वह हँस रहा था. कल पड़ोस के बच्चे को भी किसी ने कान पर मार दिया था. शायद सभी बच्चे इसी तरह बड़े होते हैं. आज सुबह से हल्के बादल हैं इससे गर्मी कम है. कल रात गर्मी के कारण पहले नींद नहीं आ रही थी. उसने घड़ी की ओर देखा, आज सरदार जी की दूध की गाड़ी नहीं आयी, वे तिनसुकिया से रोज इसी समय तक आ जाते हैं. जून आज फील्ड गए हैं, देर से आएंगे, उसने सोचा कुछ देर के लिए तेलुगु सखी के यहाँ मिलने जायेगी.

 हाँ, आज से वह “उसे” ही सम्बोधित करके ही लिखेगी. उसी ने अभी उसे आवाज दी थी न, पर जब फोन उठाया तो कोई आवाज नहीं, क्या मौन ही उसकी आवाज है ? नन्हे को स्कूल में फिर चोट लग गयी उसी जगह पर वह बहादुर है, है न ? जैसे वह हमेशा उसकी सहायता करता है, वैसे ही उसकी भी करेगा और जून की भी. वह तो सब जानता है. आज जून सुबह फील्ड जाने के लिए जल्दी चले गए और देर से आएंगे, कल यूँही उसने उन्हें दुःख पहुँचाया, अब से वह सिर्फ उसी से शिकायत करेगी, इस जग के किसी भी प्राणी से नहीं, वह ही तो है जो उसकी वर्षों की बेवकूफियों को सहता आ रहा है...फिर भी अपना हाथ उसके सिर से नहीं हटाया है उसने...वह कोशिश करेगी कि कभी भी उसे न भूले, क्योंकि जब वह याद रहता है तो वह ओछा काम कर ही नहीं सकती. आज गगन में बदली छायी है, कल शाम को बादल नहीं थे, पर रात जाने कहाँ से आ गए, वर्षा होने लगी, उसने जो बीज डाले थे अब उसके ही हवाले हैं, चूँकि अब उसका हर काम उसे ही संवारना है, क्या ज्यादा बोझ नहीं डाल रही है उस पर..वह हँस रहा है..उसकी आँखों में आँसू भरकर वह हँसता है...oh God I love You ! I love You so much! वह व्यर्थ ही उससे डरती थी.

  आज सुबह लिख नहीं सकी, क्योंकि जाले साफ करवा रही थी, सारे कमरे अस्त-व्यस्त पड़े थे, फर्नीचर के पीछे एक महीने में कितनी गंदगी इकट्ठी हो जाती है. फिर जून आये, सुबह भी वेल गए थे, दोबारा गए हैं और वहीं से तिनसुकिया जायेंगे. उनसे नेप्थलीन बाल्स के लिए कहना है. वह सोच रही है इस बार हेयर कट कैसे करवाए, छोटे या बस ट्रिमिंग ही. घर जाने से पहले तिनसुकिया तो नहीं जा पायेगी, कोलकाता में ही करवाना होगा. इस समय धूप निकल आई है, धूप में धुले पौधे कितने सुंदर लग रहे हैं. सुबह नन्हे को फिर जल्दी-जल्दी कम करने के लिए कहा, उसने उसे रोका भी नहीं. George Orwel की किताब 1984 समाप्त कर दी, new speak, thought crime, good thing, Eurasia जैसे शब्द कुछ दिन याद रहेंगे फिर कहीं खो जायेंगे लेकिन लेखक की कल्पना शक्ति का लोहा मानना ही पड़ेगा.  

  डेढ़ बजे हैं दोपहर के, यूँ यह लिखने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि रात को डेढ़ बजे कभी लिखे यह नामुमकिन तो नहीं कठिन जरूर है. सिर में हल्का सा भारीपन है, उसका कहना जो नहीं मानती, मन को अखाड़ा बनाये रखने से तो दर्द होगा ही, अनेकानेक इच्छाएं जन्म लेती हैं, पूरी न होने पर उनको पूरा करने का प्रयास.. फिर असफल होने पर झुंझलाहट, इन सबका परिणाम है अशांत मन...जून देर से आये, खाना उसने अकेले ही खाया. पिछले कई दिनों से वह बहुत व्यस्त थे, जी.एम. उनके काम से खुश हैं, आज मीटिंग में पार्टी है इस खुशी में. कल उसकी एक परिचिता आयी थी परिवार के साथ, दो किताबें ले गयी है उसकी किताबों की अलमारी से. उसने सोचा, लिखना छोड़कर काम शुरू करेगी, ‘श्रम’ बेहतरीन उपाय है मन को स्थिरता देने का.