Wednesday, February 27, 2013

आम का अचार



यहाँ आजकल एक छोटा सा मेला लगा है, वे दो बार हो आए हैं, नन्हे का उत्साह देखते ही बनता है, बचपन में वे भी ऐसे ही उत्साहित होते थे. वहाँ जादू का खेल भी देखा, जून को वहाँ बैठना पसंद नहीं था, पर प्यार के कारण...उनका प्रेम नन्हे और उसके लिए असीम है. पिछले तीन-चार दिनों गर्मी बहुत थी, आज अपेक्षाकृत कम है. कल माँ व दीदी के पत्र मिले, दीदी का पत्र बहुत अच्छा था, उसके जन्मदिन की बधाई दोनों में थी. Whatever suffering arises has a reaction as its cause, if all reactions cease to be then there is no more suffering.  दीदी के पत्र में लिखा था. नूना सोच रही है कि छोटे भाई को व्यर्थ ही अंग्रेजी की गलती के लिए लिखा, उसका जवाब आने पर एक अच्छा सा पत्र लिखेगी, किसी की आलोचना करने का भला क्या अधिकार है उसे. उसने  पुरानी पड़ोसिन को फोन किया, आजकल वह कहीं आती-जाती नहीं, उसे शक है कि वह.. काश यह सच ही हो, उसे बच्चों से बहुत प्रेम है. वह स्वयं ही उससे मिलने गयी, कॉटन के लाल-काले सूट में वह बहुत अच्छी लग रही थी. उससे कुछ छोटी पुस्तिकाएँ व चार “कल्याण” पत्रिकाएँ लायी है, मन को एकाग्र करने के लिए अच्छी हैं, जून भी एक पत्रिका लाए थे, दोपहर को नन्हा अगर सो गया तो पढ़ सकती है. उसकी असमिया सखी ने कहा है कि अपने बगीचे के पेड़ से आम तुड़वा कर रखेगी. वह अचार भी बनाएगी और जैम यानि मीठी चटनी भी. कल वे एक नए परिचित परिवार में गए, उनके माता-पिता आए हुए हैं, जून के एक और सहकर्मी के माँ-पिता भी आए हुए हैं, अच्छा लगता है उसे सबसे मिलकर.

जन्मदिन आकर चला गया, नया महीना शुरू हो गया है. गर्मी का महीना, इस समय बिजली भी नहीं है, और धूप आज तेज है, ऐसी ही गर्मी से उसे सिरदर्द हो जाता है. सुबह से मन अस्त-व्यस्त था, रात को अजीब-अजीब स्वप्न देखे शायद इसी का असर था, दूध वाले को पैसे देना तो याद रहा इस बार पहली तारीख को ही, पर बीस रूपये ज्यादा दे दिए. पता नहीं यह अस्थिरता कहाँ तक छुपी बैठी है उसके भीतर. कल नन्हे का पिलानी में एडमिशन के लिए एडमिट कार्ड मिला, शाम को तीनों का मूड ऑफ था, सिर्फ सोचने भर से यह हाल है तो जब वह वहाँ रहेगा...वह नहीं रह सकेगा, वे भी नहीं रह सकेंगे उसके बिना.

पिछले दो-तीन दिनों से वर्षा हो रही है. आज क्लब में Rhymes compition हो गया, फिर वही हुआ, उसकी लापरवाही की वजह से वे नन्हे का नाम नहीं सुन सके, दुबारा पुकारने पर ही वह जा सका. कल पर्यावरण दिवस पर “कला प्रतियोगिता” है, उसी के लिए वह अभ्यास कर रहा है. कल फुफेरे भाई व छोटी ननद का बधाई कार्ड भी मिला. आज इस समय उसका मन यूँ ही बिना किसी विशेष कारण के अशांत है, अभी यह लिखने के बाद कोई अच्छी पुस्तक पढ़ेगी, शायद अच्छा लगेगा, लेकिन अच्छा कैसे लग सकता है, जब अपने अंतर्मन में ही शांति न हो तो कोई बाहरी पदार्थ उसे क्या शांति दे पायेगा. लेकिन यह अकुलाहट यह व्याकुलता क्यों ? सब कुछ छोड़ छाड़ कर सारे बन्धनों से मुक्ति पाकर एक क्षण के लिए भी क्या कभी वह रह पायेगी...यूँ इस सारे उहापोह से मुक्ति पाने का एक साधक है, ‘कार्य’ - कुछ न कुछ करते रहने से यह विचार मन में आते ही नहीं, या फिर कोई अच्छी सी पुस्तक ही पढ़ी जाये, फ़िलहाल तो किचन में जायेगी नन्हे के लिए नाश्ता बनाना है.

तकिये पर खरगोश



आज से वह कोशिश कर रही है कि ज्यादा कार्य बाएं हाथ से करे, दोपहर को अस्पताल जाना है, रिपोर्ट भी मिलेगी, दायें कंधें में भी हल्का खिंचाव है, दर्द भी है मीठा-मीठा सा, अब इस हफ्ते खत लिखने काम जून को ही करना पडेगा. वैसे भी कहते हैं कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है. अस्वस्थ मन से लिखे खत अच्छे नहीं होंगे. नन्हा इस वक्त पड़ोस के मित्र के साथ खेल रहा है. कल शाम वे तीनों पुस्तकालय गए, नन्हा चुपचाप कोई किताब लेकर बैठ जाता है, उसे ऐसा देखना अच्छा लगता है, जबकि और बच्चे शोर मचाने से नहीं चूकते. गिरिबाला और रेवती की दो कहानियाँ पढ़ीं उसने और दो किताबें भी लायी है, दोनों कहानियों की किताबें हैं.

आज हफ्ते का चौथा दिन है, जून को आजकल ज्यादा काम रहता है दफ्तर में, फिर शाम को अक्सर वे सब कहीं न कहीं घूमने चले जाते हैं, नन्हे की छुट्टियाँ जो हैं, सो खत उसे ही लिखने होंगे, इस समय वह कला प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ड्राइंग सीखने गया है, कल दीदी का भी पत्र आया. उन्हें जन्मदिन का कार्ड भी भेजेगी. अभी कुछ देर पहले उसकी बंगाली सखी ने ‘पिजा’ की रेसिपी पूछी थी, वह गलती से टी स्पून की जगह टेबल स्पून कह गयी, ऐसी गलतियाँ अक्सर होती है उससे, इसलिये न कि पूरा ध्यान नहीं रख पाती. शाम को कुछ मित्र आएंगे, वे सब कैरम भी खेलेंगे, उसने दोसा बनाने की तैयारी की है. कल शाम को उसने मेडिकल गाइड में हाथ की अनुभूति के बारे में पढ़ा, इन इंजेक्शन से ठीक हो जाये वर्ना तो ईश्वर ही जानता है..ईश्वर की याद उसे अक्सर ऐसे ही वक्तों पर आती है, वह भी अच्छी तरह समझ गया होगा, लेकिन हर बार ऐसे वक्तों से उसने ही निकाला है.

परसों कैरम खेलने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई उसे, दोसे भी अच्छे बने थे. कल शाम क्लब में फिल्म देखते समय उसे गर्दन में हल्की अकड़न महसूस हुई, घर आकर जून ने मूव जैसी कोई क्रीम लगा दी, वह उनका ख्याल नहीं रख पाती है आजकल, पर वह हैं कि..  जबकि वे खुद भी अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतित हैं, उनका वजन भी कम हुआ है, कल उन्होंने बनारस फोन किया, उन्हें घर की चिंता भी रहती होगी. नूना को तो बस आराम ही आराम करना है घर बैठकर, फिर भी न जाने कहाँ-कहाँ से परेशानियाँ आकर उसके पीछे पड़ जाती हैं. कल दीदी को जन्मदिन की बधाई भेज दी, छोटी बहन के लिए भी कार्ड लाकर रख दिया है, इसी माह उसका खुद का भी तो जन्मदिन है, आधे से ज्यादा जिंदगी गुजर चुकी है.

कल वे दो परिचित परिवारों से मिलने गए. उसकी गर्दन का दर्द सर झुकाने पर महसूस होता है, इस कारण ही सुबह ठीक से नाश्ता नहीं बना सकी, जून भी उसके आए दिन के इन मर्जों से परेशान हो गए होंगे पर वे जाहिर नहीं करते. हर रात वह सोचती है कि इस अस्वस्थता को स्वयं पर हावी होने नहीं देगी, पर हर सुबह भूल जाती है. आज फिर मौसम बादलों भरा है, परसों वे तिनसुकिया गए थे, उसने हेयरकट करवाए, और फैब्रिक पेंट भी लिया, वह कल तकिये पर पेंटिंग करेगी. आज दोपहर को उसे एक फिल्म देखनी है.

इस समय वह काफी ठीक महसूस कर रही है, कल शाम दायीं तरफ वाले पास के घर में गयी, पड़ोसिन ने बताया कि कठोर बिस्तर पर सोने से निश्चित ही लाभ होगा, उन्हीं की तरह कारपेट बिछाकर उन्होंने भी बेड को कठोर बना लिया है, सुबह उठी तो गर्दन में अकड़न जा चुकी थी. नन्हा देर से उठा और इस समय बहुत धीरे-धीरे मजे से नाश्ता खा रहा है. उसे जल्दी खाने को कहती है पर कोई फायदा नहीं होता, वह तय करती है कि अब उसे टोकना बंद कर देगी, क्योंकि इससे दोनों में से किसी का भी लाभ नहीं है. कल दोनों छोटे भाइयों के पत्र मिले. बहुत दिनों से उसने सिवाय डायरी की चंद पंक्तियों के उसने कुछ नहीं लिखा है. ईश्वर से सहारा, आश्रय, आश्वासन चाहती है पर अपने आप को छोटा नहीं कर सकती उसके सामने, बराबरी के दर्जे पर ऐसे मांगना कि मुँह से शब्द भी न निकलें और वह समझ जाये और उसे यह भी न लगे कि उसने कुछ दिया है उसे.

कल शाम उसने ढोकला बनाया था, दो लोग आने वाले थे. आज उसने बेसन की भुजिया बनाई, फीकी भुजिया बिना मिर्च की. सुबह मूँग की दाल का हलवा बनाया था, पर जून को लगा कि घी कम डाला था, जैसे कि वह यह नहीं जानते कि उससे लाभ तो नहीं हानि ही होगी. कल दोपहर तकिये के गिलाफ पर फूलों के डिजाइन की छपाई की, नन्हे ने भी कुशलता से एक खरगोश छापा.














Tuesday, February 26, 2013

भुट्टे के पेड़



कल खतों के जवाब का दिन था. शाम को उसकी तीन सखियाँ एक साथ आ गयीं, परसों जो केक बनाया था, उन्हें पसंद आया, आज एक एनिवर्सरी पार्टी में जाना है, कल रात नूना सोच रही थी कि इस अवसर पर एक कविता लिखेगी लेकिन अब सम्भव नहीं लगता, समय नहीं है या कहें कि वैसा मूड नहीं है, शायद लिख भी पाए, कोशिश तो करेगी ही. जून की स्वास्थ्य समस्या अभी ठीक नहीं हुई है, वह आजकल थोड़ा उदासीन से रहते हैं, या फिर उम्र के साथ यह स्वाभाविक है. कल लाइब्रेरी से लौटते समय हल्की बूंदाबांदी होने लगी, वे लोग एक परिचित के यहाँ रुक गए. गृहणी का भाषण शुरू हो गया, वह पता नहीं कैसे इतना बोल लेती हैं.

कल कविता जैसा कुछ लिख नहीं सकी, पार्टी अच्छी रही, लौटने में काफी देर हो गयी. उनका उपहार शायद उन्हें पसंद आया हो शायद नहीं, पर फूल तो अवश्य भाए होंगे, फूल जो वह  हमेशा ले जाती है ऐसे अवसरों पर, उन्हें प्रतीक्षा भी रहती है.. कल रात उसे भी अपनी शादी की स्मृतियाँ ताजा हो गयी थीं. जून भी उसके भावों में सम्मिलित हो गए, वह दिल की बात समझ जाते हैं. नन्हे का लिखने का आजकल बिलकुल मन नहीं करता है, पर पढ़ने में वह ठीक है. आज वह बहुत देर से सोकर उठा है, उसकी मर्जी पर छोड़ दिया जाये तो शायद वह  दस बजे तक भी न उठे.

कल उसने चंद पंक्तियाँ लिखकर भिजवा दीं, अभी तक उनका फोन नहीं आया है, शायद वह झिझक रही हों. आज भी मौसम गर्म है. सुबह देखा गुलाब की पत्तियों में छेद है, जीनिया के पौधों में भी शुरू हो रहे हैं, शाम को दवा का छिडकाव करेंगे. अगले महीने गुलदाउदी की कटिंग्स भी लगनी हैं, उसके पत्तों पर भी दवा का छिड़काव जरूरी है. कोलकाता रेलवे स्टेशन से जो पुस्तक खरीदी थी “किचन गार्डन” उसे भूल ही गयी, आज पढ़ेगी.

नन्हे का परीक्षा परिणाम अच्छा रहा चार सौ में से तीन सौ तिरानवे अंक मिले हैं और दूसरी पोजीशन है क्लास में, वह बहुत खुश था कल. शाम को क्लब में ‘दोस्त’ फिल्म देखी, जो जानवरों पर थी, उसे बहुत पसंद आई, पिछले कुछ दिनों से नूना के दायें हाथ में कुछ अनोखी सी अनुभूति होती है, डाक्टर को बताना भी मुश्किल है, जून को भी नहीं बताया है अभी तक, कभी-कभी लगता है कहीं यह उसका वहम न हो, पर टहलते समय कभी-कभी हाथ देर तक जब लटका रहता है, ऊपर उठाना एक बड़ा काम सा लगता है.

पिछले सप्ताह वे लोग दो दिनों के लिए तेजपुर गए थे. दो दिनों की भीषण गर्मी के बाद आज मौसम अच्छा हुआ है. कल रात को वर्षा हुई, आंधी भी आयी होगी क्योंकि सुबह भुट्टे के सभी पेड़ गिरे हुए थे. पीछे आंगन में व बाहर सभी ओर पत्ते बिखरे हुए हैं. शनिवार को अस्पताल गयी थी, कल पहला इंजेक्शन लगा, कल से हाथ में वैसा अनुभव नहीं हुआ है, एक बार फिर चिकित्सा शास्त्र के प्रति मन श्रद्धा से भर गया है. कल “कल्याण” पढ़ा कुछ देर, मन हल्का होगया, सरे संशयों से दूर..ॐ पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्ण मेवावशिष्यते. आज इस समय भी काफी तेज वर्षा हो रही है झमाझम..उसने सोचा, अच्छे-भले मूड को बिगाड़ना हो तो सोनू को कोई काम दे देना चाहिए, कई बार कहने पर भी नहीं होता है जब काम, तो खीझ उठती है और कल्याण में पढ़े वे सारे वाक्य आँखों के सामने आ जाते हैं कि क्रोध आने पर इंसान विवेक शून्य हो जाता है.

Sunday, February 24, 2013

खंडहर में खजाना




कल से मैं अपने आप स्नान करता हूँ. मुझे..”  नन्हा इतना लिखकर पड़ोस में अपने मित्र के घर चला गया है. आज न ही स्वीपर आया है न ही लक्ष्मी है, वह अस्पताल गयी है. उसे कम से कम झाड़ू तो लगाना ही पडेगा. माली आज सुबह से ही काम में जुटा था, डहेलिया के पौधे निकाल दिए हैं, जीनिया के बीज डाले हैं. कल बहुत दिनों के बाद वह अपनी असमिया सखी के यहाँ गयी, पर जितनी उत्सुकता होती है उससे मिलने की, जाने के बाद खत्म हो जाती है, वह थोड़ी रुड है, अर्थात रूखे स्वभाव की, मन जो ऊपर ऊपर से ही भीगे, है उसके पास. वह  सोच रही है, एक दूसरी सखी को रजनीगन्धा के लिए कहे या नहीं, फोन पर कहना ठीक नहीं है, मिलने पर ही कहेगी.

आज उसका सुबह का कार्य इतना लम्बा खिंचता चला गया कि साढ़े दस पर अभी खत्म हुआ है. सुबह से कुछ खाने की इच्छा भी नहीं हो रही है, वही पुराना रोग.. नन्हा और उसका मित्र खेल रहे थे पिछले एक डेढ़ घंटे से, अभी उन्हें भी पढ़ने-लिखने के लिए बैठाया है. दोनों बच्चों की बातों में ध्यान बंट जाता है. क्या लिखे..हाँ कल वे तिनसुकिया गए थे, जून ने कार के दो टायर रिट्रेडिंग के लिए दिए हैं, कुछ दिन बाद मिलेंगे.  

उसे खतों के जवाब देने हैं, सुबह समय नहीं मिला, दोपहर को पाकिस्तानी टीवी नाटक देखती थी, ‘लकीरें’....खास नहीं है. कल दोपहर नन्हा ड्राइंग सीखने गया था. हफ्ते में दो दिन जायेगा. कल छोटे भाई का अंग्रेजी में लिखा पत्र मिला, शायद उसने जल्दी में लिखा है, गलतियाँ थीं, वैसे अंग्रेजी में लिखना जरूरी तो नहीं. जून ने लिखा है कि वह सेंट्रल स्कूल में जॉब करेगी, पर अभी तक उसने एप्लाई भी नहीं किया है. कर सकती है या नहीं, इसका पूरा विश्वास नहीं है उसे, पहले उसने कभी पूरी कोशिश भी नहीं की. सोनू का परीक्षा परिणाम तीस तारीख को मिलेगा, उसी दिन एप्लीकेशन दी जा सकती है. लक्ष्मी वापस आ गयी है, पर सुबह बहुत उदास लग रही थी, जैसे किसी से लड़ाई की हो. आज सुबह सुबह उसकी पड़ोसिन ने मेडिकल गाइड मांगी, उसके बेटे को गले में कुछ प्राब्लम है, नन्हे को भी हल्की सर्दी है.

कल शाम को उसे लग रहा था कि वे अकेले हैं, इतने बड़े संसार में सिर्फ वे तीनों, नूना, जून और नन्हा, पहले भी ऐसा लगता था कि वह अकेली है, कि जून मिल जायेंगे तो....उनका स्वास्थ्य आजकल ठीक नहीं है, एक महीना भी ऐसा नहीं बीत पाता कि वे तीनों पूरी तरह स्वस्थ रहें. उन लोगों का खान-पान व दिनचर्या ही इसके लिए दोषी है, मगर दोष कहाँ है इसका पता नहीं लग पा रहा है. कल छोटी ननद का पत्र आया, अगले महीने उसकी डिलीवरी होनी है, यानि शादी के ठीक एक साल बाद. कल शाम बहुत दिनों बाद एक परिचित परिवार मिलने आया, महिला काफी स्वस्थ लग रही थी, सिल्क की साड़ी और ढेर सरे स्वर्ण आभूषणादि के साथ. वह अपने बगीचे में उगायी गाजरें भी लायी थी. उसे आज अनुभव हो रहा है कि कविता से दूर होती जा रही है, कविता एक खास मूड में लिखी जाती है, लेकिन वह मूड वह टालती जा रही है. और इसका खामियाजा भी उसे ही भुगतना पड़ा है. कल रात इतने दिनों बाद पहली बार वह उस रात को याद किये बिना सोयी, जिस रात नन्हा अस्वस्थ हुआ था.

आज सुबह वह जल्दी उठ गयी, सो सारा काम हो चुका है, नाश्ते में गाजर का हलवा खाया, जो कल शाम ही बनाया था. नन्हे ने अपना एक स्वप्न बताया, जो बहुत रोचक और खतरनाक है, उसने कहा कि “मैं और पड़ोस का मित्र स्कूल से वापस आ रहे थे, उस लडके को एक गड्ढा दिखाई दिया, उसमें जाने को कहा, मैंने मना भी किया पर वह नहीं माना, हमने अंदर जाकर देखा तो एक खंडहर था, उसमें राक्षस रहते थे, देखा, वहाँ खजाना है, हमने पुलिस को बुलाया, पुलिस एक पहलवान व क्रेन को लेकर आयी, पुलिस ने दरवाजे का पत्थर क्रेन की सहायता से उठाया, अंदर गए, पहलवान ने एक दरवाजा खोला जिस पर बड़े-बड़े ताले लगे थे. हमें खजाना मिल गया फिर मैं उठ गया और सपना टूट गया”.
समाचारों में उसने सुना कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार गिर गयी है. संजय दत्त जेल में है. 




Thursday, February 21, 2013

सुपरमैन



फिर एक अंतराल, पिछले दिनों कुछ छोटी-बड़ी समस्याएं मन को घेरे रहीं, पर आज भीतर कुछ प्रकट होने को व्याकुल है, परमात्मा का अनुभव हर कोई कभी न कभी, किसी न किसी रूप में करता है, वह सदा ही साथ रहता है और दुःख में भी मार्ग दिखाता है, वही भला करने की प्रेरणा देता है. अप्रैल का महीना भी आज शुरू हो गया, बचपन में भाई-बहन एक दूसरे को कितना मूर्ख बनाते थे आज के दिन, पता नहीं कहाँ खो गए बचपन के वे दिन, अब तो उम्र के आधे पड़ाव आ चुके हैं वे, लेकिन मन तो वही है, अभी भी कितनी रोक लगानी पड़ती है, किस तरह बंधन में बांध कर वे मन को बड़ा करना चाहते हैं, पर मन है कि अंगुली छुड़ा कर फिर वहीं खड़ा हो जाता है, नहीं तो रात भर नींद क्यों नहीं आती, क्यों काँप उठता है हर आहट पर मन. पिछले कई दिनों से रात उसे दुश्मन लगने लगी है, जितना प्रयत्न करती है सोने का उतना ही नींद दूर भागती है. एक अनजाना, नहीं जाना-पहचाना सा डर समा गया  है मन में. अब इतने बड़े होकर डरना तो बचपना ही हुआ न, नन्हा सो जाता है आराम से, जून भी सो जाते हैं, हालांकि वह उन्हें जगा देती है कई बार. बस वह ही सोचती रहती है, घूमती है अनिश्चय के अँधेरे में. उसे भगवद्गीता का पाठ फिर से शुरू कर देना चाहिए. इस डर को मन से बाहर निकालना बेहद जरूरी है. आज उसने बहुत दिनों बाद चेहरे पर दही-बेसन लगाया. नन्हा स्कूल गया है, उसके इम्तहान इसी महीने की छह तारीख से शुरू हो रहे हैं. जून अभी आने वाले हैं.

पिछले दिनों या कहें कई हफ्तों वह लिखने से कतराती रही है, कारण कई हो सकते हैं, लेकिन अब उन कारणों में न जाकर वह अपने आप से वादा करती है कि नियमित लिखने का प्रयत्न करेगी. उसकी दाहिनी बाँह की कोहनी में हल्का-हल्का दर्द सा रहता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से इतनी संवेदनशील हो गयी है कि शरीर की छोटी से छोटी समस्या पर ध्यान जाता है, हर हरकत पर. जून भी सोते समय कभी-कभी चौंक जाते हैं यह आठ सालों में अभी महसूस करने लगी है. नन्हे के खर्राटे भी अब ज्यादा साफ सुनाई देते हैं. उसके दिल के पास हल्का सा दर्द पहले भी कभी कभी होता था पर अब डॉक्टर को दिखाने की जरूरत महसूस होती है. पहले जिन बातों के बारे में कभी सोचा भी नहीं था अब वे सच न हो जाएँ ऐसा लगता है. ज्यादा ज्ञान भी खतरनाक सिद्ध हो सकता है. मेडिकल गाइड में पढकर कितनी जानकारी हुई है उनकी, लेकिन वे सब बातें मस्तिष्क में जैसे रिकार्ड हो गयी हैं. आज नन्हे का चौथा इम्तहान है, सोमवार को अंतिम होगा, फिर गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो जाएँगी. छुट्टियों में उसे व्यस्त रखने के लिए ड्राइंग, पेंटिग या संगीत सिखाने के बारे में वे सोच रहे हैं.

कल इतवार था सो डायरी लिखने का सवाल ही नहीं था क्योंकि इस डायरी में इतवार के लिए जगह ही नहीं है, वैसे भी जून घर पर होते हैं, समय नहीं मिलता, शुरू-शरू में वे दोनों रात को एक साथ बैठकर लिखा करते थे, लेकिन वह कई वर्ष पुराणी बात है, समय कितनी तेजी से गुजर जाता है पता ही नहीं चलता. आज कई दिनों बाद उसका मन उत्साह से भरा है, कल घर पर कुछ लोगों को लंच पर बुलाया है. कितना काम करना है, कुशन कवर आदि बदलने हैं. कई बार वह सोचती है कि घर को खूबसूरत बनाने के लिए और क्या-क्या करना चाहिए. सबसे पहले तो सारे फर्नीचर पर पेंट करवाना है, फ्रिज भी पुराना लगता है. दीवारों पर लगाने के लिए कुछ अच्छी तस्वीरें चाहिए और साइड रैक्स, टीवी स्टैंड आदि के लिए अच्छे कवर. कितना अच्छा लगता है जब घर में इस तरह का कोई आयोजन हो, शाम को बाजार भी करना है. एक मित्र परिवार से मिलने भी जाना है. सोच रही थी लाइब्रेरी भी जायेगी पर इतना समय नहीं होगा. अगले दो दिन छुट्टी है, पत्र तभी लिखेगी.

सोनू ने आज फिर पेन्सिल से अपने बड़े बड़े अक्षरों में कुछ लिख दिया है- “आज मैं बहुत दिनों बाद डायरी लिख रहा हूँ, क्योंकि मेरे exam चल रहे थे, अभी-अभी मैंने दूध पीया और रोते-रोते orange creamy wafers खाए, फिर माँ को डायरी दिखाई और फिर किसी तरह weafers खाए. अब मैं सुपरमैन बनूंगा. नमस्कार. उसके बाद उसने चार आँसू बनाये हैं और लिखा है कल ऊं ऊं ऊं ...” और फिर अपना नाम

Wednesday, February 20, 2013

चाय-बागान में छिड़काव



कल दिल्ली से भी पत्र आ गया, छोटी बहन की सास ने लिखा है और उसके पति ने भी, उसने जून से उनके लिए एक बधाई कार्ड लाने को कहा है. असम में मौसम एक दिन में इतने रूप बदलता है जितनी पोशाकें फिल्मों में नायिका बदलती है, उतनी ही शीघ्रता से, कभी बदली, फिर धूप, फिर ओले, कभी तेज वर्षा, फिर धूप और न जाने क्या-क्या..नन्हा आज स्कूल गया है, कल मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ था, जून अपनी कार का पंक्चर ठीक करवाके घर आए थे, बोले, इसे मत भेजो, सर्दी विशेष तो नहीं पर खांसी अभी ठीक नहीं हुई है उसकी, बहुत खुश रहता है स्कूल जाकर, मगर वे दोनों सोचते हैं, घर में उससे ज्यादा पढ़ सकता है, आराम कर सकता है, गर्म भोजन भी खा सकता है, लेकिन स्कूल जाने से उसको खेलने को मिलता है, दोस्त मिलते हैं, घर से बाहर कुछ वक्त गुजार सकता है, सो जहाँ तक सम्भव हो उसे नियमित स्कूल भेजना ही ठीक है. दोपहर के दो बजे हैं, उसने कुछ देर फोन पर बात की. उसके बाद युद्ध कांड के दो-तीन अध्याय पढ़े, अद्भुत है ‘बाल्मीकि रामायण’. कल रात वे देर तक योजना बनाते रहे, बगीचे में क्या-क्या परिवर्तन लाना है, जो जगह खाली पड़ी है, वहाँ कौन से फूल लगाने हैं. बहुत दिनों से उसने काव्य जैसा कुछ नहीं लिखा-

कविता को लिखा नहीं जाता
उसे जीया जाता है
और उसे जीने के लिए पल दो पल का नहीं
एक लम्बा वक्त गुजारना होता है
ऐसा वक्त जब मन को अपनी गिरफ्त से परे छोड़ा जा सके
उन्मुक्त विचर सके वह भावों की अनोखी दुनिया में
कविता वस्तु नहीं है
यह एक प्रेरणा है, एक स्पंदन..
मगर इसे जगाने के लिए प्रयास चाहिए आतुर
उस हृदय का जो पत्थर में से पानी निचोड़ने की ताब रखता हो
पिघल पिघल कर स्वयं को गला सके, विचारों का ऐसा ताप ला सके
तब जो फूटेगा वह निर्झर सा स्वच्छ होगा
मुक्त होगा...असीम होगा और अपरिमित होगा...
वह बनेगा मधुर गीत..जिसे पोर पोर गायेगा ...
अंतर्मन से उपजा होगा न ...

नन्हे से सुबह कहा था कि वह नाश्ता खाने में इतनी देर लगाता है और अरुचि से खाता है, इस पर एक कहानी लिखेगी. उसने एक पात्र की कल्पना की, जाहिर है वह भी एक बच्चा ही होगा, जो सुबह उठाना पसंद नहीं करता हो, जो भोजन करते समय कुछ और करना चाहता हो, किताब पढ़ना, टीवी देखना या खेलना, अक्सर उसकी स्कूल बस छूटते छूटते रह जाती हो ....

मार्च का महीना शुरू भी हो गया और दूसरा हफ्ता खत्म होने को है. आज हफ्तों बाद डायरी खोली है. बाईस फरवरी को नन्हा अस्वस्थ हुआ, फिर जून भी गले के कारण परेशान थे, पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि कभी ऐसा वक्त आयेगा भी या नहीं जब वे तीनों एकदम ठीक हों, पहले की तरह. उसे ही ज्यादा ख्याल रखना पड़ेगा, खानेपीने का, सफाई का और नियमित व्यायाम का. होली का त्यौहार भी बीत गया, पंजाबी दीदी का बेटा आया था, जो जोरहाट में पढ़ाई कर रहा है. कल माँ-पिता के पत्र के साथ छोटी बहन का पत्र भी आया, लगता ही नहीं कि वह बड़ी हो गयी है, वही पुराना लहजा.. बच्चों की सी बातें. पड़ोसिन की तबियत भी ठीक नहीं है, लगातार दो दिन उसका पुत्र स्कूल नहीं गया. अस्वस्थ होना आजकल रोजमर्रा की बात हो गयी है, हवा इतनी दूषित हो चुकी है कि..इतने पेड़-पौधे होने के बावजूद हवा में एक गंध सी भरी रहती है, शायद सामने के चाय-बागान में कीट नाशक दवा का छिड़काव होता है या कोई रासायनिक खाद डाली जाती है.

उसने कहानी आगे बढ़ाई, स्कूल में सब बच्चे उसे मोटू कहकर बुलाते थे, क्योंकि जब वह छोटा था तो बिल्कुल गोल-मटोल था, उसके जन्मदिन की पार्टी में मित्रों ने उसके बचपन की कुछ तस्वीरें देखीं और तभी से उन्होंने उसका नाम मोटू रख दिया. शुरू में तो उसे बहुत बुरा लगा लेकिन माँ के समझाने पर उसने बाद में इस बात पर ध्यान देना छोड़ दिया. उसकी माँ ने कहा, लगता है तुम्हारे मित्रों को इसमें बहुत खुशी मिलती है, तुम्हें भी उनके साथ खुश होना चाहिए, क्योंकि तुम सचमुच के मोटे नहीं हो. उसकी एक बात अच्छी नहीं थी, वह थी बिना सोचे-समझे सबकी हाँ में हाँ मिलाना, वह कभी किसी को न नहीं कह पाता था. चाहे उसे बाद में कितनी हानि उठानी पड़े. एक बार उसके एक मित्र ने कहा कि वह अपना कलर बॉक्स लाना भूल गया है. टीचर जब उसकी मेज तक आयेंगी तब वह धीरे से कलर बॉक्स उसकी तरफ बढा दे जिससे उसे डांट न पड़े, वह मान गया, और नतीजा यह कि टीचर ने उसे ऐसा करते देख लिया और डांट उसे खानी पड़ी.


Monday, February 18, 2013

पुस्तक मेला



आज से लक्ष्मी काम पर वापस आ गयी है, सब कार्य समय पर हो गए हैं, जैसे घर बहुत दिनों बाद पुनः शांत हो गया हो. आज धूप कल से भी कम है, अंततः चिप्स सुखाने के लिए रसोईघर में रखने ही होंगे. आज वह अपने कुछ अच्छे मूड्स में से एक में है, गार्डन सिल्क की ब्राउन साडी पहनी है, वह भी स्टाइल से, अच्छा लगता है खुला-खुला सा, बन्धनों में रहते रहते भूल ही गयी थी कि आजादी क्या होती है. पता नहीं मरियम का क्या होगा, उस उपन्यास की नायिका का, जो कल देर तक पढ़ती रही. आज क्रिकेट मैच भी है, जून आते ही स्कोर पूछेंगे, पर उसे अभी याद आया है, टीवी बंद है. कल वे एक परिचित तेलेगु परिवार के यहाँ गए, गृहणी बहुत मोटी हो गयी हैं, और नाश्ता सफाई से नहीं बनाती हैं, ऐसा उसे लगा, संस्कार और शिक्षा के कारण लोग बहुत सी बातें सीख जाते हैं और बहुत सी नहीं सीख पाते. कल उसने पहली बार एग डालकर केक बनाया, आज नन्हे को टिफिन में देना भूल गयी. उसे पसंद आया, पर जून को उतना अच्छा नहीं लगा, पर वह उसे बहुत अच्छे लगते हैं जब कान में कुछ कहते हैं, जबकि कमरे में उनकी बात सुनने वाला कोई भी नहीं होता.

इतने वर्षों में कल पहली बार यहाँ पुस्तक मेला देखने गयी, सिर्फ पुस्तक मेला ही नहीं है और भी बहुत कुछ है उसमें. इतना विशाल, इतना अच्छा लगा कि कल से सोच रही है, कब वे वहाँ दुबारा जायेंगे, पर मौसम को भी आज ही बिगड़ना था, गर्जन-तर्जन करते बादल पता नहीं किस पर क्रोधित हो रहे हैं. इतनी दूर-दूर से व्यापारी अपना सामान लेकर आये होंगे, और खुले आसमान के नीचे बैठे थे, सिर्फ दुकानों पर ही तो तम्बू थे, आज कहाँ गए होंगे....और सुना है मात्र तीन दिनों के लिए. वे लोग शायद ही आज जा पायें, अगर यह पानी बरसना बंद हो जाये. बाहर पौधों को जी भर के पानी मिल गया पर बरामदे के गमले सूखे ही रह गए, उसने सोचा लिख कर उन्हें भी पानी देगी. कल नन्हे का स्कूल भी बंद हो गया, “शंकरदेव जयंती” के कारण, इसी उपलक्ष में ही तो मेला लगा है.

भारत की इंग्लैड पर एक और विजय, सोनू बहुत उत्साहित है. आज वह स्कूल नहीं गया, कल दिन भर सर्दी से परेशान था, आज ठीक लग रहा है. आज सुबह वह उठी तो मन उलझन से भरा था, लग रहा था कि कहीं कुछ भी ठीक नहीं है, कि जिंदगी समझौतों का दूसरा नाम है और यह कि कितनी भी विपरीत स्थितियां हों, चेहरे पर मुस्कान का लेबल लगाये रखना पड़ता है और भी न जाने क्या-क्या ..कल रात नींद नहीं आ रही थी. एक कहानी सोचने लगी, शब्द खुदबखुद आते जा रहे थे, भावों की कमी नहीं थी. अगर कोई ऐसा टाइपराइटर होता जो मन के वाक्यों को टाइप कर लेता तो एक सुंदर कहानी उसके सामने होती. उस समय सोच रही थी यही शब्द, यही वाक्य.. सुबह आराम से लिख सकेगी पर अब वे कितने दूर गए लगते हैं. वैसे भी अब समय नहीं है, अभी खाना भी पूरा नहीं बना है. कल दोपहर जून से किसी बात पर मतभेद हो गया, लेकिन वह विवाद से बचते हैं, एकाध बार कुछ कहकर चुप हो जाते हैं. उनका गला भी उतना ठीक नहीं है आजकल, सुबह पूरा नाश्ता नहीं खा सके, आज उसे भी विशेष भूख नहीं लगी, नन्हे की सर्दी..यानि पूरा परिवार ही.. खैर..अब वह शांत है और करने को इतना कुछ है कि और कुछ सोचने का वक्त कहाँ है, खत भी तो लिखने हैं.

कल शाम की शुरुआत एक अच्छी खबर से हुई, माँ-पिता के पत्र से मालूम हुआ कि छोटी बहन ने गुड़िया को जन्म दिया है. अभी-अभी उसने एक खत और एक कविता लिखी है उसके लिए. कल क्लब में एक स्तरीय कार्यक्रम था, वे गए थे नन्हे को ढाई घंटे के लिए उसके मित्र के यहाँ छोड़कर. आज सुबह से ही वह रोजमर्रा के काम छोड़कर इधर-उधर के काम कर रही है, जो अक्सर रह जाते हैं, दोपहर को करेगी रोज के काम.

पिकनिक का भोज



जून का फोन आया है, वह नाहरकटिया जा रहे हैं, लंच पर देर से आएंगे. उसने बहुत दिनों बाद वह नीली साड़ी पहनी है, जो छोटी चाची ने खरीदी थी, सुंदर है, लेकिन चाचीजी अब पहले जैसी नहीं रहीं, परेशानियों ने उन्हें तोडकर रख दिया है, वक्त से पहले बूढी हो चली हैं. कल लगभग एक वर्ष बाद वे अपनी पुराने घर के पड़ोस में गए, उड़िया पडोसिन के यहाँ, वहाँ एक और परिचिता मिलीं, दुबली-पतली सी, पूरी तरह से अपने छोटे छोटे दो बच्चों में व्यस्त..कल पिता का पत्र आया है, जमीन की रजिस्ट्री जून के नाम हो गयी है. और शायद इसी वर्ष के अंत तक उनका मकान बन भी जाये. थर्मोकोल पर पेंटिंग करने में उसे बहुत आनंद आ रहा है, इसके बाद कागज पर करेगी. लेकिन वह एक घंटे से ज्यादा नहीं कर पाती क्रोशिये का मेजपोश भी बनने वाला है फिर टैटिंग करेगी. कल रात स्वप्न में देखा, गणित पढ़ा रही है, वह भी उसका एक प्रिय काम है.

वह लॉन में झूले पर बैठ कर धूप में बाल सुखाते हुए लिख रही है, पीठ पर धूप का तेज ताप भीतर तक छू रहा है. डहेलिया का दूसरा फूल भी आधा खिल गया है. परसों इतवार को उन्हें पिकनिक पर जाना है, डेरॉक है जगह का नाम, पूरे ग्रुप के लिए “मटर-पनीर” उसे शाम को बना कर रखना है, क्योकि सुबह जल्दी निकलना है, शाम को उन्हें एक शादी में भी जाना है, पड़ोस के खाली घर में, लगता है वह विवाह घर बनता जा रहा है. The day of the feast पढ़ ली है, अब एक और अंग्रेजी उपन्यास पढ़ना शुरू किया है, सारे काम करते हुए बीच-बीच में थोड़ी देर के लिए कोई किताब पढ़ने का समय निकाल लेना, चाहे तीन-चार पेज ही क्यों न हों, अच्छा लगता है, जैसे धूप में चलते-चलते कुछ पल के लिए कोई छांह में रुक जाये. कल रात नन्हा नींद में नीचे गिर गया और उसे पता भी नहीं चला, नीचे भी आराम से सो रह था, उसकी नींद बहुत पक्की है. उसके स्कूल में आजकल ज्यादा पढ़ाई नहीं हो रही, नहीं जायेगा कहकर फिर चला गया है, उसे अनुपस्थित होना पसंद नहीं है.

कल इतवार था और पिकनिक के कारण एक यादगार इतवार बन गया, वे सुबह साढ़े छ बजे निकले और शाम साढ़े पांच बजे लौटे. मौसम अच्छा है, अब चिप्स बनाने का समय आ गया है, अगले महीने आज ही के दिन होली है. कल रात स्वप्न में छोटी बहन को देखा, बहुत कमजोर और अस्वस्थ लग रही थी, उसकी फ्रेंड्स भी थीं, वह माँ को बुला रही रही थी. आज जून को दिल्ली फोन करके पता करने को कहा है, इसी महीने उसकी डिलीवरी डेट है, ईश्वर सब कुशल करेगा.

होली पर वे क्या-क्या बनाएंगे, इस बात पर उसने जून के साथ बात की, मतभेद स्वाभाविक ही था, कभी कभी इस तरह नोक-झोंक होनी ही चाहिए, एक-दूसरे के विचार पता चल जाते हैं. आज उसने आलू चिप्स बनाये हैं. छोटे भाई का पत्र आया है फोटोग्राफ्स भी, बहुत अच्छे आए हैं फोटोग्राफ. आजकल उसने अपने दिन को कई टुकड़ों में बाँट लिया है और हर एक टुकड़े का एक खास काम है, व्यस्तता के कारण कुछ और सोचने का समय ही नहीं मिलता, समय मिलते ही कोई किताब सामने आ जाती है. कविताओं से इतनी दूर चली गयी है कि..लगता है कविता खाली समय की उपज होती है. बहुत दिनों से टीवी पर कोई कवि सम्मेलन भी नहीं आया जिससे प्रेरणा मिले.  





Friday, February 15, 2013

साइकिल की सवारी



कल सुबह से लग रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है, दोपहर को उपवास किया, फिर शाम को टिफिन में उबले आलू खा लिए कि कुछ तो खा लेना चाहिए और खेलने चली गयी, खाली पेट में आलू वात बढ़ाते हैं, यह पता ही नहीं था, गैस सिर पर चढ़ गयी और दर्द से फटने लगा अच्छा भला सिर. घर आकर वमन किया फिर एक घंटा आराम और तब जाकर सब ठीक हुआ. पूरे वक्त जून के साथ नन्हा उसका बहुत ख्याल रख रहा था. उसको हिंदी में पूरे नम्बर मिले हैं, अगले हफ्ते उसे हिंदी में समाचार बोलने हैं स्कूल की असेम्बली में. उन्हें साथ वाले घर में हो रही शादी में जाना था, जल्दी ही लौट आए वे. वहाँ का प्रबंध बहुत अच्छा था, न ज्यादा शोर न भीड़भाड़, दुल्हन बहुत छोटी लग रही थी बहुत सुंदर. कल उसका फैब्रिक पेंटिंग का काम पूर्ण हो गया, आज दोपहर को पहले पत्रिका पढ़ेगी, फिर न्यूजट्रैक का कैसेट देखेगी फिर थर्मोकोल पर काम शुरू करेगी वह. कल शाम जून ने बहुत दिनों के बाद कहा कि वह हरी साड़ी में अच्छी लग रही थी, उन्हें शिकायत थी कि वह सिर्फ कहीं जाने के लिए ही क्यों तैयार होती है, इसका अर्थ हुआ कि वह उसकी पोशाक आदि पर नजर रखते हैं.

“आदमी अगर जिन्दा रहे तो उसे सौ साल बाद भी खुशी मिल सकती है”, अभी-अभी बाल्मीकि रामायण में हनुमान के मिलने पर सीता के मुख से यह वाक्य पढा. यह बिलकुल ठीक है, हम थोड़ी सी परेशानी होने पर जीवन को व्यर्थ मानने लगते हैं लेकिन कहीं न कहीं खुशी होती है, जो हमें मिलने वाली है. जैसे आज वे खुश हैं, कल उसने गाजर का हलवा बनाया, लाल गाजरें यहाँ नहीं मिलती, नारंगी रंग का हलवा कुछ अलग सा लगता है. उन्होंने किचन में पेंट करवाया था, नई नैनी ने सूखने की प्रतीक्षा लिए बिना पानी डाल दिया, सारा पेंट उतर गया पर..अब इसे कुछ कहने से क्या लाभ. नन्हे के स्कूल जाना है, जून ने फोन पर कहा था, उसको क्लास कैप्टन ने कल मारा था, शाम को वह थोड़ा उदास था, पर सुबह बिलकुल ठीक था. फरवरी का आरम्भ हो गया है, आदर्श महीना है, न सर्दी न गर्मी..यानि वसंत का महीना. कल उसकी पड़ोसिन ने गुलाब की एक कटिंग दी, पीला, लाल व नारंगी रंग का मिलाजुला रंग है उसका, माली ने शाम को लगा दी थी, इस मौसम में तो शायद ही खिले लेकिन अगले मौसम में जरूर फूल आयेगा. कल की तरह आज भी उसने साड़ी पहनी है, अच्छा लगता है हल्का-हल्का, खुला-खुला सा. जून को पसंद भी है, और उन्हें क्या पसंद है क्या नहीं इसका तो ख्याल उसे रखना है न...और इससे उसे खुशी मिलती है, और खुशी इंसान की पहली जरूरत है.

आज नैनी जल्दी आ गयी है, खाना भी बन गया है, इसका अर्थ गाड़ी पटरी पर आ रही है, पिछले दिनों ग्यारह बज जाते थे और काम बिखरा रह जाता था. कल वे स्कूल गए थे, नन्हे की क्लास टीचर और साइंस टीचर से मिले. आज सुबह नन्हा बहुत अच्छे मूड में था, खिला- खिला और ताजा सा. टेप रिकार्डर पर ‘मिली’ फिल्म का गाना आ रहा है, छोटे भाई का उपहार उनकी शादी की सालगिरह पर. कल भी परसों की तरह उसने साइकिल चलाई, बहुत अच्छा लगता है हवा को काटते हुए गति से आगे बढ़ना. लगभग दस सालों के बाद वह साइकिल चला रही है. कितना अजीब लगता है सोचकर कि बचपन कितना पीछे छूट गया है. याद करो तो लगता है कल की ही तो बात है. नन्हा कल पिछले या उससे पिछले साल की गर्मियों को याद कर रहा था कि कैसे एक आम के लिए वह गुस्सा कर रही थी, फिर जून और भी नाराज हो गए थे, उसकी याददाश्त बहुत तेज है. उसे कहानी सुनाने की प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार मिला, उदास था कि प्रथम क्यों नहीं मिला.





Thursday, February 14, 2013

सरस्वती पूजा



ईश्वर उसके साथ है, आज वह ठीक है, अब सोचती है तो लगता है व्यर्थ ही वह अपने को और जून को परेशान कर रही थी. कल रात भी यही चिंता करते-करते कब सो गयी पता नहीं, नन्हा आज फिर सुबह जल्दी में पूरा नाश्ता खाकर नहीं गया, शाम को ही उसे पौष्टिक आहार देना होगा. कल माँ-पिता का पत्र आया था, एक बार फिर पढ़ेगी, कल उदास मनोस्थिति में पढ़ा था, आज उसका रंग ही और होगा. आज उसने नन्हे से पूछा, उसे एक भाई या बहन चाहिए, हमेशा की तरह उसका जवाब नहीं में था, जैसे उसका और जून का होता है. उन तीनों के अलावा किसी की गुंजाईश नहीं उनके छोटे से परिवार में. अब वह जल्दी घर आ जाएँ तो कितना अच्छा हो, वे दोनों साथ-साथ उदास नहीं थे तो क्या, साथ-साथ खुश तो हो लें.

कल दोपहर जून उसे प्रसन्न देखकर खुश थे, वह ज्यादा कुछ कहते नहीं हैं, उसे लगता है वह उसके दुःख से उदासीन हैं, पर वे भी गहराई से महसूस करते तो हैं, ऐसा उसे लगा. कल पड़ोस के बच्चे को स्कूल में चोट लग गयी, उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ा. छुट्टी के एक घंटे के बाद नन्हा भी घर नहीं पहुंचा तो उसे चिंता होने लगी, जून से भी सम्पर्क नहीं हो पा रहा था. फिर साढ़े चार बजे वह आया तो मन शांत हुआ, बस आने की वजह से कुछ बच्चे वहीं खेल रहे थे, यहाँ एक विज्ञान कांफ्रेंस चल रही है, उसी वजह से बस देर से पहुंची. उसने नन्हे के एक दूसरे मित्र के यहाँ फोन किया, वह भी पहली बस में आ चुका था, उसकी आवाज में चिंता देखकर मित्र की माँ भी आ गयी.

जून आज जोरहाट गए हैं, लंच पर नहीं आएंगे, पर उनकी याद आयेगी. मन का भी यह कैसा अजीब रंगीन करिश्मा है कि जब तक वह पास रहते हैं वह बेवजह ही रुठ जाती है, उन्हें तंग करती है पर जब दूर होते हैं...कल इतवार था, दूरदर्शन पर उसने एक अच्छी मराठी फिल्म देखी, नन्हा जी.आई.जो. से खेल रहा था, जून सो गए थे. दीदी की बताई एक फिल्म भी उन्होंने देखी, ‘प्राब्लम चाइल्ड’ हल्की-फुल्की हास्य फिल्म है. कल व परसों भी वह अपने एक सहकर्मी को कार चलाना सिखाने गए, मित्रों के काम आते हैं वह, उनमें सभी के सहयोग की बहुत भावना है. पिता ने नए घर का पता लिखा है, अब छोटे भाई व उन्हें अलग-अलग पतों पर खत लिखने होंगे. उनके घर के बायीं ओर का घर कई दिनों से खाली पड़ा था, उसमें शामियाना लग रहा है, अगले हफ्ते कोई शादी है वहाँ.

कल छब्बीस जनवरी थी, आज वसंत पंचमी है. नन्हे का स्कूल बंद है, आज फिर उसने पेन्सिल से बड़े-बड़े शब्दों में लिखा है कुछ- “आज सरस्वती पूजा है, इस डायरी में मैंने पहले लिखा है कि यह माँ की है, पर आज मैं फिर इसमें लिख रहा हूँ,” परसों दोपहर को उसकी बंगाली सखी आयी थी, शाम तक रही, उसकी बहन के तलाक केस के बारे में सुनकर मन बहुत बेचैन रहा. उन लोगों के साथ बहुत सारी दुखद बातें घटी हैं, पर वह बहुत साहसी है. उसने बताया कि उसे लगता है उसे पति वक्त से पहले अपने को प्रौढ़ समझने लगे हैं, जबकि उनका प्रेम विवाह हुआ था. दीवानावर वह छलकता हुआ प्रेम, वह कशिश उनमें नहीं है, उनकी इस स्थिति के लिए वह भी किसी हद तक जिम्मेदार हो सकती है, अगर उसे उनसे पहली की सी मुहब्बत चाहिए तो..

आज सूर्यदेव के दर्शन हो रहे हैं, सुबह जब दरवाजा खोलने गयी तो कोहरा बहुत घना था, बचपन की एक सुबह का स्मरण हो आया, जब आकाश में लाल, बाल सूर्य का गोला घने कोहरे में उसके साथ-साथ चलता प्रतीत हो रहा था. लक्ष्मी छुट्टी पर है, उसने बेटी को जन्म दिया है. कल शाम वे उसके लिए एक फ्रॉक खरीद कर लाए. उसकी जगह जो महरी आयी है, बहुत धीरे हाथ चलाती है. नन्हे का एक मित्र सेंट्रल स्कूल से क्रिश्चियन स्कूल में चला गया है. बहुत दिनों से उसके माता-पिता प्रयास कर रहे थे. कल वह लाइब्रेरी से “पेंटिंग विद वाटर कलर” नामक एक किताब लायी है. 

Tuesday, February 12, 2013

तंदूरी नाइट



   भाई ने घर पहुंच कर खत भेजा है, उनके साथ बिताए दिन अब तस्वीरों में कैद हैं, जो कुछ दिन बाद ही बन कर आयेंगी. कल से बीहू का अवकाश है, शाम को क्लब में बीहू का कार्यक्रम देखने भी वे जायेंगे. सर्वोत्तम में एक लेख आया है, क्या आपके “पति भी चुप्पे हैं”, रोचक लेख है, क्या दुनिया भर की पत्नियों की एक जैसी समस्याएं हैं, जून ने भी पढ़ा है यह लेख, वैसे वह इतने चुप्पे भी नहीं हैं, पर बातचीत शुरू कभी नहीं करते, बल्कि बचना चाहते हैं, उन्हें उकसाना पड़ता है. लिखना-पढ़ना पिछले दिनों छूट सा गया था, उसने पिजा बनाने की एक रेसिपी जरूर लिखी एक पत्रिका से, और उन्होंने बनाया भी है पिजा, खमीर की गंध कुछ ज्यादा आ रही थी, वैसे अच्छा लगा.

पिछले चार दिन फिर अवकाश...बीहू का भी और उसके लिखने का भी. कल दो मित्र परिवार आए थे, दोपहर बाद वे गए. इस समय दोपहर के पौने एक बजे हैं, वह बाहर लॉन में बैठी है, पंछियों की मिली-जुली आवाजें हैं, किसी ने किसी कुत्ते को लाठी से मार दिया है शायद, उसके चिल्लाने की आवाजें आ रही है, और तभी एक आवाज आई,  हॉकर की, हर माल एक दाम पर, उसने एक साबुनदानी खरीदी, एक स्पून स्टैंड और तीन छोटे-छोटे फूलदान..यानि पांच वस्तुएँ सब समान दाम की. सामान रखने घर में गयी तो भीतर मसालों की गंध भरी हुई थी, शायद पीछे वाले घर से आ रही थी. बाहर आई तो उसकी छात्रा पढ़ने आ गयी थी, धूप में ही बैठे वे, मगर उसकी ओर पीठ करके, वरना आँखों को चुभती है. अभी तक उसने चादर पर फूल पेंट करना शुरू नहीं किया है, जबकि छोटी पेंटर भाभी को गए नौ दिन हो गए हैं, वह सिखा कर गयी थी. नन्हा यदि आज भारत की बैटिंग देखता तो तो बेहद खुश होता, कामले और तेंदुलकर ने बहुत अच्छा खेला, दूसरी इनिंग शुरू हो गयी होगी पर अंदर जाने का उसका मन नहीं है.

इस साल उसे जो डायरी मिली है, वह इतनी बड़ी है कि लिखने में असुविधा होती है, लेकिन यह असुविधा उसे अच्छी लगती है, जैसे प्रिय के दोष भी गुण लगते हैं. सुबह ही है अभी, उसने गुलाब के तीन गमलों की निराई की, वे बनारस से लाए थे ये तीन गुलाब. आज धूप फिर आराम करने चली गयी है और अपनी जगह बादलों को भेज दिया है. रात को ‘तंदूरी नाइट’ देखकर सोयी थी, स्वप्न में दक्षिण अफ्रीका में घूम रही थी, नैरोबी के रेलवे स्टेशन पर. कुछ अंग्रेजों से मिलती है, एक लड़की भी है उनमें और सपने में वह उन पंजाबी दीदी के बेटे की मित्र है. सुबह तक यह स्वप्न सजीव था. नन्हा स्कूल गया है, कल कह रहा था, नहीं जायेगा, क्योंकि स्कूल में लड़ाई बहुत होती है. जुलाई में उसका टेस्ट है पिलानी में, अगर वहाँ दाखिला हो जाये, लेकिन क्या गारंटी है कि वहाँ लड़ाई नहीं होगी और खर्चा भी तो बहुत है, अभी मकान का भी कुछ निर्णय नहीं हो पाया है. कल उसने एक फूल पेंट किया था सफेद चादर पर गुलाबी फूल.

कल रात पहली बार विनोद दुआ का कार्यक्रम ‘परख’ देखा, अच्छा लगा. शाम को वे दो मित्रों के यहाँ गए, एक ने ब्रेड का एक नया नाश्ता खिला दिया और दूसरे ने कचौड़ी, घर आकर वे बिना कुछ खाए ही सो गए. आज नन्हा घर पर ही है, पढ़ाई कर रहा है, बीच-बीच में कुछ पूछ लेता है, अभी लक्ष्मी आई थी, कह रही थी, आलू की क्यारी में चूहे घुस गए हैं, आलू खा रहे हैं, वह आलू निकलना चाहती थी. पता नहीं इस साल इतने सारे चूहे बैग में कैसे हो गए हैं, दवा का असर भी विशेष नहीं हुआ.

आज मन बुझा-बुझा सा है, मन में डर है कि कहीं...थोड़े से दिन ज्यादा हो जाने पर ऐसा मानसिक तनाव उसे हो जाता है, क्या ऐसा औरों के साथ भी होता होगा, जून और नन्हा उसे परेशान देखकर खुद भी उलझन में पड़ जाते हैं. उसने स्वयं से कहा, निराशावादी नहीं होना चाहिए, जो भी होगा ठीक ही होगा. कल शाम वे फिर एक मित्र के यहाँ गए, ताकि कुछ देर मन भूल जाये, शायद वह व्यर्थ ही भयभीत है, जो होना है वह होगा ही, क्योंकि जब बात अपने हाथ में न हो तो उसे वक्त के हाथों में ही छोड़ देना चाहिए.


Monday, February 11, 2013

नए साल की नयी सुबह




 आज उससे पहले ही नन्हे ने उसकी डायरी में कुछ लिख दिया-
“इस साल यानि १९९३ में मैं बहुत खुश हूँ. आज मैं इतना खुश हूँ कि कोई सोच भी नहीं सकता. वैसे यह डायरी है तो माँ  की, पर मैं यानि सोनू इसमें लिख रहा हूँ. इसलिए मैं यह डायरी बंद कर रहा हूँ, अब माँ कल से इसमें लिखेंगी”,

जब वह लिख रहा था अपने छोटे छोटे हाथों से तो वह सोच रही थी-

उसकी आँखों की चमक में छुपी हैं
मेरी सारी खुशियाँ, नन्हे हाथों में कैद हैं.
मेरी आत्मा की हँसी ही तो फूट रही है
उसकी मुस्कानों में
नन्हे कदमों में चैन है, थिरकन है जिंदगी की...


  आज सुबह उठते ही एक दुखद समाचार मिला, पास के गांव के दो व्यक्तियों (पति-पत्नी) ने ट्रेन के आगे जाकर आत्महत्या कर ली, वह बेचैन हो उठी, भीतर कैसी कड़वाहट भर गयी, कुछ था जो बाहर आना चाहता था, कुछ कहना, कुछ लिखना चाह रही थी पर विचारों को केंद्रित नहीं कर पा रही थी. कोई इतना दुखी भी हो सकता है कि ..आत्महत्या जैसा विचार मन में आये..और फिर उस विचार को क्रियान्वित भी कर ले. शायद वे अज्ञात भविष्य से डर गए थे-
जब अज्ञात का भय इंसान को जकड़ लेता है,
सुन्न कर देता है मस्तिष्क को,
आस-पास की हर वस्तु डराती है,
छूटना चाहे पर नहीं छूट पाता उसके शिकंजे से...


नए वर्ष के दस दिन बीत गए हैं, आज ग्यारहवाँ दिन है, परसों छोटा भाई, अपने परिवार के साथ वापस चला गया, अभी वे लोग सफर में ही होंगे. इतने दिनों बाद इस तरह अकेले शांत वातावरण में बैठकर स्वयं से सम्बोधित होना अच्छा लग रहा है. उसने छह खत लिखे, माँ-पिता को तो खत भाई के हाथों कल ही मिल जायेगा. नए साल के दो कार्ड आए हैं, एक उसकी छोटी ननद व उसके पति का, एक चचेरे भाई का..फूलों से सजे हुए कार्ड्स. मौसम बहुत ठंडा और भीगा सा है, शायद नन्हे को ठंड लग रही होगी, या फिर बच्चे खेल-कूद, और पढाई में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी की परवाह ही नहीं रहती. आज सुबह पता नहीं क्यों उसका मन उदास था, कुछ भी करने को मन नहीं कर रहा था, तभी लक्ष्मी ने हेल्पिंग हैंड बढ़ाया और मन हल्का हो गया, उसने कहा, छोटे-छोटे कपड़े प्रेस कर देगी और बड़े वह कर ले. शाम को उसकी एक सखी आएगी, उन्हें पॉपी की पौध देनी है और चिवड़ा-मटर खिलाना है

  
आज भी बादल हैं पर बरस नहीं रहे हैं, सुबह नींद देर से खुली, जून जल्दी-जल्दी तैयार होकर गए. ठंड से किसी हद तक डरते भी हैं. नन्हे का गणित का टेस्ट है आज, कल उसे गुणा करना सिखाया गया. मेज पर ढेर सारी पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए एकत्रित हो गयी हैं, पिछले दिनों वे सब घूमने में व्यस्त रहे, पर अब उसका मन इन पत्रिकाओं में उतना नहीं लगता, अब कुछ और चाहिए मस्तिष्क को, जो इस तरह की पत्रिकाएँ नहीं दे पातीं, जो पूरी तरह से भौतिकतावादी होती हैं.