Thursday, June 1, 2017

पैशन फ्रूट का जूस


रात को तंद्रा में दीपक जलते देखे, देखे कितने चेहरे जैसे कोई स्क्रीन हो सामने, जिसपर चित्र बदल रहे हों. उनके भीतर न जाने कितना बड़ा एक संसार छिपा है. कल स्वप्न में स्वच्छ जल से भरी नदी देखी थी, जिसमें तलहटी में मछलियाँ स्पष्ट दिख रही थीं. सुबह उठे तो पानी बरस रहा था. बगीचे में एक लता गिर गयी, एक गमला टूट गया, घर के सामने पानी भर जाता है, शायद नाला आगे जाकर बंद है अथवा तो मिट्टी डलवानी होगी, जून ने उसके निराकरण के लिए दफ्तर में कह दिया है. दोपहर को ‘बाल्मीकि रामायण’ का अगला अध्याय लिखा, एक दिन तो पूरा हो जायेगा यह महाकाव्य. आज ही ‘महादेव’ में राम-लक्ष्मण का वही प्रसंग देखा था जो लिखा. राम महादेव के भक्त हैं और महादेव राम के, कितना अनोखा रिश्ता है दोनों का. दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. उनके भीतर भी पालन कर्ता और विनाश कर्ता दोनों साथ-साथ रहते हैं. ‘पिको आयर’ की जो किताब जो उसने पढ़नी शुरू की थी, रोचक होती जा रही है, जिसने यह किताब उसे दी है क्या वास्तव में उसने इसे पढ़ा होगा, तब तो वह बहुत गहराई में जीने वाली लड़की है. दोपहर को दोनों छात्राएं आयीं, एक अपने घर में उगाये ‘पैशन फ्रूट’ का जूस लाई थी. दूसरी ने परीक्षा की तैयारी ही नहीं की थी, उसे जरा भी भय नहीं है, स्कूल में हिंदी के अध्यापक भी नहीं हैं.

अभी-अभी बगीचे में एक काली तितली दिखी, बड़ी व सुंदर ! जून ने फोटो लिया है उसका. आज सुबह अलार्म बजने से पहले ही उसे पता चल गया कि अब वह बजने वाला है, यहाँ तक कि उसकी आवाज भी उसने अपने भीतर पेट के नीचे से आती हुई अनुभव की, कितना विचित्र अनुभव था. बाद में ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के एक स्वामी से, जो पास ही एक सखी के यहाँ ठहरे हुए हैं, मिलने गयी. उन्हें अपने कुछ अनुभव बताये, अच्छे लगे उन्हें भी. गुरूजी के सारे शिष्य उन्हीं के जैसे हैं, सभी को अपना मानते हैं, हर घर को अपना घर भी. अगले महीने DSN कोर्स होने वाला है, उसे करने को कहा है. आज बगीचे से पांच नारियल तोड़े, पानी बहुत मीठा था.

कल दिन भर डायरी नहीं खोली, परसों शाम को क्लब में मीटिंग थी, जून पुस्तकालय में बैठे इंतजार कर रहे थे, बीच में ही फोन करके उसे बुला लिया. रात को उसे नींद नहीं आ रही थी, तो वह ध्यान करने बैठ गयी, जो उन्हें अच्छा नहीं लगा. सुबह उठे तब भी सहज नहीं थे. आज तक जो बात उसने इशारों में कही थी, स्पष्ट कह दी कि अब उन्हें परिपक्व होना चाहिए, रूठना आदि कब तक चलेगा. उसे लगता है, हर उम्र का एक तकाजा होता है. इन्सान इस दुनिया से जाते-जाते तक वही हरकतें करता रहेगा तो बड़ा कब होगा. खैर..वह भी अपने तौर पर प्रयत्न तो करते होंगे, हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार चलता है पर अस्तित्त्व ने ही उसके द्वारा वे शब्द कहे हैं वरना आज तक वह क्यों नहीं कह पायी. सत्य के पथ पर चलने का कर्म पुराने जन्मों के कर्मों का फल ही होता है शायद, किसी ने सच कहा है भगवान स्वयं भी धरती पर उतर जाएँ तो भी उनको न पहचानने का निश्चय करे जो बैठा हो, उसके लिए वह भी कुछ नहीं कर सकते. हरेक को अपनी यात्रा स्वयं ही करनी है, बस दूसरे कुछ दूर तक साथ दे सकते हैं और कुछ नहीं कर सकते. कल दोपहर तक वह सहज हो गये थे. शाम को उन्होंने एक तमिल फिल्म देखी ‘थ्री’, जिसमें कोलेवारी वाला गाना है. 

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