परसों रात्रि एक स्वपन देखा जिसमें एक छोटा बच्चा जो चाय की
दुकान पर काम करता है, झिड़कियां खा रहा है, लगा किसी जन्म में वह ही तो नहीं थी यह,
इसीलिए उसे ऐसे बच्चों की तरफ सहज प्रेम झलकता प्रतीत होता है अपने भीतर. एक दिन
और एक स्वप्न में एक लडकी को स्वयं अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारते देखा था. उन्होंने
कितने जन्मों में न जाने कितनी गलतियाँ की हैं. हर गलती स्वयं को कष्ट देना ही तो है. कल रात्रि का स्वप्न
अद्भुत था, सुंदर रंग और आकृतियाँ तो दिखी हीं, एक श्वेत वसना देवी का आशीर्वाद भी
मिला. देवी की आकृति हिली, उसका मुख खुला और हाथ से एक श्वेत ही दंड निकला, जिससे
उससे निकलती ऊर्जा ने स्पर्श किया और भीतर कैसा तो अनुभव हुआ. कल वसंत पंचमी पर
अपने घर को मिलाकर पांच स्थानों पर देवी सरस्वती के दर्शन किये. एक स्कूल में तो
मूर्ति बहुत सुंदर थी और मृणाल ज्योति में मुस्कुराती हुई प्रतीत हुई, सम्भवतः इसी
कारण वह स्वप्न देखा. दृष्टा ही दृश्य बन जाता है, इसका अनुभव अब दृढ़ होने लगा है.
वे ही अपने सुख-दुःख के निर्माता हैं, यह ज्ञान मुक्त करने वाला है,. इसीलिए दृष्टा
भाव को इतना महत्व दिया गया है.
वह आत्मा है, यह देह उसका घर है, मन व बुद्धि
उसके साधन हैं, यह बात अब कितनी स्पष्ट दिखने लगी है. ऊर्जा का अहसास हर क्षण बना
रहता है. कल शाम जून को भी इसका परिचय कराने का प्रयास किया, पर कोई जब तक अपने
भीतर से ही न चाहे, बाहर से कोई भी किसी को कुछ बता नहीं सकता. सद्गुरू ऐसा कर
सकते हैं पर उन्हीं के लिए जो इसके इच्छुक हैं. हरेक ही अवश्य एक न एक दिन
अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेगा. आज बादल हैं आकाश पर, सुबह जब वे टहलने गये वातावरण
इतना सुखद था कि चालीस मिनट जैसे चार मिनटों में बीत गये. सुबह आकाश सात्विक होता
है, धरती भी रात्रि विश्राम के बाद शांत होती है और जीव प्रसन्नता से भरे. स्नान
करके जब तुलसी व सूर्य भगवान को जल चढ़ाने गयी तो बादल थे, आकाश को निहारते समय
वृक्षों व टहनियों के पीछे ऊर्जा की श्वेत आकृतियाँ भी दीख पड़ीं, बादलों के मध्य
भी प्रकाश की झलक थी.
सद्गुरू कहते हैं, मूलतः सब पूर्ण हैं, सभी को
अपने उसी स्वभाव को पाना है. अंतर की पूर्णता के क्षेत्र में अनुभव किया हर विचार
सत्य हो जाता है. पूर्णता ही नित्य सत्संग है, जो भी उन्हें प्राप्त करना है, वह
पूर्णता के विकास से मिल जाता है. जब अभावों के भूत सताने लगें, जब विचार अधूरे
हों तब उसी की शरण में जाना है जो पूर्ण है. परमात्मा हर जगह है, हर समय है, वही
सब रूपों में प्रकट हो रहा है. वास्तविक संपदा वैराग्य और भक्ति है.
No comments:
Post a Comment