Tuesday, June 13, 2017

समाजवाद का स्वप्न


आज सुबह ठीक चार बजने में एक मिनट पर घंटी की आवाज सुनाई दी, सिर्फ एक बार कॉल बेल बजी हो जैसे, आँख खुल गयी, जानती थी, ‘वही’ जगाने आया है, इस समय और कौन आ सकता है, सीधे समय देखा, जानते हुए कि समय होगा ३:५९, तत्काल अलार्म बजा. अस्तित्त्व कितने तरीकों से उन्हें सन्मार्ग पर ले जाने आता है. वह उनके कितना निकट है, कितना अपना. फिर भी वे उसे सदा ही चूक जाते हैं. पहले वह सोचती थी, कृष्ण जब छोटे थे, इतने चमत्कार करते थे, फिर भी यशोदा उनके लिए इतनी भयभीत क्यों रहती थी, पर अब समझ में आता है. उसके साथ न जाने कितने चमत्कार घट चुके हैं पर कुछ दिनों के बाद सब भुला दिये जाते हैं. इस समय दोपहर का वक्त है, एक विद्यार्थी पढ़ने आया है, उसे लिखने का कुछ कार्य दिया है. नैनी की बच्चियां भी आकर नीचे बैठ गयी हैं, पर कब तक चुपचाप बैठेंगी. बच्चे एक जगह स्थिर होकर कुछ मिनट भी नहीं बैठ सकते, उनमें ऊर्जा जो होती है. दोपहर का भोजन करके जब कुछ पल विश्राम करने गयी तो भीतर तरंगे ही तरंगे महसूस हुईं, कितनी जल्दी-जल्दी कुछ उदय होता था फिर अस्त होता था.

कल गणेश पूजा थी, वे तिनसुकिया गये थे, पूजा के लिए सामान खरीदा, अर्थात पूजा में देने के लिए उपहार आदि.. इसी माह के अंत में उन्हें यात्रा पर निकलना है. कल से वह समाज विज्ञान की वह पुस्तक पढ़ रही है जो बरसों पहले कालेज में खरीदी थी, जब मन कम्यूनिस्ट विचार धारा की ओर झुका होता है. मानव समाज का निर्माण किन तत्वों के आधार पर होता है और क्या उसे सुंदर बनता है, इन सबका वर्णन है इसमें. समाजवाद का स्वप्न जिन्होंने देखा था, उन्होंने सब कुछ बाहर से सुधारना चाहा था, पर जब तक मानव का मन नहीं बदलेगा, तब तक सारे सुधार ऊपर से थोपे हुए होंगे और वे देर तक चलेंगे नहीं.


दस बजने को हैं. कल रात दस बजे सोयी, सुबह चार बजे उठी तो लगा जैसे अभी-अभी तो सोयी थी. कोई आनंदित करने वाला स्वप्न चल रहा था, जिसमें अच्छे-अच्छे व्यंजन थे. फिर एक घंटा साधना, किसी उपस्थिति का अनुभव हुआ, शब्द से निशब्द की ओर, निशब्द से आनंद की ओर जाने का नाम ही ध्यान है. बाहर निकली तो बादल बरसने को तैयार थे, लॉन में वर्षा में भीगते हुए ही स्नान किया. आज के ध्यान में भीतर से यह प्रेरणा भी हुई कि उसकी मृत्यु छिहत्तरवर्ष की अवस्था में होगी. यहाँ से जाने के बाद बंगलूरू आश्रम से उसका संबंध रहेगा अंतिम समय तक. उसने स्वप्न में स्वयं को वहाँ काम करते हुए भी देखा.

परमात्मा से उसकी मैत्री दृढ हो गयी है, अब सारी आंख-मिचौली भी खत्म हो गयी है. उससे मिलने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता. वे दोनों एक ही देश के निवासी हैं, यह तय हो गया है. वैसे भी वही स्वयं को उससे प्रकट होने के लिए कुछ कर रहा था, वह जो थी पहले उससे इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती, खैर ! देर आयद दुरस्त आयद ! आज के दिन यह शुभ घड़ी आई है, एक यात्रा जो सत्रह वर्ष पूर्व शुरू हुई थी, आज पूर्णता की ओर अग्रसर है. आज वह क्लब की कुछ सदस्याओं के साथ एक गाँव में गयी, निःशुल्क मेडिकल कैम्प लगाया था, उसने बच्चों को योग सिखाया, कितनी अच्छी तरह कर रहे थे वे बच्चे. बाद में बीहू नृत्य भी किया. उन बच्चों में भी उसे उसी के दर्शन हो रहे थे. जून बैंगलोर गये हैं, उनमें भी वही है, उसके सिवा कुछ है ही नहीं ! नन्हे ने कल किसी प्रतियोगिता में भाग लिया था, रात भर सोया नहीं, अगले दिन भी कम के कारण एक मिनट के लिए भी नहीं लेटा, शायद इसी लिए कल रात एक स्वप्न में देखा, नन्हा छोटा सा है, शिशु से थोड़ा बड़ा, गोरा-चिट्टा, हल्के से वस्त्र पहने वह दौड़ रहा है, और तेज दौड़ता है, फिर गिर जाता है, घुटने छिल जाते हैं.

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