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Wednesday, January 4, 2017

गुरू पूर्णिमा


कल शाम को मुम्बई में तीन बम विस्फोट हुए. वर्षों पहले लिखी कविता का स्मरण हो आया. आज उसे ब्लॉग पर पोस्ट किया है. कितनी दुखद मौत होती होगी, शोलों और दुर्गन्ध के मध्य. अचानक घटी यह मृत्यु झकझोर देती होगी. कैसा विचित्र है यह संसार, यहाँ एक तरफ प्रेम की ऊंचाइयाँ हैं और दूसरी तरफ नीचता की खाईयाँ हैं. एक तरफ सद्गुरू हैं जो साक्षात् परमात्मा का ही रूप हैं जो आतंकियों में भी कुछ भला देख लेते हैं, उसी एक चेतना को देख लेते हैं और दूसरी तरफ ऐसे बेहोश राक्षस हैं जिन्हें भले-बुरे का कोई ज्ञान नहीं. आज सुबह क्रिया के बाद अनोखा अनुभव हुआ. सद्गुरू उससे बात करते प्रतीत हुए और यह भी कहा, वह तो हर क्षण उसके साथ हैं. एक ही चेतना से यह सारा जगत बना है, ऊर्जा और पदार्थ दो दीखते हैं पर मूलतः हैं नहीं. जड़ के भीतर भी वही चेतन छिपा है. आज सुबह से ही वर्षा हो रही है, जून कल कोलकाता गये हैं. सम्भवतः आज मायापुरी गये होंगे. ईश्वर उनके साथ है. आज पिताजी ने दाल बनाई है, उनकी बहुत दिनों की इच्छा पूरी हो गयी.

आज गुरूपूर्णिमा है. सुबह से ही मन किसी और लोक में विचर रहा है. सद्गुरू का संदेश कई बार सूक्ष्म रूप से सुन चुकी है. शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग सेंटर भी जाना है. एक सखी ले जाएगी. जून कल आयेंगे. कल शाम वह मन्दिर गये थे. सद्गुरू का सबसे बड़ा चमत्कार तो यही है. वह पहले उसके साथ मन्दिर जाकर भी बाहर ही खड़े रहते थे. अब सुबह-शाम अगरबत्ती जलाते हैं. संतों की वाणी को सुनते हैं. सद्गुरू की कृपा का कोई अंत नहीं. उसके खुद के जीवन में इतना परिवर्तन आया है कि...इसको कहा नहीं जा सकता. आज सुबह उन्हें टीवी पर देखा. वह कनाडा में हैं आज. कभी ऐसा वक्त अवश्य आएगा जब वह भी उनके निकट रह पायेगी आश्रम में, जब वे बैंगलोर  में रहेंगे !

सद्गुरू ने गुरूपूर्णिमा का तोहफा भेजा है. आज सुबह ध्यान में अनोखा अनुभव हुआ. प्रकृति-पुरुष, देह-देही, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ सभी का संबंध स्पष्ट हुआ. देवी तत्व समझ में आया. शिव तत्व व कृष्ण तत्व भी और लीला का क्या अर्थ है यह भी. सारे शास्त्र जैसे भीतर स्वयं खुल रहे थे और साथ ही अपूर्व आनन्द की धारा बरस रही थी. सद्गुरू ने जो उस दिन कृपा की थी यह उसी का फल है. वह जानते हैं, वह सब जानते हैं. वह उस दिन भी जानते थे जब पहली बार मिले थे. उसके भीतर जब पहली बार ज्ञान की किरण फूटी थी. आज नये तरह का गीत लिखा है, अभी तक उस ऊंचाई पर जाने का प्रयास कर रही थी, सो उसी के गीत लिख रही थी. अब वहाँ पहुँच कर नीचे का सब दिखाई दे रहा है. संसार दिखाई दे रहा है, जलता हुआ अपनी आग में !


कल की जो भावदशा थी, वह आज ध्यान में नहीं घटी. सद्गुरू ठीक ही कहते हैं, 'सदा' निकाल दें तो आनंद ही आनंद है. आज कल वाली कविता पोस्ट की है, कुछ को आनन्द दे जाएगी !