Showing posts with label मृणाल ज्योति. Show all posts
Showing posts with label मृणाल ज्योति. Show all posts

Thursday, August 31, 2017

गुजरात का रण


कल दोपहर से ही रात को आने वाले मेहमानों के लिए भोजन बनाने में व्यस्त थी. शाम को जून जब घर आये तो बताया कि घर में किसी की मृत्यु हो जाने के कारण वे लोग आज नहीं आ रहे हैं. कहते हैं न दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, फोन करके एक अन्य मित्र परिवार को बुलाया, जिन्हें भोजन बहुत पसंद आया. आज दोपहर उसने आंवले का मुरब्बा और अचार दोनों बनाये. मुरब्बे की तैयारी कई दिन से चल रही थी. आगामी यात्रा के लिए सामान बांधा. कल माँ की तीसरी बरसी है, वे बच्चों को भोजन करायेंगे. नन्हा आज गुजरात गया है. सुबह से ही वह अनजान लोगों के मध्य घूम रहा है और भोजन आदि भी उसे मिल रहा है. वह ड्राइवर के परिवार से भी मिला, इस समय ‘भुज’ में है, कल ‘रण’ जायेगा.

आज का दिन काफी अलग रहा. सुबह उठने से पूर्व नींद में जाने का अनुभव किया, फिर मन की गहराई में जाकर असत्य बोलने के संस्कार पर काम किया. वहाँ जैसे परमात्मा स्वयं आकर सिखा रहे थे. उठकर साधना की. फिर माँ की स्मृति में प्रसाद बनाया. मृणाल ज्योति भी ले गयी. इस संस्था का नाम कैसे पड़ा, इसकी जानकारी भी आज हुई. जिन दम्पत्ति ने यह स्कूल खोला है, उनकी पहली सन्तान साढ़े तीन वर्ष का पुत्र मृणाल ज्योति अपने ही स्कूल की बस से सडक पार करते समय टकरा गया, और उसकी मृत्यु हो गयी. इसी दुःख में उनकी पुत्री, दूसरी सन्तान जन्म से ही विशेष जन्मी. उसकी शिक्षा के लिए जब कोई स्कूल नहीं मिला तो उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए अपने पुत्र की याद में यह स्कूल खोला जो आज सौ से अधिक विशेष बच्चों को शिक्षा व इलाज का अवसर दे रहा है. आज स्कूल में शिलांग से किसी स्वयं सेवी संस्था की एक कार्यकत्री आयीं थी. जो महिलाओं के अधिकारों पर काम कर रही हैं. उनसे अच्छी बातचीत हुई. शाम को ह्यूस्टन वाली महिला अपनी भांजी के साथ आयीं. यात्रा की तैयारी हो गयी है. कल इस समय वे कोलकाता में होंगे. दो हफ्ते बाद लौटेंगे.


आज दोपहर साढ़े बारह बजे घर से चले. हवाई यात्रा ठीक रही सिवाय इसके कि हाथ के बैग में छाता रखा था, हवाईअड्डे पर खोल कर दिखाना पड़ा. सुबह अलार्म बजने से पूर्व ही किसी ने उठा दिया. उससे भी पहले सुंदर रंगीन बड़ी-बड़ी तितलियों को देखा, उनके रंग कितने शोख थे और उनका आकर भी बहुत बड़ा था. उठकर ध्यान किया कुछ देर फिर प्राणायाम. माली आदि सभी को निर्देश दिए, अगले दो हफ्ते उन्हें ही घर-बगीचे की देखभाल करनी है. कृष्ण ने कहा है, जो उसकी शरण में जाता है, उसे वह बुद्धियोग प्रदान करते हैं. आज बताया कि कर्ताभाव से मुक्त होकर रहने में ही बंधन कट जाते हैं. पहले कितनी ही बार यह बात पढ़ी है, सुनी है, लिखी है, पर भीतर के गुरू ने बताया और बात समझ में आ गयी. वे जो अहंकार को मिटाना चाहते हैं, कर्ता बनकर उसे बढ़ा देते हैं. शाम के सात बजे हैं. वे लोग आईआईएम कोलकाता में हैं. यह कैम्पस काफी विशाल है, अँधेरे में कुछ ठीक से नहीं देख पाए पर झील व वृक्षों की कतारें अवश्य ही मनमोहक होंगी. कल सुबह वे जल्दी उठकर भ्रमण के लिए जायेंगे और फोटोग्राफी भी करेंगे.

Monday, September 26, 2016

ओबामा की किताब


नवम्बर का आरम्भ हो चुका है. दो दिन बाद दीवाली है. आज सुबह एक सखी के साथ मृणाल ज्योति गयी, बच्चों के लिए मिठाई और नमकीन लेकर. प्रिंसिपल ने बताया उन्हें व्यावसायिक शिक्षा की योजना के अंतर्गत लड़कियों के लिए सिलाई स्कूल खोलना है, यदि मिल सकें तो पुरानी मशीनें चाहिए. वे लोग लेडीज क्लब में सूचित कर देगीं. इसी माह के अंत में नेशनल ट्रस्ट का एक कार्यक्रम भी है, जिसमें किसी हुनर को सिखाने की ट्रेनिंग भी दी जाएगी, इन बच्चों को भी तो बड़े होकर अपने पैरों पर खड़ा होना है. दीवाली के लिए सुंदर दीये भी बनाये हैं वहाँ के बच्चों और अध्यापिकाओं ने, जिन्हें को-ओपरेटिव स्टोर में बिक्री के लिए रखने कल वे आयेंगे. आज लेडीज क्लब की पत्रिका के लिए कोई नाम का सुझाव देने के लिए फोन आया. एकता में अनेकता, मेल, मित्रता, मिलन, सहयोग, भागेदारी, अपनापा, समन्वय, मिलाप, सहभागिता को व्यक्त करता हुआ कोई एक शब्द. वार्षिक उत्सव आने वाला है.

जून और पिताजी कोलकाता गये हैं, परसों आयेंगे. घर में माँ और वह है. उनका होना और न होना बराबर है, चुपचाप बैठी रहती हैं. वह एक सखी के आने की प्रतीक्षा कर रही है, उसने आने की बात कही थी. कल उसकी एक कविता पर काफी लम्बी टिप्पणी पढ़ने को मिली, ज्ञान बढ़ा और लगा कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो परमात्मा से उसी तरह मिले हुए हैं जैसे कभी-कभी वह मिलती है, जब केवल वही रहता है, तब दो नहीं होते, वैसे तो दो कभी भी नहीं होते, दो परिधि पर होते हैं, लहरें सतह पर ही तो हैं, वह सदा ही है, एक ही है, वह उनका मूल है, कितना आश्वस्त करती है यह बात...

पिछले कुछ हफ्तों से डायरी नहीं लिखी, पहले मेहमान फिर सभी के लिए उनके व्यक्तित्त्व को दर्शाती हुईं कविताएँ...समय इसी में गुजर गया. आज फुर्सत है. दोपहर के डेढ़ बजे हैं. मौसम ठंडा है बादलों के कारण, नवम्बर की सर्दी के कारण नहीं. वह ध्यान कक्ष में है. माँ-पिताजी अपने कमरे में सोये हैं. माँ उठकर बिस्तर के पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी होंगी, वह वहीँ घंटों बैठी रहती हैं. बच्चों जैसी बातें करने लगी हैं, हँसी आती है उन सबको उनकी बातों पर, लेकिन बुढ़ापे में उनका भी क्या हाल होने वाला है यह तो भविष्य ही बतायेगा. जून को इसी हफ्ते मुम्बई जाना है. बड़ी ननद के ज्येष्ठ की अचानक मृत्यु हो गयी है. जब वह उन्हीं के घर में रात को भोजन के बाद सोये थे. जीवन कितना क्षणभंगुर है. नन्हा कल हस्पेट गया था मोटरसाईकिल से. आज वापस जा रहा है. उसका फोन अभी तक नहीं आया है, वह सकुशल होगा. जून छोटी बहन की किताब को आकार दे रहे हैं. वह वापस जाने वाली है आज ही. बड़ी बहन से कई दिनों से बात नहीं हुई है. परसों बड़े भाई का जन्मदिन है और दो दिन बाद उनकी बिटिया का, वह दोनों के लिए कविता लिख सकती है. सर्दियों के फूल खिलने लगे हैं, यहाँ उनके क्लब में भी वार्षिक उत्सव की तैयारी शुरू हो गयी है, उसने बहुत दिनों से कोई पुस्तक भी नहीं पढ़ी है. आज लाइब्रेरी जाकर ओबामा की किताब वापस करनी है. कल से वे सत्संग का समय शाम पांच बजे से कर रहे हैं, आजकल अँधेरा चार बजे के थोड़ा बाद ही शुरू होने लगता है. इस समय कितनी शांति है. नैनी के बेटी के रोने की आवाज आ रही है और कौए की कांव-कांव भी सुनाई दे रही है, घड़ी की टिक-टिक कितनी स्पष्ट सुनने में आ रही है. परसों विश्व विकलांग दिवस है, वह ब्लॉग पर मृणाल ज्योति के बारे में लिखेगी.


Thursday, August 18, 2016

पौधों में चेतना


कल वह मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल के साथ कम्पनी प्रमुख से मिलने गयी, कम्पनी स्कूल की कई तरह से सहायता करती है. उन्होंने इस संस्था को एक ट्रस्ट बनाने का सुझाव दिया. आज मौसम अच्छा है, धूप तेज नहीं है. कल जून टूर पर जा रहे हैं. हिन्दयुग्म को एक कविता भेजी. जीजाजी का जन्मदिन आ रहा है, उन्हें भी एक उनकी पसंद की कविता भेजे, ऐसा मन है. उसका मन कितनी दिशाओं में भाग रहा है पर उसको देखने वाली आत्मा स्थिर है, गुरूजी कहते हैं, आत्मारामी सदा रहने वाली मुस्कान को प्राप्त होता है, वह सत्य और सुन्दरता का उपासक होता है. वह चाहता है..जीवन एक उत्सव बने जिसमें सभी शामिल हों..  आज से माओवादियों ने अड़तालीस घंटों का बंद घोषित किया है.

जून का फोन आया है, उन्होंने नया कैमरा खरीदा है. नन्हे को लड्डू मिल गये, फोन पर उसने बताया. आज ब्लॉग पर ढेर सारी रचनाएँ पोस्ट कीं, कहानी, कविता, लेख सभी कुछ. आज नन्हे का जन्मदिन है. सुबह आठ बजे उसने फोन किया, उसे कविता भी मिली. इस बार ध्यान से पढ़ी ऐसा उसने कहा. आज माँ सुबह से कुछ अस्वस्थ हैं, उन्हें सम्भालना कठिन होता जा रहा है. वह अकेले रहने से घबराती हैं, काल्पनिक जीवों से उन्हें भय लगता है. सड़क पर चलते हुए लोग भी उन्हें ठीक नहीं लगते. दवा भी छिपा देती हैं, शायद दवाई खाते-खाते ऊब गयी हैं. नाश्ते के समय कहने लगीं, सब कुछ चार की संख्या में चाहिए, उनका मन उनके नियन्त्रण में नहीं है न ही उनकी वाणी, क्या यही है मानव जीवन के संघर्ष का अंत. पिताजी कभी-कभी झुंझला जाते हैं.

उसे गुरू पूर्णिमा के लिए कविता भी लिखनी है. अगले हफ्ते छोटी बहन अपनी दो बेटियों के साथ आ रही है. सोचकर मन में हर्ष का, उत्साह का भाव पनप रहा है. सभी के लिए वे आठ-नौ दिन मंगल मय हों, यही कामना है. पूरे घर में सफाई का काम भी शुरू किया है. थोड़ी देर बगीचे में काम किया, पौधे भी उसे पहचानने लगे होंगे, चेतना तो उनके भीतर भी वही है, सारी सृष्टि उस एक का पसारा है, यहाँ दो हैं ही नहीं और उस एक में वह भी है, कितना अनोखा है यह आत्मा का ज्ञान..क्या नैनी के पति में वह चेतना नहीं है, वह सुप्त है, घोर तमस में सोयी है उसकी चेतना, एक न एक दिन तो जागेगी..उसे उस दिन की प्रतीक्षा है. शांतला की कथा समाप्त होने को है. बहुत दिनों से उसे छोड़कर कुछ भी नहीं पढ़ा. आज जून आने वाले हैं.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   


Monday, May 23, 2016

द सीक्रेट - रोंडा बर्न की किताब

TheSecretLogo.jpg
मई का महीना आरम्भ हुए दो हफ्ते होने को हैं. आज पहली बार डायरी खोली है. कितना कुछ हुआ, हो रहा है और होने वाला है, भीतर भी और बाहर भी ! परहेज न करने के कारण सर्दी-जुकाम हो गया. सेहत बनाने के चक्कर में एक बार पुनः सेहत का बिगाड़ कर लिया. दो बार मृणाल ज्योति जाना हुआ, उनकी समस्याओं से रूबरू हुई. उन्हें आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है, उनका सेंटर जहाँ पर है वह स्थान बहुत नीची जगह पर है. मैदान बनवाने के लिए अथवा निर्माण कार्य करने से पहले जमीन को मिट्टी से भरवाना पड़ता है, जिसमें बहुत खर्च आता है. उनके पास बच्चों को लाने व छोड़ने के लिए एक वैन है जो पुरानी हो गयी है और उसके रख-रखाव पर काफी खर्चा आ रहा है, कोई बाऊँड्री वाल नहीं है, जिसे बनवाने के लिए फंड चाहिए. बूंद –बूंद से सागर बनता है, अगर वह क्लब में सहायता के लिए अपील करे तो कुछ लोग मदद करने के लिए आगे आ सकते हैं.

संतजन कहते हैं सभी मंजिल पर पहुंच सकें, इसलिए देह रूपी वाहन मिला है, जीवन की लालसा उन्हें इस वाहन में बैठे रहने पर विवश करती है. क्योंकि वे मंजिल तक पहुंच नहीं पाते, मृत्यु से भय लगता है. जिसे मंजिल का पता चल गया वह मृत्यु से नहीं डरता, असली जीवन इस ज्ञान के बाद ही शुरू होता है ! भय मुक्त मन ही अस्तित्त्व के प्रति प्रेम से भर जाता है और ऐसा मन ही परमात्मा के प्रति समर्पित हो सकता है ! लेकिन मानव इस सत्य से अनभिज्ञ रहता है और सारा जीवन गुजार देता है ! मृत्यु उसे डराती है और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है. अविद्या, अशिक्षा व अज्ञान सबसे बड़े रोग हैं, स्कूली व कालेज की शिक्षा नहीं बल्कि जीवन की शिक्षा ! जो सद्गुरु देते हैं, लेकिन वे सद्गुरु के द्वार तक ही नहीं पहुंच पाते. गुरु परमशान्ति का द्वार है लेकिन उस शांति का अनुभव बिरले ही कर पाते हैं.

पिछले हफ्ते सास-ससुर यहाँ आये तब उन्हें माँ की बीमारी के बारे में ठीक से पता चला. वृद्धावस्था की कारण वह भूलने की बीमारी से ग्रसित हो गयी हैं. उन्हें दिन का, समय का, महीने का कोई बोध नहीं रह गया है. जब से यहाँ आई थीं, शारीरिक रूप से वह स्वस्थ हो रही हैं पर मानसिक रूप से अस्वस्थ ही हैं, वृद्धावस्था अपने आप में एक रोग है. वह स्वयं भी तो उसी की ओर कदम बढ़ा रही है, आँखों की शक्ति घट रही है, मन सदा विचारों से भरा रहता है. पिछले कई दिनों से कुछ नया लिखा भी नहीं. जून बाहर गये हैं, अभी तीन दिन और हैं उन्हें लौटने में, समय की कमी नहीं है. कल लाइब्रेरी से दो किताबें लायी. पहली The Secret  दूसरी पुस्तक बराक ओबामा पर है. इस बार कई अच्छी पुस्तकें आई हैं. 

एक दिन और बीत गया, माँ की बीमारी घटती नजर नहीं आती. सम्भवतः उन्हें मतिभ्रम हो गया है. हर बात में शिकायत करना स्वभाव बन गया है, सहन शक्ति बिलकुल खत्म हो गयी है. पिताजी कितने उपाय करके उन्हें समझाते हैं पर कोई असर होता नजर नहीं आता. इस समय रात के साढ़े नौ बजे हैं. परसों दोपहर जून आ रहे हैं, सबके लिए कुछ न कुछ ला रहे हैं.

Wednesday, May 11, 2016

गॉस्पेल ऑफ़ बुद्धा


नये वर्ष में वह पहली बार लाइब्रेरी गयी थी कल. Gospel of Buddha लायी है. बुद्ध कहते हैं आत्मा नहीं है, कोई ऐसी शाश्वत सत्ता भीतर नहीं है. मन है, विचार हैं, भावनाएं हैं ये सब प्रतिपल बदल रहे हैं, एक नदी के प्रवाह की तरह, लेकिन इस प्रवाह को कौन देखता है ? मन क्या स्वयं को देख पाने में सक्षम है, विचारों से परे जो देह व मन को देखता है वह क्या है ? उसे मन कहें या आत्मा क्या फर्क पड़ता है, शब्दों के पार जहाँ केवल शून्य है, कैसी शांति है, जहाँ नाद है, संगीत की लहरियां हैं. जहाँ न जीने की चाह है न मरने की परवाह है. जब कोई विराट शून्य में खड़ा हो जाता है तो दृष्टि अपने पर लौटती है.

आज क्लब की मीटिंग में उसे ‘मृणाल ज्योति’ पर बोलना है. यह बाधाग्रस्त बच्चों के पुनर्वास के लिए समर्पित एक संस्था है जो १९९९ में मात्र दो बच्चों को लेकर शुरू की गयी थी. ऐसे बच्चे जो पूर्ण समर्थ नहीं हैं, मंदबुद्धि हैं अथवा सुनने में अक्षम हैं. उनकी देखभाल शिक्षा तथा उनके इलाज के लिए मृणाल ज्योति जैसे संस्थाएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. वह हिंदी में अपने विचार सुचारू रूप से रख सकती है. सभी महिलाएं उस जैसी ही तो होंगी प्रेम से भरी, किन्तु थोड़ी सी नर्वस. उनमें आत्मविश्वास की कमी का कारण है आत्मा की कमी. आत्मा जितनी जितनी प्रखर होती जाएगी अर्थात स्वार्थ जितना-जितना कम होता जायेगा या अहंकार जितना-जितना शून्य होता जायेगा, आत्मा उतनी-उतनी उजागर होती जाएगी. उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि वे स्वयं को कभी खो ही नहीं सकते और पाने के लिए सब कुछ है क्योंकि आत्मा अनंत है जितना पा लें प्यास बढ़ती ही जाती है.


आज सुबह एक फोन आया. ध्यान में थी सो घंटी जैसे कहीं दूर बजती रही पर उठाने का मन नहीं हुआ. मन धीरे-धीरे उपराम होता जा रहा है, मरता जा रहा है. भीतर प्रकाश बढ़ता जा रहा है. लक्ष्य कुछ-कुछ दीखने लगा है. हर सुबह सद्गुरु से एक सूत्र मिलता है. कितना सुंदर, सरल और सीधा है उनका जीवन, इसकी पवित्रता देखकर आँखों में जल भर आता है, इतना निर्दोष और इतना पावन है उनका सहज स्वभाव. कितना पूर्ण और कितना तृप्ति से भरा है उनका खाली मन, ऐसा मन जो माँगता नहीं, चाहता नहीं, देने की भी चाह नहीं, कुछ करने की भी चाह नहीं. सहज जो होता रहे वही  पर्याप्त है ! करने वाला यदि बचा रहे, देने वाला और देखने वाला जब तक बचा रहे, तब तक भीतर कुछ न कुछ उथल-पुथल मची रहती है. अब कोई है नहीं भीतर, मौन है, सन्नाटा है, जो है बस है, होना नहीं है. कल सुबह एक परिचिता के पास गयी थी उसके इक्कीस वर्ष के भतीजे ने आत्मघात कर कर लिया. उसने प्रार्थना की, उसकी आत्मा को शांति का अनुभव हो वह सही मार्ग पा जाये !