Wednesday, July 27, 2016

वृद्धावस्था के भय


कल शाम जो कविता लिखकर भेजी थी उसका जवाब आया है. उसके मन में जो यह उत्सुकता बनी रहती है यह भी तो अहंकार को पोषण करने का मार्ग है. कविता अच्छी लगी यह सुनकर भीतर जो तोष होता है वह क्या सात्विक है, यदि हो भी तो उसे उसके ऊपर उठना है. कविता लिखना ही उसका आनन्द है, उसके बाद उससे कुछ पाना प्रभु से दूर जाना है. जो आनंद परमात्मा से आया है और जो आत्मा का है वही साधक का हेतु है. मन को तृप्त करने का हर साधन अहंकार को बढ़ाता ही है. आज भी वर्षा की झड़ी लगी है, कल नन्हे ने बताया कि उसके ऑफिस बॉय की नाभि का आपरेशन हुआ. वे लोग उसे अपने घर पर रखने को भी तैयार थे. कितने भले हैं ये आज की नई पीढ़ी के बच्चे, वे सहज रूप से दयालु हैं. कोई विशेष आयोजन करके दूसरों का भला करने नहीं जाते. परिवार के बंधन से मुक्त होकर वे सारे समाज को अपना परिवार बना पाने में समर्थ हैं. भारत का हो या विश्व का भविष्य सुरक्षित है. लड़के-लड़कियाँ काम में जुटे हैं. उसकी पीढ़ी की महिलाएँ कितनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाती हैं. दो बजने को हैं, अब दिन का तीसरा पहर शुरू होता है !  

दोपहर के ढाई बजे हैं. बादल बरस-बरस कर थक चुके हैं सो अब आराम कर रहे हैं अथवा तो जितना जल लाये थे, सब लुटा चुके हैं. अब थोड़ी देर में उनके साथी आते होंगे फिर से आकाश धरा का मिलन होगा.  कितनी ठंड हो गयी है. मार्च महीने का आज अंतिम दिन है, जून आज फील्ड गये थे, अभी कुछ देर पहले ही आये हैं. माँ सो रही हैं, सुबह पांच बजे उठी थीं, उसके बाद सीधे साढ़े बारह बजे ही लेटीं. उन्हें डर लगता है शायद आजकल जब-तब लेटने से, कहीं सब उन्हें छोड़कर  चले जाएँ. बुढ़ापा एक रोग है, कैसी-कैसी वृद्धावस्थाएं देखने-सुनने को मिल रही हैं. उसकी भी उम्र बढ़ रही है, पर खुशवंतसिंह हैं जो चौरानवे वर्ष के होकर सक्रिय हैं, राजनेता भी काम करते हैं उम्र के अंतिम पड़ाव पर. आज सुबह फुर्सत थी सो फोन पर कई लोगों से बात की. दोनों पिताजी, फुफेरी बहन, चचेरा भाई, चाची जी, बड़ी बुआ के नाती और नतिनी, बड़े भाई, दीदी, मंझली भाभी..कुल दस लोगों से बात की. ओशो को सुना कुछ देर, बुद्ध वायवीय नहीं थे. उनके पैर धरा पर टिके थे पर मस्तिष्क आकाश को छूता था. उन्हें जड़ को नकारना नहीं है पर स्वयं को चेतन जानना जरूर है. वे चेतन हैं जो जड़ को चला रहे हैं, न कि जड़ जो चेतन का उपयोग अपने सुख के लिए कर रहे हैं. कितना सरल है अध्यात्म का ज्ञान, चेतन व जड़ के संयोग से जो तीसरा तत्व निकला वह है अहंकार. अब अहंकार यदि दुःख पाना चाहता है तो स्वयं को जड़ माने, सुख पाना चाहता है तो चेतन माने. हो रहा है उल्टा पाना है सुख मानते हैं जड़, मिटाना है दुःख पर मानते नहीं चेतन..यही तो मोह है माया है, मिथ्याभास है. सद्गुरु उसे वक्त-वक्त पर संदेश भेजते रहते हैं. आज उनकी तस्वीर देखी, बर्फ की दरार में कितने प्रसन्न होकर बैठे हैं, जैसे अपने घर में हों, सारी दुनिया ही तो उनका घर है !

अप्रैल आ चुका है, आज दूसरा दिन है. धूप निकली है. कई दिनों के बाद मौसम खुला है पर कह नहीं सकते कब तक, शाम होते न होते फिर बदली छा जाएगी और वर्षा रानी अपने ताम-झाम के साथ पुनः पधारेंगी. माँ से आज थोड़ी देर बात की. वह कहती हैं, उन्हें कई आवाजें सुनाई पडती हैं. रात को डरावने सपने आते हैं और अकेले रहने में डर लगता है. पिताजी के जाने के बाद से ऐसा हो यह बात नहीं है, उनके होने पर भी वह घबरा जाती थीं. इस समय धूप में बाहर बैठकर बाल संवार रही हैं. आज मेडिकल गाइड में dementia के बारे में पढ़ा, लक्षण मिलते हैं लेकिन इलाज कुछ नहीं है. बूढ़े होकर मृत्यु के मुख में जाने से पूर्व यह कैसा दुःख किसी-किसी को झेलना पड़ता है, सारे वृद्धों को तो ऐसा नहीं होता. मानसिक रूप से जो आशावादी रहा हो, जो सजग, जागरूक तथा सदा कुछ न कुछ सीखने को तैयार रहता हो ऐसे व्यक्ति को बुढ़ापे में दिमाग की ऐसी हालत से शायद नहीं गुजरना पड़ता होगा. उनका मन क्या है, कैसे काम करता है, वे उस पर कैसे नियन्त्रण रख सकते हैं, यह सब सीखना हर एक का कर्त्तव्य है. आज उसने लेडीज क्लब को दिए जाने वाले सुझावों की एक लम्बी फेहरिस्त मन ही मन बनायी. प्रौढ़ शिक्षा उसमें से एक थी. बच्चों व बड़ों के लिए योग शिविर लगाना दूसरी थी. मृणाल ज्योति के लिए नये-नये सहायक ढूँढना भी उसमें शामिल है. वैसे उसने कुछ लोगों को फोन किया था, पर किसी ने भी ‘हाँ’ नहीं कहा है. यहाँ सभी अपने-अपने जीवन में मस्त हैं. किसी के बारे में सोचने की फुर्सत ही किसके पास है. एक उसका मन है कि सदा यही सोचता है कैसे सबके पास पहुँच जाये, सबको स्नेह से भिगो दे, सबकी झकझोर कर जगा दे, देखो, दुनिया तुम्हारी अपनी है !


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