Monday, July 18, 2016

बादलों के पार


पिछले कई दिनों से डायरी नहीं खोली, मेहमान आये और चले गये. बड़े भैया, दोनों-भाभियाँ व दोनों की बेटियां. सभी खुश थे. उन्होंने भी उनके साथ अच्छा समय गुजारा. कल का दिन ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के स्वामी मधुसूदन के नाम था. वह आजकल पदयात्रा के सिलसिले में यहाँ आए हुए हैं. आज उन्हें निमंत्रित किया था, उन्हें उसने अपनी किताबें दीं, इस समय नेट सर्फिंग कर रहे हैं. दोपहर को वे उनके साथ बच्चों की योग कक्षा में भी जायेंगे. गुरूजी तथा अपने जीवन के बारे में तथा अपनी दीक्षा के बारे में काफी कुछ उन्होंने बताया. गुरूजी से जो जुड़ जाता है, उसका जीवन बदल जाता है. कुछ दिनों पूर्व तक उसने उनका नाम भी नहीं सुना था पर आज से वे फेसबुक पर दिख सकते हैं. नन्हे से मात्र तीन वर्ष बड़े उसके बड़े पुत्र के समान ही हुए. कह रहे थे, गुरूजी सबको उसी तरह जानते हैं, जैसे वे अपने सिर के बालों को जानते हैं, जब किसी एक को खींचो तो दर्द होता है. उनके चारों ओर चेतना का महासमुद्र है, वे उसकी जानकारी में हैं.

कल रात बड़ी भाभी ने फोन पर कहा, जब वे हवाई जहाज से गोहाटी से दिल्ली जा रही थीं तो ऊपर नीला आकाश तथा नीचे श्वेत मेघ देखकर उन्हें उसकी स्मृति हो आयी, कि यदि वह इस स्वर्गिक दृश्य को देखती तो कविता लिखती. उसने उनसे कहा कल्पना में वह बादल देखकर भी कुछ लिख सकती है, सो प्रयत्न किया-
     
धरा से ऊपर, नीचे नभ से
तैरे हवा में यान हमारा,
श्वेत बादलों की शैया पर
ज्यों अटका हो एक सितारा !
निर्मल नील गगन का साया
श्वेत मेघ तिरते अम्बर में,
मानो बिखरी हो कपास शुभ्र
या बगुलों की पांत  उड़ी हो !
दूर कहीं है गंध धरा की
स्वर्णिम क्षण यह दृश्य अनोखा,
ढका हुआ बादल से सब कुछ
देखो, कहीं न एक झरोखा  !
उठा धरा से पहुँचा नभ में
हम बादल के पार आ गए
छोड़ के भेदों की दुनिया
एक का ही आधार पा गए  !


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