Friday, July 29, 2016

सहज समाधि


शाम के सात बजे हैं, आजकल बादल जब देखो तब बरसने लगते हैं. इस समय भी सुबह से शायद दसवीं बार मूसलाधार वर्षा हो रही है. जून क्लब गये हैं, वहाँ stress managment पर कोई योग का कार्यक्रम है. उसकी बाईं आँख के निचले कोने पर हल्का सा दर्द हो रहा है, शायद कोई छोटा सा दाना निकला है. माँ बहुत कहने पर अब लेट गयी हैं, पहले दिन भर उन्हें लेटना पसंद था, अब घंटों बैठी रहती हैं. उनका व्यक्त्तित्व बिलकुल बदल गया है, लेकिन कई बातें पहले की तरह हैं पर हैं वे सारी की सारी नकारात्मक. अभी कुछ देर पूर्व सुना मुरारी बापू कह रहे थे, अहंकार, स्वार्थ और कपट गुरु कृपा से दूर रखते हैं. नूना कभी-कभी तेज स्वर में बोलने लगती है, यह अहंकार का ही रूप है. स्वार्थ थोड़ा भी नहीं है, ऐसा तो नहीं कह सकते, निज की मुक्ति की कामना तो है ही, कपट भी अक्सर झलक जाता है, अब चाहे भले के लिए ही बातों को वे जैसी हैं वैसी प्रकट न करके उन्हें मधुर करके सहज करके प्रस्तुत करती है, लेकिन उस छिपाव में किसी का अहित करने का भाव नहीं है और सबसे बड़ी बात कृपा का अनुभव हर क्षण होता है.

पिताजी लौट आए हैं. आज सुबह आकर उन्होंने स्टोर के खाली डिब्बों को भर दिया है. वे लाये हैं- आंवले का मुरब्बा, पेठे की केसरिया मिठाई, मावे का लड्डू, मूँगफली, चने, मिस्सा आटा, किशमिश, काजू, बादाम, हरे चने, ककड़ी, खजूर, बिस्किट, राजधानी ट्रेन में मिला सामान और भी एक वस्तु- अंजीर ! वह आठ दिनों के लिए बेटी के घर गये और उनका कितना काम करके आये हैं. सामने और पीछे के स्थान की सफाई, दोनों कूलर साफ करके इस्तेमाल के योग्य करवाए. ट्यूब लाइट साफ करवाई, घड़ा लाकर दिया और भी न जाने क्या-क्या. घर में एक जिम्मेदार बुजुर्ग के रहने से घर ठीकठाक चलता है, जहाँ पति-पत्नी दोनों काम पर जाने वाले हों वहाँ घर के कुछ काम छूट ही जाते हैं. कम्प्यूटर पर बैठकर कुछ लिखा नहीं आज. नेट पर नन्हे का साईट देखा, फेसबुक पर बड़े भांजे ने उसके जवाब दिया है उसके प्रश्न का. सारी सुबह पिताजी के लाये सामानों को व्यवस्थित करने में निकल गयी. दोपहर माली से बगीचे में काम करवाने में. अभी कुछ ही देर में जून आने वाले होंगे शाम का कार्यक्रम आरम्भ हो जायेगा, इसी तरह एक और दिन बीत जायेगा, इस जीवन का एक और दिन कम हो जायेगा. हजारों लोग इस समय यही बात सोच रहे होंगे, हजारों हँस रहे होंगे और न जाने कितने आत्मबोध को पा रहे होंगे..एक तरह से देखे तो सभी कुछ व्यर्थ है और दूसरी तरह से देखे तो सभी कुछ सार्थक है. यहाँ होना ही काफी नहीं है क्या ? हर कोई स्वयं को कुछ साबित करना चाहता है, हर कोई अपना विज्ञापन की रहा है, लेकिन अंततः तो वह तड़प आत्मा ही की है या कहें परमात्मा की..चेतना की..जो न जाने कितने-कितने रूपों में प्रकट होना चाह रही है, न जाने कितने चेहरे लगाकर एक ही सत्ता.
.सद्गुरु कहते हैं, साधक उनका काम करें और वे तो उनका काम कर ही रहे हैं. आज उसे एक सुनहरा मौका मिला है सद्गुरु का काम करने का. सुबह ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ की एडवांस कोर्स टीचर से मिलने गयी, जो इटानगर से आयी हैं. दो दिन पहले ही गुरूजी ने उन्हें कहा कि यहाँ एडवांस कोर्स कराना है. उनकी कृपा यहाँ के लोगों पर कुछ विशेष ही बरस रही है. उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं या सही होगा कि सद्गुरु चाहते हैं कि उनके ‘सत्संग कक्ष’ में सहज समाधि कोर्स रखा जाये. उसने तत्क्षण ‘हाँ’ कह दी और अब कुछ लोग चाहियें जो कोर्स करें, उसने कई लोगों को फोन किये लगता है कुछ तो अवश्य ही राजी हो जायेंगे ! सद्गुरु की कृपा से अवश्य ही ‘सहज समाधि’ उनके घर में सम्पन्न होगा. कुछ वर्ष पूर्व वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी पर आज वह सम्भव है तो इसके पीछे परमात्मा की शक्ति ही काम कर रही है. उसकी कृपा कहें, प्रेम कहें या आनंद कहें, वह सब एक के ही नाम हैं. उनका सद्गुरु दुनिया में कहीं भी हो वह हर क्षण उनके साथ रहता है, रहा करता है, वह अनोखा है, अन्तर्यामी है और उस अनन्त गुणों को धारण करने वाले की नजर उन पर है, उसका हाथ उनके सिर पर है, उसकी दृष्टि उन पर पड़ी है, वह जीता-जगता परमेश्वर उन्हें अपनी झलक दिखाने खुद चलकर आया, प्यासा कुएं के पास जाता है पर यहाँ तो खुद कुआँ ही सामने खड़ा है, गंगा उनके द्वार आई है, सद्गुरु रूपी हीरा उन्हें सहज ही मिल गया है.

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