अगले दिन समुद्र तट पर कार्यक्रम
था लोग फूल, मालाएं व उपहार दे रहे थे जिन्हें वह गुरूजी के हाथ से लेकर कार में
रख कर आते थोड़ी देर में पुनः गुरूजी का हाथ भर जाता वह पकड़ा देते, रेत पर धोती पहन
कर भागना बड़ा कठिन लग रहा था, डर था कहीं धोती में पैर न फंसे I गुरूजी को अब मंच पर जाना था, उन्हें आगे जाकर आसन
बिछाना था, पर लोगों का हुजूम आगे जाने से रोक रहा था, लगभग भीड़ को धकेलते हुए जब
तेजी से आगे बढ़े तो अचानक धोती खुल गयी, बहुत शर्म आयी, पर इतनी भीड़ में किसी का
ध्यान नहीं था लोग गुरूजी की झलक पाने को बेताब थे जो अभी आने वाले थे, आसन बिछाने
का काम किसी अन्य सहयोगी को सौंपा और किनारे पर जाकर धोती ठीक करने लगे, गुरूजी
मंच पर पहुँच गए और अपनी जगह पर जाकर बैठ गये, रैम्प पर चल कर जब वह लौटे तो माइक
हटा कर मुस्कुराते हुए बोले, “अब सब टाइट है न ?” हनी शर्म से पानी-पानी हो गये, कहाँ वह सोच रहे थे अच्छा हुआ किसी ने देखा नहीं, गुरूजी तो काफी पीछे थे, अब लगता है गुरूजी
ठीक कहते हैं, “God Loves Fun” I
उसी
टूर की बात है, एक शाम दिन भर के थके एक हाल में जमीन पर ही अपने बैग पर सर रखकर
लेट गये, सबके लिये कमरे नहीं थे, मच्छर भी काट रहे थे, माँ की याद भी आ रही थी,
अपने घर का सुविधाजनक वातावरण छोड़ कर यहाँ अकेले सोये हैं, मन बहुत उदास था, सोचते-सोचते
नींद आ गयी I
सुबह क्या देखते हैं एक वरिष्ठ
शिक्षक भी निकट ही फर्श पर सोये हैं I उनसे पूछा आपको तो सोने का स्थान मिला था फिर यहाँ कैसे? उनका जवाब सुनकर
आँखों से अश्रुपात होने लगा, वे बोले आधी रात को गुरूजी का फोन आया, हनी हाल में
अकेला रो रहा है, उसके पास जाओ
I लगा कोई है जो माँ से भी ज्यादा
ध्यान रखता है
I पल भर में सारा दर्द कृतज्ञता में
बदल गया
I
यात्रा
समाप्त हुई और वह घर लौटे, बहुत कुछ बदल चुका था, जीने में आनंद आ रहा था I पहले मन में क्रोध था, हिंसा थी, गुस्सा आने पर हाथ में पकड़ी वस्तु तक तोड़ देता
था, why-why मन अब Wow-Wow मन में बदल चुका था I प्रश्न वाचक चिन्ह ? का घुमाव सीधा होकर विस्मय बोधक ! चिन्ह में परिवर्तित
हो गया था I खुशी-खुशी कॉलेज गये, कोर्स कर लिया था, गुरूजी के
साथ रहे थे मन एक अद्भुत आनंद व शक्ति का अनुभव कर रहा था I पहले ही दिन कुछ लड़के पकड़ कर रैगिंग के लिये ले
गए, मन में जरा भी डर नही था, उन्होंने व्यर्थ के सवाल पूछने शुरू किये, व्यर्थ के
काम करने को कहे, मना किया तो दस-बारह लड़कों ने पकड़ लिया और उनके नेता ने लोहे की
एक चेन निकाल ली I गुरूजी ने कहा था
कि यदि किसी के मन, वाणी और भाव से हिंसा विलीन हो जाती है तो उसके सामने हिंसक
प्राणी भी हिंसा त्याग देता है I जरा भी भय नहीं लग
रहा था, भीतर गुरूजी के वचनों के प्रति विश्वास था, अचानक उस लड़के ने मारने के
लिये उठाया हाथ नीचे कर लिया, कॅालर से पकड़ कर धक्का दिया और वे सब चले गये I उस दिन पता चला कि सबसे बड़ी ताकत क्या है? कि वे
ज्यादा शक्तिशाली थे या भीतर का प्रेम व आनंद !
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