२००३ आया, कॉलेज में अवकाश था I बैंगलोर आश्रम में एडवांस कोर्स होने वाला था I एक बार फिर मित्रों ने कहा बैंगलोर चलना है I पिताजी को मनाना आसान नहीं था, मन में विचार भी चल
रहे थे कि यदि छुट्टियों में यहीं रहा तो पिताजी दुकान पर बिठा देंगे I बैंगलोर जाकर कोर्स नहीं भी किया तो कम से कम एक
नया शहर घूमने को मिलेगा, सो युक्ति से पिताजी
को मनाया और उन्हें तब महसूस हुआ कि जरूर कोई और भी चाहता है कि वह बैंगलोर आकर
कोर्स करें, कि कोई शक्ति है जो उन्हें एक पूर्व निर्धारित मार्ग पर ले जा रही है I वे कुछ मित्र रवाना हुए I यात्रा के दौरान जैसा कि सभी के साथ होता है मन
में विचारों की रेल भी चलती रही I इसे हनी why-why माइंड कहते हैं, आश्रम कैसा होगा?
क्या रहने के लिये वहाँ कुटीर होंगे? क्योंकि एक सुविधाजनक वातावरण में वह बड़े हुए
थे, सदा ए सी में सफर करना, अपनी ही वस्तुएं
इस्तेमाल करना, अपने ही बिस्तर पर सोना, ये उनकी प्राथमिकताएँ थीं I किताबों में पढ़ी प्राचीन कथाओं के अनुसार झोपड़ियों
वाले आश्रम का एक चित्र मन में बन गया था, किन्तु जैसे ही बैंगलोर आश्रम में कदम
रखा मन में सन्नाटा छा गया I सारे विचार एकाएक
रुक गए I शाम का समय था आश्रम में उत्सव का माहौल था I देखते ही देखते बत्तियां जल उठीं और सारा आश्रम सुंदरता
का मूर्तिमान रूप बन सज उठा I भीतर से आवाज सुनाई
दी “धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है” I अगले दिन से कोर्स शुरू हो गया, जिसमें उन्हें
मित्रों से अलग कर दिया गया I मौन का पालन भी करना
था, मन में आशा लेकर गये थे कि गुरूजी से भेंट होगी, पर अभी तक नहीं हुई थी, सो
उदासी महसूस कर रहा थे I एक संध्या बालकनी
में बैठे थे गुरूजी ने ऊपर देखकर हाथ
हिलाया तो हनी ने भी सबके साथ हाथ हिलाया, उन्हें लगा गुरूजी को उनका स्मरण कहाँ
होगा, अगले दिन वह दूसरी तरफ बैठे गुरूजी ने फिर उन्हें देख कर हाथ हिलाया, इसके
बाद एडवांस कोर्स बहुत अच्छा लगने लगा I पूर्ण मौन चल रहा
था जो भीतर से जोड़ रहा था, कई प्रश्न पुनः उठने लगे जिनके जवाब भी भीतर से मिलने
लगे I लगा ऐसा बहुत कुछ है जो दिखाई नहीं देता, सुनाई
नहीं देता, बचपन के अधूरे सवालों के भी कुछ-कुछ जवाब मिलने लगे थे I
कोर्स के बाद सब
प्रतिभागियों की विदाई से पहले गुरूजी एक-एक कर सबसे मिल रहे थे हनी एक कोने में
थे वहीं से हाथ हिलाकर विदा ली तो गुरूजी ने हाथ की उंगलियां मोड़ कर जैसे अभिवादन
का जवाब दिया मन में आया कहीं गुरूजी उन्हें बुला तो नहीं रहे फिर सोचा इतने सारे
लोग प्रतीक्षा में खड़े हैं I वह कुछ ही दूर गये
थे कि एक शिक्षक दौड़ते हुए आये और बोले, “गुरूजी बुला रहे हैं” उनके साथ लौटे तो उन्होंने एक रेलिंग का मार्ग रोक कर वहीं गुरूजी की
प्रतीक्षा करने को कहा I अनेक लोग पीछे खड़े
थे, गुरूजी वहीं से आने वाले थे I हाथ में पकड़ी माला
घुमाते हुए अपने चिर-परिचित अंदाज में वह आये और अचानक उनका हाथ पकड़ कर भागने लगे,
वहाँ खड़े लोग भी पीछे भागने लगे, पूरी भगदड़ मच गयी I
उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था, कुछ दूर जाकर गुरूजी
कहा, “जा रहे हो? मत जाओ, आश्रम में रुक जाओ” I
उन्होंने कहा, “कल तो वापसी की टिकट बुक है, जाना ही होगा” I
वे बोले, “कल दो सप्ताह के लिये तमिलनाडु जा रहे हैं, लौट कर मिलेंगे” I
मन ने झट प्रतिक्रिया की,
अकेला छोड़ कर खुद तो जा रहे हैं, फिर रुकने को भी कह रहे हैं !
गुरूजी बोले, “ऐसा करो तुम भी मेरे साथ चलो” उन्हें एक और झटका लगा पहले आश्रम में आकर बिना कुछ किये भीतर मौन का अनुभव, कोर्स के दौरान गुरूजी का पहचानना, हाथ पकड़ कर
भगाते हुए ले जाना और अब अपने साथ यात्रा का निमंत्रण!
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