एक दिन और आधा गुजर गया. अभी तक सिंगापुर पर उसका लेख
समाप्त नहीं हुआ है. दोपहर को बापू की मानस सुनती रही, पर कहते हैं न सत्संग में
लोग नींद पूरी करने भी जाते हैं सो कब ध्यान नींद में बदल गया पता ही नहीं चला,
सवा दो बजे नींद खुली. सिलाई का छोटा-मोटा काम किया, चाय पीकर अब डायरी खोली है.
आज सुबह छोटी चाचीजी का फोन आया, उनके बड़े पुत्र का पैर दुर्घटना में घायल हो गया
है, आपरेशन करना होगा. उसने सोचा, जा तो नहीं सकती पर इतनी दूर से वह कुछ मदद तो
कर सकती है, जून को फोन किया उनका दिल बहुत बड़ा है. कल शाम की जन्मदिन की पार्टी अच्छी रही, नन्ही सी बच्ची
इतनी बातें करती है, पूरे वक्त खेलती रही, वह जरूर जीवन में कुछ उच्च लक्ष्य
प्राप्त करेगी. उसका जीवन तो यूँ ही बीता जा रहा है. आज सत्संग का दिन है, पर वह
नहीं जा पा रही है. सुबह सीडी लगा कर किचन में ही सत्संग किया. गुरूजी को टीवी पर
सुना फिर गाँधीजी के पोते राजमोहन गाँधी को भी सुना, महात्मा के लक्षणों को सुना.
माँ को कई बार कुछ भी समझ में नहीं आता पर कई बार वह बिल्कुल सामान्य लगती
हैं, एकदम स्वस्थ मन से भी और तन से भी ! पिताजी आज दांत के डाक्टर के पास दुबारा
गये थे. उनकी आवाज बदल जाती है, जब दांत लगा के बात करते हैं, चेहरा ही बदल जाता
है. बुढ़ापा स्वयं में एक रोग है. वे भी धीरे-धीरे उसी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.
नन्हे का फोन आया दोपहर को, वह उसे आईपॉड के लिए स्ट्रैप भेज रहा है. कल पार्टी
में एग लेस केक स्वादिष्ट था, ज्यादा खा लिया, तन शिकायत कर रहा है आज.
टीवी पर कपिला वात्स्यायन जी का भाषण आ रहा है. अज्ञेय से जुड़ी हैं वह. मुरारी
बापू का आभार व्यक्त कर रही हैं. महात्मा गाँधी के बारे में भी कुछ कह रही हैं.
उन्होंने तकली को प्रतीक बनाकर कहा कि मन भी रुई के समान है जिसमें एकाग्रता से कई
सूक्ष्मतम भाव निकाल सकते हैं. मुरारी बापू की कथा पर एक ग्रन्थ का प्रकाशन परवाज
साहब ने किया है, उसका लोकार्पण भी किया जा रहा है.
उन्होंने न जाने कितने भ्रम पाल रखे हैं जो उनकी विनम्रता को विकसित नहीं होने
देते. पारिवारिक जीवन में सरसता का कारण विनय का मूल्यांकन ही है ! शांत सहवास अति
कठिन है यदि विनय न हो, सहन करने की शक्ति न हो. सुबह जून को थोड़ा सा परेशान किया,
जब प्राणायाम करते समय खिड़की खोली. उन्हें ठंड लगी हुई है न भी लगी होती तो
सुबह-सुबह खिड़की खोलना उन्हें पसंद नहीं है. लेकिन पहले की तरह वह देर तक इस बात
को लेकर परेशान नहीं हुए. उनके मध्य समझ और प्रेम हर दिन बढ़ रहे हैं. भाई-भाभी व
छोटे भांजे को ई-कार्ड भेजे. दोपहर को डेंटिस्ट के पास गयी. वहाँ एक मराठी परिचिता
के पिता को भी देखा, प्रभावशाली व्यक्तित्त्व है उनका, अच्छी हिंदी बोल रहे थे.
लौटी तो माली से काम करवाया. छोटे चचेरे भाई से बात की. उसने कहा, अभी दूसरा
आपरेशन नहीं हुआ है भाई का, पैर बचाना मुश्किल है, भाभी के भाई की शादी है, उसका
मन कितना परेशान होगा इस वक्त ! जून अभी आये नहीं हैं, माँ-पिताजी शाम के नाश्ते
पर उनका इंतजार कर रहे हैं. शाम को वे एक मित्र के यहाँ जायेंगे उनकी बिटिया
अस्वस्थ है. कल बुजुर्ग आंटी को देखने अस्पताल. आजकल सभी के साथ कोई न कोई समस्या
लगी हुई है. हर तरफ दुःख ही दुःख है, ऐसे में कोई यदि शांत रहना चाहता है तो उसे
अपने भीतर के मौन को सुनना सीखना होगा. शून्य को अनुभव करना होगा. बाहर तो उहापोह
है, भीतर समाधान है, भीतर परमात्मा का राज्य है, वह द्रष्टा है, कवि है, मनीषी है,
सर्वज्ञ है और वह उनका सुहृद है, अकारण दयालु है, हितैषी है, वह है तो वे हैं, वह
उनका अपना आप है. उसकी उपासना करते हुए कर्म करते हैं तभी वे मुक्त रह सकते हैं.
उनकी मुक्ति ही एकमात्र प्राप्य है, इस जगत में और क्या करना है ? सेवा करना भी
मुक्ति के लिए ही है, पर उन्हें बाँधा किसने है ? उन्होंने ही तो !
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