तब उम्र भी कम थी टीनएजर के
ख़िताब से अभी निकले भर थे I किसी तरह इतना ही
कहा कि सोचना पड़ेगा I आगे बढ़े, गुरूजी से
मिलने आये एक परिवार में एक छोटी लड़की परीक्षा के आनेवाले परिणाम के भय से रो रही
थी, गुरूजी ने कहा, “क्यों रोती है? तू तो हर सुबह ‘ओम नमो शिवाय’ का जप करती है न?” लड़की रोना भूल कर आश्चर्य से बोली आपको कैसे पता? मुस्कुराते हुए गुरूजी कहने
लगे, ”मुझे सब पता है I फिर उनसे बोले, “कल सुबह सात बजे फ्लाइट है तुम छह बजे तैयार रहना” हनी ने फिर कहा, “सोच के बताऊँगा” आँखों के सामने पिताजी का चेहरा आ रहा था कितनी मुश्किल से कुछ दिनों के लिये
आज्ञा मिली थी अब दो हफ्ते और घर से दूर रहने पर वे अवश्य ही बहुत नाराज होंगे I लौट कर मित्रों को बताया तो उनका चेहरा देखने लायक
था, उन्हें ईर्ष्या भी हो रही थी और वे खुश भी थे I
रात भर सोचते रहा जाऊँ या न जाऊँ, जानना चाहते थे कि गुरु
क्या होते हैं? गुरु तत्व क्या है ? अंततः निर्णय लिया कि जाना चाहिए, सुबह साढ़े छह बजे निर्धारित जगह पर पहुँचे
तो पता चला गुरूजी चले गए हैं, रात भर जगने के कारण आधा घंटा देर तो हो ही गयी थी I अपना सामान उठाये पीछे लौट ही रहे थे कि एक बार
फिर एक वरिष्ठ शिक्षक आये और बोले तुम हमारे साथ ट्रेन से चल रहे हो, तुम्हारा
टिकट बना हुआ है, वह एक बार फिर आश्चर्य से भर गये, समझ में कुछ नहीं आ रहा था, वह शिक्षक बोले, “गुरूजी जानते थे कि देर से आओगे इसीलिए ट्रेन का टिकट बनवाया है I”
तमिलनाडु पहुँचे तो गुरूजी
का व्यस्त कार्यक्रम आरम्भ हुआ, सत्संग, सभाएँ, उदघाटन समारोह, मीटिंग्स, आदि आदि
में सारा समय निकल जाता था I वह गुरूजी का बैग और
आसन लेकर उनकी कार में पीछे बैठता था I सब कुछ ठीक था पर एक
तो दक्षिण भारतीय भोजन फिर उसमें वहाँ लाल चावल मिलते थे, ठीक से खा नहीं पाता था
कई बार भूख मिटती नहीं थी संकोच के कारण किसी से कह भी नहीं पाता था I एक दिन गुरूजी ने बुलाया और पूछा, ”ठीक से खा नहीँ रहे हो? वह
चौंके किसने कहा होगा वही प्रश्न उठाने वाला मन सामने आ गया और गुरु की क्षमता पर
सहज ही विश्वास नहीं हुआ लेकिन उसके बाद हर दिन उनके लिये उत्तर भारतीय भोजन की
व्यवस्था होने लगी I यात्रा के दौरान एक
बार कई गाड़ियों का काफिला जा रहा था, गुरूजी ने अपनी गाड़ी एक कच्चे रस्ते पर मोड़ने
को कहा, एक कुटीर के सामने कार रुकी, एक बुजुर्ग महिला आयी और बोली कबसे प्रतीक्षा
कर रही थी I गुरूजी ने उसे कुछ फल व पैसे दिए, कुछ दिनों बाद
पता चला कि उनकी देह शांत हो गयी I
वे यात्रा के दौरान किसी एक
स्थान पर ज्यादा नहीं रुकते थे, सारे कपड़े मैले हो गए थे, धोने का समय ही नहीं
मिला था I चिंतित थे कि कल गुरूजी के साथ क्या पहन कर जाएंगे,
तभी दरवाजे पर किसी ने खटखटाया, गुरूजी बुला रहे हैं, वह फिर डरते डरते उनके पास
गये, कहीं कोई भूल तो नहीं हो गयी, एक धोती और अंगवस्त्र देते हुए वे बोले, “कल इसे पहन लेना” आश्चर्य से वह कुछ देर मौन खड़े रहे, यह बात तो अभी तक किसी से कही भी नहीं
थी, कहा, “पर उन्हें तो यह पहनना नहीं आता, तो वे कहने लगे इस
धोती को साड़ी की तरह पहन लेना और ऊपर से अंगवस्त्र डाल लेना I
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