एक सुबह पैदल चलते हुए वे होटल
से कुछ ही दूर स्थित ‘लिटिल इंडिया’ इलाके में पँहुच गए, जहाँ बड़ी संख्या में तमिल
रहते है I अगरबत्ती तथा फूलोँ की सुगंध ने उन्हें मोह लिया I बंदनवार सजे थे, एक विशाल वैन में सीढ़ी पर सवार हो
एक व्यक्ति सड़क पर बने द्वार पर तोरण सजा रहा था I भक्ति संगीत हवा में गूंज रहा था, पोंगल की तैयारी जोरशोर से हो रही थी I यहाँ के बाजार बिलकुल भारतीय बाजारों की तरह लग
रहे थे I रविवार की संध्या को देखा, लिटिल इंडिया के पार्क
तथा सडकों के किनारे के स्थान लोंगो से खचाखच भर गए हैं, पता चला कि सप्ताह में एक
बार वे आपस में मिलकर सुख-दुःख बांटते है, तथा भारत आने-जाने वाले लोगों से धन या
सामान मंगवाते-भेजते हैं I इसी तरह की भीड़
चाइनाटाउन में चीनी लोगों की होती है I चाइनाटाउन में
प्राचीन बौद्ध व चीनी मंदिरों के साथ एक हिंदू मंदिर व मस्जिद भी है, यहाँ पुराने
और नए का अद्भुत संगम है. १८२० में यहाँ पहला चीनी व्यापारी आया था, आज यह
सिंगापुर का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है I
उनकी यात्रा की
अंतिम संध्या चायनीज तथा जापानीज़ गार्डन में बीती I यहाँ दो आकर्षक पगोडा तथा एक विशाल झील के चित्र उतारे I पश्चिमी सिंगापुर में स्थित ये विशाल बगीचे
बोन्साई तथा सीमेंट के लैम्पों के लिये जाने जाते हैं I ‘चीनी नए वर्ष’ पर चायनीज गार्डन फूलोँ से सजाया
जाता है तथा ‘मिड ऑटम फेस्टिवल’ पर सितम्बर में जापानीज़ गार्डन लैम्पों के प्रकाश
से जगमगा उठता है I
दुनिया के हर कोने
से सिंगापुर आने वाले यात्रियों के साथ गुजारे ये दिन एक सुखद स्मृति बनकर उन्हें
जीवन भर गुदगुदाते रहेंगे ! यह शहर जैसे पर्यटकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है
I वे लौट आये हैं यादों का एक खजाना लेकर और एक सपना
लेकर भी कि एक दिन भारत भी अपनी स्वच्छता, पारदर्शिता, ईमानदारी पर गर्व कर सकेगा I
भैया-भाभी के आने में तेरह दिन शेष हैं. वर्षा के कारण सफाई का कार्य रुक गया है, धूप की प्रतीक्षा है. उनका जीवन
प्रतीक्षा में ही बीत जाता है. काम ज्यादा वे कर ही नहीं पाते. कल आइन्स्टीन पर
लिखी किताब पढ़ी, आज भी पढ़ेगी. ईश्वर ने उसके मस्तिष्क को किसी खास काम के लिए गढ़ा
था. ईश्वर हर एक को इस दुनिया में कुछ बनने के लिए भेजता है, उनके भीतर प्रतिभा का
बीज छिपा होता है, उसे उगाना उनका काम होता है. वे छोटे-मोटे कामों में ही जीवन
गंवा देते हैं, तब किसी काबिल का हाथ उनके सिर पर रुकता है और वे स्वयं को पहचान
कर अपने समय का अधिक से अधिक सदुपयोग होने देते हैं, निखारते हैं बुद्धि को, शांत
रखते हैं मन को तथा निर्भार होकर सहज कर्म करते हैं. यहाँ सिवाय आत्मा के कुछ भी
अपना नहीं है. ये हाथ, पांव, मन, बुद्धि भी साधन
ही हैं तो इनके द्वारा काम भी तभी अच्छे होंगे जब भीतर आत्मा उनकी मालिक बन
जाये. मन यदि पवित्र है तो आनंद का अनुभव होता है, यदि अपवित्र है तो दुःख का
अनुभव होता है.
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